Saturday 29 August 2015

सहनशीलता

एक विद्धान थे, जो कई वेदों के ज्ञाता था तथा बच्चों को ज्ञान भी दिया करते थे। वह लोगों की समस्याएं सुनकर उनका समाधान भी बताया करते थे। वह बड़े नेक और सच्चे थे, इसलिए उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। हर समाज का व्यक्ति उनका सम्मान करता था। वह किसी से कभी नाराज नहीं होते थे, लेकिन जिसका सम्मान जितना अधिक होता है, उसके विरोधियों को वह उतना ही खलने लगता है। विरोधी खेमे में भी यह चर्चा आम थी। विरोधी गुट के आचार्य ने सोचा- देखता हूं, उसे कैसे उसे गुस्सा नहीं आता। मैं आज यह भ्रम तोड़ कर रहूंगा।
यह कह कर वह अपने घर आए और भेष बदल कर विद्धान की कुटिया में जा पहुंचे। वहां बहुत लोग पहले से ही बैठे थे। उन्होंने पास जाकर अभिवादन किया और बैठ गए। कुछ देर बाद उन्होंने कहा, मुझे कुछ जानना है। आपकी इजाजत हो तो पूछूं विद्धान ने कहा, क्या जानना चाहते हो? अगर रब ने चाहा तो तुम्हें जवाब जरूर मिलेगा। आचार्य ने पूछा- मल का स्वाद कैसा होता है? यह अटपटा सवाल सुनकर सभी हैरान रह गए। विद्धान बोले, मल का स्वाद शायद कुछ-कुछ मीठा होता है। उसने पूछा, आपको कैसे पता, मीठा होता है या कड़वा। क्या आपने चख कर देखा है? आचार्य का सवाल सुनकर वहां बैठे लोग आगबबूला हो गए कि इसकी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की? लेकिन विद्धान ने सभी को शांत किया और बोले- मैंने मीठा इसलिए कहा कि अक्सर देखा जाता है कि उस पर मक्खियां भिनभिनाती रहती हैं और वे आम तौर पर मीठे पर ही बैठती हैं। यह सुनकर आचार्य नतमस्तक हो गए और अपना परिचय देते हुए बोले, आपकी सहनशीलता वंदनीय है। आपके बारे में जैसा सुना, वैसा ही पाया।
Pt.P.S.Tripathi
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