घर हर व्यक्ति का सबसे बड़ा सपना, दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो ख्वाब न रखता हो कि उसका एक खुबसूरत सा घर हो जहां वो सुख चैन से जिंदगी का आनंद उठा सके। मकान का निर्माण नियोजित ढंग से करना चाहिए जिसमें वास्तु शास्त्र एक महती भूमिका निभाता है। वास्तु के अनुरूप नहीं बना भवन तकलीफदेह होता है। वास्तु का अर्थसंस्कृत में वास्तु का अर्थ है घर बनाने की जगह। वास्तु शब्द वस्तु से बना है। वस्तु अर्थात जो है जो सामान्य आंखों से दिखाता है उसे वास्तु कहते हैं और जो वास्तु का ज्ञान कराता है उसे वास्तु शास्त्र कहते हैं। हलायुध कोष में वास्तु के बारे में वर्णन है जो घर को प्राकृतिक आपदाओं (भूकंप, तूफान आदि), विघ्न बाधाओं उत्पातों, उपद्रवों से बचाता है। उसे वास्तु शास्त्र कहते हैं। वास्तु और ज्योतिष का घनिष्ठ संबंध है। ऋग्वेद जो दुनिया का सबसे प्राचीन ग्रंथ है। उसमें भी वास्तु का उल्लेख मिलता है। वास्तु शास्त्र को जानकर तथा अपने घर में आप थोड़े से परिवर्तन करके सुखमय जीवन बीता सकते हैं।दिशा ज्ञानचार दिशाएं तो सभी जानते हैं। पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण। इनके अलावा चार उप दिशाएं होती है। इन्हें ईशान, आग्नेय, नैर्ऋत्य, वायव्य कहते हैं। इन दिशाओं के अलग-अलग स्वामी भी होते हैं। पूर्व के सूर्यपश्चिम के माता दुर्गाउत्तर के भगवान विष्णुदक्षिण के पितृईशान के ईश्वर शिवआग्नेय के अग्निनैर्ऋत्य के वायव्य के वायुदिशाएं कहां, कैसेउत्तर-पूर्व के बीच ईशानपूर्व-दक्षिण के बीच आग्नेयदक्षिण-पश्चिम के बीच नैर्ऋत्यपश्चिम-उत्तर के बीच वायव्य |
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