Saturday, 29 August 2015

छत्तीसगढ़ में अद्भुत शिव रूद्र प्रतिमा वाला पर्यटन स्थल -ताला

रायपुर से बिलासपुर राजमार्ग पर 85 किलोमीटर दूर है ग्राम ताला। यहां अनूठी और अद्भुत मूर्तियां मिली है, जिसमें शैव संस्कृति के 2 मंदिर देवरानी-जेठानी के नाम से विख्यात है। यहां ढाई मीटर ऊंची और 1 मीटर चौड़ी जीव-जंतुओं की मुखातियों से बने अंग-प्रत्यंगों वाली प्रतिमा मिली है, जिसे रूद्र शिव का नाम दिया गया है। महाकाल रूद्र शिव की प्रतिमा भारतीय कला में अपने ढंग की एकमात्र ज्ञात प्रतिमा है। कुछ विद्वान धारित बारह राशियों के आकार पर इसका नाम कालपुरूष भी मानते हैं। महाकाल रूद्रशिव की प्रतिमा भारी भरकम है। 2.54 मीटर ऊंची और 1 मीटर चौडी प्रतिमा के अंग-प्रत्यंग अलग-अलग जीव-जंतुओं की मुखाकृतियों से बने हैं, इस कारण प्रतिमा में रौद्र भाव साफ नजर आता है। प्रतिमा संपादस्थानक मुद्रा में है। इस महाकाय प्रतिमा के रूपांकन में गिरगिट, मछली, केकड़ा, मयूर, कछुआ, सिंह और मानव मुखों की मौलिक रूपाति का अद्भूत संयोजन है। मूर्ति के सिर पर मंडलाकार चक्रों में लिपटे 2 नाग पगडी के समान नजर आते हैं। नाक नीचे की ओर मुंह किए हुए गिरगिट से बनी है। गिरगिट के पिछले 2 पैरों ने भौहों का आकार लिया है। अगले 2 पैरों ने नासिका रंध्र की गोलाई बनाई है। गिरगिट का सिर नाक का अगला हिस्सा है। बडे आकार के मेंढक के खुले मुख से नेत्रपटल और बडे अण्डे से गोलक बने हैं। छोटे आकार की मछलियों से मुछें और निचला होंठ बना है। कान की जगह बैठे हुए मयूर स्थापित हैं। कंधा मगर के मुंह से बना है। भुजाएं हाथी के सूंड के समान हैं, हाथों की उंगलियों सांप के मुंह के आकार की है, दोनों वक्ष और उदर पर मानव मुखातियां बनी है। कछुए के पिछले हिस्से कटी और मुंह से शिश्न बना है। उससे जुडे अगले दोनों पैरों से अण्डकोष बने हैं और उन पर घंटी के समान लटकते जोंक बनी है। दोनों जंघाओं पर हाथ जोडे विद्याधर और कमर के दोनों हिस्से में एक-एक गंधर्व की मुखाति बनी है। दोनों घुटनों पर सिंह की मुखाति है, मोटे-मोटे पैर हाथी के अगले पैर के समान है। प्रतिमा के दोनों कंधों के ऊपर 2 महानाग रक्षक की तरह फन फैलाए नजर आते हैं। प्रतिमा के दाएं हाथ में मोटे दंड का खंडित भाग बचा हुआ है। प्रतिमा के आभूषणों में हार, वक्षबंध, कंकण और कटिबंध नाग के कण्डलित भाग से अलंकृत है। सामान्य रूप से इस प्रतिमा में शैव मत, तंत्र और योग के सिद्धांतों का प्रभाव और समन्वय दिखाई पडता है। ताला गांव पुरातत्व महत्व के देवरानी-जेठानी मंदिरों के कारण विख्यात है। ये मंदिर 1986 में ही अनावृत्त किए गए। एक विशाल परिसर में स्थित ये मंदिर आज खंडहर अवस्था में है। किंतु 5वीं-6वीं शताब्दी के आसपास बने यह मंदिर पुरातत्व महत्व तथा यहां से प्राप्त अनोखी मूर्तियों के कारण दर्शनीय बन गए। लाल पत्थर से बना जेठानी मंदिर शैव संप्रदाय के उपासकों का साधनापीठ माना जाता है। दक्षिणाभिमुख मंदिर की स्थापत्य शैली कुछ विशिष्ट है। मंदिर के तल विन्यास में अर्धमंडप एवं गर्भगृह का धरातल उतरोत्तर ऊंचा होता गया है। दीवारों तथा स्तंभों पर अनोखी भाव-भंगिमा वाली मूर्तियों का अंकन देखने को मिलता है। देवरानी मंदिर भी प्राचीन शिव मंदिर है। इसके द्वार तथा शाखाओं पर बनी मूर्तियों में लक्ष्मी, उमा, महेश्वर, शिव-पार्वती, कीर्तिमुख मिथुन दंपती आदि का खूबसूरत अंकन है।
मंदिरों की खोज के साथ ही इस क्षेत्र से कई अनोखी मूर्तियां, शिलाखंड, लघुफलक, बाण फलक, मृणमयी वस्तुएं एवं सिक्के मिले थे। यहां से प्राप्त एक अजीब मूर्ति तो पर्यटकों ही नहीं, पुरातत्वप्रेमियों के लिए भी कौतूहल का विषय है। मूर्ति को देख यह कह पाना कठिन है कि यह किस देवता या देवपुरुष की मूर्ति होगी। इस प्रतिमा में एक शरीर पर दस मुख हैं। एक मुख तो यथास्थान है। दो मुख वक्ष स्थल पर बने हैं, एक मुख पेट पर, दो मुख जांघों पर, दो मुख घुटनों पर तथा दो मुख पृष्ठ भाग में बने हैं। इस अद्भुत मूर्ति में विचित्र कल्पना तथा कलात्मकता का संगम नज़र आता है। मूर्ति में पशु पक्षियों का चित्रण भी किया गया है।
पर्यटन हेतु सड़क पेयजल एवं छाया दार स्थलों का निर्माण, आसपास के स्थल पर आकर्षक उद्यान, फव्वारे, समीप ही बहने वाली मनियारी नदी पर एनीकट बनाकर पानी को रोकने और उसमें नौकायन की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। सिंचाई विभाग उद्यान तथा मनियारी नदी के दोनों ओर 150-150 मीटर घाट निर्माण किये गये है तथा मनियारी नदी पर ताला एनीकट बनाया गया। आसपास के मंदिरों के जीर्णोद्वार के कार्य किये गये है। ताला पहुंच मार्ग के दोनों ओर वृक्षारोपण कर हरियाली लाने का प्रयास किया गया है।
मदकुद्वीप:
ताला से कुछ दूरी पर प्रसिध्द ऐतिहासिक स्थल मदकुद्वीप स्थित है। जहां प्रतिवर्ष मसीही मेला का आयोजन किया जाता है। द्वीप तीन ओर से शिवनाथ नदी और मनियारी नदी के संगम से घिरा हुआ है। वन विभाग द्वारा द्वीप में स्थित प्राचीनतम शिव मंदिर का जीर्णोद्वार कराया गया है। विश्राम गृह का निर्माण तथा हरियाली के लिए वृक्षारोपण किये गये है। द्वीप के चारों ओर मदकुद्वीप पीचिंग कर नदी के कटाव को रोका गया। द्वीप के समीप शिवनाथ नदी पर एनीकट है। साथ ही नदी के दोनों ओर 50-50 मीटर तक घाट निर्माण किया गया है। मदकू द्वीप का इतिहास गौरवशाली रहा है। वर्तमान प्रचलित नाम मदकू संस्कृत के मण्डुक्य से मिश्रित अपभ्रंश नाम है। शिवनाथ की धाराओं से आवृत्त इस स्थान की सुरम्यता और रमणीयता मांडुक्य ॠषि को बांधे रखने में समर्थ सिद्ध हुई और इसी तपश्चर्या स्थली में निवास करते हुए मांडुक्योपनिषद जैसे धार्मिक ग्रंथ की रचना हुई। शिव का धूमेश्वर नाम से ऐतिहासिकता इस अंचल में विभिन्न अंचल के प्राचीन मंदिरों के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंगों से होती है अर्थात पुरातात्विक दृष्टि से दसवीं शताब्दी ईंसवी सन में यह लोकमान्य शैव क्षेत्र था। दसवीं शताब्दी से स्थापित तीर्थ क्षेत्र के रुप में इसकी सत्ता यथावत बनी हुई है। खुदाई में 11 वीं शताब्दी के कलचुरी कालीन मंदिरों की श्रृंखला मिली है। अब हमारी मान्यता है कि मण्डूक ॠषि ने यहीं पर आकर अपना आश्रम बनाया था और मांडूकोपनिषद की रचना की थी। यह स्थल इसलिए पवित्र है कि चारों तरफ़ शिवनाथ नदी से घिरा हुआ है और यही पर आकर शिवनाथ नदी दक्षिण से आकर उत्तर-पूर्व की ओर कोण बनाते हुए ईशान कोण में बहने लगती है।
हिन्दु धर्म में एवं हमारे प्राचीन वास्तु शास्त्र के हिसाब से ईशान कोण में बहने वाली नदी सबसे पवित्र मानी जाती है। हिन्दु धर्म में ऐसे ही स्थान पर मन्दिरो, बड़े नगरों एवं राजधानियों की स्थापना की जाती है। यहाँ आकर शिवनाथ नदी भी ईशान कोण में बहती है। इसलिए पुरातन काल से ही धार्मिक स्थल होने के कारण यहां पूजा पाठ एवं विशाल यज्ञ होते थे। शंकराचार्य ने पंचायतन मंदिर की प्रथा प्रारंभ की। उन्होने पांचो सम्प्रदायों के उपासक देवताओं के पाँच लिंगो को एक ही प्लेट्फ़ार्म पर स्थापित किया। जिसे स्मार्त लिंग कहते हैं। जिससे पांचों सम्प्रदाय के लोग एक ही स्थान पर आकर पूजा कर लें। भारत में मद्कुद्वीप ही एक मात्र ऐसा स्थान है जहाँ 13 स्मार्त लिंग मिले हैं। यहाँ दो युगल मंदिर भी मिले हैं। पहला मंदिर स्थानीय नागरिकों को मिला था जिसे बना दिया गया और दुसरा मंदिर अभी की खुदाई में मिला है। एक ही प्लेटफ़ार्म पर जब दो मंदिर होते हैं उन्हे युगल मंदिर कहते हैं। ये दोनो मंदिर शिव जी हैं योनी पीठ वाले। इस स्थान का महत्व इसलिए है कि एक छोटे से द्वीप में एक ही स्थान पर द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं 13 स्मार्त लिंग मिले हैं जो एक ही पंक्ति में स्थापित हैं। यहाँ गणेश जी, लक्ष्मीनारायण, राजपुरुषों एवं एक उमामहेश्वर की मूर्ति भी मिली हैं। जिन-जिन राजाओं ने यहां मंदिर बनवाए उन्होने अपनी-अपनी मूर्ति भी यहाँ लगा दी है। ये मुर्तियाँ लाल बलुवा पत्थर की बनी हैं जो शिवनाथ नदी में ही मिलते हैं। इन पत्थरों पर सुन्दर बेल बूटे एवं मुर्तियां उत्कीर्ण की गयी है। यह सम्पुर्ण संरचना जमीन से मात्र डेढ मीटर गहराई पर ही प्राप्त हो गयी।
ेकबीरपंथियों का तीर्थ दामाखेड़ा:
रायपुर-बिलासपुर मार्ग पर सिमगा से 10 किमी दूर स्थित दामाखेड़ा कबीरपंथियों के तीर्थ के रूप में विख्यात है। इस पंथ के मानने वालों का यह छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ा आस्था का केंद्र माना जाता है। यहां कबीर मठ की स्थापना 100 साल पहले पंथ के 12वें गुरु उग्रनाम साहब ने की थी। यहां के समाधि मंदिर में कबीर की जीवनी बड़े ही मन मोहक और कलात्मक ढंग से दीवारों पर नक्काशी कर उकेरा गया है। दामाखेड़ा में हर साल माघ शुक्ल दशमी से माघ पूर्णिमा तक संत समागम समारोह आयोजित किया जाता है। यहां दशहरा पर्व भी बड़े ही उल्लास के साथ मनाने की परंपरा है, क्योंकि इसी दिन दामाखेड़ा में वंश की स्थापना हुई थी।
प्रसिध्द स्थल सोमनाथ:
धार्मिक एवं प्राक्रितिक सौर्दंय से परिपुर्ण छत्तीसगढ का गौरव बढाता है शिवनाथ नदी के तट स्थित सोमनाथ। यह रायपुर -बिलासपुर मार्ग पर स्थित ग्राम सांकरा से पश्चिम दिशा मे आठ कि.मी. की दुरी पर स्थित है। यह छत्तीसगढ का प्रसिध्द धार्मिक स्थल है। लाखों श्रध्दालु भगवान शिव का दर्शन करने यहां माघ मास के महिने मे आते है। यहां की प्राक्रितिक सौर्दंयता के कारण दुर दुर से लोग यहां पिकनिक मनाने आते हैं। धरसींवा से आगे सिमगा से 10 किमी की दूरी पर पहले बायीं ओर खारून नदी और शिवनाथ नदी का संगम सोमनाथ तीर्थ स्थल जाने का रास्ता है। प्रमुख मार्ग से 3 किमी की दूरी पर खारून नदी के तट पर लखना ग्राम है और लखना से एक किमी दूर सोमनाथ का तीर्थ स्थल है। सोमनाथ में खारून नदी एवं शिवनाथ नदी के संगम पर सोमनाथ महादेव का मन्दिर ऊँचे टीले पर स्थित है। गोलाकार शिवलिंग 3 फीट ऊँचा है। प्राक्रितिक सौन्दर्य से परिपुर्ण शिवनाथ नदी के तट पर यह भगवान शंकर का बसेरा है जहां प्रतिवर्ष माघ पुर्णिमा को मेला लगता है जिसमे हजारों श्रध्दालु शिव जी का दर्शन करने यहां पहुचंते है।
मंदिर में शिव परिवार पार्वती देवी, गणेश जी, कार्तिकेय एवं नन्दी की प्रतिमायें स्थापित हैं। इसी मन्दिर में उत्खनन के समय सोमनाथ महादेव शिवलिंग के ही प्रतिरूप शिवलिंग प्रतिमा मिली थी, जिसे निषाद समाज द्वारा निर्मित मन्दिर में स्थापित किया गया है। उस शिव लिगं की खासियत यह है की वह अभी भी भुमि मे गडा हुआ है और धीरे -धीरे बडा होता जा रहा है। संगम के मध्य एक मंदिर है, जहाँ शिवलिंग व हनुमान की मूर्तियाँ हैं। सोमनाथ तीर्थ स्थल छत्तीसगढ़ का एक मनोहारी पर्यटन स्थल है।
दामाखेडा जाने के लिये मार्ग:
थल मार्ग: रायपुर से बिलासपुर की ओर रायपुर से साठ कि.मी.
वायु मार्ग: निकटतम विमान स्थल माना (रायपुर )
मदकू द्वीप जाने के लिये मार्ग:
रायपुर से हावड़ा मुंबई रेलमार्ग पर 64 किलो मीटर के फ़ासले पर भाटापारा नगर प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र है। यहाँ से कड़ार-कोतमी गांव होते हुए मदकू द्वीप लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। रायपुर-बिलासपुर राजमार्ग के 76 वें माईल स्टोन पर स्थित बैतलपुर से यह दुरी 4 किलोमीटर है। रेल और सड़क मार्ग दोनो से इस स्थान पर पहुंचा जा सकता है।
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