विवाह के अवसर पर वर एवं वधू की कुण्डली मिलान करते समय अष्टकूट के साथ-साथ मांगलिक दोष पर भी विचार किया जाता है। वर-वधू में से किसी एक की कुण्डली के विभिन्न भावों में मंगल हो तथा दूसरे की पत्रिका में नहीं तो ऐसी परिस्थिति को वैवाहिक जीवन के लिए अनिष्टकारक कहा गया है तथा ज्योतिषी उन दोनों का विवाह न करने की सलाह दे देते हैं। किंतु मंगल दोष अथवा अष्टकूट मिलान से ज्यादा कष्टकारी किसी भी जातक की कुंडली में सप्तम स्थान अथवा द्वादश स्थान का राहु होता है, जिसके बारे में अधिकांश विद्धान चर्चा नहीं करते। जब भी किसी की कुंडली में सप्तम अथवा द्वादश स्थान पर राहु हो और दूसरे जातक की कुंडली में उन स्थानों पर कू्रर ग्रह ना हो तो ऐसे जातक के जीवन में उस राहु के कारण वैवाहिक जीवन कष्टप्रद हो सकता है। अतः इस प्रकार के राहु दोषों की निवृत्ति हेतु विधिविधान से राहु की शांति एवं अर्क अथवा कुंभ विवाह नांदीमुख श्राद्ध के साथ कराने से वैवाहिक जीवन के कष्ट से मुक्ति पाई जा सकती है।
Pt.P.S.Tripathi
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