Wednesday, 2 September 2015

असहनीय पीड़ाओं से रक्षा करे शनि व्रत

हिन्दू धर्म में शनि ग्रह को न्यायधीश माना जाता है। वह किसी भी व्यक्ति को बुरे कर्मों के लिए दण्ड देने वाले दण्डाधिकारी के रुप में रुप में भी जाने जाते हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शनि कुण्डली में अन्य ग्रहों के साथ अच्छे योग होने पर शुभ फल देता है। वहीं अन्य ग्रहों के साथ बुरे योग होने पर बुरे फल देता है। प्रत्येक राशि में शनि ढाई वर्ष तक रहता है। किंतु शनि का प्रभाव किसी राशि की अगली राशि में प्रवेश से लेकर उसी राशि की पिछली राशि से निकलने तक दूसरों ग्रहों के साथ अच्छे या बुरे योग के आधार पर रहता है। इसलिए शनिवार के दिन शनि की प्रसन्नता के लिए भी इस व्रत का विधान है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शनि ग्रह के शुभ प्रभाव जहां व्यक्ति को सुखों से परिपूर्ण कर देता है वहीं अशुभ प्रभाव से व्यक्ति को असहनीय कष्ट और संकटों से गुजरना होता है।
भविष्यपुराण में लिखी शनिवार के व्रत विधान अनुसार शनिवार के दिन शनिदेव की लोहे से बनी प्रतिमा की पूजा का विधान है। जब शनिवार का संयोग पुष्य और अनुराधा नक्षत्र से बने तो व्रत विशेष फलदायी होता है।
इस दिन प्रात: स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ भगवान शनिदेव की पूजा यथोपचार करना चाहिए।
शनिदेव के पूजन में काले गंध, काले अक्षत, यथा संभव कागलहर या काकमाची के काले फूल, काला तिल, काला, कपड़ा, काली उड़द और तेल अर्पित करना चाहिए।
सायंकाल शनिदेव के सामने घर या मंदिर में जाकर तेल का दीपक प्रज्जवलित करना चाहिए। भोग में तेल से बनी और काली सामग्री चढ़ाना चाहिए। शनिदेव से अपने बुरे कर्मों और अपराधों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए।
शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव की शांति के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराकर काली वस्तुओं या लोहे से बनी वस्तुओं के दान का भी विधान है। ब्रह्मभोज के बाद ही व्रती को रात्रि को एक बार बिना नमक भोजन करना चाहिए। ऐसे सात शनिवार को अखंडित व्रत करना चाहिए। इससे शनि ग्रह के कुण्डली में बने बुरे योग और दोष की शांति होती है और ग्रह बाधा नष्ट होती है। साथ ही साढ़े सात साल के दौरान शनि ग्रह के बुरे प्रभाव से आने वाले अनिष्ट योग और पीड़ाओं को टाला जा सकता है।

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