Wednesday, 2 September 2015

जहां जीवन से भय, बाधा दूर करते हैं शनिदेव

हिन्दू धर्म अनुसार नवग्रहों में शनिग्रह न्याय के देवता हैं। इसलिए ऐसा माना जाता है कि शनिदेव इस जगत के सभी प्राणियों को दण्डित करते हैं और वह इस कार्य को बहुत क्रूरता से करते हैं। यही कारण है कि शनिदेव को पीड़ा देने वाला ग्रह माना जाता है। किंतु इन बातों से यह भी स्पष्ट है कि चूंकि शनि न्याय के देवता है और न्याय जब भी होता है वह उचित-अनुचित, सही-गलत, नैतिक-अनैतिक या पाप-पुण्य के आधार पर ही होता है। इसलिए शनिदेव का दण्ड का आधार भी यही सब बातें होती हैं। हर व्यक्ति से जाने-अनजाने कोई न कोई अनुचित कार्य, विचार या व्यवहार होता है। इनके बुरे फल या परिणाम आने पर हम स्वयं को निर्दोष मानकर ही चलते हैं और शनिदेव को सभी दु:खों का कारण मान बैठते हैं। वास्तव में यह मानकर ही हम अपने आचरण को पवित्र बना सकते और दु:खों और पीड़ा से मुक्त हो सकते हैं कि अपने मन, वचन या कर्म में आए दोष ही हमारी पीड़ा का मूल कारण है। जिससे शनि के दण्ड के रुप में हम प्रभावित हुए हैं। अपने दोष मिटने पर ही यही शनिदेव हमारे लिए कल्याणकारी और हितकारी बन जाते हैं। इन बातों का उद्देश्य ज्योतिष विज्ञान को नकारना नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति को यह प्रेरणा देना है कि जीवन में खुशी और प्रसन्नता के लिए सदा अच्छे कर्मों और विचारों में ही अपनी ऊर्जा व्यय करे।
भारतीय कालगणना और ज्योतिष विज्ञान आज पूरी दुनिया में हो रही अंतरिक्ष विज्ञान की प्रगति का आधार है। इसके अनुसार ग्रह का मूल अर्थ ही होता है असर करने वाला या प्रभाव डालने वाला। ज्योतिष विद्या मूलत: ग्रहों की चाल और उनके चर-अचर जगत पर पडऩे वाले अच्छे या बुरे असर को जानने का विज्ञान है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार नवग्रह एक दूसरे पर अपना प्रभाव डालते हैं। जिसके कारण कोई ग्रह दूसरे ग्रह के साथ अनुकूल होने पर अच्छा फल देते हैं और प्रतिकूल होने पर बुरे परिणाम प्राप्त होते हैं। यह ठीक उसी तरह है जैसे किसी भी व्यक्ति का जीवन उससे जुड़े अन्य लोगों के कार्य-व्यवहार से प्रभावित होता है और इससे उस व्यक्ति की अच्छी या बुरी छबि बनती है। यही बात शनि ग्रह के बारे में कही जा सकती है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जब शनि अन्य ग्रहों के साथ विपरीत स्थिति में होते हैं तो व्यक्ति का समय भी विपरीत हो जाता है, किंतु दूसरे ग्रहों या नक्षत्र विशेष के साथ अनुकूल होने पर यही शनि अपार सुख देते हैं।
शनि की साढ़े साती का संबंध भी उसके द्वारा सूर्य का एक चक्कर लगाने में बिताए वाले समय से ही है। यह समय ३० वर्ष का होता है। इस दौरान वह सभी १२ राशियों में से हर राशि में गुजरने में ढाई वर्ष लगाता है। शनि का अच्छा या बुरा प्रभाव एक राशि की पहले वाली राशि में आने से लेकर उसी राशि के बाद आने वाली राशि में ढाई वर्ष का समय गुजारने तक रहता है। इस प्रकार एक राशि पर इसका प्रभाव साढ़े सात साल तक रहता है। लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि यह समय बुरा ही गुजरे। अनेक पौराणिक प्रसंगों को अन्यथा अर्थों में प्रस्तुत करते चले आने से भी लोगों के मन में इस काल और शनिदेव को लेकर पीड़क की छबि उतरी। जो सर्वथा अनुचित है। इसलिए जब भी शनिदेव का पूजन या दर्शन करें तो वह भय से न करने के बजाय भाव से करें। भय मात्र अपने बुरे कर्म और विचारों से करें, क्योंकि तभी शनि की दृष्टि वक्र हो जाती है। क्योंकि वह न्याय के देवता हैं। इन्हीं की आराधना का स्थान है शनि शिंगणापुर का शनि मन्दिर। जहां दर्शन से भय, संशय से पैदा हुई मानसिक और शारीरिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

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