Friday 24 November 2017

विपत्ति काल में रखें सद्गुण और सद्व्यवहार-

जब भी किसी का समय खराब आता है तो उसके जीवन में सद्संग तथा सद्व्यवहार दोनो कम होते हैं या समाप्त होने लगते हैं। बुरे समय का सबसे पहला असर बुद्धि पर पड़ता है और वह बुद्धि को विपरित करके भले को बुरा व बुरे को भला दिखलाने लगता है। एक सही व सामयिक निर्णय समृद्धि के शिखर पर पहुँचा सकता है तो गलत निर्णय बर्बादी के कगार पर ले जा सकता है। कुशलता का अर्थ ही सही काम, सही ढंग से, सही व्यक्तियों द्वारा, सही स्थान व सही समय पर होना है। निर्णय लेना अनिवार्य है किन्तु सही समय पर सही निर्णय लेना सक्षम व कुशल प्रबंधक का ही कार्य है। इसे हम ज्योतिषीय गणना में कालपुरूष की कुंडली द्वार उसके लग्नेष, तृतीयेष, भाग्येष और एकादषेष द्वारा देख सकते हैं। अगर किसी जातक की कुंडली में ये स्थान उच्च तथा उसके स्वामी अनुकूल स्थिति में हों तो उसके निर्णय सही साबित होते हैं और अगर क्रूर ग्रहों से आक्रांत होकर पाप स्थानों पर बैठ जाये तो निर्णय गलत हो जाता है। किंतु कई बार ऐसे विपरीत बैठे ग्रह दषाओं में लिए गए निर्णय बेहद कष्टकारी साबित होते हैं, जिसे कहा जा सकता है कि विनाष काले विपरीत बुद्धि। जैसे किसी की राहु की दषा प्रारंभ हो रही हो या होने वाली हो तो वह नौकरी छोड़ने या व्यापार करने का निर्णय ले ले, जिसमें हानि की संभावना शतप्रतिषत होती है। अतः किसी को अपनो के विरोध का सामना करना पड़े तो उसे ग्रह शांति जरूर करानी चाहिए।

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