आत्मविश्वास वस्तुत: एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति है। आत्मविश्वास से ही विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती है और इसके कारण ही महान कार्यों में सरलता और सफलता मिलती है। इसी के द्वारा आत्मरक्षा होती है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास से ओत-प्रोत है, उसे अपने भविष्य के प्रति किसी प्रकार की चिन्ता नहीं सताती। दूसरे व्यक्ति जिन सन्देहों और शंकाओं से दबे रहते हैं, वह उनसे सदैव मुक्त रहता है। यह प्राणी की आंतरिक भावना है। इसके बिना जीवन मे सफल होना अनिश्चित है। आत्मविश्वास वह अद्भुत शक्ति है जिसके बल पर एक अकेला मनुष्य हजारों विपत्तियों एवं शत्रुओं का सामना कर लेता है। निर्धन व्यक्तियों की सबसे बड़ी पूंजी और सबसे बड़ा मित्र आत्मविश्वास ही है। इस संसार में जितने भी महान कार्य हुए हैं या हो रहे हैं, उन सबका मूल कारण आत्मविश्वास ही है। संसार में जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, यदि हम उनका जीवन इतिहास पढ़ें तो पाएंगे कि इन सभी में एक समानता थी और वह समानता थी- आत्मविश्वास की।
जब किसी व्यक्ति को यह अनुभव होने लगता है कि वह उन्नति कर रहा है, ऊंचा उठ रहा है, तब उसमें स्वत: आत्मविश्वास से पूर्ण बातें करने की शक्ति आ जाती है। उसे शंका पर विजय प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति के मुखमण्डल पर विजय का प्रकाश जगमगा रहा हो, सारा संसार उसका आदर करता है और उसकी विजय विश्वास में परिणत हो जाती है। आपने भी अनेक बार अनुभव किया होगा कि जो व्यक्ति आप पर अपनी शक्ति का प्रभाव डालते हैं, आप उनका विश्वास करने लगते हैं। इस सबका कारण उनका आत्मविश्वास है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है, वह स्वत: दिव्य दिखाई पडऩे लगता है, जिसके कारण हम उसकी ओर खिंच जाते हैं और उसकी शक्ति पर विश्वास करने लगते हैं।
कहते हैं उस व्यक्ति के लिए मौके की और सफलता की कोई कमी नहीं है जिसमें आत्मविश्वास होता है। परफेक्ट पर्सनलिटी वही होता है जिसमें कॉन्फीडेन्स होता है। आत्मविश्वास वह चॉबी है जो जिस व्यक्ति के हाथ में होती है उसके लिए हर ताले को खोलना आसान होता है। कोई व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान हो। कितना भी सुन्दर हो लेकिन अगर उसमें आत्मविश्वास नहीं है तो वह चाहकर भी वह सफलता प्राप्त नहीं कर पाता है।
आत्मविश्वास की कमी से हममें असुरक्षा और हीनता का आभास होता है। अगर हमारा आत्मविश्वास कम हो तो हमारा रवैय्या नकारात्मक् रहता है और हम तनाव से ग्रस्त रहते हैं। नतीजतन हमारी एकाग्रता भी कम हो जाती है और हम निर्णय लेते समय भ्रमित और गतिहीन से हो जाते हैं। इससे हमारा व्यक्तित्व पूरी तरह से खिल नहीं पाता। ऐसे में सफलता तो कोसों दूर रहती है।
आत्मविश्वास क्या है?
हर परिस्थिति एक व्यक्ति से कुछ अपेक्षा करती है और हर व्यक्ति की उस अपेक्षा को पूरा करने की अलग-अलग क्षमता होती है। अगर किसी स्थिति की अपेक्षा उसकी क्षमता से ज़्यादा हो तो वह आत्मविश्वास की कमी महसूस करता है। और अगर उसकी क्षमता उस स्थिति की अपेक्षा पूरी करने के बराबर हो तो वह आत्मविश्वास से भरपूर महसूस करता है। इसलिए आत्मविश्वास को कायम रखने के लिए हम यह साफ़ तौर पर देख सकते हैं कि एक तरफ़ तो हमें परिस्थितियों से जूझने की अपनी क्षमता को बढ़ाना चाहिए और दूसरी ओर हमें दुर्गम परिस्थितियों की अपेक्षाओं को सम्भालना सीखना चाहिए।
हम परिस्थितियों से जूझने की अपनी क्षमता कैसे बढ़ाएं ?
हमें सर्वप्रथम् ख़ुद को अपनी ही नजऱों में उठना पड़ेगा। इसलिए हमें देखना पड़ेगा की हम कभी अपने को किसी से कम न समझें और न ही किसी और के साथ अपना मुल्याँकन करें या करने दें। यह जान लें कि हम सब अपनी-अपनी जगह पर सही व पूर्ण हैं। और जब-जब हम अपनी तुलना किसी और से करते हैं तब-तब हम अपने साथ एक बहुत बड़ा अपराध करते हैं।
आत्मविश्वास को बढ़ाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम होगा जब हम ख़ुद को मायूस कर देने वाले व्यक्तियों व नकारात्मक् परिस्थितियों से कोसों दूर रखें क्योंकि यह हमारे आत्मविश्वास को एकदम क्षीण कर देती हैं। इनसब के विप्रीत हमें अपना उत्साह बड़ाने के लिए ख़ुद को सकारात्मक् वैचारिक-संदेश देते रहना चाहिए मैं श्रेष्ठ हूँ, पूर्ण हूँ, सम्पूर्ण हूँ। मुझमें कोइ कमी नहीं है। मैं कोइ भी कार्य करने में सक्षम् हूँ। मैं सही हूँ।...
कई बार अपने में आत्मविश्वास जगाने के लिए आत्मविश्वास से भरपूर व्यक्ति का अभिनय करना या उस जैसा बर्ताव करना काफ़ी मददगार साबित होता है। एक आत्मविश्वास से प्रफुल्लित व्यक्ति के शारीरिक संकेत कुछ खास होते हैं। उसके चहरे के हाव-भाव विश्रामपूर्ण होते हैं जिससे आत्मविश्वास और प्रभावनीयता झलकती है। उसकी शारीरिक क्रीया आरामदाय, सहज व शाँत होती है। उसकी दृष्टी सीधी, ध्यानपूर्ण, रूचीपूर्ण और प्रभावशाली होती है। उसकी आवाज़ सुरीली व आसानी से सुने जाने की सीमा तक ऊँची होती है।
कहते हैं -- पहली छाप ही आपकी अंतिम छाप होती है -- इसलिए हमें अपनी दिखावट, वेशभूषा, बर्ताव इत्यादी को ठीक-ठाक रखना चाहिए जिससे कि अन्य व्यक्ति पर अच्छा प्रभाव पड़े। हमें निरंतर अपने सामान्य-ज्ञान को बढ़ाते रहना चाहिए। इन सभी उपरोक्त कदमों से हम ख़ुद को अपनी ही नजऱों में उठा पायेंगे। कुछ और कदम भी हैं जो हम अपनी जूझने की क्षमता को बढ़ाने के लिए ले सकते हैं। जब हम अपने को विलक्षण व कठिन परिस्थितियों में पाते हैं तब उनसे भाग जाने की बजाए हमें उनका डटकर मुकाबला करने को चुनना चाहिए। हमें अपने को हमेशा प्रशिक्षित् करते रहना चाहिए जिससे हम अपने ज्ञान में लगातार वृद्धी करते रहें। हम सब में एक प्रतिभा छिपि रहती है और हमारा उद्देष्य होना चाहिए कि हम वह खोजें व उभारें।
जब किसी व्यक्ति को यह अनुभव होने लगता है कि वह उन्नति कर रहा है, ऊंचा उठ रहा है, तब उसमें स्वत: आत्मविश्वास से पूर्ण बातें करने की शक्ति आ जाती है। उसे शंका पर विजय प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति के मुखमण्डल पर विजय का प्रकाश जगमगा रहा हो, सारा संसार उसका आदर करता है और उसकी विजय विश्वास में परिणत हो जाती है। आपने भी अनेक बार अनुभव किया होगा कि जो व्यक्ति आप पर अपनी शक्ति का प्रभाव डालते हैं, आप उनका विश्वास करने लगते हैं। इस सबका कारण उनका आत्मविश्वास है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है, वह स्वत: दिव्य दिखाई पडऩे लगता है, जिसके कारण हम उसकी ओर खिंच जाते हैं और उसकी शक्ति पर विश्वास करने लगते हैं।
कहते हैं उस व्यक्ति के लिए मौके की और सफलता की कोई कमी नहीं है जिसमें आत्मविश्वास होता है। परफेक्ट पर्सनलिटी वही होता है जिसमें कॉन्फीडेन्स होता है। आत्मविश्वास वह चॉबी है जो जिस व्यक्ति के हाथ में होती है उसके लिए हर ताले को खोलना आसान होता है। कोई व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान हो। कितना भी सुन्दर हो लेकिन अगर उसमें आत्मविश्वास नहीं है तो वह चाहकर भी वह सफलता प्राप्त नहीं कर पाता है।
आत्मविश्वास की कमी से हममें असुरक्षा और हीनता का आभास होता है। अगर हमारा आत्मविश्वास कम हो तो हमारा रवैय्या नकारात्मक् रहता है और हम तनाव से ग्रस्त रहते हैं। नतीजतन हमारी एकाग्रता भी कम हो जाती है और हम निर्णय लेते समय भ्रमित और गतिहीन से हो जाते हैं। इससे हमारा व्यक्तित्व पूरी तरह से खिल नहीं पाता। ऐसे में सफलता तो कोसों दूर रहती है।
आत्मविश्वास क्या है?
हर परिस्थिति एक व्यक्ति से कुछ अपेक्षा करती है और हर व्यक्ति की उस अपेक्षा को पूरा करने की अलग-अलग क्षमता होती है। अगर किसी स्थिति की अपेक्षा उसकी क्षमता से ज़्यादा हो तो वह आत्मविश्वास की कमी महसूस करता है। और अगर उसकी क्षमता उस स्थिति की अपेक्षा पूरी करने के बराबर हो तो वह आत्मविश्वास से भरपूर महसूस करता है। इसलिए आत्मविश्वास को कायम रखने के लिए हम यह साफ़ तौर पर देख सकते हैं कि एक तरफ़ तो हमें परिस्थितियों से जूझने की अपनी क्षमता को बढ़ाना चाहिए और दूसरी ओर हमें दुर्गम परिस्थितियों की अपेक्षाओं को सम्भालना सीखना चाहिए।
हम परिस्थितियों से जूझने की अपनी क्षमता कैसे बढ़ाएं ?
हमें सर्वप्रथम् ख़ुद को अपनी ही नजऱों में उठना पड़ेगा। इसलिए हमें देखना पड़ेगा की हम कभी अपने को किसी से कम न समझें और न ही किसी और के साथ अपना मुल्याँकन करें या करने दें। यह जान लें कि हम सब अपनी-अपनी जगह पर सही व पूर्ण हैं। और जब-जब हम अपनी तुलना किसी और से करते हैं तब-तब हम अपने साथ एक बहुत बड़ा अपराध करते हैं।
आत्मविश्वास को बढ़ाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम होगा जब हम ख़ुद को मायूस कर देने वाले व्यक्तियों व नकारात्मक् परिस्थितियों से कोसों दूर रखें क्योंकि यह हमारे आत्मविश्वास को एकदम क्षीण कर देती हैं। इनसब के विप्रीत हमें अपना उत्साह बड़ाने के लिए ख़ुद को सकारात्मक् वैचारिक-संदेश देते रहना चाहिए मैं श्रेष्ठ हूँ, पूर्ण हूँ, सम्पूर्ण हूँ। मुझमें कोइ कमी नहीं है। मैं कोइ भी कार्य करने में सक्षम् हूँ। मैं सही हूँ।...
कई बार अपने में आत्मविश्वास जगाने के लिए आत्मविश्वास से भरपूर व्यक्ति का अभिनय करना या उस जैसा बर्ताव करना काफ़ी मददगार साबित होता है। एक आत्मविश्वास से प्रफुल्लित व्यक्ति के शारीरिक संकेत कुछ खास होते हैं। उसके चहरे के हाव-भाव विश्रामपूर्ण होते हैं जिससे आत्मविश्वास और प्रभावनीयता झलकती है। उसकी शारीरिक क्रीया आरामदाय, सहज व शाँत होती है। उसकी दृष्टी सीधी, ध्यानपूर्ण, रूचीपूर्ण और प्रभावशाली होती है। उसकी आवाज़ सुरीली व आसानी से सुने जाने की सीमा तक ऊँची होती है।
कहते हैं -- पहली छाप ही आपकी अंतिम छाप होती है -- इसलिए हमें अपनी दिखावट, वेशभूषा, बर्ताव इत्यादी को ठीक-ठाक रखना चाहिए जिससे कि अन्य व्यक्ति पर अच्छा प्रभाव पड़े। हमें निरंतर अपने सामान्य-ज्ञान को बढ़ाते रहना चाहिए। इन सभी उपरोक्त कदमों से हम ख़ुद को अपनी ही नजऱों में उठा पायेंगे। कुछ और कदम भी हैं जो हम अपनी जूझने की क्षमता को बढ़ाने के लिए ले सकते हैं। जब हम अपने को विलक्षण व कठिन परिस्थितियों में पाते हैं तब उनसे भाग जाने की बजाए हमें उनका डटकर मुकाबला करने को चुनना चाहिए। हमें अपने को हमेशा प्रशिक्षित् करते रहना चाहिए जिससे हम अपने ज्ञान में लगातार वृद्धी करते रहें। हम सब में एक प्रतिभा छिपि रहती है और हमारा उद्देष्य होना चाहिए कि हम वह खोजें व उभारें।
आत्मविश्वास बढ़ाने की प्रक्रिया कोई रातों-रात सम्पन्न नहीं होती यह धीरे-धीरे नन्हे-नन्हे कदमों को मिला-मिला कर बनती है। इसलिए हमें धीरे-धीरे अपने को कठिन परिस्थितियों से सामना करवा कर और उन पर विजय पाकर आगे बडऩा होगा। कई बार हम विफल होंगे मगर हमें हार माने बिना फिर भी उसी पथ पर चलते रहना पड़ेगा।
कईं बार तनाव व बेचैनी को संभालने की तकनीक काफ़ी लाभप्रद होती हैं जैसे -- शारीरिक तनाव कम करने की तकनीक, गहरे साँस लेने की तकनीक, बुरे परिणामों के बारे में न सोचने की आदत, हर परिणाम में कुछ अच्छा ही देखना, अंदर से बेचैनी होने पर भी उसे दूसरों को ज़ाहिर न होने देना, अपने जीवन के अच्छे पलों को याद करते रहना। और जो सबसे महत्वपूर्ण है -- अभ्यास, अभ्यास, अभ्यास। इस तरह दुर्गम परिस्थितियों से जूझने की क्षमता को बड़ा कर हम अपने आत्मविश्वास को बड़ा सकते हैं। हम इनपरिस्थितियों की अपेक्षाओं को किस प्रकार बख़ूबी से संभालें जिससे हमारे आत्मविश्वास में सेंध न लगने पाए। सबसे पहले हमें अनुप्युक्त और असंगत अपेक्षाओं को कम करने की ओर ध्यान देना चाहिए। यह तभी सम्भव है जब हम पूर्णतावादी बनना बंद करें। हमें यह समझ लेना चाहिए कि हम हर काम पूर्णता व पराकाष्ठा से नहीं कर सकते क्योंकि हम कोई भगवान नहीं हैं। और ऐसा ध्यय रखना अपनी शक्तियों पर बे वजह ज़ोर डालना ही होगा। हमें औरों को बे-वजह हर समय प्रभावित करना व उनकी वाह-वाही लूटने की चाह को भी छोडऩा पड़ेगा। कईं बार किसी-किसी को न कहने की या मना करने की आदत डालनी पड़ेगी। हम हर वक्त हर कहा गया काम करनें में जुट जाएँ तो एक काम भी ढंग से पूरा नहीं कर पाएँगे और नतीजा होगा -- आत्मविश्वास में सेंध।
अपने से अपेक्षाओं को महत्व अनुसार क्रमबद्ध करने पर भी हम उनपर अपनी पकड़ को संभाल सकते हैं और अडिग रह सकते हैं। इन सब कदमों के अलावा हम अपने विचारों में यह हमेशा अपने को याद दिलाते रहें कि अपनी तरफ़ से प्रयास सर्वोत्तम् रखो और बाकी ईश् वर पर छोड़ दो।
ज्योतिषीय शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। यदि सूर्य कमजोर होता है तो ऐसा व्यक्ति चाहकर भी आगे नहीं बढ़ पाता है। क्योंकि ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह माना गया है। उसी तरह कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मन का कारक ग्रह होता है। अगर कुंडली में सूर्य, पाप ग्रहों से पिड़ीत हो या कुंडली के खराब घर यानी छठे, आंठवें या बारहवें भाव में हो तो अशुभ फल देता है। इससे व्यक्ति का आत्मविश्वास कम होने का योग बनता है। चंद्रमा अगर कुंडली में नीच राशि, वृश्चिक के साथ अपने शत्रु ग्रह की राशि में हो या कुंडली के अशुभ घर में हो तो व्यक्ति का मन कमजोर तो हो ही जाता है साथ ही वह डरपोक होता है और उसमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।
अगर चंद्रमा के साथ ही गुरू और बुद्धि का स्वामी बुध अच्छी स्थिति में हो तो वो व्यक्ति बहुत ही बुद्धिमान होता है। मतलब जन्मकुंडली में सूर्य और चन्द्र अच्छी स्थिति में हो तो उसका व्यक्तित्व आत्मविश्वास से भरा होता है। वैसे तो इंसान अपना आत्मविश्वास खुद बढ़ाता है लेकिन ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। अत: किसी भी जातक की कुंडली में इन ग्रहों के कमजोर होने, नीच के होने या शत्रु स्थान या ग्रहों से पीडित होने की स्थिति में इन ग्रहों के उपाय तथा ग्रहों को मजबूत कर भी आत्मविश्वास को बढाया जा जाग्रत किया जा सकता है।
आत्मविश्वास को बढाने के ये उपाय करें-
- रविवार के दिन तांबे के बर्तन का दान दें।
- शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाएं।- सोमवार को सफेद गाय को गुड़, चावल आदि खिलाएं।
- तांबे के दो टुकड़े लाकर एक को रविवार के दिन बहती हुई नदी में बहा दें।
- दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली यानि रिंग फिंगर में 5 रत्ती का उत्तम किस्म का माणिक्य सोने या तांबे की अंगूठी में पहने। यह अंगूठी रविवार के दिन सुबह ब्रह्ममुहूर्त में ही पहनें ।
- कोई महत्वपूर्ण काम करने से पहले या कहीं यात्रा पर जाने से पहले थोड़ा गुड़ खाकर तथा पानी पीकर ही निकलें।
- रविवार के दिन नमक का सेवन न करें हो सके तो पूरे दिन उपवास रखें ।
- अपने साथ हमेशा एक चांदी का सिक्का रखें।
- हर सोमवार बबूल के पेड़ की जड़ों में दूध चढ़ाएं।
- पीपल को रोज जल चढ़ाएं।
- सूर्य के पीडित होने पर सूर्य के मंत्रों तथा चंद्रमा के पीडित होने पर चंद्रमा के मंत्रो का जाप कर उनसे संबंधित वस्तुओं का दान करने से आत्मविश्वास में बढोतरी होती है।
कईं बार तनाव व बेचैनी को संभालने की तकनीक काफ़ी लाभप्रद होती हैं जैसे -- शारीरिक तनाव कम करने की तकनीक, गहरे साँस लेने की तकनीक, बुरे परिणामों के बारे में न सोचने की आदत, हर परिणाम में कुछ अच्छा ही देखना, अंदर से बेचैनी होने पर भी उसे दूसरों को ज़ाहिर न होने देना, अपने जीवन के अच्छे पलों को याद करते रहना। और जो सबसे महत्वपूर्ण है -- अभ्यास, अभ्यास, अभ्यास। इस तरह दुर्गम परिस्थितियों से जूझने की क्षमता को बड़ा कर हम अपने आत्मविश्वास को बड़ा सकते हैं। हम इनपरिस्थितियों की अपेक्षाओं को किस प्रकार बख़ूबी से संभालें जिससे हमारे आत्मविश्वास में सेंध न लगने पाए। सबसे पहले हमें अनुप्युक्त और असंगत अपेक्षाओं को कम करने की ओर ध्यान देना चाहिए। यह तभी सम्भव है जब हम पूर्णतावादी बनना बंद करें। हमें यह समझ लेना चाहिए कि हम हर काम पूर्णता व पराकाष्ठा से नहीं कर सकते क्योंकि हम कोई भगवान नहीं हैं। और ऐसा ध्यय रखना अपनी शक्तियों पर बे वजह ज़ोर डालना ही होगा। हमें औरों को बे-वजह हर समय प्रभावित करना व उनकी वाह-वाही लूटने की चाह को भी छोडऩा पड़ेगा। कईं बार किसी-किसी को न कहने की या मना करने की आदत डालनी पड़ेगी। हम हर वक्त हर कहा गया काम करनें में जुट जाएँ तो एक काम भी ढंग से पूरा नहीं कर पाएँगे और नतीजा होगा -- आत्मविश्वास में सेंध।
अपने से अपेक्षाओं को महत्व अनुसार क्रमबद्ध करने पर भी हम उनपर अपनी पकड़ को संभाल सकते हैं और अडिग रह सकते हैं। इन सब कदमों के अलावा हम अपने विचारों में यह हमेशा अपने को याद दिलाते रहें कि अपनी तरफ़ से प्रयास सर्वोत्तम् रखो और बाकी ईश् वर पर छोड़ दो।
ज्योतिषीय शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। यदि सूर्य कमजोर होता है तो ऐसा व्यक्ति चाहकर भी आगे नहीं बढ़ पाता है। क्योंकि ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह माना गया है। उसी तरह कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मन का कारक ग्रह होता है। अगर कुंडली में सूर्य, पाप ग्रहों से पिड़ीत हो या कुंडली के खराब घर यानी छठे, आंठवें या बारहवें भाव में हो तो अशुभ फल देता है। इससे व्यक्ति का आत्मविश्वास कम होने का योग बनता है। चंद्रमा अगर कुंडली में नीच राशि, वृश्चिक के साथ अपने शत्रु ग्रह की राशि में हो या कुंडली के अशुभ घर में हो तो व्यक्ति का मन कमजोर तो हो ही जाता है साथ ही वह डरपोक होता है और उसमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।
अगर चंद्रमा के साथ ही गुरू और बुद्धि का स्वामी बुध अच्छी स्थिति में हो तो वो व्यक्ति बहुत ही बुद्धिमान होता है। मतलब जन्मकुंडली में सूर्य और चन्द्र अच्छी स्थिति में हो तो उसका व्यक्तित्व आत्मविश्वास से भरा होता है। वैसे तो इंसान अपना आत्मविश्वास खुद बढ़ाता है लेकिन ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। अत: किसी भी जातक की कुंडली में इन ग्रहों के कमजोर होने, नीच के होने या शत्रु स्थान या ग्रहों से पीडित होने की स्थिति में इन ग्रहों के उपाय तथा ग्रहों को मजबूत कर भी आत्मविश्वास को बढाया जा जाग्रत किया जा सकता है।
आत्मविश्वास को बढाने के ये उपाय करें-
- रविवार के दिन तांबे के बर्तन का दान दें।
- शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाएं।- सोमवार को सफेद गाय को गुड़, चावल आदि खिलाएं।
- तांबे के दो टुकड़े लाकर एक को रविवार के दिन बहती हुई नदी में बहा दें।
- दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली यानि रिंग फिंगर में 5 रत्ती का उत्तम किस्म का माणिक्य सोने या तांबे की अंगूठी में पहने। यह अंगूठी रविवार के दिन सुबह ब्रह्ममुहूर्त में ही पहनें ।
- कोई महत्वपूर्ण काम करने से पहले या कहीं यात्रा पर जाने से पहले थोड़ा गुड़ खाकर तथा पानी पीकर ही निकलें।
- रविवार के दिन नमक का सेवन न करें हो सके तो पूरे दिन उपवास रखें ।
- अपने साथ हमेशा एक चांदी का सिक्का रखें।
- हर सोमवार बबूल के पेड़ की जड़ों में दूध चढ़ाएं।
- पीपल को रोज जल चढ़ाएं।
- सूर्य के पीडित होने पर सूर्य के मंत्रों तथा चंद्रमा के पीडित होने पर चंद्रमा के मंत्रो का जाप कर उनसे संबंधित वस्तुओं का दान करने से आत्मविश्वास में बढोतरी होती है।
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