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Wednesday 27 May 2015

उत्सवों और त्योहारों के रंग में रंगी तीर्थस्थली : महासमुंद

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महासमुंद छत्तीसगढ़ प्रान्त का एक शहर है। अपनी प्राकृतिक सुन्दरता, रंगारंग उत्सवों और त्योहारों के लिए महासमुंद प्रसिद्ध है। यहां पर पूरे वर्ष मेले आयोजित किए जाते हैं। स्थानीय लोगों मेंं यह मेले बहुत लोकप्रिय है। स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटकों को भी इन मेलों मेंं भाग लेना बड़ा अच्छा लगता है। इन मेलों मेंं चैत्र माह मेंं मनाया जाने वाला राम नवमी का मेला, वैशाख मेंं मनाया जाने वाला अक्थी मेला, अषाढ़ मेंं मनाया जाने वाला ''माता पहुंचनी मेला आदि प्रमुख हैं।
मेलों और उत्सवों की भव्य छटा देखने के अलावा पर्यटक यहां के आदिवासी गांवों की सैर कर सकते हैं। गांवों की सैर करने के साथ वह उनकी रंग-बिरंगी संस्कृति से भी रूबरू हो सकते हैं। यहां रहने वाले आदिवासियों की संस्कृति पर्यटकों को बहुत पसंद आती है। वह आदिवासियों की संस्कृति की झलक अपने कैमरों मेंं कैद करके ले जाते हैं।
सियादेवी:
बालोद से 25 किमी. दूर पहाड़ी पर स्थित सियादेवी मंदिर प्राकृतिक सुंदरता से शोभायमान है जो एक धार्मिक पर्यटन स्थल है। यहां पहुंचने पर झरना, जंगल व पहाड़ों से प्रकृति की खूबसूरती का अहसास होता है। इसके अलावा रामसीता लक्ष्मण, शिव-पार्वती, हनुमान, राधा कृष्ण, भगवान बुद्ध, बूढ़ादेव की प्रतिमाएं है। यह स्थल पूर्णत: रामायण की कथा से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग मेंं भगवान राम, सीता माता और लक्षमण वनवास काल मेंं इस जगह पर आये थे। यहाँ सीता माता के चरण के निशान भी चिन्हित हैं। बारिस मेंं यह जगह खूबसूरत झरने की वजह से अत्यंत मनोरम हो जाती है। झरने को वाल्मीकि झरने के नाम से जाना जाता है। परिवार के साथ जाने के लिए यह बहुत बेहतरीन पिकनिक स्पाट है। यहाँ जाने का सबसे अच्छा समय जुलाई से फरवरी तक है।
लक्ष्मण मन्दिर:
महासमुन्द मेंं स्थित लक्ष्मण मन्दिर भारत के प्रमुख मन्दिरों मेंं से एक है। यह मन्दिर बहुत खूबसूरत है और इसके निर्माण मेंं पांचरथ शैली का प्रयोग किया गया है। मन्दिर का मण्डप, अन्तराल और गर्भ गृह बहुत खूबसूरत है, जो पर्यटकों को बहुत पसंद आते है। इसकी दीवारों और स्तम्भों पर भी सुन्दर कलाकृतियां देखी जा सकती हैं, जो बहुत खूबसूरत हैं। इन कलाकृतियों के नाम वातायन, चित्या ग्वाकक्षा, भारवाहकगाना, अजा, किर्तीमुख और कर्ना अमालक हैं। मन्दिर के प्रवेशद्वार पर शेषनाग, भोलेनाथ, विष्णु, कृष्ण लीला की झलकियां, वैष्णव द्वारपाल और कई उनमुक्त चित्र देखे जा सकते हैं। यह चित्र मन्दिर की शोभा मेंं चार चांद लगाते है और पर्यटकों को भी बहुत पसंद आते हैं।
आनन्द प्रभु कुटी विहार और स्वास्तिक विहार:
सिरपुर अपने बौद्ध विहारों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। इन बौद्ध विहारों मेंं आनन्द प्रभु विहार और स्वास्तिक विहार प्रमुख हैं। आनन्द प्रभु विहार का निर्माण भगवान बुद्ध के अनुयायी आनन्द प्रभु ने महाशिवगुप्त बालार्जुन के शासनकाल मेंं कराया था। इसका प्रवेश द्वार बहुत खूबसूरत है। प्रवेश द्वार के अलावा इसके गर्भ-गृह मेंं लगी भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी बहुत खूबसूरत है जो पर्यटकों को बहुत पसंद आती है। विहार मेंं पूजा करने और रहने के लिए 14 कमरों का निर्माण भी किया गया है।
आनन्द प्रभु विहार के पास स्थित स्वास्तिक विहार भी बहुत खूबसूरत है जो हाल मेंं की गई खुदाई मेंं मिला है। कहा जाता है कि बौद्ध भिक्षु यहां पर तपस्या किया करते थे।
गंडेश्वर मन्दिर:
महानदी के तट पर स्थित गंडेश्वर मन्दिर बहुत खूबसूरत है। इसका निर्माण प्राचीन मन्दिरों और विहारों के अवेशषों से किया गया है। मन्दिर मेंं पर्यटक खूबसूरत ऐतिहासिक कलाकृतियों को देख सकते हैं, जो पर्यटकों को बहुत पसंद आती हैं। इन कलाकृतियों मेंं नटराज, शिव, वराह, गरूड़, नारायण और महिषासुर मर्दिनी की सुन्दर प्रतिमाएं प्रमुख हैं। इसके प्रवेश द्वार पर शिव-लीला के चित्र भी देखे जा सकते हैं, जो इसकी सुन्दरता मेंं चार चांद लगाते हैं।
संग्रहालय:
भारतीय पुरातत्व विभाग ने लक्ष्मण मन्दिर के प्रांगण मेंं एक संग्रहालय का निर्माण भी किया है। इस संग्रहालय मेंं पर्यटक सिरपुर से प्राप्त आकर्षक प्रतिमाओं को देख सकते हैं। इन प्रतिमाओं के अलावा संग्रहालय मेंं शैव, वैष्णव, बौद्ध और जैन धर्म से जुड़ी कई वस्तुएं देखी जा सकती हैं, जो बहुत आकर्षक हैं। यह सभी वस्तुएं इस संग्रहालय की जान हैं।
श्वेत गंगा:
महासमुन्द की पश्चिमी दिशा मेंं 10 कि.मी. की दूरी पर श्वेत गंगा स्थित है। गंगा के पास ही मनोरम झरना और मन्दिर है। यह मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है। माघ की पूर्णिमा और शिवरात्रि के दिन यहां पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले मेंं स्थानीय निवासी और पर्यटक बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं। श्रावण मास मेंं यहां पर भारी संख्या मेंं शिवभक्त इक_े होते हैं और यहां से कांवड़ लेकर जाते हैं। वह कावड़ के जल को गंगा से 50 कि.मी. दूर सिरपुर गांव के गंडेश्वर मन्दिर तक लेकर जाते हैं और मन्दिर के शिवलिंग को इस जल से नहलाते हैं। अपनी इस यात्रा के दौरान भक्तगण बोल बम का उद्घोष करते हैं। उस समय सिरपुर छोटे बैजनाथ धाम जैसा लगता है।
छत्तीसगढ़ के 36गढ़ों मेंं से चार गढ़ मोहंदी, खल्लारी, सिरपुर और सुअरमार महासमुंद जिले मेंं हैं। जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर मोहंदी गढ़ मेंं 18किमी का पठार है। इस गढ़ मेंं एक सुरंग है। लेकिन इसकी लंबाई अब तक कोई नहींं जान पाया है। पठार के ऊपरी हिस्से का नजारा किसी हिल स्टेशन से कम नहींं है। मोहंदी प्राचीनकाल मेंं नगर था। इस गढ़ का इतिहास नागपुर के संग्रहालय मेंं है।
मोहंदी ग्राम के विजय दीवान ने बताया कि इस गढ़ मेंं किला, सुंदर झरना, महादेवा पठार, रानी खोल और लंबी सुरंग है। सुरंग के बारे मेंं कहा जाता है कि 20-21 साल पहले जब ग्रामीण यहां पहुंचे, तो सुरंग एक छेद की भांति दिख रहा था।
आज यह 250 से 300 मीटर तक खुल गया है। पहाड़ के सोरमसिंघी व दलदली के पास भी इसी तरह का सुरंग है। सुअरमाल 125 एकड़ क्षेत्रफल पर फैला हुआ है, जो हरियाली से अच्छादित है। यहां पुरातन मंदिर भी है, जो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। पर संरक्षण के अभाव मेंं यह गढ़ उपेक्षित है। पुरानगरी सिरपुर को जिस तरह शासन तव्वजो दे रही है, उस लिहाज से यह दोनों गढ़ अपने अस्तित्व बरकरार रखने शासन की बाट जो रहे हैं।
पठार तक पहुंचने बनाई सीढ़ी:
मोहंदी के ग्रामीणों ने पठार तक पहुंचने के लिए सीढ़ी बनवाया है। हर वर्ष नवरात्रि मेंं चंपई माता की पूजा-अर्चना की जाती है। इस गढ़ के ऊपरी सतह पर पत्थर से किला बनवाया गया है, जो कटिंग पत्थर से बना है। वर्तमान मेंं ग्रामीणों ने यहां देवी की स्थापना की है। महादेव पठार मेंं मौजूद झरना का पानी दलदली मेंं जाकर निकलता है। जहां नंदी के मुख से पानी निकल रहा है। यह पठार मोहंदी, सोरमसिंघी, दलदली, गौरखेड़ा, खल्लारी तक फैला हुआ है।
मधुबन धाम:
छत्तीसगढ़ अंचल मेंं फसल कटाई और मिंजाई के उपरांत मेलों का दौर शुरु हो जाता है। साल भर की हाड़-तोड़ मेहनत के पश्चात किसान मेलों एवं उत्सवों के मनोरंजन द्वारा आने वाले फसली मौसम के लिए उर्जा संचित करता है। छत्तीसगढ़ मेंं महानदी के तीर राजिम एवं शिवरीनारायण जैसे बड़े मेले भरते हैं तो इन मेलों के सम्पन्न होने पर अन्य स्थानों पर छोटे मेले भी भरते हैं, जहाँ ग्रामीण आवश्यकता की सामग्री के साथ-साथ खाई-खजानी, देवता-धामी दर्शन, पर्व स्नान, कथा एवं प्रवचन श्रवण के साथ मेलों मेंं सगा सबंधियों एवं इष्ट मित्रों से मुलाकात भी करते है तथा सामाजिक बैठकों के द्वारा सामाजिक समस्याओं का समाधान करने का प्रयास होता है। इस तरह मेला संस्कृति का संवाहक बन जाता है और पीढ़ी दर पीढ़ी सतत रहता है।
मधुबन धाम के मधुक वृक्ष:
मान्यता है कि पहले यह घना जंगल था तथा जंगल इतना घना था कि पेड़ों के बीच से 2 बैल एक साथ नहींं निकल सकते थे। महंत के जाने के बाद यहां पर कुछ लोगों को बहुत बड़ा लाल मुंह का वानर दिखाई दिया। वह मनुष्यों जैसे दो पैरों पर खड़ा दिखाई देता था। देखने वालों ने पहले उसे रामलीला की पोशाकधारी कोई वानर समझा, लेकिन वह असली का वानर था। उसके बाद सब गांव वालों ने इस घटना पर चर्चा की। फिर यहाँ एक यज्ञ किया गया और तब से प्रति वर्ष यहाँ यज्ञ के साथ मेले का आयोजन प्रारंभ हो गया।
सरोवर मेंं विराजे हैं भगवान कृष्ण:
मधुबन मेंं मेला आयोजन के लिए मधुबन धाम समिति का निर्माण हुआ है, यही समिति विभिन्न उत्सवों का आयोजन करती है। फाल्गुन मेला के साथ यहां पर चैत्र नवरात्रि एवं क्वांर नवरात्रि का नौ दिवसीय मेला पूर्ण धूमधाम से मनाया जाता है तथा दीवाली के पश्चात प्रदेश स्तरीय सांस्कृतिक ''मातर उत्सवÓÓ मनाया जाता है, जिसकी रौनक मेले जैसी ही होती है। मधुबन की मान्यता पांडव कालीन है, पाँच पांडव मेंं से सहदेव राजा ग्राम कुंडेल मेंं विराजते हैं और उनकी रानी सहदेई ग्राम बेलौदी मेंं विराजित हैं, यहाँ से कुछ दूर पर महुआ के ५ पेड़ हैं , जिन्हें पचपेड़ी कहते हैं। इन पेड़ों को राजा रानी के विवाह अवसर पर आए हुए बजनिया (बाजा वाले) कहते हैं तथा मधुबन के सारे महुआ के वृक्षों को उनका बाराती माना जाता है।
हनुमान मंदिर एवं यज्ञ शाला:
ऐसी मान्यता भी है कि भगवान राम लंका विजय के लिए इसी मार्ग से होकर गए थे। इस स्थान को राम वन गमन मार्ग मेंं महत्वपूर्ण माना जाता है। मेला क्षेत्र के विकास के लिए वर्तमान पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री अजय चंद्राकर ने अपने पूर्व विधायक काल विशेष सहयोग किया है। तभी इस स्थान पर शासकीय राशि से संत निवास का निर्माण संभव हुआ। मधुबन के समीप ही नाले पर साप्ताहिक बाजार भरता है। सड़क के एक तरफ शाक भाजी और दूसरी मछली की दुकान सजती है। मेला के दिनों मेंं यहां पर मांस, मछरी, अंडा, मदिरा आदि का विक्रय एवं सेवन कठोरता के साथ वर्जित रहता है। यह नियम समस्त ग्रामवासियों ने बनाया है।
पहुंच मार्ग:
वायु मार्ग: पर्यटकों की सुविधा के लिए छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर मेंं हवाई अड्डे का निर्माण किया गया है। यहां से पर्यटक बसों व टैक्सियों द्वारा आसानी से महासमुन्द तक पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग: मुंबई-विशाखापट्टनम और कोलकाता-विशाखापट्टनम रेलवे लाईन पर महासमुन्द मेंं रेलवे स्टेशन का निर्माण किया गया है।
सड़क मार्ग: महासमुन्द कोलकाता, मुंबई और देश के अन्य भागों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। जहां से पर्यटक आसानी से महासमुन्द तक पहुंच सकते हैं।






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