Sunday 31 May 2015

जानिये आज के सवाल जवाब 31/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से




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जानिये आज के सवाल जवाब 31/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से



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जानिये आज का राशिफल 31/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से



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पेड़ पौधों से कैसे करें गृह शांति

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पेड़-पौधों पेड़-पौधों जीवन के विभिन्न भागों पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता है, यह प्रभाव सकारात्मक भी होता है और नकारात्मक भी। नकारात्मक प्रभाव को रोकने या कम करने के लिए विभिन्न प्रकार के तरीके अपनाए जाते हैं, कहीं मंत्र जाप की सलाह दी जाती है, कहीं रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है, तो कहीं पर छोटे-छोटे टोटके अपनाए जाते हैं। इनके अलावा कुछ और तरीके भी हैं, जिनका प्रयोग करके ग्रहों से संबंधित समस्याओं को दूर कर सकते हैं और अपने जीवन को बेहतर कर सकते हैं। इन्ही में से एक आसान तरीका है पेड़-पौधों का रोपण और पूजन- तुलसी : परंपराओं और धार्मिक दृष्टिकोण से तुलसी के पौधे को सबसे ज्यादा महत्व प्राप्त है। इसके पत्ते और बीज को खाने से जहां एक तरफ रोगों से मुक्ति मिलती है, वहीं इसको घर में लगाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है। इसको घर के बीचोबीच में लगाना लाभदायक होता है। पूजन-लाभ : इसके नीचे रोज शाम को घी का दीपक जलाने से पारिवारिक अशांति दूर होती है और वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। भगवान विष्णु और हनुमान जी को तुलसी अर्पित करने से आर्थिक बाधाएं दूर होती हैं। अगर शुक्र कमजोर है, तो तुलसी का पौधा लगाकर नियमित रूप से उसकी पूजा-उपासना करनी चाहिए, फायदा मिलेगा। केला : ज्योतिष और धार्मिक रूप से इस पौधे का भी विशेष महत्व है। ग्रहों में इसका संबंध बृहस्पति से जोड़ते हैं और भगवान विष्णु तथा बृहस्पति देवता का स्वरूप माना जाता है। बृहस्पति के कमजोर होने पर इस पौधे को घर में अवश्य लगाना चाहिए। पूजन-लाभ : नित्य प्रात: इसमें जल डालने से अविवाहितों के विवाह में आ रही रुकावटें दूर होती हैं। लेकिन इस पौधे को घर के मुख्य द्वार पर नहीं लगाएं, अन्यथा घर की सुख-शांति में खलल पैदा हो सकता है। बेहतर होगा इसको घर के पीछे की ओर लगाया जाए। अनार : अनार एक ऐसा अदभुत और जादुई पौधा है, जिसको लगाने से घर पर तंत्र-मंत्र और नकारात्मक ऊर्जा असर नहीं कर सकते। ज्योतिष में राहु-केतु को नियंत्रित करने के लिए इस पौधे का प्रयोग करते हैं। यह पौधा इतना महत्वपूर्ण है कि यंत्र लिखने के लिए अनार की कलम का ही प्रयोग किया जाता है। पूजन-लाभ : अनार का पौधा घर के सामने लगाएं तो सर्वोत्तम होगा। घर के बीचोबीच पौधा न लगाएं। अनार के फूल को शहद में डुबाकर नित्यप्रति या फिर हर सोमवार भगवान शिव को अगर अर्पित किया जाए, तो भारी से भारी कष्ट भी दूर हो जाते हैं और व्यक्ति तमाम समस्याओं से मुक्त हो जाता है। शमी : शमी के पौधे के बारे में तमाम भ्रांतियां मौजूद हैं और लोग आम तौर पर इस पौधे को लगाने से डरते-बचते हैं। ज्योतिष में इसका संबंध शनि से माना जाता है और शनि की कृपा पाने के लिए इस पौधे को लगाकर इसकी पूजा-उपसना की जाती है। पूजन-लाभ : इसका पौधा घर के मुख्य द्वार के बाईं ओर लगाना शुभ है। शमी वृक्ष के नीचे नियमित रूप से सरसों के तेल का दीपक जलाएं, इससे शनि का प्रकोप और पीड़ा कम होगी और आपका स्वास्थ्य बेहतर बना रहेगा। विजयादशमी के दिन शमी की विशेष पूजा-आराधना करने से व्यक्ति को कभी भी धन-धान्य का अभाव नहीं होता। पीपल : ग्रहों में इसका संबंध बुध, शनि और बृहस्पति से जोड़ा जाता है। पीपल का वृक्ष घर में या घर के सामने लगाना उचित नहीं माना जाता, क्योंकि यह बड़ा होने पर घर की नींव को नुकसान पहुंचा सकता है, इसीलिए इसे घर में या घर के आसपास लगाने से मना करते हैं। इसे बोनसाई के रूप में, घर के पिछले हिस्से में लगा सकते हैं। पीपल में विष्णु भगवान व अन्य देवों का वास माना जाता है, अत: पीपल का वृक्ष लगाने और लगवाने से पुण्य मिलता है और ग्रहों की बाधा समाप्त होती है। पूजन-लाभ : पीपल को जल चढ़ा कर, उसकी परिक्रमा करने से संतान दोष नष्ट होता है तथा घर में बीमारियां नहीं रहतीं। शनिवार के दिन पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने से दुर्घटना होने से बचाव होता है। हरसिंगार : छोटे-छोटे फूलों वाला और अपनी अदभुत सुगंध के लिए जाना जाने वाला यह पौधा चंद्र से संबंध रखता है। घर के बीचोबीच या घर के पिछले हिस्से में इसको लगाना लाभकारी होता है। इसके पत्तों से जोड़ों का दर्द दूर होता है और इसकी सुगंध से मानसिक शांति मिलती है। पूजन-लाभ : घर में इसका पौधा होने से आर्थिक संपन्नता आती है। हरसिंगार के पौधे की देखभाल में थोड़ी सावधानी रखनी होती हैं, क्योंकि जरा-सी लापरवाही से यह सूख जाता है और इसके सूखने से मन पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता। बेल : बेल यूं तो एक विशाल वृक्ष है, परंतु इसको पौधे के रूप में गमले में घर के मुख्य द्वार पर लगा सकते हैं। बेल का पौधा अत्यंत शक्तिशाली ऊर्जा पैदा करता है, जिससे आयु और स्वास्थ्य की रक्षा होती है। पूजन-लाभ : यह भगवान शिव का अत्यंत प्रिय पौधा है। शिव जी को बेल पत्र अर्पित करने से जीवन और आयु की रक्षा की जा सकती है। ज्योतिष में यह पौधा मुख्य रूप से शुक्र और चंद्र को नियंत्रित करता है। गुडहल : यह पौधा ज्योतिष में सूर्य और मंगल से संबंध रखता है, लेकिन ज्योतिषीय दृष्टि से वही पौधा उपयोगी है, जिसका फूल लाल रंग का हो। गुडहल का पौधा घर में कहीं भी लगा सकते हैं, परंतु ध्यान रखें कि उसको पर्याप्त धूप मिलना जरूरी है। पूजन-लाभ : गुडहल का फूल जल में डालकर सूर्य को अघ्र्य देना आंखों, हड्डियों की समस्या और नाम एवं यश प्राप्ति में लाभकारी होता है। मंगल ग्रह की समस्या, संपत्ति की बाधा या कानून संबंधी समस्या हो, तो हनुमान जी को नित्य प्रात: गुडहल का फूल अर्पित करना चाहिए। इस प्रकार विभिन्न प्रकार के पौधे लगाकर हम पर्यावरण को भी बेहतर कर सकते हैं और अपने ग्रहों को भी अपने अनुकूल बना सकते हैं।

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जानिये आज 31/05/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से"क्या आप सारा दिन थकान महसूस करते हैं "






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जानिये आज का पंचांग 31/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से


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घर में बगीचे वास्तु की नज़र से



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वास्तु ऐसा माध्यम है जिससे आप जान सकते हैं कि किस प्रकार आप अपने घर को सुखी व समृद्धशाली बना सकते हैं। नीचे वास्तु सम्मत ऐसी ही जानकारी दी गई है जो आपके लिए उपयोगी होगी-
1- ऐसे मकान जिनके सामने एक बगीचा हो, भले ही वह छोटा हो, अच्छे माने जाते हैं, जिनके दरवाजे सीधे सड़क की ओर खुलते हों क्योंकि बगीचे का क्षेत्र प्राण के वेग के लिए अनुकूल माना जाता है। घर के सामने बगीचे में ऐसा पेड़ नहीं होना चाहिए, जो घर से ऊंचा हो।
2- वास्तु नियम के अनुसार हर दो घरों के बीच खाली जगह होना चाहिए। हालांकि भीड़भाड़ वाले शहर में कतारबद्ध मकान बनाना किफायती होता है लेकिन वास्तु के नियमों के अनुसार यह नुकसानदेय होता है क्योंकि यह प्रकाश, हवा और ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के आगमन को रोकता है।
3- आमतौर पर उत्तर दिशा की ओर मुंह वाले कतारबद्ध घरों में तमाम अच्छे प्रभाव प्राप्त होते हैं जबकि दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाले मकान बुरे प्रभावों को बुलावा देते हैं। हालांकि पूर्व और पश्चिम की ओर मुंह वाले कतारबद्ध मकान अनुकूल स्थिति में माने जाते हैं क्योंकि पश्चिम की ओर मुंह वाले मकान सामान्य ढंग के न्यूट्रल होते हैं।
4- पूर्व की ओर मुंह वाले घर लाभकारी होते हैं। कतार के आखिरी छोर वाले मकान लाभकारी हो सकते हैं यदि उनका दक्षिणी भाग किसी अन्य मकान से जुड़ा हो या पूरी तरह बंद हो। ऐसी स्थिति में जहां कतारबद्ध घर एक-दूसरे के सामने हों, वहां सीध में फाटक या दरवाजे लगाने से बचना चाहिए।
5- यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दक्षिण की ओर मुंह वाले घर यदि सही तरीके से बनाए जाएं तो लाभकारी परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। घर और वास्तु का गहरा नाता है। यही वजह है कि अपने सपनों का घर बनवाते हुए लोग आर्किटेक्ट से सुझाव लेना नहीं भूलते। कई बार वास्तु के हिसाब से चूक होने पर लोग घर में तोड़-फोड़ कराकर इसे दुरुस्त करने में हजारों-लाखों रुपये बर्बाद कर देते हैं। शायद आपको मालूम न हो, इस स्थिति में पेड़-पौधे ये नुकसान रोक सकते हैं। ज्योतिष और वास्तु में ये घर को सकारात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत करने वाले बताए गए हैं। बस जरूरत है थोड़ी जानकारी और प्रयास की। यदि आपके घर में वास्तु दोष है तो इसे मिटाने के लिए हरियाली का दामन थामना आपके लिए हर लिहाज से बेहतर विकल्प है।
ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार जीवनदायिनी प्रकृति के सहारे आशियाने को सेहत, सौंदर्य और समृद्धि से सराबोर किया जा सकता है। अगर मकान के खुले स्थान पर बगीचा लगा दें तो पूरा घर तरोताजा हवा एवं प्राकृतिक सौंदर्य से महक उठेगा। वास्तुशास्त्र के नजर से पेड़-पौधे उगाते हैं तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी होगा। चूंकि पेड़-पौधों जीवित होते हैं, इसलिए इनकी जीवंत ऊर्जा का सही उपयोग हमारे शरीर और चित्त को प्रसन्न रख सकता है। बस थोड़ा ध्यान रखना होगा कि पेड़-पौधे वास्तुशास्त्र के लिहाज से लगाए जाएं।
वास्तु और पौधे-
वास्तु में माना जाता है कि सकारात्मक ऊर्जा तरंगें हमेशा पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तथा पूर्वोत्तर से दक्षिण-पश्चिम में नैऋत्य कोण की ओर बहती है। ऐसे में ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व एवं उत्तर की ओर हल्के, छोटे व कम घने पेड़-पौधे उगाए जाएं। ताकि घर में आने वाली सकारात्मक ऊर्जा के रास्ते में कोई अवरोध न हो।
तुलसी बेहद उपयोगी-
इन दिशाओं से होकर घर में आने वाली हवा में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के खातिर तुलसी के पौधे बेहद उपयोगी माने जाते हैं। वास्तु के लिहाज से माना जाता है कि तुलसी के पौधों से होकर आने वाली वायु में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है साथ ही ये शुद्ध व स्वास्थ्यवर्धक भी हो जाती है।
इसके अतिरिक्त इन दिशाओं में अन्य औषधीय पौधों का रोपण भी वास्तु में लाभकारी बताया गया है। घर के पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में पुदीना, लेमनग्रास, खस, धनिया, सौंफ, हल्दी, अदरक आदि की उपस्थिति भी तन-मन को ताजगी देते हुए चुस्ती-फुर्ती और आरोग्य देने वाली मानी जाती है।
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री-
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री भी लोग घर में लगाते हैं। दोनों पौधे वास्तु की दृष्टि से समृद्धि कारक माने जाते हैं। शहर में कई परिवारों ने इन पौधों को अपने घरों में लगा रखा है। क्रिसमस ट्री इसाई परिवारों ने अपने घरों में तो मनी प्लांट का पौधा हर धर्म और जाति के लोगों के घरों में देखा जा सकता है।
खूबसूरत बालकनी-
अपने मकान के मुख्य द्वार के आसपास, पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में बालकनी पर गुलाब, बेला, चमेली, ग्लेडियोलाई, कॉसमोस, कोचिया, जीनिया, गेंदा और सदाबहार जैसे फूलों के पौधे लगाए जा सकते हैं। अगर जगह कम हो तो स्टैंड वाले गमले में इन्हें लगाया जा सकता है।
पश्चिम या दक्षिणमुखी घर होने पर-
घर पश्चिम और दक्षिणमुखी होने की दशा में उसके आगे या मुख्य द्वार की ओर बड़े-बड़े पेड़-पौधों समेत लताओं वाले पौध लगाए जा सकते हैं।
* पेड़ों को घर की दक्षिण या पश्चिम दिशा में लगाएं। पेड़ सिर्फ एक दिशा में ही न लग कर इन दोनों दिशाओं में लगे होने चाहिए।
* एक तुलसी का पौधा घर में जरूर लगाएं। इसे उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्वी दिशा या फिर घर के सामने भी लगा सकते हैं।
* मुख्य द्वार पर पेड़ कभी भी न लगाएं। श्वेतार्क मुख्य द्वार पर लगाना वास्तु की दृष्टि से शुभ फलदायक होता है।
* नीम, चंदन, नींबू, आम, आवला, अनार आदि के पेड़-पौधे घर में लगाए जा सकते हैं।
* काटों वाले पौधे नहीं लगाएं। गुलाब के अलावा अन्य काटों वाले पौधे घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करते हैं।
* ध्यान रखें कि आपके आगन में लगे पेड़ों की गिनती 2, 4, 6, 8.. जैसी सम संख्या में होनी चाहिए, विषम में नहीं।
लोग अपने घरों की फुलवारी में या लॉन में छोटे-छोटे पौधे लगाया करते हैं। भवन में छोटे पौधों का अपने आप में बहुत महत्व होता है। घर में लगाए जाने वाले छोटे पौधों में कई पौधे ऐसे होते हैं जिनका औषधीय महत्व है। साथ ही उनका रसोई या सौंंदर्यवद्र्धन संबंधी महत्व भी है।
आज के समय में स्थान के अभाव में प्राय: लोग गमलों में ही पौधे लगाते हैं या लॉन तथा ड्राइंगरूम में सजाकर रख देते हैं। इन पौधों एवं लताओं की वजह से छोटे फ्लैटों में निवास करने वाले खुद को प्रकृति के नजदीक महसूस करते हैं एवं स्वच्छ हवा तथा स्वच्छ वातावरण का आनंद उठाते हैं।
तुलसी का पौधा इसी प्रकार का एक छोटा पौधा है जिसके औषधीय एवं आध्यात्मिक दोनों ही महत्व हैं। प्राय: प्रत्येक हिन्दू परिवार के घर में एक तुलसी का पौधा अवश्य होता है। इसे दिव्य पौधा माना जाता है। माना जाता है कि जिस स्थान पर तुलसी का पौधा होता है वहां भगवान विष्णु का निवास होता है। साथ ही वातावरण में रोग फैलाने वाले कीटाणुओं एवं हवा में व्याप्त विभिन्न विषाणुओं के होने की संभावना भी कम होती है। तुलसी की पत्तियों के सेवन से सर्दी, खांसी, एलर्जी आदि की बीमारियां भी नष्ट होती हैं।
किस दिशा में लगाए जाएं कौन से पौधे:
वास्तुशास्त्र के अनुसार छोटे-छोटे पौधों को घर की किस दिशा में लगाया जाए ताकि उन पौधों के गुणों को हम पा सकें, इसकी विवेचना यहां की जा रही है।
1. तुलसी के पौधों को यदि घर की उत्तर-पूर्व दिशा में रखा जाए तो उस स्थान पर अचल लक्ष्मी का वास होता है अर्थात उस घर में आने वाली लक्ष्मी टिकती है।
2. घर की पूर्वी दिशा में फूलों के पौधे, हरी घास, मौसमी पौधे आदि लगाने से उस घर में भयंकर बीमारियों का प्रकोप नहीं होता।
3. पान का पौधा, चंदन, हल्दी, नींबू आदि के पौधों को भी घर में लगाया जा सकता है। इन पौधों को पश्चिम-उत्तर के कोण में रखने से घर के सदस्यों में आपसी प्रेम बढ़ता है।
4. घर के चारों कोनों को ऊर्जावान बनाने के लिए गमलों में भारी प्लांट को लगाकर भी रखा जा सकता है। दक्षिण -पश्चिम कोने में अगर कोई भारी प्लांट है तो उस घर के मुखिया को व्यर्थ की चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
5. कैक्टस जैसे रुप के पौधे जिनमें नुकीले कांटे होते हैं उन्हें घर के अंदर लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं।
6. पलाश, नागकेशकर, अरिष्ट, शमी आदि का पौधा घर के बगीचे में लगाना शुभ होता है। शमी का पौधा ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए जो घर से निकलते समय दाहिनी ओर पड़ता हो।
7. घर के बगीचे में पीपल, बबूल, कटहल आदि का पौधा लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार ठीक नहीं। इन पौधों से युक्त घर के अंदर हमेशा अशांति का अम्बार लगा ही रहता है ।
8. फूल के पौधों में सभी फूलों, गुलाब, रात की रानी, चम्पा, जास्मीन आदि को घर के अंदर लगाया जा सकता है किन्तु लाल गेंदा और काले गुलाब को लगाने से चिंता एवं शोक की वृद्धि होती है।
9. शयनकक्ष के अंदर पौधे लगाना अच्छा नहीं माना जाता। बेल (लता) वाले पौधों को अगर शयनकक्ष के अंदर दीवार के सहारे चढ़ाकर लगाया जाता है तो इससे दाम्पत्य संबंधों में मधुरता एवं आपसी विश्वास बढ़ता है।
10. अध्ययन कक्ष के अंदर सफेद फूलों के पौधे लगाने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। अध्ययन कक्ष के पूर्व एवं दक्षिण के कोने में गमले को रखा जाना चाहिए।
11. रसोई घर के अंदर गमलों में पुदीना, धनिया, पालक, हरी मिर्च आदि के छोटे-छोटे पौधों को लगाया जा सकता है। वास्तुशास्त्र एवं आहार विज्ञान के अनुसार जिन रसोईघरों में ऐसे पौधे होते हैं वहां मक्खियां एवं चींटियां अधिक तंग नहीं करतीं तथा वहां पकने वाली सामग्री सदस्यों को स्वस्थ रखती है।
12. घर के अंदर कंटीले एवं वैसे पौधे जिनसे दूध निकलता हो, नहीं लगाने चाहिएं। ऐसे पौधों के लगाने से घर के अंदर वैमनस्य का भाव बढ़ता है एवं वहां हमेशा अशांति का वातावरण बना रहता है।
13. बोनसाई पौधों को घर के अंदर लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं क्योंकि बोनसाई को प्रकृति के विरुद्ध छोटा कद प्रदान किया जाता है। जिस प्रकार बोनसाई का विस्तार संभव नहीं होता, उसी प्रकार उस घर की वृद्धि भी बौनी ही रह जाती है।
१४. छोटे पौधों को उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। इस बात का खयाल रखें कि उत्तर-पूर्व में खुला स्थान बना रहे। लम्बे वृक्षों को बगीचे/भवन के पश्चिम, दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगाएं। इन्हें लगाते हुए यह खयाल रखें कि ये भवन की इमारत से पर्याप्त दूरी पर हों व सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच इनकी छाया इमारत पर न पड़े।
१५. विशाल दरख्तों जैसे पीपल, नीम आदि को भवन से पर्याप्त दूरी पर लगाना चाहिए, क्योंकि इनकी जड़ें भवन की नींव को क्षति पहुंचा सकती हैं। इस बात का भी खयाल रखें कि इन दरख्तों की छाया सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच इमारत पर न पड़े।
१६. कांटेदार पौधों को घर में कभी नहीं लगाना चाहिए क्योंकि ऐसे पौधे नकारात्मक ऊर्जा के वाहक होते हैं। खासकर कैक्टस तो बिल्कुल भी नहीं। इनकी घर में उपस्थिति अशुभ मानी जाती है। अगर आपके घर में कोई कांटेदार पौधा है भी, तो उसे तुरंत उखाड़ फेंकें।
१७. लताओं यानी बेलनुमा पौधों को आंगन या घर की दीवार पर न फैलने दें। इन्हें बगीचे में ही लगाएं और इन्हें अपनी सहायता से आप फैलने दें, लेकिन इन्हें बढऩे के लिए घर या आंगन की दीवार का सहारा न दें। मनी प्लांट अवश्य घर के भीतर लगाया जा सकता है। जो वृक्ष सांप, मधुमक्खी, कीड़े, चीटिंयों, उल्लू आदि को आमंत्रित करते हैं, ऐसे वृक्षों को बगीचे में न लगाएं।


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Saturday 30 May 2015

जन्म कुंडली से संतान सुख



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जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार
स्त्री और पुरुष संतान प्राप्ति की कामना के लिए विवाह करते हैं] वंश परंपरा की वृद्धि के लिए एवaaaaaaa परमात्मा को श्रृष्टि रचना में सहयोग देने के लिए यह आवश्यक भी हैa] पुरुष पिता बन कर तथा स्त्री माता बन कर ही पूर्णता का अनुभव करते हैं] धर्म शास्त्र भी यही कहते हैं कि संतान हीन व्यक्ति के यज्ञ दान एव अन्य सभी पुण्यकर्म निष्फल हो जाते हैंA महाभारत के शान्ति पर्व में कहा गया है कि पुत्र ही पिता को पुत् नामक नर्क में गिरने से बचाता है] मुनिराज अगस्त्य ने संतानहीनता के कारण अपने पितरों को अधोमुख स्थिति में देखा और विवाह करने के लिए प्रवृत्त हुए प्रश्न मार्ग के अनुसार संतान प्राप्ति कि कामना से ही विवाह किया जाता है जिस से वंश वृद्धि होती है और पितर प्रसन्न होते हैंA
जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार
प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया गया है भाग्य में संतान सुख है या नहीं पुत्र होगा या पुत्री अथवा दोनों का सुख प्राप्त होगा एo संतान कैसी निकलेगी एo संतान सुख कब मिलेगा और संतान सुख प्राप्ति में क्या बाधाएं हैं और उनका क्या उपचार है इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति और पत्नी की जन्म कुंडली के विस्तृत व गहन विश्लेषण से प्राप्त हो सकता है
जन्म कुंडली के किस भाव से विचार करें
जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो एo उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है] भाव स्थित राशि व उसका स्वामी एo भाव कारक बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है] पति एव पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए] पंचम भाव से प्रथम संतान का एo उस से तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए] उस से आगे की संतान का विचार भी इसी क्रम से किया जा सकता है
संतान सुख प्राप्ति के योग
पंचम भाव में बलवान शुभ ग्रह गुरु एo शुक्र एo बुध एo शुक्ल पक्ष का चन्द्र स्व मित्र उच्च राशि नवांश में स्थित हों या इनकी पूर्ण दृष्टि भाव या भाव स्वामी पर हो एo भाव स्थित राशि का स्वामी स्व मित्र एo उच्च राशि नवांश का लग्न से केन्द्र एo त्रिकोण या अन्य शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो एo संतान कारक गुरु भी स्व एमित्र एउच्च राशि दृ नवांश का लग्न से शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो ए गुरु से पंचम भाव भी शुभ युक्त दृदृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की प्राप्ति होती है द्य शनि मंगल आदि पाप ग्रह भी यदि पंचम भाव में स्व एमित्र एउच्च राशि दृ नवांश के हों तो संतान प्राप्ति करातें हैं द्य पंचम भाव एपंचमेश तथा कारक गुरु तीनों जन्मकुंडली में बलवान हों तो संतान सुख उत्तम एदो बलवान हों तो मध्यम एएक ही बली हो तो सामान्य सुख होता है सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में बलवान हो एo शुभ स्थान पर हो तथा सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की अनुभूति होती है द्य प्रसिद्ध फलित ग्रंथों में वर्णित कुछ प्रमुख योग निम्नलिखित प्रकार से हैं जिनके जन्मकुंडली में होने से संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती हैA
१ जन्मकुंडली में लग्नेश और पंचमेश का या पंचमेश और नवमेश का युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ भावों में हो]
२ लग्नेश पंचम भाव में मित्र एo उच्च राशि नवांश का हो]
३ पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो]
४ पंचम भाव पर बलवान शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो द्य
५ जन्म कुंडली में गुरु स्व एo मित्र एउच्च राशि नवांश का लग्न से शुभ भाव में स्थित हो द्य
६ एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो कर स्थित हों द्य
संतान सुख हीनता के योग
लग्न एवम चंद्रमा से पंचम भाव में निर्बल पाप ग्रह अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में स्थित हों एपंचम भाव पाप कर्तरी योग से पीड़ित हो ए पंचमेश और गुरु अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में लग्न से 6ए8 12 वें भाव में स्थित हों ए गुरु से पंचम में पाप ग्रह हो ए षष्टेश अष्टमेश या द्वादशेश का सम्बन्ध पंचम भाव या उसके स्वामी से होता हो ए सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में 6ए8 12 वें भाव में अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में स्थित हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है द्य जितने अधिक कुयोग होंगे उतनी ही अधिक कठिनाई संतान प्राप्ति में होगी द्य
पंचम भाव में अल्पसुत राशि ; वृष एसिंह कन्या एवृश्चिक द्ध हो तथा उपरोक्त योगों में से कोई योग भी घटित होता हो तो कठिनता से संतान होती है द्य
गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पंचम स्थान शुभ बिंदु से रहित हो तो संतानहीनता होती है द्य
सप्तमेश निर्बल हो कर पंचम भाव में हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है द्य
गुरु एलग्नेश एपंचमेश एसप्तमेश चारों ही बलहीन हों तो अन्पतत्यता होती है द्य
गुरु एलग्न व चन्द्र से पांचवें स्थान पर पाप ग्रह हों तो अन्पतत्यता होती है द्य
पुत्रेश पाप ग्रहों के मध्य हो तथा पुत्र स्थान पर पाप ग्रह हो एशुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो अन्पतत्यता होती है द्य
पुत्र या पुत्री योग
सूर्य एमंगलए गुरु पुरुष ग्रह हैं द्य शुक्र एचन्द्र स्त्री ग्रह हैं द्य बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं द्य संतान योग कारक पुरुष ग्रह होने पर पुत्र तथा स्त्री ग्रह होने पर पुत्री का सुख मिलता है द्य शनि और बुध योग कारक हो कर विषम राशि में हों तो पुत्र व सम राशि में हो तो पुत्री प्रदान करते हैं द्य सप्तमान्शेष पुरुष ग्रह हो तो पुत्र तथा स्त्री ग्रह हो तो कन्या सन्तिति का सुख मिलता है द्य गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पांचवें स्थान पर पुरुष ग्रह बिंदु दायक हों तो पुत्र स्त्री ग्रह बिंदु दायक हो तो पुत्री का सुख प्राप्त होता है द्यपुरुष और स्त्री ग्रह दोनों ही योग कारक हों तो पुत्र व पुत्री दोनों का ही सुख प्राप्त होता है द्य पंचम भाव तथा पंचमेश पुरुष ग्रह के वर्गों में हो तो पुत्र व स्त्री ग्रह के वर्गों में हो तो कन्या सन्तिति की प्रधानता रहती है द्य
पंचमेश के भुक्त नवांशों में जितने पुरुष ग्रह के नवांश हों उतने पुत्र और जितने स्त्री ग्रह के नवांश हों उतनी पुत्रियों का योग होता है द्य जितने नवांशों के स्वामी कुंडली में अस्त एनीच दृशत्रु राशि में पाप युक्त या दृष्ट होंगे उतने पुत्र या पुत्रियों की हानि होगी द्य
संतान बाधा के कारण व निवारण के उपाय
सर्वप्रथम पति और पत्नी की जन्म कुंडलियों से संतानोत्पत्ति की क्षमता पर विचार किया जाना चाहिए द्यजातकादेशमार्ग तथा फलदीपिका के अनुसार पुरुष की कुंडली में सूर्य स्पष्ट एशुक्र स्पष्ट और गुरु स्पष्ट का योग करें द्यराशि का योग 12 से अधिक आये तो उसे 12 से भाग दें द्यशेष राशि ; बीज द्धतथा उसका नवांश दोनों विषम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमताएएक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों सम हों तो अक्षमता होती है द्य इसी प्रकार स्त्री की कुंडली से चन्द्र स्पष्ट एमंगल स्पष्ट और गुरु स्पष्ट से विचार करें द्यशेष राशि; क्षेत्र द्ध तथा उसका नवांश दोनों सम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमताएएक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों विषम हों तो अक्षमता होती है द्य बीज तथा क्षेत्र का विचार करने से अक्षमता सिद्ध होती हो तथा उन पर पाप युति या दृष्टि भी हो तो उपाय करने पर भी लाभ की संभावना क्षीण होती है एशुभ युति दृष्टि होने पर शान्ति उपायों से और औषधि उपचार से लाभ होता है द्य शुक्र से पुरुष की तथा मंगल से स्त्री की संतान उत्पन्न करने की क्षमता का विचार करें द्य पुरुष व स्त्री जिसकी अक्षमता सिद्ध होती हो उसे किसी कुशल वैद्य से परामर्श करना चाहिए द्य
सूर्यादि ग्रह नीच एशत्रु आदि राशि नवांश मेंएपाप युक्त दृष्ट एअस्त एत्रिक भावों का स्वामी हो कर पंचम भाव में हों तो संतान बाधा होती है द्य योग कारक ग्रह की पूजा एदान एहवन आदि से शान्ति करा लेने पर बाधा का निवारण होता है और सन्तिति सुख प्राप्त होता है द्य फल दीपिका के अनुसार रू.
एवं हि जन्म समये बहुपूर्वजन्मकर्माजितं दुरितमस्य वदन्ति तज्ज्ञाः द्य
ततद ग्रहोक्त जप दान शुभ क्रिया भिस्तददोषशान्तिमिह शंसतु पुत्र सिद्धयै द्यद्य
अर्थात जन्म कुंडली से यह ज्ञात होता है कि पूर्व जन्मों के किन पापों के कारण संतान हीनता है द्य बाधाकारक ग्रहों या उनके देवताओं का जाप एदान एहवन आदि शुभ क्रियाओं के करने से पुत्र प्राप्ति होती है द्य
सूर्य संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पितृ पीड़ा है द्य पितृ शान्ति के लिए गयाजी में पिंड दान कराएं द्य हरिवंश पुराण का श्रवण करें द्यसूर्य रत्न माणिक्य धारण करें द्य रविवार को सूर्योदय के बाद गेंहुएगुड एकेसर एलाल चन्दन एलाल वस्त्र एताम्बाए सोना तथा लाल रंग के फल दान करने चाहियें द्य सूर्य के बीज मन्त्र ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः के 7000 की संख्या में जाप करने से भी सूर्य कृत अरिष्टों की निवृति हो जाती है द्य गायत्री जाप से ए रविवार के मीठे व्रत रखने से तथा ताम्बे के पात्र में जल में लाल चन्दन एलाल पुष्प ड़ाल कर नित्य सूर्य को अर्घ्य देने पर भी शुभ फल प्राप्त होता है द्य विधि पूर्वक बेल पत्र की जड़ को रविवार में लाल डोरे में धारण करने से भी सूर्य प्रसन्न हो कर शुभ फल दायक हो जाते हैं द्य
चन्द्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण माता का शाप या माँ दुर्गा की अप्रसन्नता है जिसकी शांति के लिए रामेश्वर तीर्थ का स्नान एगायत्री का जाप करें द्य श्वेत तथा गोल मोती चांदी की अंगूठी में रोहिणी एहस्त एश्रवण नक्षत्रों में जड़वा कर सोमवार या पूर्णिमा तिथि में पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका या कनिष्टिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप एपुष्प एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्य
सोमवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र का ११००० संख्या में जाप करें द्यसोमवार को चावल एचीनी एआटाए श्वेत वस्त्र एदूध दही एनमक एचांदी इत्यादि का दान करें द्य
मंगल संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण भ्राता का शाप एशत्रु का अभिचार या श्री गणपति या श्री हनुमान की अवज्ञा होता है जिसकी शान्ति के लिए प्रदोष व्रत तथा रामायण का पाठ करें द्यलाल रंग का मूंगा सोने या ताम्बे की अंगूठी में मृगशिरा एचित्रा या अनुराधा नक्षत्रों में जड़वा कर मंगलवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए लाल पुष्पए गुड एअक्षत आदि से पूजन कर लें
मंगलवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र का १०००० संख्या में जाप करें द्य मंगलवार को गुड शक्कर एलाल रंग का वस्त्र और फल एताम्बे का पात्र एसिन्दूर एलाल चन्दन केसर एमसूर की दाल इत्यादि का दान करें द्य
बुध संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण मामा का शाप एतुलसी या भगवान विष्णु की अवज्ञा है जिसकी शांति के लिए विष्णु पुराण का श्रवण एविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें द्यहरे रंग का पन्ना सोने या चांदी की अंगूठी में आश्लेषाएज्येष्ठा एरेवती नक्षत्रों में जड़वा कर बुधवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की कनिष्टिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए लाल पुष्पए गुड एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्य बुधवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः मन्त्र का ९००० संख्या में जाप करें द्य बुधवार को कर्पूरएघीए खांडए एहरे रंग का वस्त्र और फल एकांसे का पात्र एसाबुत मूंग इत्यादि का दान करें द्य तुलसी को जल व दीप दान करना भी शुभ रहता है द्य
बृहस्पति संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गुरु एब्राह्मण का शाप या फलदार वृक्ष को काटना है जिसकी शान्ति के लिए पीत रंग का पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी मेंपुनर्वसु एविशाखा एपूर्व भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए पीले पुष्पए हल्दी एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्यपुखराज की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं द्य केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें द्यगुरूवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र का १९००० की संख्या में जाप करें द्य गुरूवार को घीए हल्दीए चने की दाल एबेसन पपीता एपीत रंग का वस्त्र एस्वर्णए इत्यादि का दान करें द्यफलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने और गुरु की पूजा सत्कार से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं द्य
शुक्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गौ .ब्राह्मण एकिसी साध्वी स्त्री को कष्ट देना या पुष्प युक्त पौधों को काटना है जिसकी शान्ति के लिए गौ दान एब्राह्मण दंपत्ति को वस्त्र फल आदि का दान एश्वेत रंग का हीरा प्लैटिनम या चांदी की अंगूठी में पूर्व फाल्गुनी एपूर्वाषाढ़ व भरणी नक्षत्रों में जड़वा कर शुक्रवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए श्वेत पुष्पए अक्षत आदि से पूजन कर लें
हीरे की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न श्वेत जरकन भी धारण कर सकते हैं द्यशुक्रवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः मन्त्र का १६ ००० की संख्या में जाप करें द्य शुक्रवार को आटा एचावल दूध एदहीए मिश्री एश्वेत चन्दन एइत्रए श्वेत रंग का वस्त्र एचांदी इत्यादि का दान करें द्य
शनि संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पीपल का वृक्ष काटना या प्रेत बाधा है जिसकी शान्ति के लिए पीपल के पेड़ लगवाएंएरुद्राभिषेक करें एशनि की लोहे की मूर्ती तेल में डाल कर दान करेंद्य नीलम लोहे या सोने की अंगूठी में पुष्य एअनुराधा एउत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए नीले पुष्पए काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लेंद्य
नीलम की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न संग्लीली ए लाजवर्त भी धारण कर सकते हैं द्य काले घोड़े कि नाल या नाव के नीचे के कील का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है द्यशनिवार के नमक रहित व्रत रखें द्य ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः मन्त्र का २३००० की संख्या में जाप करें द्य शनिवार को काले उडद एतिल एतेल एलोहाएकाले जूते एकाला कम्बल ए काले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें द्यश्री हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करना भी शनि दोष शान्ति का उत्तम उपाय है द्य
दशरथ कृत शनि स्तोत्र
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च द्यनमः कालाग्नि रूपाय कृतान्ताय च वै नमः द्यद्य
नमो निर्मोसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च द्य नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते द्यद्य
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः द्य नमो दीर्घाय शुष्काय कालद्रंष्ट नमोस्तुतेद्यद्य
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरिक्ष्याय वै नमःद्य नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने द्यद्य
नमस्ते सर्व भक्षाय बलि मुख नमोस्तुतेद्यसूर्य पुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च द्यद्य
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोस्तुतेद्य नमो मंद गते तुभ्यम निंस्त्रिशाय नमोस्तुते द्यद्य
तपसा दग्धदेहाय नित्यम योगरताय चद्य नमो नित्यम क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमःद्यद्य
ज्ञानचक्षुर्नमस्ते ऽस्तु कश्यपात्मजसूनवे द्यतुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो हरसि तत्क्षणात द्यद्य
देवासुर मनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा द्य त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतःद्यद्य
प्रसादं कुरु में देव वराहोरऽहमुपागतः द्यद्य
पद्म पुराण में वर्णित शनि के दशरथ को दिए गए वचन के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक शनि की लोह प्रतिमा बनवा कर शमी पत्रों से उपरोक्त स्तोत्र द्वारा पूजन करके तिल एकाले उडद व लोहे का दान प्रतिमा सहित करता है तथा नित्य विशेषतः शनिवार को भक्ति पूर्वक इस स्तोत्र का जाप करता है उसे दशा या गोचर में कभी शनि कृत पीड़ा नहीं होगी और शनि द्वारा सदैव उसकी रक्षा की जायेगी द्य
राहु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण सर्प शाप है जिसकी शान्ति के लिए नाग पंचमी में नाग पूजा करें एगोमेद पञ्च धातु की अंगूठी में आर्द्राएस्वाती या शतभिषा नक्षत्र में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए नीले पुष्पए काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लेंद्यरांगे का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है द्य ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र का १८००० की संख्या में जाप करें द्य शनिवार को काले उडद एतिल एतेल एलोहाएसतनाजा एनारियल ए रांगे की मछली एनीले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें द्य मछलियों को चारा देना भी राहु शान्ति का श्रेष्ठ उपाय है द्य
केतु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण ब्राह्मण को कष्ट देना है जिसकी शान्ति के लिए ब्राह्मण का सत्कार करें ए सतनाजा व नारियल का दान करें और ॐ स्रां स्रीं स्रों सः केतवे नमः का १७००० की संख्या में जाप करें द्य
संतान बाधा दूर करने के कुछ शास्त्रीय उपाय
जन्म कुंडली में अन्पत्तयता दोष स्थित हो या संतान भाव निर्बल एवम पीड़ित होने से संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो निम्नलिखित पुराणों तथा प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित शास्त्रोक्त उपायों में से किसी एक या दो उपायों को श्रद्धा पूर्वक करें द्य आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी द्य
1ण् संकल्प पूर्वक शुक्ल पक्ष से गुरूवार के १६ नमक रहित मीठे व्रत रखें द्य केले की पूजा करें तथा ब्राह्मण बटुक को भोजन करा कर यथा योग्य दक्षिणा दें द्य १६ व्रतों के बाद उद्यापन कराएं ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं गुरुवे नमः का जाप करें द्य
2ण् पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी में गुरु रत्न पुखराज स्वर्ण में विधिवत धारण करें द्य
3ण् यजुर्वेद के मन्त्र दधि क्राणों ; २३ध्३२द्ध से हवन कराएं द्य
4ण् अथर्व वेद के मन्त्र अयं ते योनि ; ३ध्२०ध्१द्ध से जाप व हवन कराएं द्य
5 संतान गोपाल स्तोत्र
ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः द्य
उपरोक्त मन्त्र की १००० संख्या का जाप प्रतिदिन १०० दिन तक करें द्य तत्पश्चात १०००० मन्त्रों से हवनए१००० से तर्पण ए१०० से मार्जन तथा १० ब्राह्मणों को भोजन कराएं द्य
6 संतान गणपति स्तोत्र
श्री गणपति की दूर्वा से पूजा करें तथा उपरोक्त स्तोत्र का प्रति दिन ११ या २१ की संख्या में पाठ करें द्य
7ण् संतान कामेश्वरी प्रयोग
उपरोक्त यंत्र को शुभ मुहूर्त में अष्ट गंध से भोजपत्र पर बनाएँ तथा षोडशोपचार पूजा करें तथा ॐ क्लीं ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवति संतान कामेश्वरी गर्भविरोधम निरासय निरासय सम्यक शीघ्रं संतानमुत्पादयोत्पादय स्वाहा एमन्त्र का नित्य जाप करें द्य ऋतु काल के बाद पति और पत्नी जौ के आटे में शक्कर मिला कर ७ गोलियाँ बना लें तथा उपरोक्त मन्त्र से २१ बार अभिमन्त्रित करके एक ही दिन में खा लें तो लाभ होगा द्य द्य
8ण्पुत्र प्रद प्रदोष व्रत ; निर्णयामृत द्ध
शुक्ल पक्ष की जिस त्रयोदशी को शनिवार हो उस दिन से साल भर यह प्रदोष व्रत करेंद्यप्रातःस्नान करके पुत्र प्राप्ति हेतु व्रत का संकल्प करें द्य सूर्यास्त के समय शिवलिंग की भवाय भवनाशाय मन्त्र से पूजा करें जौ का सत्तू एघी एशक्कर का भोग लगाएं द्य आठ दिशाओं में दीपक रख कर आठ .आठ बार प्रणाम करें द्य नंदी को जल व दूर्वा अर्पित करें तथा उसके सींग व पूंछ का स्पर्श करें द्य अंत में शिव पार्वती की आरती पूजन करें द्य
9ण् पुत्र व्रत ;वराह पुराण द्ध
भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को उपवास करके विष्णु का पूजन करें द्य अगले दिन ओम् क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी जन वल्लभाय स्वाहा मन्त्र से तिलों की १०८ आहुति दे कर ब्राह्मण भोजन कराएं द्य बिल्व फल खा कर षडरस भोजन करें द्य वर्ष भर प्रत्येक मास की सप्तमी को इसी प्रकार व्रत रखने से पुत्र प्राप्ति होगी
स्त्री की कुंडली में जो ग्रह निर्बल व पीड़ित होता है उसके महीने में गर्भ को भय रहता है अतः उस महीने के अधिपति ग्रह से सम्बंधित पदार्थों का निम्न लिखित सारणी के अनुसार दान करें जिस से गर्भ को भय नहीं रहेगा
गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनका दान
गर्भाधान से नवें महीने तक प्रत्येक मास के अधिपति ग्रह के पदार्थों का उनके वार में दान करने से गर्भ क्षय का भय नहीं रहता द्य गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनके दान निम्नलिखित हैं कृकृ
प्रथम मास कृ दृ शुक्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा शुक्रवार को द्ध
द्वितीय मास कृमंगल ; गुड एताम्बा एसिन्दूर एलाल वस्त्र ए लाल फल व दक्षिणा मंगलवार को द्ध
तृतीय मास कृ गुरु ; पीला वस्त्र एहल्दी एस्वर्ण ए पपीता एचने कि दाल ए बेसन व दक्षिणा गुरूवार को द्ध
चतुर्थ मास कृ सूर्य ; गुड ए गेहूं एताम्बा एसिन्दूर एलाल वस्त्र ए लाल फल व दक्षिणा रविवार को द्ध
पंचम मास कृ. चन्द्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को द्ध
षष्ट मास कृ दृ.शनि ; काले तिल एकाले उडद एतेल एलोहा एकाला वस्त्र व दक्षिणा शनिवार को द्ध
सप्तम मास कृदृ बुध ; हरा वस्त्र एमूंग एकांसे का पात्र एहरी सब्जियां व दक्षिणा बुधवार को द्ध
अष्टम मास कृ. गर्भाधान कालिक लग्नेश ग्रह से सम्बंधित दान उसके वार में द्ययदि पता न हो तो अन्न एवस्त्र व फल का दान अष्टम मास लगते ही कर दें द्य
नवं मास कृ. चन्द्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को द्ध
संतान सुख की प्राप्ति के समय का निर्धारण
पति और पत्नी दोनों की कुंडली का अवलोकन करके ही संतानप्राप्ति के समय का निर्धारण करना चाहिए द्यपंचम भाव में स्थित बलवान और शुभ फलदायक ग्रह एपंचमेश और उसका नवांशेश एपंचम भाव तथा पंचमेश को देखने वाले शुभ फलदायक ग्रहएपंचमेश से युक्त ग्रह एसप्तमान्शेष एबृहस्पति एलग्नेश तथा सप्तमेश अपनी दशा अंतर्दशा प्रत्यंतर दशा में संतान सुख की प्राप्ति करा सकते हैं द्य
दशा के अतिरिक्त गोचर विचार भी करना चाहिए द्य गुरु गोचर वश लग्न एपंचम भाव एपंचमेश से युति या दृष्टि सम्बन्ध करे तो संतान का सुख मिलता है द्य लग्नेश तथा पंचमेश के राशि अंशों का योग करें द्य प्राप्त राशि अंक से सप्तम या त्रिकोण स्थान पर गुरु का गोचर संतान प्राप्ति कराता है द्य गोचर में लग्नेश और पंचमेश का युति ए दृष्टि या राशि सम्बन्ध हो तो संतानोत्पत्ति होती है द्य पंचमेश लग्न में जाए या लग्नेश पंचम भाव में जाए तो संतान सम्बन्धी सुख प्राप्त होता है द्य बृहस्पति से पंचम भाव का स्वामी जिस राशि नवांश में है उस से त्रिकोण ;पंचम एनवम स्थान द्ध में गुरु का गोचर संतान प्रद होता है द्यलग्नेश या पंचमेश अपनी राशि या उच्च राशि में भ्रमण शील हों तो संतान प्राप्ति हो सकती है द्य लग्नेश एसप्तमेश तथा पंचमेश तीनों का का गोचरवश युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध बन रहा हो तो संतान लाभ होता है द्य
स्त्री की जन्म राशि से चन्द्र 1 ए2 ए4 ए5 ए7 ए9 ए1 2 वें स्थान पर हो तथा मंगल से दृष्ट हो और पुरुष जन्म राशि से चन्द्र 3 ए6 10 ए11 वें स्थान पर गुरु से दृष्ट हो तो स्त्री .पुरुष का संयोग गर्भ धारण कराने वाला होता है द्य आधान काल में गुरु लग्न एपंचम या नवम में हो और पूर्ण चन्द्र व् शुक्र अपनी राशि के हो तो अवश्य संतान लाभ होता है द्य
विशेष
प्रमुख ज्योतिष एवम आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार रजस्वला स्त्री चौथे दिन शुद्ध होती है द्य रजस्वला होने की तिथि से सोलह रात्रि के मध्य प्रथम तीन दिन का त्याग करके ऋतुकाल जानना चाहिए जिसमें पुरुष स्त्री के संयोग से गर्भ ठहरने की प्रबल संभावना रहती है द्यरजस्वला होने की तिथि से 4ए6ए8ए10ए12ए14ए16 वीं रात्रि अर्थात युग्म रात्रि को सहवास करने पर पुत्र तथा 5ए7ए9 वीं आदि विषम रात्रियों में सहवास करने पर कन्या संतिति के गर्भ में आने की संभावना रहती हैद्य याज्ञवल्क्य के अनुसार स्त्रियों का ऋतुकाल 16 रात्रियों का होता है जिसके मध्य युग्म रात्रियों में निषेक करने से पुत्र प्राप्ति होती है द्य
वशिष्ठ के अनुसार उपरोक्त युग्म रात्रियों में पुरुष नक्षत्रों पुष्य एहस्तएपुनर्वसु एअभिजितएअनुराधा एपूर्वा फाल्गुनी ए पूर्वाषाढ़एपूर्वाभाद्रपद और अश्वनी में गर्भाधान पुत्र कारक होता है द्य कन्या के लिए विषम रात्रियों में स्त्री कारक नक्षत्रों में गर्भाधान करना चाहिए द्य ज्योतिस्तत्व के अनुसार नंदा और भद्रा तिथियाँ पुत्र प्राप्ति के लिए और पूर्णा व जया तिथियाँ कन्या प्राप्ति के लिए प्रशस्त होती हैं अतः इस तथ्य को भी ध्यान में रखने पर मनोनुकूल संतान प्राप्ति हो सकती है
मर्त्यः पितृणा मृणपाशबंधनाद्विमुच्यते पुत्र मुखावलोकनात द्य
श्रद्धादिभिहर्येव मतोऽन्यभावतः प्राधान्यमस्येंत्य यमी रितोऽजंसा

देता है गुरु भाव बृहस्पति


खगोलशास्त्रीय विवरण: बृहस्पति लघु ग्रहों की झुण्ड से परे है। सूर्य से इसकी दूरी 500मिलियन मील है और यह हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसका व्यास 88,000 मील है जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 12 गुना है। यह सूर्य का एक चक्कर लगभग 12 सालों में पूरा करता है।
पौराणिक कथा: बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं। उनके पिता हैं महर्षि अंगीरा। महर्षि की पत्नी ने सनत कुमार से ज्ञान लेकर पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत शुरू किया। उनकी श्रद्धा और भक्ति देखकर भगवान खुश हुए और उनके घर में पुत्र का जन्म हुआ। यही पुत्र बुद्धि के देवता बृहस्पति हैं।
ज्योतिषीय विवेचना: बृहस्पति धनु और मीन राशि का स्वामी है। यह कर्क राशि में 5 डिग्री उच्च का तथा मकर में 5 डिग्री नीच का होता है। इसका मूल त्रिकोण राशि धनु है। बृहस्पति ज्ञान और खुशी का दाता है। यह सौर मंडल में मंत्री की भूमिका में है। इसका रंग पीलापन लिए हुए भूरा है। बृहस्पति के इष्टदेव देवराज इंद्र हैं। यह पुल्लिंग ग्रह है। इसका तत्व आकाश है। यह ब्राह्मण वर्ण का और मुख्य रूप से सात्त्विक ग्रह है।
बृहस्पति देव का शरीर विशालकाय, आंखे शहद के रंग की और बाल भूरे हैं। ये बुद्धिमान और सभी शास्त्रों के ज्ञाता हैं। यह शरीर में मोटापा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये खजाने वाले कमरे में पाए जाते हैं। यह एक माह की अवधि को दिखाते हैं। यह मीठे स्वाद का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये पूर्व दिशा में सबल हैं। सूर्य, चन्द्र और मंगल के साथ इनका मैत्रीपूर्ण संबंध है। बुध, शुक्र के साथ इनका विरोधी संबंध है और शनि के साथ ये निष्पक्ष रहते हैं। राहु के साथ इनका संबंध मित्रवत और केतु के साथ निष्पक्ष रहता है। एक दिलचस्प बात यह है कि कोई भी ग्रह बृहस्पति को अपना विरोधी नहीं मानता जबकि बृहस्पति शुक्र और बुध को अपना शत्रु मानते हैं।
ज्योतिषीय महत्व: उत्तर कालामृत के अनुसार बृहस्पति की प्रमुख विशेषताएं-
1. ब्राह्मण 2. शिक्षक 3. गाय 4. खजाना 5. विशाल या मोटा शरीर 6. यश 7. तर्क 8. खगोल विद्या और ज्योतिष विद्या 9. पुत्र 10. पौत्र 11.बड़ा भाई 12. इन्द्र 13. बहुमूल्य रत्न 14. धर्म 15. पीला रंग 16. शारीरिक स्वास्थ्य 17. निष्पक्ष दृष्टिकोण 18. उत्तर की ओर मुख 19. मंत्र 20. पवित्र जल या धार्मिक स्थल 21. बुद्धि या ज्ञान 22. भगवान ब्रम्हा 23. सोना और बेहतरीन पुखराज 24. भगवान शिव की पूजा 25. शास्त्रीय ग्रन्थों का ज्ञान 26. वेदांत
सामान्यत: यह देखा गया है कि मजबूत बृहस्पति उपर्युक्त मामलों में अच्छा होता है, वहीं बृहस्पति कमजोर हो तो इनका अभाव दिखता है। ज्योतिष में बृहस्पति के अलावा किसी अन्य से निष्पक्ष लाभ नहीं मिलता। लग्न या केंद्र में बृहस्पति की उपस्थिति मात्र ही कुंडली के कई कष्टों को कम करता है। बृहस्पति सबसे बड़ा और शुभ ग्रह है। अगर बृहस्पति बलवान हो तो अन्य ग्रहों की स्थिति ठीक न रहने पर भी अहित नही होता।
जिसका बृहस्पति बलवान होता है उसका परिवार समाज एवं हर क्षेत्र में प्रभाव रहता है। बृहस्पति बलवान होने पर, शत्रु भी सामना होते ही ठंडा हो जाता है। बृहस्पति प्रधान व्यक्ति को सामने देखकर हमारे हाथ अपने आप उन्हें नमस्कार करने के लिए उठ जाते हैं। बृहस्पति व्यक्ति कभी बोलने की शुरूआत पहले नही करते यह उसकी पहचान है। निर्बल बृहस्पति व्यक्ति का समाज एवं परिवार में प्रभाव नही रहता। ज्योतिष विद्या बृहस्पति की प्रतीक है।
न्यायाधीश, वकील, मजिस्ट्रेट, ज्योतिषी, ब्राम्हण, बृहस्पति, धर्मगुरू, शिक्षक, सन्यासी, पिता, चाचा, नाटा व्यक्ति इत्यादि बृहस्पति के प्रतीक हैं तो ज्योतिष, कर्मकांड, शेयर बाजार, शिक्षा, शिक्षा से संबंधित किताबों का व्यवसाय, धार्मिक किताबों और चित्रों का व्यवसाय, वकालत, शिक्षा संस्थाओं का संचालन इत्यादि बृहस्पति के प्रतीक रूप व्यवसाय है। इनमें सफलता प्राप्त करने के लिए बृहस्पति प्रतीकों का उपयोग करना चाहिए। बैंक मैनेजर,कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर आदि बृहस्पति के प्रतीक है। फाइनेंस कंपनी, अर्थ मंत्रालय भी बृहस्पति के प्रतीक है।
चना दाल, शक्कर, खांड, हल्दी, घी, नमक, बृहस्पति की प्रतीक रूप चीजें है। संस्कृत बृहस्पति की प्रतीक भाषा है। ईशान्य या उत्तर बृहस्पति की दिशाएं है। शरीर में जांघ बृहस्पति का प्रतीक है। मंदिर मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च बृहस्पति के प्रतीक है। बृहस्पति का रंग पीला है।
घर की तिजोरी में बृहस्पति का वास है। बृहस्पति अर्थतंत्र का कारक है। ज्योतिषशास्त्र खजाने को बृहस्पति का प्रतीक मानता है। घर में रखे धर्मग्रंथ देखने से भी व्यक्ति के बृहस्पति का अंदाजा मिल जाता है।
रोग: अशुभ गुरु शरीर में कफ, धातु एवं चर्बी (मोटापा) की वृद्धि करता है। मधुमेह, गुर्दे का रोग, सूजन, मूर्च्छा, हर्निया, कान के रोग, स्मृति विकार, जिगर के रोग, पीलिया, फेफड़ों के रोग, मस्तिष्क की रक्तवाहिनियों के रोग, हृदय को धक्का पहुंचना, पेट खराब करता है। मोटापे के बहुत सारे कारणों में से एक कारण आपकी कुंडली में बृहस्पति ग्रह का गलत जगह पर बैठना भी हो सकता है। जिन जातक की जन्म (लग्न) कुंडली में देव गुरू बृहस्पति किसी पापी ग्रह से दृष्ट हो, किसी पापी ग्रह के साथ युति हो अथवा गुरू की महादशा,अन्तर्दशा अथवा प्रतांतर चल रहा हो तब भी मोटापे का प्रभाव देखने में आता है। गुरू ग्रह की डिग्री (अंश) की भी भूमिका महत्वपूर्ण होती है, यदि बृहस्पति जन्मपत्रिका में अस्त या वक्री हों तो मोटापे से संबंधित दोष आते हैं और पाचन तंत्र के विकार परेशान करते हैं। जब-जब गोचर में बृहस्पति लग्न, लग्नेश तथा चंद्र लग्न को देखते हैं तो वजन बढने लगता है।
वास्तव में हमारे शरीर की संरचना हमारी कुंडली निर्धारित करती है। चंद्रमा, बृहस्पति और शुक्र ये तीन ग्रह शरीर में वसा की मात्रा को नियंत्रित करते हैं। वात, पित्त व कफ की मात्रा बढऩे से शरीर में मोटापा बढ़ता है। इसके अलावा यदि लग्न में जलीय राशि जैसे कर्क, वृश्चिक हो और इनके स्वामी भी शुभ हो या लग्न में जलीय प्रकृति का ग्रह हो तो शरीर पर मोटापा बढ़ेगा ही। ऐसी स्थिति में बाहरी उपाय की बजाय ग्रहों को मजबूत करना फायदा देगा।
बृहस्पति आशावाद के प्रतीक हैं, गुरू हैं तथा देवताओं के मुख्य सलाहकार हैं। वे उपदेशक हैं, प्रवाचक हैं तथा सन्मार्ग पर चलने की सलाह देते हैं। वे विज्ञान हैं, दृष्टा हैं तथा उपाय बताते हैं जिनसे मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो। यदि गुरू अपने सम्पूर्ण अंश दे दें तो व्यक्ति महाज्ञानी हो जाता है।
बृहस्पति के उपाय हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमें चीनी, केला, पीला वस्त्र, केशर, नमक, मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल और भोजन उत्तम कहा गया है। इस ग्रह की शांति के लिए बृहस्पति से संबंधित रत्न का दान करना भी श्रेष्ठ होता है। दान करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो। दान किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को देना विशेष फलदायक होता है। बृहस्पतिवार के दिन व्रत रखना चाहिए। कमज़ोर बृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पक्षियों विशेषकर कौओं को देना चाहिए। ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए। पीपल के जड़ को जल से सींचना चाहिए। गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है अत: इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
1. ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
2. सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
3. ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर नि:शुल्क सेवा करनी चाहिए।
4. किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
5. ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
6. गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
7. गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
8. गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं। इन उपायों से होगा लाभ।
* गुरू आध्यात्मिक ज्ञान का कारक है अत: ब्राम्हण देवता, गुरू का सम्मान करे।
* वृहस्पति वार को ब्रम्ह वृहस्पताये नम: का जाप करे।
* यदि कुंडली में बृहस्पति खराब हो या उच्च स्थित हो (बुरे भाव का स्वामी होकर) तो तैलीय-मसालेदार भोजन से परहेज रखें। गले में हल्दी की गाँठ गुरूवार को धारण करने से मोटापे पर नियंत्रण हो सकता है। पीली वस्तुओं का दान और गुरू के मंत्र का जाप लाभ दे सकता है।
* कई बार गोचर के ग्रहों का लग्न से भ्रमण होने पर भी मोटापा बढ़ता है। अत: इन ग्रहों का अध्ययन करके अन्य उपायों के साथ इन उपायों को अपनाने से उपयुक्त फल प्राप्त हो सकते हैं।
* गुरूवार के दिन गुरू यानि देवगुरू बृहस्पति के वैदिक मंत्र जप से पेट रोग और मोटापे से पैदा हुई परेशानियों से निजात मिलती है। इनमें अपेंडिक्स, हार्निया, मोटापा, पीलिया, आंत्रशोथ, गैस की समस्या आदि प्रमुख है।
* बृहस्पति के दोषों के निवारण के लिए शिव सहस्त्र नाम जप, गऊ और भूमि का दान तथा स्वर्ण दान करने से अरिष्ट शांति होती है।
* गुरूवार के दिन देवगुरू बृहस्पति की पूजा में गंध, अक्षत, पीले फूल, पीले पकवान, पीले वस्त्र अर्पित कर इस गुरू का यह वैदिक मंत्र बोलें या किसी विद्वान ब्राह्मण से इस मंत्र के जप कराएं -
ऊँ बृहस्पतेति यदर्यो अर्हाद्युमद्विभार्ति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवसे ऋतु प्रजात तदस्मासु द्रविणं देहि चितम्।
संभव हो तो यह मंत्र जप करने या करवाने के बाद योग्य ब्राह्मण से हवन गुरू ग्रह के लिए नियत हवन सामग्री से कराना निश्चित रूप से पेट रोगों में लाभ देता है।
* गुरूवार को बृहस्पति पूजन में केले का पूजन लाभ देता है।खगोलशास्त्रीय विवरण: बृहस्पति लघु ग्रहों की झुण्ड से परे है। सूर्य से इसकी दूरी 500मिलियन मील है और यह हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसका व्यास 88,000 मील है जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 12 गुना है। यह सूर्य का एक चक्कर लगभग 12 सालों में पूरा करता है।
पौराणिक कथा: बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं। उनके पिता हैं महर्षि अंगीरा। महर्षि की पत्नी ने सनत कुमार से ज्ञान लेकर पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत शुरू किया। उनकी श्रद्धा और भक्ति देखकर भगवान खुश हुए और उनके घर में पुत्र का जन्म हुआ। यही पुत्र बुद्धि के देवता बृहस्पति हैं।
ज्योतिषीय विवेचना: बृहस्पति धनु और मीन राशि का स्वामी है। यह कर्क राशि में 5 डिग्री उच्च का तथा मकर में 5 डिग्री नीच का होता है। इसका मूल त्रिकोण राशि धनु है। बृहस्पति ज्ञान और खुशी का दाता है। यह सौर मंडल में मंत्री की भूमिका में है। इसका रंग पीलापन लिए हुए भूरा है। बृहस्पति के इष्टदेव देवराज इंद्र हैं। यह पुल्लिंग ग्रह है। इसका तत्व आकाश है। यह ब्राह्मण वर्ण का और मुख्य रूप से सात्त्विक ग्रह है।
बृहस्पति देव का शरीर विशालकाय, आंखे शहद के रंग की और बाल भूरे हैं। ये बुद्धिमान और सभी शास्त्रों के ज्ञाता हैं। यह शरीर में मोटापा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये खजाने वाले कमरे में पाए जाते हैं। यह एक माह की अवधि को दिखाते हैं। यह मीठे स्वाद का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये पूर्व दिशा में सबल हैं। सूर्य, चन्द्र और मंगल के साथ इनका मैत्रीपूर्ण संबंध है। बुध, शुक्र के साथ इनका विरोधी संबंध है और शनि के साथ ये निष्पक्ष रहते हैं। राहु के साथ इनका संबंध मित्रवत और केतु के साथ निष्पक्ष रहता है। एक दिलचस्प बात यह है कि कोई भी ग्रह बृहस्पति को अपना विरोधी नहीं मानता जबकि बृहस्पति शुक्र और बुध को अपना शत्रु मानते हैं।
ज्योतिषीय महत्व: उत्तर कालामृत के अनुसार बृहस्पति की प्रमुख विशेषताएं-
1. ब्राह्मण 2. शिक्षक 3. गाय 4. खजाना 5. विशाल या मोटा शरीर 6. यश 7. तर्क 8. खगोल विद्या और ज्योतिष विद्या 9. पुत्र 10. पौत्र 11.बड़ा भाई 12. इन्द्र 13. बहुमूल्य रत्न 14. धर्म 15. पीला रंग 16. शारीरिक स्वास्थ्य 17. निष्पक्ष दृष्टिकोण 18. उत्तर की ओर मुख 19. मंत्र 20. पवित्र जल या धार्मिक स्थल 21. बुद्धि या ज्ञान 22. भगवान ब्रम्हा 23. सोना और बेहतरीन पुखराज 24. भगवान शिव की पूजा 25. शास्त्रीय ग्रन्थों का ज्ञान 26. वेदांत
सामान्यत: यह देखा गया है कि मजबूत बृहस्पति उपर्युक्त मामलों में अच्छा होता है, वहीं बृहस्पति कमजोर हो तो इनका अभाव दिखता है। ज्योतिष में बृहस्पति के अलावा किसी अन्य से निष्पक्ष लाभ नहीं मिलता। लग्न या केंद्र में बृहस्पति की उपस्थिति मात्र ही कुंडली के कई कष्टों को कम करता है। बृहस्पति सबसे बड़ा और शुभ ग्रह है। अगर बृहस्पति बलवान हो तो अन्य ग्रहों की स्थिति ठीक न रहने पर भी अहित नही होता।
जिसका बृहस्पति बलवान होता है उसका परिवार समाज एवं हर क्षेत्र में प्रभाव रहता है। बृहस्पति बलवान होने पर, शत्रु भी सामना होते ही ठंडा हो जाता है। बृहस्पति प्रधान व्यक्ति को सामने देखकर हमारे हाथ अपने आप उन्हें नमस्कार करने के लिए उठ जाते हैं। बृहस्पति व्यक्ति कभी बोलने की शुरूआत पहले नही करते यह उसकी पहचान है। निर्बल बृहस्पति व्यक्ति का समाज एवं परिवार में प्रभाव नही रहता। ज्योतिष विद्या बृहस्पति की प्रतीक है।
न्यायाधीश, वकील, मजिस्ट्रेट, ज्योतिषी, ब्राम्हण, बृहस्पति, धर्मगुरू, शिक्षक, सन्यासी, पिता, चाचा, नाटा व्यक्ति इत्यादि बृहस्पति के प्रतीक हैं तो ज्योतिष, कर्मकांड, शेयर बाजार, शिक्षा, शिक्षा से संबंधित किताबों का व्यवसाय, धार्मिक किताबों और चित्रों का व्यवसाय, वकालत, शिक्षा संस्थाओं का संचालन इत्यादि बृहस्पति के प्रतीक रूप व्यवसाय है। इनमें सफलता प्राप्त करने के लिए बृहस्पति प्रतीकों का उपयोग करना चाहिए। बैंक मैनेजर,कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर आदि बृहस्पति के प्रतीक है। फाइनेंस कंपनी, अर्थ मंत्रालय भी बृहस्पति के प्रतीक है।
चना दाल, शक्कर, खांड, हल्दी, घी, नमक, बृहस्पति की प्रतीक रूप चीजें है। संस्कृत बृहस्पति की प्रतीक भाषा है। ईशान्य या उत्तर बृहस्पति की दिशाएं है। शरीर में जांघ बृहस्पति का प्रतीक है। मंदिर मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च बृहस्पति के प्रतीक है। बृहस्पति का रंग पीला है।
घर की तिजोरी में बृहस्पति का वास है। बृहस्पति अर्थतंत्र का कारक है। ज्योतिषशास्त्र खजाने को बृहस्पति का प्रतीक मानता है। घर में रखे धर्मग्रंथ देखने से भी व्यक्ति के बृहस्पति का अंदाजा मिल जाता है।
रोग: अशुभ गुरु शरीर में कफ, धातु एवं चर्बी (मोटापा) की वृद्धि करता है। मधुमेह, गुर्दे का रोग, सूजन, मूर्च्छा, हर्निया, कान के रोग, स्मृति विकार, जिगर के रोग, पीलिया, फेफड़ों के रोग, मस्तिष्क की रक्तवाहिनियों के रोग, हृदय को धक्का पहुंचना, पेट खराब करता है। मोटापे के बहुत सारे कारणों में से एक कारण आपकी कुंडली में बृहस्पति ग्रह का गलत जगह पर बैठना भी हो सकता है। जिन जातक की जन्म (लग्न) कुंडली में देव गुरू बृहस्पति किसी पापी ग्रह से दृष्ट हो, किसी पापी ग्रह के साथ युति हो अथवा गुरू की महादशा,अन्तर्दशा अथवा प्रतांतर चल रहा हो तब भी मोटापे का प्रभाव देखने में आता है। गुरू ग्रह की डिग्री (अंश) की भी भूमिका महत्वपूर्ण होती है, यदि बृहस्पति जन्मपत्रिका में अस्त या वक्री हों तो मोटापे से संबंधित दोष आते हैं और पाचन तंत्र के विकार परेशान करते हैं। जब-जब गोचर में बृहस्पति लग्न, लग्नेश तथा चंद्र लग्न को देखते हैं तो वजन बढने लगता है।
वास्तव में हमारे शरीर की संरचना हमारी कुंडली निर्धारित करती है। चंद्रमा, बृहस्पति और शुक्र ये तीन ग्रह शरीर में वसा की मात्रा को नियंत्रित करते हैं। वात, पित्त व कफ की मात्रा बढऩे से शरीर में मोटापा बढ़ता है। इसके अलावा यदि लग्न में जलीय राशि जैसे कर्क, वृश्चिक हो और इनके स्वामी भी शुभ हो या लग्न में जलीय प्रकृति का ग्रह हो तो शरीर पर मोटापा बढ़ेगा ही। ऐसी स्थिति में बाहरी उपाय की बजाय ग्रहों को मजबूत करना फायदा देगा।
बृहस्पति आशावाद के प्रतीक हैं, गुरू हैं तथा देवताओं के मुख्य सलाहकार हैं। वे उपदेशक हैं, प्रवाचक हैं तथा सन्मार्ग पर चलने की सलाह देते हैं। वे विज्ञान हैं, दृष्टा हैं तथा उपाय बताते हैं जिनसे मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो। यदि गुरू अपने सम्पूर्ण अंश दे दें तो व्यक्ति महाज्ञानी हो जाता है।
बृहस्पति के उपाय हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमें चीनी, केला, पीला वस्त्र, केशर, नमक, मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल और भोजन उत्तम कहा गया है। इस ग्रह की शांति के लिए बृहस्पति से संबंधित रत्न का दान करना भी श्रेष्ठ होता है। दान करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो। दान किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को देना विशेष फलदायक होता है। बृहस्पतिवार के दिन व्रत रखना चाहिए। कमज़ोर बृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पक्षियों विशेषकर कौओं को देना चाहिए। ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए। पीपल के जड़ को जल से सींचना चाहिए। गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है अत: इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
1. ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
2. सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
3. ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर नि:शुल्क सेवा करनी चाहिए।
4. किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
5. ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
6. गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
7. गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
8. गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं। इन उपायों से होगा लाभ।
* गुरू आध्यात्मिक ज्ञान का कारक है अत: ब्राम्हण देवता, गुरू का सम्मान करे।
* वृहस्पति वार को ब्रम्ह वृहस्पताये नम: का जाप करे।
* यदि कुंडली में बृहस्पति खराब हो या उच्च स्थित हो (बुरे भाव का स्वामी होकर) तो तैलीय-मसालेदार भोजन से परहेज रखें। गले में हल्दी की गाँठ गुरूवार को धारण करने से मोटापे पर नियंत्रण हो सकता है। पीली वस्तुओं का दान और गुरू के मंत्र का जाप लाभ दे सकता है।
* कई बार गोचर के ग्रहों का लग्न से भ्रमण होने पर भी मोटापा बढ़ता है। अत: इन ग्रहों का अध्ययन करके अन्य उपायों के साथ इन उपायों को अपनाने से उपयुक्त फल प्राप्त हो सकते हैं।
* गुरूवार के दिन गुरू यानि देवगुरू बृहस्पति के वैदिक मंत्र जप से पेट रोग और मोटापे से पैदा हुई परेशानियों से निजात मिलती है। इनमें अपेंडिक्स, हार्निया, मोटापा, पीलिया, आंत्रशोथ, गैस की समस्या आदि प्रमुख है।
* बृहस्पति के दोषों के निवारण के लिए शिव सहस्त्र नाम जप, गऊ और भूमि का दान तथा स्वर्ण दान करने से अरिष्ट शांति होती है।
* गुरूवार के दिन देवगुरू बृहस्पति की पूजा में गंध, अक्षत, पीले फूल, पीले पकवान, पीले वस्त्र अर्पित कर इस गुरू का यह वैदिक मंत्र बोलें या किसी विद्वान ब्राह्मण से इस मंत्र के जप कराएं -
ऊँ बृहस्पतेति यदर्यो अर्हाद्युमद्विभार्ति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवसे ऋतु प्रजात तदस्मासु द्रविणं देहि चितम्।
संभव हो तो यह मंत्र जप करने या करवाने के बाद योग्य ब्राह्मण से हवन गुरू ग्रह के लिए नियत हवन सामग्री से कराना निश्चित रूप से पेट रोगों में लाभ देता है।
* गुरूवार को बृहस्पति पूजन में केले का पूजन लाभ देता है।

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