यदि शनि भरणी नक्षत्र के पहले चरण में उपस्थित हो तो जातक मधुर भाषी तथा शिरो रोगी होता है । वह धार्मिक प्रवृत्ति का होता है । वह शोधपूर्ण कार्यक्षेत्र से अत्यधिक धन अजित करता है तथा बुद्धिमान एबं कर्मठ छोरों से सम्मान प्राप्त करता है। यदि शनि भरणी नक्षत्र के दूसरे चरण में हो तो जातक बहुत तीक्ष्ण बुद्धि का होता है । वह लापरवाह, आलसी, उच्चाधिकारी वर्ग का सलाहकार तथा चर्म रोगी होता है । उसका जीवन मुख्यत : सुखमय और खुशहाल रहता है। यदि शनि भरणी नक्षत्र के तीसरे चरण में उपस्थित हो तो जातक दूसरों पर
आश्रित रहता है। उसका पालन-पोषण भी किसी दूसरे परिवार में होता है । ऐसे जातक के को पिता अथवा दो माताएं होती है । माता-गिता में से कोई भी एक उसके बाल्यकाल में ही स्वर्ग सिधार सकता है । भरणी के चौथे चरण में शनि की उपस्थिति से जातक दूसरों पर आश्रित रहता है । उसके माता-पिता खात्त्यकाल में ही बिछुड़ जाते है। वह स्वभाव से आलसी और अकर्मण्य होता है । युवावस्था में सरकारी नौकरी पाता है।
आश्रित रहता है। उसका पालन-पोषण भी किसी दूसरे परिवार में होता है । ऐसे जातक के को पिता अथवा दो माताएं होती है । माता-गिता में से कोई भी एक उसके बाल्यकाल में ही स्वर्ग सिधार सकता है । भरणी के चौथे चरण में शनि की उपस्थिति से जातक दूसरों पर आश्रित रहता है । उसके माता-पिता खात्त्यकाल में ही बिछुड़ जाते है। वह स्वभाव से आलसी और अकर्मण्य होता है । युवावस्था में सरकारी नौकरी पाता है।
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