यदि शनि उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के पहले चरणमें हो तो जातक को माता का है सुख पूर्ण रूप से नहीं मिलता । यदि शनि के साथ राहु, केतु या मेंगल की दृष्टि हो तो उसके बाल्यकाल में ही माता का देहांत हो जाता है । ऐसे जातक को अपने बडे भाई से हर प्रकार का सहयोग मिलता है।
यदि दूसरे चरण में शनि हो तो जातक को जीवन भर भौंतिक सुख की कमी रहती है । उसका वैवाहिक जीवन कभी सुखी नहीं होता तथा उसकी धन की आकांक्षा कभी पूरी नहीं होती ।
यदि तीसरे चरण में शनि उपस्थित हो तो जातक सदैव बीमार रहता है । वह रहस्यपूर्ण विद्याओं में रुचि लेने वाला होता है ।
अगर चौथे चरण में शनि हो तो जातक धन से हीन, संतान से हीन तथा सदैव अप्रसन्न रहने वाला होता है ।
यदि दूसरे चरण में शनि हो तो जातक को जीवन भर भौंतिक सुख की कमी रहती है । उसका वैवाहिक जीवन कभी सुखी नहीं होता तथा उसकी धन की आकांक्षा कभी पूरी नहीं होती ।
यदि तीसरे चरण में शनि उपस्थित हो तो जातक सदैव बीमार रहता है । वह रहस्यपूर्ण विद्याओं में रुचि लेने वाला होता है ।
अगर चौथे चरण में शनि हो तो जातक धन से हीन, संतान से हीन तथा सदैव अप्रसन्न रहने वाला होता है ।
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