Tuesday, 25 August 2015

राजा गंधर्व सेना का मंदिर जहॉ चूहे लगाते हैं इच्छाधारी नाग की परिक्रमा:

राजा गंधर्व सेना का मंदिर जहॉ चूहे लगाते हैं इच्छाधारी नाग की परिक्रमा:
आस्था और अंधविश्वास की कड़ी में इस बार एक ऐसा मंदिर है, जिसका अपना ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी है और जिससे जुड़े हैं कई चमत्कार। यह है राजा गंधर्वसेन की नगरी गंधर्वपुरी का गंधर्वसेन मंदिर। देवास की सोनकच्छ तहसील में स्थित है गंधर्वपुरी। यह सिंहासन बत्तीसी की एक कहानी का स्थान है।
भारत की प्राचीन और ऐतिहासिक नगरी गंधर्वपुरी के गंधर्वसेन मंदिर के गुंबद के नीचे एक ऐसा स्थान है, जिसके बीचोबीच बैठता है पीले रंग का एक इच्छाधारी नाग, जिसके चारों ओर दर्जनों चूहे परिक्रमा करते हैं। आखिर क्यों इस रहस्य को कोई आज तक नहीं जान पाया। गाँव के लोग इसे नागराज का चूहापाली स्थान कहते हैं और इस स्थान को हजारों वर्ष पुराना बताते हैं। कहते हैं कि नाग और चूहे आज तक नहीं दिखे, लेकिन परिक्रमा पथ पर चूहों की सैकड़ों लेंडियाँ और उसके बीचोबीच नाग की लेंडी पाई जाती है। गाँव वालों ने उस स्थान को कई बार साफ कर दिया, लेकिन न मालूम वे लेंडियाँ कहाँ से आ जाती हैं।
इस प्राचीन मंदिर में राजा गंधर्वसेन की मूर्ति स्थापित है। मालवा क्षत्रप गंधर्वसेन को गर्धभिल्ल भी कहा जाता था। वैसे तो राजा गंधर्वसेन के बारे में कई किस्से-कहानियाँ प्रचलित हैं, लेकिन इस स्थान से जुड़ी उनकी कहानी अजीब ही है। ग्रामीणों का मानना है कि यहाँ पर राजा गंधर्वसेन का मंदिर सात-आठ खंडों में था। बीचोबीच राजा की मूर्ति स्थापित थी। अब राजा की मूर्ति वाला मंदिर ही बचा है, बाकी सब काल कवलित हो गए। यहाँ नाग की बहुत ही प्राचीन बाम्बी है और आसपास जंगल और नदी होने की वजह से कई नाग देखे गए हैं, लेकिन इस मंदिर में चूहों को देखना मुश्किल ही है, फिर भी न जाने कहाँ से चूहों की लेंडी आ जाती हैं, जबकि ऊपर और नीचे साफ-सफाई रखी जाती है। पूर्वजों से सुनते आए हैं कि इस मंदिर की रक्षा एक इच्छाधारी नाग करता है।
यहाँ के स्थानीय निवासी बताते हैं कि शुरू से ही चूहापाली के इस चमत्कार को देखते आए हैं। हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि यहाँ इस बाम्बी में एक इच्छाधारी पीला नाग रहता है, जो हजारों वर्ष पुराना है। उसकी लम्बी-लम्बी मूँछें हैं और वह लगभग 12 से 15 फीट का है।
जिनके घर मंदिर के निकट हैं वे रोज ब्रह्ममुहूर्त में मंदिर से घंटियों की कभी-कभार आवाज सुनी गई है। अमावस्या और पूर्णिमा के दिन अकसर ऐसा होता है कि जब मंदिर का ताला खोला जाता है तो पूजा-आरती के पूर्व ही मंदिर अंदर से साफ-सुथरा मिलता है और ऐसा लगता है जैसे किसी ने पूजा की हो। जिस तरह इस मंदिर में चूहे नाग की परिक्रमा करते हैं वैसे ही यहाँ की नदी सोमवती भी इस मंदिर का गोल चक्कर लगाते हुए कालीसिंध में जा मिली है। यहाँ परिक्रमा के अवशेष पाए जाते हैं, लेकिन आज तक किसी ने देखा नहीं। गाँव के बड़े-बूढ़ों से सुनते आए हैं।
यह एक प्राचीन नगरी है और यहाँ आस्था की बात पर ग्रामीणजन कहते हैं कि गंधर्वसेन के मंदिर में आने वाले का हर दु:ख मिटता है। जो भी यहाँ आता है उसको शांति का अनुभव होता है। यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। इसका गुंबद परमारकाल में बना है, लेकिन नींव और मंदिर के स्तंभ तथा दीवारें बौद्धकाल की मानी जाती हैं। राजा गंधर्वसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य और भर्तृहरि के पिता थे।
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