जलीय रोग - ज्योतिष कारण:
जल या पानी अनेक अर्थों में जीवनदाता है। इसीलिए कहा भी गया है। जल ही जीवन है। मनुष्य ही नहीं जल का उपयोग सभी सजीव प्राणियों के लिए अनिवार्य होता है। पेड़ पौधों एवं वनस्पति जगत के साथ कृषि फसलों की सिंचाई के लिए भी यह आवश्यक होता है। यह उन पांच तत्वों में से एक है जिससे हमारे शरीर की रचना हुई है और हमारे मन, वाणी, चक्षु, श्रोत तथा आत्मा को तृप्त करती है। इसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते। शरीर में इसकी कमी से हमें प्यास महसूस होती है और इससे पानी शरीर का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। अत: यह हमारे जीवन का आधार है। अब तक प्राप्त जानकारियो के अनुसार यह स्पष्ट हो गया है कि जल अस्तित्व के लिए बहुत आवश्यक है इसलिए इसका शुद्ध साफ होना हमारी सेहत के लिए जरूरी है। शुद्ध और साफ जल का मतलब है वह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक अशुद्धियों और रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं से मुक्त होना चाहिए वरना यह हमारे काम नहीं आ सकता है।
रोगाणुओं, जहरीले पदार्थों एवं अनावश्यक मात्रा में लवणों से युक्त पानी अनेक रोगों को जन्म देता है। विश्व भर में 80 फीसदी से अधिक बीमारियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रदूषित पानी का ही हाथ होता है। प्रति घंटे 1000 बच्चों की मृत्यु मात्र अतिसार के कारण हो जाती है जो प्रदूषित जल के कारण होता है। याज्ञवल्क्य संहिता ने जीवाणुयुक्त गंदे, फेनिल, दुर्गन्धयुक्त, खारे, हवा के बुलबुल उठ रहे जल से स्नान के लिए भी निषेध किया है। लेकिन आज की स्थिति बड़ी चिन्ताजनक है। शहरों में बढ़ती हुई आबादी के द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले मल-मत्र, कूड़े-करकट को पाइप लाइन अथवा नालों के जरिए प्रवाहित करके नदियों एवं अन्य सतही जल को प्रदूषित किया जा रहा है। इसी प्रकार विकास के नाम पर कल-कारखानों, छोटे-बड़े उद्योगों द्वारा भी निकले बहि:स्रावों द्वारा सतही जल प्रदूषित हो रहे हैं। जहां भूमिगत एवं पक्के सीवर/नालों की व्यवस्था नहीं है यदि है भी तो टूटे एवं दरार युक्त हैं अथवा जहां ये मल/कचरे युक्त जल भूमिगत पर या किसी नीची भूमि पर प्रवाहित कर दिए जाते हैं वहां ये दूषित जल रिस-रिसकर भूगर्भ जल को भी प्रदूषित कर रहे हैं। बरसात के मौसम में मजा, हरियाली और इसके साथ ठंडी जलवायु बहुत भाता है.
कैसी विडम्बना है कि हम ऐसे महत्वपूर्ण जीवनदायी जल को प्रगति एवं विकास की अंधी दौड़ में रोगकारक बना रहे हैं। जब एक निश्चित मात्रा के ऊपर इनमें रोग संवाहक तत्व विषैली रसायन सूक्ष्म जीवाणु या किसी प्रकार की गन्दगी/अशुद्धि आ जाती है तो ऐसा जल हानिकारक हो जाता है। इस प्रकार के जल का उपयोग सजीव प्राणी करते हैं तो जलवाधित घातक रोगों के शिकार हो जाते हैं। दूषित जल के माध्यम से मानव स्वास्थ्य को सर्वाधिक हानि पहुंचाने वाले कारक रोगजनक सूक्ष्म जीव हैं। इनके आधार पर दूषित जल रोगों को आमंत्रित करता है। बारिश का एक जलजनित रोग है, अमीबियासिस, संक्रामक जल लेने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में यह आसानी से पहुँच जाता है।
इसमें प्रोटोजोन, एंट-अमीबा हिस्टोलाइटिका, बड़ी आँत को अपना घर बनाता है। अमीबियासिस के लक्षण - पतले दस्त, परिवर्तित पाखाने की आदत, भोजन पश्चात दस्त, पेट में दर्द, जो रुक-रुक कर हो, कब्ज एवं दस्त बारी-बारी से हों, अपच वायु-विकार हो।
भोजन निर्माण एवं संग्रहण से संबंधित समस्त तत्व शुद्धता तथा कीट से बचाव पर केंद्रित होते हैं। विशेष रूप से होटल, ठेले आदि पर अशुद्ध पानी से बने चटखारेदार खाद्य पदार्थ, वेटर द्वारा नाखून, सिर एवं शरीर के अन्य खुले भाग का ध्यान नहीं रखे जाने के कारण अमीबियासिस का जीवाणु एक से दूसरे तक पहुँचता है।
यह एक कोशीय जीवाणु बड़ी आँत के अतिरिक्त लीवर, फेफड़ों, हृदय, मस्तिष्क, वृक्क, अंडकोष, अंडाशय, त्वचा आदि तक में पाया जा सकता है।
सबसे आम बीमारी श्वसन प्रणाली और पानी और खाद्य जनित रोगों से संबंधित है। कोल्ड और फ्लू जैसी आम बीमारी बरसात के मौसम में ही पायी जाती है और यह आमतौर पर तापमान में अस्थिरता की वजह से होती है।
आम बीमारी जो बरसात के मौसम के दौरान होती है, उनमें से डेंगू, फ्लू, खाद्य संक्रमण, जल संक्रमण, हैजा। पानी के ये रोग व्यक्ति या जानवर द्वारा या तो किया जा सकता है अथवा बैक्टीरिया के कारण होता है। इसकी गंभीर रूप से गुर्दे, लीवर, दिमागी बुखार और सांस की विफलता को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
दूषित जल से रोगजनक जीवों से उत्पन्न रोग:
विषाणु द्वारा: पीलिया, पोलियो, गैस्ट्रो-इंटराइटिस, जुकाम, संक्रामक यकृत षोध, चेचक।
जीवाणु द्वारा: अतिसार, पेचिस, मियादी बुखार, अतिज्वर, हैजा, कुकुर खांसी, सूजाक, उपदंश, जठरांत्र शोथ, प्रवाहिका, क्षय रोग।
प्रोटोजोआ द्वारा: पायरिया, पेचिस, निद्रारोग, मलेरिया, अमिबियोसिस, रूग्णता, जियार्डियोसिस रूग्णता।
कृमि द्वारा: फाइलेरिया, हाइडेटिड सिस्ट रोग तथा पेट में विभिन्न प्रकार के कृमि का आ जाना जिसका स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
लैप्टास्पाइरल वाइल्स रोग।
रोग उत्पन्न करने वाले जीवों के अतिरिक्त अनेकों प्रकार के विषैले तत्व भी पानी के माध्यम से हमारे शरीर में पहुंचकर स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इन विषैले तत्वों में प्रमुख हैं कैडमियम, लेड, मरकरी, निकल, सिल्वर, आर्सेनिक आदि। जल में लोहा, मैंगनीज, कैल्सीयम, बेरियम, क्रोमियम कापर, सीलीयम, यूनेनियम, बोरान, तथा अन्य लवणों जैसे नाइट्रेट, सल्फेट, बोरेट, कार्बोनेट, आदि की अधिकता से मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जल में मैग्नीशियम व सल्फेट की अधिकता से आंतों में जलन पैदा होती है। नाइट्रेट की अधिकता से बच्चों में मेटाहीमोग्लाबिनेमिया नामक बीमारी हो जाती है तथा आंतों में पहुंचकर नाइट्रोसोएमीन में बदलकर पेट का केंसर उत्पन्न कर देता है। फ्लोरीन की अधिकता से फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो जाती है। इसी प्रकार कृषि क्षेत्र में प्रयोग की जाने वाली कीटनाशी दवाईयों एवं उर्वरकों के विषैले अंश जल स्रोतों में पहुंचकर स्वास्थ्य की समस्या को भयावह बना देते हैं। प्रदूषित गैसे कार्बन डाइआक्साइड तथा सल्फर डाइआक्साइड जल में घुसकर जलस्रोत को अम्लीय बना देते हैं। अनुमान है कि बढ़ती हुई जनसंख्या एवं लापरवाही से जहां एक ओर प्रदूषण बढ़ रहा है वहीं ऊर्जा की मांग एवं खपत के अनुसार यह मंहगा भी हो रहा है। इसका पेयजल योजनाओं पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। ऊर्जा की पूर्ति हेतु जहां एक ओर एक विशाल बांध बनाकर पनबिजली योजनाओं से लाभ मिलेगा वहीं इसका प्रभाव स्वच्छ जल एवं तटीय पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ेगा जिसके कारण अनेक क्षेत्रों के जलमग्न होने व बड़ी आबादी के स्थानान्तरण के साथ सिस्टोमायसिस तथा मलेरिया आदि रोगों में वृद्धि होगी। जल प्रदूषण की मात्रा जो दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। विकराल रूप धारण करेगी।
जलरोग का ज्योतिषीय कारण:
चंद्रमा कफ प्रवृति कारक माना जाता है जिसमें वात का भी संयोग होता है। अत: इसकी प्रतिकूलता से रक्तविकार, डायरिया, ड्राप्सी, पीलिया, टी.बी,. त्वचारोग, भय आदि रोग को जन्म देता है। बृहस्पति कफ से संबंध रखता है। यह लिवर, गॉलब्लैडर, प्लीहा, पैंक्रियाज, कान एवं वसा को नियंत्रित करता है। इन अंगों से उत्पन्न विकृतियां इस ग्रह की महादशा में देखी जाती हैं। शनि कफ प्रकृति का होता है। छाती, पैर, पांव, गुदा, स्नायुतंत्र आदि अंगों का यह जनक है। इसके दुष्प्रभाव से अत्यंत घातक और असाध्य जलीय रोग होते हैं। जलीय ग्रह शरीर की अंत: स्रावी ग्रंथियों को प्रभावित करता है, जिससे समस्त जननांगीय विकृतियां, मूत्ररोग, आलस्य, थकान आदि पनपते हैं। मनुष्य का जन्म ग्रहों की शक्ति के मिश्रण से होता है। यदि यह मिश्रण उचित मात्रा में न हो अर्थात किसी तत्व की न्यूनाधिकता हो, तो ही शरीर में विभिन्न प्रकार के रोगों का जन्म होता है। शरीर के समस्त अव्यवों, क्रियाकलापों का संचालन करने वाले सूर्यादि यही नवग्रह हैं तो जब भी शरीर में किसी ग्रह प्रदत तत्व की कमी या अधिकता हो, तो व्यक्ति को किसी रोग-व्याधि का सामना करना पडता है। यूँ तो स्वस्थता-अस्वस्थता एक स्वाभाविक विषय है। किंतु यदि ग्रह प्रभावी न हो तो रोग नहीं होते। यह स्थिति तब भी उत्पन हो सकती है, जब अपनी निश्चित मात्रा के अनुसार कोई ग्रह प्राणी पर प्रभाव न डाल पाए। यदि ग्रह प्रभावी न हो तो रोग नहीं होते। डायरिया, रक्ताल्पता, रक्तविकार, जल की अधिकता या कमी से संबंधित रोग, उल्टी किडनी संबंधित रोग, मधुमेह, ड्रॉप्सी, अपेन्डिक्स, कफ रोग, मूत्रविकार, मुख सम्बन्धी रोग, नासिका संबंधी रोग, पीलियाब्राह्मंड की भांति ही मानवी शरीर भी जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु एवं आकाश नामक इन पंचतत्वों से ही निर्मित है और ये पँचोंतत्व मूलत: ग्रहों से ही नियन्त्रित रहते हैं। आकाशीय नक्षत्रों(तारों, ग्रहों) का विकिरणीय प्रभाव ही मानव शरीर के पंचतत्वों को उर्जा शक्ति प्रदान करता है। इस उर्जाशक्ति का असंतुलन होने पर अर्थात जब भी कभी इन पंचतत्वों में वृद्धि या कमी होती है या किसी तरह का कोई कार्मिक दोष उत्पन होता है, तब उन तत्वों में आया परिवर्तन एक प्रतिक्रिया को जन्म देता है। यही प्रतिक्रिया रोग के रूप में मानव को पीडित करती है। हमारे इस शरीर की स्थिति के लिए जन्मकुंडली का लग्न(देह) भाव, पंचमेश और चतुर्थेश सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। लग्न भाव देह को दर्शाता है, चतुर्थेश मन की स्थिति और पंचमेश आत्मा को। जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में लग्न(देह), चतुर्थेश(मन) और पंचमेश(आत्मा) इन तीनों की स्थिति अच्छी होती है, वह सदैव स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है। चंद्र और शुक्र के साथ जब भी पाप ग्रहों का संबंध होगा तो जलीय रोग जैसे शुगर, मूत्र विकार और स्नायुमंडल जनित बीमारियां होती है। मिथुन राशि पर सूर्य के आते ही गर्मी अपने चरम पर पहुँच जाती है व सूर्य के चंद्रमा की जलीय राशि पर आते ही भरपूर बरसात होने लगती है(ऋतुओं का संवाहक सूर्य ही है)अपनी राशि पर प्रवेश कर सूर्य धरती में समा रहे जल को अपनी प्रचंड गर्मी से खराब कर उसमे विकृतियाँ पैदा करने लगता है अत: सभी प्रकार के जल प्रदूषण से बचने के लिए आवश्यक है कि पूरे जल प्रबंधन में जल दोहन उनके वितरण तथा प्रयोग के बाद जल प्रवाहन की समुचित व्यवस्था हो। सभी विकास योजनाएं सुविचरित और सुनियोजित हो। कल-कारखानें आबादी से दूर हों। जानवरों-मवेशियों के लिए अलग-अलग टैंक और तालाब की व्यवस्था हो। नदियां झरनों और नहरों के पानी को दूषित होने से बचाया जाए। इसके लिए घरेलू और कल-कारखानों के अवशिष्ट पदार्थों को जल स्रोत में मिलने से पहले भली-भांति नष्ट कर देना चाहिए। डिटरजेंट्स का प्रयोग कम करके प्राकृतिक वनस्पति पदार्थ का प्रचलन करना होगा। इन प्रदूषणों को रोकने के लिए कठोर नियम बनाना होगा और उनका कठोरता से पालन करना होगा। मोटे तौर पर घरेलू उपयोग में पानी का प्रयोग करने से पहले यह आश्वस्त हो जाना चाहिए कि वह शुद्ध है या नहीं? यदि संदेह हो कि यह शुद्ध नहीं है तो निम्न तरीकों से इसे शुद्ध कर लेना चाहिए: पीने के पानी के लिए फिल्टर का प्रयोग करना चाहिए। पानी को कीटाणु रहित करने के लिए उचित मात्रा में ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग प्रभावी रहता है। वैसे समय-समय पर लाल दवा डालते रहना चाहिए। पानी को उबाल लें फिर ठंडा कर अच्छी तरह हिलाकर वायु संयुक्त करने के उपरान्त इसका प्रयोग करना चाहिए। पीने के पानी को धूप में, प्रकाश में रखना चाहिए। तांबे के बर्तन में रखे तो यह अन्य बर्तनों की अपेक्षा सर्वाधिक शुद्ध रहता है। एक गैलेन पानी को दो ग्राम फिटकरी या बीस बूंद टिंचर आयोडीन या तनिक या ब्लीचिंग पाउडर मिलाकर शुद्ध किया जा सकता है। चारकोल, बालू युक्त बर्तन से छानकर भी पानी शुद्ध किया जा सकता है। हमेशा बरसात के मौसम में बरसाती जूते के साथ एक रेनकोट रखें। विटामिन सी की मात्रा बढ़ाने से ठंड-गर्म, वायरस, दूर करने में मदद मिलेगी। हालांकि, विटामिन की एक स्वस्थ आपूर्ति एंटीबॉडी को सक्रिय करेंगे। अगर आप बारिश में भीग गए हैं तो एक और शॉवर लेना चाहिए जिससे स्वच्छ पानी से शरीर को सुरक्षित किया जा सके। उसके बाद कम से कम गर्म दूध का एक कप पीयें। इस से आपको संक्रमण से बचाव होगा। पानी के सेवन की वजह से अपने शरीर से विषाक्त पदार्थों को कम करने में मदद मिलेगी। इन सब चिकित्सकीय उपाय के अलावा ज्योतिषीय सलाह से अपने पीडित ग्रह की शांति करानी चाहिए। ग्रह शांति से आपके कमजोर ग्रहों को मजबूत करने से आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होगी जिससे आप स्वास्थ्यलाभ प्राप्त कर पायेंगे।
जल या पानी अनेक अर्थों में जीवनदाता है। इसीलिए कहा भी गया है। जल ही जीवन है। मनुष्य ही नहीं जल का उपयोग सभी सजीव प्राणियों के लिए अनिवार्य होता है। पेड़ पौधों एवं वनस्पति जगत के साथ कृषि फसलों की सिंचाई के लिए भी यह आवश्यक होता है। यह उन पांच तत्वों में से एक है जिससे हमारे शरीर की रचना हुई है और हमारे मन, वाणी, चक्षु, श्रोत तथा आत्मा को तृप्त करती है। इसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते। शरीर में इसकी कमी से हमें प्यास महसूस होती है और इससे पानी शरीर का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। अत: यह हमारे जीवन का आधार है। अब तक प्राप्त जानकारियो के अनुसार यह स्पष्ट हो गया है कि जल अस्तित्व के लिए बहुत आवश्यक है इसलिए इसका शुद्ध साफ होना हमारी सेहत के लिए जरूरी है। शुद्ध और साफ जल का मतलब है वह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक अशुद्धियों और रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं से मुक्त होना चाहिए वरना यह हमारे काम नहीं आ सकता है।
रोगाणुओं, जहरीले पदार्थों एवं अनावश्यक मात्रा में लवणों से युक्त पानी अनेक रोगों को जन्म देता है। विश्व भर में 80 फीसदी से अधिक बीमारियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रदूषित पानी का ही हाथ होता है। प्रति घंटे 1000 बच्चों की मृत्यु मात्र अतिसार के कारण हो जाती है जो प्रदूषित जल के कारण होता है। याज्ञवल्क्य संहिता ने जीवाणुयुक्त गंदे, फेनिल, दुर्गन्धयुक्त, खारे, हवा के बुलबुल उठ रहे जल से स्नान के लिए भी निषेध किया है। लेकिन आज की स्थिति बड़ी चिन्ताजनक है। शहरों में बढ़ती हुई आबादी के द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले मल-मत्र, कूड़े-करकट को पाइप लाइन अथवा नालों के जरिए प्रवाहित करके नदियों एवं अन्य सतही जल को प्रदूषित किया जा रहा है। इसी प्रकार विकास के नाम पर कल-कारखानों, छोटे-बड़े उद्योगों द्वारा भी निकले बहि:स्रावों द्वारा सतही जल प्रदूषित हो रहे हैं। जहां भूमिगत एवं पक्के सीवर/नालों की व्यवस्था नहीं है यदि है भी तो टूटे एवं दरार युक्त हैं अथवा जहां ये मल/कचरे युक्त जल भूमिगत पर या किसी नीची भूमि पर प्रवाहित कर दिए जाते हैं वहां ये दूषित जल रिस-रिसकर भूगर्भ जल को भी प्रदूषित कर रहे हैं। बरसात के मौसम में मजा, हरियाली और इसके साथ ठंडी जलवायु बहुत भाता है.
कैसी विडम्बना है कि हम ऐसे महत्वपूर्ण जीवनदायी जल को प्रगति एवं विकास की अंधी दौड़ में रोगकारक बना रहे हैं। जब एक निश्चित मात्रा के ऊपर इनमें रोग संवाहक तत्व विषैली रसायन सूक्ष्म जीवाणु या किसी प्रकार की गन्दगी/अशुद्धि आ जाती है तो ऐसा जल हानिकारक हो जाता है। इस प्रकार के जल का उपयोग सजीव प्राणी करते हैं तो जलवाधित घातक रोगों के शिकार हो जाते हैं। दूषित जल के माध्यम से मानव स्वास्थ्य को सर्वाधिक हानि पहुंचाने वाले कारक रोगजनक सूक्ष्म जीव हैं। इनके आधार पर दूषित जल रोगों को आमंत्रित करता है। बारिश का एक जलजनित रोग है, अमीबियासिस, संक्रामक जल लेने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में यह आसानी से पहुँच जाता है।
इसमें प्रोटोजोन, एंट-अमीबा हिस्टोलाइटिका, बड़ी आँत को अपना घर बनाता है। अमीबियासिस के लक्षण - पतले दस्त, परिवर्तित पाखाने की आदत, भोजन पश्चात दस्त, पेट में दर्द, जो रुक-रुक कर हो, कब्ज एवं दस्त बारी-बारी से हों, अपच वायु-विकार हो।
भोजन निर्माण एवं संग्रहण से संबंधित समस्त तत्व शुद्धता तथा कीट से बचाव पर केंद्रित होते हैं। विशेष रूप से होटल, ठेले आदि पर अशुद्ध पानी से बने चटखारेदार खाद्य पदार्थ, वेटर द्वारा नाखून, सिर एवं शरीर के अन्य खुले भाग का ध्यान नहीं रखे जाने के कारण अमीबियासिस का जीवाणु एक से दूसरे तक पहुँचता है।
यह एक कोशीय जीवाणु बड़ी आँत के अतिरिक्त लीवर, फेफड़ों, हृदय, मस्तिष्क, वृक्क, अंडकोष, अंडाशय, त्वचा आदि तक में पाया जा सकता है।
सबसे आम बीमारी श्वसन प्रणाली और पानी और खाद्य जनित रोगों से संबंधित है। कोल्ड और फ्लू जैसी आम बीमारी बरसात के मौसम में ही पायी जाती है और यह आमतौर पर तापमान में अस्थिरता की वजह से होती है।
आम बीमारी जो बरसात के मौसम के दौरान होती है, उनमें से डेंगू, फ्लू, खाद्य संक्रमण, जल संक्रमण, हैजा। पानी के ये रोग व्यक्ति या जानवर द्वारा या तो किया जा सकता है अथवा बैक्टीरिया के कारण होता है। इसकी गंभीर रूप से गुर्दे, लीवर, दिमागी बुखार और सांस की विफलता को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
दूषित जल से रोगजनक जीवों से उत्पन्न रोग:
विषाणु द्वारा: पीलिया, पोलियो, गैस्ट्रो-इंटराइटिस, जुकाम, संक्रामक यकृत षोध, चेचक।
जीवाणु द्वारा: अतिसार, पेचिस, मियादी बुखार, अतिज्वर, हैजा, कुकुर खांसी, सूजाक, उपदंश, जठरांत्र शोथ, प्रवाहिका, क्षय रोग।
प्रोटोजोआ द्वारा: पायरिया, पेचिस, निद्रारोग, मलेरिया, अमिबियोसिस, रूग्णता, जियार्डियोसिस रूग्णता।
कृमि द्वारा: फाइलेरिया, हाइडेटिड सिस्ट रोग तथा पेट में विभिन्न प्रकार के कृमि का आ जाना जिसका स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
लैप्टास्पाइरल वाइल्स रोग।
रोग उत्पन्न करने वाले जीवों के अतिरिक्त अनेकों प्रकार के विषैले तत्व भी पानी के माध्यम से हमारे शरीर में पहुंचकर स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इन विषैले तत्वों में प्रमुख हैं कैडमियम, लेड, मरकरी, निकल, सिल्वर, आर्सेनिक आदि। जल में लोहा, मैंगनीज, कैल्सीयम, बेरियम, क्रोमियम कापर, सीलीयम, यूनेनियम, बोरान, तथा अन्य लवणों जैसे नाइट्रेट, सल्फेट, बोरेट, कार्बोनेट, आदि की अधिकता से मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जल में मैग्नीशियम व सल्फेट की अधिकता से आंतों में जलन पैदा होती है। नाइट्रेट की अधिकता से बच्चों में मेटाहीमोग्लाबिनेमिया नामक बीमारी हो जाती है तथा आंतों में पहुंचकर नाइट्रोसोएमीन में बदलकर पेट का केंसर उत्पन्न कर देता है। फ्लोरीन की अधिकता से फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो जाती है। इसी प्रकार कृषि क्षेत्र में प्रयोग की जाने वाली कीटनाशी दवाईयों एवं उर्वरकों के विषैले अंश जल स्रोतों में पहुंचकर स्वास्थ्य की समस्या को भयावह बना देते हैं। प्रदूषित गैसे कार्बन डाइआक्साइड तथा सल्फर डाइआक्साइड जल में घुसकर जलस्रोत को अम्लीय बना देते हैं। अनुमान है कि बढ़ती हुई जनसंख्या एवं लापरवाही से जहां एक ओर प्रदूषण बढ़ रहा है वहीं ऊर्जा की मांग एवं खपत के अनुसार यह मंहगा भी हो रहा है। इसका पेयजल योजनाओं पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। ऊर्जा की पूर्ति हेतु जहां एक ओर एक विशाल बांध बनाकर पनबिजली योजनाओं से लाभ मिलेगा वहीं इसका प्रभाव स्वच्छ जल एवं तटीय पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ेगा जिसके कारण अनेक क्षेत्रों के जलमग्न होने व बड़ी आबादी के स्थानान्तरण के साथ सिस्टोमायसिस तथा मलेरिया आदि रोगों में वृद्धि होगी। जल प्रदूषण की मात्रा जो दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। विकराल रूप धारण करेगी।
जलरोग का ज्योतिषीय कारण:
चंद्रमा कफ प्रवृति कारक माना जाता है जिसमें वात का भी संयोग होता है। अत: इसकी प्रतिकूलता से रक्तविकार, डायरिया, ड्राप्सी, पीलिया, टी.बी,. त्वचारोग, भय आदि रोग को जन्म देता है। बृहस्पति कफ से संबंध रखता है। यह लिवर, गॉलब्लैडर, प्लीहा, पैंक्रियाज, कान एवं वसा को नियंत्रित करता है। इन अंगों से उत्पन्न विकृतियां इस ग्रह की महादशा में देखी जाती हैं। शनि कफ प्रकृति का होता है। छाती, पैर, पांव, गुदा, स्नायुतंत्र आदि अंगों का यह जनक है। इसके दुष्प्रभाव से अत्यंत घातक और असाध्य जलीय रोग होते हैं। जलीय ग्रह शरीर की अंत: स्रावी ग्रंथियों को प्रभावित करता है, जिससे समस्त जननांगीय विकृतियां, मूत्ररोग, आलस्य, थकान आदि पनपते हैं। मनुष्य का जन्म ग्रहों की शक्ति के मिश्रण से होता है। यदि यह मिश्रण उचित मात्रा में न हो अर्थात किसी तत्व की न्यूनाधिकता हो, तो ही शरीर में विभिन्न प्रकार के रोगों का जन्म होता है। शरीर के समस्त अव्यवों, क्रियाकलापों का संचालन करने वाले सूर्यादि यही नवग्रह हैं तो जब भी शरीर में किसी ग्रह प्रदत तत्व की कमी या अधिकता हो, तो व्यक्ति को किसी रोग-व्याधि का सामना करना पडता है। यूँ तो स्वस्थता-अस्वस्थता एक स्वाभाविक विषय है। किंतु यदि ग्रह प्रभावी न हो तो रोग नहीं होते। यह स्थिति तब भी उत्पन हो सकती है, जब अपनी निश्चित मात्रा के अनुसार कोई ग्रह प्राणी पर प्रभाव न डाल पाए। यदि ग्रह प्रभावी न हो तो रोग नहीं होते। डायरिया, रक्ताल्पता, रक्तविकार, जल की अधिकता या कमी से संबंधित रोग, उल्टी किडनी संबंधित रोग, मधुमेह, ड्रॉप्सी, अपेन्डिक्स, कफ रोग, मूत्रविकार, मुख सम्बन्धी रोग, नासिका संबंधी रोग, पीलियाब्राह्मंड की भांति ही मानवी शरीर भी जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु एवं आकाश नामक इन पंचतत्वों से ही निर्मित है और ये पँचोंतत्व मूलत: ग्रहों से ही नियन्त्रित रहते हैं। आकाशीय नक्षत्रों(तारों, ग्रहों) का विकिरणीय प्रभाव ही मानव शरीर के पंचतत्वों को उर्जा शक्ति प्रदान करता है। इस उर्जाशक्ति का असंतुलन होने पर अर्थात जब भी कभी इन पंचतत्वों में वृद्धि या कमी होती है या किसी तरह का कोई कार्मिक दोष उत्पन होता है, तब उन तत्वों में आया परिवर्तन एक प्रतिक्रिया को जन्म देता है। यही प्रतिक्रिया रोग के रूप में मानव को पीडित करती है। हमारे इस शरीर की स्थिति के लिए जन्मकुंडली का लग्न(देह) भाव, पंचमेश और चतुर्थेश सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। लग्न भाव देह को दर्शाता है, चतुर्थेश मन की स्थिति और पंचमेश आत्मा को। जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में लग्न(देह), चतुर्थेश(मन) और पंचमेश(आत्मा) इन तीनों की स्थिति अच्छी होती है, वह सदैव स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है। चंद्र और शुक्र के साथ जब भी पाप ग्रहों का संबंध होगा तो जलीय रोग जैसे शुगर, मूत्र विकार और स्नायुमंडल जनित बीमारियां होती है। मिथुन राशि पर सूर्य के आते ही गर्मी अपने चरम पर पहुँच जाती है व सूर्य के चंद्रमा की जलीय राशि पर आते ही भरपूर बरसात होने लगती है(ऋतुओं का संवाहक सूर्य ही है)अपनी राशि पर प्रवेश कर सूर्य धरती में समा रहे जल को अपनी प्रचंड गर्मी से खराब कर उसमे विकृतियाँ पैदा करने लगता है अत: सभी प्रकार के जल प्रदूषण से बचने के लिए आवश्यक है कि पूरे जल प्रबंधन में जल दोहन उनके वितरण तथा प्रयोग के बाद जल प्रवाहन की समुचित व्यवस्था हो। सभी विकास योजनाएं सुविचरित और सुनियोजित हो। कल-कारखानें आबादी से दूर हों। जानवरों-मवेशियों के लिए अलग-अलग टैंक और तालाब की व्यवस्था हो। नदियां झरनों और नहरों के पानी को दूषित होने से बचाया जाए। इसके लिए घरेलू और कल-कारखानों के अवशिष्ट पदार्थों को जल स्रोत में मिलने से पहले भली-भांति नष्ट कर देना चाहिए। डिटरजेंट्स का प्रयोग कम करके प्राकृतिक वनस्पति पदार्थ का प्रचलन करना होगा। इन प्रदूषणों को रोकने के लिए कठोर नियम बनाना होगा और उनका कठोरता से पालन करना होगा। मोटे तौर पर घरेलू उपयोग में पानी का प्रयोग करने से पहले यह आश्वस्त हो जाना चाहिए कि वह शुद्ध है या नहीं? यदि संदेह हो कि यह शुद्ध नहीं है तो निम्न तरीकों से इसे शुद्ध कर लेना चाहिए: पीने के पानी के लिए फिल्टर का प्रयोग करना चाहिए। पानी को कीटाणु रहित करने के लिए उचित मात्रा में ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग प्रभावी रहता है। वैसे समय-समय पर लाल दवा डालते रहना चाहिए। पानी को उबाल लें फिर ठंडा कर अच्छी तरह हिलाकर वायु संयुक्त करने के उपरान्त इसका प्रयोग करना चाहिए। पीने के पानी को धूप में, प्रकाश में रखना चाहिए। तांबे के बर्तन में रखे तो यह अन्य बर्तनों की अपेक्षा सर्वाधिक शुद्ध रहता है। एक गैलेन पानी को दो ग्राम फिटकरी या बीस बूंद टिंचर आयोडीन या तनिक या ब्लीचिंग पाउडर मिलाकर शुद्ध किया जा सकता है। चारकोल, बालू युक्त बर्तन से छानकर भी पानी शुद्ध किया जा सकता है। हमेशा बरसात के मौसम में बरसाती जूते के साथ एक रेनकोट रखें। विटामिन सी की मात्रा बढ़ाने से ठंड-गर्म, वायरस, दूर करने में मदद मिलेगी। हालांकि, विटामिन की एक स्वस्थ आपूर्ति एंटीबॉडी को सक्रिय करेंगे। अगर आप बारिश में भीग गए हैं तो एक और शॉवर लेना चाहिए जिससे स्वच्छ पानी से शरीर को सुरक्षित किया जा सके। उसके बाद कम से कम गर्म दूध का एक कप पीयें। इस से आपको संक्रमण से बचाव होगा। पानी के सेवन की वजह से अपने शरीर से विषाक्त पदार्थों को कम करने में मदद मिलेगी। इन सब चिकित्सकीय उपाय के अलावा ज्योतिषीय सलाह से अपने पीडित ग्रह की शांति करानी चाहिए। ग्रह शांति से आपके कमजोर ग्रहों को मजबूत करने से आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होगी जिससे आप स्वास्थ्यलाभ प्राप्त कर पायेंगे।
Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions
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