जब से मनुष्य ने समाज बनाना आरंभ किया, सामाजिक व्यवस्था लागू की, रोगों से बचाव के बारे में सोचा, तभी से उसने अताकिकज़्ता के काले सायों के कारण खोजना भी शुरू कर दिया। रोगों आरै विकारों से बचाव के उपाय जब मनुष्य को अपनी समझ से परे प्रतीत होने लगे संभवत: तभी जादू टोने, शामानी धमज़् और अन्य चमत्कारिक उपचार विधियां पनपने लगीं। मानसिक रोगों की गुत्थियां सलुझाने की दिशा में चाहे अभी अधूरी ही क्यों न हो अदभुत पग्रति हुई है। फिर भी विश्व के अनेक भागों में स्त्री-पुरूष अब तक अतीन्दिय्र प्रभावों की छाया में जी रहे हैं। इसी सदंभज़् में नीचे चार रोग विवरण दिए जा रहे हैं जिनसे शामानी धमज़् और टोना-टोटका की कायज़् प्रणाली पर पक्राश पडत़ा है। इन विवरणों का अध्ययन करने के पश्चात् हम यह साचेंगे कि प्रेत जगत के ये पोंगापंथी विश्वास आज की प्रगतिशील दुनिया में आखिऱ क्यों मौजूद हैं और यह भी कि आज का आदमी इन प्रेत छायाओं से निजात पाने में लाचार क्यों है।
सीधी दूरी के हिसाब से, दिल्ली से लगभग 160 किलामीटर दूर एक छोटा गांव है। गांव के मुखिया सुरेन्द्र चौधरी हैं। आज गांव का हर व्यक्ति उनके घर पहुंच रहा है। उनकी बहू मीरा की देह में एक बुरी आत्मा ने प्रवेश कर लिया है। मीरा पूरी तरह उसके प्रभाव में है। उसकी देह झूल रही है, चेहरा सुरमई हो गया है, बाल बिखरे हैं और आखें लाल हैं। वह अनगज़्ल प्रलाप कर रही है, क्रोध में चीख रही है और पूरी तरह आपे से बाहर हो गई है। गांव का एक बजुगज़् उससे पूछता है कि वह कौन है उसने मीरा को वशीकृत क्यों किया है और उसकी मंशा क्या है। सवाल से चौंक कर आत्मा जोंरों से अट्टहास करती है और कहती है 'अच्छा तो तुम यह जानना चाहते हो कि मैं कौन हूं? मैं रत्ना हूं, मीरा की सहेलीÓ एकत्रित लोगों में सन्नाटा छा जाता है। रत्ना की मृत्यु हो चुकी है। सात माह पूवज़् उसने कुएं में कूद कर अपनी जान दे दी थी। वही बुजुगज़् फिर सवाल करता है, 'तुम यहां क्यों आई हो?Ó रत्ना की आत्मा मुस्कराती है और कहती है, 'मैं मीरा के पति को ले जाने के लिए आई हूं। वह आदमी बुरा है वह मेरी सहेली को पीटता है और उसके साथ जानवरों जैसा सुलूक करता है। उसमें आत्मा नहीं है उसे मरना ही होगा।Ó
पूरा एकत्रित जनसमूह स्तब्ध रह जाता है। आत्मा का प्रलाप जारी रहता है, 'जाओ मेरी सहेली की सास को लाओ, डायन है वो। वही है जिसके उकसाने पर मेरी सहेली के आदमी के सिर पर शैतान सवार हो जाता है। लाओ मैं उसकी जब़ान खींच लूंगी।Ó लोगों की कानाफूसी बढ़ जाती है। भीड़ में ऐसी अनेक स्त्रियां हैं जिन्हें मीरा की सास से अपने हिसाब चुकता करने हैं। वे भीतर ही भीतर यह चाहती हैं कि आत्मा जो भी कह रही है, कर दिखाए। वातालाज़्प करने वाला बजुगज़् सयाना है। वह कहता है, 'अगर तुम मीरा के पति और सास को मार डालोगी तो मीरा अकेली पड़ जाएगी। ऐसा तो तुम भी नहीं चाहोगी। हम इस बात का ध्यान रखेगे कि वो तुम्हारी सहेली के प्रति आगे से दुव्यवहार न करें। अगर उन्होने फिर भी अपना रवैया नहीं बदला तो जो तुम्हारे मन में आए वह करना।Ó
पूरा एकत्रित जनसमूह स्तब्ध रह जाता है। आत्मा का प्रलाप जारी रहता है, 'जाओ मेरी सहेली की सास को लाओ, डायन है वो। वही है जिसके उकसाने पर मेरी सहेली के आदमी के सिर पर शैतान सवार हो जाता है। लाओ मैं उसकी जब़ान खींच लूंगी।Ó लोगों की कानाफूसी बढ़ जाती है। भीड़ में ऐसी अनेक स्त्रियां हैं जिन्हें मीरा की सास से अपने हिसाब चुकता करने हैं। वे भीतर ही भीतर यह चाहती हैं कि आत्मा जो भी कह रही है, कर दिखाए। वातालाज़्प करने वाला बजुगज़् सयाना है। वह कहता है, 'अगर तुम मीरा के पति और सास को मार डालोगी तो मीरा अकेली पड़ जाएगी। ऐसा तो तुम भी नहीं चाहोगी। हम इस बात का ध्यान रखेगे कि वो तुम्हारी सहेली के प्रति आगे से दुव्यवहार न करें। अगर उन्होने फिर भी अपना रवैया नहीं बदला तो जो तुम्हारे मन में आए वह करना।Ó
आत्मा कुछ नरम पडती है, 'तमु वचन देते हो?Ó 'हां!Ó, बजुगज़् की इस आवाज़ के साथ भीड़ में बहुत सारे लोग हामी भर देते हैं। आत्मा लौट जाती है। मीरा चेतना खोकर धरती पर गिर जाती है। दो प्रौढ़ महिलाएं उस पर ठंडे पानी के छींटे देती हैं। तीसरी उसकी बांह में पूजा का धागा बांध देती है। मीरा धीरे से अपनी आखें खोलती हैं वह अपने चारों तरफ़ लोगों की भीड़ देखकर भौचक्की रह जाती है। वह धीमे स्वर में पूछती है, 'क्या हो गया? मैं कहां हूं?Ó उसका पूरा बदन पसीने से भीगा है और उसे जोरों की प्यास महससू हो रही है। औरतें उसकी देखभाल में जुट जाती हैं। धीरे धीरे मीरा का चेहरा सामान्य होने लगता है। किस्सा खत्म हो जाता है। भीड़ छितराने लगी है।
आइए इनका विश्लेशण करें।
आइए इनका विश्लेशण करें।
मीरा के बारे में थोड़ी गहराई से सोचें तो हम समझ जाएंगे कि उस पर किसी भूत वूत का साया नहीं था, बल्कि वह तो डिसोसिएटिव सोमेटाइजेशन यानी वियोजित कायिक विकार का दौरा झेल रही थी। उसका मस्तिष्क उसकी जटिल परिस्थितियों के कारण चकरा गया था। वह अपने माता-पिता की एकमात्र लाड़ली बेटी थी किंतु उसकी शादी के तुरतं बाद दोनों का स्वगज़्वास हो गया था। मीरा समझदार थी पर उसे विवाह के बाद कभी अपनी काबिलियत दिखाने का मौका ही नहीं मिला। उल्टे उसे अपनी सास और पति से बार-बार गहरी मानसिक यंत्रणा मिलती थी जिसके सामने वह लाचार थी। एक दिन उसे अपनी सहेली रत्ना की मौत के बारे में पता चला। जाने अनजाने उसने रत्ना की पहचान को खुद पर ओढ़ लिया जिसके सहारे उसका बरसों का गुबार बाहर निकलने लगा और बदले में उसे अप्रत्याशित रूप से जिन लोगों को वह जानती भी नहीं थी, उन सबकी सहानुभूति मिल गई।
गांव के बड़े बुजुगज़् जो जब तक उसके कष्टों के प्रति आंख मूंदे थे उन्हें उसके सास-ससुर को समझाने बुझाने का बहाना मिल गया। यह सब कुछ मीरा के अवचेतन में घटा। चेतनावस्था में तो वह जानती ही नहीं थी कि क्या कुछ घट चुका है। यह एक इस प्रकार की स्थिति है जिसमें किसी समुदाय के सामाजिक सांस्कृतिक विश्वास कष्ट में घिरी स्त्री की सुरक्षा के काम आए। वैसे अधिकांश स्थितियों में नतीजा़ इतना खुशग़वार नहीं भी होता। इस प्रकार के रूढि़वादी आचारों से कैसे दुष्?परिणाम निकलते हैं यह अन्य तीन दृष्?टांतसें से स्पष्ट हो जाता है।
Pt.P.S.Tripathi
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