Wednesday, 9 September 2015

नक्षत्र और रोग विचार

फलित शास्त्र में अभिजित् नामक एक अत्ठाईसवा नक्षत्र भी माना गया है । यह उत्तराषाढ़ के बाद तथा श्रवण से पहले आता है । यह नक्षत्र कुल  ज्योतिष्य शास्त्र के
सामान्य व्यवहार में अभिजित् नक्षत्र का स्थान नहीं है । तथा रोग विचार में भी यह
कोई अहं भूमिका नहीं निभाता | नक्षत्रों का सामान्य परिचय
अश्विनी-यह नक्षत्र अनिद्रा एव मतिभ्रम आदि रोगों से संबंधित है । इस नक्षत्र में रोग प्रारम्भ होने पर वह १,९ या २५ दिन तक रहता है ।
भरणी…यह नक्षत्र तीव्र ज्वर, वेदना (दर्द ) एव शिथिलता से सम्बन्धित है । इस नक्षत्र से रोग का प्रारम्भ होने पर वह १,२१,३० दिन . चलता है । कभी-कभी इस नक्षत्र में प्रारम्भ हुआ रोग मृत्युदायक भी हो जाता है ।
कृत्तिका-यह नक्षत्र दाह, उदरशूल, तीव्र वेदना, अनिद्रा एव नेत्र रोग से सम्बन्धित है । इस नक्षत्र में रोग का प्रारम्भ होने पर वह ९/१ ० या २१ दिन तक रहता है ।
रोहिणी-यह नक्षत्र सिरदर्द, उन्माद, प्रलाप एव कुक्षिपूल से सम्बन्धित है : इस नक्षत्र में प्रारम्भ हुआ रोग ३ ।७। या १ ० दिन तक चलता है ।
मृगशीर्ष -यह नक्षत्र त्रिदोष, चर्मरोग एव असहिष्णुता (एलर्जी) से सम्बन्धित है । इस नक्षत्र में रोग होने पर वह ३, ५ या दि दिन तक रहता है ।
आद्रा- यह नक्षत्र वायुविकार, स्नायु-विकार एव कफ रोगों से सम्बन्धित है । इसमें
रोग होने पर वह १० दिन या मैं मास तक रहता है । कभी-कभी इस रोग में उत्पन्न रोग
से मृत्यु हो जाती है ।
पुनर्वसु-यह नक्षत्र कमर में दर्द, सिरदर्द या गुर्दे के रोगो से सम्बन्धित है । इसमें रोग होने पर ७ या ९ दिन चलता है ।
पुष्य-यह नक्षत्र ज्वर, दर्द एव आकस्मिक पीडा-दायक रोगी से सम्बन्धित है । इसमें प्रारम्भ हुआ रोग ७ दिन तक रहता है ।
आश्लेषा - यह नक्षत्र सर्वात्रपीडा, मृत्यु तुल्य कष्ट, विपरोग एव सर्पदश आदि से सम्बन्धित है । इस नक्षत्र में प्रारम्भ हुआ रोग २० या ३ ० दिन रहता है । तथा अधिकाशतया वह मृत्युदायक होता है ।
मघा -यह नक्षत्र वायुविकार, उदर विकार एवं मुखरोगों से सम्बन्धित है । इस नक्षत्र में प्रारम्भ हुआ रोग २ ०,३ ० या ४५ दिन तक चलता है । और उसकी पुनरावृति भी हो जाती है ।
पूर्वाफाल्गुनी-यह नक्षत्र कर्णरोग, शिरोरोग, ज्वर तथा वेदना से सम्बन्धित है । इसमें प्रारम्भ हुआ रोग ८, १५ दिन तक रहता है । कभी-कभी इस नक्षत्र में रोग एक वर्ष तक भी रहता है ।
उत्तराफाल्गुनी-यह नक्षत्र पित्तज्यर, अस्थिभांग एव सर्व पीड़ा से सम्बन्धित है । इस नक्षत्र में रोग होने पर वह ७, १५ या २७ दिन तक चलता है ।
हस्त-यह नक्षत्र उदर शूल, म्रिदाग्नी एवं अन्य उदर विकारों से सम्बन्धित है । इस नक्षत्र में रोग होने पर वह ७, ८, मैं या १५ दिन तक रहता है । कभी-कभी रोग की पुनरावृत्ति भी हो जाती  ।
चित्रा -यह नक्षत्र अत्यन्त कष्टदायक या दुर्घटना जन्य पीडाओं से सम्बन्धित है । इस नक्षत्र में रोग होने पर वह ८, ११ या १५ दिन तक रहता है । तथा कभी-कभी उस रोग से मृत्यु भी हो जाती है ।

स्वाति-यह नक्षत्र उन जटिल रोगी से सम्बन्धित है, जिनका शीघ्र निदान या उपचार नहीं हो पाता है । इसमें प्रारम्भ हुआ रोग १ , २, ५ या १० मास तक रहता है ।

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