बुध इसी नाम के खगोलीय ग्रह के लिये भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नियत एक ग्रह है। बुध चंद्रमा का तारा या रोहिणी से पुत्र कहलाता है। बुध को माल और व्यापारियों का स्वामी और रक्षक माना जाता है।
बुध हल्के स्वभाव के, सुवक्ता और एक हरे वर्ण वाले कहलाते हैं। उन्हें कृपाण, फऱसा और ढाल धारण किये हुए दिखाया जाता है और सवारी पंखों वाला सिंह बताते हैं। एक अन्य रूप में इन्हें राजदण्ड और कमल लिये हुए उडऩे वाले कालीन या सिंहों द्वारा खींचे गए रथ पर आरूढ दिखाया गया है।
बुध का राज बुधवार दिवस पर रहता है। बुध का विवाह वैवस्वत मनु की पुत्री इला से हुया। इला से प्रसन्न होकर मित्रावरुण ने उसे अपने कुल की कन्या तथा मनु का पुत्र होने का वरदान दिया। कन्या भाव में उसने चन्द्रमा के पुत्र बुध से विवाह करके पुरूरवा नामक पुत्र को जन्म दिया। तदुपरान्त वह सुद्युम्न बन गयी और उसने अत्यन्त धर्मात्मा तीन पुत्रों से मनु के वंश की वृध्दि की जिनके नाम इस प्रकार हैं- उत्कल, गय तथा विनताश्व।
बुध का उद्भव: चंद्रमा के गुरु थे देवगुरु बृहस्पति। बृहस्पति की पत्नी तारा चंदमा की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे प्रेम करने लगी। तदोपरांत वह चंद्रमा के संग सहवास भी कर गई एवं बृहस्पति को छोड़ ही दिया। बृहस्पति के वापस बुलाने पर उसने वापस आने से मना कर दिया, जिससे बृहस्पति क्रोधित हो उठे तब बृहस्पति एवं उनके शिष्य चंद्र के बीच युद्ध आरंभ हो गया। इस युद्ध में दैत्य गुरु शुक्राचार्य चंद्रमा की ओर हो गये और अन्य देवता बृहस्पति के साथ हो लिये। अब युद्ध बड़े स्तर पर होने लगा। क्योंकि यह युद्ध तारा की कामना से हुआ था, अत: यह तारकाम्यम कहलाया। इस वृहत स्तरीय युद्ध से सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा को भय हुआ कि ये कहीं पूरी सृष्टि को ही लील न कर जाए, तो वे बीच बचाव कर इस युद्ध को रुकवाने का प्रयोजन करने लगे। उन्होंने तारा को समझा-बुझा कर चंद्र से वापस लिया और बृहस्पति को सौंपा। इस बीच तारा के एक सुंदर पुत्र जन्मा जो बुध कहलाया। चंद्र और बृहस्पति दोनों ही इसे अपना बताने लगे और स्वयं को इसका पिता बताने लगे यद्यपि तारा चुप ही रही। माता की चुप्पी से अशांत व क्रोधित होकर स्वयं बुद्ध ने माता से सत्य बताने को कहा। तब तारा ने बुध का पिता चंद्र को बताया।
बुध का जीवन: नक्षत्र मण्डलों में बुध का स्थान बुध मण्डल में है। चंद्र ने बालक बुध को रोहिणी और कृत्तिका नक्षत्र-रूपी अपनी पत्नियों को सौंपा। इनके लालन पालन में बुध बड़ा होने लगा। बड़े होने पर बुध को अपने जन्म की कथा सुनकर शर्म व ग्लानि होने लगी। उसने अपने जन्म के पापों से मुक्ति पाने के लिये हिमालय में श्रवणवन पर्वत पर जाकर तपस्या आरंभ की। इस तप से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने उसे दर्शन दिये। उसे वरदान स्वरूप वैदिक विद्याएं एवं सभी कलाएं प्रदान की। एक अन्य कथा के अनुसार बुध का लालन-पालन बृहस्पति ने किया व बुध उनका पुत्र कहलाया।
ज्योतिष रूप: ज्योतिष शास्त्र में बुद्ध को एक शुभ ग्रह माना जाता है। किसी हानिकर या अशुभकारी ग्रह के संगम से यह हानिकर भी हो सकता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और शुक्र, बुध के मित्र ग्रह हैं तथा बुध, चन्द्रमा को अपना शत्रु मानता है। बुध शनि, मँगल व गुरु से सम सम्बन्ध रखता है। बुध मिथुन व कन्या राशि का स्वामी है। बुध कन्या राशि में 15 अंश से 20 अंश के मध्य होने पर अपनी मूलत्रिकोण राशि में होता है। बुध कन्या राशि में 15 अंश पर उच्च स्थान प्राप्त करता है। बुध मीन राशि में होने पर नीच राशि में होता है। बुध को पुरुष व नपुंसक ग्रह माना गया है तथा यह उत्तर दिशा का स्वामी हैं। बुध का शुभ रत्न पन्ना है। यह ग्रह बुद्धि, बुद्धिवर्ग, संचार, विश्लेषण, चेतना (विशेष रूप से त्वचा), विज्ञान, गणित, व्यापार, शिक्षा और अनुसंधान का प्रतिनिधित्व करता है। सभी प्रकार के लिखित शब्द और सभी प्रकार की यात्राएं बुध के अधीन आती हैं।
बुध तीन नक्षत्रों का स्वामी है- अश्लेषा, ज्येष्ठ, और रेवती (नक्षत्र)। हरे रंग, धातु, पीतल और रत्नों में पन्ना बुद्ध की प्रिय वस्तुएं हैं। इसके साथ जुड़ी दिशा उत्तर है, मौसम शरद ऋतु और तत्व पृथ्वी है। बुध से प्रभावित जातक हंसमुख, कल्पनाशील, काव्य, संगीत और खेल में रुचि रखने वाले, शिक्षित, प्रतिभावान, गणितज्ञ, वाणिज्य में पटु और व्यापारी होते हैं। वे बहुत बोलने वाले और अच्छे वक्ता होते हंै। वे हास्य, काव्य और व्यंग्य प्रेमी भी होते हैं। इन्हीं प्रतिभाओं के कारण वे अच्छे सेल्समैन और मार्केटिंग में सफल होते हैं। इसी कारण वे अच्छे अध्यापक और सभी के प्रिय भी होते हैं और सभी से सम्मान पाते हैं। बुध बहुत सुंदर हैं। इसलिए उन्हें आकाशीय ग्रहों में राजकुमार की उपाधि प्राप्त है। उनका शरीर अति सुंदर और छरहरा है। वह ऊंचे कद गोरे रंग के हैं। उनके सुंदर बाल आकर्षक हैं वह मधुरभाषी हैं। बुध, बुद्धि, वाणी, अभिव्यक्ति, शिक्षा, शिक्षण, गणित, तर्क, यांत्रिकी ज्योतिष, लेखाकार, आयुर्वेदिक ज्ञान, लेखन, प्रकाशन, नृत्य-नाटक, और निजी व्यवसाय का कारक है। बुध मामा और मातृकुल के संबंधियों का भी कारक है।
बुध मस्तिष्क, जिह्वा, स्नायु तंत्र, कंठ -ग्रंथि, त्वचा, वाक-शक्ति, गर्दन आदि का प्रतिनिधित्व करता है। यह स्मरण शक्ति के क्षय, सिर दर्द, त्वचा के रोग, दौरे, चेचक, पिश्र, कफ और वायु प्रकृति के रोग, गूंगापन, उन्माद जैसे विभिन्न रोगों का कारक है।
बुध एक ऐसा ग्रह है जो सूर्य के सानिध्य में ही रहता है। जब कोई ग्रह सूर्य के साथ होता है तो उसे अस्त माना जाता है। यदि बुध भी 14 डिग्री या उससे कम में सूर्य के साथ हो, तो उसे अस्त माना जाता है। लेकिन सूर्य के साथ रहने पर बुध ग्रह को अस्त होने का दोष नहीं लगता और अस्त होने से परिणामों में भी बहुत अधिक अंतर नहीं देखा गया है। बुध ग्रह कालपुरुष की कुंडली में तृतीय और छठे भाव का प्रतिनिधित्व करता है। बुध की कुशलता को निखारने के लिए की गयी कोशिश, छठे भाव द्वारा दिखाई देती है। जब-जब बुध का संबंध शुक्र, चंद्रमा और दशम भाव से बनता है और लग्न से दशम भाव का संबंध हो, तो व्यक्ति कला-कौशल को अपने जीवन-यापन का साधन बनाता है। जब-जब तृतीय भाव से बुध, चंद्रमा, शुक्र का संबंध बनता है तो व्यक्ति गायन क्षेत्र में कुशल होता है। अगर यह संबंध दशम और लग्न से भी बने तो इस कला को अपने जीवन का साधन बनाता है। इसी तरह यदि बुध का संबंध शनि केतु से बने और दशम लग्न प्रभावित करे, तो तकनीकी की तरफ व्यक्ति की रुचि बनती है। कितना ऊपर जाता है या कितनी उच्च शिक्षा ग्रहण करता है, इस क्षेत्र में, यह पंचम भाव और दशमेश की स्थिति पर निर्भर करता है। पंचम भाव से शिक्षा का स्तर और दशम भाव और दशमेश से कार्य का स्तर पता लगता है। बुध लेख की कुशलता को भी दर्शाता है। यदि बुध पंचम भाव से संबंधित हो, और यह संबंध लग्नेश, तृतीयेश और दशमेश से बनता है, तो संचार माध्यम से जीविकोपार्जन को दर्शाता है और पत्रकारिता को भी दर्शाता है। मंगल से बुध का संबंध हो और दशम लग्न आदि से संबंध बनता हो और बृहस्पति की दृष्टि या स्थान परिवर्तन द्वारा संबंध बन रहा हो, तो इंसान को वाणिज्य के कार्यों में कुशलता मिलती है।
चंद्रमा के पुत्र होने तथा बृहस्पति द्वारा पुत्र माने जाने के कारण स्वयं के गुणधर्म के अतिरिक्त बुध पर इन दोनों ग्रहों का प्रभाव भी स्पष्टत: देखने को मिलता है। चन्द्रमा और बृहस्पति के आशीर्वाद के कारण ही बुध के अधिकार क्षेत्र में आने वाले विषय विस्तृत हैं। गंधर्वराज के पुत्र होने के कारण जहाँ ललित-कलाओं पर बुध का अधिकार है वहीं बृहस्पति के प्रभाव से विद्या, पाण्डित्य, शास्त्र, उपासना आदि बुध के प्रमुख विषय बन जाते हैं। अभिव्यक्ति की क्षमता बुध ही दे सकते हैं। आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में सफलता के लिए जिस प्रस्तुतिकरण की आवश्यकता होती है वह सिर्फ बुध ही दे सकते हैं। अन्य ग्रह जैसे चन्द्रमा, शुक्र, बृहस्पति, कला, विद्या, कल्पनाशक्ति प्रदान कर सकते हैं परन्तु यदि जन्मपत्रिका में बुध बली न हों तो अपनी प्रतिभा का आर्थिक लाभ उठाने की कला से व्यक्ति वंचित रहता है। वाणी बुध एवं बृहस्पति दोनों का विषय है परन्तु जहाँ वाणी में ओजस्विता बृहस्पति का क्षेत्र है, वहीं वाक्चातुर्य एवं पटुता बुध का ही आशीर्वाद है। स्पष्ट है कि सही समय पर, सही जवाब या कार्य के लिए बुद्धि में जिस पैनीधार की आवश्यकता होती है वह बुध की कृपा से ही प्राप्त होती है।
बुध से जुड़ा सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण धर्म है अनुकूलनशीलता हर हाल में खुद को ढाल लेना सिर्फ बुध प्रधान व्यक्ति ही कर सकता है। अनुकूलनशीलता का ही दूसरा रूप सामंजस्य भी है। बुध प्रधान व्यक्ति की शिकायत करते शायद ही सुनने को मिलें। बुध प्रधान व्यक्ति में इनकी अवस्था के अनुरूप ही एक छोटा बच्चा सदा जीवित रहता है, जो हंसना, खेलना चाहता है, जिंदादिल रहना और जिंदगी के हर पल को भरपूर जीना चाहता है। ज्योतिषीय परिपेक्ष्य में देखें तो बुध का वर्गीकरण नैसर्गिक शुभ या अशुभ ग्रह के रूप में नहीं किया गया है। वे जिस ग्रह के साथ बैठते हैं या प्रभाव क्षेत्र में होते हैं, उसी के अनुरूप आचरण करते हैं परन्तु अपनी पहचान नहीं खोते हैं, जो इनकी मुख्य विशेषता है। सूर्य के साथ युति करके बुधादित्य योग बनाते हैं। सूर्य की ऊर्जा लेकर बुध जहाँ एक ओर बुद्धि को प्रखर करते हैं वहीं दूसरी ओर अनुशासन लेकर इन्द्रियों को नियंत्रित करते हैं। यद्यपि चन्द्रमा के प्रति बुध के मन में नाराजगी है तथापि बुध का हास्य-विनोद, चन्द्रमा के साथ से निखर उठता है। चन्द्रमा की कल्पनाशक्ति और उडान की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति इस युति में मिल सकती है। मंगल के साथ बुध की युति होने पर बुध की वणिक बुद्धि अत्यधिक जाग्रत हो जाती है और इस युति को यदि शुक्र की अमृत दृष्टि मिल जाए तो उच्चकोटि का धन योग बनता है। बुध और बृहस्पति की युति अद्भुत है। वाणी, बुद्धि, ज्ञान, संगीत से जुड़ी नैसर्गिक प्रतिभा उसमें विद्यमान रहती है अर्थात् व्यक्तित्व में संपूर्णता होती है और व्यक्ति उसे अधिक से अधिक निखारने के लिए प्रयासरत रहता है। यह योग लक्ष्मी और सरस्वती दोनों को पाने की इच्छा देता है। बुध, शुक्र के साथ मिलकर लगभग ऐसे ही परिणाम देते हैं। शनि के साथ मिलकर बुध, शनि के कठोर श्रम के गुण को अपनाकर ज्ञान और कला की वृद्धि का प्रयास करते हैं परन्तु यदि शनि ग्रह का ठण्डापन भी इस युति पर हावी हो जाता है तो निराशाजनक सोच जन्म लेती है। सीखने की गहरी ललक बुध की कृपा से ही आती है। बुध बालक हैं और एक बच्चो में ही सीखने की इच्छा सबसे तीव्र होती है। जन्मकुण्डली में बुध शक्तिशाली हों तो यह इच्छा सदा बनी रहती है। अभिव्यक्ति और मनोरंजन का मिश्रित रूप (दूसरों की आवाज आदि की नकल करना) की कला है जो बुध की कृपा से ही संभव है। बुध गणितज्ञ हैं और लाभ के लिए जोड-तोड भी बिठा ही लेते हैं। बुध की कृपा से व्यक्ति सुलझी हुई गणित करके गुणा-भाग के साथ जोखिम उठाता है, और यही सफलता की कँुजी भी है।
बुध ग्रह को भगवान विष्णु का प्रतिनिधि कहा जा सकता है। इसीलिए धन, वैभव आदि का संबंध बुध से है। बुध की दिशा उत्तर है तथा उत्तर दिशा कुबेर का स्थान भी है। वास्तु-योजना में उत्तर दिशा को तिजोरी के लिए प्रशस्त बताया गया है। कार्यालयों में लेखाकार व कैशियर के लिए प्रशस्त स्थान उत्तर दिशा को ही बताया गया है। चूंकि बुध, बुद्धि के कारक हैं अत: अपराध का स्वरूप और हथियार इसी के अनुरूप हो जाते हैं। इंटरनेट के माध्यम से होने वाले अपराध, कागजों में की जाने वाली हेरा-फेरी आदि प्रतिकूल बुध से ही होते हैं। इस प्रकार बुध विद्या रूपी वह शक्तिपुंज है जो सकारात्मक हो जाएं तो ज्ञान, संगीत, ललितकलाएं, मार्केटिंग, वाणी कौशल, लेखन आदि क्षेत्रों में उन्नति देते हैं परंतु यदि नकारात्मक हो जाएं तो व्यक्ति अपराध के रास्ते खोज लेता है जिसकी कल्पना भी दूसरे नहीं कर सकते। इंटरनेट पर नासा की वेबसाइट को या इंटरनेट बैंकिंग में किसी के खाते को क्रेक करना नकारात्मक बुध के कारण ही संभव है। जन्मपत्रिका में बुध का शुभ होना या शुभ ग्रहों के प्रभाव में होना एक वरदान है।
बुध ग्रह की शांति के उपाय:
बुध के लिए उपासना का समय सूर्योदय से 2 घंटे तक। भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। बुध के मूल मंत्र का सवेरे 5 घटी के अंदर पाठ करें। 9,000 या 16,000 पाठ 40 दिन में करें।
मंत्र: उॅ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
बुध हल्के स्वभाव के, सुवक्ता और एक हरे वर्ण वाले कहलाते हैं। उन्हें कृपाण, फऱसा और ढाल धारण किये हुए दिखाया जाता है और सवारी पंखों वाला सिंह बताते हैं। एक अन्य रूप में इन्हें राजदण्ड और कमल लिये हुए उडऩे वाले कालीन या सिंहों द्वारा खींचे गए रथ पर आरूढ दिखाया गया है।
बुध का राज बुधवार दिवस पर रहता है। बुध का विवाह वैवस्वत मनु की पुत्री इला से हुया। इला से प्रसन्न होकर मित्रावरुण ने उसे अपने कुल की कन्या तथा मनु का पुत्र होने का वरदान दिया। कन्या भाव में उसने चन्द्रमा के पुत्र बुध से विवाह करके पुरूरवा नामक पुत्र को जन्म दिया। तदुपरान्त वह सुद्युम्न बन गयी और उसने अत्यन्त धर्मात्मा तीन पुत्रों से मनु के वंश की वृध्दि की जिनके नाम इस प्रकार हैं- उत्कल, गय तथा विनताश्व।
बुध का उद्भव: चंद्रमा के गुरु थे देवगुरु बृहस्पति। बृहस्पति की पत्नी तारा चंदमा की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे प्रेम करने लगी। तदोपरांत वह चंद्रमा के संग सहवास भी कर गई एवं बृहस्पति को छोड़ ही दिया। बृहस्पति के वापस बुलाने पर उसने वापस आने से मना कर दिया, जिससे बृहस्पति क्रोधित हो उठे तब बृहस्पति एवं उनके शिष्य चंद्र के बीच युद्ध आरंभ हो गया। इस युद्ध में दैत्य गुरु शुक्राचार्य चंद्रमा की ओर हो गये और अन्य देवता बृहस्पति के साथ हो लिये। अब युद्ध बड़े स्तर पर होने लगा। क्योंकि यह युद्ध तारा की कामना से हुआ था, अत: यह तारकाम्यम कहलाया। इस वृहत स्तरीय युद्ध से सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा को भय हुआ कि ये कहीं पूरी सृष्टि को ही लील न कर जाए, तो वे बीच बचाव कर इस युद्ध को रुकवाने का प्रयोजन करने लगे। उन्होंने तारा को समझा-बुझा कर चंद्र से वापस लिया और बृहस्पति को सौंपा। इस बीच तारा के एक सुंदर पुत्र जन्मा जो बुध कहलाया। चंद्र और बृहस्पति दोनों ही इसे अपना बताने लगे और स्वयं को इसका पिता बताने लगे यद्यपि तारा चुप ही रही। माता की चुप्पी से अशांत व क्रोधित होकर स्वयं बुद्ध ने माता से सत्य बताने को कहा। तब तारा ने बुध का पिता चंद्र को बताया।
बुध का जीवन: नक्षत्र मण्डलों में बुध का स्थान बुध मण्डल में है। चंद्र ने बालक बुध को रोहिणी और कृत्तिका नक्षत्र-रूपी अपनी पत्नियों को सौंपा। इनके लालन पालन में बुध बड़ा होने लगा। बड़े होने पर बुध को अपने जन्म की कथा सुनकर शर्म व ग्लानि होने लगी। उसने अपने जन्म के पापों से मुक्ति पाने के लिये हिमालय में श्रवणवन पर्वत पर जाकर तपस्या आरंभ की। इस तप से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने उसे दर्शन दिये। उसे वरदान स्वरूप वैदिक विद्याएं एवं सभी कलाएं प्रदान की। एक अन्य कथा के अनुसार बुध का लालन-पालन बृहस्पति ने किया व बुध उनका पुत्र कहलाया।
ज्योतिष रूप: ज्योतिष शास्त्र में बुद्ध को एक शुभ ग्रह माना जाता है। किसी हानिकर या अशुभकारी ग्रह के संगम से यह हानिकर भी हो सकता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और शुक्र, बुध के मित्र ग्रह हैं तथा बुध, चन्द्रमा को अपना शत्रु मानता है। बुध शनि, मँगल व गुरु से सम सम्बन्ध रखता है। बुध मिथुन व कन्या राशि का स्वामी है। बुध कन्या राशि में 15 अंश से 20 अंश के मध्य होने पर अपनी मूलत्रिकोण राशि में होता है। बुध कन्या राशि में 15 अंश पर उच्च स्थान प्राप्त करता है। बुध मीन राशि में होने पर नीच राशि में होता है। बुध को पुरुष व नपुंसक ग्रह माना गया है तथा यह उत्तर दिशा का स्वामी हैं। बुध का शुभ रत्न पन्ना है। यह ग्रह बुद्धि, बुद्धिवर्ग, संचार, विश्लेषण, चेतना (विशेष रूप से त्वचा), विज्ञान, गणित, व्यापार, शिक्षा और अनुसंधान का प्रतिनिधित्व करता है। सभी प्रकार के लिखित शब्द और सभी प्रकार की यात्राएं बुध के अधीन आती हैं।
बुध तीन नक्षत्रों का स्वामी है- अश्लेषा, ज्येष्ठ, और रेवती (नक्षत्र)। हरे रंग, धातु, पीतल और रत्नों में पन्ना बुद्ध की प्रिय वस्तुएं हैं। इसके साथ जुड़ी दिशा उत्तर है, मौसम शरद ऋतु और तत्व पृथ्वी है। बुध से प्रभावित जातक हंसमुख, कल्पनाशील, काव्य, संगीत और खेल में रुचि रखने वाले, शिक्षित, प्रतिभावान, गणितज्ञ, वाणिज्य में पटु और व्यापारी होते हैं। वे बहुत बोलने वाले और अच्छे वक्ता होते हंै। वे हास्य, काव्य और व्यंग्य प्रेमी भी होते हैं। इन्हीं प्रतिभाओं के कारण वे अच्छे सेल्समैन और मार्केटिंग में सफल होते हैं। इसी कारण वे अच्छे अध्यापक और सभी के प्रिय भी होते हैं और सभी से सम्मान पाते हैं। बुध बहुत सुंदर हैं। इसलिए उन्हें आकाशीय ग्रहों में राजकुमार की उपाधि प्राप्त है। उनका शरीर अति सुंदर और छरहरा है। वह ऊंचे कद गोरे रंग के हैं। उनके सुंदर बाल आकर्षक हैं वह मधुरभाषी हैं। बुध, बुद्धि, वाणी, अभिव्यक्ति, शिक्षा, शिक्षण, गणित, तर्क, यांत्रिकी ज्योतिष, लेखाकार, आयुर्वेदिक ज्ञान, लेखन, प्रकाशन, नृत्य-नाटक, और निजी व्यवसाय का कारक है। बुध मामा और मातृकुल के संबंधियों का भी कारक है।
बुध मस्तिष्क, जिह्वा, स्नायु तंत्र, कंठ -ग्रंथि, त्वचा, वाक-शक्ति, गर्दन आदि का प्रतिनिधित्व करता है। यह स्मरण शक्ति के क्षय, सिर दर्द, त्वचा के रोग, दौरे, चेचक, पिश्र, कफ और वायु प्रकृति के रोग, गूंगापन, उन्माद जैसे विभिन्न रोगों का कारक है।
बुध एक ऐसा ग्रह है जो सूर्य के सानिध्य में ही रहता है। जब कोई ग्रह सूर्य के साथ होता है तो उसे अस्त माना जाता है। यदि बुध भी 14 डिग्री या उससे कम में सूर्य के साथ हो, तो उसे अस्त माना जाता है। लेकिन सूर्य के साथ रहने पर बुध ग्रह को अस्त होने का दोष नहीं लगता और अस्त होने से परिणामों में भी बहुत अधिक अंतर नहीं देखा गया है। बुध ग्रह कालपुरुष की कुंडली में तृतीय और छठे भाव का प्रतिनिधित्व करता है। बुध की कुशलता को निखारने के लिए की गयी कोशिश, छठे भाव द्वारा दिखाई देती है। जब-जब बुध का संबंध शुक्र, चंद्रमा और दशम भाव से बनता है और लग्न से दशम भाव का संबंध हो, तो व्यक्ति कला-कौशल को अपने जीवन-यापन का साधन बनाता है। जब-जब तृतीय भाव से बुध, चंद्रमा, शुक्र का संबंध बनता है तो व्यक्ति गायन क्षेत्र में कुशल होता है। अगर यह संबंध दशम और लग्न से भी बने तो इस कला को अपने जीवन का साधन बनाता है। इसी तरह यदि बुध का संबंध शनि केतु से बने और दशम लग्न प्रभावित करे, तो तकनीकी की तरफ व्यक्ति की रुचि बनती है। कितना ऊपर जाता है या कितनी उच्च शिक्षा ग्रहण करता है, इस क्षेत्र में, यह पंचम भाव और दशमेश की स्थिति पर निर्भर करता है। पंचम भाव से शिक्षा का स्तर और दशम भाव और दशमेश से कार्य का स्तर पता लगता है। बुध लेख की कुशलता को भी दर्शाता है। यदि बुध पंचम भाव से संबंधित हो, और यह संबंध लग्नेश, तृतीयेश और दशमेश से बनता है, तो संचार माध्यम से जीविकोपार्जन को दर्शाता है और पत्रकारिता को भी दर्शाता है। मंगल से बुध का संबंध हो और दशम लग्न आदि से संबंध बनता हो और बृहस्पति की दृष्टि या स्थान परिवर्तन द्वारा संबंध बन रहा हो, तो इंसान को वाणिज्य के कार्यों में कुशलता मिलती है।
चंद्रमा के पुत्र होने तथा बृहस्पति द्वारा पुत्र माने जाने के कारण स्वयं के गुणधर्म के अतिरिक्त बुध पर इन दोनों ग्रहों का प्रभाव भी स्पष्टत: देखने को मिलता है। चन्द्रमा और बृहस्पति के आशीर्वाद के कारण ही बुध के अधिकार क्षेत्र में आने वाले विषय विस्तृत हैं। गंधर्वराज के पुत्र होने के कारण जहाँ ललित-कलाओं पर बुध का अधिकार है वहीं बृहस्पति के प्रभाव से विद्या, पाण्डित्य, शास्त्र, उपासना आदि बुध के प्रमुख विषय बन जाते हैं। अभिव्यक्ति की क्षमता बुध ही दे सकते हैं। आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में सफलता के लिए जिस प्रस्तुतिकरण की आवश्यकता होती है वह सिर्फ बुध ही दे सकते हैं। अन्य ग्रह जैसे चन्द्रमा, शुक्र, बृहस्पति, कला, विद्या, कल्पनाशक्ति प्रदान कर सकते हैं परन्तु यदि जन्मपत्रिका में बुध बली न हों तो अपनी प्रतिभा का आर्थिक लाभ उठाने की कला से व्यक्ति वंचित रहता है। वाणी बुध एवं बृहस्पति दोनों का विषय है परन्तु जहाँ वाणी में ओजस्विता बृहस्पति का क्षेत्र है, वहीं वाक्चातुर्य एवं पटुता बुध का ही आशीर्वाद है। स्पष्ट है कि सही समय पर, सही जवाब या कार्य के लिए बुद्धि में जिस पैनीधार की आवश्यकता होती है वह बुध की कृपा से ही प्राप्त होती है।
बुध से जुड़ा सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण धर्म है अनुकूलनशीलता हर हाल में खुद को ढाल लेना सिर्फ बुध प्रधान व्यक्ति ही कर सकता है। अनुकूलनशीलता का ही दूसरा रूप सामंजस्य भी है। बुध प्रधान व्यक्ति की शिकायत करते शायद ही सुनने को मिलें। बुध प्रधान व्यक्ति में इनकी अवस्था के अनुरूप ही एक छोटा बच्चा सदा जीवित रहता है, जो हंसना, खेलना चाहता है, जिंदादिल रहना और जिंदगी के हर पल को भरपूर जीना चाहता है। ज्योतिषीय परिपेक्ष्य में देखें तो बुध का वर्गीकरण नैसर्गिक शुभ या अशुभ ग्रह के रूप में नहीं किया गया है। वे जिस ग्रह के साथ बैठते हैं या प्रभाव क्षेत्र में होते हैं, उसी के अनुरूप आचरण करते हैं परन्तु अपनी पहचान नहीं खोते हैं, जो इनकी मुख्य विशेषता है। सूर्य के साथ युति करके बुधादित्य योग बनाते हैं। सूर्य की ऊर्जा लेकर बुध जहाँ एक ओर बुद्धि को प्रखर करते हैं वहीं दूसरी ओर अनुशासन लेकर इन्द्रियों को नियंत्रित करते हैं। यद्यपि चन्द्रमा के प्रति बुध के मन में नाराजगी है तथापि बुध का हास्य-विनोद, चन्द्रमा के साथ से निखर उठता है। चन्द्रमा की कल्पनाशक्ति और उडान की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति इस युति में मिल सकती है। मंगल के साथ बुध की युति होने पर बुध की वणिक बुद्धि अत्यधिक जाग्रत हो जाती है और इस युति को यदि शुक्र की अमृत दृष्टि मिल जाए तो उच्चकोटि का धन योग बनता है। बुध और बृहस्पति की युति अद्भुत है। वाणी, बुद्धि, ज्ञान, संगीत से जुड़ी नैसर्गिक प्रतिभा उसमें विद्यमान रहती है अर्थात् व्यक्तित्व में संपूर्णता होती है और व्यक्ति उसे अधिक से अधिक निखारने के लिए प्रयासरत रहता है। यह योग लक्ष्मी और सरस्वती दोनों को पाने की इच्छा देता है। बुध, शुक्र के साथ मिलकर लगभग ऐसे ही परिणाम देते हैं। शनि के साथ मिलकर बुध, शनि के कठोर श्रम के गुण को अपनाकर ज्ञान और कला की वृद्धि का प्रयास करते हैं परन्तु यदि शनि ग्रह का ठण्डापन भी इस युति पर हावी हो जाता है तो निराशाजनक सोच जन्म लेती है। सीखने की गहरी ललक बुध की कृपा से ही आती है। बुध बालक हैं और एक बच्चो में ही सीखने की इच्छा सबसे तीव्र होती है। जन्मकुण्डली में बुध शक्तिशाली हों तो यह इच्छा सदा बनी रहती है। अभिव्यक्ति और मनोरंजन का मिश्रित रूप (दूसरों की आवाज आदि की नकल करना) की कला है जो बुध की कृपा से ही संभव है। बुध गणितज्ञ हैं और लाभ के लिए जोड-तोड भी बिठा ही लेते हैं। बुध की कृपा से व्यक्ति सुलझी हुई गणित करके गुणा-भाग के साथ जोखिम उठाता है, और यही सफलता की कँुजी भी है।
बुध ग्रह को भगवान विष्णु का प्रतिनिधि कहा जा सकता है। इसीलिए धन, वैभव आदि का संबंध बुध से है। बुध की दिशा उत्तर है तथा उत्तर दिशा कुबेर का स्थान भी है। वास्तु-योजना में उत्तर दिशा को तिजोरी के लिए प्रशस्त बताया गया है। कार्यालयों में लेखाकार व कैशियर के लिए प्रशस्त स्थान उत्तर दिशा को ही बताया गया है। चूंकि बुध, बुद्धि के कारक हैं अत: अपराध का स्वरूप और हथियार इसी के अनुरूप हो जाते हैं। इंटरनेट के माध्यम से होने वाले अपराध, कागजों में की जाने वाली हेरा-फेरी आदि प्रतिकूल बुध से ही होते हैं। इस प्रकार बुध विद्या रूपी वह शक्तिपुंज है जो सकारात्मक हो जाएं तो ज्ञान, संगीत, ललितकलाएं, मार्केटिंग, वाणी कौशल, लेखन आदि क्षेत्रों में उन्नति देते हैं परंतु यदि नकारात्मक हो जाएं तो व्यक्ति अपराध के रास्ते खोज लेता है जिसकी कल्पना भी दूसरे नहीं कर सकते। इंटरनेट पर नासा की वेबसाइट को या इंटरनेट बैंकिंग में किसी के खाते को क्रेक करना नकारात्मक बुध के कारण ही संभव है। जन्मपत्रिका में बुध का शुभ होना या शुभ ग्रहों के प्रभाव में होना एक वरदान है।
बुध ग्रह की शांति के उपाय:
बुध के लिए उपासना का समय सूर्योदय से 2 घंटे तक। भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। बुध के मूल मंत्र का सवेरे 5 घटी के अंदर पाठ करें। 9,000 या 16,000 पाठ 40 दिन में करें।
मंत्र: उॅ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
दान-द्रव्य: पन्ना, सोना, कांसी, मूंग, खांड, घी, हरा कपड़ा, सभी फूल, हाथी दांत, कपूर, शस्त्र, फल।
बुधवार का व्रत करना चाहिए। विष्णु भगवान का पूजन करना चाहिए।
1. छेद वाले तांबे के सिक्के जल में प्रवाहित करें
2. सटटेबाजी में पैसा ना लगाए
3, गाय को हरा चारा खिलाये
4, बुधवार को गरीब लड़कियों को भोजन व हरा कपड़ा दें
5, बुध के दिन हरे रंग की साड़ी का दान करे
6, उॅ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: तथा सामान्य मंत्र बुं बुधाय नम: है
7, बुधवार के दिन हरे रंग के आसन पर बैठकर उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बुध मंत्र का जाप करें,
8, माँ दुर्गा की आराधना करे,
बुधवार का व्रत करना चाहिए। विष्णु भगवान का पूजन करना चाहिए।
1. छेद वाले तांबे के सिक्के जल में प्रवाहित करें
2. सटटेबाजी में पैसा ना लगाए
3, गाय को हरा चारा खिलाये
4, बुधवार को गरीब लड़कियों को भोजन व हरा कपड़ा दें
5, बुध के दिन हरे रंग की साड़ी का दान करे
6, उॅ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: तथा सामान्य मंत्र बुं बुधाय नम: है
7, बुधवार के दिन हरे रंग के आसन पर बैठकर उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बुध मंत्र का जाप करें,
8, माँ दुर्गा की आराधना करे,
Pt.P.S.Tripathi
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