यदि शनि आद्रा नक्षत्र के पहले चरण में हो तो जातक दीन-हीन तथा कर्ज में डूबा रहता है । वह स्वभाव से कठोर, परिश्रमी, चोर और तस्कर होता है । ऐसा जातक धन के लिए कुछ भी कर सकता है।
दूसरे चरण में शनि की उपस्थिति से जातक दूसरों की संपत्ति हड़पने वाला होता है । पिता-पक्ष से उसे कोई लाभ नहीं मिलता । वह धार्मिकता का दोंग करता है और दूसरों को मूर्ख बनाकर धन इकटठा करता है।
यदि तीसरे चरण में शनि हो तो जातक पत्नी पर आश्रित रहता है । परेशानी और कठिनाइयों से घिरा रहता है । पत्नी अथवा परिवार से उसके संबंध कटु होते हैं । वह किसी असामाजिक संगठन का मुखिया, चीर या बदमाश होता है ।
यदि शनि चौथे चरण में हो तो जातक अपने श्वसुर की दौलत पर गुल्छर्रे उड़ने वाला होता है । वह व्यसनी, मदिरासेवी, कोर्ट-कचहरी में दंडित होने वाला और धन तथा सुख से हीन होता है । ऐसे जातक को पत्नी कुलटा और परपुरुष से शारीरिक संबंध स्थापित करने वाली होती है।
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