दिशाओं का ध्यान रखे बिना निर्मित मकान में अगर्थिक नुकसान, पारिवारिक एवं शारीरिक समस्याएँ. कलह आदि बढ़ जाती हैं | अपने घर या कार्यालय में अच्छे परिणाम लेने के लिए हमें इन पंच तत्वों का ध्यान रखकर निर्माण करवाना चाहिए
पूर्व दिशा - यह दिशा अग्नि तत्व को प्रभावित करती है । मकान की कुण्डली में लग्न में पूर्व दिशा को लेते है । या पितृ स्थान है यह दिशा पुरुषों पर प्रभाव डालती है | इस दिशा में गलत निर्माण होने से मकान में रहने वालों के मान-सम्मान की हानि होती हैं । धन-धान्य की वृद्धि नहीं हो पाती है आकस्मिक धन की कमी से ऋण बढ़ जाता है । ऐसा पूर्व दिशा में आने वाली सूर्य की किरणों का घर में प्रवेश रूकने या बाधा पहुँचने अथवा किरणों की दूषित होने से होता है । यहाँ सिंह राशि का प्रभाव होता है |
ईशान दिशा (उतर-पूर्व) - उतर-पूर्व दिशाओं को मध्य होने के कारण इस दिशा को पवित्र व ईश्वर तुल्य माना गया है | यह दिशा साहस, विवेक, धैर्य. ज्ञान और बुद्धि प्रदान करने के साथ-साथ कष्टों को भी दूर रखती है । यह दिशा पुरुष संतान का भी फल देती है । यदि यह दूषित या दोषपूर्ण हो तो तना-तनी का माहौल बना रहेगा। वहॉ कं निवासी रोग एवं मानसिक अशान्ति के शिकार वास्तु के सौं सूत्र था होगे तरह-तरह के कष्ट झेलने होने के लिए विवश होंगे। उत्तरी इंशान की राशि कर्क तथा पूर्वी ईशान श्री राशि मेष होती है। इसी दिशा में वास्तु पुरुष का सिर होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिशा से वास्तुदोष होने पर उसका निदान उस दोष को मिटाना ही श्रेष्ठ है न की अन्य कोई पद्धति से उसका निराकरण करवाना ।
उत्तर दिशा :-जल तत्व इस दिशा का स्वामी माना गया है। यह दिशा मातृ स्थान है। बुध व केतु के शुभ होने पर घन, लाभ, कर्म व भाग्य तथा व्यापारिक वार्ता हेतु सभाकक्ष होता है। राचि में ध्रुव तारा इसी दिशा में निकलता है। यह दिशा जीवन से सभी प्रकार का सुख देने वाली है। विद्या-अध्ययन चिंतन-मनन अथवा कोई भी ज्ञान सम्बन्धी कार्य उत्तर दिशा की ओर मुँह करने से लाभ देता है। भवन में उत्तर दिशा का स्थान खाली रखना चाहिए अन्यथा घर की स्त्री सुख से वंचित रहेगी। इस दिशा से दरवाजे खिड़कियों होने से कुबेर देवता की सीधी दृष्टि गिरती है।
आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) हैं- इस दिशा का स्वामी अग्नि तत्व माना गया है । इस दिशा से स्वास्थ्य की जाँच की जा सकती है। यह दिशा दोषपूर्ण या दूषित होने पर उस भवन में निवास करने वालों का रवास्थ्य हमेशा खराब रहता है। वहाँ आग लगने का भय भी हमेशा बना रहता है । गुरू व राहु के कास्था पूर्वी आग्नेय प्रभावित होता है। गुरु अच्छा होने पर दक्षिण आग्नेय मॅ द्वार निवास हेतु शुभ है।
दक्षिणा दिशा :- यह दिशा पृथ्वी तत्व एबं मृत्यु के देवता यम की दिशा है। यह दिशा बुराइयों का नाश करने वाली तथा धैर्य एव स्थिरता देने के साथ-साथ सभी अच्छी बातों हेतु शुभ है। इस दिशा को बंद रखने से रोग व शत्रुओं से रक्षा होती है। यह दिशा वृश्चिक राशि या कुण्डली में मंगल ग्रह के लिए उचित है । दक्षिण दिशा को भारी एवं ऊँचा बनाऐँ जिससे इसके शुभ फल प्राप्त हो सकें ।
पश्चिम दिशा -यह दिशा वायु तत्व से प्रभावित है। इस दिशा के भवन में रहने वाले प्राणी का मन सदैव चंचल बना रहता है। इस दिशा में दोषपूर्ण निर्माण होने से मानसिक तनाव बना रहता है। किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती। गृह स्वामी को अनावश्यक परिश्रम करना पड़ता है । बच्चों की शिक्षा एवं उन्नति में रूकावट आती है। व्यापारी वर्ग को यह दिशा अच्छा फल देती है, लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है । यह दिशा कुम्भ राशि के जातकों के लिए भी लाभदायक है।
वायव्य दिशा (उत्तर-पश्चिम कोण) - यह वायु का स्थान माना जाता है। यह दिशा शक्ति, स्वास्थ्य एवं दीर्घायु प्रदान यती है। इस दिशा के दूषित होने पर मित्र मी शत्रु बन जाते है। ऐसे दूषित स्थान पर रहने वाले घमण्डी होते हैं एवं इनका विश्वास नहीं किया जा सकता । यहाँ के निवासी अनेक आरोप-प्रत्यारोप के शिकार हो सकते है। पश्चिम वायव्य की स्वामी राशि गुरु वायव्य की वृष राशि तथा चन्द्रमा स्वामी होता है।
नैऋत्य दिशा (दक्षिण-पश्चिम कोण) - भवन के इस कोने में दोष होने पर वहाँ रहने वालों का चरित्र खराब हो जाता है। हमेशा शत्रुओं का भय बना रहता है। मकान के भुत-प्रेत बाधाएं उत्पन्न हो सकती है। अपमृत्यु तथा आकस्मिक दुर्घटनाओं की संभावना रहती है। इसका प्रभाव चंचल या अस्थिर माना गया है। मिथुन राशि, दक्षिण नैत्रदृत्य दो तथा पश्चिमी नैऋत्य की तुला राशि मानी गई है।
ब्रहा स्थान (आंगन) :-भवन के मध्य खाली जगह आँगन,चौक अथवा ब्रहा स्थान कहलाता है। इसके कारण पारिवारिक वातावरण अच्छा रहता है परिवार ने आपसी प्रेम बहता है। इस क्षेत्र दो राशि धनु है । यह आकाश तत्व का स्थान है। कुंडली में बुध के कमजोर होने पर, गुरू के कमजोर होने पर तथा शनि, राहु व केतु के भी कमजोर होने के कारण आँगन ढका हुआ होगा। अंधेरा होगा तथा चौक खुला नहीं होगा ।
पूर्व दिशा - यह दिशा अग्नि तत्व को प्रभावित करती है । मकान की कुण्डली में लग्न में पूर्व दिशा को लेते है । या पितृ स्थान है यह दिशा पुरुषों पर प्रभाव डालती है | इस दिशा में गलत निर्माण होने से मकान में रहने वालों के मान-सम्मान की हानि होती हैं । धन-धान्य की वृद्धि नहीं हो पाती है आकस्मिक धन की कमी से ऋण बढ़ जाता है । ऐसा पूर्व दिशा में आने वाली सूर्य की किरणों का घर में प्रवेश रूकने या बाधा पहुँचने अथवा किरणों की दूषित होने से होता है । यहाँ सिंह राशि का प्रभाव होता है |
ईशान दिशा (उतर-पूर्व) - उतर-पूर्व दिशाओं को मध्य होने के कारण इस दिशा को पवित्र व ईश्वर तुल्य माना गया है | यह दिशा साहस, विवेक, धैर्य. ज्ञान और बुद्धि प्रदान करने के साथ-साथ कष्टों को भी दूर रखती है । यह दिशा पुरुष संतान का भी फल देती है । यदि यह दूषित या दोषपूर्ण हो तो तना-तनी का माहौल बना रहेगा। वहॉ कं निवासी रोग एवं मानसिक अशान्ति के शिकार वास्तु के सौं सूत्र था होगे तरह-तरह के कष्ट झेलने होने के लिए विवश होंगे। उत्तरी इंशान की राशि कर्क तथा पूर्वी ईशान श्री राशि मेष होती है। इसी दिशा में वास्तु पुरुष का सिर होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिशा से वास्तुदोष होने पर उसका निदान उस दोष को मिटाना ही श्रेष्ठ है न की अन्य कोई पद्धति से उसका निराकरण करवाना ।
उत्तर दिशा :-जल तत्व इस दिशा का स्वामी माना गया है। यह दिशा मातृ स्थान है। बुध व केतु के शुभ होने पर घन, लाभ, कर्म व भाग्य तथा व्यापारिक वार्ता हेतु सभाकक्ष होता है। राचि में ध्रुव तारा इसी दिशा में निकलता है। यह दिशा जीवन से सभी प्रकार का सुख देने वाली है। विद्या-अध्ययन चिंतन-मनन अथवा कोई भी ज्ञान सम्बन्धी कार्य उत्तर दिशा की ओर मुँह करने से लाभ देता है। भवन में उत्तर दिशा का स्थान खाली रखना चाहिए अन्यथा घर की स्त्री सुख से वंचित रहेगी। इस दिशा से दरवाजे खिड़कियों होने से कुबेर देवता की सीधी दृष्टि गिरती है।
आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) हैं- इस दिशा का स्वामी अग्नि तत्व माना गया है । इस दिशा से स्वास्थ्य की जाँच की जा सकती है। यह दिशा दोषपूर्ण या दूषित होने पर उस भवन में निवास करने वालों का रवास्थ्य हमेशा खराब रहता है। वहाँ आग लगने का भय भी हमेशा बना रहता है । गुरू व राहु के कास्था पूर्वी आग्नेय प्रभावित होता है। गुरु अच्छा होने पर दक्षिण आग्नेय मॅ द्वार निवास हेतु शुभ है।
दक्षिणा दिशा :- यह दिशा पृथ्वी तत्व एबं मृत्यु के देवता यम की दिशा है। यह दिशा बुराइयों का नाश करने वाली तथा धैर्य एव स्थिरता देने के साथ-साथ सभी अच्छी बातों हेतु शुभ है। इस दिशा को बंद रखने से रोग व शत्रुओं से रक्षा होती है। यह दिशा वृश्चिक राशि या कुण्डली में मंगल ग्रह के लिए उचित है । दक्षिण दिशा को भारी एवं ऊँचा बनाऐँ जिससे इसके शुभ फल प्राप्त हो सकें ।
पश्चिम दिशा -यह दिशा वायु तत्व से प्रभावित है। इस दिशा के भवन में रहने वाले प्राणी का मन सदैव चंचल बना रहता है। इस दिशा में दोषपूर्ण निर्माण होने से मानसिक तनाव बना रहता है। किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती। गृह स्वामी को अनावश्यक परिश्रम करना पड़ता है । बच्चों की शिक्षा एवं उन्नति में रूकावट आती है। व्यापारी वर्ग को यह दिशा अच्छा फल देती है, लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है । यह दिशा कुम्भ राशि के जातकों के लिए भी लाभदायक है।
वायव्य दिशा (उत्तर-पश्चिम कोण) - यह वायु का स्थान माना जाता है। यह दिशा शक्ति, स्वास्थ्य एवं दीर्घायु प्रदान यती है। इस दिशा के दूषित होने पर मित्र मी शत्रु बन जाते है। ऐसे दूषित स्थान पर रहने वाले घमण्डी होते हैं एवं इनका विश्वास नहीं किया जा सकता । यहाँ के निवासी अनेक आरोप-प्रत्यारोप के शिकार हो सकते है। पश्चिम वायव्य की स्वामी राशि गुरु वायव्य की वृष राशि तथा चन्द्रमा स्वामी होता है।
नैऋत्य दिशा (दक्षिण-पश्चिम कोण) - भवन के इस कोने में दोष होने पर वहाँ रहने वालों का चरित्र खराब हो जाता है। हमेशा शत्रुओं का भय बना रहता है। मकान के भुत-प्रेत बाधाएं उत्पन्न हो सकती है। अपमृत्यु तथा आकस्मिक दुर्घटनाओं की संभावना रहती है। इसका प्रभाव चंचल या अस्थिर माना गया है। मिथुन राशि, दक्षिण नैत्रदृत्य दो तथा पश्चिमी नैऋत्य की तुला राशि मानी गई है।
ब्रहा स्थान (आंगन) :-भवन के मध्य खाली जगह आँगन,चौक अथवा ब्रहा स्थान कहलाता है। इसके कारण पारिवारिक वातावरण अच्छा रहता है परिवार ने आपसी प्रेम बहता है। इस क्षेत्र दो राशि धनु है । यह आकाश तत्व का स्थान है। कुंडली में बुध के कमजोर होने पर, गुरू के कमजोर होने पर तथा शनि, राहु व केतु के भी कमजोर होने के कारण आँगन ढका हुआ होगा। अंधेरा होगा तथा चौक खुला नहीं होगा ।
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