Monday, 24 August 2015

आद्र्रा नक्षत्र से प्रकृति में परिवर्तन -

वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली से की जाने वाली गणनाओं के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले सताइस नक्षत्रों में से आर्द्रा नक्षत्र को छठा नक्षत्र माना जाता है। आर्द्र का शाब्दिक अर्थ है नम तथा आर्द्रा का शाब्दिक अर्थ है नमी और इस नमी को विभिन्न वैदिक ज्योतिषी भिन्न भिन्न क्षेत्रों से जुड़े भिन्न अर्थों के साथ जोड़ते हैं। कहीं इस नमी को वर्षा के पश्चात सूर्य की तीव्र किरणों का कारण वातावरण में आने वाली नमी माना जाता है तो कहीं आंख में आने वाले आंसूओं को भी इस नमी के साथ जोड़ा जाता है। आर्द्रा नक्षत्र परिवर्तन तथा नवीकरण को दर्शाता है तथा कई बार यह परिवर्तन कुछ अनचाही घटनाओं के फलस्वरुप होता है। उदाहरण के लिए, खेती के लिए सबसे अधिक उपजाऊ भूमि का निर्माण ज्वालामुखी फटने का बाद उसके लावे के ठंडे हो जाने से बनने वाली भूमि से ही होता है जबकि ज्वालामुखी का फटना अपने आप में एक अनचाही घटना है तथा कई बार ज्वालामुखी फटने के कारण जान माल की बहुत हानि भी हो सकती है। इस प्रकार वैदिक ज्योतिष के अनुसार आर्द्रा उस परिवर्तन को दर्शाता है जिसके आने का कारण कोई अनचाही तथा भयावह घटना हो सकती है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार भगवान शिव के रुद्र रुप को आर्द्रा नक्षत्र का अधिपति देवता माना जाता है। रुद्र भगवान शिव का उग्र तथा प्रलयंकारी रुप माना जाता है तथा यह माना जाता है कि जब जब भगवान शिव रुद्र रुप धारण करते हैं, किसी न किसी प्रकार की प्रलयंकारी घटना अथवा विनाशलीला अवश्य होती है। किन्तु कुछ वैदिक विद्वान इस बात की तरफ भी संकेत करते हैं कि भगवान शिव के रुद्र रुप के द्वारा आने वाली तबाही तथा विनाश अंत मे सदा जन हित में ही होते हैं। इस प्रकार सूक्षमता से विचार करने पर यह कहा जा सकता है कि जब जब सृष्टि में परिवर्तन अनिवार्य हो जाता है तथा यह परिवर्तन किसी ऐसी घटना के घटने से ही हो सकता है जिसे प्रलय अथवा विनाश के साथ जोड़ कर देखा जाता है, तब तब भगवान शिव अपने रुद्र रुप में प्रकट होकर उस प्रलयंकारी घटना के माध्यम से परिवर्तन को जन्म देते हैं। भगवान शिव के रुद्र रुप के ये गुण आर्द्रा नक्षत्र के माध्यम से प्रदर्शित होते हैं जिसके कारण इस नक्षत्र के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक स्वभाव से उग्र देखे जाते हैं तथा ऐसे जातक अपने जीवन में कई बार ऐसे कार्य कर देते हैं जिन्हें सभ्य समाज सामान्यतया उग्र अथवा भीषण मानता है किंतु आर्द्रा के जातक बिना किसी की चिंता किए अपने निश्चित किए हुए कार्यों को पूर्ण करने की कला में निपुण होते हैं। इसी प्रकार आर्द्रा नक्षत्र के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक भगवान शिव के रुद्र रूप के अन्य कई गुणों को भी प्रदर्शित करते हैं जिनमें वीरता, त्याग, भौतिक वस्तुओं के प्रति अधिक आकर्षित न होने का गुण, क्रोध तथा अपने आप में ही मग्न रहने का गुण भी शामिल है।
आर्द्रा नक्षत्र के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक जिज्ञासु प्रवृति के होते हैं तथा इनमें विश्लेषण करने की क्षमता भी प्रबल होती है। आर्द्रा के जातक प्रत्येक मामले की जड़ तक जाने की चेष्टा करते हैं तथा इन्हें प्रत्येक मामले के छोटे से छोटे पक्ष के बारे में भी जानकारी रखने की आदत होती है। आर्द्रा के जातकों की मानसिक स्थिति बहुत तीव्रता के साथ बदल सकती है जिसके चलते ये जातक कई बार अप्रत्याशित हो जाते हैं। ऐसे जातक बहुत शीघ्रता के साथ ही उग्र हो जाते हैं तथा कई बार अपनी इस उग्रता के चलते ये जातक दूसरे व्यक्ति को हानि भी पहुंचा देते हैं। आर्द्रा के जातक सामान्य तौर पर वीर होते हैं तथा ये जातक किसी का सामना करने के लिए, वाद विवाद करने के लिए, तर्क वितर्क करने के लिए, लड़ाई झगड़ा करने के लिए तथा युद्ध करने के लिए भी तत्पर रहते हैं। आर्द्रा के जातक खोजी प्रवृति के होते हैं तथा साथ ही साथ ये जातक अच्छे निरीक्षक तथा समीक्षक भी होते हैं।
Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions

No comments: