Saturday 18 April 2015

डॉक्टर बनने का महयोग


दसवीं/बारहवीं के बाद कौन सा विषय चुनूं?
दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही 'कौन-सा विषय चुनें?यह यक्ष प्रश्न बच्चों के सामने आ खड़ा होता है। माता-पिता को अपनी महत्वाकांक्षाओं को परे रखकर एक नजर कुंडली पर भी मार लेनी चाहिए। बच्चे किस विषय मेंं सिद्धहस्त होंगे, यह ग्रह स्थिति स्पष्ट बताती है। हम सब अपनी पसंद के कार्यक्षेत्र मेंं जाना चाहते हैं, परन्तु बहुत बार हमारी यह इच्छा अधूरी रह जाती है। ज्योतिष एक ऐसा विषय है जिसके माध्यम से इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि कौन सा क्षेत्र हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ है। वह जो भी कार्य करे वह उसकी रुचि के अनुसार हो, क्योंकि रुचि के अनुसार कार्य करने मेंं सफलता शत प्रतिशत मिलती है परन्तु कभी ऐसा भी होता है कि अपनी रुचि वाला क्षेत्र चुन कर भी असफलता हाथ लगती है। ऐसा अक्सर होता है, अत: यह जानना जरूरी हो जाता है कि कौन सा कार्य हमारे अनुकूल होगा जिससे सफलता मिले।
ह र व्यक्ति मेंं अलग-अलग क्षमता होती है लेकिन स्वयं यह तय करना कठिन होता है कि हममेंं क्या क्षमता है इसलिये कभी कभी गलत निर्णय लेने से असफलता हाथ लगती है, परन्तु ज्योतिष एक ऐसा विषय है जिसके द्वारा उचित व्यवसाय/क्षेत्र चुनने मेंं मार्गदर्शन लिया जा सकता है।
आजकल हाईस्कूल करने के बाद एक दुविधा यह रहती है कि कौन से विषय चुने जाएं जिससे डॉक्टर या इन्जीनियर का व्यवसाय चुनने में सहायता मिल सके। इसके लिये कुन्डली के ज्योतिषीय योग हमारी सहायता कर सकते हैं तो आइये इस पर चर्चा करें कि ज्योतिष के द्वारा कैसे जाना जाय कि किस क्षेत्र में सफलता मिलेगी।
जातक की जन्म पत्रिका मेंं लग्न, लग्नेश, दशम भाव, दशमेश इन पर विभिन्न ग्रहों का प्रभाव, जातक को उचित व्यवसाय जैसे कि डॉक्टर या इन्जीनियर के क्षेत्र का चयन करने में सहायता करता है। ग्रहों का विभिन्न राशियों मेंं स्थित होना भी व्यवसाय का चयन करने मेंं मदद करता है। यदि चर राशियों मेंं अधिक ग्रह हों तो जातक को चतुराई, युक्ति निपुणता से सम्बधित व्यवसाय मेंं सफलता मिलती है। वह ऐसा व्यवसाय करता है जिसमेंं निरंतर घूमना पड़ता हो। और यदि स्थिर राशि मेंं ज्यादा अचर ग्रह होते हैं तो एक स्थान वाला कार्य करता है जिसमें डॉक्टरी मुख्य है तथा द्विस्वभाव राशि मेंं अधिक ग्रह हों तो जातक अध्यापन आदि कार्य करता है जिसमेंं एक स्थान पर भी तथा काम के सिलसिले में आना जाना भी आवश्यक होता है।
आज जीवन के हर मोड़ पर आम आदमी स्वयं को खोया हुआ महसूस करता है। विशेष रूप से वह विद्यार्थी जिसने हाल ही मेंं दसवीं या बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की है, उसके सामने सबसे बड़ा संकट यह रहता है कि वह कौन से विषय का चयन करे जो उसके लिए लाभदायक हो। एक अनुभवी ज्योतिषी आपकी अच्छी मदद कर सकता है।
जन्मपत्रिका मेंं पंचम भाव से शिक्षा तथा नवम भाव से उच्च शिक्षा तथा भाग्य के बारे मेंं विचार किया जाता है। सबसे पहले जातक की कुंडली मेंं पंचम भाव तथा उसका स्वामी कौन है तथा पंचम भाव पर किन-किन ग्रहों की दृष्टि है, ये ग्रह शुभ-अशुभ है अथवा मित्र-शत्रु, अधिमित्र हैं विचार करना चाहिए। दूसरी बात नवम भाव एवं उसका स्वामी, नवम भाव स्थित ग्रह, नवम भाव पर ग्रह दृष्टि आदि शुभाशुभ होगा। तीसरी बात जातक का लग्न के दशम भाव का स्वामी नवांश कुंडली मेंं किस राशि मेंं किन परिस्थितियों मेंं स्थित है ज्ञात करना, तीसरी स्थिति से जातक की आय एवं आय के स्त्रोत का ज्ञान होगा। जन्मकुंडली मेंं जो सर्वाधिक प्रभावी ग्रह होता है सामान्यत: व्यक्ति उसी ग्रह से संबंधित कार्य-व्यवसाय करता है।
यदि हमेंं कार्य व्यवसाय के बारे मेंं जानकारी मिल जाती है तो शिक्षा भी उसी से संबंधित होगी। जैसे यदि जन्म कुंडली मेंं गुरु सर्वाधिक प्रभावी है तो जातक को चिकित्सा, लेखन, शिक्षा, खाद्य पदार्थ के द्वारा आय होगी। यदि जातक को चिकित्सक योग है तो जातक जीव विज्ञान विषय लेकर चिकित्सक बनेगा। यदि पत्रिका मेंं गुरु कमजोर है तो जातक आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, रैकी या इनके समकक्ष ज्ञान प्राप्त करेगा। श्रेष्ठ गुरु होने पर एमबीबीएस की पढ़ाई करेगा।
यदि गुरु के साथ मंगल का श्रेष्ठ योग बन रहा है तो शल्य चिकित्सक, यदि सूर्य से योग बन रहा है तो नेत्र चिकित्सा या सोनोग्राफी या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से संबंधित विषय की शिक्षा, यदि शुक्रहै तो महिला रोग विशेषज्ञ, बुध है तो मनोरोग तथा राहु है तो हड्डी रोग विशेषज्ञ बनेगा।
जन्म पत्रिका मेंं अनेक प्रकार के योगों का निर्माण ग्रहों की स्थिति अनुसार होता है। ग्रहों से बनने वाले योगों मेंं से कुछ योग ऐसे होते हैं, जो व्यक्ति के चिकित्सक बनने मेंं सहायक होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
* कुंडली मेंं आत्मकारक ग्रह अपनी मूल त्रिकोण राशि मेंं स्थित होकर लग्न मेंं हों और उनकी युति पंचमेंश से होने पर व्यक्ति को चिकित्सक बनाने मेंं सहायक है।
* मेष, सिंह, धनु या वृश्चिक राशि का संबंध दशम भाव से होने पर व्यक्ति चिकित्सा के क्षेत्र मेंं सफलता प्राप्त करता है।
* राहू-केतु बली व शुभ स्थान पर होने से व्यक्ति चिकित्सक बनता है।
* दशम भाव या दशमेश से मंगल अथवा केतु का दृष्टि-युति संबंध होने पर शल्य चिकित्सक व्यक्ति बन सकता है।
* यदि मंगल दशम भाव से स्वदृष्टि वृश्चिक राशि को देखता हो तो वह जातक चिकित्सा क्षेत्र मेंं होता है और सर्जन बनता है। मंगल की चतुर्थ दृष्टि पंचम भाव पर उच्च, स्व मित्र दृष्टि के रुप मेंं पतो वह विद्या के क्षेत्र मेंं उत्तम लाभ पाता है। मंगल की नीच, शत्रु -दृष्टि, विद्या मेंं मन न लगने का कारण होता है। बुध की उच्च स्वदृष्टि संतान, विद्या मेंं उत्तम लाभकारी होती है। मित्र दृष्टि हो तो जातक को सभी सुख मिलते हैं। ऐसा जातक चित्रकला, शिल्पकला, लेखक, पत्रकार आदि होता है। व्यापार-व्यवसाय मेंं भी सफल होता है।
* गुरु यदि पंचम दृष्टि से देखता हो तो वह जातक ईमानदार, कर्त्तव्यनिष्ठ, आज्ञाकारी होता है। नवम भाव से गुरु पंचम भाव पर दृष्टि स्व, उच्च, मित्र रखता हो तो ऐसा जातक विद्वान, ज्ञानी, संतों का सेवक, धर्म-कर्म मेंं पूर्ण आस्थावान होता है तथा उसकी संतान भाग्यशाली होती है। गुरु की एकादश भाव से पूर्ण दृष्टि पती है तो ऐसा योग चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता देता है साथ ही ऐसे जातक को चिकित्सा संबंधी व्यवसाय कराता है।
* चिकित्सा के क्षेत्र मेंं सफलता पाने की चाह रखने वालों के शनि और राहु सहायक ग्रह होते हैं। शनि चिकित्सा के क्षेत्र मेंं प्रवेश करवाता है। शनि लौह तत्व का कारक है तथा डॉक्टरों का अधिकतम कार्य लोहे से बने औजारों और मशीनों से ही होता है। शनि मेंं साथ यदि राहु की भी सही स्थिति कुंडली मेंं बन जाए तो व्यक्ति डॉक्टर होने के साथ-साथ शल्य चिकित्सक या विशेषज्ञ होता है।
चिकित्सा शिक्षा मेंं बेहतर
परिणाम कैसे..???
यदि जातक की कुंडली मेंं शनि कर्म, पराक्रम सप्तम आय स्थान मेंं स्थित हो तो विद्यार्थी का रुझान फिजिक्स, कैमेंस्ट्री, बॉयोलॉजी की तरफ होता है। यदि इन्हीं घरों मेंं शनि उच्च का स्वग्रही या मित्र राशि मेंं हो तो डॉक्टरी पेशे मेंं उसको विशेष दक्षता प्राप्त होती है। शनि कमजोर हो तो थोड़ी सी अधिक मेंहनत कर बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।
सूर्य का प्रभाव:
सर्वप्रथम सूर्य को लें, यहाँ से यदि पंचम भाव पर सिंह राशि अपनी स्वदृष्टि से देखता है तो अच्छा सर्जन बनाता है। एकादश भाव मेंं कोई ग्रह हो, नीच को छोड़ सभी शुभफल प्राप्त होते हैं। सूर्य की तुला राशि पर दृष्टि मेडीसिन के क्षेत्र में सफलता देता है। अत: ऐसे जातकों को सूर्य की आराधना व सूर्य से संबंधित वस्तुओं का दान अपने शरीर से सात या नौ बार उतारकर रविवार को करना चाहिए। इस प्रकार अनिष्ट प्रभाव से बचा जा सकता है। जिन ग्रहों की नीच दृष्टि पड़े, उससे संबंधित दान करें।
चंद्रमा का प्रभाव:
चंद्रमा की स्वदृष्टि पंचम भाव पर पड़े तो जातक स्त्री एवं बाल-रोग विशेषज्ञ होता है। यदि चंद्रमा गुरू अथवा सूर्य के साथ हो तो कैंसर अथवा हृदय रोग विशेषज्ञ बनाते हैं।
चिकित्सा व्यवसाय (डाक्टर आदि बनने) के कुछ संभावित योग निम्न हैं:-
* लग्न, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव मेंं सूर्य, चंद्रमा अथवा गुरू के साथ मंगल की युति जातक को डॉक्टर बनाने मेंं सहायक है।
* यदि लग्न मेंं मंगल स्वराशि अथवा उच्च राशि का हो, सूर्य पंचम भाव से संबंध बनाए, तो ऐसे योग वाला सर्जरी मेंं निपुण होता है।
* कुंडली मेंं सूर्य, मंगल और गुरू सहित केतु भी बली होकर लग्न, पंचम और दशम भाव से संबंध बनाए, तो जातक चिकित्सा के क्षेत्र मेंं सफलता पाता है।
* यदि जन्मकुंडली मेंं कर्क राशि और मंगल दोनों बलवान हों तथा लग्न एवं दशम भाव से मंगल और राहू का संबंध किसी भी रूप मेंं हो, तो जातक चिकित्सा के क्षेत्र मेंं सफलता प्राप्त करता है।
* यदि सूर्य, मंगल, गुरु शनि एवं राहु कुन्डली मेंं बली हों और इनका दशम , एकादश, द्वितीय व सप्तम भाव से सम्बध हो तो जातक डॉक्टर बनता है।
* दशम भाव मेंं सूर्य-मंगल की युति जातक को शल्य चिकित्सक बनाती है।
* चतुर्थेश दसमस्थ हो तो जातक औषधि चिकित्सक होता है।
* डॉक्टर बनने के योगों मेंं सूर्य मुख्य भूमिका निभाता है अत: सूर्य का सम्बध उपर्युक्त भावों से तथा ग्रहों से डॉक्टर बनने में मदद करता है।
* पंचम तथा षष्ट भाव का परस्पर सम्बध भी जातक को रोग दूर करने की बुद्धि प्रदान करता है।
* दशम भाव या दसमेंश से मंगल या केतु का दृष्टि या युति राशि गत सम्बध हो तो जातक शल्य चिकित्सक होता है।
* दशम भाव मेंं शनि तथा सूर्य की युति जातक को दंत चिकित्सक बनाती है।
शनि-राहु का योग भी बनाए डॉक्टर:
चिकित्सा के क्षेत्र मेंं सफलता पाने की चाह रखने वालों के शनि और राहु सहायक ग्रह होते हैं। शनि चिकित्सा के क्षेत्र मेंं प्रवेश करवाता है। शनि लौह तत्व का कारक है तथा डॉक्टरों का अधिकतम कार्य लोहे से बने औजारों और मशीनों से ही होता है। शनि मेंं साथ यदि राहु की भी सही स्थिति कुंडली मेंं बन जाए तो व्यक्ति डॉक्टर होने के साथ-साथ शल्य चिकित्सक या विशेषज्ञ होता है।
चिकित्सा से सम्बन्धित कार्यो मेंं बुध और शुक्र का विशेष महत्व हैं। ''शुक्रन्दौ शुक्रदृष्टो रसवादी (1/2/86) अर्थात यदि कारकांश मेंं चन्द्रमा हो और उस पर शुक्र की दृष्टि हो तो रसायनशास्त्र को जानने वाला होता हैं। '' बुध दृष्टे भिषक (1/2/87) अर्थात यदि कारकांश मेंं चन्द्रमा हो और उस पर बुध की दृष्टि हो तो वैद्य होता हैं। जातक परिजात (अ.15/44) के अनुसार यदि लग्न या चन्द्र से दशम स्थान का स्वामी सूर्य के नवांश मेंं हो तो जातक औषध या दवा से धन कमाता है। यदि चन्द्रमा से दशम मेंं शुक्र-शनि हो तो वैद्य होता है।
वृहज्जातक (अ.10/2) के अनुसार लग्न, चन्द्र और सूर्य से दशम स्थान का स्वामी जिस नवांश मेंं हो उसका स्वामी सूर्य हो तो जातक को औषध से धनप्राप्ति होती हैं। उत्तर कालामृत (अ. 5 श्लो. 6व 18) से भी इसकी पुष्टि होती हैं।
फलदीपिका (5/2) के अनुसार सूर्य औषधि या औषधि सम्बन्धी कार्यों से आजीविका का सूचक है। यदि दशम भाव मेंं हो तो जातक लक्ष्मीवान, बुद्धिमान और यशस्वी होता है। ज्योतिष के आधुनिक ग्रन्थों मेंं अधिकांश ने चिकित्सा को सूर्य के अधिकार क्षेत्र मेंं माना हैं और अन्य ग्रहों के योग से चिकित्सा-शिक्षा अथवा व्यवसाय के ग्रहयोग इस प्रकार बतलाए हैं:
सूर्य एवं गुरू फिजीशियन
सूर्य एवं बुध परामर्श देने वाला फिजीशियन
सूर्य एवं मंगल फिजीशियन
सूर्य एवं शुक्र एवं गुरू मेंटेर्निटी
सूर्य,शुक्र,मंगल, शनि वेनेरल
सूर्य एवं शनि हड्डी/दांत सम्बन्धी
सूर्य, शुक्र, बुध कान, नाक, गला
सूर्य एवं शुक्र,राहु , यूरेनस एक्सरे
सूर्य एवं युरेनस शोध चिकित्सा
सूर्य एवं चन्द्र, बुध उदर चिकित्सा, पाचनतन्त्र
सूर्य एवंचन्द्र , गुरू हर्निया , एपेण्डिक्स
सूर्य एवं शनि (चतुर्थ कारक) टी. बी. , अस्थमा
सूर्य एवं शनि (पंचम कारक) फिजीशियन
योग्य चिकित्सक बनने हेतु ग्रह-दोषों
को दूर करने का उपाय:
उपरोक्त वर्णित ग्रह दशाओं में अगर अनुकूलता न हो और चिकित्सा के क्षेत्र में सेवा तथा कार्य करने की प्रबल ईच्छा हो तो अपनी ग्रह स्थिति मेंं किसी भी ग्रह की अशुभ दृष्टि या प्रतिकूल स्थिति बन रही हो तो उन ग्रहों से संबंधित दान की वस्तुएँ दान करनी चाहिए। ग्रहों की शांति करानी चाहिए। साथ ही किसी योग्य ज्योतिषाचार्य से अपनी कुंडली का आकलन कराना चाहिए।

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