Tuesday, 25 August 2015

भाई की रक्षा:

अपनी माँ की आँखों का तारा और बहन का इकलौता दुलारा भाई था अजेय। जिसे किसी ने कभी कोसा न हो अभिशाप न दिया हो कहते हैं ऐसे व्यक्ति को बुरी नजर जल्दी लगती है काल भी जैसे उसके लिये तैयार रहता है। भाई दौज आई तो वह माँ से बोला -मैं बहन से टीका कराने जाऊँगा। माँ कैसे भेजे। बहुत ही प्यारा और बूढी माँ का इकलौता सहारा। ऊपर से रास्ता बडे खतरों से भरा।
बेटा ना जा। बहन परदेश में है। तू अकेला है रस्ता बियाबान है। तेरे बिना मैं कैसे रहूँगी।
जैसे भी रह लेना मैया। बहन मेरी बाट देखती होगी।
बेटा आखिर चल ही दिया। पर जैसे ही दरवाजे से निकला दरवाजे की ईँटें सरकीं।
तुम्हें मुझे दबाना है तो ठीक है पर पहले मैं बहन से टीका तो कराके आ जाऊँ फिर मजे में दबा देना.। अजेय ने कहा तो दरवाजा मान गया। एक वन पार किया तो शेर मिला। अजेय को देखते ही झपटा।
अरे भैया ठहरो। मेरी बहन टीका की थाली सजाए भूखी बैठी होगी। पहले मैं बहन से टीका करा के लौट आऊँ तब मुझे खा लेना। शेर मान गया। आगे बियाबान जंगल के बीच एक नदी मिली। अजेय जैसे ही नदी पार करने लगा नदी उमड कर उसे डुबाने चली।
नदी माता, मुझे शौक से डुबा लेना पर पहले मैं बहन से टीका तो करवा आऊँ। वह मेरी बाट देखती होगी। नदी भी शान्त हो गई।
भाई बहन की देहरी पर पहुँचा। बहन अपने भाई के आंवडे-पाँवडे (कुशलता की प्रार्थना) बाँचती चरखा कात रही थी कि तागा टूट गया। वह तागा जोडने लग गई। अब न तागा जुडे न बहन भाई को देखे। भाई खिन्न मन सोचने लगा कि मैं तो इतनी मुसीबतें पार कर आया हूँ और बहन को देखने तक की फुरसत नही। वह लौटने को हुआ तभी तागा जुड गया बहन बोली--अरे भैया मैं तो चरखा चलाती हुई तेरे नाम के ही आँवडे-पाँवडे बाँच रही थी।
बहन ने भाई को बिठाया। दौडी-दौडी सास के पास गई, पूछा--अम्मा-अम्मा सबसे प्यारा पाहुना आवै तो क्या करना चाहिये? सास ने कहा कि करना क्या है गोबर माटी से आँगन लीप ले और दूध में चावल डाल दे। बहन ने झट से आँगन लीपा, दूध औटा कर खोआ खीर बनाई। भाई की आरती उतारी, टीका किया, रक्षा सूत्र बांधा। पंखा झलते हुए भाई को भोजन कराया।
दूसरे दिन तडके ही ढिबरी जलाकर बहन ने गेहूँ पीसे। रोटियाँ बनाई और अचार के संग कपडे में बाँधकर भाई को दे दीं। भाई को भूख कहाँ। आते समय सबसे कितने-कितने कौल वचन हार कर आया था। मन में एक तसल्ली थी कि बहन से टीका करवा लिया।
उधर उजाला हुआ। बच्चे जागे। पूछने लगे---माँ मामा के लिये तुमने क्या बनाया। बच्चों को देने के लिये बहन ने बची हुई रोटियाँ उजाले में देखीं तो रोटियों में साँप की केंचुली दिखी। कलेजा पकडकर बैठ गई - हाय राम! मैंने अपना भाई अपने हाथों ही मार दिया।
बस दूध चूल्हे पर छोडा, पूत पालने में छोडा और जी छोड कर भाई के पीछे दौड पडी। कोस दो कोस जाकर देखा, भाई एक पेड के नीचे सो रहा है और छाक (कपडे में बँधी रोटियाँ) पेड से टँगी है। बहन ने चैन की साँस ली। भाई को जगाया। भाई ने अचम्भे से बहन को देखा। बहन ने पूरी बात बताई। भाई बोला--तू मुझे कहाँ-कहाँ बचाएगी बहन। बहन बोली--मुझसे जो होगा मैं करूँगी पर अब तुझे अकेला नही जाने दूँगी।
भाई ने लाख रोका पर बहन न मानी। चलते-चलते रास्ते में वही नदी मिली। भाई को देख जैसे ही उमडने लगी। बहन ने नदी को चुनरी चढाई। नदी शान्त हो गई। शेर मिला तो उसे बकरा दिया। शेर जंगल में चला गया। दरवाजे के लिये बहन ने सोने की ईँट रख ली। चलते-चलते बहन को प्यास लगी।
भाई ने कहा--बहन मैंने पहले ही मना किया था। अब इस बियाबान जंगल में पानी कहाँ मिलेगा ? बहन बोली-- मिलेगा कैसे नही, देखो दूर चीलें मँडरा रहीं हैं वहाँ जरूर पानी होगा।
ठीक है, मैं पानी लेकर आता हूँ।
बहन बोली--पानी पीने तो मैं ही जाऊँगी? अभी पीकर आती हूँ। तब तक तू पेड के नीचे आराम करना।
बहन ने वहाँ जाकर देखा कि कुछ लोग एक शिला गढ रहे है।
भैया ये क्या बना रहे हो?
तुझे मतलब? पानी पीने आई है तो पानी पी और अपना रस्ता देख।
एक आदमी ने झिडककर कहा तो बहन के कलेजे में सुगबुगाहट हुई। जरूर कोई अनहोनी है। बोली- भैया बतादो ये शिला किसके लिये गढ रहे हो? मैं पानी तभी पीऊँगी।
बडी हठी औरत है। चल नही मानती तो सुन। एक अजेय पूत है। उसी की छाती पर सरकाने के लिये ऊपर से हुकम हुआ है।
बहन को काटो तो खून नही। माँ-जाए के लिये हर जगह काल बैरी बन कर खडा है।
उसने ऐसी क्या गलती करी है जो....?
तुझे आम खाने कि पेड गिनने? तू पानी पी और अपना रास्ता देख। दूसरा आदमी चिल्लाकर बोला पर वह नही गई। वही खडी गिडगिडाने लगी --सुनो भैया ! वह भी किसी दुखियारी माँ का लाल होगा। किसी बहन का भाई होगा। तुम्हें दौज मैया की सौगन्ध। बताओ, क्या उसे बचाने का कोई उपाय नही है?
हाँ उपाय तो है । आदमी हार मानकर बोला--उसे किसी ने कभी कोसा नही है। अगर कोई कोसना शुरु करदे तो अलह टल सकती।
बस बहन को कैसी प्यास! कहाँ का पानी! उसी समय से उसने भाई को कोसना चालू कर दिया और कोसती-कोसती भाई के पास आई--अरे तू मर जा। धुँआ सुलगे, मरघट जले.।
मेरी अच्छी-भली बहन बावली भी हो गई। मैंने कितना मना किया था कि मत चल मेरे संग। नही मानी। भाई ने दुखी होकर सोचा। जैसे-तैसे घर पहुँचे तो माँ हैरान। अच्छी भली बेटी को कौन सा प्रेत लग गया है कौन से भूत-चुडैल सवार हो गए हैं, जो भाई को कोसे जा रही थी। लडकी तो बावरी हो गई?
माँ कोई बात नही। बावरी है भूतरी है, जैसी भी है तो मेरी बहन। तू नाराज मत हो।
माँ चुप हो गई बहन रोज उठते ही भाई को कोसती और दिन भर कोसती रहती। ऐसे ही कुछ दिन गुजर गए। एक दिन भाई की सगाई आई। बहन आगे आ गई, इस जनम जले की सगाई कैसे होगी?
सबको बहुत बुरा लगा पर भाई ने कहा -मेरी बहन की किसी बात का कोई बुरा मत मानो। वह जैसी भी है मेरी बहन है।
फिर तो हर रस्म पर बहन इसी तरह भाई को रोकती रही टोकती रही और कोसती रही। भाई का ब्याह हो गया।
अब आई सुहागरात। बहन पहले ही पलंग पर जाकर लेट गई।
यह अभागा सुहागरात कैसे मनाएगा? मैं भी वही सोऊँगी।
और सब तो ठीक पर सुहागरात में कैसे क्या होगा। ऐसी अनहोनी तो न देखी न सुनी। पर भाई ने कहा -कोई बात नही। मेरी बावरी बहन है। मैं उसका जी नही दुखाऊँगा। हम जैसे भी रात काट लेंगे। फिर कोई क्या कहता।
बहन रात में भाई और भौजाई के बीच लेट गई। पर पलकों में नींद कहाँ से आती। सोने का बहाना करती रही। आधी रात को भगवान का नागदेवता को हुकम हुआ कि फलां घर में एक नया-नवेला जोडा है उसमें से दूल्हा को डसना है। नागदेवता आए। पलंग के तीन चक्कर लगाए पर जोडा नही वहाँ तो तीन सिर और छह पाँव दिख रहे थे। जोडा होता तो डसता। बहन सब देख-समझ रही थी। चुपचाप उठी। तलवार से साँप को मारा और ढाल के नीचे दबा कर रख दिया। और भगवान का नाम लेकर दूसरे कमरे में चली गई।
सुबह उसने सबको मरा साँप दिखाया और बोली-मैं बावरी आवरी कुछ नही हूँ। बस अपने भाई की जान, मैया की गोद और भौजाई का एहवात (सुहाग) बचाने के लिये यह सब किया। जो भूल चूक हुई उसे माफ करना।
भाई-भौजाई ने बहन का खूब मान-पान रखा। बहन खुशी-खुशी अपने घर चली गई।
जैसे इस बहन ने भाई की रक्षा की और भाई ने बहन का मान रखा वैसे ही सब रखें । जै दौज मैया की।
Pt.P.S.Tripathi
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