Monday, 7 September 2015

खल्लारी के अद्भूत नजारे

महासमुन्द जिले से लगभग 22 किमी. दूर स्थित है। यहां पास की एक पहाड़ी पर एक शिलाखण्ड है, जो सती स्तम्भ का एक भाग प्रतीत होता है। यह सिन्दूर से पुता हुआ है और खल्लारी माता के रुप में पूजनीय है। चैत्र माह में पूर्णिमा को खल्लारी ग्राम में देवी के सम्मान में एक मेला लगता है।
कभी सोमवंसिया सम्राटों के शासन में रहा, महासमुंद पारंपरिक कला और संस्कृति का एक केंद्र है। महासमुंद छत्तीसगढ़ के मध्य पूर्वी हिस्सा में है। सिरपुर, इस क्षेत्र का सांस्कृतिक केंद्र है, जिसकी वजह से काफी बड़ी संख्या में पर्यटक साल भर यहाँ आते है। यह महानदी के किनारों पर बसा हुआ है। यह क्षेत्र चूना पत्थर और ग्रेनाइट चट्टानों से भरा पड़ा है।
कई जनजातियां जैसे बहलिया, हल्बा, मुंडा , सोनार , संवारा , पारधी, आदि इस क्षेत्र में रहते हैं। जनजातीय संस्कृति, आदिवासी मेले और त्योहार यहाँ रोज़मर्रा के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यहाँ के
लोगों का पहनावा एकदम पारंपरिक है, पुरुष धोती, कुर्ता, पगड़ी और चमड़े का जूता पहनते है और महिलाएं साड़ी पहेनती हैं। अत्करिया पारंपरिक जूते है। बिछिया , करधन या कमर बंद , पर्पत्ति या कोण बैंड, फूली या चांदी की बालियों जैसे गहने यहाँ की महिलाएं पहनती हैं। त्योहारों को धूम धाम से मनाना उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
महासमुंद और आसपास, पर्यटकों के आकर्षण के लिए लक्ष्मण मंदिर, आनंद प्रभु कुटी विहार, भाम्हिनी की स्वेत गंगा, खाल्लारिमाता मंदिर , घुघरा (दलदली), चंडी मंदिर (बिरकोनी), चंडी मंदिर (गुछापाली), स्वास्तिक विहार, गंधेस्वर
मंदिर, खल्लारी माता मंदिर आदि है।
छत्तीसगढ़ में खल्लारी माता के दरबार में ऐसे-ऐसे अद्भूत नजारे हैं जो वास्तव में आंखों को प्यारे लगते हैं। यहां आने के बाद जिस तरह की शांति का अहसास होता है, उस शांति की तलाश आज की भागमभाग वाली जिंदगी में सभी को रहती है। 355 मीटर की ऊंचाई पर 981 सीढिय़ों को लांघने के बाद जब आप ऊपर पहुंचते हैं तो वहां की छटा देखकर सारी थकान गायब हो जाती है। ऊपर से जब नीचे का नजारा देखो तो देखते ही रह जाते हैं। पहाड़ के चारों तरफ प्रकृति के ऐसे नजारे हैं जिनको शब्दों में बयान करना आसान नहीं है। ऊपर से जिस दिशा में नजरें जाती थीं लगता था कि प्रकृति अपनी गोद में सारे जहान का सौंदर्य लिए हुए है। एक ऐसा सौंदर्य जिसको हर कोई कैमरे में कैद करना चाहेगा।
यहां पर 14 वीं शताब्दी का दंतेश्वरी देवी का ऐतिहासिक मंदिर है। इसके अलावा वहां पर भीम पांव के साथ उनके चूल्हे और साथ ही डोंगा पत्थर के हैं। यहां पत्थरों में राम और लक्ष्मण को भी दिखाया गया है। दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर, भैरव गुफा, सिंह गुफा, शीत बाबा, राम जानकी निषाद राज, जंवारा खोल, शिव गंगा भागीरथी के भी दर्शन होते हैं। जहां पर भीम पांव हैं वहां की छठा निराली है। यहां पर पहाड़ों के चारों तरफ का सौंदर्य निराला है। ऊपर ने नीचे देखने पर सडक़ का भी अद्भूत नजारा नजर आता है। आस-पास जो तालाब हैं वे भी काफी सुंदर लगते हैं।
बारिश के समय में यहां की छठा और ज्यादा निराली रहती हैं। जब आसमान में इन्द्रधनुष दिखता है तो पहाड़ के चारों तरफ का नजारा वास्तव में देखने योग्य होता है। तब यहां आने वाले लोग अपने को धन्य समझते हैं। खल्लारी माता के दरबार को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। आने वाले दर्शनार्थियों के लिए मंदिर के पहले एक गार्डन भी बनाया गया है। पानी आदि की समुचित व्यवस्था है। यहां पर साल में दो बार आने वाली नवरात्रि पर मेला लगता है जिसमें काफी दूर-दूर से लोग आते हैं माता के दरबार में। खल्लारी आने वालों को आस-पास में और भी कई दर्शनीय स्थालों पर जाने का मौका मिल सकता है।
भीम के पांव देखने हैं तो खल्लारी आएं....
छत्तीसगढ़ में जो भी पर्यटन और धार्मिक स्थल हैं वहां पर रामायण और महाभारत की गाथा से जुड़ी कई चीजें हैं। महाभारत के महारथी और परम शक्तिशाली भीम का छत्तीसगढ़ से नाता रहा है। नाता तो सारे पांडवों का रहा है। राजधानी रायपुर से करीब 80 किलो मीटर की दूरी पर खल्लारी में माता खल्लारी देवी का मंदिर है। पहाड़ों पर बसे इस मंदिर के पास में ही भीम के पैरों के निशानों के साथ उनका चूल्हा भी है जहां पर वे खाना बनाते थे। वैसे यहां आने के बाद महज भीम के पांव के ही दर्शन नहीं होंगे, यहां देखने लायक काफी कुछ है। लेकिन फिलहाल हम चर्चा भीम पांव की करने वाले हैं।
महाभारत के जुड़े पांडवों के छत्तीसगढ़ के कई स्थानों पर आने के अवशेष हैं। वैसे भी बताया जाता है कि सिरपुर में ही देश का प्रमुख चौराहा था और किसी को भी उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम जाने के लिए इस चौराहे से गुजरना ही पड़ता था। ऐसे में जबकि पांडवों को भी अपना अज्ञातवाश काटना था तो उनका छत्तीसगढ़ के
जंगलों में आना हुआ। मप्र के पंचमढ़ी में भी पांडवों का स्थान है। बहरहाल हम बातें करें पांच पांडवों में से एक शक्तिशाली भीम की। भीम के बारे में ऐसा कहा जाता है कि विशालकाय शरीर के भीम जब चलते थे तो धरती पर जब उनके पैर पड़ते थे तो लगता था कि धरती हिल रही है। इस बात का प्रमाण वास्तव में भीम के पैर देखने के बाद होता है और इन पैरों को जब 355 मीटर ऊंची पहाड़ी पर देखने से मालूम होता है कि वास्तव में भीम कितने शक्तिशाली रहे होंगे।
पहाड़ी में उनके पैरों के जो निशाने हैं वो एक तरह से पहाड़ के पत्थर में गड्ढ़ा है। जानकारों का ऐसा मानना कि जब भीम यहां आते होंगे तो उनके पैरों से पहाड़ों में भी गड्ढ़ा हो जाता था। जहां पर भीम के पैरों के निशाने हैं, वहीं पर एक और बहुत बड़ा गड्ढ़ा है जिसे उनका चूल्हा बताया जाता है। इस चूल्हें में ही वे खाना बनाते थे। खल्लारी मंदिर के पुजारी महेन्द्र पांडे बताते हैं कि खल्लारी के पास में ही उस लाक्ष्यागृह के अवशेष हैं जिसमें पांडवों को रखा गया था और बाद में इसमें आग लगा दी गई थी। लेकिन पांडव उस आग से बच गए थे क्योंकि विदुर ने उनको आग से बचने का उपाय कुछ इस तरह से बताया कि आग में ऐसा कौन सा जीव है जो बचने का रास्ता निकाल लेते हैं। इसका जवाब पांडवों ने दिया था कि चूहा। चूहा जिस तरह से सुरंग बनाकर अपनी जान बचा लेता है उसी तरह से पांडवों ने भी लाक्ष्यागृह के नीचे से सुरंग बनाकर अपनी जान बचाई थी।
खल्लारी आने पर भीम पांव और चूल्हे के साथ और भी प्रकृति के कई अद्भूत नजारे देखने को मिलते हैं। इन बाकी नजारों की बातें अब बाद में होंगी। फिलहाल इतना ही। खल्लारी तक पहुंचने के लिए पहले छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर तक ट्रेन या फिर हवाई मार्ग से आना पड़ेगा। रायपुर से खल्लारी तक बस से या फिर ट्रेन से जाने का रास्ता है। ट्रेन के रास्ते से जाने पर भीमखोज में उतरना पड़ेगा। बस से सीधे खल्लारी पहुंचा जा सकता है।
महासमुंद तक कैसे पहुंचे:
सडक़ मार्ग अथवा रेल यात्रा कर बड़ी ही आसानी से महासमुंद तक जाया जा सकता है तथा २२ किमी दूर खल्लारी बस के द्वारा खल्लारी पहुंचा जाता है।
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