अक्सर लोग कोई कार्य करते है, परंतु सफलता नहीं मिलती। हम कड़ी मेहनत करते हैं। परंतु परिणाम नुकसानदायक आता है। यह भाग्य की कमजोरी से होता है। भाग्य कमजोर होने पर सारे प्रयास विफल हो जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुण्डली का नवम भाव भाग्य का होता है। यह स्थान यदि दूषित हो तो जातक भाग्यहीन होता है। नवम स्थान पर यदि चंद्र हो या उसकी दृष्टि हो तो भाग्य प्रबल होता है। वहीं राहु, मंगल, शनि यदि शत्रु राशि युक्त या नीच के हो तो जातक भाग्यहीनता से परेशान हो जाता है। उसको जरा जरा से काम में अड़चने आती हैं। सूर्य, शुक्र, बुध भाग्य स्थान पर सौभाग्यवती नारी दिलाते हैं। जो व्यक्ति के भाग्य को चमोत्कर्ष कर देती है। भाग्य स्थान पर गुरु मान सम्मान वैभव दिलाता है। वह व्यक्ति शुरू से ही अपने भाग्य के दम पर पूरे घर को तार देता है। केतु भाग्य स्थान पर सामान्य फल देने वाला होता है। भाग्य को बदलने में केवल ईश्वर ही सक्षम है। अत: अपने अपने इष्टदेव का रोजाना पूजन, अर्चन, अराधना करते रहें।
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