वर्तमान मेँ कृषि कार्य न केवल जीवकोपार्जन का साधन है बल्कि एक अच्छा व्यवसाय भी साबित हो रहा है । प्रकृति किसानों का साथ दे तो इस कार्य से भी काफी धनोपार्जन किया जा सकता है। कई प्रकार के रोग एवं प्राकृतिक प्रकोप किसानो की आशाओं पर पानी फेर देते हैं। फसल देखते ही देखते जल जाती है । जहाँ क्विंटल अनाज की आशा थी वहाँ कुछ किलोग्राम अनाज से सन्तुष्ट होना पड़ता है। ऐसे में यदि खेतों में वैज्ञानिक विधियों के साथ-साथ भारतीय वास्तुशास्त्र एवं ज्योतिष का समन्वय कर दें तो उन्हें काफी लाभ प्राप्त हो सकता है ।
सर्वप्रथम जिस भूमि अथवा खत में खेती करनी हो तो उसकी परीक्षा करें लेनी चाहिए । अपने हाथ के प्रमाण से एक हाथ लम्बा, एक हाथ चौडा और एक साथ गहरा गड्रडा खोदकर उसे पूरा पानी से भर दे । पाच मिनट पश्चात् गड़डे को देखें यदि गड्रडा पानी से भरा हुआ है या थोडा पानी जमीन ने सोख लिया है तो उस भूमि पर खेती करना उत्तम रहेगा और यदि गड्डे में बिल्कुल पानी न बचे तो ऐसी भूमि पर खेती करने में कायदा नहीं है ।कृषि भूमि अथवा खेत वर्गाकार एवं आयताकार अच्छे माने गये है । खेत त्रिभुजाकार, अष्टभूजाकार, धनुषाकार, पंखीनुमा, तबला व मृदंग के आकार के वास्तुशास्त्र की दृष्टि से अनुपयोगी है । उक्त प्रकार के खेतों में जितना क्षेत्र आयताकार अथवा वर्गाकार बने उस पर खेती करे एव शेष को खाली छोड दँ।खेत का रास्ता उत्तर-पूर्व में होना शुभकर है । दक्षिण दिशा में रास्ता रखने से बचना चाहिए । खेत में से किसी अन्य के खेत में जाने का रास्ता भी नहीँ होना चाहिए।
खेत का विस्तार हमेशा उत्तर-पूर्व दिशा से करना चाहिए । खेत का बटवारा करते समय यह विशेष ध्यान रखें कि खेत का उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा न कटे ।खेत की भूमि समतल हो । खेत की भूमि की ढलान पूर्व, उत्तर अथवा ईशान दिशा में शुभकर है। कृषि भूमि का ढाल पश्चिम या दक्षिण में कदापि न हो | खेत के बीचो-बीच टीला न हो। अगर रन्नेत कं उत्तर या पूर्व में गड्डे हो तो उन्हें भरने का प्रयास न करें । इसी प्रकार दक्षिण व पश्चिम में रेत के टीले है तो इन्हें हटाकर खेती नहीं करनी चाहिए क्योकि ये गड्डे व टीलें अमुक दिशा में शुभ माने गये है ।प्राय किसान खेत के बीचों-बीच कुआँ बनवाते है ताकि पानी देने में सुविधा रहे लेकिन वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तो की दृष्टि से गलत है। कुआँ हमेशा ईशान या पूर्व दिशा से बनाना चाहिए। इंशान या पूर्व दिशा में कुओं बनाने से पानी वितरण में बाधा आती है क्योकि खेत की भूमि की ढाल भी ईशान व पूर्व में नीची अच्छी मानी गई है । ऐसी स्थिति में कुआँ कंन्द से पूर्व या ईशान तक जहाँ ऊँची भूमि हो वहाँ बनाये । …
नाला, नहर, नदी आदि खेत के उत्तर-पूर्व अथवा ईशान दिशा में हो । दक्षिण दिशा में नाला, नहर, कुआँ इत्यादि आर्थिक हानि पहुँचाते हैं एवं खेत के नेऋत्य कोण में बना कुआँ भू स्वामी को अपघात बीमारी एवं खुदकुशी के लिए प्रेरित करता हैं । खेत के आग्नेय कोण में कुंआँ है तो खेत के मालिक का दीवाला निकाल देगा तथा चोरी एवं शत्रुता का भय बना रहेगा। खेत कं मध्य में लम्बे एवं घने वृक्ष नहीं' होने चाहिए। पश्चिम व दक्षिण दिशा में होना शुभ फलदायक है ।
खेत में मकान अथवा झौपड़ा हमेंशा दक्षिण नेऋत्य में या पश्चिम नैऋत्य में बनाना चाहिए। यदि मकान कुँए के पास बनाये तो आवश्यक रूप से कुँए से दक्षिण से दक्षिण-पश्चिम (नेऋत्य) दिशा में हो।
खेत की रखवाली करने वाले व्यक्ति को खेत के पश्चिम वायव्य कोण,पूर्व दिशा अथवा दक्षिणी आग्नेय कोण के भाग में रहना चाहिए । इसको नैऋत्य कोने का कमरा देने से खेत के स्वामी को नुकसान हो सकता है।
मवेशी का बाड़ा खेत की उत्तर दिशा में या वायव्य दिशा में बनाना चाहिए। इससे पशुघन स्वस्थ रहता है तथा उनने वृद्धि होती है ।
खेती के काम आने वाले औजार नैऋत्व कोण में अथवा दक्षिण दिशा में रखने चाहिए थ्रेसर, बैलगाडी तथा अन्य वाहन खेत के पश्चिम वायव्य कोण में रखने चाहिए ।
खेत में बिजली के साधन खेत के आग्नेय कोण में हो। ऐसे खेत जिनमें इलेक्ट्रिक खम्बे लगे हो, नुकसान दायक हो सकते हैं। पशुओं के लिए चारे का ढेर नेऋत्य अथवा दक्षिण दिशा ने होना चाहिए। इसी दिशा ने प्राकृतिक एवं रासायनिक खाद रखी जा सकती है।
खेत में मन्दिर नहीं होना चाहिए। यदि है तो गणेशजी, शंकरजी, कृष्णजी, विष्णुजी इत्यादि के हो। मन्दिर में शनिचरजी, पीरबाबा इत्यादि की मूर्तियों नहीं होनी चाहिए । सभी देवताओं का मुख पूर्व की और हो और नियमित इनकी सेवा हो।बेचने के लिए ले जाने वल्ला अनाज हमेशा पश्चिम, वायव्य अथवा पूर्व के द्वार से ले जाना चाहिए अच्छे भाव से अनाज जल्दी बिकता है | हल चलाने के लिए सोम, बुध, गुल और गुरुवार सर्वोतम है । नक्षत्रों में अनुराधा,ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा, मघा, पुनर्वसु पुष्य, हस्त, स्वाति, श्रवण, रोहिणी,मृगशिरा है रेवती और तीनो उत्तरा शुभ है । तिथियों में 3 5 7,10, 11 व 13 शुभ है |
सोम व शनिवार को बीजो का रोपण नहीं करना चाहिए। इसमें रिक्ता तिथियों को छोड़ देनी चाहिए। नक्षत्रों में मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा, रोहिणी, हस्त, पुष्प, मघा, स्वाति, घनिष्ठा और गुल श्रेष्ठ है। राजस्थानी कहावतों में बीज बोने के लिए बुधवार सवोंत्तम है-"बुध बावणी" । फसल अच्छी हो इसके लिए बीज डालते समय गायत्री मंत्र अथवा सूर्यं मंत्र का जाप पूर्वी मुखी होकर करना चाहिए।फसल की बुवाई घडी की सुईयाँ के चलने की दिशा से और कटाई घडी की सुइंयों के चलने की विपरीत दिशा में करनी चाहिए। अनाज बोने के लिए जो रेखाएं खींची जाती है यह दक्षिण से उत्तर की ओर होनी चाहिए। खेत का पहले दक्षिणी व पश्चिमी भाग जोतना शुभ माना गया है। मुख्य फसल के साथ अन्य फसल भी लेनी हो तो अन्य फसल के पश्चिम और दक्षिण की और बोई जानी चाहिए । शनिवार और मंगलवार को फसल न काटे। आद्रा, भरणी, मृगशीरा, हस्त, पुनर्वसु, पुष्प, स्वाति, श्रवण और घनिष्ठा शुभ है। फसल कीं कटाई के समय यदि अमावस्या आ गई है तो उस दिन शाम को खेत के बीचोबीच खड़े होकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके नारियल फोड़ना चाहिए। इस नारियल के टुकडों को खेत के चारों कोनों एवं मध्य में रखने चाहिए। अमावस्या के दूसरे दिन सब टुकडे उठाकर खेत के बाहर फेंक दें । फसल से प्राप्त अनाज को सर्वप्रथम थोडी मात्रा में अग्नि में स्वाहा करना चाहिए एवं थोड़ा अनाज पशुओं को खिलाने से सभी कार्य ठीक ढंग से सम्पादित्त होंगे । खेत में काम करते समय मुख हमेशा उत्तर, पूर्व अथवा ईशान में रखें और सूर्यास्त के बाद न स्वयं काम करें और न ही पशुओं से काम लें।
सर्वप्रथम जिस भूमि अथवा खत में खेती करनी हो तो उसकी परीक्षा करें लेनी चाहिए । अपने हाथ के प्रमाण से एक हाथ लम्बा, एक हाथ चौडा और एक साथ गहरा गड्रडा खोदकर उसे पूरा पानी से भर दे । पाच मिनट पश्चात् गड़डे को देखें यदि गड्रडा पानी से भरा हुआ है या थोडा पानी जमीन ने सोख लिया है तो उस भूमि पर खेती करना उत्तम रहेगा और यदि गड्डे में बिल्कुल पानी न बचे तो ऐसी भूमि पर खेती करने में कायदा नहीं है ।कृषि भूमि अथवा खेत वर्गाकार एवं आयताकार अच्छे माने गये है । खेत त्रिभुजाकार, अष्टभूजाकार, धनुषाकार, पंखीनुमा, तबला व मृदंग के आकार के वास्तुशास्त्र की दृष्टि से अनुपयोगी है । उक्त प्रकार के खेतों में जितना क्षेत्र आयताकार अथवा वर्गाकार बने उस पर खेती करे एव शेष को खाली छोड दँ।खेत का रास्ता उत्तर-पूर्व में होना शुभकर है । दक्षिण दिशा में रास्ता रखने से बचना चाहिए । खेत में से किसी अन्य के खेत में जाने का रास्ता भी नहीँ होना चाहिए।
खेत का विस्तार हमेशा उत्तर-पूर्व दिशा से करना चाहिए । खेत का बटवारा करते समय यह विशेष ध्यान रखें कि खेत का उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा न कटे ।खेत की भूमि समतल हो । खेत की भूमि की ढलान पूर्व, उत्तर अथवा ईशान दिशा में शुभकर है। कृषि भूमि का ढाल पश्चिम या दक्षिण में कदापि न हो | खेत के बीचो-बीच टीला न हो। अगर रन्नेत कं उत्तर या पूर्व में गड्डे हो तो उन्हें भरने का प्रयास न करें । इसी प्रकार दक्षिण व पश्चिम में रेत के टीले है तो इन्हें हटाकर खेती नहीं करनी चाहिए क्योकि ये गड्डे व टीलें अमुक दिशा में शुभ माने गये है ।प्राय किसान खेत के बीचों-बीच कुआँ बनवाते है ताकि पानी देने में सुविधा रहे लेकिन वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तो की दृष्टि से गलत है। कुआँ हमेशा ईशान या पूर्व दिशा से बनाना चाहिए। इंशान या पूर्व दिशा में कुओं बनाने से पानी वितरण में बाधा आती है क्योकि खेत की भूमि की ढाल भी ईशान व पूर्व में नीची अच्छी मानी गई है । ऐसी स्थिति में कुआँ कंन्द से पूर्व या ईशान तक जहाँ ऊँची भूमि हो वहाँ बनाये । …
नाला, नहर, नदी आदि खेत के उत्तर-पूर्व अथवा ईशान दिशा में हो । दक्षिण दिशा में नाला, नहर, कुआँ इत्यादि आर्थिक हानि पहुँचाते हैं एवं खेत के नेऋत्य कोण में बना कुआँ भू स्वामी को अपघात बीमारी एवं खुदकुशी के लिए प्रेरित करता हैं । खेत के आग्नेय कोण में कुंआँ है तो खेत के मालिक का दीवाला निकाल देगा तथा चोरी एवं शत्रुता का भय बना रहेगा। खेत कं मध्य में लम्बे एवं घने वृक्ष नहीं' होने चाहिए। पश्चिम व दक्षिण दिशा में होना शुभ फलदायक है ।
खेत में मकान अथवा झौपड़ा हमेंशा दक्षिण नेऋत्य में या पश्चिम नैऋत्य में बनाना चाहिए। यदि मकान कुँए के पास बनाये तो आवश्यक रूप से कुँए से दक्षिण से दक्षिण-पश्चिम (नेऋत्य) दिशा में हो।
खेत की रखवाली करने वाले व्यक्ति को खेत के पश्चिम वायव्य कोण,पूर्व दिशा अथवा दक्षिणी आग्नेय कोण के भाग में रहना चाहिए । इसको नैऋत्य कोने का कमरा देने से खेत के स्वामी को नुकसान हो सकता है।
मवेशी का बाड़ा खेत की उत्तर दिशा में या वायव्य दिशा में बनाना चाहिए। इससे पशुघन स्वस्थ रहता है तथा उनने वृद्धि होती है ।
खेती के काम आने वाले औजार नैऋत्व कोण में अथवा दक्षिण दिशा में रखने चाहिए थ्रेसर, बैलगाडी तथा अन्य वाहन खेत के पश्चिम वायव्य कोण में रखने चाहिए ।
खेत में बिजली के साधन खेत के आग्नेय कोण में हो। ऐसे खेत जिनमें इलेक्ट्रिक खम्बे लगे हो, नुकसान दायक हो सकते हैं। पशुओं के लिए चारे का ढेर नेऋत्य अथवा दक्षिण दिशा ने होना चाहिए। इसी दिशा ने प्राकृतिक एवं रासायनिक खाद रखी जा सकती है।
खेत में मन्दिर नहीं होना चाहिए। यदि है तो गणेशजी, शंकरजी, कृष्णजी, विष्णुजी इत्यादि के हो। मन्दिर में शनिचरजी, पीरबाबा इत्यादि की मूर्तियों नहीं होनी चाहिए । सभी देवताओं का मुख पूर्व की और हो और नियमित इनकी सेवा हो।बेचने के लिए ले जाने वल्ला अनाज हमेशा पश्चिम, वायव्य अथवा पूर्व के द्वार से ले जाना चाहिए अच्छे भाव से अनाज जल्दी बिकता है | हल चलाने के लिए सोम, बुध, गुल और गुरुवार सर्वोतम है । नक्षत्रों में अनुराधा,ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा, मघा, पुनर्वसु पुष्य, हस्त, स्वाति, श्रवण, रोहिणी,मृगशिरा है रेवती और तीनो उत्तरा शुभ है । तिथियों में 3 5 7,10, 11 व 13 शुभ है |
सोम व शनिवार को बीजो का रोपण नहीं करना चाहिए। इसमें रिक्ता तिथियों को छोड़ देनी चाहिए। नक्षत्रों में मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा, रोहिणी, हस्त, पुष्प, मघा, स्वाति, घनिष्ठा और गुल श्रेष्ठ है। राजस्थानी कहावतों में बीज बोने के लिए बुधवार सवोंत्तम है-"बुध बावणी" । फसल अच्छी हो इसके लिए बीज डालते समय गायत्री मंत्र अथवा सूर्यं मंत्र का जाप पूर्वी मुखी होकर करना चाहिए।फसल की बुवाई घडी की सुईयाँ के चलने की दिशा से और कटाई घडी की सुइंयों के चलने की विपरीत दिशा में करनी चाहिए। अनाज बोने के लिए जो रेखाएं खींची जाती है यह दक्षिण से उत्तर की ओर होनी चाहिए। खेत का पहले दक्षिणी व पश्चिमी भाग जोतना शुभ माना गया है। मुख्य फसल के साथ अन्य फसल भी लेनी हो तो अन्य फसल के पश्चिम और दक्षिण की और बोई जानी चाहिए । शनिवार और मंगलवार को फसल न काटे। आद्रा, भरणी, मृगशीरा, हस्त, पुनर्वसु, पुष्प, स्वाति, श्रवण और घनिष्ठा शुभ है। फसल कीं कटाई के समय यदि अमावस्या आ गई है तो उस दिन शाम को खेत के बीचोबीच खड़े होकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके नारियल फोड़ना चाहिए। इस नारियल के टुकडों को खेत के चारों कोनों एवं मध्य में रखने चाहिए। अमावस्या के दूसरे दिन सब टुकडे उठाकर खेत के बाहर फेंक दें । फसल से प्राप्त अनाज को सर्वप्रथम थोडी मात्रा में अग्नि में स्वाहा करना चाहिए एवं थोड़ा अनाज पशुओं को खिलाने से सभी कार्य ठीक ढंग से सम्पादित्त होंगे । खेत में काम करते समय मुख हमेशा उत्तर, पूर्व अथवा ईशान में रखें और सूर्यास्त के बाद न स्वयं काम करें और न ही पशुओं से काम लें।
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