भैरव जयंती -
मार्गषीर्ष मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को भैरव जयंती मनाई जाती है। इसे कालाष्टमी भी कहते हैं। भगवान षिव के दो रूप हैं पहला भैरव और दूसरा विष्वनाथ। इस तिथि को भैरव जी का जन्म हुआ माना जाता है। भैरव का जन्म मनाने हेतु इस दिन व्रत रखकर जल अध्र्य देकर भैरवजी का पूजन करते हैं। भैरव की सवारी कुत्ता को माना गया है। इसलिए इस दिन कुत्ते को आहार देने का रिवाज है। रात्रि जागरण करके षिव-पावर्ती की कथा सुननी चाहिए। भैरव का मुख्य हथियार दण्ड है, जिसके कारण भैरव का दूसरा नाम दण्डपति भी है। अतः जीवन में पापाकर्म करने पर भैरव दण्डित करते हैं अतः इस दिन उनकी पूजा तथा आराधना करने से पाप का प्रायच्चित होता है तथा दण्ड में कमी होती है। भैरव का दिन रविवार तथा मंगलवार को माना गया है अतः इन दोनों दिन भैरव की पूजा करने से भूत-प्रेत बाधाएॅ भी समाप्त होती है।
कथा -
एक बार ब्रम्हा तथा विष्णु में यह विवाद छिड़ गया कि विष्व का धारण हार तथा परम तत्व कौन है। इस विवाद को हल करने के लिए महर्षियों को बुलाया गया। महर्षियों ने निर्णय दिया कि परम तत्व कोई अव्यक्त सत्ता है। ब्रम्हा तथा विष्णु उसी विभूति से निर्मित हैं। विष्णुजी ने यह बात स्वीकार कर ली किंतु ब्रम्हाजी को यह स्वीकार्य नहीं था। वे अपने को ही परमतत्व मानते थे। परमतत्व की अवज्ञा बहुत बड़ा अपराध था। षिवजी को जब इस बात का पता चला तब उन्होंने ब्रम्हाजी को परमतत्व से अवगत कराने के उद्देष्य से भैरव का रूप धारण करके ब्रम्हाजी का गुरूर तोड़ा। क्योंकि वह दिन अष्टमी का मार्गषीर्ष था अतः उस दिन को भैरव का जन्म दिवस माना जाता है।
Pt.P.S Tripathi
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