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Wednesday 24 June 2015

जानिये आज का पंचांग 24/06/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

Pt.P.S Tripathi
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Finger of your hands tells that your personality is balanced or not

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Individuals who are equal parts of three fingers of his personality is generally balanced. Vertically and the central part of a person's fingers are equal and the determination of the person's ability to make decisions in harmony. Is larger than the other two parts of the upper part due to their desires and aspirations of determination to meet the shortage finds. Lack of determination affects the ability to make the right decisions and to cater to their desires and does not take the right decision.
The central part of the finger is longer than the other two parts of the individual logical ability and intellectual capacity is strong. However, determination of the cause of the decrease in the concentration of power and success in the work may be delayed. Seeing the success of others, a person may suffer from feelings of jealousy. In the absence of other persons at the Buddimtta they are not able to win them. But the main reason is the decrease in the resolution power and the will power and it can be won only through hard work and hard labor.
Lower part of the finger is longer than the other two, you are sensible and able to decide according to the situation. Such trends are emotional. Their time, money, and advice are always available to spend for the needy. Then they should suffer for it if they live up to criticism.
The position of the fingers of the hand of the person who is fully organize the person they are very successful in life. Long and thin fingers are passionate person, while thick fingers are hardworking person. They are individuals who are highly sensitive to the size of the fingers are angles and special care of your dress and beauty. They are individuals who spiritual fingers are pointed up and they have wonderful imaginations. These are gentle by nature.
The fingers are individuals who they square up practical, Trkrsngt and are gentle. They believe in tradition and conservatism. The size of the fingers are Spachul courageous individuals, realistic and are fond of walking. They are fond of work and are well versed in many subjects. Such individual scientist, engineer or technician jobs are skilled.
Fingers of individuals who are straight, honest individuals, are decent and equitable. While good progress in life. They are individuals who are kinky fingers are very practical and good employer. They are honest. Long fingers and the person you are interested in learning are good analyst.
The fingers of the hand, especially when the situation is chaotic Knistisk finger finger of Mercury, which is known to have very little lack of confidence in the person is found.
Fingers arched shape is balanced personality of the person and the person is very thoughtful.

 Pt.P.S Tripathi
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Tuesday 23 June 2015

उन्नति में सहायक प्रमुख योग-

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उन्नति में सहायक प्रमुख योग-
एजुकेषन तथा कैरियर में सफलता एवं उन्नति हेतु जातक में अनेक गुण होने चाहिए, जोकि एक ही व्यक्ति में संभव नहीं है। किसी व्यक्ति के पास वाकशक्ति होती है तो किसी के पास कार्यनिष्ठा तो कोई कार्य में दक्ष होने से सफल होता है।
किसी व्यक्ति में कार्यक्षमता का स्तर कितना है यह शनि की स्थिति से देखना चाहिए। यदि शनि उत्तम या अनुकूल है तो व्यक्ति में कार्यक्षमता अच्छी होगी, जिससे उसके सफलता प्राप्ति के अवसर ज्यादा होंगे।
किसी व्यक्ति में यदि अच्छी समझ होगी तो उसे समझने में दिक्कतों का सामना कम करना पड़ेगा। किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि गुरू उत्तम स्थिति या अनुकूल हो तो उसकी समझने की क्षमता अच्छी होगी। साथ ही स्मरणशक्ति प्रबल बनाने में भी गुरू का प्रभाव होता है, जिससे सही समय तथा सही जगह पर उसे प्रयोग करने से अच्छी सफलता की प्राप्ति हो सकती है।
किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अनुकूल हो तो अनुशासन तथा जिम्मेदार होेने से भी उन्नति में सहायक होता है। यांत्रिक ज्ञान तथा वाकशक्ति उत्तम होना भी सफलता में सहयोगी हो सकता है, इसके लिए जन्म कुंडली का तीसरा भाव तथा बुध एवं मंगल की स्थिति उत्तम होनी चाहिए।
इस प्रकार व्यक्तित्व के साथ प्रयास का स्तर तथा बौद्धिक क्षमता किसी जातक के उन्नति तथा सफलता में सहायक होता है। यदि इन में किसी प्रकार की परेषानी हो रही हो तो उस क्षेत्र विषेष से संबंधित उपाय तथा आवष्यक सावधानी इच्छुत सफलता प्राप्ति का रास्ता आसान बनाता है।

इंफ्लुएंजा वाइरस ज्योतिष्य विश्लेषण


विष्वव्यापी आतंक का नया नाम है ... इंफ्लुएंजा वाइरस जो एच1एन1 की वजह से फैलती है। प्रांरभ में इस रोग का वायरस सुअरों से इंसानों में फैला और फिर इंसानों के इंसानों से संपर्क में आने के कारण पूरी दुनिया को चपेट में लेता गया। अमरीका में 1976 का स्वाइन फ्लू- 5 फरवरी, 1976 को अमरीका के फोर्ट डिक्स में अमरीकी सेना के सैनिकों को थकान की समस्या होने लगी बाद में पता लगा कि यह बीमारी स्वाइन फ्लू ही है और एच1एन1 वायरस के नए स्ट्रेन की वजह से फैल रही है। सुअरों को एविएन और हूमेन एन्फ्लूएंजा स्ट्रेन दोनों का संक्रमण हो सकता है। किसी भी एन्फ्लूएंजा के वायरस का मानवों में संक्रमण श्वास प्रणाली के माध्यम से होता है। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति का खांसना और छींकना या ऐसे उपकरणों का स्पर्श करना जो दूसरों के संपर्क में भी आता है, उन्हें भी संक्रमित कर सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सुअर (स्वाइन), पक्षी और इंसान तीनों के जीन मिलने से बना एच1एन1 वायरस सामान्य स्वाइन फ्लू वायरस से अलग है। बर्ड फ्लू और मानवीय फ्लू के विषाणु से सुअरों में संक्रमण शुरू हुआ। फिर सुअर के राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) से मिलकर नए वायरस स्वाइन इन्फ्लुएंजा ए (एच1एन1) का जन्म हुआ। तब इन्फ्लुएंजा ए (एच1 एन1) का सुअर से मनुष्य में संक्रमण संभव हो सका। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वायरस किसी भी मौसम में फैल सकता है और हर आयुवर्ग के लोगों को आसानी से अपनी चपेट में ले सकता है। स्वाइन फ्लू के दौरान बुखार, तेज ठंड लगना, गला खराब हो जाना, मांसपेशियों में दर्द होना, तेज सिरदर्द होना, खांसी आना, कमजोरी महसूस करना आदि लक्षण तेजी से उभरने लगते हैं। एन्फ्लूएंजा वायरस लगातार अपना स्वरूप बदलने के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के वैक्सीन का भी इस वायरस पर असर नहीं होता। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के वैक्सीन का स्वाईन फलू पर भी इस वायरस पर असर नहीं होता। यह रोग होली के बाद समाप्त हो जाएगी क्योंकि होली दहन के बाद संक्रमण का स्तर कम हो जाएगा क्योंकि तापमान का अंतर मिट जाएगा तथा वायरस का प्रकोप भी वातावरण में समाप्त होने लगेगा। चिकित्सकीय हल निकालने का प्रयास तो लगातार जारी है किंतु हमें अपनी जिम्मेदारी को देखते हुए इसका ज्योतिषीय कारण और निदान भी देखना चाहिए। देखा जाए तो हमें कालपुरूष की वर्तमान कुंडली देखनी चाहिए। कालपुरूष की कुंडली में आज चतुर्थेष चंद्रमा रोगभाव में राहु से पापाक्रांत है और मारक तथा मारकेष शुक्र व्ययभाव में राहु से पापदृष्ट होकर अष्टमेष मंगल से आक्रांत है। अतः संक्रमण से फैलने वाले रोग का समय और दसमेष और एकादषेष शनि अष्टमस्थ होने से कान, नाक और गले से संबंधित एलर्जी के कारण रोग तथा जो रोग लिवर तथा फेफडे को प्रभावित करें साथ ही कालपुरूष की मारकेष की दषा के कारण यह रोग आसानी से समाप्त होती नहीं दिखती। अतः इस समय यज्ञ, हवन तथा मंत्रजाप करना चाहिए।

Monday 22 June 2015

सफलता और उन्नति पाएँ बुधाष्टमी व्रत से

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व्यक्ति के जीवन में कई बार आकस्मिक हानि प्राप्त होती है साथ ही कई बार योग्यता तथा सामथ्र्य होने के बावजूद जीवन में वह सफलता प्राप्त नहीं होती, जिसकी योग्यता होती है। इस प्रकार का कारण ज्योतिषषास्त्र द्वारा किया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, अष्टम, नवम भाव में से किसी भाव में राहु के होने पर जातक के जीवन में आकस्मिक हानि का योग बनता है। अगर राहु के साथ सूर्य, शनि के होने पर यह प्रभाव जातक के स्वयं के जीवन के अलावा यह दुष्प्रभाव उसके परिवार पर भी दिखाई देता है। राहु के साथ सूर्य या शनि की युति बने तो व्यक्ति अषांत, गुप्त चिंता, स्वास्थ्य एवं पारिवारिक परेषानियों के कारण चिंतित रहता है। दूसरे भाव में इस प्रकार की स्थिति निर्मित होेने पर परिवार में वैमनस्य एवं आर्थिक उलझनें बनने का कोई ना कोई कारण बनता रहता है। तीसरे स्थान पर होने पर व्यक्ति हीन मनोबल का होने के कारण असफलता प्राप्त करता है। चतुर्थ स्थान में होने पर घरेलू सुख, मकान, वाहन तथा माता से संबंधित कष्ट पाता है। पंचम स्थान में होने पर उच्च षिक्षा में कमी तथा बाधा दिखाई देती है तथा संतान से संबंधित बाधा तथा दुख का कारण बनता है। अष्टम में होने पर आकस्मिक हानि, विवाद तथा न्यायालयीन विवाद, उन्नति तथा धनलाभ में बाधा देता है। बार-बार कार्य में बाधा आना या नौकरी छूटना, सामाजिक अपयष अष्टम राहु के कारण दिखाई देता है। नवम स्थान में होने पर भाग्योन्नति तथा हर प्रकार के सुखों में कमी का कारण बनता है। सामान्यतः चंद्रमा के साथ राहु का दोष होने पर माता, बहन या पत्नी से संबंधित पक्ष में कष्ट दिखाई देता है वहीं शनि के साथ राहु दोष होेने पर पारिवारिक विषेषकर पैतृक दोष का कारण बनता है। सूर्य के आक्रांत होेने पर आत्मा प्रभावित हेाता है, जिसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व तथा सोच दूषित होती है। बुध के साथ राहु होने पर जडत्व दोष बनता है, जिसमें विकास तथा बुद्धि प्रभावित होती है। मंगल के साथ होने पर संतान से संबंधित पक्ष से कष्ट तथा गुरू के साथ होने पर षिक्षा तथा सामाजिक प्रतिष्ठा संबंधित परेषानी दिखाई देती है। शुक्र के आक्रांत होेने पर सुख प्राप्ति के रास्ते में बाधा आती है। इस प्रकार के दोष जातक की कुंडली में बनने पर जातक के जीवन में स्वास्थ्य की हानि, सुख में कमी,आर्थिक संकट, आय में बाधा, संतान से कष्ट अथवा वंषवृद्धि में बाधा, विवाह में विलंब तथा वैवाहिक जीवन में परेषानी, गुप्तरोग, उन्नति में कमी तथा अनावष्यक तनाव दिखाई देता है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार का दोष दिखाई दे तो अपनी कुंडली की विवेचना कराकर उसे नारायणबलि, नागबलि, पितृतर्पण, देवतर्पण, दानादि कर्म करना चाहिए। इसके साथ ही सूक्ष्म जीवों की सेवा, जिसमें गाय को चारा अमावस्या के दिन देना, कुत्तों का भोजन प्रत्येक शनिवार को देना या चिट्टी या चिडिया, कौओं को दाना डालना जीवन में सुख तथा समृद्धि का रास्ता प्रष्स्त करता है।
Pt.P.S Tripathi
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क्यों युवा बच्चे अनुशासनहिन हो जाते हैं और उसके उपाय


ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को प्रमुखता प्राप्त है। कालपुरूष की कुंडली में शुक्र ग्रह दूसरे अर्थात् संपत्ति एवं सुख तथा सप्तम स्थान अर्थात् पार्टनर का स्वामी होता है। शुक्र ग्रह सुख, संपत्ति, प्यार, लाभ, यष, क्रियात्मकता का प्रतीक है। शुक्र ग्रह की उच्च तथा अनुकूल स्थिति में होने पर सभी प्रकार के सुख साधन की प्राप्ति, कार्य में अनुकूलता तथा यष, लाभ तथा सुंदरता की प्राप्ति होती है। इस ग्रह से जीवन में ऐष्वर्या तथा सुख की प्राप्ति होती है किंतु यदि विपरीत स्थिति या प्रतिकूल स्थान पर हो तो सुख में तथा धन ऐष्वर्या में कमी भी संभावित होती है। शुक्र ग्रह की दषा या अंतरदषा में सुख तथा संपत्ति की प्राप्ति का योग बनता है। किंतु शुक्र ग्रह भोग तथा सुख का साधन होने से इन दषाओं में मेहनत या प्रयास में कमी भी प्रदर्षित होती है। यदि ये दषाएॅ उम्र की परिपक्वता की स्थिति में बने तो लाभ होता है किंतु शुक्र की दषा या अंतरदषा कैरियर या अध्ययन के समय चले तो पढ़ाई में बाधा, कैरियर की राह में प्रयास में भटकाव से सफलता बाधित होती है। एकाग्रता में कमी तथा स्वप्न की दुनिया में विचरण से दोस्ती या सुख तो प्राप्त होता है किंतु अच्छा पद या प्रतिष्ठा प्राप्ति के मार्ग में प्रयास में विचलन से कैरियर बाधित हो सकता है। कैरियर की उम्र में शुक्र की दषाएॅ चले तो अभिभावक को बच्चों के व्यवहार में नियंत्रण रखते हुए अनुषासित रखते हुए लगातार अपने प्रयास करने पर जोर देने से कैरियर की बाधाएॅ दूर होती है। साथ ही ज्योतिष से सलाह लेकर यदि शुक्र का असर व्यवहार पर दिखाई दे तो ग्रह शांति के साथ नियम से दुर्गा कवच का पाठ लाभकारी होता है।
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अपने अंदर की प्रेरणा शक्ति को पहचाने


यदि गुरू या शुभ ग्रह लग्न में अनुकूल हो तो व्यक्ति को स्वयं ही ज्ञान व आध्यात्म के रास्ते पर जाने को प्रेरित करता है। यदि इसपर पाप प्रभाव न हो तो व्यक्ति स्व-परिश्रम तथा स्व-प्रेरणा से ज्ञानार्जन करता है। अपने बड़ों से सलाह लेना तथा दूसरों को भी मार्गदर्षन देने में सक्षम होता है। यदि गुरू का संबंध तीसरे स्थान या बुध के साथ बनें तो वाणी या बातों के आधार पर प्रेरित होकर सफल होता है वहीं यदि गुरू का संबंध मंगल के साथ बने तो कौषल द्वारा मार्गदर्षक प्राप्त करता है शुक्र के साथ अनुकूल संबंध बनने पर कला या आर्ट के माध्यम से मार्गदर्षन प्राप्त करता है चंद्रमा के साथ संबंध बनने पर लेखन द्वारा मार्गदर्षन पाता है। अतः गुरू का उत्तम स्थिति में होना अच्छे मार्गदर्षन की प्राप्ति या मार्गदर्षन में सफलता का द्योतक होता है। यदि गुरू चतुर्थ या दषम भाव में हो तो क्रमषः माता-पिता ही गुरू रूप में मार्गदर्षन व सहायता देते हैं। गुरू यदि 6, 8 या 12 भाव में हो तो गुरू कृपा से प्रायः वंचित ही रहना पड़ता है। वही यदि लग्न में राहु या शनि जैसे ग्रह हों तो बच्चा अपनी मर्जी का करने का आदि होता है जिससे आज्ञाकारी ना होने के कारण बढ़ती उम्र में गलत संगत या गलत निर्णय लेकर अपना भविष्य खराब कर बैठता है। ऐसी स्थिति में उसके ग्रहों का विष्लेषण कराया जाकर उचित उपाय लेने से उन्नति के रास्ते खुले रहते हैं।
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तात्कालिक लाभ हानि


भारतीय ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को प्रमुख स्थान दिया गया है तथा माना गया है कि चंद्रमा मन का कारक होता है। चूॅकि किसी मानव के जीवन में उसकी सफलता तथा असफलता का बहुत बड़ा कारण उसका मन होता है अतः यदि कोई व्यक्ति सफल है या असफल इसका बहुत कुछ निर्धारण चंद्रमा की स्थिति से किया जा सकता है। चंद्रमा यदि लग्न में हो तो जातक ऐष्वर्यषाली, सुखी, मधुरभाषी, स्थूल शरीर वाला, द्वितीय स्थान में सुंदर, परदेषवासी, भ्रमणषील तृतीय स्थान में तपस्वी, आस्तिक, कलाप्रेमी, गले का रोगी, चतुर्थभाव में होने पर दानी, रागद्धेष रहित, क्रोधी, पंचम स्थान में विनीत, व्यसनी, मित्रयुक्त छठवे स्थान में होने पर विलासी, धार्मिक, लोकप्रिय, सप्तम स्थान पर होने पर अस्थिर, दुखी,प्रवासी अष्टम स्थान पर मातृभक्त, कलाप्रेमी, विवादी, मिथ्याभाषी नवम स्थान पर सात्विक, तेजस्वी, मानी दसम स्थान पर विद्धान, दयालु, कला में माहिर एकादष स्थान पर आलसी, दानी मधुरवाणी युक्त तथा द्वादष स्थान पर क्रोधी, व्यसनी, कलाकार हो सकता है। किंतु चंद्रमा के विपरीत स्थान में होने पर विपरीत असरकारी भी होता है अतः मानसिक कमजोर तथा निर्णय लेने में बाधा दे सकता है अतः चंद्रमा के दोषों को दूर करने हेतु चंद्रमा के वस्तुओं का दान जिसमें विषेषकर शंख, कपूर, दूध, दही, चीनी, मिश्री, श्वेत वस्त्र, इत्यादि तथा मंत्रजाप जिसमें उॅ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः या उॅ नमः षिवाय का 11 हजार जाप तथा रूद्राभिषेक प्रमुख माना जाता है। इन उपायो के आजमाने से शुभ फल में वृद्धि तथा अषुभ फलों में कमी होती है।
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पितृदोष का एक प्रमुख कारण भू्रण हत्या -


वैदिक शास्त्रों तथा पुराणों में सौभाग्यवती पतिव्रता नारी तथा कुमारी कन्याओं को देवी का प्रतीक माना गया है, वहीं मनुस्मृति में तो यहाँ तक कह दिया है कि- ‘‘एक आचार्य दस अध्यापकों से श्रेष्ठ हैं, एक पिता सौ आचार्यों से श्रेष्ठ है और एक माता एक हजार पिताओं से श्रेष्ठ है।’’ इतनी सारी विशेषताओं से समन्वित एक नारी अपनी स्वाभाविक ममता का गला घोंटकर उसके गर्भ में पल रहे जीव की हत्या या भू्रण हत्या जैसे कर्म की साक्षी बनती है तब उसके ममता तथा नारित्व पर जो बीतती है वह उस माॅ को ही पता होता है। उस हत्या को कैसे सामान्य हत्या से परे माना जा सकता है? गर्भ का जीव भी एक स्वतंत्र मानव-प्राणी है। गर्भधान के प्रथम क्षण से ही उसकी विकास यात्रा प्रारंभ हो जाती है। यह उत्तरोत्तर विकास-क्रिया जीव के बिना असंभव है। जब एक कण में आत्मा का वास होता है तब एक भू्रण या मानव का किसी भी रूप में समय से पूर्व मृत्यु को प्राप्त करने पर उसकी अतृप्त वासनायें बाकी रह ही जाती हैं। चूॅकि उस भू्रण का गर्भ में आते ही आत्म का वास हो जाता है अतः उसको मारने का प्रयास किया जाय या मार दिया जाय तो पितृ दोष का असर शुरू हो जाता है, इस तरह जीव हत्या का पाप पूरे वंष को भोगना होता है।
धर्म सिंधु ग्रंथ के पेज नं.-222 एवं 223 उल्लेख है कि ऐसे जातक को जिन्हें इस प्रकार के पितृदोष को दूर करने वास्तु नारायणबलि और नागबलि करना उचित है। यह नारायणबलि और नागबलि शुक्लपक्ष की एकादषी में, पंचमी में अथवा श्रवण नक्षत्र में किसी नदी के किनारे देवता के मंदिर में करना चाहिए। ये पूजा अम्लेष्वर घाम में खारून नदी के तट पर भगवान शंकरजी के मंदिर में शास्त्रोक्त विधि विधान से होती है।
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जाने ज्योतिष क्या है?


प्रश्न ज्योतिष, ज्योतिष कि वह कला है जिससे आप अपने मन की कार्यसिद्धि को जान सकते है. कोई घटना घटित होगी या नहीं, यह जानने के लिए प्रश्न लग्न देखा जाता है. प्रश्न ज्योतिष मै उदित लगन के विषय में कहा जाता है कि लग्न मै उदित राशि के अंश अपना विशेष महत्व रखते है. प्रश्न ज्योतिष में प्रत्येक भाव, प्रत्येक राशि अपना विशेष अर्थ रखती है. ज्योतिष की इस विधा में लग्न में उदित लग्न, प्रश्न करने वाला स्वयं होता है.
द्वादश भाव उस विषय वस्तु के विषय का बोध कराता है जिसके बारे मे प्रश्न किया जाता है. प्रश्न किस विषय से सम्बन्धित है यह जानने के लिये जो ग्रह लग्न को पूर्ण दृष्टि से देखता है, उस ग्रह से जुड़ा प्रश्न हो सकता है या जो ग्रह कुण्डली मै बलवान हो लग्नेश से सम्बन्ध बनाये उस ग्रह से जुडा प्रश्न हो सकता है. प्रश्न कुण्डली में प्रश्न का समय बहुत मायने रखता है, इसलिए प्रश्न का समय कैसे निर्धारित किया जाता है इसे अहम विषय माना जा सकता है.
प्रश्न ज्योतिष में समय निर्धारण:
प्रश्न समय निर्धारण के विषय में प्रश्न कुण्डली का नियम है कि जब प्रश्नकर्ता के मन में प्रश्न उत्पन्न हो वही प्रश्न का सही समय है जैसे- प्रश्नकर्ता ने फोन किया और उस समय ज्योतिषी ने जो समय प्रश्नकर्ता को दिया, इन दोनो मे वह समय लिया जायेगा जिस समय ज्योतिषी ने फोन सुना, वही प्रश्न कुण्डली का समय है.
इसी प्रकार प्रश्नकर्ता आगरा से फोन करता है, और ज्योतिषी दिल्ली में फोन से प्रश्न सुनता है. इस स्थिति में प्रश्न कुण्डली का स्थान दिल्ली होगा. प्रश्न कुण्डली का प्रयोग आज के समय में और भी ज्यादा हो गया है.
कई प्रश्नों का जवाब जन्म कुण्डली से देखना मुश्किल होता है, जबकि प्रश्न कुन्ड्ली से उन्हे आसानी से देखा जा सकता है. प्रश्न कुण्डली से जाना जा सकता है कि अमुक इच्छा पूरी होगी या नहीं. प्रश्न कुण्डली से उन प्रश्नो का भी जवाब पाया जा सकता है जिसका जवाब हां या ना में दिया जा सकता है जैसे अमुक मामले में जीत होगी या हार, बीमार व्यक्ति स्वस्थ होगा या नहीं, घर से गया व्यक्ति वापस लौटेगा या नहीं. इतना ही नहीं प्रश्न कुण्डली से यह भी ज्ञात किया जा सकता है कि खोया सामान मिलेगा अथवा नहीं.
प्रश्न कुण्डली में भावो का स्थान:
जन्म कुण्डली की तरह प्रश्न ज्योतिष में भी लग्न को प्रमुख माना जाता है. लग्न की राशि, अंश, प्रश्न ओर प्रश्नकर्ता का विवरण देते है. प्रथम भाव प्रश्नकर्ता है, सप्तम भाव जिसके विषय मे प्रश्न किया गया है वह है. दूसरा भाव जिसके विषय मे प्रश्न किया गया है उसकी आयु है. अलग-अलग प्रश्नो के लिए भाव का अर्थ बदल जाता है.
जब लग्न का सम्बन्ध, सम्बन्धित भाव से आये तो कार्यसिद्धि मानी जाती है.
प्रश्न कुण्डली मे राशियों का स्थान:
प्रश्न ज्योतिष मे राशियो का वर्गीकरण यहाँ यह बताता है कि शिरशोदय राशियाँ प्रश्न कि सफलता बताती है और पृष्टोदय राशियाँ प्रश्न की असफलता कि ओर इशारा करती है, सामान्य प्रश्नों में लग्न में शुभ ग्रह का होना, अच्छा माना जाता है, और अशुभ ग्रह का बैठना अशुभ. लग्न को शुभ ग्रह देखे तो प्रश्न कि सफलता कि ओर कदम कह सकते है. इसी प्रकार दिवाबली राशि शुभ प्रश्न कि ओर इशारा करती है जबकि रात्रिबली राशि अशुभ विषय से सम्बन्धित प्रश्न को दर्शाती है. प्रश्न कुण्डली को जन्म कुण्डली की पूरक कुण्डली माना जा सकता है.
अपने प्रश्न कि पुष्टि के लिए प्रश्न के योग को जन्म कुण्डली में भी देखा जा सकता है जैसे- लग्न मै चर राशि का उदय होना यह बताता है कि स्थिति बदलने वाली है और स्थिर राशि यह बताती है कि जो है वही बना रहेगा, अर्थात यात्रा के प्रश्न में लग्न में चर राशि होने पर यात्रा होगी और स्थिर राशि होने पर नहीं होगी तथा द्विस्वभाव होने पर लग्न के अंशो पर ध्यान दिया जाता है, 00 से 150 तक स्थिर राशि के समान होगा, अन्यथा चर राशि के समान होगा. प्रश्न कि सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है, कि लग्न, लग्नेश, भाव, भावेश का सम्बन्ध जितना अधिक होगा, कार्यसिद्धि उतनी जल्द होगी.
प्रश्न मन कि इच्छा है, प्रश्नकर्ता कि जो इच्छा है वह प्रश्नकर्ता के पक्ष मै है या नहीं यह प्रश्नन से देखा जाता है जैसे यात्रा के प्रश्न में प्रश्नकर्ता यात्रा चाहता है और प्रश्न कुण्डली में भी यह आता है तभी कहा जाता है कि व्यक्ति यात्रा करेगा, अन्यथा नहीं. प्रश्न कुण्डली में हार जीत का प्रश्न एक ऐसा प्रश्न है जिसमें लग्न में शुभ ग्रह का होना अशुभ फल देता है जबकि अशुभ अथवा क्रूर ग्रह का परिणाम शुभ होता है. यहां विचारणीय तथ्य यह है कि अगर लग्न एवं सप्तम भाव दोनों ही में अशुभ ग्रह बैठे हों तो अंशों से फल को देखा जाता है.
भाव और कार्येस में सम्बन्ध:
भावो कि संख्या कुण्डली मे 12 है. जन्म कुण्डली मे प्रत्येक भाव स्थिर है और सभी का अपना महत्व है. प्रश्न कुण्डली में किस भाव से क्या देखना है यह प्रश्न पर निर्भर करता है. प्रश्न कुण्डली मे कार्येश वह है जिसके विषय मे प्रश्न किया गया है जैसे- विवाह के प्रश्न मे सप्तम भाव का स्वामी (भावेश) कार्येश है. इसी प्रकार सन्तान के प्रश्न मे पंचमेश कार्येश है. प्रश्न कुण्डली मे प्रश्न की सफलता के लिए भावेश ओर कार्येश मे सम्बन्ध देखा जाता है. इन दोनो मे जितना दृष्टि सम्बन्ध हो, ये दोनो अंशो मे जितने निकट हो उतना ही अच्छा माना जाता है. यदि ये दोनो लग्न, लग्नेश, चंद्र, और गुरु से सम्बन्ध बनाये तो उत्तर साकारात्मक होगा, अन्यथा नही

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रिश्तों में मधुरता

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ग्रह, नक्षत्र हमारे आपसी रिष्तों पर अपना पूरा प्रभाव डालते हैं। इस संबंध में ज्योतिषषास्त्र में पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है। कुंडली में प्रत्येक ग्रह से कोई ना कोई रिष्ता जुड़ा होता है तथा प्रत्येक भाव से रिष्तेदारो की स्थिति की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। सूर्य से जहाॅ पिता तथा पितातुल्य संबंधों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है वहीं पर चंद्रमा से माॅ, मौसी तथा माता संबंधी रिष्तों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। मंगल से भाई तथा मित्रों के संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है तो बुध से बहन, बुआ, बेटी, साली और इससे संबंधित रिष्तों के बारे में जाना जा सकता है वहीं पर गुरू से पिता, दादा, गुरू तथा देव का पता चलता है शुक्र से पत्नी तथा स्त्री का पता चलता है शनि से चाचा, माता, सेवक तथा अधिनस्थों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है तो राहु से साला और ससुर तथा केतु से संतान और नाना जैसे रिष्तों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके साथ ही भाव भी रिष्तों के विषय में जानकारी देते हैं, जिसमें लग्न से स्वयं, दूसरे स्थान से कुटुंब, तीसरे स्थान से छोटे भाई-बहन तथा पड़ोसियों एवं सहायकों के बारे में जाना जा सकता है तो चतुर्थ भाव से माॅ, ससुर तथा नजदीकी रिष्तेदारों के बारे में जानकारी मिलती है तो पंचम से संतान, दोस्त, प्रेमी-प्रेमिका, समाज के संबंध में जाना जा सकता है। षष्ठम स्थान से मातृपक्ष, सेवक तो सप्तम स्थान से जीवनसाथी, पार्टनर के बारे में जानकारी प्राप्त हेाती है तो अष्टम स्थान पितृ संबंधी रिष्तों की जानकारी देता है वहीं नवम स्थान दादा तथा पारिवारिक बुजुर्गो के संबंध में सूचना देता है दषम स्थान से पिता, अधिकारी तथा सहयोगियों के बारे में जाना जा सकता है। एकादष स्थान से बड़े भाई-बहन तथा दोस्तों के बारे में जाना जा सकता है तो द्वादष स्थान से पिता पक्ष तथा, जीवनसाथी से संबंध जाना जाता है तो आध्यामिक रिष्तों के बारे में जाना जाता है अतः इनमें से किसी भी भाव या भावेष की स्थिति प्रतिकूल होने पर उस रिष्तें से हानि तथा कष्ट की संभावना बनती है तो जिस भाव या भावेष की स्थिति अनुकूल हो वह रिष्ता जीवन में सुख तथा सहायक बनता है। इस प्रकार जीवन में कौन सा रिष्ता सहयोगी होगा तथा किस रिष्ते से सुख प्राप्त होगा इसकी जानकारी कुंडली के भाव या भावेष से जाना जा सकता है। जीवन में जो रिष्ता दुखी करता हो, उस रिष्ते से संबंधित ग्रह तथा भाव को मजबूत करने का उपाय आजमाकर शुभ फल पाया जा सकता है।

South East bedroom can create tensions

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Igneous suite bedrooms for the men who use the fire-element-related high blood pressure, diabetes, stroke and more likely to cause disease and a tendency to turn into excited nature of the inter-ideological differences with the spouse are caused.
If the bedroom in the south-east rift between husband and wife can be. Can stay angry. Excessive stress or anger can ever come. If you can not make your bedroom beds elsewhere in the south-west and south lie the head.
Wasteful spending and increases in angle of igneous bedrooms unnecessarily discord between husband and wife is Halagney angle should not sleep together before marriage is bad blood between them and find the evil of each other only Everybody spent
Do not sleep in igneous Lliske angle is a lot of anger ... anger when the people are on his or water, becomes the cause of the rupture. If you like the relationship of husband and wife, father and son have become partners. Anger is piquant mixture of bitterness in relationships.


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information related to the kitchen of architectural

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Here are some information related to the kitchen of architectural,
Every kitchen should take the time to create. If stored in the kitchen at home homeowner in your job or business is facing considerable difficulties. To prevent these difficulties should create separate kitchen and store room.
Kitchen and bathroom in a straight line does not bode well be. Walanen live in such a house to live in the face of great difficulties. Health is not right. There is unrest in the lives of girls from home.
There is also a good place to worship in the kitchen. The home is a place of worship in the kitchen, living within the brain are hot. Family member may be blood-related complaints.
Kitchen in front of the main door of the house should not. Directly opposite the main entrance to the kitchen, brother of homeowner is unlucky. The kitchen with underground water tanks or wells If there are differences in the brothers. The owner of the house will have to travel to make money too. Eat meal or meeting house meeting is unlucky to be in front of the kitchen. There is hostility between the relatives and the children have difficulties in education.
The kitchen is connected to the main entrance of the house at the beginning is a lot of love between husband and wife, is Sahardpuarn home environment, but after a while seem to be differences among themselves without reason.
Experience has found that their homes as a means of food in the kitchen, gas stove, microwave oven, etc. are more than one, they are more than a means of income. All members of a family with at least one meal should consist. Doing so with mutual respect are strong and have a strong sense of living.

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Saturday 20 June 2015

कैरियर में उतार-चढ़ाव से वैवाहिक जीवन में कष्ट -


कैरियर या व्यवसायिक अपडाउन के कारण वैवाहिक जीवन में रिष्ते खराब हो सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, अष्टम, नवम भाव में से किसी भाव में राहु के होने पर जातक के जीवन में आकस्मिक हानि का योग बनता है। अगर राहु के साथ सूर्य, शनि के होने पर यह प्रभाव जातक के स्वयं के जीवन के अलावा यह दुष्प्रभाव उसके परिवार पर भी दिखाई देता है। अगर प्रथम भाव में राहु के साथ सूर्य या शनि की युति बने तो व्यक्ति अषांत, गुप्त चिंता, स्वास्थ्य एवं पारिवारिक परेषानियों के कारण चिंतित रहता है। दूसरे भाव में इस प्रकार की स्थिति निर्मित होेने पर परिवार में वैमनस्य एवं आर्थिक उलझनें बनने का कोई ना कोई कारण बनता रहता है। तीसरे स्थान पर होने पर व्यक्ति हीन मनोबल का होने के कारण असफलता प्राप्त करता है। चतुर्थ स्थान में होने पर घरेलू सुख, मकान, वाहन से संबंधित कष्ट पाता है। बार-बार कार्य में बाधा आना या नौकरी छूटना, सामाजिक अपयष अष्टम राहु के कारण दिखाई देता है। नवम स्थान में होने पर भाग्योन्नति तथा हर प्रकार के सुखों में कमी का कारण बनता है। सामान्यतः चंद्रमा के साथ राहु का दोष होने पर वैवाहिक जीवन में परेषानी, गुप्तरोग, उन्नति में कमी तथा अनावष्यक तनाव दिखाई देता है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार का दोष दिखाई दे तो अपनी कुंडली की विवेचना कराकर उसे शनिवार का व्रत कर धन की प्राप्ति के लिए कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें तथा पाठ पूर्ण करने के उपरांत सवापाव तिल का दान करें। इस प्रकार का उपाय जीवन में एक साल करने के उपरांत हवन करा कर कुछ समय के उपरंात फिर प्रारंभ किया जा सकता है। ऐसा करने से जीवन में कैरियर संबंधी बाधा समाप्त होकर अच्छी आर्थिक स्थिति प्राप्त होने के साथ रिष्तों में भी मधुरता लाता है।
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सौभाग्य सुंदरी व्रत -



सौभाग्य सुंदरी व्रत -
एक समय की बात है कि नारद अनेक-अनेक लोकों का भ्रमण करते हुए जीवों को दुखी देखकर पितामह ब्रम्हाजी के पास पहुॅचे और उन्होंने ब्रम्हाजी से अलग-अलग योनि में सुख दुख पाते हुए व्याधिग्रस्त दुखी जीवो के दुख का कारण पूछा। तब ब्रम्हाजी ने कहा वत्स, ये जो पंच महाभूतो से बना शरीर कर्म रूपी बीज का पौधा है। जिन्होेंने दान किए वे सुखी व सुदंर होते हैं। तप के प्रभाव से बलि व सुभग होते हैं। इसके विपरीत निंदा, धन का अपहरण, दान ना करने वाले जीव क्रमषः दरिद्री, व्याधिग्रस्त तथा दुर्भग होते हैं। तब नारद ने ब्रम्हाजी से सभी मनुष्यों के लिए ऐसा कर्म पूछा कि जिससे सभी सौभाग्यवान और सुंदर हों। तब ब्रम्हाजी ने कहा कि भगवान शंकर ने ब्रम्हार्षि वषिष्ठ पर कृपा करके सौभाग्य सुंदरी का व्रत कहा था, वह मैं तुमसे कहता हूॅ। एक समय की बात है मेघवती नाम की दासी जो कुरूप तथा दुर्भाग्यषाली थी वह किसी को पहुॅचाने एक ब्राम्हण के घर गई। वहाॅ ब्राम्हण देवता बहुत सी स्त्रियों को सौभाग्य सुंदरी व्रत की कथा सुना रहे थे। जो सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। ज्ञान वैराग्य देने वाली है। भगवान षिव कहते हैं कि एक दिन पावर्ती को यह कथा मैंने सुनाई थी। जिसके प्रभाव से पावर्ती को सुंदर रूप तथा सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इस व्रत को मेघवती ने भी यत्नपूर्वक किया। जिसके प्रभाव से वह परमसुंदरी, सुषीला, सर्वलक्षण युक्त निषादराज की कन्या बनी। चूॅकि उसने जूठा अन्न खाया था इस कारण वह निषादयोनि में उत्पन्न हुई। चूॅकि उसने दान नहीं दिया था इस कारण उसे भोगने के लिए कुछ नहीं मिला परंतु व्रत के प्रभाव से वह पतिव्रता हुई। यह व्रत मार्गषीर्ष माह के कृष्णपक्ष की तृतीया को किया जाता है। इसमें अपामार्ग (चिचड़ा) के दातून से व्रत करना चाहिए और भगवती पावर्ती का पूजन करना चाहिए। इस व्रत की पावर्ती सौभाग्य सुंदरी या वषिनी के नाम से जानी जाती हैं। सौभाग्य सुंदरी का व्रत वर्षभर के तृतीया का व्रत होता है। इस दिन जल में आंवला डालकर अध्र्य दें दे तथा कंकोल का प्रासन रात में करें। घी, शक्कर मिले बटको का नैवेद्य करें। घी का दीपक जलाकर रात्रि जागरण करें। इस नियम से इस व्रत को करने से सभी प्रकार की कामनाएॅ पूर्ण होती हैं।

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कुंडली से जाने बच्चों में अनुशासान क्यों नहीं

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ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को प्रमुखता प्राप्त है। कालपुरूष की कुंडली में शुक्र ग्रह दूसरे अर्थात् संपत्ति एवं सुख तथा सप्तम स्थान अर्थात् पार्टनर का स्वामी होता है। शुक्र ग्रह सुख, संपत्ति, प्यार, लाभ, यष, क्रियात्मकता का प्रतीक है। शुक्र ग्रह की उच्च तथा अनुकूल स्थिति में होने पर सभी प्रकार के सुख साधन की प्राप्ति, कार्य में अनुकूलता तथा यष, लाभ तथा सुंदरता की प्राप्ति होती है। इस ग्रह से जीवन में ऐष्वर्या तथा सुख की प्राप्ति होती है किंतु यदि विपरीत स्थिति या प्रतिकूल स्थान पर हो तो सुख में तथा धन ऐष्वर्या में कमी भी संभावित होती है। शुक्र ग्रह की दषा या अंतरदषा में सुख तथा संपत्ति की प्राप्ति का योग बनता है। किंतु शुक्र ग्रह भोग तथा सुख का साधन होने से इन दषाओं में मेहनत या प्रयास में कमी भी प्रदर्षित होती है। यदि ये दषाएॅ उम्र की परिपक्वता की स्थिति में बने तो लाभ होता है किंतु शुक्र की दषा या अंतरदषा कैरियर या अध्ययन के समय चले तो पढ़ाई में बाधा, कैरियर की राह में प्रयास में भटकाव से सफलता बाधित होती है। एकाग्रता में कमी तथा स्वप्न की दुनिया में विचरण से दोस्ती या सुख तो प्राप्त होता है किंतु अच्छा पद या प्रतिष्ठा प्राप्ति के मार्ग में प्रयास में विचलन से कैरियर बाधित हो सकता है। कैरियर की उम्र में शुक्र की दषाएॅ चले तो अभिभावक को बच्चों के व्यवहार में नियंत्रण रखते हुए अनुषासित रखते हुए लगातार अपने प्रयास करने पर जोर देने से कैरियर की बाधाएॅ दूर होती है। साथ ही ज्योतिष से सलाह लेकर यदि शुक्र का असर व्यवहार पर दिखाई दे तो ग्रह शांति के साथ नियम से दुर्गा कवच का पाठ लाभकारी होता है।
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सुख एवं संपत्ति दायी श्रावणी शुक्रवार का व्रत


ज्योतिष शास्त्र में कालपुरूष की कुंडली के अनुसार शुक्र सुख, संपत्ति तथा भोग की देवी मानी जाती है। पुराणों के अनुसार भी शुक्रवार को माता लक्ष्मी तथा संतोषीमाता का वार माना जाता है, जिसे सुख संपत्ति का कारक माना जाता है। यदि किसी के जीवन में सुख तथा वैभव में कमी हो तो उसे शुक्रवार का व्रत तथा माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। श्रावण का मास पाप तथा कष्ट को दूर करने का मास माना जाता है। अतः किसी जातक के जीवन में आकस्मिक धन हानि, व्यवसायिक कष्ट या सुख में किसी भी प्रकार की कमी आ रही हो तो उसे श्रावण मास के शुक्रवार को श्रावणी शुक्रवार का व्रत तथा पूजन करना विषेष लाभकारी होता है। स्कंद पुराण में श्रावणी शुक्रवार का वर्णन करते हुए कहा गया है कि किसी को भी सुख तथा पारिवारिक कष्ट हो तो उसे इस व्रत को करना चाहिए। इस व्रत को करने के लिए शुक्रवार के दिन स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर व्रत करें तथा सायंकाल जब आकाष में शुक्रतारा उदित हो तो उस समय सभी स्त्रीयाॅ मिलकर पावर्ती तथा षिवजी की पूजा कर आरती तथा भजन कीर्तन कर किसी सुहागन ब्राम्हणी महिला को यथा संभव सुहाग सामग्री दान कर आषीष प्राप्त करें। ऐसा करने से कष्ट की निवृत्ति होकर जीवन में सुख तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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The truthfulness charity


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Giving the things to one of his/her choice or interest is not charity.Charity is giving of things so that both the doner as well as taker both are satisfied. Listen, I'll tell you a little story.
The city's name was videh Punderikini former Pushklawati country. Any time there was a king Megrth state. One day while fasting festival Ashtahnik veneration they were preach and shake so that the dove came back there was a vulture with great velocity. Dove sat king. The eagle said: "Rajan! I am distressed by excessive hunger pang, so please give me this pigeon. Hey munificent! If you do not give me the pigeons will leave my life in front of you right now. Seeing the human voice speaking Vulture asked by Prince Dridrhth 'Jesus! Tell me what to speak of the mystery bird is the vulture? King Megrth said Suno- airavat of Jambudvipa in the name of a town Khet Padmini. There Nandisen Dnmitr and wealth for the sake of the name of two brothers died Ldkr together, so it's been bird dove and hawk. The Vulture Lord's body so that it is speaking. Who is she? Suno- Ishanendra sleep in his house while my praise of the earth Megrth is no greater donor. I hear such praise coming from a dev to test By entering the body is speaking. But hey bro! I'll explain all the symptoms of charity, sleep and listen to dwell. Self and the object is for the grace, the charity is called.
Power, science, faith, etc. is such a giving and taking the donor is called and the object both enhances the qualities called her due. The payable diet, medicine, chemistry and have mercy upon all creatures, such as the four types, so Mr. Srwajrtrdev said. Therefore, these four are the only means of salvation from the net payable and order. Mokshmarg which are located in the world-tour of yourself and protect others, they are called character. This material may not be due more meat etc. The character does not wish to give them and they are not donor. Maasadi object hell possess both the character and the donor. Summary to say that it is not eligible for the donation and pigeon hawk object is not visible.
Listening to the voice of Megrth she revealed her true God and unto the king began to praise him, O! You must be donated to the department Dansur knowing, he went to a praise. Both the Eagles and the dove of birds also called Megrth understand everything and leaves the body at the end of the age were dainty and Atirup name Wyantr Dev. He immediately came to praise the lord king-Vandana began to Megrth-O blest! If only we could get out of your offerings Kuyoni so your favor us is always memorable.

आय प्राप्ति में बाधा कैसे दूर करें

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सभी की चाह होती है कि उच्च पद तथा सम्मान अपने जीवन में प्राप्त करें। साथ ही यह चाह भी कि जीवन में स्थिरता बनी रहे। इस का एक तरीका सरकारी नौकरी प्राप्त करना भी है। किंतु कई बार देखा जाता है कोई व्यक्ति बहुत प्रयास के बाद भी सफल नहीं हो पाता है वहीं किसी को एक बार में अच्छी सफलता प्राप्त हो जाती है। इसका कारण अथक मेहनत के साथ जन्मपत्री में ग्रह योग भी होते हैं। यदि ग्रह योग राजकीय पद पर कार्य करने का है तो थोड़े से प्रयास से भी अच्छा पद प्राप्त हो सकता है किंतु इसके लिए व्यक्ति की ग्रह दषाओं के साथ दषा एवं अंतरदषा भी प्रभाव डालती है। प्रत्येक जातक अपने ग्रह स्थिति हेतु कुंडली में सूर्य, गुरू, मंगल, चंद्रमा तथा राहु की स्थिति का विष्लेषण तथा प्रयास के दौरान ग्रह दषाओं के साथ दषा तथा अंतरदषा का मूल्यांकन कर अपनी सफलता का आकलन कर सकता है। यदि किसी जातक की ग्रह स्थिति अनुकूल हो तो दषा के प्रतिकूल होने पर आवष्यक उपाय द्वारा भी सफलता प्राप्ति का रास्ता खोल सकता है। प्रतियोगिता परीक्षा में निष्चित सफलता प्राप्ति तथा मन की एकाग्रता में वृद्धि हेतु पूर्व दिषा में मुख कर नित्य अष्म स्तोत्र का पाठ का पाठ करना चाहिए।
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आपकी संतान को जीवन में अच्छी शिक्षा, सुख,समृद्धि की प्राप्ति कैसे


 आज कल हर पैरेंटस की दिली तमन्ना होती है कि उनकी संतान उच्च तकनीकी षिक्षा प्राप्त करें, जिससे उसके कैरियर की शुरूआत ही एक अच्छे पैकेज से हो, किंतु सभी इसमें सफलता प्राप्त तो नहीं कर सकते किंतु अपने संतान की कुंडली के ज्योतिषीय विवेचन तथा उचित समाधान कर एक अच्छे कैरियर हेतु प्रयास किया जा सकता है। अतः जाने की क्या आपकी संतान में ऐसे योग हैं। षिक्षा कारक ग्रह गुरू, जोकि तर्कषक्ति तथा गणित जैसे विषयों का कारक ग्रह होता है यदि गुरू की उत्तम स्थिति हो तो संतान की षिक्षा संबंधी चिंता नहीं रहती। सूर्य अनुकूल हो तो अनुशासन तथा जिम्मेदार होेने से भी उन्नति में सहायक होता है। यांत्रिक ज्ञान तथा वाकशक्ति उत्तम होना भी सफलता में सहयोगी हो सकता है, इसके लिए जन्म कुंडली का तीसरा भाव तथा बुध एवं मंगल की स्थिति उत्तम होनी चाहिए। शनि उत्तम या अनुकूल है तो व्यक्ति में कार्यक्षमता अच्छी होगी, जिससे उसके सफलता प्राप्ति के अवसर ज्यादा होंगे। किंतु उच्च ग्रह स्थिति होने के बावजूद यदि गोचर में ग्रह दषाएॅ अनुकूल ना हो तो जातक को सफलता प्राप्त होने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अतः अपने संतान के ग्रह स्थिति के अलावा ग्रह दषाओं का आकलन समय से पूर्व कराया जाकर उनके उचित उपाय करने से एक सफल कैरियर की प्राप्ति संभव है।
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