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Friday 5 June 2015

सिकलसेल से बचने के ज्योतिषीय उपाय-



सिकल सेल रोग माता-पिता से प्राप्त असामान्य जीन से उत्पन्न आनुवांशिक विकार है। सामान्य लाल रक्त कोशिकाएं, अस्थि-मज्जा में बनती हैं व उभयावतल डिस्क के आकार की होती हैं और रक्तवाहिकाओं में आसानी से प्रवाहित होती हैं, लेकिन सिकल सेल रोग में लाल रक्त कोशिकाएं का आकार अर्धचंद्र/हंसिया(सिकल) जैसा हो जाता है। ये असामान्य लाल रक्त कोशिकाएं कठोर और चिपचिपी होती हैं तथा विभिन्न अंगों में रक्त प्रवाह को अवरुद्ध करती हैं। अवरूद्ध रक्त प्रवाह के कारण तेज दर्द होता है और विभिन्न अंगो को क्षति पहुँचाता है। सिकल सेल जीन मलेरिया के प्रति आंशिक सुरक्षा प्रदान करता है और सामान्यतः मलेरियाग्रस्त क्षेत्रों में पाया जाता है। सिकलसेल होने का ज्योतिषीय कारण है कि जब भी सप्तम भाव, नवम भाव या भावेष छठवे, आठवे या बारहवे बैठ जाए या इन ग्रहों पर राहु की दृष्टि हो जाए अथवा चंद्रमा शनि से पापाक्रांत होकर इन ग्रहों पर अपना असर दिखाए या लग्न में राहु अथवा शनि हो साथ ही शनि, मंगल अथवा चंद्रमा राहु से आक्रांत हो तो ऐसे जातक को सिकलसेल की बीमारी आसानी से पकड़ती है, यदि इसके साथ अष्टम या नवम भाव भी राहु ग्रसित हो अनुवांषिक बीमारी होने की स्थिति बनती है अतः ऐसे जातक कोे सिकलसेल की बीमारी होती है। अतः किसी विद्वान ज्योतिषीय से अपनी कुंडली का विष्लेषण कराकर उपर्युक्त ग्रह स्थिति में से कोई दोष बन रहा हो तो उसका उपयुक्त निदान लेना चाहिए।



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Monday 1 June 2015

कोलेस्ट्राल बढ़ना या शुगर की बीमारी का कारक -शुक्र की दशा का फल


ज्योतिषिय विज्ञान में व्यक्ति को सुख तथा समृद्धि प्रदान कर्ता ग्रह शुक्र को माना जाता है। यदि किसी जातक की कुंडली में शुक्र क्रूर स्थान पर हो तो उसे शुक्र की दशा में विषेश लाभ प्राप्त होता है किंतु यदि शुक्र राहु या सूर्य से आक्रांत हो तो उसके विपरीत प्रभाव के अनुसार सुख में कमी का भी कारण बनता है। किसी भी जातक की कुंडली में शुक्र की दशा में मकान, वाहन घरेलू सुख में वृद्धि के साथ ही शुक्र अपनी दशा का फल अवश्य जातक को दिखाता है वह हैं राजरोग का लगना। राजरोग अर्थात् शुगर, कोलेस्ट्राल, वजन का बढ़ना इत्यादि रोग जिसे आधुनिक भाषा में राजरोग कहा जाता है। किसी जातक की कुंडली में शुक्र की दशा अथवा अंर्तदशा में खान-पान में परिवर्तन, सुख में वृद्धि तथा शारीरिक क्षमता में कमी आने का कारक शुक्र ग्रह है। शुक्र की दशा चलने पर बिना कुंडली की जानकारी के यह जाना जा सकता है कि यदि किसी जातक को खान-पान, घरेलू सुख में वृद्धि तथा मानप्रतिष्ठा में बढ़ोतरी का कारक शुक्र है। अतः इस दशा का विपरीत प्रभाव ताउम्र चलने वाली बिमारियों से भी लगाया जा सकता है। शुक्र की दशा में कोलेस्ट्राल का बढ़ना, शुगर का बढ़ना तथा मोटापा का बढ़ना इत्यादि प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। यदि किसी को इस प्रकार से सुख में वृद्धि हो तो उसे शुक्र के विपरीत प्रभाव अर्थात् बिमारियों से बचाव हेतु ज्यादा मेहनत व्यायाम, तथा खान-पान में सर्तकता बरतने के साथ माता दुर्गा जी के दर्शन करना तथा दुर्गा कवच का पाठ करना चाहिए जिससे शुभ प्रभाव में वृद्धि , सुख में वृद्धि तथा अशुभ प्रभाव में कमी अर्थात् बिमारियों से बचाव में सहायता प्राप्त हो सके।

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मधुमेह की बीमारी और ज्योतिष विश्लेषण



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मधुमेह या चीनी की बीमारी एक खतरनाक रोग है। बीमारी में हमारे शरीर में अग्नाशय द्वारा इंसुलिन का स्त्राव कम हो जाने के कारण होती है। रक्त में ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है, साथ ही इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा के अवयव भी असामान्य हो जाते हैं। धमनियों में बदलाव होते हैं। इन मरीजों में आँखों, गुर्दों, स्नायु, मस्तिष्क, हृदय के क्षतिग्रस्त होने से इनके गंभीर, जटिल, घातक रोग का खतरा बढ़ जाता है।
मधुमेह होने पर शरीर में भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करने की सामान्य प्रक्रिया तथा होने वाले अन्य परिवर्तनों का विवरण इस प्रकार से है। किया गया भोजन पेट में जाकर एक प्रकार के ईंधन में बदलता है जिसे ग्लूकोज कहते हैं। यह एक प्रकार की शर्करा होती है। ग्लूकोज रक्त धारा में मिलता है और शरीर की लाखों कोशिकाओं में पहुंचता है। अग्नाशय वह अंग है जो रसायन उत्पन्न करता है और इस रसायन को इंसुलिन कहते हैं। इसुलिन भी रक्त धारा में मिलता है और कोशिकाओं तक जाता है। ग्लूकोज से मिलकर ही यह कोशिकाओं तक जा सकता है। शरीर को ऊ र्जा देने लिए कोशिकाएं ग्लूकोज को उपापचित (जलाती) करती है। ये प्रक्रिया सामान्य शरीर में होती हैं।
मधुमेह होने पर शरीर को भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने में कठिनाई होती है। पेट फिर भी भोजन को ग्लूकोज में बदलता रहता है। ग्लूकोज रक्त धारा में जाता है। किंतु अधिकांश ग्लूकोज कोशिकाओं में नहीं जा पाते जिसके कारण इस प्रकार हैं
* इंसुलिन की मात्रा कम हो सकती है।
* इंसुलिन की मात्रा अपर्याप्त हो सकती है किन्तु इससे रिसेप्टरों को खोला नहीं जा सकता है।
* पूरे ग्लूकोज को ग्रहण कर सकने के लिए रिसेप्टरों की संख्या कम हो सकती है।
अधिकांश ग्लूकोज रक्त धारा में ही बना रहता है। यही हायपर ग्लाईसीमिया (उच्च रक्त ग्लूकोज या उच्च रक्त शर्करा) कहलाती है। कोशिकाओं में पर्याप्त ग्लूकोज न होने के कारण कोशिकाएं उतनी ऊर्जा नहीं बना पाती जिससे शरीर सुचारू रूप से चल सके ।
मधुमेह के सामान्य लक्षण:
मधुमेह होने के कई लक्षण रोगी को स्वयं अनुभव होते हैं। इनमें बार-बार पेशाब आते रहना (रात के समय भी), त्वचा में खुजली होना, धुंधला दिखना, थकान और कमजोरी महसूस करना, पैरों का सुन्न होना, प्यास अधिक लगना, कटने/घाव भरने में समय लगना, हमेशा भूख महसूस करना, वजन कम-ज्यादा होना और त्वचा में संक्रमण होना आदि प्रमुख हैं।
उपरोक्त लक्षणों के साथ-साथ यदि त्वचा का रंग, कांति या मोटाई में परिवर्तन दिखे, कोई चोट या फफोले ठीक होने में सामान्य से अधिक समय लगे, कीटाणु संक्र मण या प्रारंभिक चिह्न जैसे कि लालीपन, सूजन, फोड़ा या छूने से त्वचा गरम हो, योनि या गुदा मार्ग, बगलों या स्तनों के नीचे तथा अंगुलियों के बीच खुजलाहट हो, जिससे फफूंदी संक्रमण क ी संभावना का संकेत मिलता है या कोई न भरने वाला घाव हो तो रोगी को चाहिये कि चिकित्सक से शीघ्र संपर्क करें।
मधुमेह रोग के प्रमुख लक्षण ये हैं-
1. रोगी का मुँह खुश्क रहना तथा अत्यधिक प्यास लगना।
2. भूख अधिक लगना।
3. अधिक भोजन करने पर भी दुर्बल होते जाना।
4. बिना कारण रोगी का भार कम होना, शरीर में थकावट साथ-साथ मानसिक चिन्तन एवं एकाग्रता में कमी होना।
5. मूत्र बार-बार एवं अधिक मात्रा में होना तथा मूत्र त्यागने के स्थान पर मूत्र की मिठास के कारण चीटियाँ लगना।
6. शरीर में व्रण अथवा फोड़ा होने पर उसका घाव जल्दी न भरना।
7. शरीर पर फोड़े-फुँसियाँ बार-बार निकलना।
8. शरीर में निरन्तर खुजली रहना एवं दूरस्थ अंगों का सुन्न पडऩा।
9. नेत्र की ज्योति बिना किसी कारण के कम होना।
10. पुरुषत्वशक्ति में क्षीणता होना।
11. स्त्रियों में मासिक स्राव में विकृति अथवा उसका बन्द होना।
कारण:
हमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट एक प्रमुख तत्व है, यही कैलोरी व ऊर्जा का स्रोत है। वास्तव में शरीर के 60 से 70 प्रतिशत कैलोरी इन्हीं से प्राप्त होती है। र्बोहाइड्रेट पाचन तंत्र में पहुंचते ही ग्लूकोज के छोटे-छोटे कणों में बदल कर रक्त प्रवाह में मिल जाते हैं इसलिए भोजन लेने के आधे घंटे भीतर ही रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है तथा दो घंटे में अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है।
दूसरी ओर शरीर तथा मस्तिष्क की सभी कोशिकाएं इस ग्लूक ोज का उपयोग करने लगती हैं। ग्लूकोज छोटी रक्त नलिकाओं द्वारा प्रत्येक कोशिका में प्रवेश करता है, वहां इससे ऊर्जा प्राप्त की जाती है। यह प्रक्रिया दो से तीन घंटे के भीतर रक्त में ग्लूकोज की स्तर को घटा देती है। अगले भोजन के बाद यह स्तर पुन: बढने लगता है। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति में भोजन से पूर्व रक्त में ग्लूकोज का स्तर 70 से 100 मि.ग्रा./डे.ली. रहता है। भोजन के पश्चात यह स्तर 120-140 मि.ग्रा./डे.ली. हो जाता है तथा धीरे-धीरे कम होता चला जाता है।
मधुमेह में इंसुलिन की कमी के कारण कोशिकाएं ग्लूकोज का उपयोग नहीं कर पातीं क्योंकि इंसुलिन के अभाव में ग्लूकोज कोशिकाओं में प्रवेश ही नहीं कर पाता। इंसुलिन एक द्वाररक्षक की तरह ग्लूकोज कशिकाओं में प्रवेश करवाता है ताकि ऊर्जा उत्पन्न हो सके। यदि ऐसा न हो सके तो शरीर की कोशिकाओं के साथ-साथ अन्य अंगों को भी रक्त में ग्लूकोज के बढ़ते स्तर के कारण हानि होती है। यदि स्थिति उस प्यासे की तरह है जो अपने पास पानी होने पर भी उसे चारों ओर ढूंढ़ रहा है।
इन द्वार रक्षकों (इंसुलिन) की संख्या में कमी के कारण रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ कर 140 मि.ग्रा./डे.ली. से भी अधिक हो जाए तो व्यक्ति मधुमेह का रोगी माना जाता है। असावधान रोगियों में यह स्तर बढ़ कर 500 मि.ग्रा./ड़े.ली. तक भी जा सकता है।
मधुमेह रोग जटिलताओं में भरा है। सालों साल यदि रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ा रहे तो प्रत्येक अंग की छोटी रक्त नलिकाएं नष्ट हो जाती हैं जिसे माइक्रो एंजियोपैथी कहा जाता है। तंत्रिकातंत्र की खराबी (न्यूरोपैथी), गुर्दों की खराबी (नेफरोपैथी) व नेत्रों की खराबी (रेटीनोपैथी) कहलाती है। इसके अलावा हृदय रोगों का आक्रमण होते भी देर नहीं लगती।
मधुमेह के प्रकार:
डायबिटीज मेलाइट्स को निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है-
1. आई.डी.डी.एम. इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज मेलाइट्स (इंसुलिन, आश्रित मधुमेह) टाइप-।
2. एन.आई.डी.डी.एम. नॉन इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज मेलाइट्स (इंसुलिन अनाश्रित मधुमेह) टाइप-॥
3. एम.आर.डी.एम. मालन्यूट्रिशन रिलेटिड डायबिटीज मेलाइट्स (कुपोषण जनित मधुमेह)
4. आई.जी.टी.(इंपेयर्ड ग्लूकोज टोलरेंस)
5. जैस्टेशनल डायबिटीज
6. सैकेंडरी डायबिटीज
टाइप-। (इंसुलिन आश्रित मधुमेह)
टाइप-। मधुमेह में अग्नाशय इंसुलिन नामक हार्मोन नहीं बना पाता जिससे ग्लूकोज शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा नहीं दे पाता। इस टाइप में रोगी को रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य रखने के लिए नियमित रूप से इंसुलिन के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं। इसे 'ज्यूविनाइल ऑनसैट डायबिटीज के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग प्राय: किशोरावस्था में पाया जाता है। इस रोग में ऑटोइम्यूनिटी के कारण रोगी का वजन कम हो जाता है।
टाइप-।। (इंसुलिन अनाश्रित मधुमेह)
लगभग 90 मधुमेह रोगी टाइप-2 डायबिटीज के ही रोगी हैं। इस रोग में अग्नाशय इंसुलिन बनाता तो है परंतु इंसुलिन कम मात्रा में बनती है, अपना असर खो देती है या फिर अग्नाशय से ठीक समय पर छूट नहीं पाती जिससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर अनियंत्रित हो जाता है।
इस प्रकार के मधुमेह में जेनेटिक कारण भी महत्वपूर्ण हैं। कई परिवारों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। यह वयस्कों तथा मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों में धीरे-धीरे अपनी जड़े जमा लेता है। अधिक तर रोगी अपना वजन घटा कर, नियमित आहार पर ध्यान दे कर तथा औषधि ले क र इस रोग पर काबू पा लेते हैं।
मधुमेह रोगियों में हृदय-रोग अपेक्षाकृत कम आयु में हो सकते हैं। दूसरा अटैक होने का खतरा सदैव बना रहता है।
प्रबंधन:
मधुमेह होने के कारण पैदा होने वाली जटिलताओं की रोक थाम के लिए नियमित आहार, व्यायाम, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, सफाई और संभावित इनसुलिन इंजेक्शन अथवा खाने वाली दवाइयों (डॉक्टर के सुझाव के अनुसार) का सेवन आदि कुछ तरीके हैं।
1. चिन्ता, तनाव, व्यग्रता से मुक्त रहें।
2. तीन माह में एक बार रक्त शर्करा की जाँच करावें।
3. भोजन कम करें, भोजन में रेशे युक्त द्रव्य, तरकारी, जौ, चने, गेहूँ, बाजरे की रोटी, हरी सब्जी एवं दही क ा प्रचुरमात्रा में सेवन करें। चना और गेहूँ मिलाकर उसके आटे की रोटी खाना बेहतर है। चना तथा गेहूँ का अनुपात 1 /10 हो।
4. हल्का व्यायाम करें, शारीरिक परिश्रम करें अथवा प्रात 4-5 कि मी. घूमें।
5. मधुमेह पीडि़त मनुष्य नियमित एवं संयमित जीवन के लिये विशेष ध्यान रखें।
6. शर्करीय पदार्थों का सेवन बहुत सीमित करें।
7. स्थूल तथा अधिक भार वाले व्यक्ति अपना वजन कम करें।
8. दवाओं का सेवन चिकित्सक की परामर्श से ही करें।
मेथी दाने से डायबिटीज नियंत्रित हो जाती है। रात को 1 चम्मच मेथीदाना 1 गिलास गुनगुने पानी में भिगो दें। सुबह उठकर बिना ब्रस किये मेथीदाना चबा-चबा कर खा लें और पानी को घूँट-घूँट कर पी लें। 2-3 के महीने अन्दर डायबिटीज पूरी तरह नियंत्रित हो जाता है। मधुमेह के रोगियों को 'सूर्य नमस्कार करने से बहुत लाभ होता है।

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