आँख जीव जंतुओं के शरीर का आवश्यक अंग हैं। आँख या नेत्रों के द्वारा हमें वस्तु का दृष्टिज्ञान होता है। दृष्टि वह संवेदन है, जिस पर मनुष्य सर्वाधिक निर्भर करता है। दृष्टि एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें प्रकाश किरणों के प्रति संवेदिता, स्वरूप, दूरी, रंग आदि सभी का प्रत्यक्ष ज्ञान समाहित है। आँखें अत्यंत जटिल ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, जो दायीं-बायीं दोनों ओर एक-एक नेत्र कोटरीय गुहा में स्थित रहती है। ये लगभग गोलाकार होती हैं तथा इनका व्यास लगभग एक इंच (2.5 सेंटीमीटर) होता है। इन्हें नेत्रगोलक कहा जाता है। नेत्र कोटरीय गुहा शंक्वाकार होती है। इसके सबसे गहरे भाग में एक गोल छिद्र (फोरामेन) होता है, जिसमें से होकर द्वितीय कपालीय तन्त्रिका (ऑप्टिक तन्त्रिका) का मार्ग बनता है। नेत्र के ऊपर व नीचे दो पलकें होती हैं। ये नेत्र की धूल के कणों से सुरक्षा करती हैं। नेत्र में ग्रन्थियाँ होती हैं। जिनके द्वारा पलक और आँख सदैव नम बनी रहती हैं। इस गुहा की छट फ्रन्टल अस्थि से, फर्श मैक्ज़िला से, लेटरल भित्तियाँ कपोलास्थि तथा स्फीनॉइड अस्थि से बनती हैं और मीडियल भित्ति लैक्राइमल, मैक्ज़िला, इथमॉइल एवं स्फीनॉइड अस्थियाँ मिलकर बनाती हैं। इसी गुहा में नेत्रगोलक वसीय ऊतकों में अन्त:स्थापित एवं सुरक्षित रहता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति के वर्तमान जीवन में जो भी उसकी शारीरक, मानसिक, सामाजिक या अध्यात्मिक परिस्थितियां या प्रवृत्ति है वह उसके पूर्व जन्म के संचित कर्मो के आधार पर निर्धारित होती है। व्यक्ति की कुंडली में उसी प्रकार ग्रहों की स्थितियाँ या युतियाँ होती हैं जैसी उसके पिछले जन्म के कर्म या संचित पुण्य होते हैं। चूँकि प्रत्येक ग्रह व्यक्ति के शरीर में उपस्थित किसी न किसी तत्व का प्रतिनिधित्व भी करता है और कारक होता है अत: उस ग्रह की किसी विशेष भाव में उपस्थिति, युति या उसका बल व्यक्ति में किसी न किसी प्रकार की शारीरिक, मानसिक व्याधि को जन्म देता है। मानव शरीर में ऑखें सबसे कीमती और जरूरी अंग है। यह संसार चक्र देखने एवं इसमें आसानी से जीवन यापन करने के लिए ऑखों का होना अति आवश्यक है। किंतु किसी व्यक्ति की ऑखें जन्म से ही नहीं होती तो किसी को बाद में अंधा होना पड जाता है। किसी जातक को मोतियाबिंद हो जाता है जिससे उसे दिन में दिखाई नहीं देता तो किसी को रतौंधी होने से रात की रोशनी में दिखाई नहीं देती। कभी आँखों से पानी गिरना, आँख आना, आँखों की दुर्बलता, आँखों की थकान, आँखों में चोट लगी हो जल गई हों, मिर्च मसाला गिरा हो, कोई कीड़ा गिर गया हो या डंक मारा हो, आँख लाल हो, दुखती हो, कीचड़ आती हो, प्रकाश सहन न, आँखों के आगे अँधेरा आता हो या कभी किसी बिमारी से रोशनी चली या कम हो जाती है। इस प्रकार यदि देखें तो जीवन में घटित इन आकस्मिक सी दिखाई देनी वाली घटनाओं को ज्योतिष के अनुसार पूर्ण निर्धारित कारण माना जाता है।
प्रश्र यह उठता है कि आखिर यह सब क्यों? इस प्रश्र का उत्तर ज्योतिष शास्त्र के द्वारा प्राप्त होता है। सूर्य धरती का जीवनदाता, लेकिन एक क्रूर ग्रह है, वह मानव स्वभाव में तेजी लाता है। यह ग्रह कमजोर होने पर सिर में दर्द, आँखों का रोग आदि देता हैं। जब भी किसी जातक के जन्मपत्र में दूसरे और बारहवें भाव में शुक्र का वग्र्र हो या स्वयं शुक्र निर्बल बैठा हो अथवा शुक्र सूर्य के साथ किसी भी भाव में बैठा हो तो ऑखों से संबंधित रोग होते हैं। इसके साथ ही अगल मंगल सूर्य की युति अथवा दृष्टि, सूर्य नीचोंन्मुख होकर शनि से युत अथवा चंद्रमा या मंगल से दृष्ट हो तो नेत्र ज्योति क्षीण होती है। इसके साथ इन दशाओं में शारीरिक लापरवाही मोतियाबिंद अथवा रतौंधी संबंधी बीमारी का कारण बनता है। जिसमें चंद्रमा के होने से रतौंधी तथा शुक्र के होने से मोतियाबिंद होने का कारण होता है। जिस मनुष्य के जन्म में षष्ठेश मंगल लग्र या षष्ठेश मेष या वृश्चिक को हो अथवा मंगल के साथ चंद्रमा या सूर्य बारहवें स्थान में हो या शनि 5, 7, 8, 9 स्थान में सिंह राशि का हो अथवा पापी ग्रहों के साथ नीच का हो जायें अथवा राहु से पापाक्रांत हो तो ऑखों से पानी आना अथवा फुंसी होना जैसी बीमारी होती है। यदि सूर्य शनि की युति द्वितीय अथवा बारहवें स्थान में अथवा द्वितीयेश अथवा द्वादशेश होकर 6, 8, 12 स्थान में हो जाये तो आखों से पानी निकलता तथा रोशनी मंद होना संबंधित बीमारी होती है। यदि सूर्य अथवा चंद्रमा मंगल के साथ पाप अथवा नीच स्थानों पर हो तो नेत्र में जाला बनना, मस्सा, गुहेरी अथवा घाव होने जैसी बीमारी इन दशाओं में होती है। व्ययेश अथवा धनेश होकर शुक्र सूर्य की युति में अथवा षष्ठम, अष्टम अथवा द्वादश स्थान में हो जाये अथवा राहु से दृष्ट हो तो नेत्र ज्योति क्षीण होने की आशंका होती है। धनेश-व्ययेश सूर्य शुक्र हो, युति बनाये अथवा दृष्टि हो, मंगल शनि की किसी भी प्रकार की दृष्टि इन ग्रहों पर हो, द्वितीयेश, व्ययेश, इन ग्रहों के छठे, आठवे अथवा बाहरवें स्थान में हो, कू्रर ग्रहों के प्रभाव में हो, तो नेत्र रोग अवश्य होता है। इन ग्रहों की दशाओं अथवा अंतरदशाओं में इन रोगों के होने की संभावना होती है।
शुक्र की बुध के साथ समीपी 6, 8, 12 स्थानों में हो या त्रिक स्थानों में स्थिति हो तो रतौंधी रोग होता है। यदि षष्ठेश मंगल लग्र में हो अथवा द्वितीयेश या द्वादशेश सूर्य राहु से पापाक्रांत होकर नीच स्थानों में हों तो ऑखों के रोग बचपन में ही हो जाते हैं। कुण्डली के दूसरे अथवा बारहवें दोनों घरों में से जिसमें सूर्य अथवा शुक्र बैठा होता है उस आंख में तकलीफ होने की संभावना अधिक रहती है। ज्योतिषशास्त्र के ग्रंथ सारावली में बताया गया है कि जिनकी कुण्डली में सूर्य और चन्द्रमा एक साथ बारहवें घर में होते हैं उन्हें नेत्र रोग होता है। ये दोनों घर मंगल, शनि, राहु एवं केतु के अशुभ प्रभाव में होने पर भी आंखों की रोशनी प्रभावित होती है। इससे स्पष्ट होता है कि सूर्य, शुक्र और चंद्रमा जो कि ज्योतिकारक ग्रह हैं। धनेश और व्ययेश जोकि नेत्रस्थ ज्योति हैं और इसके अतिरिक्त दूसरा, लग्र और बारहवां स्थान नेत्र भाव का स्थान है यदि इन में से किसी का भी संबंध छठवे, आठवे अथवा बारहवें स्थानों से या उनके अधिपतियों से अथवा किसी भी प्रकार से बने अथवा शत्रु, नेष्ट, अस्त, नीच अथवा नीचास्त, पापी क्रूर ग्रहों से संबंध इन में से किसी भी ग्रहों का बनें तो नेत्र से संबंधित कष्ट देता है।
नेत्र रोग के कई योग ज्योतिषशास्त्र में बताये गये हैं। साथ ही बताया गया है कि मंत्रों एवं ग्रहों के उपायों से नेत्र रोग देने वाले अशुभ योगों के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इनमें सबसे आसान उपाय है नियमित सूर्योदय के समय उगते सूर्य को तांबे के बर्तन में जल भरकर अर्पित करना। नियमित ऐसा करने से नेत्र रोग होने की संभावना कम रहती है। कृष्ण यजुर्वेद साखा का एक उपनिषद् है चाक्षुषोपनिषद। इस उपनिषद् में आंखों को स्वस्थ रखने के लिए सूर्य प्रार्थना का मंत्र दिया गया है। माना जाता है कि इस मंत्र का नियमित पाठ करने से नेत्र रोग से बचाव होता है। जिन लोगों की आंखों की रोशनी अल्पायु में ही कमज़ोर हो गयी है, उन्हें भी इस मंत्र के जप से लाभ मिलता है।
सूर्य के गलत प्रभाव सामने आ रहे हों तो सूर्य के दिन यानी रविवार को उपवास तथा माणिक्य लालड़ी तामड़ा अथवा महसूरी रत्न को धारण किया जा सकता है। सूर्य को अनुकूल करने के लिए मंत्र-ऊस: सूर्याय नम: का एक लाख 47 हजार बार विधिवत जाप करना चाहिए। यह पाठ थोड़ा-थोड़ा करके कई दिन में पूरा किया जा सकता है।
अन्य उपाय:
भरपूर नींद लें जिससे ऑखों को भरपूर आराम मिल सके। भागदौड़ भरी जिंदगी में सबसे आगे रहने की टेंशन लेने के बजाय सामान्य रूप से जीने की आदत डालें और टेंशन को कम करने के लिए योग , मेडिटेशन , हॉबी क्लास , गेम्स आदि का सहारा लें। सिरदर्द ऑखों की बीमारी का एक लक्षण है, इससे बचाव में एक्सरसाइज की भूमिका काफी अहम है , क्योंकि इससे शरीर में एंडॉर्फिन रिलीस होता है, जोकि शरीर के लिए नैचरल पेनकिलर का काम करता है। स्मोकिंग से खून की नलियां और ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है, जिससे मसल्स में ब्लड सर्कुलेशन सही ढंग से नहीं हो पाता और तेज सिरदर्द हो जाता है। अल्कोहल कम लें। साथ ही, डीहाइड्रेशन से बचने के लिए ड्रिंक करने के बाद खूब सारा पानी पीना चाहिए। कई बार डीहाइड्रेशन से भी सिरदर्द हो जाता है। खूब पानी और दूसरे हेल्दी लिक्विड लेकर माइनर सिरदर्द अथवा ऑखों से संबंधित रोगो को रोका जा सकता है। आप जो खाते हैं, उससे ब्रेन की केमिस्ट्री प्रभावित होती है और इससे खून की नलियों का साइज भी बदल सकता है। जिसके कारण नेत्र ज्योति कमजोर होना, सिरदर्द होना अथवा ऑखों के रोग हो सकते हैं। काम के स्ट्रेस से बचने के लिए लोग काफी ज्यादा चाय, कॉफी आदि पीते रहते हैं, जिनमें कैफीन होता है। ज्यादा कैफीन लेने से ऑखों की रोशनी कम होती है, सिरदर्द की आशंका बढ़ती है।
सुबह उठकर अपने मुंह मे पानी भर ले और ठन्डे पानी से आखों मे छीटे मारना चाहिए .यह नेत्र ज्योति के लिए बहुत लाभ दायक पाया गया है। गाजर और पालक की भाजी का जूस तो यदि संभव हो तो हर दिन एक एक कप पीना ही चाहिए यह आखों के लिए बहुत लाभ दायक रहा है। सुबह उठकर सूर्य भगवान को अध्र्य भी देने का क्रम बना ले, भले ही इसकी उपयोगिता समझ मे आज ना आये पर आखों कि ज्योति के अधिपति सूर्य, चंद्र हैं अत: सूर्य अध्र्य से समस्या के समाधान मे बहुत सहायता मिलाती है। दैनिक जीवन मे सुर्योपंसना के महत्त्व को समझना चाहिए। सूर्य देव से संबंधित कोई भी मंत्र को अपने जीवन मे महत्त्व अवश्य दें, कम से कम 11 माला मंत्र जप तो करे। कई बार अनेको उपाय करने के बाद भाई सफलता या नेत्र रोग या दोष दूर नही हो रहे होते हैं क्योंकि ग्रह वाधा या ग्रह दोष का बहुत प्रभाव जो कि किसी भी चिकित्सीय उपाय को सफल नही होने देता हैं इस अवस्था में सूर्य और चंद्र के तांत्रिक मंत्रो का जप करना, बहुत लाभदायक माना गया है।
प्रश्र यह उठता है कि आखिर यह सब क्यों? इस प्रश्र का उत्तर ज्योतिष शास्त्र के द्वारा प्राप्त होता है। सूर्य धरती का जीवनदाता, लेकिन एक क्रूर ग्रह है, वह मानव स्वभाव में तेजी लाता है। यह ग्रह कमजोर होने पर सिर में दर्द, आँखों का रोग आदि देता हैं। जब भी किसी जातक के जन्मपत्र में दूसरे और बारहवें भाव में शुक्र का वग्र्र हो या स्वयं शुक्र निर्बल बैठा हो अथवा शुक्र सूर्य के साथ किसी भी भाव में बैठा हो तो ऑखों से संबंधित रोग होते हैं। इसके साथ ही अगल मंगल सूर्य की युति अथवा दृष्टि, सूर्य नीचोंन्मुख होकर शनि से युत अथवा चंद्रमा या मंगल से दृष्ट हो तो नेत्र ज्योति क्षीण होती है। इसके साथ इन दशाओं में शारीरिक लापरवाही मोतियाबिंद अथवा रतौंधी संबंधी बीमारी का कारण बनता है। जिसमें चंद्रमा के होने से रतौंधी तथा शुक्र के होने से मोतियाबिंद होने का कारण होता है। जिस मनुष्य के जन्म में षष्ठेश मंगल लग्र या षष्ठेश मेष या वृश्चिक को हो अथवा मंगल के साथ चंद्रमा या सूर्य बारहवें स्थान में हो या शनि 5, 7, 8, 9 स्थान में सिंह राशि का हो अथवा पापी ग्रहों के साथ नीच का हो जायें अथवा राहु से पापाक्रांत हो तो ऑखों से पानी आना अथवा फुंसी होना जैसी बीमारी होती है। यदि सूर्य शनि की युति द्वितीय अथवा बारहवें स्थान में अथवा द्वितीयेश अथवा द्वादशेश होकर 6, 8, 12 स्थान में हो जाये तो आखों से पानी निकलता तथा रोशनी मंद होना संबंधित बीमारी होती है। यदि सूर्य अथवा चंद्रमा मंगल के साथ पाप अथवा नीच स्थानों पर हो तो नेत्र में जाला बनना, मस्सा, गुहेरी अथवा घाव होने जैसी बीमारी इन दशाओं में होती है। व्ययेश अथवा धनेश होकर शुक्र सूर्य की युति में अथवा षष्ठम, अष्टम अथवा द्वादश स्थान में हो जाये अथवा राहु से दृष्ट हो तो नेत्र ज्योति क्षीण होने की आशंका होती है। धनेश-व्ययेश सूर्य शुक्र हो, युति बनाये अथवा दृष्टि हो, मंगल शनि की किसी भी प्रकार की दृष्टि इन ग्रहों पर हो, द्वितीयेश, व्ययेश, इन ग्रहों के छठे, आठवे अथवा बाहरवें स्थान में हो, कू्रर ग्रहों के प्रभाव में हो, तो नेत्र रोग अवश्य होता है। इन ग्रहों की दशाओं अथवा अंतरदशाओं में इन रोगों के होने की संभावना होती है।
शुक्र की बुध के साथ समीपी 6, 8, 12 स्थानों में हो या त्रिक स्थानों में स्थिति हो तो रतौंधी रोग होता है। यदि षष्ठेश मंगल लग्र में हो अथवा द्वितीयेश या द्वादशेश सूर्य राहु से पापाक्रांत होकर नीच स्थानों में हों तो ऑखों के रोग बचपन में ही हो जाते हैं। कुण्डली के दूसरे अथवा बारहवें दोनों घरों में से जिसमें सूर्य अथवा शुक्र बैठा होता है उस आंख में तकलीफ होने की संभावना अधिक रहती है। ज्योतिषशास्त्र के ग्रंथ सारावली में बताया गया है कि जिनकी कुण्डली में सूर्य और चन्द्रमा एक साथ बारहवें घर में होते हैं उन्हें नेत्र रोग होता है। ये दोनों घर मंगल, शनि, राहु एवं केतु के अशुभ प्रभाव में होने पर भी आंखों की रोशनी प्रभावित होती है। इससे स्पष्ट होता है कि सूर्य, शुक्र और चंद्रमा जो कि ज्योतिकारक ग्रह हैं। धनेश और व्ययेश जोकि नेत्रस्थ ज्योति हैं और इसके अतिरिक्त दूसरा, लग्र और बारहवां स्थान नेत्र भाव का स्थान है यदि इन में से किसी का भी संबंध छठवे, आठवे अथवा बारहवें स्थानों से या उनके अधिपतियों से अथवा किसी भी प्रकार से बने अथवा शत्रु, नेष्ट, अस्त, नीच अथवा नीचास्त, पापी क्रूर ग्रहों से संबंध इन में से किसी भी ग्रहों का बनें तो नेत्र से संबंधित कष्ट देता है।
नेत्र रोग के कई योग ज्योतिषशास्त्र में बताये गये हैं। साथ ही बताया गया है कि मंत्रों एवं ग्रहों के उपायों से नेत्र रोग देने वाले अशुभ योगों के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इनमें सबसे आसान उपाय है नियमित सूर्योदय के समय उगते सूर्य को तांबे के बर्तन में जल भरकर अर्पित करना। नियमित ऐसा करने से नेत्र रोग होने की संभावना कम रहती है। कृष्ण यजुर्वेद साखा का एक उपनिषद् है चाक्षुषोपनिषद। इस उपनिषद् में आंखों को स्वस्थ रखने के लिए सूर्य प्रार्थना का मंत्र दिया गया है। माना जाता है कि इस मंत्र का नियमित पाठ करने से नेत्र रोग से बचाव होता है। जिन लोगों की आंखों की रोशनी अल्पायु में ही कमज़ोर हो गयी है, उन्हें भी इस मंत्र के जप से लाभ मिलता है।
सूर्य के गलत प्रभाव सामने आ रहे हों तो सूर्य के दिन यानी रविवार को उपवास तथा माणिक्य लालड़ी तामड़ा अथवा महसूरी रत्न को धारण किया जा सकता है। सूर्य को अनुकूल करने के लिए मंत्र-ऊस: सूर्याय नम: का एक लाख 47 हजार बार विधिवत जाप करना चाहिए। यह पाठ थोड़ा-थोड़ा करके कई दिन में पूरा किया जा सकता है।
अन्य उपाय:
भरपूर नींद लें जिससे ऑखों को भरपूर आराम मिल सके। भागदौड़ भरी जिंदगी में सबसे आगे रहने की टेंशन लेने के बजाय सामान्य रूप से जीने की आदत डालें और टेंशन को कम करने के लिए योग , मेडिटेशन , हॉबी क्लास , गेम्स आदि का सहारा लें। सिरदर्द ऑखों की बीमारी का एक लक्षण है, इससे बचाव में एक्सरसाइज की भूमिका काफी अहम है , क्योंकि इससे शरीर में एंडॉर्फिन रिलीस होता है, जोकि शरीर के लिए नैचरल पेनकिलर का काम करता है। स्मोकिंग से खून की नलियां और ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है, जिससे मसल्स में ब्लड सर्कुलेशन सही ढंग से नहीं हो पाता और तेज सिरदर्द हो जाता है। अल्कोहल कम लें। साथ ही, डीहाइड्रेशन से बचने के लिए ड्रिंक करने के बाद खूब सारा पानी पीना चाहिए। कई बार डीहाइड्रेशन से भी सिरदर्द हो जाता है। खूब पानी और दूसरे हेल्दी लिक्विड लेकर माइनर सिरदर्द अथवा ऑखों से संबंधित रोगो को रोका जा सकता है। आप जो खाते हैं, उससे ब्रेन की केमिस्ट्री प्रभावित होती है और इससे खून की नलियों का साइज भी बदल सकता है। जिसके कारण नेत्र ज्योति कमजोर होना, सिरदर्द होना अथवा ऑखों के रोग हो सकते हैं। काम के स्ट्रेस से बचने के लिए लोग काफी ज्यादा चाय, कॉफी आदि पीते रहते हैं, जिनमें कैफीन होता है। ज्यादा कैफीन लेने से ऑखों की रोशनी कम होती है, सिरदर्द की आशंका बढ़ती है।
सुबह उठकर अपने मुंह मे पानी भर ले और ठन्डे पानी से आखों मे छीटे मारना चाहिए .यह नेत्र ज्योति के लिए बहुत लाभ दायक पाया गया है। गाजर और पालक की भाजी का जूस तो यदि संभव हो तो हर दिन एक एक कप पीना ही चाहिए यह आखों के लिए बहुत लाभ दायक रहा है। सुबह उठकर सूर्य भगवान को अध्र्य भी देने का क्रम बना ले, भले ही इसकी उपयोगिता समझ मे आज ना आये पर आखों कि ज्योति के अधिपति सूर्य, चंद्र हैं अत: सूर्य अध्र्य से समस्या के समाधान मे बहुत सहायता मिलाती है। दैनिक जीवन मे सुर्योपंसना के महत्त्व को समझना चाहिए। सूर्य देव से संबंधित कोई भी मंत्र को अपने जीवन मे महत्त्व अवश्य दें, कम से कम 11 माला मंत्र जप तो करे। कई बार अनेको उपाय करने के बाद भाई सफलता या नेत्र रोग या दोष दूर नही हो रहे होते हैं क्योंकि ग्रह वाधा या ग्रह दोष का बहुत प्रभाव जो कि किसी भी चिकित्सीय उपाय को सफल नही होने देता हैं इस अवस्था में सूर्य और चंद्र के तांत्रिक मंत्रो का जप करना, बहुत लाभदायक माना गया है।
Pt.P.S.Tripathi
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