महाभारत के वन पर्व का प्रसंग है। जुए में हारने के बाद पाण्ड़व वन में चले गए। एक दिन धृतराष्ट्र ने विदुर को बलाया और दुखी होकर कहा कि तुम सबका भला सोचते हो, इसलिए कुछ ऐसा बताओ कि कौरवों और पाण्डवों दोनों का हित हो। विदुर बोले कि किसी भी राज्य का स्थायित्व धर्म पर होता है। आप धर्म के अनुसार काम करें पांडवों को उनका राज्य लौटा दीजिए और दुर्योधन को काबू कीजिए।
राजा का सबसे बड़ा कर्तव्य है कि वह अपने धन से संतुष्ट रहे और दूसरों के धन का लालच न करें। यदिआप ऐसा नहीं करेगें तो कौरव कुल का नाश निश्चित है क्यों कि गुस्से से भरे भीम और अर्जुन लौटने पर किसी को जिन्दा नही छोड़ेगें। विदुर की यह बात धृतराष्ट्र के सीने में कांटों की तरह चुभ गई, और उसने कहा तुम केवल पाड़वों का भला चाहते हो इसलिए यहां से अभी चले जाओ। असल में उस समय धृतराष्ट्र केवल कौरवों के हित के बारे में ही सोच रहे थे क्यों कि वे सब उनके सगे बेटे थे। धृतराष्ट्र ने विदुर की बात नहीं मानी और जिसका परिणाम महाभारत का युद्ध हुआ और कौरवों का समूल नाश हो गया। इसलिए कहते हैं विनाशकाले विपरीत बुद्धि।
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