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Friday 21 August 2015

हाथ की उंगलियां और मनुष्य के विचार एवं भावनाएं

हाथ की उंगलियां एवं हथेली में स्थित विभिन्न ग्रहों के पर्वत व्यक्ति के विचारों एवं भावनाओं को दर्शाते हैं। मनुष्य के विचार एवं भावनाएं सत्व, राजस एवं तमस गुणों का मिश्रण होते हैं। सत्व गुण की मुख्य विशेषता ज्ञान एवं सहनशीलता है। अन्य विशेषताएं करुणा, विश्वास, प्रेम, आत्म-नियंत्रण, समझ, शुद्धता धैर्य, और स्मृति हैं। राजस की मुख्य विशेषता गतिविधि एवं प्रवृत्ति है। अन्य विशेषताएं महत्वाकांक्षा, गतिशीलता, बेचैनी, जल्दबाजी, क्रोध, इष्या, लालच और जुनून है। तमोगुण की मुख्य विशेषता है जड़ता या मूढ़ता। अन्य विशेषताएं सोच या व्यवहार, लापरवाही, आलस, भुलक्कड़पन, हिंसा और आपराधिक विचार हैं।
मनुष्य के विचारों में किस गुण की प्रधानता है इसका निर्धारण उस मनुष्य की हाथ के हथेलियों में स्थित विभिन्न ग्रहों के पर्वत एवं उंगलियों को देखकर किया जा सकता है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार हाथ की हथेली को मुख्यत: तीन भागों मे विभाजित किया जाता है। ये तीन भाग सत्व, राजस एवं तमस गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हथेली के अग्र भाग में स्थित गुरु, शनि, सूर्य एवं बुध के पर्वत जो कि क्रमश: तर्जनी, मध्यमा, अनामिका एवं कनीष्टिका उंगलियों के ठीक नीचे स्थित होते हैं। मनुष्य के सात्विक गुणों को दर्शाते है। मंगल का उच्च पर्वत एवं मंगल का निम्न पर्वत जो हथेली के मध्य भाग में स्थित होते हैं राजसिक तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। शुक्र एवं चंद्रमा के पर्वत हथेली के निचले भाग मे स्थित होते हैं। ये मनुष्य के तामसिक गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस ग्रह का पर्वत जितना उभरा हुआ होगा व्यक्ति में उस ग्रह से संबन्धित गुण उतने ही अधिक होंगे।
हाथ की उंगलियों में सत्व, राजस एवं तमस गुण क्रमश उंगली के ऊर्ध्व, मध्य एवं निम्न भाग दर्शाते हैं। उंगलियों के ये भाग अंग्रेजी में फैलैंगक्स के नाम से जाने जाते हैं। व्यक्ति की हथेलियों एवं उंगलियां को देखकर उसके व्यक्तित्व, आचार, विचार एवं व्यवहार के बारे में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता है। उंगलियों का निचला भाग जो कि हथेली से जुड़ा हुआ होता है व्यक्ति की महत्वाकांक्षाओं को दर्शाता है। यह भाग व्यक्ति के भौतिक, आर्थिक स्तर, उसके खान-पान, रहन-सहन, सामाजिक स्तर आदि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं। उंगली के इस भाग से शरीर एवं बुद्धि के सामंजस्य का अध्ययन किया जाता है। उंगलियों का मध्य भाग व्यक्ति की व्यावहारिकता एवं उसके आस-पास के वातावरण से उसके सामंजस्य का आभास होता है। उंगली के इस भाग से व्यक्ति के कार्य क्षेत्र एवं व्यवसाय के बारे में भी जानकारी मिलती है। उंगलियों के ऊर्ध्व भाग से व्यक्ति की नियमबद्धता, दूरदर्शिता, कार्यकुशलता, सदाचरण एवं नैतिक मूल्यों का पता चलता है।
जिन व्यक्तियों की उंगलियों के तीनों भाग बराबर होते हैं उनका व्यक्तित्व आमतौर पर संतुलित होता है। जब एक व्यक्ति की उंगलियों के ऊर्ध्व एवं मध्य भाग बराबर होते हैं तब उस व्यक्ति की संकल्प शक्ति एवं निर्णय लेने की क्षमता मे सामंजस्य होता है। यदि ऊर्ध्व भाग अन्य दो भागों से बड़ा होता है तो संकल्प शक्ति की कमी का कारण व्यक्ति अपनी इच्छाओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति में कमी पाता है। संकल्प शक्ति की कमी के कारण सही निर्णय लेने की क्षमता भी प्रभावित होती है एवं व्यक्ति अपनी इच्छाओं तथा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सही निर्णय नहीं ले पाता है।
यदि उंगलियों का मध्य भाग अन्य दो भागों से अधिक लंबा है तो व्यक्ति की तार्किक क्षमता एवं बौद्धिक क्षमता प्रबल होती है। परंतु उसकी संकल्प शक्ति एवं कार्य के प्रति एकाग्रता मे कमी कारण सफलता मिलने मे देरी हो सकती है। ऐसे व्यक्ति दूसरों की सफलता देखकर ईर्ष्या की भावना से भी ग्रस्त हो सकते हैं। क्योंकि बुद्दिमत्ता में अन्य व्यक्तियों से कम न होने पर भी वे उनके जीतने सफल नहीं होते हैं। परंतु इसका प्रमुख कारण यह है कि उनकी संकल्प शक्ति एवं इच्छा शक्ति मे कमी है और इसे केवल मेहनत एवं कठिन परिश्रम से ही जीता जा सकता है।
यदि उंगलियों का निम्न भाग अन्य दो भागों से अधिक लंबा होता है तो आप विवेक पूर्ण एवं परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेने में समर्थ हैं। ऐसे व्यक्ति भावुक प्रकृति के होते हैं। वे अपना समय, पैसा एवं सलाह जरूरतमंदों के लिए खर्च करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। इसके लिए यदि उन्हे आलोचना भी सहनी पड़े तो वे उसके लिए तैयार रहते हैं।
हाथ की उंगलियों की स्थिति जिस व्यक्ति की पूर्ण रूप से व्यस्थित होती है वे व्यक्ति जीवन में बहुत सफल होते हैं। लंबी एवं पतली उंगलियों वाले व्यक्ति भावुक होते हैं जबकि मोटी उंगलियों वाले व्यक्ति मेहनती होते हैं। जिन व्यक्तियों की उंगलियां कोण के आकार की होती हैं वे अत्यधिक संवदेनशील होते हैं तथा अपनी वेषभूषा एवं सौन्दर्य का विशेष ध्यान रखते हैं। जिन व्यक्तियों की उंगलियां ऊपर से नुकीली होती हैं वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के होते हैं तथा इनकी कल्पना शक्ति अद्भुत होती है। स्वभाव से ये नम्र होते हैं। जिन व्यक्तियों की उंगलिया ऊपर से चौकोर होती हैं वे व्यावहारिक, तर्कसंगत एवं नम्र होते हैं। ये परम्पराओं एवं रूढि़वादिता में विश्वास रखते हैं। जिनकी उंगलियां स्पैचुल के आकार की होती हैं वे व्यक्ति साहसी, यथार्थवादी एवं घूमने के शौकीन होते हैं। ये कार्य करने के शौकीन होते है एवं अनेक विषयों के ज्ञाता होते हैं। इस तरह के व्यक्ति वैज्ञानिक, इंजिनियर या कार्य कुशल तकनीशियन होते हैं। जिन व्यक्तियों की उंगलियां सीधी होती हैं वे व्यक्ति ईमानदार, शालीन एवं न्यायसंगत होते हैं। जीवन में अच्छी तरक्की करते हैं। जिन व्यक्तियों की उंगलियां गांठदार होती हैं वे बहुत व्यावहारिक एवं अच्छे नियोजक होते है। वे स्पष्टवक्ता होते है। लंबी उंगलियों वाले व्यक्ति शिक्षा में रुचि रखते हैं एवं अच्छे विश्लेषक होते हैं।
जिस हाथ में उंगलियों की स्थिति अव्यवस्थित होती है विशेष तौर पर जब कनिस्ठिका उंगली जो कि बुध की उंगली के नाम से जानी जाती है बहुत छोटी होती है तब व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी पाई जाती है। उंगलियों की आकृति धनुषाकार होने पर व्यक्ति का व्यक्तित्व संतुलित होता है तथा वह व्यक्ति बहुत विचारशील होता है।
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Thursday 4 June 2015

ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म- संतप्त दाम्पत्य जीवन -



किसी षिषु के जन्म के उपरांत सर्वप्रथम विचारणीय तथ्य होता है कि उसका जन्म कहीं मूल के नक्षत्रों में तो नहीं हुआ है। आजकल आधुनिक मत रखने वाले लोग भी सबसे पहले यह ज्ञात करते हैं कि कोई मूल का नक्षत्र तो नहीं है, उसके उपरांत अपने बच्चे का जन्म समय तथा दिनांक तय करते हैं। मूल नक्षत्र का जन्म जहाॅ जीवन में कष्ट तथा बाधा देता है उसी प्रकार से यह व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में भी बाधा विलंब तथा वैवाहिक सुख में कमी का कारण बनता है। ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म का अषुभ असर स्त्री तथा पुरूषों दोनों पर अषुभ फलकारी होता है। इस नक्षत्र में जन्म होने पर जातक के विवाह होने में कठिनाई होती है या विवाह के बाद पार्थक्य दोष लगता है, इस पर यदि सप्तम भाव या सप्तमेष किसी प्रकार पीडि़त हो तो कष्ट दोगुना हो जाता है। किसी व्यक्ति का ज्येष्ठा नक्षत्र हो तो उसका विवाह कभी भी घर के बड़े संतान से नहीं करना चाहिए और ना ही ज्येष्ठ मास में करना चाहिए। इस नक्षत्र में जन्में जातक को विवाह से पूर्व कुंडली मिलान करते समय वर तथा वधु दोनों के नक्षत्रों की जानकारी करनी चाहिए तथा समाधान हेतु विवाह से पहले नक्षत्र के मंत्र का कम से कम 28000 जाप संपन्न कराना चाहिए तथा नक्षत्र के मंत्रों का दषांष हवन कराने के उपरांत विवाह संपन्न कराना चाहिए जिससे वैवाहिक जीवन के अनिष्टकारी प्रभाव दूर हो सके।

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Monday 1 June 2015

मध्यमा उंगली से जाने व्यक्तित्व



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हस्त रेखा में मध्यमा उंगली
जानिए अपने व्यक्तित्व के बारे में ................
इस उंगली को शनि की उंगली भी कहा जाता है तथा यह व्यक्ति की सचाई, ईमानदारी एवं अनुशासन को दर्शाती है। यदि यह उंगली सामान्य लंबाई की होती है यानि अन्य उंगलियों से लंबी परंतु बहुत अधिक लंबी नहीं तो व्यक्ति जिम्मेदार एवं गंभीर व्यक्तित्व का धनी होता है एवं महत्वाकांक्षी होता है। यदि यह उंगली सामान्य से अधिक लंबी हो तो वह व्यक्ति अकेले में रहना पसंद करता है। तथा वह व्यक्ति किसी गलत कार्य मे भी फंस सकता है। जिस व्यक्ति कि मध्यमा उंगली छोटी होती है वह व्यक्ति लापरवाह एवं आलसी होता है।
यदि शनि की उंगली का प्रथम खंड लंबा हो तो व्यक्ति का झुकाव धार्मिक ग्रंथ और रहस्यवादी कला के अध्ययन की ओर होता है। यदि मध्यमा का द्वितीय खंड लंबा हो तो व्यक्ति का व्यवसाय संपत्ति संबंधी, रसायन, जीवाश्म ईंधन या लोहा मशीनरी से संबंधित होता है, जब तीसरा खंड लंबा हो तो दर्शाता है कि व्यक्ति चालाक, स्वार्थी और दुराचार में युक्त रहता है।
शनि पर्वत मध्यमा उंगली से नीचे होता है। शनि पर्वत दार्शनिक विचारों को दर्शाता है। शनि पर्वत पूर्ण विकसित होने पर व्यक्ति ज्ञानी, गंभीर एवं विचार शील होता है। वह सोच-विचार कर कुछ कार्य आरंभ करता है एवं उसकी इंद्रियां उसके नियंत्रण में रहतीं हैं।

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सिद्धियां



साधनायें असंख्य हैं और सिद्धि को साधने का मार्ग साधना है। आइये साधना की सरल व्याख्या करें।
साधनाओं की तलाश में हिन्दू धर्म की गहराई नापने वाले हर व्यक्ति को पता है हजारों हज़ार तरह की साधना संस्कृति और परंपरा के वर्णन सर्वत्र विद्यमान हैं।
साधना ही वह कला है जो सिद्धियों के रूप में फल प्रदान कराती है। सिद्धि मनुष्य की आकांक्षा हमेशा रही है।
हर जानकर व्यक्ति सिद्धि की लालसा से अनेकों तरह के साधनाओं को आजमाने की कोशिश करता है।
सांसारिक या आध्यात्मिक फल प्राप्ति के ध्येय से मनुष्य साधना सिद्धि की दुनिया में गोटे लगता है।
मूलत: साधना के चार प्रकार माने जा सकते हैं- तंत्र साधना, मंत्र साधना, यंत्र साधना और योग साधना। तीनों ही तरह की साधना के कई उप प्रकार हैं। आओ जानते हैं साधना के तरीके और उनसे प्राप्त होने वाला लाभ...
तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है- एक वाम मार्गी तथा दूसरी दक्षिण मार्गी। वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है। वाम मार्गी तंत्र साधना में 6 प्रकार के कर्म बताए गए हैं जिन्हें षट् कर्म कहते हैं।
शांति, वक्ष्य, स्तम्भनानि, विद्वेषणोच्चाटने तथा।
गोरणों तनिसति षट कर्माणि मणोषणः॥
अर्थात शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण ये छ: तांत्रिक षट् कर्म।
इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है:-
मारण मोहनं स्तम्भनं विद्वेषोच्चाटनं वशम्‌।
आकर्षण यक्षिणी चारसासनं कर त्रिया तथा॥
मारण, मोहनं, स्तम्भनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये 9 प्रयोग हैं।
रोग कृत्वा गृहादीनां निराण शन्तिर किता।
विश्वं जानानां सर्वेषां निधयेत्व मुदीरिताम्‌॥
पूधृत्तरोध सर्वेषां स्तम्भं समुदाय हृतम्‌।
स्निग्धाना द्वेष जननं मित्र, विद्वेषण मतत॥
प्राणिनाम प्राणं हरपां मरण समुदाहृमत्‌।
जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शांति होती है, उसको शांति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाए, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तम्भन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं।
मंत्र साधना भी कई प्रकार की होती है। मं‍त्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है और मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है। मंत्र का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना। मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है। ‘मंत्र साधना’ भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है।
मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं- 1. वैदिक मंत्र, 2. तांत्रिक मंत्र और 3. शाबर मंत्र।
मंत्र जप के भेद- 1. वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप।
वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है। मानस जप का अर्थ मन ही मन जप करना। उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती। बिलकुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है।
मंत्र नियम : मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण। दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है।
किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए।
यंत्र साधना सबसे सरल है। बस यंत्र लाकर और उसे सिद्ध करके घर में रखें लोग तो अपने आप कार्य सफल होते जाएंगे। यंत्र साधना को कवच साधना भी कहते हैं।
यं‍त्र को दो प्रकार से बनाया जाता है- अंक द्वारा और मंत्र द्वारा। यंत्र साधना में अधिकांशत: अंकों से संबंधित यंत्र अधिक प्रचलित हैं। श्रीयंत्र, घंटाकर्ण यंत्र आदि अनेक यंत्र ऐसे भी हैं जिनकी रचना में मंत्रों का भी प्रयोग होता है और ये बनाने में अति क्लिष्ट होते हैं।
इस साधना के अंतर्गत कागज अथवा भोजपत्र या धातु पत्र पर विशिष्ट स्याही से या किसी अन्यान्य साधनों के द्वारा आकृति, चित्र या संख्याएं बनाई जाती हैं। इस आकृति की पूजा की जाती है अथवा एक निश्चित संख्या तक उसे बार-बार बनाया जाता है। इन्हें बनाने के लिए विशिष्ट विधि, मुहूर्त और अतिरिक्त दक्षता की आवश्यकता होती है।
यंत्र या कवच भी सभी तरह की मनोकामना पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं जैसे वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण, धन अर्जन, सफलता, शत्रु निवारण, भूत बाधा निवारण, होनी-अनहोनी से बचाव आदि के लिए यंत्र या कवच बनाए जाते हैं।
दिशा- प्रत्येक यंत्र की दिशाएं निर्धारित होती हैं। धन प्राप्ति से संबंधित यंत्र या कवच पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं तो सुख-शांति से संबंधित यंत्र या कवच पूर्व दिशा की ओर मुंह करके रख जाते हैं। वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण के यंत्र या कवच उत्तर दिशा की ओर मुंह करके, तो शत्रु बाधा निवारण या क्रूर कर्म से संबंधित यंत्र या कवच दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं। इन्हें बनाते या लिखते वक्त भी दिशाओं का ध्यान रखा जाता है।
सभी साधनाओं में श्रेष्ठ मानी गई है योग साधना। यह शुद्ध, सात्विक और प्रायोगिक है। इसके परिणाम भी तुरंत और स्थायी महत्व के होते हैं। योग कहता है कि चित्त वृत्तियों का निरोध होने से ही सिद्धि या समाधि प्राप्त की जा सकती है- 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः'।
मन, मस्तिष्क और चित्त के प्रति जाग्रत रहकर योग साधना से भाव, इच्छा, कर्म और विचार का अतिक्रमण किया जाता है। इसके लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार ये 5 योग को प्राथमिक रूप से किया जाता है। उक्त 5 में अभ्यस्त होने के बाद धारणा और ध्यान स्वत: ही घटित होने लगते हैं।
योग साधना द्वार अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति की जाती है। सिद्धियों के प्राप्त करने के बाद व्यक्ति अपनी सभी तरह की मनोकामना पूर्ण कर सकता है.....

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Saturday 30 May 2015

वैवाहिक जीवन मेंं हस्तरेखा का प्रभाव

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किसी व्यक्ति का विवाह कब होगा, पत्नी कैसी मिलेगी, दाम्पत्य कैसा रहेगा, ये सारे तथ्य उसकी विवाह रेखा मेंं छिपे होते हैं। यह रेखा उसके जीवन मेंं अहम भूमिका निभाती है। इसे प्रणय रेखा व स्नेह रेखा भी कहते हैं। समाज मेंं एक भ्रांति है कि जितनी संख्या मेंं यह रेखा होगी, जातक के उतने ही विवाह होंगे। ऐसे अनेकानेक लोग हैं, जिनकी हथेलीे मेंं एक से अधिक विवाह रेखाएं हैं, किंतु उनका विवाह या तो एक ही बार हुआ, या हुआ ही नहीं। वहीं ऐसे भी अनेक लोग हैं, जिनके हाथ मेंं विवाह रेखा नहीं है, लेकिन उनका विवाह हुआ है और दाम्पत्य जीवन सुखमय रहा है। अत: उक्त मान्यता केवल भ्रम है, भ्रम के सिवा कुछ नहीं। कौन रेखा किस स्थिति मेंं जातक के विवाह पक्ष को किस तरह प्रभावित करेगी इसका विश्लेषण यहां प्रस्तुत है। जिस जातक की प्रणय अर्थात विवाह रेखाएं एक से अधिक हों उसका अपनी पत्नी के प्रति प्रेम गहरा होता है। यदि यह रेखा प्रारंभ मेंं गहरी और आगे चलकर पतली हो तो ऐसे जातक का प्रेम धीरे-धीरे उदासीनता मेंं बदल जाता है इसके विपरीत यदि रेखा पतली से गहरी हो तो प्रेम बढ़ता ही जाता है। इस रेखा पर द्वीप हो तो जातक विवाह करने मेंं सहमत नहीं होता और यदि क्रॉस हो तो विवाह अथवा प्रेम प्रसंग मेंं विघ्न की संभावना रहती है। यदि यह रेखा आगे चलकर दो शाखाओं मेंं बंटे तो जीवनसाथी से अलगाव तो हो सकता है, किंतु तलाक हो यह जरूरी नहीं। रेखा अनेक शाखाओं मेंं बंटे तो प्रेम का अंत समझना चाहिए। यदि किसी जातक की विवाह रेखा दो भागों मेंं बंटे और एक शाखा हृदय रेखा को छूए व्यक्ति तो विवाहेतर संबंध होने की संभावना रहती है। यदि किसी के शुक्र पर्वत पर द्वीप हो और उससे एक रेखा बुध पर्वत पर जाकर समाप्त होती हो तो इस स्थिति मेंं भी विवाहेतर संबंध की संभावना रहती है। यदि कोई रेखा विवाह रेखा से आकर मिले तो वैवाहिक जीवन कष्टमय हो सकता है। यदि विवाह रेखा पर कोई काला धब्बा हो, तो पत्नी का पर्याप्त सुख नहीं मिलता है। रेखाओं का विष्लेषण करते समय यह देखना भी जरूरी होता है कि जातक का हाथ किस पर्वत से प्रभावित है क्योंकि उसके जीवन पर उसके हाथों के विभिन्न पर्वत भी रेखाओं की तरह ही प्रभाव डालते हैं। जिस जातक का शनि पर्वत अधिक स्पष्ट हो उसमेंं विवाह करने की इच्छा प्रबल नहीं होती। यदि चंद्र पर्वत से कोई रेखा आकर विवाह रेखा से मिले तो ऐसा व्यक्ति भोगी और कामासक्त होता है। इस प्रकार रेखाओं के ऐसे बहुत से योग हैं जो किसी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते हैं। ये योग यदि अनुकूल हों तो दाम्पत्य सुखमय होता है, अन्यथा उसके कष्टमय होने की प्रबल संभावना रहती है। प्रतिकूल होने की स्थिति मेंं किसी हस्तरेखा विशेषज्ञ से परामर्श लेकर उसमेंं सुधार लाने का प्रयास किया जा सकता है।
हमारे हाथों की अलग-अलग रेखाएं जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे मेंं बताती हैं। विवाह रेखा से वैवाहिक जीवन के भविष्य के निम्नानुसार बातें पता चलती हैं -
1. यदि बुध क्षेत्र के आसपास विवाह रेखा के साथ-साथ दो-तीन रेखाएं चल रही हों तो व्यक्ति अपने जीवन मेंं पत्नी के अलावा और भी स्त्रियों से संबंध रखता है।
2. शुक्र पर्वत पर टेढ़ी रेखाओं की संख्या यदि ज्यादा हैं तो ऐसे व्यक्ति के जीवन मेंं किसी एक स्त्री या पुरुष का विशेष प्रभाव रहता है।
3. यदि प्रारम्भ मेंं विवाह रेखा एक, किन्तु बाद मेंं दो से अधिक रेखाओं मेंं विभक्त हो जाए तो ऐसी स्थिति मेंं व्यक्ति एक साथ कई रिश्तों मेंं रहता है।
4. किसी व्यक्ति के विवाह रेखा मेंं आकर या विवाह रेखा स्थल पर आकर कोई अन्य रेखा मिल रही हो तो प्रेमिका के कारण उसका गृहस्थ जीवन नष्ट होने की संभावना रहती है।
5. यदि प्रणय रेखा आरम्भ मेंं पतली और बाद मेंं गहरी होने का मतलब है कि किसी स्त्री अथवा पुरुष के प्रति आकर्षण एवं लगाव आरम्भ मेंं कम था, किन्तु बाद मेंं धीरे-धीरे प्रगाढ़ होता गया है।
6. किसी की हथेली मेंं विवाह रेखा एवं कनिष्ठका अंगुली के मध्य से जितनी छोटी एवं स्पष्ट रेखाएं होंगी, उस स्त्री या पुरुष के विवाहोपरान्त अथवा पहले उतने ही प्रेम सम्बन्ध होते हैं।
7. विवाह रेखा आपके सुखी वैवाहिक जीवन के बारे मेंं भी बताती है। यदि आपकी विवाह रेखा स्पष्ट तथा ललिमा लिए हुए है तो आपका वैवाहिक जीवन बहुत ही सुखमय होगा।
8. गुरू पर्वत पर यदि क्रॉस का निशान लगा हो तो यह शुभ विवाह का संकेत होता है। यदि यह क्रॉस का निशान जीवन रेखा के नज़दीक हो तो विवाह शीघ्र ही होता है।
हस्तरेखा द्वारा विवाह का समय निर्धारण: हस्त रेखा के आधार पर विवाह का संभावित समय कैसे निकाल सकते हैं। इस पद्धति द्वारा वैवाहिक जीवन के बारे मेंं भविष्य कथन के नियम व विधि का विस्तारपूर्वक वर्णन करें। इस विषय पर भी चर्चा करें कि क्या वर-वधु का मिलान हस्त रेखा से संभव है? हस्तरेखा के आधार पर विवाह का संभावित समय देशकाल की परंपराओं के अनुसार जातक के विवाह की उम्र का अनुमान किया जाना चाहिये। सामान्य नियम यह है कि हृदय रेखा से कनिष्ठिका मूल तक के बीच की दूरी को पचास वर्ष की अवधि मानकर उसका विभाजन करके समय की गणना करनी चाहिये। इस संपूर्ण क्षेत्र को बीच से विभाजित करने पर पच्चीस वर्ष की आयु प्राप्त होती है। यदि इस क्षेत्र को चार बराबर भागों मेंं विभाजित करने के लिये इसके बीच मेंं तीन आड़ी रेखाएं खीच दी जायें तो हृदय रेखा के निकट की पहली रेखा वाले भाग से बचपन मेंं विवाह (लगभग 14 से 18वर्ष की अवस्था मेंं) होता है। दूसरी रेखा वाले भाग से युवावस्था मेंं विवाह (लगभग 21 से 28वर्ष की अवस्था मेंं) होता है। तीसरी रेखा वाले भाग से विवाह लगभग 28से 35 वर्ष की अवस्था मेंं होता है, जबकि चौथे भाग अर्थात् तीसरी रेखा व कनिष्ठिका मूल के बीच वाले भाग से प्रौढ़ावस्था मेंं अर्थात् 35 वर्ष की आयु के बाद विवाह समझना चाहिए। विवाह की उम्र का यथार्थ बोध और समय का अनुमान जीवन रेखा, भाग्य रेखा, सूर्य रेखा व उनकी अन्य प्रभाव रेखाओं के द्वारा अधिक यथार्थ और विश्वसनीय ढंग से होता है।
हस्तरेखा के आधार पर वैवाहिक जीवन: विवाह रेखा को अनुराग रेखा, प्रेम संबंध रेखा, ललना रेखा, जीवन साथी रेखा, आसक्ति रेखा आदि नामों से जाना जाता है। विवाह रेखा के स्थान के बारे मेंं प्राचीन विचारक एकमत नहीं थे। कुछ विचारकों ने शुक्र क्षेत्र की रेखाओं को, तो कुछ ने चंद्र क्षेत्र की रेखाओं को विवाह रेखा के रूप मेंं स्वीकार किया है। किंतु अधिकांश प्राचीन ग्रंथों विवेक विलास, शैव सामुद्रिक, हस्त संजीवन, प्रयोग पारिजात, करलक्खन आदि मेंं हृदय रेखा के ऊपर बुध क्षेत्र मेंं स्थित आड़ी रेशाओं को ही विवाह रेखा माना गया है। बुध क्षेत्र के भीतर आड़ी रेखाओं की तरह हों, वे विवाह की सूचक नहीं, बल्कि बुध क्षेत्र के गुणों मेंं विपरीत या दूषित प्रभाव उत्पन्न करती हैं। करतल के बाहर से आकर बुध क्षेत्र मेंं प्रवेश करने वाली सीधी, स्पष्ट और सुंदर रेखाएं ही सुखद वैवाहिक जीवन का संकेत देती है। यदि विवाह रेखा का आरंभ हृदय रेखा के भीतर से हो या उच्च मंगल क्षेत्र से निकलकर बुध क्षेत्र मेंं चाप खंड की तरह प्रवेश करे तो ऐसे जातक का विवाह अबोध अवस्था मेंं हो जाता है। ऐसे विवाह प्राय: बेमेंल होते हैं जो आगे चलकर अस्थिरता या दुख का कारण बनते हैं।
यदि इस योग के साथ जातक के हाथ मेंं मध्य बुध क्षेत्र मेंं दूसरी स्पष्ट विवाह रेखा मौजूद हो तो दूसरे विवाह की संभावना अधिक रहती है। यदि विवाह रेखा कनिष्ठिका के मूल से निकलकर चाप खंड की तरह बुध क्षेत्र मेंं प्रवेश करें तो जातक को वृद्धावस्था मेंं परिस्थितियों के दबाव मेंं विवाह करना पड़ता है। यदि विवाह रेखा का आरंभ द्वीप चिह्न से हो, तो जातक के विवाह के पीछे कोई गोपनीय रहस्य छिपा होता है। यदि किसी महिला के हाथ मेंं इस प्रकार का योग हो, तो उसको फंसाकर या धोखा देकर, मजबूरी मेंं शादी की जाती है, ऐसे मेंं आरंभिक वैवाहिक जीवन कष्टकर होता है। यदि बाद मेंं रेखा शुभ हो, तो परिस्थितियां सामान्य हो जाती हैं। यदि विवाह रेखा के आरंभ की एक शाखा कनिष्ठिका मूल की ओर जाये और दूसरी शाखा हृदय रेखा की ओर झुक जाये तो पति-पत्नी को आरंभिक वैवाहिक जीवन मेंं एक दूसरे से दूर रहना पड़ता है। यदि आगे जाकर ये दोनों शाखाएं मिल गयी हों तो पति-पत्नी का संबंध पुन: जुड़ जाता है। यदि विवाह रेखा सूर्य क्षेत्र मेंं समाप्त हो, तो जातक को विवाह के कारण प्रतिष्ठा और धन-लाभ होता है।
यदि विवाह रेखा ऊपर की ओर मुड़कर सूर्य रेखा से मिल जाये, तो जातक का जीवनसाथी उच्चकुल का तथा प्रतिभा से संपन्न होता है। ऐसा विवाह जातक के लिये शुभ होता है, किंतु आजीवन जीवन साथी के प्रभाव मेंं रहना पड़ता हैं यदि सूर्य क्षेत्र तक जाने वाली विवाह रेखा नीचे मुड़कर सूर्य रेखा को काट दे, तो जातक का वैवाहिक संबंध उससे निम्न कोटि के व्यक्ति के साथ होता है और इस विवाह के कारण उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुंचती है व दुख उठाना पड़ता है। यदि विवाह रेखा शनि क्षेत्र तक चली जाये, तो यह एक बहुत अशुभ योग माना जाता है। ऐसी स्थिति मेंं जातक अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिये जीवन-साथी को घायल करता है या उसे मार डालता है। यदि इस योग मेंं शनि क्षेत्र पर भाग्य रेखा के अंत मेंं क्रास का चिह्न हो, तो जातक को अपने जीवन-साथी की हत्या के आरोप मेंं मृत्युदंड दिया जाता है।
यदि विवाह रेखा नीचे की ओर मुड़कर हृदय रेखा की ओर झुक जाये, तो इस बात की सूचक है कि जातक के जीवन-साथी की मृत्यु उससे पहले होगी। यदि ऐसी रेखा धीरे-धीरे एक ढलान के साथ नीचे की ओर मुड़ जाये तो, ऐसा समझना चाहिये कि जीवन-साथी की मृत्यु का कारण कोई लंबी बीमारी होगी। ऐसी रेखा के ढलान मेंं यदि क्रॉस चिह्न हो या आड़ी रेखा हो तो मृत्यु अचानक किसी रोग या दुर्घटना के कारण होती है। द्वीप चिह्न होने से शारीरिक निर्बलता या बीमारी के कारण मृत्यु होती है। यदि विवाह रेखा शुक्र क्षेत्र मेंं जाकर समाप्त हो, और यह योग सिर्फ बायें हाथ मेंं ही हो, तो वैवाहिक संबंध विच्छेद करने की इच्छा ही व्यक्त करता है। दोनों हाथों मेंं यही योग हो तो निश्चित ही संबंध विच्छेद होता है। यदि विवाह रेखा बुध-क्षेत्र मेंं ऊपर की ओर मुड़ जाये और कनिष्ठका मूल को स्पर्श करने लगे, तो जातक आजीवन अविवाहित रहता है। यदि विवाह रेखा का समापन उच्च मंगल के मैदान मेंं हो तो जीवन साथी के व्यवहार के कारण वैवाहिक जीवन दुखी रहता है। यदि विवाह रेखा का अंत उच्च मंगल के क्षेत्र मेंं हो और समापन स्थान पर क्रॉस चिह्न हो, तो जातक के जीवन-साथी के जीवन मेंं अनियंत्रित ईष्र्या व द्वेष के कारण कोई प्राण घातक दुर्घटना घटित होती है। यदि विवाह रेखा का अंत त्रिशूल चिह्न से हो, तो जातक पहले अपने प्रेम की अति कर देता है और बाद मेंं संबंधों के प्रति उदासीन हो जाता है।

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हाथ की रेखाओं से जाने अपना भाग्य

हस्त रेखा से भाग्य निर्माण के रहस्य और लाक्षणिक विज्ञान की झलक आपके हथेली में ही होती है, बूझें और सटीक सफतलाता सुनिश्चित करें।
ऐसा क्यूं होता है कि कभी-कभी अपने काम में जान तक झोंक देने वाले को सफलता नहीं मिलती और किसी-किसी को छोटी कोशिश से ही बुलंदियां मिल जाती हैं। क्यूं कोई मुकद्दर का सिकंदर कहलाता है और क्यूं कोई किस्मत का गरीब कहलाता है। क्यूं लोग भाग्यशाली या दुर्भाग्यशाली कहे जाते हैं। दरअसल ये सब हमारे हाथ की लकीरों में पहले से लिखा रहता है बस हमें उन लकीरों को फलित करना होता है याने उसके अनूरूप पुरूषार्थ करना होता है, सफलता खुद ही मिल जाती है।
हृदय रेखा के मध्य से शुरु होकर मणिबन्ध तक जाने वाली सीधी रेखा को भाग्य रेखा कहते हैं। स्पष्ट रुप से दिखाई देने वाली रेखा उत्तम भाग्य का प्रतीक है। यदि भाग्य रेखा को कोइ अन्य रेखा न काटती हो तो भाग्य में किसी प्रकार की रुकावट नही आती। परन्तु यदि जिस बिन्दु पर रेखा भाग्य को काटती है तो उसी वर्ष व्यक्ति को भाग्य की हानि होती है। कुछ लोगों के हाथ में जीवन रेखा एवं भाग्य रेखा में से एक ही रेखा होती है। इस स्थिति में वह व्यक्ति असाधारण होता है, या तो एकदम भाग्यहीन या फिर उच्चस्तर का भाग्यशाली होता है। ऐसा व्यक्ति मध्यम स्तर का जीवन कभी नहीं जीता है। भाग्य रेखा की बनावट पर निर्भर करता है कि व्यक्ति भाग्यशाली है या दुर्भाग्यशाली। हथेली में मध्यमा उंगली के नीचे शनि पर्वत होता है इसे ही भाग्यस्थान माना जाता है। हथेली में कहीं से भी चलकर जो रेखा इस स्थान तक पहुंचती है उसे भाग्य रेखा कहते हैं।
जिनकी हथेली में कलाई के पास से कोई रेखा सीधी चलकर शनि पर्वत पर पहुंचती है वह व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली होता है। ऐसा व्यक्ति बहुत महत्वाकांक्षी और लक्ष्य पर केन्द्रित रहने वाला होता है। शनि पर्वत पर पहुंचकर रेखा अगर बंट जाए और गुरू पर्वत यानी तर्जनी उंगली के नीचे पहुंच जाए तो व्यक्ति दानी एवं परोपकारी होता है। यह उच्च पद और प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। लेकिन इस रेखा को कोई अन्य रेखा काटती नहीं हो। जिस स्थान पर भाग्य रेखा कटी होती है जीवन के उस पड़ाव में व्यक्ति को संघर्ष और कष्ट का सामना करना पड़ता है। भाग्य रेखा लंबी होकर मध्यमा के किसी पोर तक पहुंच जाए तो परीश्रम करने के बावजूद सफलता उससे कोसों दूर रहती है।
अंगूठे के नीचे जीवन रेखा से घिरा होता शुक्र पर्वत, अगर इस स्थान से कोई रेखा निकलकर शनि पर्वत पर पहुंचता है तो विवाह के बाद व्यक्ति को भाग्य का सहयोग मिलता है। ऐसा व्यक्ति किसी कला के माध्यम से प्रगति करता है। लेकिन इनके जीवन पर कई बार संकट के बादल मंडराते हैं क्योंकि भाग्य रेखा जीवनरेखा को काटकर आगे बढ़ती है। हथेली के मध्यम में मस्तिष्क रेखा से निकलकर कोई रेखा शनि पर्वत तक जाना बहुत ही उत्तम होता है। ऐसा व्यक्ति सामान्य परिवार में जन्म लेकर भी अपनी योग्यता और लगन से सफलता के शिखर पर पहुंच जाता है। शनि पर्वत पर जाकर रेखा दो भागों में बंट जाना और भी उत्तम फलदायी होता है।
मध्यमा अंगुली के नीचे शनि पर्वत का स्थान है। यह पर्वत बहुत भाग्यशाली मनुष्यों के हाथों में ही विकसित अवस्था में देखा गया है। इस पर्वत के अभाव होने से मनुष्य अपने जीवन में अधिक सफलता या सम्मान नहीं प्राप्त कर पाता। मध्यमा अंगुली भाग्य की देवी है। भाग्यरेखा की समाप्ति प्राय: इसी अंगुली की मूल में होती है। पूर्ण विकसित शनि पर्वत वाला मनुष्य प्रबल भाग्यवान होता है।
ऐसे मनुष्य जीवन में अपने प्रयत्नों से बहुत अधिक उन्नति प्राप्त करते हैं शनि के क्षेत्र पर भाग्य रेखा कही जाने वाली शनि रेखा समाप्त होती है। भाग्य रेखा मणिबंद्ध से लेकर शनि पर्वत तक जाती हो, सभी ग्रह उन्नत हो या जीवन रेखा से शनि रेखाएं निकलती हों, तो आप भाग्यशाली बहुत बड़ी संपत्ति के मालिक बन सकते हैं। इस पर शनि वलय भी पायी जाती है और शुक्र वलय इस पर्वत को घेरती हुई निकलती है। इसके अतिरिक्त हृदय रेखा इसकी निचली सीमा को छूती हैं।
इन महत्वपूर्ण रेखाओं के अतिरिक्त इस पर्वत पर एक रेखा जहां सौभाग्य सूचक है। यदि रेखायें गुरु की पर्वत की ओर जा रही हों तो भाग्यशाली मनुष्य को सार्वजनिक मान-सम्मान प्राप्त होता है।
हस्तरेखा ज्योतिष में जितना महत्व रेखाओं तथा पर्वतों का है। उतना ही महत्व हाथों में बनने वाले छोटे-छोटे चिन्हों का भी है। इन भाग्यशाली चिन्हों मे से ही एक चिन्ह त्रिभुज का है, जो भाग्य पर विशेष प्रभाव डालती है। त्रिभुज हाथ में सपष्ट रेखाओं से मिलकर बना हो तो वह शुभ व फलदायी कहा जाता है। साथ ही हथेली में जितना बड़ा त्रिभुज होगा उतना ही लाभदायक होगा। बड़ा त्रिभुज व्यक्ति के विशाल हृदय का परिचायक है। हाथ में एक बड़े त्रिभुज में छोटा त्रिभुज बनता है तो भाग्यशाली व्यक्ति को निश्चय ही जीवन मे उच्च पद प्राप्त होता है। हथेली के मध्य बड़ा त्रिभुज हो तो वह व्यक्ति समाज में खुद अपनी पहचान बनाता है। ऐसा व्यक्ति ईश्वर पर विश्वास रखने वाला व उन्नतशील होता है।
मोटी से पतली होती भाग्य रेखा और जीवन रेखा से दूर हो तो 25 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति भरपूर सुख और वैभव प्राप्त करता है। लेकिन यदि हृदय रेखा टूट जाए या उसकी एक मोटी शाखा मस्तिष्क रेखा पर आ जाए तो बनी बनाई संपत्ति भी नष्ट हो जाती है। हाथ में यदि जीवन रेखा गोल हो, शुक्र पर तिल हो और अंगुलिया सीधी हों अथवा आधार बराबर हों तो भाग्यशाली मनुष्य के भाग्य में निश्चित रूप से अथाह धन-संपत्ति का मालिक बनना तय होता है। भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर हो, चंद्र पर्वत पर ज्ञान रेखा मिले एवं शनि ग्रह उन्नत हो तो मनुष्य को देश-विदेश दोनों ही स्थानों से लाभ एवं धन अर्जन की स्थिति बनती है।
जिनकी भाग्य रेखाएं एक से अधिक होती हैं और सभी ग्रह पूर्ण विकसित नजर आते हैं, कहा जाता है ऐसे लोग करोड़पति होते हैं। जिनकी उंगलियां सीधी और पतली होती हैं तथा हृदय रेखा बृहस्पति से नीचे जाकर समाप्त नजर आए तो समझिए उस व्यक्ति को धन-संपत्ति की कभी कोई कमी नहीं होती। भाग्यरेखा जीवन रेखा से निकलती प्रतीत होती है और हथेली सॉफ्ट तथा पिंक हो तो ऐसे लोगों के नसीब में अथाह संपत्ति होता है।
जिन भाग्यशाली व्यक्ति के हाथ नरम होने के साथ-साथ भारी और चौड़े हों उन्हें धन की कभी कोई कमी नहीं होती। भाग्य रेखा अधिक होने के साथ-साथ शनि उत्तम हो और जीवन रेखा घुमावदार हो तो ऐसे व्यक्ति के पास धन-समृद्धि की कभी कोई कमी नहीं होती। जिनके दाएं हाथ में बुध से निकलने वाली रेखा चंद्र के पर्वत से मिलती हुई नजर आती हो और जिनकी जीवनरेखा भी चंद्र पर्वत पर जाकर रुक जाती हो, ऐसे जातकों का भाग्य अचानक मोड़ ले लेता है और उन्हें धन की प्राप्ति होती है। जब जीवन रेखा के साथ-साथ मंगल रेखा अंत तक नजर आए तो पैतृक संपत्ति से धन-संपत्ति प्राप्त होना है।
भाग्य रेखाएं एक से अधिक नजर आती हैं और उंगलियों के आधार एक समान हो तो समझिए उन भाग्यशाली व्यक्ति को कहीं से अनायास ही धन मिलने वाला है। भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर हो और चंद्र से निकलकर कोई पतली रेखा भाग्य रेखा में मिलती नजर आती हो और इसके अलावा चंद्र, भाग्य और मस्तिष्क रेखाएं ऐसी दिखे जिससे त्रिकोण बना नजर आए और ये सारी रेखाएं दोष रहित हों, उंगलियां सीधी और सभी ग्रह पूर्ण रूप से विकसित हो तो ऐसे लोगों को अकस्मात धन मिलता है। चंद्र के उभरे हुए भाग पर तारे का चिह्न है और जिनकी अंत:करण रेखा शनि के ग्रह पर ठहरती है, ऐसे भाग्यशाली व्यक्तियों को आकस्मिक लाभ मिलता है।
जिनके दाहिने हाथ की बुध से निकलने वाली रेखा चंद्र के पर्वत से जा मिलती है और जिनकी जीवन रेखा भी चंद्र पर्वत पर जाकर रुक जाती है, ऐसे भाग्यशाली व्यक्तियों को अचानक भारी लाभ होता है।

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The importance of the left and right hand palm:

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The importance of the left and right hand palm:
Although there has been debate on which hand is better to read, but both have their own significance. The left and the right personality to demonstrate the possibilities that displays. The future looked past the right hand and left. The left hand is what we are born with and the right that we have to do it. The left hand is the one that God has given to you, and the right tells you what to do in this regard.
Left hand is controlled by the right brain to the left, (pattern recognition, relationship understanding), the inner person, the natural self, feminine qualities, and lateral thinking to diagnose problems. A person can be considered a part of spiritual and personal growth. Feminine and receptive part of the personality.
In contrast, the right hand to the left brain (logic, intelligence and language) is controlled by the outer personality, self-purpose, Samaji • environmental effects, education and experience is reflective. It represents linear thinking. The male and outgoing personality matches.
Hand Size:
Depending on the type of reading palmist palmistry and shape of palm and fingers lines, color and texture of the skin, nails, texture, size proportional to the palm and fingers, knuckles and hand the prominence can see many other attributes. In most sections of palmistry, hand shapes are divided into four or 10 major types of classical and classical elements or sometimes it is often employed. That indicated the size of hand symptoms of type character,
1. Fire hands-energy, creativity, short temper, ambition, etc. - all qualities believed to be related to the Classical element of Fire. Fire up square or rectangular palm, flushed or pink skin, and shorter fingers have. The palm from wrist to the bottom of the fingers is usually the length is greater than the length of the fingers.
2. Earth hands are generally identified by broad, square palms and fingers, thick or coarse skin is red as the palm from wrist to the bottom of the fingers is usually the length of the widest part of the palm width is less than the length of the fingers is usually.
3. Air hand square or rectangular palms with long fingers and sometimes protruding knuckles, as well as, the small thumb and often dry skin. The length of the palm from wrist to the bottom of the fingers is usually less than the length of the fingers.
4. Water hands are small and sometimes oval in view of the palm, the fingers are long and flexible. The palm from wrist to the bottom of the length of the fingers is usually less than the width of the widest part of the palm, and usually equal to the length of the fingers.
To determine the nature of the dominant element in your own hand and is comfortable. The number of lines in the analysis of the shape of the hand and the quality of lines can also be included. In some traditions of palmistry, Earth and Water hands are fewer, deeper lines, while Air and Fire hands are more likely to show more lines, which are less clear definition.

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Friday 29 May 2015

मंगल पर्वत से बदलेगी किस्मत


हस्तरेखा में मंगल पर्वत को दो स्थान दिए गए हैं अत: माना जा सकता है कि मंगल कितना शक्तिशाली और प्रमुख पर्वत है। मंगल पर्वत को हथेली में दो स्थानों पर माना जाता है- एक ऊपर और दूसरा नीचे। एक उच्च का पर्वत होता है और दूसरा नीच का होता है। उच्च मंगल पर्वत हृदय रेखा जहां से शुरू होती उसके ऊपर स्थित होता है जबकि नीच का मंगल जहां से जीवन रेखा शुरू होती है वहां से कुछ ऊपर होता है। ऊपर के मंगल का ज्यादा उन्नत और उभरा होना व्यक्ति में आक्रामकता एवं साहस को बढ़ावा देता है क्योंकि वह सेनापति है, ऐसे जातक स्वभाव से जुझारू होते हैं तथा विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत से काम लेते हैं तथा सफलता प्राप्त करने के लिए बार-बार प्रयत्न करते रहते हैं और अपने रास्ते में आने वाली बाधाओं तथा मुश्किलों के कारण आसानी से विचलित नहींं होते। इस स्थान पर किसी वृत्त, दाग या तिल का होना इसे और ज्यादा पुष्ट करता है। उसे दुर्घटना द्वारा चोट भी लग सकती है और उसका कोई अंग भंग हो सकता है। ऊपर का मंगल यदि बुध पर्वत की ओर खिसका हो तो जातक का स्वभाव उग्र होता है। वह हमेशा अपने को एक कुशल योद्धा समझता है और जिसके कारण जातक के शरीर की चीर-फाड़ हो सकती है तथा अत्याधिक मात्रा में रक्त भी बह सकता है। मंगल पर्वत से निकलकर कोई रेखा यदि जीवनरेखा तक आये तो वह रेखा को जीवनरेखा जहां काट रही हो, उस समय तथा उम्र में किसी दुर्घटना अथवा लड़ाई में अपने शरीर का कोई अंग भी गंवा सकता है। इसके अतिरिक्त मंगल पर्वत पर कोई क्रास का निशान या द्वीप होना जातक को सिरदर्द, थकान, गुस्सा जैसी समस्याएं दे सकता है। यह पर्वत अविकसित हो तो जातक डिप्रेशन का मरीज होता है। यदि मगंल के उस पर्वत से कोई रेखा चंद्र पर्वत तक जाये तो ऐसा जातक निर्णय लेने में विलंब तथा लगातार अनियमित कार्य करने का आदी होता है। यह मंगल पर्वत यदि चंद्र पर्वत से दबा हो तो उसे सफलता ना मिलने के कारण चिड़चिड़ापन भी होता है। इस पर्वत पर कोई अशुभ चिह्न व्यक्ति को आर्थिक मुसीबतों और पारिवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और उसकी वाणी प्रभावित होती है।
नीचे का मंगल क्षेत्र भी इसी प्रकार से उन्नत होने पर जातक अति आत्म विश्वास से युक्त होता है। वह किसी भी कार्य को चुनौती देकर स्वीकार करता है। इस स्थिति का मंगल अंगुठे की तरफ खिसका हो तो जातक कूटनीति करने वाला होता है। फलत: वह नित नवीन परेशानियों एवं उलझनों से घिरा रहता है। मंगल का अनेक रेखाओं से दबा होना और उस स्थान पर जाल का चिह्न रक्त प्रवाह को असामान्य करता है। यदि नीचे का मंगल शुक्र की ओर झुका हुआ हो तो शुक्र और मंगल से प्रभावित होने के फलस्वरूप वह उग्र स्वभाव का हो जाता है। इस स्थिति में उसमें काम के प्रति आसक्ति बनी रहती है और वह काम पिपासा को शांत करने हेतु किसी भी हद तक जा सकता है। यदि इन दोनों पर्वतों पर द्वीप या क्रास का निशान मिले तो जातक को उसका प्यार न मिले तो वह दुखी होकर एडीक्षन का आदी हो सकता है। मंगल पर्वत का उन्नत होना तथा जाल रहित होना व्यक्ति में अच्छे आत्मविष्वास का घोतक होता है। उस पर किसी ग्रह का शुभ चिह्न ऊध्र्व रेखाएं या कोई अन्य शुभ चिह्न हो तो यह बहुत ही योगकारक ग्रह बन कर व्यक्ति को सफलता के शिखर पर पहुंचा देता है। इसकी स्थिति, शुभाशुभ चिह्नों की प्रतिक्रिया, अन्य पर्वतों से सामंजस्य एवं हाथ के आकार प्रकार, उंगलियों की बनावट और उन पर स्थित चिह्नों को भी इसके साथ जोड़ कर सही स्थिति का पता लगाया जा सकता है तथा समस्याओं का समाधान किया जा सकता है मंगल आम तौर पर ऐसे क्षेत्रों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें साहस, शारीरिक बल, मानसिक क्षमता आदि की आवश्यकता पड़ती है जैसे कि पुलिस की नौकरी, सेना की नौकरी, अर्ध-सैनिक बलों की नौकरी, अग्नि-शमन सेवाएं, खेलों में शारीरिक बल तथा क्षमता की परख करने वाले खेल जैसे कि कुश्ती, दंगल, टैनिस, फुटबाल, मुक्केबाजी तथा ऐसे ही अन्य कई खेल जो बहुत सी शारीरिक उर्जा तथा क्षमता की मांग करते हैं। इसके अतिरिक्त मंगल ऐसे क्षेत्रों तथा व्यक्तियों के भी कारक होते हैं जिनमें हथियारों अथवा औजारों का प्रयोग होता है जैसे हथियारों के बल पर प्रभाव जमाने वाले गिरोह, शल्य चिकित्सा करने वाले चिकित्सक तथा दंत चिकित्सक जो चिकित्सा के लिए धातु से बने औजारों का प्रयोग करते हैं, मशीनों को ठीक करने वाले मैकेनिक जो औजारों का प्रयोग करते हैं तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्र एवं इनमे काम करने वाले लोग। इसके अतिरिक्त मंगल भाइयों के कारक भी होते हैं तथा विशेष रूप से छोटे भाइयों के। मंगल पुरूषों की कुंडली में दोस्तों के कारक भी होते हैं तथा विशेष रूप से उन दोस्तों के जो जातक के बहुत अच्छे मित्र हों तथा जिन्हें भाइयों के समान ही समझा जा सके। क्योंकि मंगल रक्त के सीधे कारक माने जाते हैं। मंगल के प्रबल प्रभाव वाले जातक शारीरिक रूप से बलवान तथा साहसी होते हैं। अत: मंगल पर्वत का विकसित होना जातक के उत्साह एवं उमंग का प्रतीक होता है और इससे जातक के लगनशील होने का पता चलता है। साथ ही नीचे के मंगल का शुक्र के बराबर उन्नत होना जीवन में समृद्धि देता है। मंगल पर्वत और मंगल रेखा का विकसित होना जीवन में अच्छी उर्जा तथा सफलता का कारण होता है। वहीं उपर के मंगल का बुध की ओर झुका होना अच्छे स्वास्थ्य और समझ को बताता है। मंगल पर्वत का स्थान सपाट होता है वह कायर और डरपोक होते हैं। मंगल पर्वत पर किसी भी प्रकार का क्रास का चिंह होना और जीवन रेखा कट कर कोई रेखा बाहर तक जाकर दूसरे मंगल पर्वत तक जाये तो यह कारावास या समाज से निष्कासित होने को दर्शाता है।
मंगल पर्वत को विकसित करने तथा उर्जा, उत्साह तथा साकारात्मकता बढ़ाने हेतु अनामिका उंगली जिसपर मंगल से संबंधित रत्न मूंगा धारण करना चाहिए इसके अलावा मंगल पर्वत के लिए निम्न मुद्रा का अभ्यास करना भी लाभ देता है।
उपाय:
उपाए (१):
* सिद्धासन,पदमासन या सुखासन में बैठ जाएँ।
* दोनों हाँथ घुटनों पर रख लें हथेलियाँ उपर की तरफ रहें।
* अनामिका अंगुली (रिंग फिंगर) को मोडकर अंगूठे की जड़ में लगा लें एवं उपर से अंगूठे से दबा लें।
* बाकी की तीनों अंगुली सीधी रखें। अनामिका अंगुली पृथ्वी एवं अंगूठा अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है, इन तत्वों के मिलन से शरीर में तुरंत उर्जा उत्पन्न हो जाती है।

उपाए (२):
* पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाएँ, रीढ़ की हड्डी सीधी रखें।
* अपने दोनों हाथों को घुटनों पर रख लें, हथेलियाँ ऊपर की तरफ रहें।
* हाथ की सबसे छोटी अंगुली (कनिष्ठा) एवं इसके बगल वाली अंगुली (अनामिका) के पोर को अंगूठे के पोर से लगा दें। इससे प्राणशक्ति बढती है इस मुद्रा के निरंतर अभ्यास से मन की बैचेनी और कठोरता को दूर होती है एवं एकाग्रता बढ़ती है।
उपाए (३):
* सुखासन या अन्य किसी आसान में बैठ जाएँ, दोनों हाथ घुटनों पर, हथेलियाँ उपर की तरफ एवं रीढ़ की हड्डी सीधी रखें।
* मध्यमा (बीच की अंगुली)एवं अनामिका अंगुली के उपरी पोर को अंगूठे के उपरी पोर से स्पर्श कराके हल्का सा दबाएं। तर्जनी अंगुली एवं कनिष्ठा (सबसे छोटी) अंगुली सीधी रहे इस मुद्रा के प्रभाव से साधक में सहनशीलता, स्थिरता और तेज का संचार होता है।
नोट: आसनों की जानकारी के लिए अगले अंक में पढ़ें।


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Friday 22 May 2015

कुंडली में ग्रहों की दशा और आपका स्वस्थ्य


आधुनिक युग में अधिकांश मनुष्य चिंता, उन्माद, अवसाद, भय आदि से प्रभावित है। मनोविज्ञान में इन्हें मनोरोगों के एक प्रकार मनस्ताप (न्यूरोटाॅसिज्म) के अंतर्गत रखा गया है। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकार है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएॅं उत्पन्न होती हैं। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकास है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबधी गंभीर समस्याएॅं उत्पनन होती हैं। मनस्ताप के कारण व्यक्ति का व्यक्तिगत एवं सामाजिक समायोजन कठिन हो जाता है। साथ ही इससे व्यक्ति में अंतर्द्धंद्ध एवं कुंठा उत्पन्न होती है। मतस्ताप के लक्षण बहुत तीव्र नहीं होते और इससे पीडि़त रोगियों का व्यवहार भी आक्रामक नहीं होता । अतएव इन्हें मानसिक चिकित्सालयों में भरती कराने की अपेक्षा एक मनोचिकित्सक की अधिक आवश्यकता होती है। चूॅकि इन व्यक्तियों का संबध वास्तविकता से बना रहता है, अतः इन्हें अपने दैनिक कार्यो के निष्पादन मे थोड़ी परेशानी होती है।
मानवीय जीवन मुख्यतः विचारों, भावों से संचालित होता है। इनकी दिशा जिस ओर होती है, उसी के अनुसार व्यक्ति का जीवन भी गति करता है। मानवीय जीवन पर बहुत सारे कारकों, जैसे पारिवारिक वातावरण, परिस्थितियाॅं, सामाजिक स्थिति, सदस्यों से संपर्क आदि का प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूपा उसके विचारों एवं भावों में उतार-चढ़ाव आता रहता है। इसके अलावा भी जीवन की जो सबसे अधिक प्रभावित करता है, वह है अंतग्रही दशाओं का प्रभाव। यद्यपि ये ग्रह पृथ्वी से दूर स्थित है, लेकिन व्यक्ति के जीवन को क्षण-क्षण में प्रभावित करते हैं। इनकी स्थिति-परिस्थितियाॅें का निर्धारण व्यक्ति के पूर्वजन्म के कर्मो के अनुसार होता है। पूर्व जन्म के पाप एवं पुण्य कर्मो के अनुसार इन ग्रहों की गति, स्थिति व प्रभाव का निर्धारण होता है। प्राचीन भारतीय विद्याओं में जयोतिष विज्ञान एक ऐसी विद्या है, जिसमें ग्रहों की दशा तथा अंतर्दशा के आधार पर शुभ व अशुभ घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है। चिकित्सा ज्योतिष भी भारतीय ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण भाग है। चिकित्सा ज्योतिष के द्वारा जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति व दशा-चाल से मनुष्य को भविष्य में कौन-कौन से रोग होने की संभावना है, यह जाना जा सकता है । इसी चिकित्सा ज्योतिष के अंतर्गत मानसिक रोगों को समय से पूर्व जाना जा सकता है।
रोगी की जन्मकुंडली में वर्तमान मंे चल रही महादशा (विभिन्न समूय अंतरालों में ग्रहों की स्थिति), अंतर्दशा (उस समय अंतरालों में आने वाले ग्रहों के छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव), प्रत्यंतदशा (अंतर्दशा में ग्रहों के सूक्ष्म उतार-चढ़ाव) ज्ञात कर एवं गोचर (वर्तमान समय में ग्रहों की स्थिति) की सही स्थिति जानकर चिकित्सक रोग का सही निदान करके सफल चिकित्सा कर सकता है।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की शोधार्थी पूजा कौशिक ने सन् 2009 में ‘ग्रहों के ज्योतिषीय योगों का मनस्तापीयता पर पड़ने वाले प्रभाव का
अध्ययन‘ विषय पर शोधकार्य किया। यह शोधकार्य कुलाधिपति डाॅ0 प्रणव पण्डया के संरक्षण, प्रो0 देवीप्रसाद त्रिपाठी के निर्देशन एवं डाॅ0 प्रेरणा पुरी के सहनिर्देशन में किया गया। इस शोध अध्ययन में देहरादून के दो मनोचिकित्सालयों मे से आकस्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा 200 मनस्तापी व्यक्तियों का चयन किया गया, जिसमें 108 पुरूष प्रयोज्य एवं 92 महिला प्रयोज्य शामिल थे। इस शोध अध्ययन में ग्रहों के ज्योतिषीय शेगों के मनस्तापीय स्तर को जाॅचने के लिए ज्योतिषीय उपकरण के रूपा में जन्मकुंडली (जिसके लिए मुख्य रूप से प्रयोज्यों की जन्म तारीख, जन्म समय एवं जन्म स्थान को नोट किया गया) एवं मनोवैज्ञानिक उपकरण के रूप में न्यूरेसिस मापनी स्केल का प्रयोग किया। प्राप्त आॅकड़ो के यंख्यिकीय विश्लेषण के लिए काई-टेस्ट को प्रयुक्त किया गया।
परिणामों में यह पाया गया कि 200 स्त्री-पुरूषोूं में से 150 स्त्री-पुरूषों की जन्मपत्रिका में ज्योतिष अध्ययन के अनुसार ग्रहयोग (चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरू, शनि और छाया ग्रह राहु) प्रभावित कर रहे थे। विशेषतः मनस्ताप एवं ग्रहयोगों से पीडि़त स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में लग्न भाव (जिससे संपूर्ण देह एवं मस्तिष्क का विचार किया जाता है), चतुर्थ भाव (जिसमे मन एवं विचार का) तथा पंचम भाव (जिससे बुद्धि का विचार किया जाता है) विशेष रूप से प्रभावित एव पीडि़त पाए गए, किंतु 200 स्त्री-पुरूषों में से 50 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में ग्रहयोग उपयुक्त स्थानों से अन्यत्र स्थान में होने पर भी अपनी महादशा, अंतर्दशा में व्यक्ति के मन को संतापित करते हुए पााए गए तथा साथ ही यह भी पाया गया कि 173 स्त्री-पुरूषों (86.5 प्रतिशत) की कुंडली में पापग्रह शनि, राहु, केतु तथा क्षीण चंद्रमा अपनी महादशा एवं अंतर्दशा से व्यक्ति को प्रभावित कर रहे थे।
इस अध्ययन में मनस्तापी व्यक्तियों की कुंडली की विवेचना करने पर यह भी ज्ञात हुआ है कि 200 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडलियों में से 118 जन्मकुंडलियाॅं ऐसे स्त्री-पुरूषों की पाई गई, जिनका जन्म कृष्णपक्ष मे हुआ, अर्थात 59 प्रतिशत मनस्तापी व्यक्तियों का जन्म शुक्ल-पक्ष की तुलना में कृष्णपक्ष में ज्यादा हुआ। मनस्तापी व्यक्तियों की जन्मकुंडलियों की विवेचना से यह भी ज्ञात हुआ कि 200 में से 123 मनस्तापी व्यक्तियों के चतुर्थ भाव तथा पंचम भाव पापग्रह-क्षीण चंद्रमा, अस्त बुध, शनि, राहु एवं केतु से प्रभावित पाए गए, अर्थात 61.5 प्रतिशत मनस्तापी स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली का चतुर्थ एवं पंचम भाव पापग्रहों के प्रभाव से प्रभावित पाया गया।
इस अध्ययन में 200 मनस्तापी व्यक्तियों मंे से 54 प्रतिशत पुरूष एवं 46 प्रतिशत स्त्रियाॅं मनस्ताव से प्रभावित पाई गई। साथ ही युवा वर्ग (21 से 32 आयु वर्ग) में मनस्ताप एवं ग्रहों का प्रभाव सर्वाधिक पाया गया एवं शिक्षा का स्तर भी ऐसे स्त्री-पुरूषों में सामान्य पाया गया। ऐसे स्त्री-पुरूष स्नातक स्तर तक शिक्षित पाए गए एवं ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक संख्या में शहरी क्षेत्र के मध्यम वर्ग से संबधित पाए गए । इस प्रकार 200 स्त्री-पुरूषों की कुंडलियों के अध्ययन से यह पता चला कि विभिन्न ग्रहयोगों का संबध व्यक्ति के मन की विभिन्न संतप् क्रियाओं से होता है। अतः निष्कर्ष रूप में यह कह सकते हैं कि मानचीय स्वास्थ्य, अंतग्रही गतिविधियों एवं परिवर्तनों से असाधारण रूप से प्रभावित होता है।
पं0 श्रीराम शर्मा आचार्या जी के अनुसार रोगों की उत्पत्ति में प्रत्यक्ष स्थूल कारणों को महत्व दिया जाता है और स्कूल उपचारों की बात सोची जाती है, यदि अदृश्य किंतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ग्रह-नक्षत्रों के ज्ञान का भी चिकित्सा अनुसंधान की कड़ी से जोड़ा जा सके, तो रोगों के कारण और निवारण में अनेक चमत्कारों, सूत्र हाथ लग सकते हैं, जिनसे अपरिचित बने रहने से रोगोपचार में चिकित्सक अपने को अक्षम पाते हैं। निदान और उपचार की प्रक्रिया में ऐसे अनेक रहस्य इस अनुसंधान-प्रक्रिया में खुलने की संभावना है। यद्यपि इस विषय पर वर्तमान में कई शोधकार्य किए जा रहे हैं और ऐसी संभावना है कि आने वाले समय में चिकित्सा विज्ञान में ज्योतिषीय चिकित्सा को स्वीकारा जाएगा और इसके लिए सर्वप्रथम वयक्ति को शुभकर्मो की ओर प्रेरित किया जाएगा। यह पूर्णतः व्यक्ति के हाथ में है।

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Impressive Dongargarh

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Still there is many history are hidden behind bamleshwari temple. In the mountain remains of sages auterity were found. Also on the second side there is inaccessible cliff. Down to the hills there is Ashram and lake of sages. Many People believed that bathing into the lake and by drinking it they get rid of all diseases. Today that ashram is called as ascetic temple.
There is a story that there is fort on that hill on which there is a house of kaamkandla who is the lover of an anecdote named Madhavnal-kaamkandla . In this fort both meet. This love story is very famous in Chhattisgarh.
In the history of dongargarh this love story penetrates. Nearly around two thousand five years ago this place was called kamakhya which was ruled by a king called kaamsen who was the contemporary of king of ujjain Vikramaditya. This city is famous for the art, dance and music in which there is a dancer named kamkandla . She is maste in dance and she is very beautiful. One day she was dancing in the darbar then at that time a singer named madhavnal came but the concierge didn't allow him to go inside. Then he sits down there and enjoying music inside. Then he felt that the dance left feet thumb is fake and there in pebble in the dancer gunghrun so there inaccuracy in the rhythm in the music. He thought that he came here for just vain. He told there is no one in the fort who understands the impurities in music. Gatekeeper heared all these thing and he goes infront of the king and he tell all about what he is saying. Then king allows him to came inside. To prove his words king allow him to sing. From here madhavnal and kamkandla's love story started. But the king himself is fascinated at her but they did not get together. For their life bot madhavnal and kamkandla moved to ujjain infront of king vikramaditya they begged infront of him for their survival. King Vikramaditya give justice to them and he reconcile them both. There is a legend that for giving justice to them Vikramaditya had to fight with the king of kaamwati to stop them goddess Bhawani and lord Shiva came. Dongargarh 'Kamkandla-Madhavanl lake is the witness for this.There is one more legend (story) behind dongargarh. According to that 147 dancers came here from nandgaonraj to perform. When queen heared this news then she was upset because she was in fear that his son could not be fascinate on anyone. So she made a paste with turmeric and water mixed and asked his son to spread on all dancers before going to dance. By doing this all dancers changed in boulder. There are so many boulders in the dongargarh hills which is known as these boulders are of dancers.In dongargarh a lake called Motibeer in that there is a stone pillar in which there is an article engraved on that in French. This pillar was kept now in the Ghasidas museum in Raipur. Similarly, there is another pillar there is an inscription which had no been read till now. Regardless of all that, in dongargarh the bamleshwari temple is so famous that today also people go there for worship


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