Tuesday, 25 August 2015

वास्तु श्र्ग्वेद अनुसार

प्राचीन वास्तु में सिन्धान्तकरो के पास आधुनिक खोगोलीय और भौतिक उपकरण नहीं थे, फिर भी उन्हें सूर्य की किरणों का सम्पूर्ण ज्ञान था | भारत में हमे सूर्य की प्रार्थनाये कई प्राचीन धार्मिक ग्रंथो में मिलती हैं |
श्र्ग्वेद के अनुसार- “हमे ऐसा सूर्य मिले जो अंधकार की चादर हटकर दूर तक प्रकाश फैलाये और समस्त देवताओ में सर्वश्रेष्ठ हो | मित्रो के मित्र, सूर्य, आप आकाश में उदित हो, मेरे ह्रदय रोग और पीत वर्ण का नाश करे | हे सूर्य, मैं अपने पीत वर्ण को शुक्र-सारिका में प्रतिष्ठापित करता हूँ | हे सूर्य, आप अपने तेज़ से समस्त रोगों का नाश करने में सक्षम हैं | इन रोंगों से मेरी रक्षा करैं |”
श्रग्वेद के उधाहरण से स्पष्ट हैं की सूर्य की किरणों मैं समस्त व्याधियो के नाश करने की शक्ति निहित हैं | इसी कारण वास्तुशास्त्र में पूर्व दिशा को सार्वाधिक महत्व् जाता हैं और सूर्योदय को सूर्यास्त के पृथ्वी की सतह को परिकल्पित किया गया हैं | भवन निवेश में भी पूर्व दिशा को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया हैं क्योंकि पूर्व दिशा से उदित होते सूर्य की किरणे इमारत के प्रत्येक भाग में प्रवेश करती हैं | यह प्रमाणित हो चूका हैं की प्रातःकाल की पराबैंगनी सूर्य-किरणे विटामिन डी का बहुमूल्य स्त्रोत हैं जो रक्त के माध्यम से हमारे शरीर को सीधे प्रभावित करती हैं | इसी प्रकार, सूर्य-किरणों में दोपहर मैं रेडियोधर्मिता होती हैं जो हमारे देह पर विपरीत प्रभाव डालती हैं | इसीलिए भवन निवेश में दिग्विन्यास इस प्रकार किया गया है ताकि दोपहर की सूर्य की किरणों का हमारी देह पर न्यूनतम प्रभाव पड़े |

Pt.P.S.Tripathi
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