हिंदू धर्म में मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों के पीछे मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक पक्ष भी होते हैं। रक्षाबंधन का अर्थ सिर्फ भाई-बहन के अटूट रिश्ते तक ही सीमित नहीं है। इसके पीछे विज्ञान व मनोवैज्ञानिक पक्ष भी है।
शास्त्रों के अनुसार रक्षा सूत्र बांधने से त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ का शरीर में तालमेल बना रहता है। रक्षा सूत्र का शाब्दिक अर्थ यह है कि वह सूत्र (धागा) जो विभिन्न रोगों से शरीर की रक्षा करता है। ये पर्व वर्षा ऋतु में मनाया जाता है, इस समय में बारिश के कारण हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। ऐसे में कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने से इस धागे का दबाव कलाई की नस पर पड़ता है, जिससे हमारे शरीर में वात, पित्त और कफ नियंत्रित रहते हैं। इन तीनों में से किसी एक तत्व का भी संतुलन बिगड़ जाए तो शरीर में बीमारियों की शुरुआत हो सकती है। इससे बचने के लिए कलाई पर धागा बांधा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार रक्षा सूत्र बांधने से त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ का शरीर में तालमेल बना रहता है। रक्षा सूत्र का शाब्दिक अर्थ यह है कि वह सूत्र (धागा) जो विभिन्न रोगों से शरीर की रक्षा करता है। ये पर्व वर्षा ऋतु में मनाया जाता है, इस समय में बारिश के कारण हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। ऐसे में कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने से इस धागे का दबाव कलाई की नस पर पड़ता है, जिससे हमारे शरीर में वात, पित्त और कफ नियंत्रित रहते हैं। इन तीनों में से किसी एक तत्व का भी संतुलन बिगड़ जाए तो शरीर में बीमारियों की शुरुआत हो सकती है। इससे बचने के लिए कलाई पर धागा बांधा जाता है।
कलाई पर बांधा गया यह धागा हमारे मन में यह विश्वास भी जगाता है कि इसके प्रभाव से हम सभी रोगों, कष्टों से सुरक्षित रहेंगे। इस विश्वास से बीमारी की अवस्था में भी मनुष्य में साहस बना रहता है। इस साहस के कारण हमारे स्वास्थ्य को लाभ मिलते रहते हैं।
बहन भाई की कलाई पर राखी बांधती है तो ये धागा भाई को भी इस बात का अहसास कराता रहता है कि उसे हमेशा बहन की रक्षा करनी है। बहन भी ये धागा बांधकर भाई के अच्छे स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य की कामना करती है।
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