Monday 31 August 2015

शलमाला नदी

कर्नाटक के एक शहर सिरसी में शलमाला नाम की नदी बहती है। यह नदी अपने आप में खास है क्योंकि इस नदी में एक साथ हजारों शिवलिंग बने हुए हैं। ये सभी शिवलिंग नदी की चट्टानों पर बने हुए हैं। यहां की चट्टानों में शिवलिंगो के साथ-साथ नंदी, सांप आदी भगवान शिव के प्रियजनों की भी आकृतियां भी बनी हुई हैं। हजारों शिवलिंग एक साथ होने की वजह से इस स्थान का नाम सहस्त्रलिंग पड़ा।
राजा सदाशिवाराय ने करवाया था इनका निर्माण
मान्यताओं के अनुसार, 16वीं सदी में सदाशिवाराय नाम के एक राजा थे। वे भगवान शिव के बड़े भक्त थे। शिव भक्ति में डूबे रहने की वजह से वे भगवान शिव की अद्भुत रचना का निर्माण करवाना चाहते थे। इसलिए राजा सदाशिवाराय ने शलमाला नदी के बीच में भगवान शिव और उनके प्रियजनों की हजारों आकृतियां बनवा दीं। नदी के बीच में स्थित होने की वजह से सभी शिवलिंगों का अभिषेक और कोई नहीं बल्कि खुद शलमाला नदी के द्वारा किया जाता है।
शिवरात्रि व श्रावण के सोमवार को उमड़ता है भक्तों का सेलाब
वैसे तो इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए यहां पर रोज ही अनेक भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन शिवरात्रि व श्रावण के सोमवार पर यहां भक्त विशेष रूप आते हैं। यहां पर आकर भक्त एक साथ हजारों शिवलिंगों के दर्शन और अभिषेक का लाभ उठाते हैं।
कब जाएं
यहां जाने के लिए नवंबर से मार्च का समय सबसे अच्छा माना जाता है।
कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग- सिरसी से सबसे पास लगभग 104 कि.मी. की दूरी पर हुबली ऐयरपोर्ट है। वहां तक हवाई मार्ग से आकर सड़क मार्ग से सिरसी पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग- सिरसी से सबसे पास लगभग 54 कि.मी की दूरी पर तलगुप्पा नामक शहर है। वहां तक रेल के द्वारा आकर सड़क मार्ग से सिरसी पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग- सिरसी पहुंचने के लिए सड़क मार्ग का भी प्रयोग किया जा सकता है।

आँखों की कमजोरी ज्योतिष्य कारण और निदान

प्राणियों को आंखें ईश्वर की बड़ी नियामत हैं। यदि किसी की आंखें न हों तो उसका दर्द हम अच्छी तरह समझ सकते हैं। आंखें न होना या कमजोर होना दोनों किसी सजा से कम नहीं है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आंखों का कारक ग्रह सूर्य को माना गया है। जन्म पत्रिका सूर्य लग्न में, द्वादश या द्वितीय भाव में हो तो जातक की आंखें कमजोर होती हैं। इन्हीं स्थानों पर सूर्य यदि पाप ग्रह से युक्त तथा नीच का हो तो आंखें जाने का भी डर रहता है। लग्न में सूर्य बाल्यावस्था में ही चश्मा चढ़वा देता है। कुछ लोग बचपन में खेल-खेल में सूर्य को देखते हैं। यह भी आंखों को कमजोर कर देता है। सूर्य को देखने से आंखों के रेटिना खराब हो जाते है, जो देखने की शक्ति को कमजोर कर देते हैं। इसके अलावा माइग्रेन जैसे रोग भी इसी की देन है। लग्न, द्वितीय या द्वादश भाव में सूर्य सिरदर्द का भी कारण होते है। क्या करें उपचार? - चक्षुपनोनिषद का पाठ करें। - आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करें। - सुबह उठकर नेत्रों को ठंडे पानी से धोएं। - सूर्य को कभी न देखें। - चंद्र को पूर्णिमा की रात्र्रियो में पंद्रह मिनट तक देखें। - टी.वी. दूर से देखें। - लेटकर नहीं पढ़े। यह कुछ थोड़े उपाय है, इनको अपनाने से आप अपने नेत्रों को सुरक्षित रख सकते है।

भाग्य कमजोर तो अपनाएं ज्योतिष्य उपाय

अक्सर लोग कोई कार्य करते है, परंतु सफलता नहीं मिलती। हम कड़ी मेहनत करते हैं। परंतु परिणाम नुकसानदायक आता है। यह भाग्य की कमजोरी से होता है। भाग्य कमजोर होने पर सारे प्रयास विफल हो जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुण्डली का नवम भाव भाग्य का होता है। यह स्थान यदि दूषित हो तो जातक भाग्यहीन होता है। नवम स्थान पर यदि चंद्र हो या उसकी दृष्टि हो तो भाग्य प्रबल होता है। वहीं राहु, मंगल, शनि यदि शत्रु राशि युक्त या नीच के हो तो जातक भाग्यहीनता से परेशान हो जाता है। उसको जरा जरा से काम में अड़चने आती हैं। सूर्य, शुक्र, बुध भाग्य स्थान पर सौभाग्यवती नारी दिलाते हैं। जो व्यक्ति के भाग्य को चमोत्कर्ष कर देती है। भाग्य स्थान पर गुरु मान सम्मान वैभव दिलाता है। वह व्यक्ति शुरू से ही अपने भाग्य के दम पर पूरे घर को तार देता है। केतु भाग्य स्थान पर सामान्य फल देने वाला होता है। भाग्य को बदलने में केवल ईश्वर ही सक्षम है। अत: अपने अपने इष्टदेव का रोजाना पूजन, अर्चन, अराधना करते रहें।

त्वचा की बिमारियों का ज्योतिष्य उपाय

प्रदूषण के इस दौर में त्वचा रोग सर्वाधिक पाया जाने वाला रोग है। यह रोग शहर में ज्यादा होता है। खासतौर पर युवा पीढ़ी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है। ज्योतिष में इसका कारक ग्रह बुध है तथा कुण्डली का षष्ठ भाव इसमें प्रमुख होता है। इसके अलावा शनि, राहु, मंगल के अशुभ होने पर तथा सूर्य, चंद्र के क्षीण होने पर त्वचा रोग होते हैं। सप्तम स्थान पर केतु भी त्वचा रोग का कारण बन सकता है। बुध यदि बलवान है तो यह रोग पूरा असर नहीं दिखाता, वहीं बुध के कमजोर रहने पर यह कष्टकारी हो सकता है। लक्षण - पानी, मवाद से भरी फुंसी व मुंहासे चंद्र के कारण होती है - मंगल के कारण रक्त विकार वाली फुंसी व मुंहासे होती है। - राहु के प्रभाव से कड़ी दर्द वाली फुंसी होती है। उपाय - षष्ठ स्थान पर स्थित अशुभ ग्रह का उपचार कराएं। - सूर्य मंत्रों या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। - शनिवार को कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं। - सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें। - पारद शिवलिंग का पूजन करें।

जीवन में कठिन परीक्षा लेता है शनि

मानव जीवन सृष्टि का एक अंश है। ब्रह्मांड के सभी ग्रह नक्षत्र आपस में एक दूसरे से संबंधित है। विभिन्न ग्रह एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। शनि भी हमारे सौर मंडल ऐसा ही महत्वपूर्ण ग्रह है। कोई ग्रह किसी का व्यक्तिगत रूप से भला या बुरा नहीं करता। विभिन्न ग्रहों से कुछ विकिरण (अदृश्य किरणें) निकलती रहती है। ये विकिरण धनात्मक और ऋणात्मक दोनों प्रकार की होती है। विभिन्न ग्रहों से निकलने वाले विकिरण प्रत्येक मनुष्य पर उसकी प्रकृति के अनुसार प्रभाव डालते हैं। समाज में शनि ग्रह को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां है। जबकि वास्तव में शनि ग्रह वैसा नहीं है। लोगों में यह गलत धारणा व्याप्त है कि शनि एक कष्टकारक ग्रह है। शनि ग्रह को सदैव एक तानाशाह के रूप में प्रचारित किया गया है। जो कि सर्वथा भ्रांतिपूर्ण मान्यता है। यदि गहराई से विश्लेषण किया जाए तो हम पाएंगे कि शनि ग्रह अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य का उपकार ही करता है। शनि ग्रह मनुष्य के धैर्य, साहस और जीवटता की कड़ी परीक्षा लेता है। शनि जिस मनुष्य की राशि में प्रभावी होता है उसके जीवन में अत्यधिक कष्ट एवं सहायता भी हो सकती है। शनि किसी भी जीवन यात्रा में बाधक बन सकता है तो किसी के जीवन में सहायक भी हो सकता है।कठिन परीक्षाजिसकी राशि में शनि का प्रभाव होता है ऐसे मनुष्य को अधिक कठिनाइयों एवं चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन इसका सत्परिणाम यह है कि मनुष्य कठिनाइयों का सामना करते-करते अत्यंत कुशल, सशक्त एवं मजबूत बन जाता है। ऐसे व्यक्ति की राशि में जब शनि का प्रभाव समाप्त हो जाता है तो उसकी प्रगति और सफलता की गति अत्यधिक बढ़ जाती है। जिसे बाधाओं में कांटों भरे रास्ते पर चलने का अनुभव हो ऐसा व्यक्ति बाधा रहित मार्ग पर बड़ी तीव्रता से प्रगति एवं सफलता प्राप्त करता है। नैतिक जीवन ही समाधान हैसात्विक, पवित्र एवं नैतिक जीवन जीने वाला व्यक्ति यदि कठोर परिश्रम पूर्वक जीवन व्यतीत करता है तो उसके जीवन में शनि के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त रहता है। मनुष्य के कर्मफल, संस्कार एवं ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव मिलकर जीवन को प्रभावित तो करते हैं किंतु पूरी तरह नियंत्रित नहीं कर सकते। मनुष्य के पास प्रचंड शक्तिशाली चेतना या आत्मा होती है। मनुष्य अपने कर्मों से अपना भाग्य गढ़ता है। अपने पूर्व कर्मों से ही मनुष्य का वर्तमान बना है तथा वर्तमान के कर्मों से ही उसका भविष्य निर्धारित होगा।सर्वशक्तिमान मनोबलनिष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि यदि राशि में शनि का प्रभाव है तो भी मनुष्य को मन में कोई भय या शंका नहीं लाना चाहिए। राशि में शनि का प्रभाव हो तो मनुष्य को निर्भय होकर और भी अधिक कड़ा परिश्रम करना चाहिए। मनुष्य यदि ठान ले तो वह हर कठिनाई और चुनौति का सामना सरफलतापूर्वक कर सकता है। आत्मबल, मनोबल, इच्छा शक्ति एवं आत्मविश्वास जैसी महान शक्तियां हैं, जिनके बल पर दुर्भाग्य एवं ग्रहों के प्रभाव आदि का सामना सफलता पूर्वक कर सकता है।

कुंडली में समाज सेवा का करक ग्रह "बुध"

समाज के लिए कुछ करने का जज्बा होना वह भी बिना किसी लाभ के। ऐसा कुछ लोगों में ही देखने को मिलता है। ऐसे लोग होते है वह नि:स्वार्थ बिना किसी प्रपंच के पशु, पक्षी, असहाय मनुष्यों की मदद करते हैं। यह गुण उनमें जन्मजात होता है। जिन जातकों की पत्रिका में बुध लग्न दशम, एकादश भाव में स्थित होता है। चाहे वह उच्च का हो या नीच का शत्रु राशि में हो या मित्र राशि में वह व्यक्ति सामाजिक रूप लोगों की सेवा करता ही है , तथा उसे अपना नाम ऊंचा करने का भी कोई लालच नहीं होता। बुध कर्म स्थान में स्थित होने पर जातक सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित भी होता है, तथा अपने कार्यों द्वारा वह सबसे प्रशंसा भी पाता है। उसके समर्थक के साथ-साथ उसके विरोधी भी बहुत होते हैं, परंतु वह उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाते।सामाजिक रूप से सफलता प्राप्त करने में बुध के साथ शुक्र भी अहम भूमिका अदा करता है। शुक्र वैभवशाली ग्रह है। अत: इसके सहयोग से सामाजिक क्षेत्र में प्रतिष्ठा भी प्राप्त होती है तथा सामाजिक क्षेत्र में कई पुरस्कारों की प्राप्ति होती है।

काल सर्प योग- अनिर्णय या असमंझस

सौर मंडल में सात ग्रह है। सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि इसके अलावा दो छाया ग्रह है राहु और केतु। ज्येातिष की भाषा में राहु को सर्प का मुख माना जाता है एवं केतु को उस सर्प की पूंछ। किसी भी जातक की जन्मकुंडली में जब राहु-केतु के मध्य सारे ग्रह आ जाते हैं वह कुंडली कालसर्प ग्रस्त मानी जाती है।हानिकारक नहीं है कालसर्प काल सर्प योग हमेशा हानि कारक नहीं होता है। कुछ स्थिति में इसका दुष्प्रभाव होता है लेकिन किसी भी एक ग्रह के महायोग से इसका प्रभाव स्वत: खत्म हो जाता है। मूलत: काल सर्प योग केवल अनिर्णय या असमंजस की स्थिति पैदा करता है। इससे पीडि़त व्यक्ति महत्वपूर्ण मौकों पर निर्णय लेते समय गफलत की स्थिति में आ जाता है और इससे उसका नुकसान हो जाता है। कई महापुरुषों की कुंडली में भी कालसर्प योग रहा लेकिन वे अपनी मंजिल पर पहुंचे। इसलिए कालसर्प भय या चिंता का विषय नहीं है, बल्कि विवेकपूर्ण बुद्धि के उपयोग का विषय है। काल सर्प का इतिहासकालसर्प के बारे में प्राचीन ग्रंथ में भी वर्णन मिलता है।
मुख्यत: कालसर्प 12 प्रकार के माने गए हैं। इनके नाम इस प्रकार है :1. अनंत 2. कुलिक 3. वासुकी 4. शंखपाल 5. पद्म 6. महापद्म 7. तक्षक 8. कर्कोटक 9. शंखचूड 10. घातक 11. विषधर 12 शेष.और भी विद्वानों के मतानुसार कालसर्प 3456 प्रकार के होते हैं।मान्यता है कि इनमें से कर्कोटक, विषधर, घातक और शंखचूड यह दुष्प्रभावी योग होते हैं।भेदकालसर्प के दो भेद हैं :1. उदित 2. अनुदितउदित- उदित योग कष्टकारी होता है। इस योग में कुंडली में बैठे समस्त ग्रह एक-एक करके राहु के मुख में समाते है। अत: यह कष्टकारी योग होता है।अनुदित योग- यह सरल योग होता है। इसमें सभी कुंडली स्थित ग्रह एक-एक कर राहु से मुक्त होते हैं।ऐसा भी देखने में आया है कि कभी सातों ग्रह राहु, केतु के मध्य न आकर एकाध ग्रह अलग हो जाता है। तब भी कालसर्प योग माना जाता है।क्या शांति पूजा पाठ से कालसर्प दोष शांत होता है ?कालसर्प दोष शांति के कई उपायों का शास्त्रों में वर्णन किया गया है। उनमें पूजन पाठ भी एक महत्वपूर्ण अंग है। अन्य उपाय :- शिवलिंग पर तांबे का नाम ब्रह्ममुहूर्त में चढ़ाएं। चांदी का नाग-नागीन नदी में बहाएं।- नवनाग स्तोत्र का पाठ करें।- शिव उपासना लघु रुद्र का पाठ कराएं।- बुधवार या शनिवार को भिखारी को कंबल, उड़द, मूंग का दान करें।- एक साबूत तरबूज लेकर पानी के किनारे जो से पटक दें।- शनिवार को कुत्ते को बिस्किट खिलाएं।

वास्तु यानी सकारात्मक ऊर्जा का संचार

घर हर व्यक्ति का सबसे बड़ा सपना, दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो ख्वाब न रखता हो कि उसका एक खुबसूरत सा घर हो जहां वो सुख चैन से जिंदगी का आनंद उठा सके। मकान का निर्माण नियोजित ढंग से करना चाहिए जिसमें वास्तु शास्त्र एक महती भूमिका निभाता है। वास्तु के अनुरूप नहीं बना भवन तकलीफदेह होता है। वास्तु का अर्थसंस्कृत में वास्तु का अर्थ है घर बनाने की जगह। वास्तु शब्द वस्तु से बना है। वस्तु अर्थात जो है जो सामान्य आंखों से दिखाता है उसे वास्तु कहते हैं और जो वास्तु का ज्ञान कराता है उसे वास्तु शास्त्र कहते हैं। हलायुध कोष में वास्तु के बारे में वर्णन है जो घर को प्राकृतिक आपदाओं (भूकंप, तूफान आदि), विघ्न बाधाओं उत्पातों, उपद्रवों से बचाता है। उसे वास्तु शास्त्र कहते हैं। वास्तु और ज्योतिष का घनिष्ठ संबंध है। ऋग्वेद जो दुनिया का सबसे प्राचीन ग्रंथ है। उसमें भी वास्तु का उल्लेख मिलता है। वास्तु शास्त्र को जानकर तथा अपने घर में आप थोड़े से परिवर्तन करके सुखमय जीवन बीता सकते हैं।दिशा ज्ञानचार दिशाएं तो सभी जानते हैं। पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण। इनके अलावा चार उप दिशाएं होती है। इन्हें ईशान, आग्नेय, नैर्ऋत्य, वायव्य कहते हैं। इन दिशाओं के अलग-अलग स्वामी भी होते हैं। पूर्व के सूर्यपश्चिम के माता दुर्गाउत्तर के भगवान विष्णुदक्षिण के पितृईशान के ईश्वर शिवआग्नेय के अग्निनैर्ऋत्य के वायव्य के वायुदिशाएं कहां, कैसेउत्तर-पूर्व के बीच ईशानपूर्व-दक्षिण के बीच आग्नेयदक्षिण-पश्चिम के बीच नैर्ऋत्यपश्चिम-उत्तर के बीच वायव्य |

कृतिका नक्षत्र और शनि

यदि शनि कृतिका नक्षत्र के पहले चरण में हो तो जातक दीर्घायु, आलसी, पिता से द्वेष रखने वाला, मध्यम धन-संपत्ति वाला है सांवले रंग का तथा दुबला-पतला होता है । वह महत्वाकांक्षी, बड़े-बड़े कार्य करने वाला और कठोर हृदय का होता है। उसके दांत खराब होते हैं तथा अपच व अजीर्ण की शिकायत बनी रहती है। यदि दूसरे चरण में शनि हो तो जातक पारिवारिक जीवन से दुखी और अशांत वस्तावस्पा में जीने वाला होता है । वह अधिक आयु को पत्नी जाला अथवा विवाहेतर संबंध रखते काला होता है । तीसरे चरण में शनि के होने से जातक नपुंसक और कमजोर इच्छा वाला होता है। कृषि द्वारा आय से उसकी आजीविका चलती है । चौथे चरण में शनि के होने पर भी जातक को स्थिति प्राय: यहीं होती है ।

शिवपुराण की कुछ खास उपाय

इस सृष्टि की रचना शिवजी की इच्छा मात्र से ही हुई है। शिवपुराण में बताया गया है कि ब्रह्माजी ने शिवजी की इच्छा के अनुसार संपूर्ण सृष्टि रची है। महादेव ने इसके संचालन का कार्य भगवान श्रीहरि को सौंपा है। इसी कारण शिवजी का पूजन सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले माना गया है। जो भी व्यक्ति भोलेनाथ की आराधना करता है, उसे सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। उसके पाप नष्ट हो जाते हैं, अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
शिवपुराण में सप्ताह के सातों दिनों के लिए अलग-अलग देवताओं के पूजन का महत्व बताया गया है। रविवार को सूर्य, सोमवार को चंद्र, मंगलवार को मंगल, बुधवार को बुध, गुरुवार को बृहस्पति, शुक्रवार को शुक्र और शनिवार को शनि का पूजन करना श्रेष्ठ है।
सूर्य आरोग्य देता है। चंद्र धन-संपत्ति देता है। मंगल व्याधियों यानी रोगों का निवारण करता है। बुध देव बल देता है। बृहस्पति आयु बढ़ाता है। शुक्र भौतिक सुख प्रदान करता है। शनि मृत्यु का भय दूर करता है।
सूर्य की कृपा पाने के लिए हर रोज सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए। रविवार को तांबे के लोटे में जल भरें, पुष्प डालें और सूर्य को अर्पित करें। इसके बाद किसी जरूरतमंद व्यक्ति को या किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं। यदि भोजन नहीं करा सकते हैं तो किसी मंदिर में अन्न का दान करें। यह उपाय नियमित रूप से करते रहेंगे तो सूर्य की कृपा से आरोग्य की प्राप्ति होती है। रोगों से मुक्ति मिलती है और यौवन बना रहता है।
चंद्र देव की कृपा से व्यक्ति को धन-संपत्ति के साथ ही मानसिक शांति की प्राप्ति भी होती है। चंद्र कृपा पाने के लिए हर सोमवार देवी लक्ष्मी का पूजन करें। पूजन के बाद किसी जरूरतमंद व्यक्ति को या किसी ब्राह्मण को घी से निर्मित भोजन कराएं या किसी मंदिर में घी का दान करें।
इस उपाय से धन संबंधी कार्यों में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और देवी लक्ष्मी की कृपा से घर में बरकत बनी रहती है।
मंगल की कृपा पाने के लिए हर मंगलवार मां काली का पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही उड़द, मूंग एवं अरहर की दाल से निर्मित भोजन किसी ब्राह्मण को या किसी जरूरतमंद व्यक्ति को कराएं। इस उपाय को नियमित रूप से करने पर मंगल की कृपा प्राप्त होती है और रोगों की शांति होती है। स्वास्थ्य उत्तम रहता है। भूमि संबंधी कार्यों में भी शुभ फल प्राप्त होते हैं।
यदि आप बुध की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो हर बुधवार यह उपाय करें। उपाय के अनुसार हर बुधवार भगवान विष्णु का पूजन करें। पूजन में दधियुक्त यानी दूध-दही से निर्मित प्रसाद अर्पित करें। मिठाई अर्पित की जा सकती है। यह उपाय नियमित रूप से करते रहना चाहिए। इसके शुभ प्रभाव से पुत्र, मित्र और घर-परिवार से सहयोग प्राप्त होता है। दुख दूर होते हैं। सुखद वातावरण बना रहता है।
जो लोग गुरुवार को यहां बताया जा रहा उपाय नियमित रूप से करते हैं, उन्हें लंबी आयु प्राप्त हो सकती है। देव गुरु बृहस्पति से कृपा पाने के लिए हर गुरुवार वस्त्र, यज्ञोपवित और घी मिश्रित खीर से शिवजी का पूजन करना चाहिए। शिवपुराण के अनुसार इस उपाय से व्यक्ति दीर्घायु होता है।
समस्त भोग यानी सभी भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त करने के लिए शुक्रवार को यह उपाय करें। उपाय के अनुसार हर शुक्रवार शिवजी को तांबे के लोटे में जल भरकर अर्पित करें। बिल्व पत्र चढ़ाएं। किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को अन्न का दान करें। यह उपाय नियमित रूप से करते रहने पर व्यक्ति को समस्त भोगों की प्राप्ति होती है। पत्नी से सुख पाने के लिए शुक्रवार को पत्नी को सुंदर वस्त्र का उपहार दें।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी -

भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि में भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में श्री विष्णु की सोलह कलाओं से पूर्ण अवतरित हुए थे। श्री कृष्ण का प्राकट्य आततायी कंस एवं संसार से अधर्म का नाष करने हेतु हुआ था। भविष्योत्तर पुराण में कृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर से कहा कि मैं वासुदेव एवं देवकी से भाद्रपक्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी को उत्पन्न हुआ जबकि सूर्य सिंह राषि में एवं चंद्रमा वृषभ राषि में था और नक्षत्र रोहिणी था।
जन्माष्टमी के व्रत तिथि दो प्रकार की हो सकती है बिना रोहिणी नक्षत्र एवं दूसरी रोहिणी नक्षत्र युक्त। इस व्रत में प्रमुख कृत्य हैं उपवास, कृष्ण पूजा, जागरण एवं पारण। कृष्ण भगवान का जन्म समय रात्रि का माना जाता है अतः इस व्रत में जन्मोत्सव रात्रि का मनायी जाती है। व्रत के दिन प्रातः व्रती को सूर्य, चंद्र, यम, काल, दो संध्याओं, पाॅच भूतों, पाॅच दिषाओं के निवासियों एवं देवों का आहवान करना चाहिए,जिससे वे उपस्थित हों। अपने हाथ में जलपूर्ण ताम्रपात्र रखकर उसमें कुछ फल, पुष्प, अक्षत लेकर संकल्प करना चाहिए कि मैं अपने पापों से छुटकारा पाने एवं जीवन में सुख प्राप्ति हेतु इस व्रत को करू। व्रत करते हुए रात्रि को कृष्ण जन्म उत्सव मनाते हुए भजन एवं कीर्तन तथा यं देवं देवकी देवी वसुदेवादजीजनत् भौमस्य ब्रहणों गुस्तै तस्मै ब्रहत्मने नमः सुजन्म-वासुदेवाय गोब्रहणहिताय च शान्तिरस्तु षिव चास्तु। का पाठ करना चाहिए। जन्माष्टमी का व्रत करने से जीवन से सभी प्रकार से शाप एवं पाप की निवृत्ति होती है तथा सुख तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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Self Confidence

Confidence in fact is a mental and spiritual strength. Confidence comes from the freedom of ideas and consequently the great works ingenuity and success. This is self-defense. The person who is imbued with confidence, do not worry about disturbing any of her future. The doubts and suspicions remain buried with the other person, he always remains free to them. This creature is the internal sense. It is uncertain to succeed in life. Confidence is the wonderful power which a lone man on the force takes thousands disasters and enemies to face. The poor people are the greatest asset and greatest friend confidence. All the great things are in this world, or are, all of them self-confidence is the root cause. All the successful people in the world are, if we read history you will find that all of these in his life and he was a similarity was a similarity of confidence.
When a person starts feeling that it is progressing, is raised, then the self-confidence comes from strength to complete things. Her doubt is conquered. Mukmndl of light shining upon the person to conquer, the whole world is his honor and his victory is a result of faith. You have experienced many times that the person you influence your power, you begin to believe them. This is the cause of all their confidence. Have confidence in the person, he automatically looks divine Pandemonium show, which is why we are drawn to him and his power seem to believe.
 To say that a person has no shortage of opportunity and success is confidence. Perfect Prsonliti Confeedens which is what happens. Cobi confidence that he is in the hands of the person it is easy for him to open all the locks. No matter how wise person. How much confidence is not too beautiful, but if it does not, he left behind his success.
Lack of confidence in us speaks of insecurity and inferiority. If our confidence is down, our attitude Nkaratmc and we are prone to stress. As a result of our concentration is too low and we decide confused and become sedentary. It does not bloom our personality perfectly. So far, there is such a success.
What is confidence?
A person is expecting something from every situation and every person that has the ability to satisfy requirements of the individual. If a situation expected to be more than his ability, he feels a lack of confidence. And his ability to fulfill the conditions required to be equal, it feels confident.
How do we increase our capacity to deal with the circumstances?
Srwprtham us himself in his own Njrhon will rise. So we have to look at any of us, do not ever, nor with anyone else, or let your Mulyakn. We all know that their place are accurate and complete. And whenever we have to compare and then-then we have a huge crime.
Another important step towards increasing confidence when we give himself distressed individuals and keep it far from Nkaratmc conditions impair our confidence is very. Vipreet us your enthusiasm for acceleration of Insb themselves ideologically, the message must be Skaratmc I am the best, full-am, all that. There is no lack in me. I am not one to act Skshm. I am right....
Several times to wake her in confidence confident person to act or to behave like that is pretty helpful. A confident cheerful person has certain physical signs. The expression on her face are Visrampuarn reflects the confidence and responsiveness. His physical activity comfortably, is comfortable and quiet. His vision straight, meditative, Ruchipuarn and is impressive. Her voice easily heard rhythmic and to the extent that there is high.
- Say the first impression is your last impression - so our appearance, dress, behavior, etc., so that the fine should have good effect on the other person. We should constantly increase their general knowledge. In all the above steps we are taking to himself his own Njrhon. There are some steps we can take to increase their coping capacity. When we find the unique and difficult circumstances, instead of running away from them, then we should choose them to cope. We should always keep Prshikshit Vriddhi we constantly keep our knowledge. Chipi is a genius in all of us and our objectives, we must have the Search and Highlight.
The process does not take place overnight confidence gradually got-got little baby steps is formed. So we gradually make the tough conditions facing and conquering them will Bdnha forward. Many times we will fail, but we have to keep moving on the path that still without defeat known.
Several times the stress and discomfort handling techniques are very beneficial - such as physical relaxation techniques, deep breathing techniques, the bad habit of not thinking about the consequences, only to see something good in every result, discomfort from the inside Although it is not obvious to others, remembering the good moments of his life. And what is most important - practice, practice, practice. Thus we expand our ability to cope with difficult conditions, confidence can grow. We Inpristhition expectations of how to perfectly handle the seemingly did not dent our confidence. First we Anupyukt and inconsistent attention to the need to reduce expectations. This is possible only when we stop being the perfectionist. We must understand that we can not work with perfection and the zenith because we are not God. And keep your powers Dhyy due emphasis on the Bay will pour. Indeed, because every time we affect others and their desire to praise Rob will also leave. Several times to say no to anyone, or would refuse to get used to. We always go all the work involved in committing an act can not satisfy and will result - dent in confidence.
Ranked according to their importance to the expectations we can handle them and stay true to your grip. In addition to these measures we remain in our thoughts always reminded her that his side keep Srwottm effort and leave the rest to God Ish.
According to astrological science is low only when a person's confidence in his horoscope Sun or Moon are in a vulnerable situation. If the sun is weak, so it does not move the person left behind. Because the spirit of the sun in astrology is considered a planet factor. Similarly, the position of the moon in the horoscope is important because it is the planet of mind factor. Sun in the horoscope, the planets Pidit sin or bad house of horoscope or sixth, eighth or twelfth If the fruit is bad. This sum is made of the person's self-confidence is low.
Wisdom of the Moon with Jupiter and Mercury be in good standing if the owner is the person he was very intelligent. Sun and Moon are in a good position in the horoscope mean his personality is full of confidence. Though humans enhances self confidence but according to astrology is little if any person's confidence in his horoscope Sun or Moon are in a vulnerable situation. So any weakening of these planets in the horoscope of the native, or the vile enemy location or in the event of suffering from planets planets planets and strengthen measures to enhance the confidence that can be awakened.
These measures a confidence boost
- Give the gift of Sunday copper pot.
- Lingam Cdhaank- Monday white cow raw milk molasses, rice etc and feed.
- Two pieces of copper on Sunday bringing a flowing river flush.
- Right hand ring finger or the ring finger exquisite variety of 5-carat gem ring clad in gold or copper. Wear it in the ring on Sunday morning Brhmmuhurt.
- An important task before going to visit before or ever ate little molasses and drains the same exit.
- Sunday salt intake if you can not keep fasting all day.
- Keep it with you always a silver coin.
- Every Monday at the roots of acacia trees offer milk.
- People offer daily water.
- Sun is suffering victims of the sun and moon on the moon mantras chanting of Mantras related items to donate, there is an increase in confidence.
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कुंडली में ग्रहों की दशा अनुसार स्वास्थ्य

आधुनिक युग में अधिकांश मनुष्य चिंता, उन्माद, अवसाद, भय आदि से प्रभावित है। मनोविज्ञान में इन्हें मनोरोगों के एक प्रकार मनस्ताप (न्यूरोटाॅसिज्म) के अंतर्गत रखा गया है। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकार है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएॅं उत्पन्न होती हैं। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकास है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबधी गंभीर समस्याएॅं उत्पनन होती हैं। मनस्ताप के कारण व्यक्ति का व्यक्तिगत एवं सामाजिक समायोजन कठिन हो जाता है। साथ ही इससे व्यक्ति में अंतर्द्धंद्ध एवं कुंठा उत्पन्न होती है। मतस्ताप के लक्षण बहुत तीव्र नहीं होते और इससे पीडि़त रोगियों का व्यवहार भी आक्रामक नहीं होता । अतएव इन्हें मानसिक चिकित्सालयों में भरती कराने की अपेक्षा एक मनोचिकित्सक की अधिक आवश्यकता होती है। चूॅकि इन व्यक्तियों का संबध वास्तविकता से बना रहता है, अतः इन्हें अपने दैनिक कार्यो के निष्पादन मे थोड़ी परेशानी होती है।
मानवीय जीवन मुख्यतः विचारों, भावों से संचालित होता है। इनकी दिशा जिस ओर होती है, उसी के अनुसार व्यक्ति का जीवन भी गति करता है। मानवीय जीवन पर बहुत सारे कारकों, जैसे पारिवारिक वातावरण, परिस्थितियाॅं, सामाजिक स्थिति, सदस्यों से संपर्क आदि का प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूपा उसके विचारों एवं भावों में उतार-चढ़ाव आता रहता है। इसके अलावा भी जीवन की जो सबसे अधिक प्रभावित करता है, वह है अंतग्रही दशाओं का प्रभाव। यद्यपि ये ग्रह पृथ्वी से दूर स्थित है, लेकिन व्यक्ति के जीवन को क्षण-क्षण में प्रभावित करते हैं। इनकी स्थिति-परिस्थितियाॅें का निर्धारण व्यक्ति के पूर्वजन्म के कर्मो के अनुसार होता है। पूर्व जन्म के पाप एवं पुण्य कर्मो के अनुसार इन ग्रहों की गति, स्थिति व प्रभाव का निर्धारण होता है। प्राचीन भारतीय विद्याओं में जयोतिष विज्ञान एक ऐसी विद्या है, जिसमें ग्रहों की दशा तथा अंतर्दशा के आधार पर शुभ व अशुभ घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है। चिकित्सा ज्योतिष भी भारतीय ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण भाग है। चिकित्सा ज्योतिष के द्वारा जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति व दशा-चाल से मनुष्य को भविष्य में कौन-कौन से रोग होने की संभावना है, यह जाना जा सकता है । इसी चिकित्सा ज्योतिष के अंतर्गत मानसिक रोगों को समय से पूर्व जाना जा सकता है।
रोगी की जन्मकुंडली में वर्तमान मंे चल रही महादशा (विभिन्न समूय अंतरालों में ग्रहों की स्थिति), अंतर्दशा (उस समय अंतरालों में आने वाले ग्रहों के छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव), प्रत्यंतदशा (अंतर्दशा में ग्रहों के सूक्ष्म उतार-चढ़ाव) ज्ञात कर एवं गोचर (वर्तमान समय में ग्रहों की स्थिति) की सही स्थिति जानकर चिकित्सक रोग का सही निदान करके सफल चिकित्सा कर सकता है।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की शोधार्थी पूजा कौशिक ने सन् 2009 में ‘ग्रहों के ज्योतिषीय योगों का मनस्तापीयता पर पड़ने वाले प्रभाव का
अध्ययन‘ विषय पर शोधकार्य किया। यह शोधकार्य कुलाधिपति डाॅ0 प्रणव पण्डया के संरक्षण, प्रो0 देवीप्रसाद त्रिपाठी के निर्देशन एवं डाॅ0 प्रेरणा पुरी के सहनिर्देशन में किया गया। इस शोध अध्ययन में देहरादून के दो मनोचिकित्सालयों मे से आकस्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा 200 मनस्तापी व्यक्तियों का चयन किया गया, जिसमें 108 पुरूष प्रयोज्य एवं 92 महिला प्रयोज्य शामिल थे। इस शोध अध्ययन में ग्रहों के ज्योतिषीय शेगों के मनस्तापीय स्तर को जाॅचने के लिए ज्योतिषीय उपकरण के रूपा में जन्मकुंडली (जिसके लिए मुख्य रूप से प्रयोज्यों की जन्म तारीख, जन्म समय एवं जन्म स्थान को नोट किया गया) एवं मनोवैज्ञानिक उपकरण के रूप में न्यूरेसिस मापनी स्केल का प्रयोग किया। प्राप्त आॅकड़ो के यंख्यिकीय विश्लेषण के लिए काई-टेस्ट को प्रयुक्त किया गया।
परिणामों में यह पाया गया कि 200 स्त्री-पुरूषोूं में से 150 स्त्री-पुरूषों की जन्मपत्रिका में ज्योतिष अध्ययन के अनुसार ग्रहयोग (चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरू, शनि और छाया ग्रह राहु) प्रभावित कर रहे थे। विशेषतः मनस्ताप एवं ग्रहयोगों से पीडि़त स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में लग्न भाव (जिससे संपूर्ण देह एवं मस्तिष्क का विचार किया जाता है), चतुर्थ भाव (जिसमे मन एवं विचार का) तथा पंचम भाव (जिससे बुद्धि का विचार किया जाता है) विशेष रूप से प्रभावित एव पीडि़त पाए गए, किंतु 200 स्त्री-पुरूषों में से 50 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में ग्रहयोग उपयुक्त स्थानों से अन्यत्र स्थान में होने पर भी अपनी महादशा, अंतर्दशा में व्यक्ति के मन को संतापित करते हुए पााए गए तथा साथ ही यह भी पाया गया कि 173 स्त्री-पुरूषों (86.5 प्रतिशत) की कुंडली में पापग्रह शनि, राहु, केतु तथा क्षीण चंद्रमा अपनी महादशा एवं अंतर्दशा से व्यक्ति को प्रभावित कर रहे थे।
इस अध्ययन में मनस्तापी व्यक्तियों की कुंडली की विवेचना करने पर यह भी ज्ञात हुआ है कि 200 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडलियों में से 118 जन्मकुंडलियाॅं ऐसे स्त्री-पुरूषों की पाई गई, जिनका जन्म कृष्णपक्ष मे हुआ, अर्थात 59 प्रतिशत मनस्तापी व्यक्तियों का जन्म शुक्ल-पक्ष की तुलना में कृष्णपक्ष में ज्यादा हुआ। मनस्तापी व्यक्तियों की जन्मकुंडलियों की विवेचना से यह भी ज्ञात हुआ कि 200 में से 123 मनस्तापी व्यक्तियों के चतुर्थ भाव तथा पंचम भाव पापग्रह-क्षीण चंद्रमा, अस्त बुध, शनि, राहु एवं केतु से प्रभावित पाए गए, अर्थात 61.5 प्रतिशत मनस्तापी स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली का चतुर्थ एवं पंचम भाव पापग्रहों के प्रभाव से प्रभावित पाया गया।
इस अध्ययन में 200 मनस्तापी व्यक्तियों मंे से 54 प्रतिशत पुरूष एवं 46 प्रतिशत स्त्रियाॅं मनस्ताव से प्रभावित पाई गई। साथ ही युवा वर्ग (21 से 32 आयु वर्ग) में मनस्ताप एवं ग्रहों का प्रभाव सर्वाधिक पाया गया एवं शिक्षा का स्तर भी ऐसे स्त्री-पुरूषों में सामान्य पाया गया। ऐसे स्त्री-पुरूष स्नातक स्तर तक शिक्षित पाए गए एवं ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक संख्या में शहरी क्षेत्र के मध्यम वर्ग से संबधित पाए गए । इस प्रकार 200 स्त्री-पुरूषों की कुंडलियों के अध्ययन से यह पता चला कि विभिन्न ग्रहयोगों का संबध व्यक्ति के मन की विभिन्न संतप् क्रियाओं से होता है। अतः निष्कर्ष रूप में यह कह सकते हैं कि मानचीय स्वास्थ्य, अंतग्रही गतिविधियों एवं परिवर्तनों से असाधारण रूप से प्रभावित होता है।
पं0 श्रीराम शर्मा आचार्या जी के अनुसार रोगों की उत्पत्ति में प्रत्यक्ष स्थूल कारणों को महत्व दिया जाता है और स्कूल उपचारों की बात सोची जाती है, यदि अदृश्य किंतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ग्रह-नक्षत्रों के ज्ञान का भी चिकित्सा अनुसंधान की कड़ी से जोड़ा जा सके, तो रोगों के कारण और निवारण में अनेक चमत्कारों, सूत्र हाथ लग सकते हैं, जिनसे अपरिचित बने रहने से रोगोपचार में चिकित्सक अपने को अक्षम पाते हैं। निदान और उपचार की प्रक्रिया में ऐसे अनेक रहस्य इस अनुसंधान-प्रक्रिया में खुलने की संभावना है। यद्यपि इस विषय पर वर्तमान में कई शोधकार्य किए जा रहे हैं और ऐसी संभावना है कि आने वाले समय में चिकित्सा विज्ञान में ज्योतिषीय चिकित्सा को स्वीकारा जाएगा और इसके लिए सर्वप्रथम वयक्ति को शुभकर्मो की ओर प्रेरित किया जाएगा। यह पूर्णतः व्यक्ति के हाथ में है|
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सूर्य-पुत्र शनि

शनि की क्रूर दृष्टि का प्रभाव सर्वविदित है । इससे आक्रांत जातक अभिशापों की श्रृंखला से आबद्ध हो जाता है । इसके क्षणिक प्रभाव से ही शारीरिक कष्ट, अर्थहानि, सामान क्षय, कार्यावरोध, पलायन, निष्कासन, कारावास, दरिद्रता, विभ्रम एवं शत्रुभय आदि अनेक दुखद स्थितियों सामने आ खडी होती हैं । यदि शनि ग्रह किसी पर पूर्णतया कुपित हो जाए तो फिर उसका सर्वनाश होने से कोई नहीं रोक सकता । "शनि से पीडित व्यक्ति को दुर्भाग्य का असाध्य रोगी कहा जा सकता है । भले ही अन्य ग्रहों का सुप्रभाव अवलंब देता रहे, र्कितु शनि का संत्रास उसे अवश्य ही भीगना पड़ता है । ग्रह संम्राट सूर्य के नौ पुत्रों में अपनी भीषणता के लिए शनि सर्वोपरि है। शनि के श्याम वर्ण को देखकर सूर्य ने एकबारगी तो उसे अपना पुत्र मानने से ही इनकार कर दिया था, संभवत: शनि की रुक्षता का एक कारण यह भी रहा हो । पुराकथाओं के अनुसार संतानों के योग्य होने पर सूर्य ने प्रत्येक संतान के लिए एक-एक लोक की व्यवस्था की । किन्तु पाप प्रधान प्रकृति का होने के कारण शनि अपने एक लोक से पूर्णतया संतुष्ट नहीं हुआ । उसने अपने समस्त भाइयों के लोकों पर आक्रमण करने की योजना प्रारूपित की । सूर्य को अपने पुत्र ज्ञानि को इस भावना से अत्यधिक वेदना हुई । र्कितु शनि पर भला उनकी वेदना का क्या प्रभाव पड़ने वाला था ? वह अत्यंत पराक्रमी और शक्तिशाली था । उसने ईश्वरीय अवतारों से लेकर चक्रवर्ती संम्राटों तक को अपनी शक्ति से विचलित कर दिया था । उसके बाहुबल से समस्त देबी शक्तियां प्रभावित थीं । परिणामत: प्रलयंकर श्री शिव ने शनि को अपनी सेवा में ग्रहण कर लिया । तब शनि को श्रीशिव द्वारा कर्मानुसार दंड प्रदान करने का अधिकार प्राप्त हुआ । इसी बब्जात क्रो ध्यान में रखते हुए सूर्य ने ज्ञाति क्री दुवृंत्ति का बखान श्रीशिब से करके आतुर निवेदन किया । भक्त भयहारी श्रीशिव् संमुपस्थित हुए और उन्होंने उहंड ज्ञानि को चेतावनी दी कि वह अपनी हरकतों से बाज आए । उनकी बात यर ध्यान न देकर जब शनि ने उपेक्षा कौ तो शिव-पुनि के चीड़ ठन गई । उनके बीच युद्ध प्रश्वारंभ हुआ । 'शनि ने अपने अद्भुत पराक्रम से नंदी तथा वीरभद्र सहित असंख्य शिवगणों को परास्त कर दिया | अपने सैन्यबल का संहार होता देखकर श्रीशिब कुपित हो गए । उन्होंने अपना प्रलयंकारी तृतीय नेत्र खौल दिया । शनि ने अपनी मास्क दृष्टि का संधान किया । शिव और यानि की दृष्टियों से उत्पन्न एक अप्रतिम ज्योति ने शनित्गेक क्रो आच्छादित कर दिया । यह देखकर श्रीशिव को बहुत क्रोध आया | उन्होंने शनि पर त्रिशूल से शक्तिशाली प्रहार किया । शनि इस प्रहार को तीव्रता को सहन नहीं कर सका । वह संज्ञाशून्य हो गया । ऐसे में पत्नी छाया के गर्भ से उत्पन्न हुए शनि के श्याम रूप को देखकर उसे अपना पुत्र
न मानने बाले सूर्य का पुत्रमोह प्रबल हो गया । उन्होंने भगवान श्रीशिव से शनि के रक्षण हेतु अनुनय निवेदन किया 1 इससे श्रीशिब ने प्रसन्न होकर शनि का संकट हर लिया ( इम घटना से शनि ने श्रीशिव को सर्वसमर्थत्ता स्वीकार कर ली । उसने श्रीशिव से क्षमा-याचना करके यह इच्छा व्यवत्त को कि वह अपनी समस्त सेवाएँ उन्हें समर्पित करना चाहता है। प्रचंड पराक्रमी शनि के रषाकौशल से अभिभूत त्रिनेत्रधारी भगवान आशुतोष ने शनि को अपना सेवक बना लिया और दंडाधिकारी के पद पर नियुक्त कर दिया ।

कुंडली में सप्तम राहु दे सकता है विवाह के बाद कष्ट-

विवाह के अवसर पर वर एवं वधू की कुण्डली मिलान करते समय अष्टकूट के साथ-साथ मांगलिक दोष पर भी विचार किया जाता है। वर-वधू में से किसी एक की कुण्डली के विभिन्न भावों में मंगल हो तथा दूसरे की पत्रिका में नहीं तो ऐसी परिस्थिति को वैवाहिक जीवन के लिए अनिष्टकारक कहा गया है तथा ज्योतिषी उन दोनों का विवाह न करने की सलाह दे देते हैं। किंतु मंगल दोष अथवा अष्टकूट मिलान से ज्यादा कष्टकारी किसी भी जातक की कुंडली में सप्तम स्थान अथवा द्वादश स्थान का राहु होता है, जिसके बारे में अधिकांश विद्धान चर्चा नहीं करते। जब भी किसी की कुंडली में सप्तम अथवा द्वादश स्थान पर राहु हो और दूसरे जातक की कुंडली में उन स्थानों पर कू्रर ग्रह ना हो तो ऐसे जातक के जीवन में उस राहु के कारण वैवाहिक जीवन कष्टप्रद हो सकता है। अतः इस प्रकार के राहु दोषों की निवृत्ति हेतु विधिविधान से राहु की शांति एवं अर्क अथवा कुंभ विवाह नांदीमुख श्राद्ध के साथ कराने से वैवाहिक जीवन के कष्ट से मुक्ति पाई जा सकती है।
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दीप प्रज्वलित से घर में सकारात्मक उर्जा

आपको बताते है कि दीपक को जलाने के विभिन्न प्रकार तरीके जिससे आपके इष्टदेव खुश होंगे और घर में सुख-समृद्धि का स्थायी वास भी होगा। भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए तीन बत्तियों वाला दीपक जलानें से मनोकामनायें पूर्ण होती है। यदि आप मां लक्ष्मी की आराधना करते हैं और चाहते हैं कि उनकी कृपा आप पर बरसे तो उसके लिए आपको सातमुखी दीपक जलायें। यदि आपका सूर्य ग्रह कमजोर है तो उसे बलवान करने के लिए, आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करें और साथ में सरसों के तेल का दीपक जलायें। आर्थिक लाभ पाने के लिए आपको नियमित रूप से शुद्ध देशी गाय के घी का दीपक जलाना चाहिए। शत्रुओं व विरोधियों के दमन हेतु भैरव जी के समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाने से लाभ होगा। शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या से पीड़ित लोग शनि मन्दिर में शनि स्त्रोत का पाठ करें और सरसों के तेल का दीपक जलायें। पति की आयु व अरोग्यता के लिए महुये के तेल का दीपक जलाने से अल्पायु योग भी नष्ट हो जाता है। शिक्षा में सफलता पाने के लिए सरस्वती जी की आराधना करें और दो मुखी घी वाला दीपक जलाने से अनुकूल परिणाम आते हैं। मां दुर्गा या काली जी प्रसन्नता के लिए एक मुखी दीपक गाय के घी में जलाना चाहिए। भोले बाबा की कृपा बरसती रहे इसके लिए आठ या बारह मुखी पीली सरसों के तेल वाला दीपक जलाना चाहिए। भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए सोलह बत्तियों वाला गाय के घी का दीपक जलाना लाभप्रद होता है। हनुमान जी की प्रसन्नता के लिए तिल के तेल आठ बत्तियों वाला दीपक जलाना अत्यन्त लाभकारी रहता है। पूजा की थाली या आरती के समय एक साथ कई प्रकार के दीपक जलाये जा सकते हैं। संकल्प लेकर किया गये अनुष्ठान या साधना में अखण्ड ज्योति जलाने का प्रावधान है

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर इस बार (5 सितंबर) 24 घंटे रोहिणी नक्षत्र रहेगा। 50 साल बाद यह स्थिति बनी है। इस दिन अमृत तथा सर्वार्थसिद्धि योग का विशेष संयोग भी बन रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार ध्ाार्मिक कार्य व खरीदारी के लिए यह दिन श्रेष्ठ रहेगा।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार जन्माष्टमी शनिवार के दिन वृषभ राशि के चंद्रमा की साक्षी में हर्षल योग, बालव करण तथा रोहिणी नक्षत्र में आ रही है। इस दिन रोहिणी नक्षत्र का प्रभाव करीब 90 फीसद रहेगा।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र का होना विशेष शुभ माना जाता है। क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी नक्षत्र में हुआ है। इस नक्षत्र में योगेश्वर श्रीकृष्ण का पूजन सुख-शांति तथा समृद्धि देने वाला माना गया है। साधना तथा नवीन वस्तुओं की खरीदी के मान से भी यह दिन सर्वोत्तम है।
ऐसे बना दोहरा संयोग
जन्माष्टमी पर शनिवार के दिन बालव करण के होने से अमृत तथा सर्वार्थसिद्धि को दोहरा संयोग बना है। यह दोनों योग शुभ कार्यों में सिद्धि देने वाले माने गए हैं।

तुलसी विवाह की पूजन विधि और मान्यता

देवोत्थान एकादशी के दिन मनाया जाने वाला तुलसी विवाह विशुद्ध मांगलिक और आध्यात्मिक प्रसंग है। देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आहावान। कार्तिक, शुक्ल पक्ष, एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव मनाया जाता है। वैसे तो तुलसी विवाह के लिए कार्तिक, शुक्ल पक्ष, नवमीकी तिथि ठीक है, परन्तु कुछ लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन कर पाँचवें दिन तुलसी विवाह करते हैं। आयोजन बिल्कुल वैसा ही होता है, जैसे हिन्दू रीति-रिवाज से सामान्य वर-वधु का विवाह किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के दिन से सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु विश्रामावस्था अर्थात अपने शयनकक्ष में चले जाते हैं। इसी दिन से शादी-ब्याह, ब्रतबंध, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। देवउठनी एकादशी की तिथि से भगवान के जागने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी और समस्त मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाएगी।
धार्मिक मान्यता:
मंडप, वर पूजा, कन्यादान, हवन और फिर प्रीतिभोज, सब कुछ पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ निभाया जाता है। इस विवाह में शालिग्राम वर और तुलसी कन्या की भूमिका में होती है। यह सारा आयोजन यजमान सपत्नीक मिलकर करते हैं। इस दिन तुलसी के पौधे को यानी लड़की को लाल चुनरी-ओढऩी ओढ़ाई जाती है। तुलसी विवाह में सोलह शृंगार के सभी सामान चढ़ावे के लिए रखे जाते हैं। शालिग्राम को दोनों हाथों में लेकर यजमान लड़के के रूप में यानी भगवान विष्णु के रूप में और यजमान की पत्नी तुलसी के पौधे को दोनों हाथों में लेकर अग्नि के फेरे लेते हैं। विवाह के पश्चात प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। कार्तिक मास में स्नान करने वाले स्त्रियाँ भी कार्तिक शुक्ल एकादशी को शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती है। समस्त विधि विधान पूर्वक गाजे बाजे के साथ एक सुन्दर मण्डप के नीचे यह कार्य सम्पन्न होता है विवाह के स्त्रियाँ गीत तथा भजन गाती है ।
विधि-विधान से तुलसी पूजन एवं तुलसी विवाह करने से भगवत कृपा द्वारा घर में सुख-शांति, समृद्धि का वास होता है। हिन्दुओं के संस्कार अनुसार सभी शुभ मांगलिक कार्यों में तुलसीदल अनिवार्य माना गया है। तुलसी घर-आँगन के वातावरण को सुखमय तथा स्वास्थ्यवर्धक बनाती है इसलिए प्रतिदिन तुलसी में जल देना तथा उसकी पूजा करना आरोग्यदायक है। कार्तिक माह में सुबह स्नान आदि से निवृत होकर तांबे के बर्तन में जल भरकर तुलसी को जल देना चाहिए तथा संध्या समय में तुलसी जी के चरणों में शुद्ध देसी घी का दीपक अवश्य जलाना चाहिए। तत्पश्चात श्रद्धा एवं सामथ्र्य अनुसार धूप, सिंदूर, चंदन लगाकर नैवेध तथा पुष्प अर्पित कर घर में सुख, शांति का वरदान मां तुलसी ए वं विष्णु भगवान से मांगना चाहिए। केवल कार्तिक माह में ही नहीं बलिक प्रतिदिन तुलसी को देवी रुप में हर घर में पूजा जाता है। इसकी नियमित पूजा से व्यक्ति किे पापों से मुक्ति तथा पुण्य फल में वृद्धि मिलती है।
तुलसी पूजन की सामान्य सामग्री:
तुलसी पूजा के लिए गन्ना (ईख), विवाह मंडप की सामग्री, सुहागन स्त्री की संपूर्ण सामग्री, घी, दीपक, धूप, सिंदूर, चंदन, नैवद्य और पुष्प आदि।
तुलसी पूजन का श्रेष्ठ मुहूर्त: शाम 7.50 से 9.20 तक शुभ चौघडिय़ां में तुलसी पूजन करें।
तुलसी के आठ नाम
धर्मशास्त्रों के अनुसार तुलसी के आठ नाम बताए गए हैं- वृंदा, वृंदावनि, विश्व पूजिता, विश्व पावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी और कृष्ण जीवनी।
तुलसी विवाह की पूजन विधि:
तुलसीजी के विवाह हेतु मां तुलसी के पौधे के गमले को गेरु से सजाना चाहिए, गमले के चारों ओर ईख (गन्ने) का मंडप बनाकर गमले के ऊपर ओढनी या सुहाग की प्रतीक चुनरी ओढ़ाई जाती है। उसके बाद गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसीजी को चूड़ी पहनाकर उनका श्रंगार किया जाता है। पूजन श्री गणेश जी की वन्दना के साथ प्रारम्भ करके सभी देवी-देवताओं का तथा श्री शालिग्रामजी का विधिवत पूजन करना चाहिए। पूजन करते समय तुलसी मंत्र (तुलस्यै नम:) का जप करें। इसके बाद एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखें। भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा करें। आरती के पश्चात विवाहोत्सव पूर्ण किया जाता है। विवाह में जो सभी रीति-रिवाज होते हैं उसी तरह तुलसी विवाह के सभी कार्य किए जाते हैं। विवाह से संबंधित मंगल गीत भी गाए जाते हैं। तुलसी पूजा करने के कई विधान शास्त्रों में वर्णित हैं, उनमें से गृहस्थों के लिए तुलसी नामाष्टक का पाठ करने का विधान है। तुलसी विवाह के समय एवं प्रतिदिन कार्तिक मास में तुलसी नामाष्टक का पाठ विशेष लाभदायक रहता है।
जो व्यक्ति तुलसी नामाष्टक का नियमित पाठ करता है उसे अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है। तुलसी नामाष्टक:
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी, पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।
एतभामांष्टक चौव स्तोत्रं नामर्थं संयुतम, य: पठेत तां च सम्पूज सौश्रमेघ फलंलमेता।।
पुराणों में वर्णित है, लक्ष्मी और तुलसी का सम्बन्ध भगवान विष्णु के साथ होने के कारण जिस घर में नियमित रूप से तुलसीजी का पूजन विधि-विधान एवं श्रद्धापूर्वक होता है, वहीं लक्ष्मी जी निवास करती हैं।
तुलसी विवाह कथा:
प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ़ बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वजंयी बना हुआ था। जालंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गये तथा रक्षा की गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया। उधर, उसका पति जालंधर, जो देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। जब वृंदा को इस बात का पता लगा तो क्रोधित होकर उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया, जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम भी अपनी स्त्री का छलपूर्वक हरण होने पर स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे। यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। जिस जगह वह सती हुई वहाँ तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। विष्णु बोले, हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा। बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के विवाह का प्रतीकात्मक विवाह है।
तुलसी की पूजा से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है, धन की कोई कमी नहीं होती। इसके पीछे धार्मिक कारण है। तुलसी में हमारे सभी पापों का नाश करने की शक्ति होती है, इसकी पूजा से आत्म शांति प्राप्त होती है। तुलसी को लक्ष्मी का ही स्वरूप माना गया है। विधि-विधान से इसकी पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और इनकी कृपा स्वरूप हमारे घर पर कभी धन की कमी नहीं होती। कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है। इस एकादशी पर तुलसी विवाह का विधिवत पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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आत्मविश्वास

आत्मविश्वास वस्तुत: एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति है। आत्मविश्वास से ही विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती है और इसके कारण ही महान कार्यों में सरलता और सफलता मिलती है। इसी के द्वारा आत्मरक्षा होती है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास से ओत-प्रोत है, उसे अपने भविष्य के प्रति किसी प्रकार की चिन्ता नहीं सताती। दूसरे व्यक्ति जिन सन्देहों और शंकाओं से दबे रहते हैं, वह उनसे सदैव मुक्त रहता है। यह प्राणी की आंतरिक भावना है। इसके बिना जीवन मे सफल होना अनिश्चित है। आत्मविश्वास वह अद्भुत शक्ति है जिसके बल पर एक अकेला मनुष्य हजारों विपत्तियों एवं शत्रुओं का सामना कर लेता है। निर्धन व्यक्तियों की सबसे बड़ी पूंजी और सबसे बड़ा मित्र आत्मविश्वास ही है। इस संसार में जितने भी महान कार्य हुए हैं या हो रहे हैं, उन सबका मूल कारण आत्मविश्वास ही है। संसार में जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, यदि हम उनका जीवन इतिहास पढ़ें तो पाएंगे कि इन सभी में एक समानता थी और वह समानता थी- आत्मविश्वास की।
जब किसी व्यक्ति को यह अनुभव होने लगता है कि वह उन्नति कर रहा है, ऊंचा उठ रहा है, तब उसमें स्वत: आत्मविश्वास से पूर्ण बातें करने की शक्ति आ जाती है। उसे शंका पर विजय प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति के मुखमण्डल पर विजय का प्रकाश जगमगा रहा हो, सारा संसार उसका आदर करता है और उसकी विजय विश्वास में परिणत हो जाती है। आपने भी अनेक बार अनुभव किया होगा कि जो व्यक्ति आप पर अपनी शक्ति का प्रभाव डालते हैं, आप उनका विश्वास करने लगते हैं। इस सबका कारण उनका आत्मविश्वास है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है, वह स्वत: दिव्य दिखाई पडऩे लगता है, जिसके कारण हम उसकी ओर खिंच जाते हैं और उसकी शक्ति पर विश्वास करने लगते हैं।
कहते हैं उस व्यक्ति के लिए मौके की और सफलता की कोई कमी नहीं है जिसमें आत्मविश्वास होता है। परफेक्ट पर्सनलिटी वही होता है जिसमें कॉन्फीडेन्स होता है। आत्मविश्वास वह चॉबी है जो जिस व्यक्ति के हाथ में होती है उसके लिए हर ताले को खोलना आसान होता है। कोई व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान हो। कितना भी सुन्दर हो लेकिन अगर उसमें आत्मविश्वास नहीं है तो वह चाहकर भी वह सफलता प्राप्त नहीं कर पाता है।
आत्मविश्वास की कमी से हममें असुरक्षा और हीनता का आभास होता है। अगर हमारा आत्मविश्वास कम हो तो हमारा रवैय्या नकारात्मक् रहता है और हम तनाव से ग्रस्त रहते हैं। नतीजतन हमारी एकाग्रता भी कम हो जाती है और हम निर्णय लेते समय भ्रमित और गतिहीन से हो जाते हैं। इससे हमारा व्यक्तित्व पूरी तरह से खिल नहीं पाता। ऐसे में सफलता तो कोसों दूर रहती है।
आत्मविश्वास क्या है?
हर परिस्थिति एक व्यक्ति से कुछ अपेक्षा करती है और हर व्यक्ति की उस अपेक्षा को पूरा करने की अलग-अलग क्षमता होती है। अगर किसी स्थिति की अपेक्षा उसकी क्षमता से ज़्यादा हो तो वह आत्मविश्वास की कमी महसूस करता है। और अगर उसकी क्षमता उस स्थिति की अपेक्षा पूरी करने के बराबर हो तो वह आत्मविश्वास से भरपूर महसूस करता है। इसलिए आत्मविश्वास को कायम रखने के लिए हम यह साफ़ तौर पर देख सकते हैं कि एक तरफ़ तो हमें परिस्थितियों से जूझने की अपनी क्षमता को बढ़ाना चाहिए और दूसरी ओर हमें दुर्गम परिस्थितियों की अपेक्षाओं को सम्भालना सीखना चाहिए।
हम परिस्थितियों से जूझने की अपनी क्षमता कैसे बढ़ाएं ?
हमें सर्वप्रथम् ख़ुद को अपनी ही नजऱों में उठना पड़ेगा। इसलिए हमें देखना पड़ेगा की हम कभी अपने को किसी से कम न समझें और न ही किसी और के साथ अपना मुल्याँकन करें या करने दें। यह जान लें कि हम सब अपनी-अपनी जगह पर सही व पूर्ण हैं। और जब-जब हम अपनी तुलना किसी और से करते हैं तब-तब हम अपने साथ एक बहुत बड़ा अपराध करते हैं।
आत्मविश्वास को बढ़ाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम होगा जब हम ख़ुद को मायूस कर देने वाले व्यक्तियों व नकारात्मक् परिस्थितियों से कोसों दूर रखें क्योंकि यह हमारे आत्मविश्वास को एकदम क्षीण कर देती हैं। इनसब के विप्रीत हमें अपना उत्साह बड़ाने के लिए ख़ुद को सकारात्मक् वैचारिक-संदेश देते रहना चाहिए मैं श्रेष्ठ हूँ, पूर्ण हूँ, सम्पूर्ण हूँ। मुझमें कोइ कमी नहीं है। मैं कोइ भी कार्य करने में सक्षम् हूँ। मैं सही हूँ।...
कई बार अपने में आत्मविश्वास जगाने के लिए आत्मविश्वास से भरपूर व्यक्ति का अभिनय करना या उस जैसा बर्ताव करना काफ़ी मददगार साबित होता है। एक आत्मविश्वास से प्रफुल्लित व्यक्ति के शारीरिक संकेत कुछ खास होते हैं। उसके चहरे के हाव-भाव विश्रामपूर्ण होते हैं जिससे आत्मविश्वास और प्रभावनीयता झलकती है। उसकी शारीरिक क्रीया आरामदाय, सहज व शाँत होती है। उसकी दृष्टी सीधी, ध्यानपूर्ण, रूचीपूर्ण और प्रभावशाली होती है। उसकी आवाज़ सुरीली व आसानी से सुने जाने की सीमा तक ऊँची होती है।
कहते हैं -- पहली छाप ही आपकी अंतिम छाप होती है -- इसलिए हमें अपनी दिखावट, वेशभूषा, बर्ताव इत्यादी को ठीक-ठाक रखना चाहिए जिससे कि अन्य व्यक्ति पर अच्छा प्रभाव पड़े। हमें निरंतर अपने सामान्य-ज्ञान को बढ़ाते रहना चाहिए। इन सभी उपरोक्त कदमों से हम ख़ुद को अपनी ही नजऱों में उठा पायेंगे। कुछ और कदम भी हैं जो हम अपनी जूझने की क्षमता को बढ़ाने के लिए ले सकते हैं। जब हम अपने को विलक्षण व कठिन परिस्थितियों में पाते हैं तब उनसे भाग जाने की बजाए हमें उनका डटकर मुकाबला करने को चुनना चाहिए। हमें अपने को हमेशा प्रशिक्षित् करते रहना चाहिए जिससे हम अपने ज्ञान में लगातार वृद्धी करते रहें। हम सब में एक प्रतिभा छिपि रहती है और हमारा उद्देष्य होना चाहिए कि हम वह खोजें व उभारें।
आत्मविश्वास बढ़ाने की प्रक्रिया कोई रातों-रात सम्पन्न नहीं होती यह धीरे-धीरे नन्हे-नन्हे कदमों को मिला-मिला कर बनती है। इसलिए हमें धीरे-धीरे अपने को कठिन परिस्थितियों से सामना करवा कर और उन पर विजय पाकर आगे बडऩा होगा। कई बार हम विफल होंगे मगर हमें हार माने बिना फिर भी उसी पथ पर चलते रहना पड़ेगा।
कईं बार तनाव व बेचैनी को संभालने की तकनीक काफ़ी लाभप्रद होती हैं जैसे -- शारीरिक तनाव कम करने की तकनीक, गहरे साँस लेने की तकनीक, बुरे परिणामों के बारे में न सोचने की आदत, हर परिणाम में कुछ अच्छा ही देखना, अंदर से बेचैनी होने पर भी उसे दूसरों को ज़ाहिर न होने देना, अपने जीवन के अच्छे पलों को याद करते रहना। और जो सबसे महत्वपूर्ण है -- अभ्यास, अभ्यास, अभ्यास। इस तरह दुर्गम परिस्थितियों से जूझने की क्षमता को बड़ा कर हम अपने आत्मविश्वास को बड़ा सकते हैं। हम इनपरिस्थितियों की अपेक्षाओं को किस प्रकार बख़ूबी से संभालें जिससे हमारे आत्मविश्वास में सेंध न लगने पाए। सबसे पहले हमें अनुप्युक्त और असंगत अपेक्षाओं को कम करने की ओर ध्यान देना चाहिए। यह तभी सम्भव है जब हम पूर्णतावादी बनना बंद करें। हमें यह समझ लेना चाहिए कि हम हर काम पूर्णता व पराकाष्ठा से नहीं कर सकते क्योंकि हम कोई भगवान नहीं हैं। और ऐसा ध्यय रखना अपनी शक्तियों पर बे वजह ज़ोर डालना ही होगा। हमें औरों को बे-वजह हर समय प्रभावित करना व उनकी वाह-वाही लूटने की चाह को भी छोडऩा पड़ेगा। कईं बार किसी-किसी को न कहने की या मना करने की आदत डालनी पड़ेगी। हम हर वक्त हर कहा गया काम करनें में जुट जाएँ तो एक काम भी ढंग से पूरा नहीं कर पाएँगे और नतीजा होगा -- आत्मविश्वास में सेंध।
अपने से अपेक्षाओं को महत्व अनुसार क्रमबद्ध करने पर भी हम उनपर अपनी पकड़ को संभाल सकते हैं और अडिग रह सकते हैं। इन सब कदमों के अलावा हम अपने विचारों में यह हमेशा अपने को याद दिलाते रहें कि अपनी तरफ़ से प्रयास सर्वोत्तम् रखो और बाकी ईश् वर पर छोड़ दो।
ज्योतिषीय शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। यदि सूर्य कमजोर होता है तो ऐसा व्यक्ति चाहकर भी आगे नहीं बढ़ पाता है। क्योंकि ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह माना गया है। उसी तरह कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मन का कारक ग्रह होता है। अगर कुंडली में सूर्य, पाप ग्रहों से पिड़ीत हो या कुंडली के खराब घर यानी छठे, आंठवें या बारहवें भाव में हो तो अशुभ फल देता है। इससे व्यक्ति का आत्मविश्वास कम होने का योग बनता है। चंद्रमा अगर कुंडली में नीच राशि, वृश्चिक के साथ अपने शत्रु ग्रह की राशि में हो या कुंडली के अशुभ घर में हो तो व्यक्ति का मन कमजोर तो हो ही जाता है साथ ही वह डरपोक होता है और उसमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।
अगर चंद्रमा के साथ ही गुरू और बुद्धि का स्वामी बुध अच्छी स्थिति में हो तो वो व्यक्ति बहुत ही बुद्धिमान होता है। मतलब जन्मकुंडली में सूर्य और चन्द्र अच्छी स्थिति में हो तो उसका व्यक्तित्व आत्मविश्वास से भरा होता है। वैसे तो इंसान अपना आत्मविश्वास खुद बढ़ाता है लेकिन ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। अत: किसी भी जातक की कुंडली में इन ग्रहों के कमजोर होने, नीच के होने या शत्रु स्थान या ग्रहों से पीडित होने की स्थिति में इन ग्रहों के उपाय तथा ग्रहों को मजबूत कर भी आत्मविश्वास को बढाया जा जाग्रत किया जा सकता है।
आत्मविश्वास को बढाने के ये उपाय करें-
- रविवार के दिन तांबे के बर्तन का दान दें।
- शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाएं।- सोमवार को सफेद गाय को गुड़, चावल आदि खिलाएं।
- तांबे के दो टुकड़े लाकर एक को रविवार के दिन बहती हुई नदी में बहा दें।
- दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली यानि रिंग फिंगर में 5 रत्ती का उत्तम किस्म का माणिक्य सोने या तांबे की अंगूठी में पहने। यह अंगूठी रविवार के दिन सुबह ब्रह्ममुहूर्त में ही पहनें ।
- कोई महत्वपूर्ण काम करने से पहले या कहीं यात्रा पर जाने से पहले थोड़ा गुड़ खाकर तथा पानी पीकर ही निकलें।
- रविवार के दिन नमक का सेवन न करें हो सके तो पूरे दिन उपवास रखें ।
- अपने साथ हमेशा एक चांदी का सिक्का रखें।
- हर सोमवार बबूल के पेड़ की जड़ों में दूध चढ़ाएं।
- पीपल को रोज जल चढ़ाएं।
- सूर्य के पीडित होने पर सूर्य के मंत्रों तथा चंद्रमा के पीडित होने पर चंद्रमा के मंत्रो का जाप कर उनसे संबंधित वस्तुओं का दान करने से आत्मविश्वास में बढोतरी होती है।
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हस्तरेखा से व्यक्ति के चरित्र चित्रण

हस्तरेखाओ के माध्यम से व्यक्ति के चरित्र का चित्रण भी बहुत अच्छी तरह से किया जाता है हस्त रेखाओं के माध्यम से हाथ में वह कौन सी रेखाएँ अथवा चिन्ह हैं जिनके माध्यम से हम यह कह सकते हैं कि यह हाथ एक अच्छे चरित्र वाले व्यक्ति का है. जिसमें गुणों की खान हैं और वह अपने जीवन में यश की प्राप्ति करेगा।
हाथ में स्थित गुरु प्रधान व सूर्य प्रधान व्यक्ति के कुमार्ग पर चलने की संभावना नहीं होती है. ऐसे लोग किसी भी तरह से बुरे कामो से संबंध नहीं रखते हैं. ऐसा कोई काम नहीं करते हैं जिसे करने से वह बदनामी के घेरे में ना आ जाएँ. वे लक्षण जो किसी व्यक्ति को यश दिलाते हैं- पर एक निगाह डालने का प्रयास करें.
जिस व्यक्ति के नाखूनों का आकार गोल होता है, वह व्यक्ति मित्रता के सभी कर्तव्य निभाता है. और ऐसे व्यक्ति को अच्छे मित्रता के लिए यश की प्राप्ति होती है।
नाखूनों में गुलाबी रंग की चमकीली आभा व्यक्ति के सहृदय को दिखाती है. ऐसा व्यक्ति अच्छे दिल वाला होता है और ऐसे व्यक्ति की पहचान खुले दिल के तौर पर होती है।
यदि किसी व्यक्ति के हाथ में ह्रदय रेखा और मस्तिष्क रेखा शाखाओं से युक्त हो लेकिन उनकी शाखाएँ एक्-दूसरे से टकराती ना हों. साथ ही इन दोनो मुख्य रेखाओं के बीच फासला भी अच्छा हो तब ऐसा व्यक्ति सदगुणों से भरा होता है.
हाथ की रेखाएँ पतली हों और बिना किसी दोष के स्थित हों तो ऐसा व्यक्ति सदगुणी होता है.
व्यक्ति के हाथ में मंगल रेखा पतली हो और वह जीवन रेखा से दूर हो, हाथ में गुरु मुद्रिका बनी हो या हाथ में गुरु पर्वत पर क्रॉस बना हो या गुरु पर्वत पर आड़ी, तिरछी अथवा खड़ी रेखा बनी हो तो ऐसे व्यक्ति के अंदर बहुत से गुणो का भंडार होता है, और ऐसे व्यक्ति को सभी लोग पसंद करते हैं।
यदि हाथ में सीधी तथा लंबी अंगुलियाँ हों और जब हाथ को फैलाएँ तब यह अंगुलियाँ जापानी पंखे की तरह अलग - अलग फैल जाएँ तथा इन सभी अंगुलियों का झुकाव हथेली से बाहर की ओर हो.
अपयश योग:
किसी जातक को जीवन में अपयश का सामना करना पड़ता है. निम्नलिखित योगो में से जितने अधिक लक्षण व्यक्ति के हाथ में होगें उतने अधिक उसके अपयश के कारण बनते हें.
जिन व्यक्तियों के हाथ में बुध पर्वत विकसित होता है वह व्यक्ति कुछ ज्यादा ही चतुर होते ह ैं और ज्यादा चतुराई के कारण लोग उन्हें बुरा बोलते हैं।
जिनकी कनिष्ठिका अंगुली लंबी और मोटी होती है अथवा टेढ़ी होती है ण्ेसे व्यक्ति बहुत चालाक होते हैं. ऐसे व्यक्ति बहुत जल्दी कुमार्ग पर जा सकते हैं जिसके कारण उनके जीवन में अपयश आती है।
व्यक्ति कि हथेली में सूर्य रेखा पर धब्बे या गड्ढे हों या क्रॉस बना हो तब व्यति के एक उम्र विशेष में बदनामी के योग बनते हैं. यदि इसके बाद भी सूर्य रेखा बन रही हो तब कुछ समय मानसिक परेशानी के बाद सब कुछ शांत हो जाता है.
यदि किसी के हाथ में अन्य उपरोक्त दोषो के साथ बुध रेखा लहरदार हो या बुध पर्वत पर जाल बना हो या बुध पर्वत पर स्टार बना हो तब ऐसा व्यक्ति अपयश प्राप्त कर सकता है.
हाथ में तर्जनी अंगुली छोटी है और गुरु पर्वत दबा हुआ हो तब बदनामी के योग बनते हैं.
अन्य दोषो के साथ व्यक्ति का हाथ पतला भी हो तब बदनामी के योग बनते हैं.
हाथ में शनि रेखा मोटी हो या दूषित हो तब भी अपयश मिल सकता है.
यदि शनि रेखा मध्यमा अंगुली के तीसरे पोर तक प्रवेश कर जाए तब बुढ़ापे में अपयश मिलने की संभावना बनती है.
यदि किसी व्यक्ति के हाथ में दूषित मस्तिष्क रेखा हो तब भी अपयश मिलने की संभावना बनती है.
हाथ में ह्रदय बनी ही ना हो या फिर ह्रदय रेखा छोटी हो तब भी अपमान मिलने की संभावना बनती है.
हाथ में मंगल रेखा की एक शाखा चंद्र पर्वत तक जा रही हो और व्यक्ति का हाथ गुदगुदा हो या पतला हो तब ऐसे व्यक्ति को व्यसन की आदत होती है, जिसके कारण उसे अपयश प्राप्त होता है।
यदि हाथ में मंगल रेखा की एक शाखा चंद्र पर्वत पर जा रही हो और व्यक्ति का हाथ भारी व सख्त हो तब वह अत्यधिक कामी हो सकता है. जो उसके जीवन में कई बार अपयश दिलाता है।
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अंक ज्योतिष से जानें अपने बच्चे का स्वभाव:

प्रत्येक अंक व्यक्ति का मूल स्वभाव दिखाता है। बच्चे का मूल स्वभाव जानकर ही माता-पिता उसे सही तालीम या गाइडेन्स दे सकते हैं। आइए, जानें कैसा है आपके बच्चे का स्वभाव...
मूलांक 1:
ये बच्चे क्रोधी जिद्दी व अंहकारी होते है ये सदा स्वंतत्र रहना चाहते है और इनका अपना अलग ही व्यक्तित्व होता हैं । ये बच्चे अपने किसी भी कार्य में किसी का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करते, हर समय कोई इन्हें टोकता रहे या सुझाव देता रहे ये भी इन्हें पसन्द नहीं होता। ये लोग अच्छे प्रशासनिक अधिकारी बनते हैं। इन्हें तर्क से नहीं, प्यार से समझाएँ ।
मूलांक 2:
ये शांत समझदार भावुक व होशियार बच्चे होते हैं। पढऩे-लिखने में इन्हें खास रूचि होती हैं । आमतौर पर ये जिद्दी नहीं होते हैं लेकिन ये अपनी चीजों के प्रति काफी संजिदा होते हैं इसलिए इनका बर्ताव कभी-कभी अडिय़ल भी हो जाता है।इनको अपने माता-पिता का सेवा करना अच्छा लगता हैं। जरा सा तेज बोलना इन्हें ठेस पहुँचा सकता है। इनसे शांति व समझदारी से बात करें।
मूलांक 3:
ये बच्चे काफी तेज दिमाग के, समझदार, ज्ञानी होते हैं। इसी के चलते इन में अक्सर घमंड की भावना आ जाती हैं। लोकप्रियता एवं आकर्षण का केन्द्र बनने की इनमें गहरी चाहत होती है। जहां इन्हें ये चीजें नहीं मिलती हैं वहां जाना यह पसंद नहीं करते हैं,  इसलिए इन्हें कभी इग्नोर ना करें। इन्हें समझाने के लिए आपके पास खुद पर्याप्त कारण व ज्ञान होना जरूरी है ।
मूलांक 4:
ये बच्चे बेपरवाह, खेलने में अव्वल और एकदम कारस्तानी होते हैं। रिस्क लेना इनका स्वभाव होता है। इन्हें अनुशासन में रखना मुश्किल लेकिन बेहद जरूरी है। ये बच्चे बहुत ही संवेदनशील होते है, इनकी भावनाओ को शीघ्र ही ठेस पहुंचती है और फिर यह अपने आपको अकेला महसुस करते है। डांट से नहीं प्यार से काम लें।
मूलांक 5:
ऐसे बच्चे बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं। 5 अंक साहस, उत्साह और बदलाव का प्रतीक है। ये बुद्धिमान, शांत और आशावादी होते हैं। रिसर्च के कामों में रूचि लेते हैं। इनके साथ धैर्य से व शांति से बातचीत करें।
मूलांक 6:
अगर आपके बच्चे जा मूलांक 6 है तो इस बात का ध्यान रखें की वो हमेशा झूठ बोलने से कतराएगा। इसलिए जब वह आपसे कोई बात करे तो उसकी बात हमेशा सुनें। ये बच्चे हँसमुख, शौकीन मिजाज व कला प्रेमी होते हैं। खाओ पियो मस्त रहो पर जीते हैं। इन्हें सही संस्कार व सही दिशा-निर्देश जरूरी है। जब इनको गुस्सा आता है तो ये किसी प्रकार का विरोध सहन नही करते है
मूलांक 7:
ऐसे बच्चे जल की तरह ही चंचल और स्वतंत्र प्रवर्ती की होते हैं। ये लोग भावुक, निराशावादी, तनिक स्वार्थी मगर तीव्र बुद्धि के होते हैं। विचारों मे मौलिकता के कारण ही ये बच्चे लेखक या अच्छे पत्रकार बन सकते है, पर इन्हें कड़े अनुशासन व सही मार्गदर्शन की जरूरत होती है।
मूलांक 8:
ये बच्चे थोड़े भावुक, अति व्यावहारिक, मेहनती व व्यापार बुद्धि वाले होते हैं। इनके जीवन में देर से गति आती है पर ये अपनी धुन के पक्के होते हैं। अनजाने में भी यह किसी के मन को तकलीफ देना नहीं चाहते हैं। इन्हें अपनी सादगी एवं सीधेपन के कारण कई बार नुकसान भी उठाना पड़ता है। इन्हें सतत सहयोग व अच्छे साथियों की जरूरत होती है इसलिए इनके उपर नजऱ रखने और कभी भी इन्हें डांटते समय कठोर शब्द का प्रयोग ना करें।
मूलांक 9:
9 का अंक सबसे श्रेष्ठ अंक है। ऐसे बच्चे ऊर्जावान, शैतान व तीव्र बुद्धि के होते हैं पर एकदम विद्रोही। माता-पिता से अधिक बनती नहीं है। प्रशासन में कुशल होते हैं। इनकी ऊर्जा को सही दिशा देना व इन्हें समझना बहुत जरूरी होता है।



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भरणी नक्षत्र और शनि

यदि शनि भरणी नक्षत्र के पहले चरण में उपस्थित हो तो जातक मधुर भाषी तथा शिरो रोगी होता है । वह धार्मिक प्रवृत्ति का होता है । वह शोधपूर्ण कार्यक्षेत्र से अत्यधिक धन अजित करता है तथा बुद्धिमान एबं कर्मठ छोरों से सम्मान प्राप्त करता है। यदि शनि भरणी नक्षत्र के दूसरे चरण में हो तो जातक बहुत तीक्ष्ण बुद्धि का होता है । वह लापरवाह, आलसी, उच्चाधिकारी वर्ग का सलाहकार तथा चर्म रोगी होता है । उसका जीवन मुख्यत : सुखमय और खुशहाल रहता है। यदि शनि भरणी नक्षत्र के तीसरे चरण में उपस्थित हो तो जातक दूसरों पर
आश्रित रहता है। उसका पालन-पोषण भी किसी दूसरे परिवार में होता है । ऐसे जातक के को पिता अथवा दो माताएं होती है । माता-गिता में से कोई भी एक उसके बाल्यकाल में ही स्वर्ग सिधार सकता है । भरणी के चौथे चरण में शनि की उपस्थिति से जातक दूसरों पर आश्रित रहता है । उसके माता-पिता खात्त्यकाल में ही बिछुड़ जाते है। वह स्वभाव से आलसी और अकर्मण्य होता है । युवावस्था में सरकारी नौकरी पाता है।

शिव जी का पूजन सभी मनोकामनाएं और परेशानियाँ दूर होंगी

यदि कोई व्यक्ति शिवजी की कृपा प्राप्त करना चाहता है तो उसे रोज शिवलिंग पर जल अर्पित करना चाहिए। विशेष रूप से हर सोमवार शिवजी का पूजन करें। इस नियम से शिवजी की कृपा प्राप्त की जा सकती है। भगवान की प्रसन्नता से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और परेशानियों दूर सकती हैं। सोमवार को शिव पूजन की सामान्य विधि... इस विधि से कोई भी व्यक्ति पूजन कर सकता है...
ऐसे करें शिव पूजन
सोमवार को सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर शिवजी के मंदिर जाएं। मंदिर पहुंचकर भगवान के सामने व्रत का संकल्प लें। इस व्रत में एक समय रात्रि में भोजन चाहिए। दिन फलाहार किया जा सकता है। साथ ही दूध का सेवन भी किया जा सकता है।
संकल्प के बाद शिवलिंग पर जल अर्पित करें। गाय का दूध अर्पित करें। इसके बाद पुष्प हार और चावल, कुमकुम, बिल्व पत्र, मिठाई आदि सामग्री चढ़ाएं।
पूजन में शिव मंत्र का जप करें
शिव मंत्र 1- ऊँ महाशिवाय सोमाय नम:।
या
शिव मंत्र 2- ऊँ नम: शिवाय।
मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग सर्वश्रेष्ठ रहता है। शिव परिवार (प्रथम पूज्य श्री गणेश, माता पार्वती, कार्तिकेय, नंदी, नाग देवता) का भी पूजन करें।

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Saturday 29 August 2015

यदि शनि की उपस्थिति अश्चिनी नक्षत्र के प्रथम पाद रानी पहले चरण में हो, तो जातक धीमी गति के साथ कार्य करने चाला तथा मंदबुद्धि का होता है।ऐतिहासिक विषयों में उसकी गहरी रुचि होती है । उसे लेखन कार्यं से ष्ट्रयाति मिल सकती है । जीवन का प्रारंभिक काल गरीबी में बिताकर भी वह प्रसन्न रहने का प्रयास करता है । ऐसा जातक लंबी आयु जीता है । यदि जन्य समय में शनि दूसरे चरण में हो तो जातक दुबले-पतले शरीर का होता है । वह सामान्य बातों में बुद्धिहीन, व्यावहारिक ज्ञान में कमजोर किंतु धन कमाने में चतुर होता है । ऐसा जातक क्रोधित होने पर हिंसक हो जाता है । यदि तीसरे चरण में शनि हो तो जातक भ्रमपत्कारी, व्यापारिक कयों में चतुर, मातहतों से कार्य लेने वाला, अत्यधिक महत्वाकग्रेक्षो तथा शीघ्र क्रोधित हो जाने वाला होता है । वह सभी से मधुर संबंध बनाने का अभिलाषी होता है । यदि चौथे चरण में ज्ञाति का प्रभाव हो तो जातक व्यसनी होता है, किन्हें फिर भी वह सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है ।

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ज्योतिष शाश्त्र में मंगल ग्रह

सूर्य मंडल में सूर्य को राजा और मंगल को सेनापति कहा गया है। आकाश मंडल में यह लाल रंग का दमकता हुआ साफ-साफ दिखाई देता है। उसके लाल गुण के कारण अग्नि पर उसका प्रभाव माना जाता है। सूर्य भी अग्निकारक है, परन्तु सूर्य से मिलने वाली अग्नि जीव-जगत के लिए आवश्यक है और मंगल की अग्नि धर्म प्रलयकारक है। सूर्य उष्ण है और मंगल तप्त। सेनापति होने के कारण शक्ति, अधिकार, पुरुषत्व, शोरगुल, वासना, पशुता इत्यादि बातों पर मंगल का अधिकार है। मंगल अग्नि का कारक है इसलिए समस्त स्नायु मंगल का कारक माना जाता है। प्रथमभाव मेष मंगल की राशि है अत: चेहरा और सिर का विचार भी मंगल से किया जाता है। कालपुरुष कुण्डली में अष्टम भाव में मंगल की राशि (वृश्चिक राशि) होने से मूत्राशय, गर्भाशय, गुप्तद्वार और बाहरी अंग लिंग पर मंगल का अधिकार होता है। प्रोटेस्ट ग्रंथि पर भी मंगल का प्रभाव है।
भारतीय वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह को मुख्य तौर पर ताकत का कारक माना जाता है। मंगल प्रत्येक व्यक्ति में शारीरिक ताकत तथा मानसिक शक्ति एवम मजबूती का प्रतिनिधित्व करते हैं। मानसिक शक्ति का अभिप्राय यहां पर निर्णय लेने की क्षमता और उस निर्णय पर टिके रहने की क्षमता से है। मंगल के प्रबल प्रभाव वाले जातक आम तौर पर तथ्यों के आधार पर उचित निर्णय लेने में तथा उस निर्णय को व्यवहारिक रूप देने में भली प्रकार से सक्षम होते हैं। ऐसे जातक सामान्यतया किसी भी प्रकार के दबाव के आगे घुटने नहीं टेकते तथा इनके उपर दबाव डालकर अपनी बात मनवा लेना बहुत कठिन होता है और इन्हें दबाव की अपेक्षा तर्क देकर समझा लेना ही उचित होता है।
मंगल आम तौर पर ऐसे क्षेत्रों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें साहस, शारीरिक बल, मानसिक क्षमता आदि की आवश्यकता पड़ती है जैसे कि पुलिस की नौकरी, सेना की नौकरी, अर्ध-सैनिक बलों की नौकरी, अग्नि-शमन सेवाएं, खेलों में शारीरिक बल तथा क्षमता की परख करने वाले खेल जैसे कि कुश्ती, दंगल, टैनिस, फुटबाल, मुक्केबाजी तथा ऐसे ही अन्य कई खेल जो बहुत सी शारीरिक उर्जा तथा क्षमता की मांग करते हैं। इसके अतिरिक्त मंगल ऐसे क्षेत्रों तथा व्यक्तियों के भी कारक होते हैं जिनमें हथियारों अथवा औजारों का प्रयोग होता है जैसे हथियारों के बल पर प्रभाव जमाने वाले गिरोह, शल्य चिकित्सा करने वाले चिकित्सक तथा दंत चिकित्सक जो चिकित्सा के लिए धातु से बने औजारों का प्रयोग करते हैं, मशीनों को ठीक करने वाले मैकेनिक जो औजारों का प्रयोग करते हैं तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्र एवम इनमे काम करनेवाले लोग। इसके अतिरिक्त मंगल भाइयों के कारक भी होते हैं तथा विशेष रूप से छोटे भाइयों के। मंगल पुरूषों की कुंडली में दोस्तों के कारक भी होते हैं तथा विशेष रूप से उन दोस्तों के जो जातक के बहुत अच्छे मित्र हों तथा जिन्हें भाइयों के समान ही समझा जा सके।
मंगल एक शुष्क तथा आग्नेय ग्रह हैं तथा मानव के शरीर में मंगल अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा इसके अतिरिक्त मंगल मनुष्य के शरीर में कुछ सीमा तक जल तत्व का प्रतिनिधित्व भी करते हैं क्योंकि मंगल रक्त के सीधे कारक माने जाते हैं। ज्योतिष की गणनाओं के लिए मंगल को पुरूष ग्रह माना जाता है। मंगल मकर राशि में स्थित होने पर सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं तथा मकर में स्थित मंगल को उच्च का मंगल भी कहा जाता है। मकर के अतिरिक्त मंगल को मेष तथा वृश्चिक राशियों में स्थित होने से भी अतिरिक्त बल मिलता है जोकि मंगल की अपनी राशियां हैं। मंगल के प्रबल प्रभाव वाले जातक शारीरिक रूप से बलवान तथा साहसी होते हैं। ऐसे जातक स्वभाव से जुझारू होते हैं तथा विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत से काम लेते हैं तथा सफलता प्राप्त करने के लिए बार-बार प्रयत्न करते रहते हैं और अपने रास्ते में आने वाली बाधाओं तथा मुश्किलों के कारण आसानी से विचलित नहीं होते। मंगल का कुंडली में विशेष प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को तर्क के आधार पर बहस करने की विशेष क्षमता प्रदान करता है जिसके कारण जातक एक अच्छा वकील अथवा बहुत अच्छा वक्ता भी बन सकता है। मंगल के प्रभाव में वक्ता बनने वाले लोगों के वक्तव्य आम तौर पर क्रांतिकारी ही होते हैं तथा ऐसे लोग अपने वक्तव्यों के माध्यम से ही जन-समुदाय तथा समाज को एक नई दिशा देने में सक्षम होते हैं। युद्ध-काल के समय अपनी वीरता के बल पर समस्त जगत को प्रभावित करने वाले जातक मुख्य तौर पर मंगल के प्रबल प्रभाव में ही पाए जाते हैं।
कर्क राशि में स्थित होने पर मंगल बलहीन हो जाते हैं तथा इसके अतिरिक्त मंगल कुंडली में अपनी स्थिति विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव के कारण भी कमजोर हो सकते हैं। कुंडली में मंगल की बलहीनता कुंडली धारक की शारीरिक तथा मानसिक उर्जा पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है तथा इसके अतिरिक्त जातक रक्त-विकार संबधित बिमारियों, त्वचा के रोगों, चोटों तथा अन्य ऐसे बिमारीयों से पीडित हो सकता है जिसके कारण जातक के शरीर की चीर-फाड़ हो सकती है तथा अत्याधिक मात्रा में रक्त भी बह सकता है। मंगल पर किन्हीं विशेष ग्रहों के बुरे प्रभाव के कारण जातक किसी दुर्घटना अथवा लड़ाई में अपने शरीर का कोई अंग भी गंवा सकता है। इसके अतिरिक्त कुंडली में मंगल की बलहीनता जातक को सिरदर्द, थकान, चिड़चिड़ापन तथा निर्णय लेने में अक्षमता जैसी समस्याओं से भी पीडि़त कर सकती है। मंगल के प्रभाव स्वरुप जातक सामान्यतया किसी भी प्रकार के दबाव के आगे नहीं झुकता. मंगल के द्वारा साहस, शारीरिक बल, मानसिक क्षमता प्राप्त होती है. पुलिस, सेना, अग्नि-शमन सेवाओं के क्षेत्र में मंगल का अधिकार है खेल कूद इत्यादि में जोश और उत्साह मंगल के प्रभाव से ही प्राप्त होता है.
मंगल को ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति के साहस, छोटे भाई-बहन, आन्तरिक बल, अचल सम्पति, रोग, शत्रुता, रक्त शल्य चिकित्सा, विज्ञान, तर्क, भूमि, अग्नि, रक्षा, सौतेली माता, तीव्र काम भावना, क्रोध, घृ्णा, हिंसा, पाप, प्रतिरोधिता, आकस्मिक मृत्यु, हत्या, दुर्घटना, बहादुरी, विरोधियों, नैतिकता की हानि का कारक ग्रह है. सेनापति मंगल के पास अधिकार, वृत्ति, प्रभुता, नेतृत्व, लड़ाई आदि गुण होते हैं। मंगल शीघ्र प्रकोपी होने के कारण उतावला और दहशत जमाने वाला है। बाहरी अंग-लिंग पर मंगल का प्रभाव होने से मंगल में वासना और लोभ भी है। यौन सुख प्राप्त करते हुए इसका सेनापति का स्वभाव जाग्रत हो जाता है। यह अपने जीवन साथी को कुछ पीड़ा भी प्रदान करता है। यौन सुख के लिए अमानवीय तरीका भी अपनाता है।
बीमारियां- मंगल का अग्नि तत्व होने के कारण गर्मी की बीमारियां, प्रत्येक तरह के बुखार, फोड़ा, खुजली आदि पर मंगल का अधिकार होता है। मंगल का चेहरे पर अधिकार होने के कारण मुंहासे, दिमागी बीमारियां जैसे पागलपन व सिर में रक्त के बहाव पर इसका प्रभाव होता है। लिंग पर प्रभाव व होने से गुप्त रोग, भगंदर, पिस्तुला और यौन रोग, महिलाओं में रक्त प्रदर, हार्निया आदि बीमारियां मंगल के अधिकार में आती हैं। स्नायु पर मंगल का अधिकार होने से स्नायु की बीमारियां, पोलियो, लकवा, दु:ख देने वाला ग्रह होने से वेदना देने वाली बीमारियां जैसे- अल्सर, पेट दर्द, जहर का प्रयोग, जहरीली गैस या उससे उत्पन्न बीमारियों पर इसका अधिकार है। मंगल के खराब होने या पिडी़त होने से व्यक्ति को शरीर के किसी भाग का कटना, घाव, दुखती आंखें, पित्त, रक्तचाप. बवासीर, जख्म, खुजली, हड्डियों का टूटना. पेशाब संबन्धित शिकायतें, पीलिया, खून गिरना, ट्यूमर, मिरगी जैसे रोग प्रभावित कर सकते हैं.
कारोबार- मंगल सेनापति है इसलिए सुरक्षा, सेनादल, पुलिस, जासूसी, हथियार, नुकीली वस्तुएं आदि का कारोबार मंगल के अधिकार में है। साथ ही कसाई, सर्जरी, हथियार का प्रयोग करने वाला कारोबार, खदानों से निकलने वाला लोहा, तांबा आदि धातुओं का कारोबार तथा अग्नि तत्व होने से प्रत्येक प्रकार की भ_ियां, वायलर, भांप के इंजन, ऊर्जा प्रकल्प जैसे कारोबार मंगल के अधिकार में हैं।
उत्पाद- मंगल के तीखे गुण के कारण मिर्च-मसाले की वस्तुएं, दालचीनी, अदरक, लहसुन, हथियारों का कारक होने से तलवार, बंदूक, बम और प्रत्येक प्रकार के हथियारों का निर्माण, भूमि का कारक होने से घरों का निर्माण, कांटेदार पेड़ और अग्नि का कारक होने से शराब व तम्बाकू इसके उत्पाद हैं।
स्थान- मंगल का स्वभाव आक्रामक होने से लड़ाई का मैदान, सैनिक छावनी, इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी संस्थान इसके स्थान हैं। मंगल निर्दयी ग्रह है अत: कसाईखाना और आपरेशन थियेटर इसके प्रभाव में हैं। उष्ण प्रधान होने से घर में रसोई, गीजर, शौचालय, तहखाना आदि मंगल के अधिकार क्षेत्र में हैं।
जानवर व पेड़-पौधे- शेर, लोमड़ी, कुत्ता आदि पर मंगल का प्रभाव है। कांटेदार पेड़, मसाले की वस्तुओं के पौधे, तम्बाकू, लहसुन आदि तथा लाल रंग के फल व कड़े छिलके वाले फल मंगल के अधिकार क्षेत्र में हैं।
मंगल ग्रह से संबंधित अन्य तथ्य-
मंगल के मित्र ग्रह सूर्य, चन्द्र और गुरु है. मंगल से शत्रु सम्बन्ध रखने वाला ग्रह बुध है. मंगल के साथ शनि और शुक्र सम सम्बन्ध रखते है. मंगल मेष व वृश्चिक राशि का स्वामी है. मंगल की मूलत्रिकोण राशि मेष राशि है, इस राशि में मंगल 0 अंश से 12 अंशों के मध्य होने पर अपनी मूलत्रिकोण राशि में होता है. मंगल वृषभ राशि में उच्च स्थान प्राप्त करता है. मंगल कर्क राशि में स्थित होने पर नीचस्थ होता है. मंगल पुरुष प्रधान ग्रह है. मंगल दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करता है. मंगल के सभी शुभ फल प्राप्त करने के लिए मूंगा, रक्तमणी जिसे तामडा भी कहा जाता है, इनमें से किसी एक रत्न को धारण किया जा सकता है. मंगल के लिए लाल रंग धारण किया जाता है. मंगल का भाग्य अंक 9 है. मंगल के लिए गणपति, हनुमान, सुब्रह्मामन्यम, कार्तिकेय आदि देवताओं की उपासना करनी चाहिए.
मंगल के दुष्प्रभावों से बचने के लिए तथा शुभ फलों की प्राप्ति के लिए मंगल से संबंधित वस्तुओं का दान किया जा सकता है. तांबा, गेहूं, घी, लाल वस्त्र, लाल फूल, चन्दन की लकडी, मसूर की दाल. मंगलवार को सूर्य अस्त होने से 48 मिनट पहलें और सूर्यास्त के मध्य अवधि में ये दान किये जाते है.
मंगल के बीज मंत्र का जाप करना चाहिए
क्रां क्रौं क्रौं स: भौमाय नम:
मंगल का वैदिक मंत्र
घरणीगर्भसंभूतं विद्युत कन्ति सम प्रभम।
कुमार भक्तिहस्तं च मंगल प्रणामाभ्यहम।।
मंगल के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए ज्योतिषशास्त्र में और भी कई उपाय बताए गए हैं। सबसे आसान तरीका तो यह है कि किसी भी मंगलवार के दिन हनुमान जी को लाल रंग का लंगोटा और सिंदूर भेंट कीजिए। हनुमान जी मंगलवार के स्वामी माने जाते हैं इसलिए मंगल के उपाय में हनुमान जी को खुश करने का विधान है। हनुमान जी की कृपा पाने के लिए मंगलवार के दिन व्रत करके शाम के समय बूंदी का प्रसाद बांटने से भी मंगल का अमंगल दूर होता है। हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ भी मंगल को शुभ बनाने में सहायक होता है।
सभी ग्रह के अपने रत्न होते हैं जो ग्रहों की उर्जा को अवशोषित करके अनुकूल स्थिति बनाते हैं। मंगल का रत्न है मूंगा। मंगल को अनुकूल बनाने के लिए मूंगा रत्न धारण किया जा सकता है।
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नक्सलवाद की समस्या और उसका समाधान

शोषण और भ्रष्टाचार में लिप्त हमारी पतित व्यवस्थाओं के विरोधस्वरूप उत्पन्न विद्रोहपूर्ण विचारधारा से प्रारम्भ होकर एक जन-आन्दोलन के रूप में विकसित होते हुये आतंक के पर्याय बने नक्सलवाद ने बंगाल से लेकर सम्पूर्ण भारत में आज अपने पैर पसार लिये हैं। इस लम्बी यात्रा के बीच इस विदोह के जनक कनु सान्याल ने विकृतावस्था को प्राप्त हुयी अपनी विचारधारा के हश्र से निराश होकर आत्महत्या भी कर ली। यह कटु सत्य है कि भ्रष्ट व्यवस्था और पतित नैतिक मूल्यों के प्रतिकार से अस्तित्व में आये नक्सलवाद को आज भी वास्तविक पोषण हमारी व्यवस्था द्वारा ही मिल रहा है। व्यवस्था, जिसमें सबकी भागीदारी है सरकार की भी और समाज की भी।
व्यवस्थायें आंकड़ों से चल रही हैं और आंकड़े कागज पर होते हैं, ज़ाहिर है कि हक़ीक़त भी ज़मीन पर नहीं कागज पर है। लूटमार के निर्लज्ज आखेट में हम सबने अपना-अपना नक्सलवाद विकसित कर लिया है। पूरे राष्ट्र की व्यवस्था में भ्रष्टाचार का वायरस विकराल रूप ले चुका है।
नक्सलियों को सत्ता चाहिए, वह भी हिंसा से। पर विचारणीय यह भी है कि लोकतंत्र का नक़ाब ओढ़कर देश में होने वाले चुनाव भी तो हिंसा से ही जीते जा रहे हैं। कहीं मतदान स्थल पर आक्रमण करके, कहीं मतदान दल को नजऱबन्द करके, कहीं मतदाता को डरा-धमका कर, तो कहीं उसे शराब और पैसे बाँटकर। भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं को दिखावे के लिये टिकट नहीं दी जाती किंतु उनकी पत्नियों को टिकट देकर पति के अपराध का पुरस्कार प्रदान कर दिया जाता है।
भारत में सभी समर्थों की केवल एक ही आति और एक ही धर्म है, इसे भी समझने की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार की खुली प्रतियोगिता में सम्पूर्ण नीति निर्धारक तंत्र से लेकर पालनकर्ता तक सभी अपनी-अपनी सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं। शिक्षा से लेकर नौकरी तक हर जगह पहुॅच या पैसे का बोलबाला है। सड़कें बनती हैं तो पहली वर्षा में बह जाती हैं, भवन बनते हैं तो अधिग्रहण के पहले ही खण्डहर होने की सूचना देने लगते हैं।
अमेरिका कहीं भी आक्रमण करके अपनी सरकार चलाने लगता है। भारत के विभिन्न प्रांतों में चीन द्वारा प्रायोजित आज के नक्सली जो भी कर रहे हैं उसे उन्होंने सामाजिक विद्रोह का छद्म नाम दिया है जबकि यह विद्रोह नहीं है अपितु स्पष्टत: सत्ता प्राप्ति के लिये किया जा रहा गुरिल्ला युद्ध है। सत्ता के मूल में हिंसा है, इसे नकारा नहीं जा सकता। विश्व के सभी युद्धों का सत्य यही है। कहीं तो यह हिंसा दिखायी दे जाती है और कहीं पर नहीं। जहाँ दिखायी नहीं पड़ती वहाँ भी सत्ता के मूल में हिंसा ही है। केवल हत्या ही तो हिंसा नहीं है, कई रूप हैं उसके, हत्या से भी अधिक निर्मम और वीभत्स।
श्रीलंका में गृहयुद्ध, म्यांमार में दमन चक्र, नेपाल में माओवादी हिंसा, भारत में नक्सलवाद एवं पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के पीछे भी केवल सत्ता की ही आदिम भूख ही छिपी हुयी है। मानव समाज विकास की किसी भी स्थिति में क्यों न रहा हो वह अपने प्रभुत्व और सत्ता के लिये हिंसायें करता रहा है। किंतु इस सबके बाद भी सत्ता के लिये हिंसा को किसी मान्य सिद्धांत का प्रशस्तिपत्र नहीं दिया जा सकता। सत्ताधारियों की अरक्त हिंसा ने ही नक्सलियों की रक्त हिंसा को जन्म दिया है। हमारी राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक नीतियाँ इन्हें पोषण दे रही हैं। यदि हमारी व्यवस्थायें सबको जीने एवं विकास करने का समान अवसर प्रदान कर दें तो नक्सली या किसी भी उग्रवादी हिंसा को पोषण मिलना बन्द हो जायेगा और ये विचारधारायें दम तोड़ देंगी। आरक्षण के बटते कटोरों, राजनीतिक भ्रष्टाचार, बौद्धिक विकास हेतु अनुर्वरक स्थितियाँ, सरकारी नौकरियों तथा पदोन्नतियों की खुलेआम निर्लज्ज खऱीद-फऱोख़्त, त्रुटिपूर्ण कृषिनीतियाँ, कुटीर उद्योगों की हत्या एवं असंतुलित आर्थिक उदारीकरण आदि ऐसे पोषक तत्व हैं जो नक्सलवाद को मरने नहीं देंगे, कम से कम अभी तो नहीं। तमाम सरकारी व्यवस्थाओं, भारी भरकम बजट, पुलिस और सेना के जवानों की मौत, रेल संचालन पर नक्सली नियंत्रण से उत्पन्न आर्थिक क्षति और बड़े-बड़े रणनीतिकारों की मंहगी बैठकों के बाद भी नक्सली समस्या में निरंतर होती जा रही वृद्धि एक राष्ट्रीय चिंता का विषय है।
भारत में नक्सलवाद के कारण:
1- अनधिकृत भौतिक महत्वाकांक्षाओं के अनियंत्रित ज्वार- महत्वाकांक्षी होने में कोई दोष नहीं पर बिना श्रम के या कम से कम श्रम में अधिकतम लाभ लेने की प्रवृत्ति ही सारी विषमताओं का कारण है। सारा उद्योग जगत इसी विषमता की प्राणवायु से फलफूल रहा है। आर्थिक विषमता से उत्पन्न विपन्नता की पीड़ा वर्गसंघर्ष की जनक है।
2- मौलिक अधिकारों के हनन पर नियंत्रण का अभाव - अनियंत्रित महत्वाकाक्षाओं के ज्वार ने आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर डाका डालने की प्रवृत्ति में असीमित वृद्धि की है। नक्सलियों द्वारा जिस वर्गसंघर्ष की बात की जा रही है उसमें समर्थ और असमर्थ ही मुख्य घटक हैं, दलित या आदिवासी जैसे शब्द तो केवल भोले-भाले लोगों को बरगलाने के लिये हैं। समर्थ होने की होड़ में हर कोई शामिल है। मनुष्य की इस आदिम लोलुपता पर अंकुश लगाने के लिये वर्तमान में हमारे पास कोई वैधानिक उपाय नहीं है। मौलिक अधिकारों के हनन में नक्सलवादी भी अब पीछे नहीं रहे, शायद इसी कारण कनु सान्याल को आत्महत्या करनी पड़ी।
3- शोषण की पराकाष्ठायें - सामान्यत: आम मनुष्य सहनशील प्रवृत्ति का होता है, वह हिंसक तभी होता है जब शोषण की सारी सीमायें पार हो चुकी होती हैं। नक्सलियों के लिये शोषण की पराकाष्ठायें पोषण का काम करती हैं। शोषितों को एकजुट करने और व्यवस्था के विरुद्ध हिंसक विद्रोह करने के लिये अपने समर्थक बनाना नक्सलियों के लिये बहुत आसान हो जाता है।
4- सामाजिक विषमता - सामाजिक विषमता ही वर्गसंघर्ष की जननी है। आज़ादी के बाद भी इस विषमता में कोई कमी नहीं आयी। नक्सलियों के लिये यह एक बड़ा मानसिक हथियार है।
5- जनहित की योजनाओं की मृगमरीचिका - शासन की जनहित के लिए बनने वाली योजनाओं के निर्माण एवं उनके क्रियान्वयन में गंभीरता, निष्ठा व पारदर्शिता का अभाव रहता है जिससे वंचितों को भड़काने और नक्सलियों की नयी पौध तैयार करने के लिये इन माओवादियों को अच्छ बहाना मिल जाता है।
6- राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव - आमजनता को अब यह समझ में आने लगा है कि सत्ताधीशों में न तो सामाजिक विषमतायें समाप्त करने, न भ्रष्टाचार को प्रश्रय देना बन्द करने और न ही नक्सली समस्या के उन्मूलन के प्रति लेश भी राजनीतिक इच्छाशक्ति है। आर्थिक घोटालों के ज्वार ने नक्सलियों को देश में कुछ भी करने की मानसिक स्वतंत्रता प्रदान कर दी है।
7- लचीली कानून व्यवस्था, विलम्बित न्याय एवं कड़े कानून का अभाव -अपराधियों के प्रति कड़े कानून के अभाव, विलम्ब से प्राप्त होने वाले न्याय से उत्पन्न जनअसंतोष एवं हमारी लचीली कानून व्यवस्था ने नक्सलियों के हौसले बुलन्द किये हैं।
8- आजीविकापरक शिक्षा का अभाव एवं महंगी शिक्षा - रोजगारोन्मुखी शिक्षा के अभाव, उद्योग में परिवर्तित होती जा रही शिक्षा के कारण आमजनता के लिये महंगी और दुर्लभ हुयी शिक्षा, अनियंत्रित मशीनीकरण और कुटीर उद्योंगो के अभाव में आजीविका के दुर्लभ होते जा रहे साधनों से नक्सली बनने की प्रेरणा इस समस्या का एक बड़ा नया कारण है।
9- स्थानीय लोगों में प्रतिकार की असमर्थता - निर्धनता, शैक्षणिक पिछड़ेपन, राष्ट्रीयभावना के अभाव, नैतिक उत्तरदायित्व के प्रति उदासीनता और पुलिस संरक्षण के अभाव में स्थानीय लोग नक्सली हिंसाओं का सशक्त विरोध नहीं कर पाते जिसके कारण नक्सली और भी निरंकुश होते जा रहे हैं।
10- पर्वतीय दुर्गमता का भौगोलिक संरक्षण - देश के जिन भी राज्यों में भौगोलिक दुर्गमता के कारण आवागमन के साधन विकसित नहीं हो सके वहाँ की स्थिति का लाभ उठाते हुये नक्सलियों ने अपना आतंक स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली है और अब वे इस अनुकूलन को बनाये रखने के लिये आवागमन के साधनों के विकास में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। यद्यपि, अब तो उनका बौद्धिक तंत्र नगरों और महानगरों में भी अपनी पैठ बना चुका है।
11- पड़ोसी देशों के उग्रवाद को भारत में प्रवेश की सुगमता - विदेशों से आयातित उग्र विचारधारा को भारत में प्रवेश करने से रोकने के लिये सरकार के पास राजनैतिक और कूटनीतिक उपायों का अभाव है जिसके कारण विचार और हथियार दोनो ही भारत में सुगमता से प्रवेश पाने में सफल रहते हैं।
नक्सलवाद की समस्या का समाधान - जन असंतोष के कारणों पर नियंत्रण और विकास के समान अवसरों की उपलब्धता की सुनिश्चितता के साथ-साथ कड़ी दण्ड प्रक्रिया नक्सली समस्या के उन्मूलन का मूल है। अधोलिखित उपायों पर ईमानदारी से किये गये प्रयास नक्सलवाद की समस्या के स्थायी उन्मूलन का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
नक्सली समस्या के उन्मूलन के प्रति दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का विकास जरूरी है क्योंकि बिना दृढ़ संकल्प के किसी भी उपलब्धि की आशा नहीं की जा सकती।
आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के उपायों से विकास के समान अवसरों की उपलब्धता की सुनिश्चितता।
शासकीय योजनाओं का समुचित क्रियान्वयन एवं उनमें पारदर्शिता की सुनिश्चितता, जिससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके।
समुचित एवं सहयोगपूर्ण कानून व्यवस्था- जिससे स्थानीय लोग नक्सलवादियों का प्रतिकार कर सकें और उन्हें जीवनोपयोगी आवश्यक चीजें उपलब्ध न कराने के लिये साहस जुटा सकें।
कानून व न्याय व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर बल, जिससे लोगों को सहज और समय पर न्याय मिलने की सुनिश्चितता हो सके।
आजीविकापरक एवं सर्वोपलब्ध शिक्षा की व्यवस्था, जिससे सामाजिक विषमताओं पर अंकुश लग सके।
कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवित करने के समुचित प्रयास, जिससे वर्गभेद की सीमायें नियंत्रित की जा सकें।
राष्ट्र के विकास की मुख्यधारा में नक्सलियों को लाने और उनके पुनर्व्यवस्थापन के लिये रोजगारपरक विशेष पैकेज की व्यवस्था।
चीन और पाकिस्तान से नक्सलियों को प्राप्त होने वाले हर प्रकार के सहयोग को रोकने के लिये दृढ़ राजनीतिक और सफल कूटनीतिक उपायों पर गम्भीरतापूर्वक चिंतन और तद्विषयक प्रयासों का वास्तविक क्रियान्वयन।
अगर झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा को देखा जाए तो नक्सलवाद की वजह से आदिवासी समाज को भारी क्षति हो रही है। झारखंड में हजारों निर्दोष आदिवासियों को नक्सली होने के आरोप में विभिन्न जेलों में डाल दिया गया है, वहीं छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में भी कई हजार निर्दोष लोग जेलों में हैं। इसी तरह कई हजार लोग फर्जी मुठभेड़ में मारे गये हैं और महिलाओं के साथ सुरक्षा बलों ने बलात्कार किया है। वहीं हजारों लोगों को पुलिस मुखबिर होने के आरोप में नक्सलियों ने मार गिराया है और बड़ी संख्या में आम ग्रामीणों को नक्सलियों ने मौत के घाट उतार दिया है। कुल मिला कर कहें तो दोनों तरफ से आदिवासियों की ही हत्या हो रही है और उनका जीवन तबाह हो रहा है। यहां यह भी चर्चा करना जरूरी होगा कि बंदूक की नोंक पर नक्सलियों को खाना खिलाने, पानी पिलाने व शरण देने वाले आदिवासियों पर सुरक्षा बल लगातार अत्याचार कर रहे हैं लेकिन अपना व्यापार चलाने के लिए नक्सलियों को लाखों रुपये, गोला-बारूद और अन्य जरूरी समान देने वाले औद्योगिक घरानों पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होती है।
देश में आदिवासियों के संवैधानिक, कानूनी और पारंपरिक अधिकारों का घोर उल्लंघन हुआ है। पांचवीं अनुसूची के प्रावधान राज्यों में लागू नहीं हैं। इसके साथ ट्राइबल सब-प्लान का पैसा भी दूसरे मदों में खर्च किया जा रहा है, जो आदिवासी हक को लूटने जैसा है। आदिवासियों की इस हालत के लिए उनके जनप्रतिनिधि ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं, जिन्होंने कभी भी ईमानदारी से उनके सवालों को विधानसभा और संसद में नहीं उठाया। फलस्वरूप, आज नक्सलवाद देश की सबसे बड़ी समस्या बन गयी है लेकिन आदिवासियों की समस्या कभी भी देश की समस्या नहीं बन सकी बल्कि आदिवासियों को ही तथाकथित मुख्यधारा की समस्या मान लिया गया है क्योंकि वे ही प्राकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों को सौंपना नहीं चाहते हैं और यही देश की सबसे बड़ी समस्या है। बस्तर में नक्सलियों की समानांतर सरकार चल रही है, कश्मीर में उग्रवादियों की, प्रदेशों में बाहुबलियों की और देश में अंतर्राष्ट्रीय माफिय़ाओं की समानांतर अंतर्सरकारें चल रही हैं।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज का एक सदस्य है और समाज के अन्य सदस्यों के प्रति प्रतिक्रिया करता है, जिसके फलस्वरूप समाज के सदस्य उसके प्रति प्रक्रिया करते हैं। यह प्रतिक्रया उस समय प्रकट होती है जब समूह के सदस्यों के जीवन मूल्य तथा आदर्ष ऊॅचे हों, उनमें आत्मबोध तथा मानसिक परिपक्वता पाई जाए साथ ही वे दोषमुक्त जीवन व्यतीत करते हों। परिणाम स्वरूप एक स्वस्थ समाज का निमार्ण होगा तथा समाज में नागरिकों का योगदान भी साकारात्मक होगा। सामाजिक विकास में सहभागी होने के लिए ज्योतिष विषलेषण से व्यक्ति की स्थिति का आकलन कर उचित उपाय अपनाने से जीवन मूल्य में सुधार लाया जा सकता है साथ ही लगातार होने वाले अपराध, हिंसा से समाज को मुक्त कराने में भी उपयोगी कदम उठाया जा सकता है। समाज और संस्कृति व्यक्ति के व्यवहार का प्रतिमान होता है, जिसमें आवश्यक नियंत्रण किया जाना संभव हो सकता है। सामाजिक तौर पर व्यवहार को नियंत्रण करने के लिए प्राथमिक स्तर पर विद्यालय जिसमें स्कूल में बच्चों के आदर्ष उनके शिक्षक होते हैं। शिक्षकों के आचरण व व्यवहार, रहन-सहन का बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ता है, उनके सौहार्दपूण व्यवहार से साकारात्मक और विपरीत व्यवहार से असुरक्षा, हीनता की भावना उत्पन्न होती है, जिसको देखने के लिए ज्योतिषीय दृष्टि है कि किसी की कुंडली में गुरू की स्थिति के साथ उसका द्वितीय तथा पंचम भाव या भावेष की स्थिति उसके गुरू तथा स्कूल षिक्षा से संबंधित क्षेत्र को दर्षाता है ये सभी अनुकूल होने पर सामाजिक विकास में सहायक होते हैं किंतु प्रतिकूल होने पर षिक्षा तथा षिक्षकों के प्रति असंतोष व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार तथा उसके प्रतिक्रिया स्वरूप सामाजिक विकास में सहायक या बाधक हो सकता है। उसके उपरांत बच्चों के विकास में आसपडोस का बहुत प्रभाव पड़ता है, अक्सर अभिभावक अपने बच्चों को आसपड़ोस में खेलने से मना करते हैं कि पड़ोस के बच्चों का व्यवहार प्रतिकूल होने से उनके बच्चों पर दुष्प्रभाव पड़ेगा, जिसके ज्योतिष दृष्टि है कि पड़ोस को जातक की कुंडली में तीसरे स्थान से देखा जाता है अगर तीसरा स्थान अनुकूल हो तो पड़ोस का वातावरण अनुकूल होगा, जिससे जातक का व्यवहार भी बेहतर होगा क्योंकि तीसरा स्थान मनोबल का भी होगा अत: मनोबल उच्च होगा। उसी प्रकार समुदाय और संस्कृति का प्रभाव देखने के लिए चूॅकि सकुदाय या जाति, रीतिरिवाज, नगरीय या ग्रामीण वातावरण का प्रभाव भी विकास में सहायक होता है, जिसे ज्योतिष गणना में पंचम तथा द्वितीय स्थान से देखा जाता है। पंचम स्थान उच्च या अनुकूल होने से जातक का सामाजिक परिवेष अच्छा होगा जिससे उसके सामाजिक विकास की स्थिति बेहतर होने से उस जातक के सामाजिक विकास में सहायक बनने की संभवना बेहतर होगी। इस प्रकार उक्त स्थिति को ज्योतिषीय उपाय से अनुकूल या प्रतिकूल बनाया जाकर समाज और राष्ट्र उत्थान में योगदान दिया जा सकता है।
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