Friday, 21 August 2015

ल्यूकोडर्मा - ज्योतिषीय विश्लेषण

हमारी त्वचा की दो परते होती हैं बाहरी परत व भीतरी परत। भीतरी परत के नीचे के भाग मे मेलानोफोर नामक कोशिका मे एक तत्व मेलानिन होता हैं जिसका मुख्य कार्य हमारी त्वचा को प्राकतिक वर्ण अथवा रंग प्रदान करना होता है। जब यह तत्व किसी भी प्रकार से विकृत हो जाता हैं तब स्वित्र यानि ल्यूकोडर्मा नामक रोग हो जाता हैं जिसे आम बोलचाल की भाषा मे सफ़ेद दाग अथवा फुलेरी भी कहाँ जाता हैं।
मेलानिन नाम के तत्व त्वचा के भीतर नीचे की सतह मे उत्पन्न होकर ऊपर की ओर आकर त्वचा को प्राकतिक रंग प्रदान करते हैं। त्वचा के जिन भागो मे इस तत्व की कमी या अभाव किसी भी वजह से होता हैं तो वह भाग बाहरी त्वचा मे सफ़ेद दाग के रूप मे दिखाई देने लगता हैं। आयुर्वेद में इस रोग को अनुचित खान पान के कारण होने वाले रोगो की श्रेणी मे रखा गया हैं जिसके अनुसार कफ की अधिकता के कारण त्वचा की छोटी छोटी शिराओ मे अवरोध होने से मेलानिन तत्व उत्पन्न नहीं हो पाता हैं और यह रोग जन्म ले लेता है।
ज्योतिषीय दृष्टी से देखने पर हमें इस रोग को देखने हेतु निम्न भाव व ग्रहो का अध्ययन करना चाहिए -
भाव-लग्न, षष्ठ व अष्टम भाव
ग्रह-सूर्य, बुध, मंगल, शुक्र व लग्नेश
लग्न भाव हमारे शरीर को दर्शाता हैं हमारे शरीर मे होने वाले किसी भी प्रकार के विकार व बदलाव को हम लग्न पर पडऩे वाले प्रभाव से ही देखते हैं। इसी लग्न से हम सामान्य भौतिक स्वास्थ्य को देखते हैं।
षष्ठ भाव मुख्यत; किसी भी प्रकार के रोगो हेतु इस भाव को अवश्य देखा जाता हैं इसी भाव से बीमारी की अवधि का भी पता चलता हैं, बीमारी छोटी होगी या बड़ी यह भी इसी भाव द्वारा जाना जाता हैं।
अष्टम भाव यह बीमारी के दीर्घकालीन प्रभाव को बताता हैं इसी भाव से बड़ी बीमारी का भी पता चलता है।
सूर्य ग्रह- सूर्य को लग्न का व आरोग्य का कारक माना जाता हैं इसी सूर्य से हम व्यक्ति विशेष का तेज व आत्मविश्वास भी देखते हैं इस बीमारी के होने से व्यक्ति आत्महीनता महसूस करने के कारण आत्मविश्वास खोने लगता हैं। सूर्य का किसी भी रूप मे पाप प्रभाव मे होना या अशुभ होना इस बीमारी का एक कारण हो सकता है।
बुध ग्रह- यह ग्रह हमारी बाहरी अथवा ऊपरी त्वचा का कारक माना जाता हैं इसी ऊपरी त्वचा पर इस बीमारी के लक्षण अथवा सफ़ेद धब्बा आने पर बीमारी का पता चलता है। किसी भी प्रकार के बाहरी प्रभाव का पता भी इसी त्वचा कारक से चलता हैं इसलिए इस बीमारी मे इसका अशुभ होना अवश्यंभावी है।
लग्नेश - शरीर का प्रतिनिधित्व करता हैं इस ग्रह का किसी भी रूप से पीडि़त होना कोई भी बीमारी होने के लिए आवश्यक हैं जब तक लग्नेश पीडि़त नहीं होगा शरीर में बीमारी नहीं हो सकती।
मंगल शरीर में उन तत्वो का निर्माण करने मे सहायक होता हैं जो त्वचा को रंग प्रदान करते हैं। यही मंगल त्वचा में किसी भी प्रकार के दाग-धब्बो का कारक भी होता है। खुजली खारिश किसी भी प्रकार के फोड़े फुंसी व संक्रमण को इसी मंगल गृह से देखा जाता हैं अत: इसका भी किसी ना किसी पाप या अशुभ प्रभाव मे होना ज़रूरी है।
शुक्र ग्रह- यह ग्रह त्वचा की सुंदरता, चमक व निखार का कारक हैं जिस जातक का शुक्र जितना अच्छा होता हैं उसकी त्वचा मे उतनी ही चमक होती हैं इस बीमारी के कारण त्वचा की चमक नहीं रहती जिससे यह ज्ञात होता हैं की शुक्र ग्रह को भी अशुभ या पाप प्रभावित होना चाहिए।
Pt.P.S.Tripathi
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