Wednesday, 2 September 2015

ऋण से जीवन में आर्थिक कष्ट:ज्योतिष्य उपाय

संसार में सभी को कभी न कभी ऋण यानि कर्ज लेने की आवश्यकता पड़ती है। अधिकतर लोग कर्ज लेकर उलझ जाते है तथा उनका कर्ज कभी समाप्त ही नहीं होता वह जीवनभर कर्ज में ही डूबे रहते है, कई बार तो कर्ज कई पुश्तों तक चलता है। आखिर क्या है, इसका कारण? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल ग्रह कर्ज का मूल कारण होता है। मंगल अष्टम हो नीच का हो या शत्रु राशि में हो तो ऋण से जातक परेशान हो जाता है। मंगलवार को ऋण लेने वाला सदैव ऋणी बना रहता है, उसका यह कर्ज संतान भी नही उतार पाती। अत: मंगलवार को कर्ज लेने से बचें। इसी तरह बुधवार को किसी को न कर्ज न देवें अन्यथा कर्ज वापस मिलने में परेशानी आ जाती है। रोजाना इसका पाठ करने से ऋण समाप्त होता है। ऋणमोचन मंगल स्तोत्रम् मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद:। स्थिरामनो महाकाय: सर्वकर्मविरोधक:।। लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां। कृपाकरं। वैरात्मज: कुजौ भौमो भूतिदो भूमिनंदन:।। धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्। कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम्। अंगारको यमश्चैव सर्वरोगापहारक:। वृष्टे: कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रद:।। एतानि कुजनामानि नित्यं य: श्रद्धया पठेत्। ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्रुयात् ।। स्तोत्रमंगारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभि:। न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्।। अंगारको महाभाग भगवन्भक्तवत्सल। त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय:।। ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यव:। भयक्लेश मनस्तापा: नश्यन्तु मम सर्वदा।। अतिवक्र दुराराध्य भोगमुक्तजितात्मन:। तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।। विरञ्चि शक्रादिविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा। तेन त्वं सर्वसत्वेन ग्रहराजो महाबल:।। पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गत:। ऋणदारिद्रयं दु:खेन शत्रुणां च भयात्तत:।। एभिद्र्वादशभि: श्लोकैर्य: स्तौति च धरासुतम्। महतीं श्रियमाप्रोति ह्यपरा धनदो युवा:। ।। इति श्रीस्कन्दपुराणे भार्गवप्रोक्त ऋणमोचन मंगलस्तोत्रम् ।।

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