Monday, 7 September 2015

कैंसर रोगी ज्योतिष्य आंकलन

भारतीय दर्शन में निरोगी रहना प्रथम सुख माना गया है. यथा- ‘‘पहला सुख निरोगी काया’’ यह बिल्कुल सत्य है कि निरोगी शरीर ही प्रथम सुख है और बाकी सभी सुख निरोगी शरीर पर ही निर्भर करते हैं. आजकल के दौड़ धूप के युग में पूर्णत: निरोगी रहना अधिकांश व्यक्तियों के लिये एक स्वपन के समान ही है. निरोगी शरीर का अर्थ है शरीर रोग का से रहित होना. रोग दो प्रकार के होते है एक- साध्य रोग जो कि उचित उपचार, आहार, व्यबहार से ठीक हो जाते हैं. दूसरे- असाध्य रोग जो कि उपचार के बाद भी व्यक्तिओं का पीछा नही छोडते हंै. इन्ही असाध्य रोगों मे अधिकांश रोग जिन्दगी भर साथ रहते हैं तथा उचित उपचार के साथ जिन्दगी के लिये घातक नही होते हैं. परन्तु एक असाध्य रोग ऐसा है जिसका कोई उपचार नहीं है और है भी तो बहुत सीमित. और उसका नाम है कैंसर.
इस आलेख मे कैंसर रोग के ज्योतिषीय पहलू का विवेचन करते हैं. आइये पहले यह जाने कि कैंसर रोग क्या है. आयुर्वेद के अनुसार त्वचा की छठी परत जिसे आयुर्वेद मे रोहिणी कहते है जिसका संस्कृत मे अर्थ है कोशिकाओं की रचना. जब ये कोशिकायें क्षतिग्रस्त होती हैं तो शरीर के उस हिस्से मे एक ग्रन्थि बन जाती है. इस ग्रन्थि को असमान्य शोथ भी कहती है. जिसे आयुर्वेद मे विभिन्न स्थान और
प्रकार के नामों से जाना जा ता है जैस: अर्बुद, गुल्म, शालुका आदि. जब ये शोथ त्रिदोषों (वात, पित्त, कफ) के नियंत्रण से परे हो जाते हैं, तब यह ग्रन्थि कैंसर क रूप ले लेती हैं.
ज्योतिष पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों का आधार है अर्थात हम ज्योतिष द्वारा ज्ञात कर सकते हैं कि हमारे पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों का परिणाम हमें इस जन्म मे किस प्रकार प्राप्त होगा. ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार कोई भी रोग पूर्व जन्मकृत कर्मों का ही फल होता है. ग्रह उन फलों के संकेतक हैं, ज्योतिष विज्ञान कैंसर सहित सभी रोगों की पहचान में बहुत ही सहायक होता है. पहचान के साथ-साथ यह भी मालूम किया जा सकता है कि कैंसर रोग किस अवस्था मे होगा तथा उसके कारण मृत्यु आयेगी या नहीं, यह सिद्ध ज्योतिष द्वारा सटीक जाना जा सकता है. कैंसर रोग की पहचान निम्न ज्योतिषीय योग होने पर बड़ी आसानी से की जा सकती है.
ज्योतिष रत्न के पाठ 24 के अनुसार:
1. राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबन्ध हो एवम इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तो शरीर मे विष की मात्रा बढ जाती है.
2. षष्टेश लग्न, अष्टम या दशम भाव में स्थित होकर
राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है.
3. बारहवे भाव मे शनि-मंगल या शनि-राहु, शनि-केतु की युति हो तो जातक को कैंसर रोग देती है.
4. राहु की त्रिक भाव या त्रिकेश पर दृष्टि हो भी कैंसर रोग की संभावना बढ़ाती है.
इनके अलावा निम्न बिन्दु भी कैसर रोग की पहचान के लिये बताए गए हैं:
1. षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीडि़त या क्रूर ग्रह के नक्षत्र मे स्थित हों.
2. बुध ग्रह त्वचा का कारक है अत: बुध अगर क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैंसर रोग होता है.
3. बुध ग्रह की पीडि़त या हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र मे स्थिति भी कैंसर को जन्म देती है.
बृहत पाराशरहोरा शास्त्र के अनुसार षष्ठ पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होता है यथा ‘‘रोग स्थाने गते पापे, तदीशी पाप’’. अत: जातक रोगी होगा और यदि षष्ठ भाव में राहु व शनि हो तो असाध्य रोग से पीडि़त हो सकता है. किसी सिद्ध ज्योतिषाचार्य के कुंडली विश£ेषण से कैंसर रोग की संभावना को आंका जा सकता है एवं इसके होने से पहले ही सावधानी रखी जा सकती है।
Pt.P.S.Tripathi
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