शनि सर्वाधिक मन्द गति से भ्रमण करने वाला ग्रह है । द्वादशराशियों में भ्रमण करने के निमित्त उसे 30 वर्ष अपेक्षित होते हैं । अत: विवाह के विलम्ब से होने में शनि की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका है किसी भी जन्मकुण्डली में विवाह-काल का निर्णय करते समय सर्वप्रथम विचारणीय यह है की जातिका (कन्या) या जातक का विवाह उचित आयु में होगा या विलम्ब से होगा अथवा नहीं होगा । प्राय: कन्या के विवाह में विलम्ब होने की स्थिति में ही अभिभावक चिंताग्रस्त होते हैं । जब विलम्ब अधिक होने लगता है तो स्वयं जातिका की व्यग्रता भी बढ़ जाती है । विवाह की समुचित अवस्था, विशेषतया कन्या के लिए 18-25 वर्ष तक है । परन्तु 22वें वर्ष के समाप्त होने के साथ-साय कन्या के अविवाहित रहने की स्थिति में, अभिभावकों को कुछ विलम्ब का अनुभव होने लगता है । 25वें वर्ष से अभिभावकों के संगन्ती। वज्या स्वयं भी विवाह की ओर से अनिश्चितता की स्थिति में आ जाती है । विवाह में विलम्ब होगा अथवा विवाह होगा ही नहीं, इसके ज्ञान के लिए ज्योतिष से अधिक कोई अन्य विद्वान उपयोगी सिद्ध नहीं हुआ है । सर्वप्रथम निम्नलिखित प्रश्नों पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए । विवाह में अवरोध का क्या कारण है 7 कौंन-कौंन से ग्रह बाधक हैं, किस प्रयोग के कारण अनेक गम्भीर प्रयत्न भी लगातार विफल होते जा रहे हैं । जव किसी कन्या की जन्मकुंडली में शनि, चन्द्रमा अथवा सूर्यं से युक्त या दृष्ट होकर सप्तम भाव अथवा लग्न में क्रमश: संस्थित हो तो विवाह नहीं होता । नवांश चक्र भी अवश्य देखना चाहिए ।
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