यदि शनि की उपस्थिति अश्चिनी नक्षत्र के प्रथम पाद रानी पहले चरण में हो, तो जातक धीमी गति के साथ कार्य करने चाला तथा मंदबुद्धि का होता है।ऐतिहासिक विषयों में उसकी गहरी रुचि होती है । उसे लेखन कार्यं से ष्ट्रयाति मिल सकती है । जीवन का प्रारंभिक काल गरीबी में बिताकर भी वह प्रसन्न रहने का प्रयास करता है । ऐसा जातक लंबी आयु जीता है । यदि जन्य समय में शनि दूसरे चरण में हो तो जातक दुबले-पतले शरीर का होता है । वह सामान्य बातों में बुद्धिहीन, व्यावहारिक ज्ञान में कमजोर किंतु धन कमाने में चतुर होता है । ऐसा जातक क्रोधित होने पर हिंसक हो जाता है । यदि तीसरे चरण में शनि हो तो जातक भ्रमपत्कारी, व्यापारिक कयों में चतुर, मातहतों से कार्य लेने वाला, अत्यधिक महत्वाकग्रेक्षो तथा शीघ्र क्रोधित हो जाने वाला होता है । वह सभी से मधुर संबंध बनाने का अभिलाषी होता है । यदि चौथे चरण में ज्ञाति का प्रभाव हो तो जातक व्यसनी होता है, किन्हें फिर भी वह सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है ।
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