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Monday 22 June 2015

क्यों युवा बच्चे अनुशासनहिन हो जाते हैं और उसके उपाय


ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को प्रमुखता प्राप्त है। कालपुरूष की कुंडली में शुक्र ग्रह दूसरे अर्थात् संपत्ति एवं सुख तथा सप्तम स्थान अर्थात् पार्टनर का स्वामी होता है। शुक्र ग्रह सुख, संपत्ति, प्यार, लाभ, यष, क्रियात्मकता का प्रतीक है। शुक्र ग्रह की उच्च तथा अनुकूल स्थिति में होने पर सभी प्रकार के सुख साधन की प्राप्ति, कार्य में अनुकूलता तथा यष, लाभ तथा सुंदरता की प्राप्ति होती है। इस ग्रह से जीवन में ऐष्वर्या तथा सुख की प्राप्ति होती है किंतु यदि विपरीत स्थिति या प्रतिकूल स्थान पर हो तो सुख में तथा धन ऐष्वर्या में कमी भी संभावित होती है। शुक्र ग्रह की दषा या अंतरदषा में सुख तथा संपत्ति की प्राप्ति का योग बनता है। किंतु शुक्र ग्रह भोग तथा सुख का साधन होने से इन दषाओं में मेहनत या प्रयास में कमी भी प्रदर्षित होती है। यदि ये दषाएॅ उम्र की परिपक्वता की स्थिति में बने तो लाभ होता है किंतु शुक्र की दषा या अंतरदषा कैरियर या अध्ययन के समय चले तो पढ़ाई में बाधा, कैरियर की राह में प्रयास में भटकाव से सफलता बाधित होती है। एकाग्रता में कमी तथा स्वप्न की दुनिया में विचरण से दोस्ती या सुख तो प्राप्त होता है किंतु अच्छा पद या प्रतिष्ठा प्राप्ति के मार्ग में प्रयास में विचलन से कैरियर बाधित हो सकता है। कैरियर की उम्र में शुक्र की दषाएॅ चले तो अभिभावक को बच्चों के व्यवहार में नियंत्रण रखते हुए अनुषासित रखते हुए लगातार अपने प्रयास करने पर जोर देने से कैरियर की बाधाएॅ दूर होती है। साथ ही ज्योतिष से सलाह लेकर यदि शुक्र का असर व्यवहार पर दिखाई दे तो ग्रह शांति के साथ नियम से दुर्गा कवच का पाठ लाभकारी होता है।
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तात्कालिक लाभ हानि


भारतीय ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को प्रमुख स्थान दिया गया है तथा माना गया है कि चंद्रमा मन का कारक होता है। चूॅकि किसी मानव के जीवन में उसकी सफलता तथा असफलता का बहुत बड़ा कारण उसका मन होता है अतः यदि कोई व्यक्ति सफल है या असफल इसका बहुत कुछ निर्धारण चंद्रमा की स्थिति से किया जा सकता है। चंद्रमा यदि लग्न में हो तो जातक ऐष्वर्यषाली, सुखी, मधुरभाषी, स्थूल शरीर वाला, द्वितीय स्थान में सुंदर, परदेषवासी, भ्रमणषील तृतीय स्थान में तपस्वी, आस्तिक, कलाप्रेमी, गले का रोगी, चतुर्थभाव में होने पर दानी, रागद्धेष रहित, क्रोधी, पंचम स्थान में विनीत, व्यसनी, मित्रयुक्त छठवे स्थान में होने पर विलासी, धार्मिक, लोकप्रिय, सप्तम स्थान पर होने पर अस्थिर, दुखी,प्रवासी अष्टम स्थान पर मातृभक्त, कलाप्रेमी, विवादी, मिथ्याभाषी नवम स्थान पर सात्विक, तेजस्वी, मानी दसम स्थान पर विद्धान, दयालु, कला में माहिर एकादष स्थान पर आलसी, दानी मधुरवाणी युक्त तथा द्वादष स्थान पर क्रोधी, व्यसनी, कलाकार हो सकता है। किंतु चंद्रमा के विपरीत स्थान में होने पर विपरीत असरकारी भी होता है अतः मानसिक कमजोर तथा निर्णय लेने में बाधा दे सकता है अतः चंद्रमा के दोषों को दूर करने हेतु चंद्रमा के वस्तुओं का दान जिसमें विषेषकर शंख, कपूर, दूध, दही, चीनी, मिश्री, श्वेत वस्त्र, इत्यादि तथा मंत्रजाप जिसमें उॅ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः या उॅ नमः षिवाय का 11 हजार जाप तथा रूद्राभिषेक प्रमुख माना जाता है। इन उपायो के आजमाने से शुभ फल में वृद्धि तथा अषुभ फलों में कमी होती है।
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अंक शास्त्र में विवाह

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अंकशास्त्र में मुख्य रूप से नामांक, मूलांक और भाग्यांक इन तीन विशेष अंकों को आधार मानकर फलादेश किया जाता है. विवाह के संदर्भ में भी इन्हीं तीन प्रकार के अंकों के बीच सम्बन्ध को देखा जाता है.
अंक ज्योतिष भविष्य जानने की एक विधा है. अंक ज्योतिष से ज्योतिष की अन्य विधाओं की तरह भविष्य और सभी प्रकार के ज्योंतिषीय प्रश्नों का उत्तर ज्ञात किया जा सकता है. विवाह जैसे महत्वपूर्ण विषय में भी अंक ज्योतिष और उसके उपाय काफी मददगार साबित होते हैं.
अंक ज्योंतिष अपने नाम के अनुसार अंक पर आधारित है. अंक शास्त्र के अनुसार सृष्टि के सभी गोचर और अगोचर तत्वों अपना एक निश्चत अंक होता है. अंकों के बीच जब ताल मेल नहीं होता है तब वे अशुभ या विपरीत परिणाम देते हैं. अंकशास्त्र में मुख्य रूप से नामांक, मूलांक और भाग्यांक इन तीन विशेष अंकों को आधार मानकर फलादेश किया जाता है. विवाह के संदर्भ में भी इन्हीं तीन प्रकार के अंकों के बीच सम्बन्ध को देखा जाता है. अगर वर और वधू के अंक आपस में मेल खाते हैं तो विवाह हो सकता है. अगर अंक मेल नहीं खाते हैं तो इसका उपाय करना होता है ताकि अंकों के मध्य मधुर सम्बन्ध स्थापित हो सके.
वैदिक ज्योतिष एवं उसके समानांतर चलने वाली ज्योतिष विधाओं में वर वधु के वैवाहिक जीवन का आंकलन करने के लिए जिस प्रकार से कुण्डली से गुण मिलाया जाता ठीक उसी प्रकार अंकशास्त्र में अंकों को मिलाकर वर वधू के वैवाहिक जीवन का आंकलन किया जाता है.
अंकशास्त्र से वर वधू का गुण मिलान अंकशास्त्र में वर एवं वधू के वैवाहिक गुण मिलान के लिए, अंकशास्त्र के प्रमुख तीन अंकों में से नामांक ज्ञात किया जाता है. नामांक ज्ञात करने के लिए दोनों के नामों को अंग्रेजी अलग अलग लिखा जाता है. नाम लिखने के बाद सभी अक्षरों के अंकों को जोड़ा जाता है जिससे नामांक ज्ञात होता है. ध्यान रखने योग्य तथ्य यह है कि अगर मूलक 9 से अधिक हो तो योग से प्राप्त संख्या को दो भागों में बांटकर पुन योग किया जाता है. इस प्रकार जो अंक आता है वह नामांक होता है. उदाहरण से योग 32 आने पर 3+2=5. वर का अंक 5 हो और कन्या का अंक 8तो दोनों के बीच सहयोगात्मक सम्बन्ध रहेगा, अंकशास्त्र का यह नियम है.
वर वधू के नामांक का फल अंकशास्त्र के नियम के अनुसार अगर वर का नामांक 1 है और वधू का नामांक भी एक है तो दोनों में समान भावना एवं प्रतिस्पर्धा रहेगी जिससे पारिवारिक जीवन में कलह की स्थिति होगी. कन्या का नामांक 2 होने पर किसी कारण से दोनों के बीच तनाव की स्थिति बनी रहती है. वर 1 नामांक का हो और कन्या तीन नामांक की तो उत्तम रहता है दोनों के बीच प्रेम और परस्पर सहयोगात्मक सम्बन्ध रहता है. कन्या 4 नामंक की होने पर पति पत्नी के बीच अकारण विवाद होता रहता है और जिससे गृहस्थी में अशांति रहती है. पंचम नामंक की कन्या के साथ गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है. सप्तम और नवम नामाक की कन्या भी 1 नामांक के वर के साथ सुखमय वैवाहिक जीवन का आनन्द लेती है जबकि षष्टम और अष्टम नामांक की कन्या और 1 नमांक का वर होने पर वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आती है.
वर का नामांक 2 हो और कन्या 1 व 7 नामांक की हो तब वैवाहिक जीवन के सुख में बाधा आती है. 2 नामांक का वर इन दो नामांक की कन्या के अलावा अन्य नामांक वाली कन्या के साथ विवाह करता है तो वैवाहिक जीवन आनन्दमय और सुखमय रहता है. तीन नामांक की कन्या हो और वर 2 नामांक का तो जीवन सुखी होता है परंतु सुख दुख धूप छांव की तरह होता है. वर 3 नामांक का हो और कन्या तीन, चार अथवा पांच नामांक की हो तब अंकशास्त्र के अनुसार वैवाहिक जीवन उत्तम नहीं रहता है. नामांक तीन का वर और 7 की कन्या होने पर वैवाहिक जीवन में सुख दुख लगा रहता है. अन्य नामांक की कन्या का विवाह 3 नामांक के पुरूष से होता है तो पति पत्नी सुखी और आनन्दित रहते हैं.
4 अंक का पुरूष हो और कन्या 2, 4, 5 अंक की हो तब गृहस्थ जीवन उत्तम रहता है. चतुर्थ वर और षष्टम या अष्टम कन्या होने पर वैवाहिक जीवन में अधिक परेशानी नहीं आती है. 4 अंक के वर की शादी इन अंकों के अलावा अन्य अंक की कन्या से होने पर गृहस्थ जीवन में परेशानी आती है. 5 नामांक के वर के लिए 1, 2, 5, 6, 8नामांक की कन्या उत्तम रहती है. चतुर्थ और सप्तम नामांक की कन्या से साथ गृहस्थ जीवन मिला जुला रहता है जबकि अन्य नामांक की कन्या होने पर गृहस्थ सुख में कमी आती है. षष्टम नामांक के वर के लिए 1 एवं 6अंक की कन्या से विवाह उत्तम होता है. 3, 5, 7, 8एवं 9 नामांक की कन्या के साथ गृहस्थ जीवन सामान्य रहता है और 2 एवं चार नामांक की कन्या के साथ उत्तम वैवाहिक जीवन नहीं रह पाता.
वर का नामांक 7 होने पर कन्या अगर 1, 3, 6, नामांक की होती है तो पति पत्नी के बीच प्रेम और सहयोगात्मक सम्बन्ध होता है. कन्या अगर 5, 8अथवा 9 नामंक की होती है तब वैवाहिक जीवन में थोड़ी बहुत परेशानियां आती है परंतु सब सामान्य रहता है. अन्य नामांक की कन्या होने पर पति पत्नी के बीच प्रेम और सहयोगात्मक सम्बन्ध नहीं रह पाता है. आठ नामांक का वर 5, 6अथवा 7 नामांक की कन्या के साथ विवाह करता है तो दोनों सुखी होते हैं. 2 अथवा 3 नामांक की कन्या से विवाह करता है तो वैवाहिक जीवन सामान्य बना रहता है जबकि अन्य नामांक की कन्या से विवाह करता है तो परेशानी आती है. 9 नामांक के वर के लिए 1, 2, 3, 6एवं 9 नामांक की कन्या उत्तम होती है जबकि 5 एवं 7 नामांक की कन्या सामान्य होती है. 9 नामांक के वर के लिए 4 और 8नामांक की कन्या से विवाह करना अंकशास्त्र की दृष्टि से शुभ नही होता है.
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Saturday 20 June 2015

कैरियर में उतार-चढ़ाव से वैवाहिक जीवन में कष्ट -


कैरियर या व्यवसायिक अपडाउन के कारण वैवाहिक जीवन में रिष्ते खराब हो सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, अष्टम, नवम भाव में से किसी भाव में राहु के होने पर जातक के जीवन में आकस्मिक हानि का योग बनता है। अगर राहु के साथ सूर्य, शनि के होने पर यह प्रभाव जातक के स्वयं के जीवन के अलावा यह दुष्प्रभाव उसके परिवार पर भी दिखाई देता है। अगर प्रथम भाव में राहु के साथ सूर्य या शनि की युति बने तो व्यक्ति अषांत, गुप्त चिंता, स्वास्थ्य एवं पारिवारिक परेषानियों के कारण चिंतित रहता है। दूसरे भाव में इस प्रकार की स्थिति निर्मित होेने पर परिवार में वैमनस्य एवं आर्थिक उलझनें बनने का कोई ना कोई कारण बनता रहता है। तीसरे स्थान पर होने पर व्यक्ति हीन मनोबल का होने के कारण असफलता प्राप्त करता है। चतुर्थ स्थान में होने पर घरेलू सुख, मकान, वाहन से संबंधित कष्ट पाता है। बार-बार कार्य में बाधा आना या नौकरी छूटना, सामाजिक अपयष अष्टम राहु के कारण दिखाई देता है। नवम स्थान में होने पर भाग्योन्नति तथा हर प्रकार के सुखों में कमी का कारण बनता है। सामान्यतः चंद्रमा के साथ राहु का दोष होने पर वैवाहिक जीवन में परेषानी, गुप्तरोग, उन्नति में कमी तथा अनावष्यक तनाव दिखाई देता है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार का दोष दिखाई दे तो अपनी कुंडली की विवेचना कराकर उसे शनिवार का व्रत कर धन की प्राप्ति के लिए कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें तथा पाठ पूर्ण करने के उपरांत सवापाव तिल का दान करें। इस प्रकार का उपाय जीवन में एक साल करने के उपरांत हवन करा कर कुछ समय के उपरंात फिर प्रारंभ किया जा सकता है। ऐसा करने से जीवन में कैरियर संबंधी बाधा समाप्त होकर अच्छी आर्थिक स्थिति प्राप्त होने के साथ रिष्तों में भी मधुरता लाता है।
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सौभाग्य सुंदरी व्रत -



सौभाग्य सुंदरी व्रत -
एक समय की बात है कि नारद अनेक-अनेक लोकों का भ्रमण करते हुए जीवों को दुखी देखकर पितामह ब्रम्हाजी के पास पहुॅचे और उन्होंने ब्रम्हाजी से अलग-अलग योनि में सुख दुख पाते हुए व्याधिग्रस्त दुखी जीवो के दुख का कारण पूछा। तब ब्रम्हाजी ने कहा वत्स, ये जो पंच महाभूतो से बना शरीर कर्म रूपी बीज का पौधा है। जिन्होेंने दान किए वे सुखी व सुदंर होते हैं। तप के प्रभाव से बलि व सुभग होते हैं। इसके विपरीत निंदा, धन का अपहरण, दान ना करने वाले जीव क्रमषः दरिद्री, व्याधिग्रस्त तथा दुर्भग होते हैं। तब नारद ने ब्रम्हाजी से सभी मनुष्यों के लिए ऐसा कर्म पूछा कि जिससे सभी सौभाग्यवान और सुंदर हों। तब ब्रम्हाजी ने कहा कि भगवान शंकर ने ब्रम्हार्षि वषिष्ठ पर कृपा करके सौभाग्य सुंदरी का व्रत कहा था, वह मैं तुमसे कहता हूॅ। एक समय की बात है मेघवती नाम की दासी जो कुरूप तथा दुर्भाग्यषाली थी वह किसी को पहुॅचाने एक ब्राम्हण के घर गई। वहाॅ ब्राम्हण देवता बहुत सी स्त्रियों को सौभाग्य सुंदरी व्रत की कथा सुना रहे थे। जो सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। ज्ञान वैराग्य देने वाली है। भगवान षिव कहते हैं कि एक दिन पावर्ती को यह कथा मैंने सुनाई थी। जिसके प्रभाव से पावर्ती को सुंदर रूप तथा सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इस व्रत को मेघवती ने भी यत्नपूर्वक किया। जिसके प्रभाव से वह परमसुंदरी, सुषीला, सर्वलक्षण युक्त निषादराज की कन्या बनी। चूॅकि उसने जूठा अन्न खाया था इस कारण वह निषादयोनि में उत्पन्न हुई। चूॅकि उसने दान नहीं दिया था इस कारण उसे भोगने के लिए कुछ नहीं मिला परंतु व्रत के प्रभाव से वह पतिव्रता हुई। यह व्रत मार्गषीर्ष माह के कृष्णपक्ष की तृतीया को किया जाता है। इसमें अपामार्ग (चिचड़ा) के दातून से व्रत करना चाहिए और भगवती पावर्ती का पूजन करना चाहिए। इस व्रत की पावर्ती सौभाग्य सुंदरी या वषिनी के नाम से जानी जाती हैं। सौभाग्य सुंदरी का व्रत वर्षभर के तृतीया का व्रत होता है। इस दिन जल में आंवला डालकर अध्र्य दें दे तथा कंकोल का प्रासन रात में करें। घी, शक्कर मिले बटको का नैवेद्य करें। घी का दीपक जलाकर रात्रि जागरण करें। इस नियम से इस व्रत को करने से सभी प्रकार की कामनाएॅ पूर्ण होती हैं।

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कुंडली से जाने बच्चों में अनुशासान क्यों नहीं

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ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को प्रमुखता प्राप्त है। कालपुरूष की कुंडली में शुक्र ग्रह दूसरे अर्थात् संपत्ति एवं सुख तथा सप्तम स्थान अर्थात् पार्टनर का स्वामी होता है। शुक्र ग्रह सुख, संपत्ति, प्यार, लाभ, यष, क्रियात्मकता का प्रतीक है। शुक्र ग्रह की उच्च तथा अनुकूल स्थिति में होने पर सभी प्रकार के सुख साधन की प्राप्ति, कार्य में अनुकूलता तथा यष, लाभ तथा सुंदरता की प्राप्ति होती है। इस ग्रह से जीवन में ऐष्वर्या तथा सुख की प्राप्ति होती है किंतु यदि विपरीत स्थिति या प्रतिकूल स्थान पर हो तो सुख में तथा धन ऐष्वर्या में कमी भी संभावित होती है। शुक्र ग्रह की दषा या अंतरदषा में सुख तथा संपत्ति की प्राप्ति का योग बनता है। किंतु शुक्र ग्रह भोग तथा सुख का साधन होने से इन दषाओं में मेहनत या प्रयास में कमी भी प्रदर्षित होती है। यदि ये दषाएॅ उम्र की परिपक्वता की स्थिति में बने तो लाभ होता है किंतु शुक्र की दषा या अंतरदषा कैरियर या अध्ययन के समय चले तो पढ़ाई में बाधा, कैरियर की राह में प्रयास में भटकाव से सफलता बाधित होती है। एकाग्रता में कमी तथा स्वप्न की दुनिया में विचरण से दोस्ती या सुख तो प्राप्त होता है किंतु अच्छा पद या प्रतिष्ठा प्राप्ति के मार्ग में प्रयास में विचलन से कैरियर बाधित हो सकता है। कैरियर की उम्र में शुक्र की दषाएॅ चले तो अभिभावक को बच्चों के व्यवहार में नियंत्रण रखते हुए अनुषासित रखते हुए लगातार अपने प्रयास करने पर जोर देने से कैरियर की बाधाएॅ दूर होती है। साथ ही ज्योतिष से सलाह लेकर यदि शुक्र का असर व्यवहार पर दिखाई दे तो ग्रह शांति के साथ नियम से दुर्गा कवच का पाठ लाभकारी होता है।
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सुख एवं संपत्ति दायी श्रावणी शुक्रवार का व्रत


ज्योतिष शास्त्र में कालपुरूष की कुंडली के अनुसार शुक्र सुख, संपत्ति तथा भोग की देवी मानी जाती है। पुराणों के अनुसार भी शुक्रवार को माता लक्ष्मी तथा संतोषीमाता का वार माना जाता है, जिसे सुख संपत्ति का कारक माना जाता है। यदि किसी के जीवन में सुख तथा वैभव में कमी हो तो उसे शुक्रवार का व्रत तथा माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। श्रावण का मास पाप तथा कष्ट को दूर करने का मास माना जाता है। अतः किसी जातक के जीवन में आकस्मिक धन हानि, व्यवसायिक कष्ट या सुख में किसी भी प्रकार की कमी आ रही हो तो उसे श्रावण मास के शुक्रवार को श्रावणी शुक्रवार का व्रत तथा पूजन करना विषेष लाभकारी होता है। स्कंद पुराण में श्रावणी शुक्रवार का वर्णन करते हुए कहा गया है कि किसी को भी सुख तथा पारिवारिक कष्ट हो तो उसे इस व्रत को करना चाहिए। इस व्रत को करने के लिए शुक्रवार के दिन स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर व्रत करें तथा सायंकाल जब आकाष में शुक्रतारा उदित हो तो उस समय सभी स्त्रीयाॅ मिलकर पावर्ती तथा षिवजी की पूजा कर आरती तथा भजन कीर्तन कर किसी सुहागन ब्राम्हणी महिला को यथा संभव सुहाग सामग्री दान कर आषीष प्राप्त करें। ऐसा करने से कष्ट की निवृत्ति होकर जीवन में सुख तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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The truthfulness charity


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Giving the things to one of his/her choice or interest is not charity.Charity is giving of things so that both the doner as well as taker both are satisfied. Listen, I'll tell you a little story.
The city's name was videh Punderikini former Pushklawati country. Any time there was a king Megrth state. One day while fasting festival Ashtahnik veneration they were preach and shake so that the dove came back there was a vulture with great velocity. Dove sat king. The eagle said: "Rajan! I am distressed by excessive hunger pang, so please give me this pigeon. Hey munificent! If you do not give me the pigeons will leave my life in front of you right now. Seeing the human voice speaking Vulture asked by Prince Dridrhth 'Jesus! Tell me what to speak of the mystery bird is the vulture? King Megrth said Suno- airavat of Jambudvipa in the name of a town Khet Padmini. There Nandisen Dnmitr and wealth for the sake of the name of two brothers died Ldkr together, so it's been bird dove and hawk. The Vulture Lord's body so that it is speaking. Who is she? Suno- Ishanendra sleep in his house while my praise of the earth Megrth is no greater donor. I hear such praise coming from a dev to test By entering the body is speaking. But hey bro! I'll explain all the symptoms of charity, sleep and listen to dwell. Self and the object is for the grace, the charity is called.
Power, science, faith, etc. is such a giving and taking the donor is called and the object both enhances the qualities called her due. The payable diet, medicine, chemistry and have mercy upon all creatures, such as the four types, so Mr. Srwajrtrdev said. Therefore, these four are the only means of salvation from the net payable and order. Mokshmarg which are located in the world-tour of yourself and protect others, they are called character. This material may not be due more meat etc. The character does not wish to give them and they are not donor. Maasadi object hell possess both the character and the donor. Summary to say that it is not eligible for the donation and pigeon hawk object is not visible.
Listening to the voice of Megrth she revealed her true God and unto the king began to praise him, O! You must be donated to the department Dansur knowing, he went to a praise. Both the Eagles and the dove of birds also called Megrth understand everything and leaves the body at the end of the age were dainty and Atirup name Wyantr Dev. He immediately came to praise the lord king-Vandana began to Megrth-O blest! If only we could get out of your offerings Kuyoni so your favor us is always memorable.

आय प्राप्ति में बाधा कैसे दूर करें

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सभी की चाह होती है कि उच्च पद तथा सम्मान अपने जीवन में प्राप्त करें। साथ ही यह चाह भी कि जीवन में स्थिरता बनी रहे। इस का एक तरीका सरकारी नौकरी प्राप्त करना भी है। किंतु कई बार देखा जाता है कोई व्यक्ति बहुत प्रयास के बाद भी सफल नहीं हो पाता है वहीं किसी को एक बार में अच्छी सफलता प्राप्त हो जाती है। इसका कारण अथक मेहनत के साथ जन्मपत्री में ग्रह योग भी होते हैं। यदि ग्रह योग राजकीय पद पर कार्य करने का है तो थोड़े से प्रयास से भी अच्छा पद प्राप्त हो सकता है किंतु इसके लिए व्यक्ति की ग्रह दषाओं के साथ दषा एवं अंतरदषा भी प्रभाव डालती है। प्रत्येक जातक अपने ग्रह स्थिति हेतु कुंडली में सूर्य, गुरू, मंगल, चंद्रमा तथा राहु की स्थिति का विष्लेषण तथा प्रयास के दौरान ग्रह दषाओं के साथ दषा तथा अंतरदषा का मूल्यांकन कर अपनी सफलता का आकलन कर सकता है। यदि किसी जातक की ग्रह स्थिति अनुकूल हो तो दषा के प्रतिकूल होने पर आवष्यक उपाय द्वारा भी सफलता प्राप्ति का रास्ता खोल सकता है। प्रतियोगिता परीक्षा में निष्चित सफलता प्राप्ति तथा मन की एकाग्रता में वृद्धि हेतु पूर्व दिषा में मुख कर नित्य अष्म स्तोत्र का पाठ का पाठ करना चाहिए।
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आपकी संतान को जीवन में अच्छी शिक्षा, सुख,समृद्धि की प्राप्ति कैसे


 आज कल हर पैरेंटस की दिली तमन्ना होती है कि उनकी संतान उच्च तकनीकी षिक्षा प्राप्त करें, जिससे उसके कैरियर की शुरूआत ही एक अच्छे पैकेज से हो, किंतु सभी इसमें सफलता प्राप्त तो नहीं कर सकते किंतु अपने संतान की कुंडली के ज्योतिषीय विवेचन तथा उचित समाधान कर एक अच्छे कैरियर हेतु प्रयास किया जा सकता है। अतः जाने की क्या आपकी संतान में ऐसे योग हैं। षिक्षा कारक ग्रह गुरू, जोकि तर्कषक्ति तथा गणित जैसे विषयों का कारक ग्रह होता है यदि गुरू की उत्तम स्थिति हो तो संतान की षिक्षा संबंधी चिंता नहीं रहती। सूर्य अनुकूल हो तो अनुशासन तथा जिम्मेदार होेने से भी उन्नति में सहायक होता है। यांत्रिक ज्ञान तथा वाकशक्ति उत्तम होना भी सफलता में सहयोगी हो सकता है, इसके लिए जन्म कुंडली का तीसरा भाव तथा बुध एवं मंगल की स्थिति उत्तम होनी चाहिए। शनि उत्तम या अनुकूल है तो व्यक्ति में कार्यक्षमता अच्छी होगी, जिससे उसके सफलता प्राप्ति के अवसर ज्यादा होंगे। किंतु उच्च ग्रह स्थिति होने के बावजूद यदि गोचर में ग्रह दषाएॅ अनुकूल ना हो तो जातक को सफलता प्राप्त होने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अतः अपने संतान के ग्रह स्थिति के अलावा ग्रह दषाओं का आकलन समय से पूर्व कराया जाकर उनके उचित उपाय करने से एक सफल कैरियर की प्राप्ति संभव है।
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विवाह में मूहुर्त गणना का पूर्ण महत्व


विवाह संस्कार को भारतीय समाज में एक धर्म का दर्जा दिया गया है, जिसमें दो व्यक्ति का जीवन एक होकर उनका नया जन्म माना जाता है। इस आधार पर देखा जाए तो विवाह के समय शुभ लग्न उसी प्रकार महत्व रखता है, जिस प्रकार जन्म का समय। विवाह का मूहुर्त निकालते समय वर एवं वधु की कुंडलियों का परीक्षण कर दोनों की कुंडली के मिलान तथा नक्षत्रों की अनुकूल स्थिति के अनुरूप अनुकूल ग्रह दषाओं के अनुसार विवाह का समय निर्धारित करना चाहिए। माना जाता है जिस समय वर-कन्या का विवाह संस्कार होता है, उसी तिथि तथा समय को वर-कन्या का नया जन्म मान कर विवाह का समय निर्धारित करते हुए उन ग्रह दषाओं का अनुकूल और प्रतिकूल असर उनके वैवाहिक जीवन के सुख-दुख तथा आपसी संबंधों में मिठास या मतभेद का पता लगाया जा सकता है। विवाह का समय निर्धारित करते समय विषेष रूप से तीन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। पहला वर का सूर्य बल अर्थात् जिस तिथि में विवाह हो रहा हो, उस समय वर के सूर्य की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है। वर की जन्मराषि से तीसरे, छठे, दसवें, ग्यारहवे स्थान में सूर्य होतो शुभ होता है, पाॅचवें, दूसरे, सांतवें, नवें में मध्यम तथा चार, आठ, बारहवें भाव में अषुभ फल देता है। इसी तरह से विवाह के समय कन्या की बृहस्पति की स्थिति अनुकूल होनी चाहिए बृहस्पति की अच्छी स्थिति दो, पाॅच, सात, नौ, ग्यारह में उत्तम एक, तीन, छः, दस भाव में मध्यम और चार, आठ, बारह में अषुभ होता है। साथ ही दोनों की मिलाकर चंद्रमा की स्थिति बेहतर होनी चाहिए। दोनों की कुंडलियों में जन्मराषि से चंद्रमा की स्थिति दो, पाॅच, सात, नौ, ग्यारह में उत्तम, एक, तीन, छः भाव में मध्यम तथा चार, आठ, बारह भाव में अषुभकारी होता है। अतः इन ग्रह दषाओं तथा ग्रहों के अनुकूल स्थिति पर विवाह होने पर वैवाहिक सुख तथा जीवन में प्रेमभाव बना रहता है साथ ही जीवन के सभी सुख समय पर प्राप्त होते हैं।
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जीवन शैली तिन चीजों पर आधारीत :सत्व, तमस और राजस



यजुर्वेद तथा भगवदगीता के अनुसार हमारा व्यवहार, विचार, भोजन और जीवनषैली तीन चीजों पर आधारित होती है वह है सत्व, तमस और राजस। सात्विक विचारों वाला व्यक्ति निष्चित स्वभाव का होता है जोकि उसे सृजनषील बनाता है वहीं राजसी विचारों वाला व्यक्ति महत्वाकांक्षी होता है जोकि स्वभाव में लालच भी देता है तथा तामसी व्यवहार वाला व्यक्ति नाकारात्मक विचारों वाला होने पर गलत कार्यो की ओर अग्रसर हो सकता है। मानव व्यवहार मूल रूप से राजसी और तामसी प्रवृत्ति का होता है, जिसके कारण जीवन में नाकारात्मक उर्जा बढ़ती है, जिससे साकारात्मक बनाने हेतु पुराणों में व्रत तथा उपवास पर जोर दिया गया है। मानव जीवन में व्रत की उपयोगिता वैदिक काल से जारी है। जिसका आधार होता है कि उपवास पाॅच ज्ञानेंद्रियों और पाॅच कर्मेद्रिंयों पर नियंत्रण करता है। अनुषासित बनाने तथा मन को आध्यामिक प्रवृत्ति की ओर अग्रसर करने हेतु उपवास तथा मंत्र जीवन में साकारात्मक दिषा देता है। उपवास जीवन में मानसिक शुद्धिकरण के अलावा शारीरिक शुद्धि हेतु भी सहायक होता है चूॅकि उपवास के दौरान अनुष्ठान करने की परंपरा भी है अतः अनुष्ठान के दौरान किया जाना वाला जाप, ध्यान, सत्संग, दान शारीरिक शुद्धता के लिए भी कार्य करती है। भोग लगाने वाले पदार्थ जैसे फल, मेवा, दूध, धी आदि का सेवन भी सात्विक गुणों को बढ़ता है।
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जानिये कब होगा स्वयं का मकान

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जो लोग किराए के मकान में रहते हैं, उनका सिर्फ एक ही सपना होता है कि उनका भी एक छोटा ही सही, लेकिन सुंदर सा मकान हो। जहां वह निश्चिंत होकर अपने परिवार के साथ रह सके। न मकान मालिक की टेंशन हो और न ही दूसरे किराएदारों की झिकझिक। हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की हाथ की रेखा देखकर यह बताया जा सकता है कि उस व्यक्ति का कभी अपना मकान भी होगा या नहीं, और यदि होगा तो यह स्थिति कब बनेगी।
आज हम आपको उन रेखाओं के बारे में बता रहे हैं, जो किसी भी व्यक्ति के स्वयं के मकान के बारे में बताते हैं-
1- भूमि का ग्रह मंगल है। हस्तरेखा में मंगल का क्षेत्र से भूमि व भवन का पता चलता है। वस्तुत: मंगल का क्षेत्र का उच्च का होना उत्तम भवन प्राप्ति का योग देता है। मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत का बली होना भवन प्राप्ति का अच्छा संकेत है।
2- हस्तरेखा में मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत के उपर किसी रेखा का होन भी ऐसे व्यक्ति को स्वश्रम से निर्मित उत्तम सुख-सुविधाओं ये युक्त भवन प्राप्त होता है।
3- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत मजबूत हो तो भी ऐसा व्यक्ति स्व पराक्रम व पुरुषार्थ से अपना घर(भवन) बनाता है।
4- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत से कोई रेखा भाग्य रेखा तक जाये तो ऐसे व्यक्ति के पास अपना बंगला या महलनुमा भवन होता है जिसमें कलात्मक बगीचा या जलाशय होता है।
5- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत एवं चंद्रमा और शनि का क्षेत्र या पर्वत विकसित हो तो ऐसे व्यक्ति का भवन दूसरों से अलग, सुंदर आकर्षक एवं नूतन साज-सज्जा से युक्त होता है।
6- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत एवं चंद्रमा और शनि का क्षेत्र या पर्वत विकसित हो साथ में इन रेखाओ से चलकर कोई रेखा भाग्य या जीवन रेखा तक जाये तो ऐसे व्यक्ति को अचानक निर्मित भवन की प्राप्ति होती है।
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किस कैरिअर को चुनें जाने अपने हथेली से

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अगर रास्ता सही मिल जाए तो मंजिल तक पहुंचना आसान होता है। इसी प्रकार अगर कैरियर का सही चुनाव कर लिया जाए तो कामयाबी कदम चूमती है और व्यक्ति सफलता की राह पर आगे बढ़ता रहता है। लेकिन जब कैरियर के चुनाव की बात आती है तब अक्सर लोग चुनाव करने में ग़लती कर बैठते हैं जिससे काफी संघर्ष करने के बाद भी निराशा और असफलता का दर्द महसूस होता रहता है। इस समस्या से बचने के लिए हस्तरेखा की सहायता ले सकते हैं। हाथों की बनावट और हस्तरेखाओं से आप यह जान सकते हैं कि ईश्वर आपको किन क्षेत्रों में सफलता प्रदान करेगा। अगर रेखाओं को ध्यान से देखें तो जान सकते हैं कि भाग्य ने आपके लिए किस तरह का करियर चुना है।
उच्चाधिकारी बनाती हैं ऐसी रेखाएं:
सूर्य को सरकार एवं सरकारी क्षेत्र में सफलता का कारक माना जाता है। जिस व्यक्ति की हथेली में सूर्य रेखा स्पष्ट और गहरी होती है तथा इस रेखा पर शुभ चिन्ह जैसे त्रिभुज, चतुर्भुज या सितारों का चिन्ह होता है वह सरकारी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त करते हैं। छोटी उंगली का अनामिका उंगली के तीसरे पोर की जड़ तक पहुंचना। मंगल पर्वत अथवा जीवनरेखा से किसी रेखा का निकलकर सूर्य पर्वत तक पहुंचना भी शुभ माना जाता है। ऐसे व्यक्ति सरकारी क्षेत्र में अधिकारी होते हैं। निष्कंलक अर्थात् शुद्घ भाग्य रेखा अनामिका की तुलना में लम्बी तर्जनी, कनिष्ठा, अनामिका के पहले पोरे को पारकर जाए। शाखायुक्त मस्तिष्क रेखा, अच्छा मजबूत दोषयुक्त सूर्य क्षेत्र तथा श्रेष्ठ अन्य रेखाएं जातक को प्रशासन संबंधी कार्यों की ओर ले जाने का संकेत करती हैं।
इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफलता:
इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कैरियर बनने के लिए शनि पर्वत यानी मध्यमा उंगली की जड़ के पास हथेली उभरी हुई हो। भाग्य रेखा शनि पर्वत पर आकर रुक गई हो। गुरू पर्वत यानी तर्जनी के पास हथेली का उभरा हुआ होना भी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कैरियर बनाने में सहायक होता है। मजबूत शनि, लम्बी गहरी मस्तिष्क रेखा, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां जातक का रूझान मशीनरी क्षेत्र में होता है।
चिकित्सा के क्षेत्र में कामयाबी:
जिनकी हथेली में बुध, मंगल एवं सूर्य पर्वत उभरा हुआ होता है वह चिकित्सा के क्षेत्र में सफल एवं प्रसिद्घ होते हैं। कनिष्ठा उंगली पर कई सीधी रेखाएं हों और मंगल उभरा हुआ होना बताता है कि व्यक्ति शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में कामयाब होगा। अच्छे बुध पर तीन-चार खड़ी लाइनें, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां तथा वर्गाकार हथेली तथा अच्छी आभास रेखा चिकित्सा क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।
फिल्म एवं टेलीविजन में कैरियर:
हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार अगर कोई व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में कैरियर बनाने की सोच रहा है तो जरूरी है कि सूर्य पर्वत और शुक्र पर्वत उभरा हुआ हो। सूर्य पर्वत अनामिका के जड़ के पास के भाग को कहते हैं और शुक्र पर्वत अंगूठे के जड़ वाले भाग को कहा जाता है। इसके साथ ही हाथ की सभी उंगलियां कोमल और हथेली के पीछे की ओर झुकती हों। अनामिका उंगली की लंबाई मध्यमा की जड़ तक हो। और भाग्य रेखा को कोई अन्य रेखा नहीं काटती हो। जिनकी हथेली ऐसी होती है वह अभिनय के क्षेत्र में सफल होते हैं। ऐसे व्यक्ति लोकप्रिय एवं धन-संपन्न होते है। इसमे भी अभिनय के क्षेत्र में सफलता लम्बी एवं शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा जिसकी एक शाखा बुध पर जाए, विकसित बुध तथा शुक्र तथा सूर्य एवं अच्छा चन्द्र एवं लम्बी कनिष्ठा अंगुली ऐक्टिंग के लिए उपयुक्त है। अंगुलियों की तुलना में लम्बी हथेली, कोणाकार अंगुलियां, मस्तिष्क एवं जीवन रेखा में प्रारम्भ से ही गैप तथा शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा एवं शुक्र व चन्द्र अच्छे हों, तो गायकी के क्षेत्र में सफलतादायी होती है। लचीला अंगूठा, लचीली एवं हथेली की तुलना में लम्बी अंगुलियां होने पर नृत्य के क्षेत्र में नाम प्रदान करती है। अगर सूर्य, बुध पर्वत उभरे हुए हों, भाग्य रेखा, सूर्य रेखा अच्छी हो, मस्तिष्क रेखा चंद्र पर्वत के नीचे तक आए तो छोटी आयु में ही बडा संगीतज्ञ बनने के योग बनते हैं।
कानून के क्षेत्र में कैरियर:
अपने उदय के समय मस्तिष्क रेखा एवं जीवन रेखा थोड़ा गैप लेकर चले तथा मस्तिष्क रेखा के अंत में कोई द्विशाखा हो, कनिष्ठा का पहला पोरा लम्बा एवं मजबूत हो तथा अच्छा बुध, तीन खड़ी लाइन युक्त हो तथा मजबूत अंगूठे का दूसरा पोर सबल हो तो यह न्याय के क्षेत्र में ले जाने का संकेत है। मस्तिष्क रेखा अंत में अर्ध वृत्ताकार चलती हुई बुध पर्वत की ओर मुड जाए तो उसे नीति और चतुराई से समस्या को हल करने में महारत प्राप्त होता है।
सैन्य सेवाओ के क्षेत्र में कैरियर:
लम्बा एवं सख्त मजबूत अंगूठा, उन्नत शुक्र एवं मंगल अच्छी सूर्य एवं भाग्य रेखा तथा वर्गाकार या चमसाकार अंगुलियां सैन्य सेवा के लिए अच्छी हैं। इसके साथ यदि मंगल अति विकसित एवं सख्त है तो थल सेना के लिए उपयुक्त है। यदि उक्त के साथ विकसित बृहस्पति एवं मजबूत एवं थोड़ा सा अन्तराल लिए मस्तिष्क एवं जीवन रेखा का उदय हो तो हवाई सेना के लिए संकेत हैं। जीवन रेखा और भाग्य रेखा के मध्य कोई त्रिभुज हो तो सेना में उच्च पद प्राप्त होता है।
अकाउट के क्षेत्र में कैरियर:
अगर भाग्य रेखा एवं प्रभाव रेखा गुरू पर्वत की ओर जाए तो व्यक्ति धन से संबंधित हिसाब-किताब का कार्य करता है। अच्छा बुध, सूर्य एवं अच्छी भाग्यरेखा तथा मजबूत अंगूठा एवं अंगुलियों की सबल विकसित दूसरी संधि गांठ हो, तो अकांटिंग का कार्य करता है।
व्यापार के क्षेत्र में कैरियर:
अगर भाग्य रेखा का बुध पर्वत पर अंत हो तो जातक को व्यापार में सफलता प्राप्त होती है। अगर मस्तिष्क रेखा अंत में तीन शाखाओं में बँट जाए तो व्यक्ति डिप्लोमेट होता है। इसमें से अगर एक शाखा चंद्र पर्वत तक जाए और दूसरी शाखा बुध पर्वत तक जाए तो व्यक्ति में गजब की व्यापारिक क्षमता होती है और अपनी योग्यता से धन कमाने में सफल होता है। स्वास्थ्य रेखा से कोई प्रभाव रेखा निकल कर नीचे ओर सूर्य रेखा को स्पर्श करें तो यह व्यापार में अच्छी सफलता प्रदान करता है। पर यदि यह रेखा सूर्य रेखा को काट दे तो साझेदारी के लिए हानिकारक होता है।
ज्योतिष के क्षेत्र में कैरियर:
अगर मस्तिष्क रेखा चंद्र पर्वत के बीच तक जाएॅ और तर्जनी के दूसरे पर्व में खडी रेखाएॅ हों तो व्यक्ति ज्योतिष तथा तंत्रमंत्र विद्याओं में पारंगत होता है। बुध पर्वत से चंद्रक्षेत्र तक कोई गोलाई लिये हुए रेखा आए, उसे अंत: प्रेरणा रेखा कहते हैं, तो उसे ज्योतिष का अच्छा ज्ञान होता है। यदि अंत: प्रेरणा रेखा, भाग्य रेखा और मस्तक रेखा मिलकर कोई छोटा क्रास बनाये तो गुप्त विद्यओं का अच्छा ज्ञान होता है। यदि शनि पर्वत के नीचे चतुर्भुज में क्रास हो जिसे कोई भी बडी रेखा स्पर्श ना करें तो उसकी बोली हुई बातें सच साबित होती है तथा ज्योतिष के क्षेत्र में उसे बडी सफलता प्राप्त होती है।

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जाने कुंडली में सरकारी नौकरी प्राप्ति के योग कैसे

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सभी की चाह होती है कि उच्च पद तथा सम्मान अपने जीवन में प्राप्त करें। साथ ही यह चाह भी कि जीवन में स्थिरता बनी रहे। इस का एक तरीका सरकारी नौकरी प्राप्त करना भी है। किंतु कई बार देखा जाता है कोई व्यक्ति बहुत प्रयास के बाद भी सफल नहीं हो पाता है वहीं किसी को एक बार में अच्छी सफलता प्राप्त हो जाती है। इसका कारण अथक मेहनत के साथ जन्मपत्री में ग्रह योग भी होते हैं। यदि ग्रह योग राजकीय पद पर कार्य करने का है तो थोड़े से प्रयास से भी अच्छा पद प्राप्त हो सकता है किंतु इसके लिए व्यक्ति की ग्रह दषाओं के साथ दषा एवं अंतरदषा भी प्रभाव डालती है। प्रत्येक जातक अपने ग्रह स्थिति हेतु कुंडली में सूर्य, गुरू, मंगल, चंद्रमा तथा राहु की स्थिति का विष्लेषण तथा प्रयास के दौरान ग्रह दषाओं के साथ दषा तथा अंतरदषा का मूल्यांकन कर अपनी सफलता का आकलन कर सकता है। यदि किसी जातक की ग्रह स्थिति अनुकूल हो तो दषा के प्रतिकूल होने पर आवष्यक उपाय द्वारा भी सफलता प्राप्ति का रास्ता खोल सकता है। प्रतियोगिता परीक्षा में निष्चित सफलता प्राप्ति तथा मन की एकाग्रता में वृद्धि हेतु पूर्व दिषा में मुख कर नित्य अष्म स्तोत्र का पाठ का पाठ करना चाहिए।
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आत्मविश्वास की कमी जाने ज्योतिष्य कारण


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आत्मविश्वास वस्तुत: एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति है। आत्मविश्वास से ही विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती है और इसके कारण ही महान कार्यों में सरलता और सफलता मिलती है। इसी के द्वारा आत्मरक्षा होती है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास से ओत-प्रोत है, उसे अपने भविष्य के प्रति किसी प्रकार की चिन्ता नहींं सताती। दूसरे व्यक्ति जिन सन्देहों और शंकाओं से दबे रहते हैं, वह उनसे सदैव मुक्त रहता है। यह प्राणी की आंतरिक भावना है। इसके बिना जीवन में सफल होना अनिश्चित है। आत्मविश्वास वह अद्भुत शक्ति है जिसके बल पर एक अकेला मनुष्य हजारों विपत्तियों एवं शत्रुओं का सामना कर लेता है। निर्धन व्यक्तियों की सबसे बड़ी पूंजी और सबसे बड़ा मित्र आत्मविश्वास ही है। इस संसार में जितने भी महान कार्य हुए हैं या हो रहे हैं, उन सबका मूल तत्व आत्मविश्वास ही है। संसार में जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, यदि हम उनका जीवन इतिहास पढ़ें तो पाएंगे कि इन सभी में एक समानता थी और वह समानता थी- आत्मविश्वास की।
जब किसी व्यक्ति को यह अनुभव होने लगता है कि वह उन्नति कर रहा है, ऊंचा उठ रहा है, तब उसमें स्वत: आत्मविश्वास से पूर्ण बातें करने की शक्ति आ जाती है। उसे शंका पर विजय प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति के मुखमण्डल पर विजय का प्रकाश जगमगा रहा हो, सारा संसार उसका आदर करता है और उसकी विजय, विश्वास में परिणीत हो जाती है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है, वह स्वत: दिव्य दिखाई पडऩे लगता है, जिसके कारण हम उसकी ओर खिंच जाते हैं और उसकी शक्ति पर विश्वास करने लगते हैं। कहते हैं उस व्यक्ति के लिए मौके की और सफलता की कोई कमी नहींं है जिसमें आत्मविश्वास होता है। परफेक्ट पर्सनलिटी वही होता है जिसमें कॉन्फीडेन्स होता है। आत्मविश्वास वह चॉबी है जो जिस व्यक्ति के हाथ में होती है उसके लिए हर ताले को खोलने की कला सिखा देता है। कोई व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान हो, कितना भी सुन्दर हो लेकिन अगर उसमें आत्मविश्वास नहींं है तो वह चाहकर भी वह सफलता प्राप्त नहींं कर पाता है।
आत्मविश्वास की कमी से हममें असुरक्षा और हीनता का भाव आ जाता है। अगर हमारा आत्मविश्वास कम हो तो हमारा रवैया नकारात्मक् रहता है और हम तनाव से ग्रस्त रहते हैं। नतीजतन हमारी एकाग्रता भी कम हो जाती है और हम निर्णय लेते समय भ्रमित और गतिहीन से हो जाते हैं। इससे हमारा व्यक्तित्व पूरी तरह से खिल नहींं पाता। ऐसे में सफलता तो कोसों दूर रहती है।
कैसे बढ़ाएं आत्मविश्वास:
हमें सर्वप्रथम् खुद को अपनी ही नजरों में उठना पड़ेगा। इसलिए हमें देखना पड़ेगा की हम कभी अपने को किसी से कम न समझें और न ही किसी और के साथ अपना मुल्याँकन करें या करने दें। यह जान लें कि हम सब अपनी-अपनी जगह पर सही व पूर्ण हैं। और जब-जब हम अपनी तुलना किसी और से करते हैं तब-तब हम अपने साथ एक बहुत बड़ा अपराध करते हैं।
आत्मविश्वास को बढ़ाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम होगा जब हम खुद को मायूस कर देने वाले व्यक्तियों व नकारात्मक् परिस्थितियों से कोसों दूर रखें क्योंकि यह हमारे आत्मविश्वास को एकदम क्षीण कर देती हैं। इनसब के विपरीत हमें अपना उत्साह बढ़ाने के लिए खुद को सकारात्मक वैचारिक-संदेश देते रहना चाहिए कि मैं श्रेष्ठ हूँ, पूर्ण हूँ, सम्पूर्ण हूँ। मुझमें कोई कमी नहींं है। मैं कोई भी कार्य करने में सक्षम् हूँ। मैं सही हूँ।
यह भी याद रखें कि हमारे हाथ में केवल कर्म करना होता है, और कर्मठता से प्रयास करने वाले ही को प्रभु सफलता देता है। अगर हम किसी कार्य को करते हुये विफल भी होते हैं तो इसमें किसी प्रकार का दुख या रंज करने की जरूरत नहींं होनी चाहिए, क्योंकि हमने तो उक्त कार्य में अपनी १०० फीसदी क्षमता का पूर्ण उपयोग किया है। इस तरह के सोच से आपमें अवसाद और निराशा नहीं रहेगी बल्कि एक प्रकार की नई स्फूर्ति और तेज आयेगा कि हम तो ईश्वर के दिये हुये कार्य को मन लगाकर कर रहे हैं, बाकि तो सब उसके हाथ है।
ज्योतिषीय शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। यदि सूर्य कमजोर होता है तो ऐसा व्यक्ति चाहकर भी आगे नहींं बढ़ पाता है। क्योंकि ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह माना गया है। उसी तरह कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मन का कारक ग्रह होता है। अगर कुंडली में सूर्य, पाप ग्रहों से पिडि़त हो या कुंडली में खराब घर यानी छठे, आंठवें या बारहवें भाव में हो तो अशुभ फल देता है। इससे व्यक्ति का आत्मविश्वास कम होने का योग बनता है। चंद्रमा अगर कुंडली में नीच राशि, वृश्चिक के साथ अपने शत्रु ग्रह की राशि में हो या कुंडली के अशुभ घर में हो तो व्यक्ति का मन कमजोर तो हो ही जाता है साथ ही वह डरपोक होता है और उसमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।
अगर चंद्रमा के साथ ही गुरू और बुद्धि का स्वामी बुध, अच्छी स्थिति में हो तो वो व्यक्ति बहुत ही बुद्धिमान होता है। मतलब जन्मकुंडली में सूर्य और चन्द्र अच्छी स्थिति में हो तो उसका व्यक्तित्व, आत्मविश्वास से भरा होता है। वैसे तो इंसान अपना आत्मविश्वास खुद बढ़ाता है लेकिन ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। अत: किसी भी जातक की कुंडली में इन ग्रहों के कमजोर होने, नीच के होने या शत्रु स्थान या ग्रहों से पीडि़त होने की स्थिति में इन ग्रहों के उपाय कर तथा उचित कर्मकाण्ड से ग्रहों को मजबूत कर के भी आत्मविश्वास को बढ़ाया जा सकता है।
आत्मविश्वास को बढ़ाने के ये उपाय करें-
* तृतीयेश के मंत्रों का जाप करना, उस ग्रह के पदार्थ का दान करना चाहिए।
* लग्रेश को बली करने के लिए लग्र के रत्न को धारण करना, लग्रेश ग्रह का व्रत, मंत्रजाप तथा दान करना चाहिए।
* आत्मविश्वास का कारक ग्रह सूर्य है, अत: प्रत्येक व्यक्ति को सूर्य को मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए सूर्य का मंत्र ''ú घृणि सूर्याय नम: का सूर्योदय के समय जाप करना चाहिए।
* चंद्रमा को बलवान करने के लिए चंद्रमा के मंत्र का जाप सफेद पदार्थ जैसे चावल, दूध, शक्कर आदि का दान करना चाहिए।
* कालपुरुष की कुंडली में तीसरा स्थान बुध को प्रदान किया गया है, अत: बुध के मंत्रों का जाप, गणेश जी की उपासना, हरी चीजों का दान, गणेश जी को भोग लगाकर प्रसाद वितरण करना चाहिए।

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Friday 19 June 2015

कठिन परिश्रम के बाद भी भाग्योदय में बाधा......जाने क्यों



कठिन परिश्रम के बाद भी किस्मत साथ नहीं दे, और धक्के खाने पड़े तो व्यक्ति निराश हो जाता है। कहावत है कि जैसा करोगे वैसा ही भरोगे। लगातार मेहनत और व्यापार करने पर लाभ की जगह घटा हो रहा हो। ईमानदारी से और कठिन परिश्रम करने के बावजूद भी नौकरी नहीं मिलती हो। योग्यता व पात्रता के आधार पर अच्छा वेतन नहीं मिलता है। आपके जूनियर तरक्की करते जाय आप इसी पद पर वर्षों से रहे। आप अपने आपको कोस रहे हैं। जी हां यदि मेहनत, श्रम और ईमानदारी से काम करने और योग्यता के आधार पर यश, धन, नौकरी, व्यापार, पढ़ाई, विवाह, मकान, दुकान, रोग और सेहत में सुख नहीं मिले लगातार निरंतर हानि, अपयश, रोग, दरिद्रता कम तनख्वाह किराये का मकान में रहना आदि दुख पीछा नहीं छोड़ता है, तो समझ लेना चाहिए, कि भाग्य साथ नहीं दे रहा है।
प्रश्न उठता है कि आखिर आप के साथ ही क्यों होता है?
1 भाग्य की बाधा के लिये जन्मपत्री में नवम भाव व नवमेश का गहराई से अध्ययन करना चाहिए।
2 नवम से नवम अर्थात पंचम भाव व पंचमेश की स्थिति का भी निरीक्षण ध्यानपूर्वक करना चाहिए।
3 भाग्य-यश के दाता सूर्य की स्थिति, पाप ग्रहों की दृष्टि नीच ग्रहों की दृष्टि नीच ग्रहों की दृष्टि के प्रभाव में तो नहीं है।
4 धन, वैभव, नौकरी, पति, पुत्र व समृद्धि का दायक गुरु कहीं नीच का होकर पाप प्रभाव में तो नहीं है।
5 लग्नेश व लग्न पर कहीं पाप व नीच ग्रहों का प्रभाव तो नहीं है।
भाग्य में बाधा डालने वाले कुछ दोष:
1. लग्नेश यदि नीच राशि में, छठे, आठवे, 12 भाव में हो तो भाग्य में बाधा आती है।
2. राहू यदि लग्न में नीच का शनि जन्मपत्री में किसी भी स्थान में हो, तथा मंगल चतुर्थ स्थान में हो तो भाग्य में बाधा आती है।
3. लग्नेश सूर्य चंद्र व राहू के साथ 12वें भाव में हो तो भाग्य में बाधा आती है।
4. लग्नेश यदि तुला राशि के सूर्य तथा शनि के साथ छठे, 8वें में हो तो जातक का भाग्य साथ नहीं देता।
5. पंचम भाव का स्वामी यदि नीच का हो या वक्री हो तथा छठे, आठवें, 12वें भाव में स्थित हो तो भाग्य के धोखे सहने पड़ते हैं।
6.पंचम भाव का स्वामी तथा नवमेश यदि नीच के होकर छठे भाव में हो तो शत्रुओं द्वारा बाधा आती है।
7. पंचम भाव पर राहु, केतु तथा सूर्य का प्रभाव हो लग्नेश छठे भाव में हो पितृदोष के कारण भाग्य में बाधा आती है।
8. मकर राशि का गुरु पंचम भाव में यदि हो तो भाग्य के धक्के सहने पड़ते हैं।
9. पंचमेश यदि 12वें भाव में मीन राशि के बुध के साथ हो भाग्य में बाधा आती है।
10. पंचम या नवम भाव में सूर्य उच्च के शनि के साथ हो तो भाग्य में बाधा देखी जाती है।
11. नवम भाव में यदि राहु के साथ नवमेश हो तो भाग्य बन जाता है।
12. नवम भाव में सूर्य के साथ शुक्र यदि शनि द्वारा देखा जाता हो। तो भाग्य साथ नहीं देता।
13. नवमेश यदि 12वें या 8वें भाव में पाप ग्रह द्वारा देखा जाता हो, तो भाग्य साथ नही देता।
14. नवम भाव का स्वामी 8वें भाव में राहु के साथ स्थित हो तो पग-पग पर ठोकरे खानी पड़ती है।
15. नवमेश यदि द्वितीय भाव में राहु-केतु के साथ, शनि द्वारा देखा जाता है, तो व्यक्ति का भाग्य बंध जाता है।
16. नवमेश यदि द्वादश भाव में षष्ठेश के साथ स्थित होकर पाप ग्रहों द्वारा देखा जाता हो, तो बीमारी कर्जा व रोग के कारण कष्ट उठाने पड़ते है।
17. नीच का गुरु नवमेश के साथ अष्टम भाव में राहु, केतु द्वारा दृष्ट हो तो गुरु छठे, 8वें, 12वें राहु शनि द्वारा देखा जाता हो तो भाग्य साथ नहीं देता।
18. नीचे का गुरु छठे, 8वें, और 12वें राहु शनि द्वारा देखा जाता हो तो भाग्य साथ नहीं देता।
भाग्य बाधा निवारण के उपाय:
सूर्य गुरु लग्नेश व भाग्येश के शुभ उपाय करने से भाग्य संबंधी बाधाएं दूर हो जाती है।
1. गायत्री मंत्र का जाप करके भगवान सूर्य को जल दें।
2. प्रात:काल उठकर माता-पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लें।
3. अपने ज्ञान, सामर्थ और पद प्रतिष्ठा का कभी भी अहंकार न करें।
4. किसी भी निर्बल व असहाय व्यक्ति की बददुआ न ले।
5. वद्धाश्रम और कमजोर वर्ग की यदाशक्ति तन, मन और धन से मदद करें।
6. सप्ताह में एक दिन मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा जाकर ईश्वर से शुभ मंगल की प्रार्थना करें। मंदिर निर्माण में लोहा, सीमेंट, सरिया इत्यादि का दान देकर मंदिर निर्माण में मदद करें।
7. पांच सोमवार रुद्र अभिषेक करने से भाग्य संबंधी अवरोध दूर होते है।
8. 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय इस मंत्र का जाप 108 बार रोज करने से बंधा हुआ भाग्य खुलने लगता है।
9. भाग्यस्थ अथवा अष्टमस्थ राहु अथवा इन दोनों स्थानों पर राहु की दृष्टि भाग्योदय में बाधा का बडा कारण होती है। राहु की दशा, अंतदर्शा अथवा प्रत्यंतर दशा में अकसर भाग्य बाधित होता है। अत: कुंडली में इस प्रकार के योग बन रहे हों तो उक्त राहु की शांति करानी चाहिए। इसके लिए अज्ञात पितर दोष निवृत्ति हेतु नारायणबली, नागबली एवं कालसर्प शांति कराने से जीवन में भाग्योदय का रास्ता खुलता है।

जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार

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स्त्री और पुरुष संतान प्राप्ति की कामना के लिए विवाह करते हैं] वंश परंपरा की वृद्धि के लिए एवaaaaaaa परमात्मा को श्रृष्टि रचना में सहयोग देने के लिए यह आवश्यक भी हैa] पुरुष पिता बन कर तथा स्त्री माता बन कर ही पूर्णता का अनुभव करते हैं] धर्म शास्त्र भी यही कहते हैं कि संतान हीन व्यक्ति के यज्ञ दान एव अन्य सभी पुण्यकर्म निष्फल हो जाते हैंA महाभारत के शान्ति पर्व में कहा गया है कि पुत्र ही पिता को पुत् नामक नर्क में गिरने से बचाता है] मुनिराज अगस्त्य ने संतानहीनता के कारण अपने पितरों को अधोमुख स्थिति में देखा और विवाह करने के लिए प्रवृत्त हुए प्रश्न मार्ग के अनुसार संतान प्राप्ति कि कामना से ही विवाह किया जाता है जिस से वंश वृद्धि होती है और पितर प्रसन्न होते हैंA
जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार
प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया गया है भाग्य में संतान सुख है या नहीं पुत्र होगा या पुत्री अथवा दोनों का सुख प्राप्त होगा एo संतान कैसी निकलेगी एo संतान सुख कब मिलेगा और संतान सुख प्राप्ति में क्या बाधाएं हैं और उनका क्या उपचार है इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति और पत्नी की जन्म कुंडली के विस्तृत व गहन विश्लेषण से प्राप्त हो सकता है
जन्म कुंडली के किस भाव से विचार करें
जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो एo उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है] भाव स्थित राशि व उसका स्वामी एo भाव कारक बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है] पति एव पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए] पंचम भाव से प्रथम संतान का एo उस से तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए] उस से आगे की संतान का विचार भी इसी क्रम से किया जा सकता है
संतान सुख प्राप्ति के योग
पंचम भाव में बलवान शुभ ग्रह गुरु एo शुक्र एo बुध एo शुक्ल पक्ष का चन्द्र स्व मित्र उच्च राशि नवांश में स्थित हों या इनकी पूर्ण दृष्टि भाव या भाव स्वामी पर हो एo भाव स्थित राशि का स्वामी स्व मित्र एo उच्च राशि नवांश का लग्न से केन्द्र एo त्रिकोण या अन्य शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो एo संतान कारक गुरु भी स्व एमित्र एउच्च राशि दृ नवांश का लग्न से शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो ए गुरु से पंचम भाव भी शुभ युक्त दृदृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की प्राप्ति होती है द्य शनि मंगल आदि पाप ग्रह भी यदि पंचम भाव में स्व एमित्र एउच्च राशि दृ नवांश के हों तो संतान प्राप्ति करातें हैं द्य पंचम भाव एपंचमेश तथा कारक गुरु तीनों जन्मकुंडली में बलवान हों तो संतान सुख उत्तम एदो बलवान हों तो मध्यम एएक ही बली हो तो सामान्य सुख होता है सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में बलवान हो एo शुभ स्थान पर हो तथा सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की अनुभूति होती है द्य प्रसिद्ध फलित ग्रंथों में वर्णित कुछ प्रमुख योग निम्नलिखित प्रकार से हैं जिनके जन्मकुंडली में होने से संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती हैA
१ जन्मकुंडली में लग्नेश और पंचमेश का या पंचमेश और नवमेश का युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ भावों में हो]
२ लग्नेश पंचम भाव में मित्र एo उच्च राशि नवांश का हो]
३ पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो]
४ पंचम भाव पर बलवान शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो द्य
५ जन्म कुंडली में गुरु स्व एo मित्र एउच्च राशि नवांश का लग्न से शुभ भाव में स्थित हो द्य
६ एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो कर स्थित हों द्य
संतान सुख हीनता के योग
लग्न एवम चंद्रमा से पंचम भाव में निर्बल पाप ग्रह अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में स्थित हों एपंचम भाव पाप कर्तरी योग से पीड़ित हो ए पंचमेश और गुरु अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में लग्न से 6ए8 12 वें भाव में स्थित हों ए गुरु से पंचम में पाप ग्रह हो ए षष्टेश अष्टमेश या द्वादशेश का सम्बन्ध पंचम भाव या उसके स्वामी से होता हो ए सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में 6ए8 12 वें भाव में अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में स्थित हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है द्य जितने अधिक कुयोग होंगे उतनी ही अधिक कठिनाई संतान प्राप्ति में होगी द्य
पंचम भाव में अल्पसुत राशि ; वृष एसिंह कन्या एवृश्चिक द्ध हो तथा उपरोक्त योगों में से कोई योग भी घटित होता हो तो कठिनता से संतान होती है द्य
गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पंचम स्थान शुभ बिंदु से रहित हो तो संतानहीनता होती है द्य
सप्तमेश निर्बल हो कर पंचम भाव में हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है द्य
गुरु एलग्नेश एपंचमेश एसप्तमेश चारों ही बलहीन हों तो अन्पतत्यता होती है द्य
गुरु एलग्न व चन्द्र से पांचवें स्थान पर पाप ग्रह हों तो अन्पतत्यता होती है द्य
पुत्रेश पाप ग्रहों के मध्य हो तथा पुत्र स्थान पर पाप ग्रह हो एशुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो अन्पतत्यता होती है द्य
पुत्र या पुत्री योग
सूर्य एमंगलए गुरु पुरुष ग्रह हैं द्य शुक्र एचन्द्र स्त्री ग्रह हैं द्य बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं द्य संतान योग कारक पुरुष ग्रह होने पर पुत्र तथा स्त्री ग्रह होने पर पुत्री का सुख मिलता है द्य शनि और बुध योग कारक हो कर विषम राशि में हों तो पुत्र व सम राशि में हो तो पुत्री प्रदान करते हैं द्य सप्तमान्शेष पुरुष ग्रह हो तो पुत्र तथा स्त्री ग्रह हो तो कन्या सन्तिति का सुख मिलता है द्य गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पांचवें स्थान पर पुरुष ग्रह बिंदु दायक हों तो पुत्र स्त्री ग्रह बिंदु दायक हो तो पुत्री का सुख प्राप्त होता है द्यपुरुष और स्त्री ग्रह दोनों ही योग कारक हों तो पुत्र व पुत्री दोनों का ही सुख प्राप्त होता है द्य पंचम भाव तथा पंचमेश पुरुष ग्रह के वर्गों में हो तो पुत्र व स्त्री ग्रह के वर्गों में हो तो कन्या सन्तिति की प्रधानता रहती है द्य
पंचमेश के भुक्त नवांशों में जितने पुरुष ग्रह के नवांश हों उतने पुत्र और जितने स्त्री ग्रह के नवांश हों उतनी पुत्रियों का योग होता है द्य जितने नवांशों के स्वामी कुंडली में अस्त एनीच दृशत्रु राशि में पाप युक्त या दृष्ट होंगे उतने पुत्र या पुत्रियों की हानि होगी द्य
संतान बाधा के कारण व निवारण के उपाय
सर्वप्रथम पति और पत्नी की जन्म कुंडलियों से संतानोत्पत्ति की क्षमता पर विचार किया जाना चाहिए द्यजातकादेशमार्ग तथा फलदीपिका के अनुसार पुरुष की कुंडली में सूर्य स्पष्ट एशुक्र स्पष्ट और गुरु स्पष्ट का योग करें द्यराशि का योग 12 से अधिक आये तो उसे 12 से भाग दें द्यशेष राशि ; बीज द्धतथा उसका नवांश दोनों विषम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमताएएक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों सम हों तो अक्षमता होती है द्य इसी प्रकार स्त्री की कुंडली से चन्द्र स्पष्ट एमंगल स्पष्ट और गुरु स्पष्ट से विचार करें द्यशेष राशि; क्षेत्र द्ध तथा उसका नवांश दोनों सम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमताएएक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों विषम हों तो अक्षमता होती है द्य बीज तथा क्षेत्र का विचार करने से अक्षमता सिद्ध होती हो तथा उन पर पाप युति या दृष्टि भी हो तो उपाय करने पर भी लाभ की संभावना क्षीण होती है एशुभ युति दृष्टि होने पर शान्ति उपायों से और औषधि उपचार से लाभ होता है द्य शुक्र से पुरुष की तथा मंगल से स्त्री की संतान उत्पन्न करने की क्षमता का विचार करें द्य पुरुष व स्त्री जिसकी अक्षमता सिद्ध होती हो उसे किसी कुशल वैद्य से परामर्श करना चाहिए द्य
सूर्यादि ग्रह नीच एशत्रु आदि राशि नवांश मेंएपाप युक्त दृष्ट एअस्त एत्रिक भावों का स्वामी हो कर पंचम भाव में हों तो संतान बाधा होती है द्य योग कारक ग्रह की पूजा एदान एहवन आदि से शान्ति करा लेने पर बाधा का निवारण होता है और सन्तिति सुख प्राप्त होता है द्य फल दीपिका के अनुसार रू.
एवं हि जन्म समये बहुपूर्वजन्मकर्माजितं दुरितमस्य वदन्ति तज्ज्ञाः द्य
ततद ग्रहोक्त जप दान शुभ क्रिया भिस्तददोषशान्तिमिह शंसतु पुत्र सिद्धयै द्यद्य
अर्थात जन्म कुंडली से यह ज्ञात होता है कि पूर्व जन्मों के किन पापों के कारण संतान हीनता है द्य बाधाकारक ग्रहों या उनके देवताओं का जाप एदान एहवन आदि शुभ क्रियाओं के करने से पुत्र प्राप्ति होती है द्य
सूर्य संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पितृ पीड़ा है द्य पितृ शान्ति के लिए गयाजी में पिंड दान कराएं द्य हरिवंश पुराण का श्रवण करें द्यसूर्य रत्न माणिक्य धारण करें द्य रविवार को सूर्योदय के बाद गेंहुएगुड एकेसर एलाल चन्दन एलाल वस्त्र एताम्बाए सोना तथा लाल रंग के फल दान करने चाहियें द्य सूर्य के बीज मन्त्र ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः के 7000 की संख्या में जाप करने से भी सूर्य कृत अरिष्टों की निवृति हो जाती है द्य गायत्री जाप से ए रविवार के मीठे व्रत रखने से तथा ताम्बे के पात्र में जल में लाल चन्दन एलाल पुष्प ड़ाल कर नित्य सूर्य को अर्घ्य देने पर भी शुभ फल प्राप्त होता है द्य विधि पूर्वक बेल पत्र की जड़ को रविवार में लाल डोरे में धारण करने से भी सूर्य प्रसन्न हो कर शुभ फल दायक हो जाते हैं द्य
चन्द्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण माता का शाप या माँ दुर्गा की अप्रसन्नता है जिसकी शांति के लिए रामेश्वर तीर्थ का स्नान एगायत्री का जाप करें द्य श्वेत तथा गोल मोती चांदी की अंगूठी में रोहिणी एहस्त एश्रवण नक्षत्रों में जड़वा कर सोमवार या पूर्णिमा तिथि में पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका या कनिष्टिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप एपुष्प एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्य
सोमवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र का ११००० संख्या में जाप करें द्यसोमवार को चावल एचीनी एआटाए श्वेत वस्त्र एदूध दही एनमक एचांदी इत्यादि का दान करें द्य
मंगल संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण भ्राता का शाप एशत्रु का अभिचार या श्री गणपति या श्री हनुमान की अवज्ञा होता है जिसकी शान्ति के लिए प्रदोष व्रत तथा रामायण का पाठ करें द्यलाल रंग का मूंगा सोने या ताम्बे की अंगूठी में मृगशिरा एचित्रा या अनुराधा नक्षत्रों में जड़वा कर मंगलवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए लाल पुष्पए गुड एअक्षत आदि से पूजन कर लें
मंगलवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र का १०००० संख्या में जाप करें द्य मंगलवार को गुड शक्कर एलाल रंग का वस्त्र और फल एताम्बे का पात्र एसिन्दूर एलाल चन्दन केसर एमसूर की दाल इत्यादि का दान करें द्य
बुध संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण मामा का शाप एतुलसी या भगवान विष्णु की अवज्ञा है जिसकी शांति के लिए विष्णु पुराण का श्रवण एविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें द्यहरे रंग का पन्ना सोने या चांदी की अंगूठी में आश्लेषाएज्येष्ठा एरेवती नक्षत्रों में जड़वा कर बुधवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की कनिष्टिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए लाल पुष्पए गुड एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्य बुधवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः मन्त्र का ९००० संख्या में जाप करें द्य बुधवार को कर्पूरएघीए खांडए एहरे रंग का वस्त्र और फल एकांसे का पात्र एसाबुत मूंग इत्यादि का दान करें द्य तुलसी को जल व दीप दान करना भी शुभ रहता है द्य
बृहस्पति संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गुरु एब्राह्मण का शाप या फलदार वृक्ष को काटना है जिसकी शान्ति के लिए पीत रंग का पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी मेंपुनर्वसु एविशाखा एपूर्व भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए पीले पुष्पए हल्दी एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्यपुखराज की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं द्य केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें द्यगुरूवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र का १९००० की संख्या में जाप करें द्य गुरूवार को घीए हल्दीए चने की दाल एबेसन पपीता एपीत रंग का वस्त्र एस्वर्णए इत्यादि का दान करें द्यफलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने और गुरु की पूजा सत्कार से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं द्य
शुक्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गौ .ब्राह्मण एकिसी साध्वी स्त्री को कष्ट देना या पुष्प युक्त पौधों को काटना है जिसकी शान्ति के लिए गौ दान एब्राह्मण दंपत्ति को वस्त्र फल आदि का दान एश्वेत रंग का हीरा प्लैटिनम या चांदी की अंगूठी में पूर्व फाल्गुनी एपूर्वाषाढ़ व भरणी नक्षत्रों में जड़वा कर शुक्रवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए श्वेत पुष्पए अक्षत आदि से पूजन कर लें
हीरे की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न श्वेत जरकन भी धारण कर सकते हैं द्यशुक्रवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः मन्त्र का १६ ००० की संख्या में जाप करें द्य शुक्रवार को आटा एचावल दूध एदहीए मिश्री एश्वेत चन्दन एइत्रए श्वेत रंग का वस्त्र एचांदी इत्यादि का दान करें द्य
शनि संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पीपल का वृक्ष काटना या प्रेत बाधा है जिसकी शान्ति के लिए पीपल के पेड़ लगवाएंएरुद्राभिषेक करें एशनि की लोहे की मूर्ती तेल में डाल कर दान करेंद्य नीलम लोहे या सोने की अंगूठी में पुष्य एअनुराधा एउत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए नीले पुष्पए काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लेंद्य
नीलम की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न संग्लीली ए लाजवर्त भी धारण कर सकते हैं द्य काले घोड़े कि नाल या नाव के नीचे के कील का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है द्यशनिवार के नमक रहित व्रत रखें द्य ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः मन्त्र का २३००० की संख्या में जाप करें द्य शनिवार को काले उडद एतिल एतेल एलोहाएकाले जूते एकाला कम्बल ए काले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें द्यश्री हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करना भी शनि दोष शान्ति का उत्तम उपाय है द्य
दशरथ कृत शनि स्तोत्र
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च द्यनमः कालाग्नि रूपाय कृतान्ताय च वै नमः द्यद्य
नमो निर्मोसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च द्य नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते द्यद्य
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः द्य नमो दीर्घाय शुष्काय कालद्रंष्ट नमोस्तुतेद्यद्य
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरिक्ष्याय वै नमःद्य नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने द्यद्य
नमस्ते सर्व भक्षाय बलि मुख नमोस्तुतेद्यसूर्य पुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च द्यद्य
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोस्तुतेद्य नमो मंद गते तुभ्यम निंस्त्रिशाय नमोस्तुते द्यद्य
तपसा दग्धदेहाय नित्यम योगरताय चद्य नमो नित्यम क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमःद्यद्य
ज्ञानचक्षुर्नमस्ते ऽस्तु कश्यपात्मजसूनवे द्यतुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो हरसि तत्क्षणात द्यद्य
देवासुर मनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा द्य त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतःद्यद्य
प्रसादं कुरु में देव वराहोरऽहमुपागतः द्यद्य
पद्म पुराण में वर्णित शनि के दशरथ को दिए गए वचन के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक शनि की लोह प्रतिमा बनवा कर शमी पत्रों से उपरोक्त स्तोत्र द्वारा पूजन करके तिल एकाले उडद व लोहे का दान प्रतिमा सहित करता है तथा नित्य विशेषतः शनिवार को भक्ति पूर्वक इस स्तोत्र का जाप करता है उसे दशा या गोचर में कभी शनि कृत पीड़ा नहीं होगी और शनि द्वारा सदैव उसकी रक्षा की जायेगी द्य
राहु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण सर्प शाप है जिसकी शान्ति के लिए नाग पंचमी में नाग पूजा करें एगोमेद पञ्च धातु की अंगूठी में आर्द्राएस्वाती या शतभिषा नक्षत्र में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए नीले पुष्पए काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लेंद्यरांगे का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है द्य ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र का १८००० की संख्या में जाप करें द्य शनिवार को काले उडद एतिल एतेल एलोहाएसतनाजा एनारियल ए रांगे की मछली एनीले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें द्य मछलियों को चारा देना भी राहु शान्ति का श्रेष्ठ उपाय है द्य
केतु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण ब्राह्मण को कष्ट देना है जिसकी शान्ति के लिए ब्राह्मण का सत्कार करें ए सतनाजा व नारियल का दान करें और ॐ स्रां स्रीं स्रों सः केतवे नमः का १७००० की संख्या में जाप करें द्य
संतान बाधा दूर करने के कुछ शास्त्रीय उपाय
जन्म कुंडली में अन्पत्तयता दोष स्थित हो या संतान भाव निर्बल एवम पीड़ित होने से संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो निम्नलिखित पुराणों तथा प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित शास्त्रोक्त उपायों में से किसी एक या दो उपायों को श्रद्धा पूर्वक करें द्य आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी द्य
1ण् संकल्प पूर्वक शुक्ल पक्ष से गुरूवार के १६ नमक रहित मीठे व्रत रखें द्य केले की पूजा करें तथा ब्राह्मण बटुक को भोजन करा कर यथा योग्य दक्षिणा दें द्य १६ व्रतों के बाद उद्यापन कराएं ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं गुरुवे नमः का जाप करें द्य
2ण् पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी में गुरु रत्न पुखराज स्वर्ण में विधिवत धारण करें द्य
3ण् यजुर्वेद के मन्त्र दधि क्राणों ; २३ध्३२द्ध से हवन कराएं द्य
4ण् अथर्व वेद के मन्त्र अयं ते योनि ; ३ध्२०ध्१द्ध से जाप व हवन कराएं द्य
5 संतान गोपाल स्तोत्र
ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः द्य
उपरोक्त मन्त्र की १००० संख्या का जाप प्रतिदिन १०० दिन तक करें द्य तत्पश्चात १०००० मन्त्रों से हवनए१००० से तर्पण ए१०० से मार्जन तथा १० ब्राह्मणों को भोजन कराएं द्य
6 संतान गणपति स्तोत्र
श्री गणपति की दूर्वा से पूजा करें तथा उपरोक्त स्तोत्र का प्रति दिन ११ या २१ की संख्या में पाठ करें द्य
7ण् संतान कामेश्वरी प्रयोग
उपरोक्त यंत्र को शुभ मुहूर्त में अष्ट गंध से भोजपत्र पर बनाएँ तथा षोडशोपचार पूजा करें तथा ॐ क्लीं ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवति संतान कामेश्वरी गर्भविरोधम निरासय निरासय सम्यक शीघ्रं संतानमुत्पादयोत्पादय स्वाहा एमन्त्र का नित्य जाप करें द्य ऋतु काल के बाद पति और पत्नी जौ के आटे में शक्कर मिला कर ७ गोलियाँ बना लें तथा उपरोक्त मन्त्र से २१ बार अभिमन्त्रित करके एक ही दिन में खा लें तो लाभ होगा द्य द्य
8ण्पुत्र प्रद प्रदोष व्रत ; निर्णयामृत द्ध
शुक्ल पक्ष की जिस त्रयोदशी को शनिवार हो उस दिन से साल भर यह प्रदोष व्रत करेंद्यप्रातःस्नान करके पुत्र प्राप्ति हेतु व्रत का संकल्प करें द्य सूर्यास्त के समय शिवलिंग की भवाय भवनाशाय मन्त्र से पूजा करें जौ का सत्तू एघी एशक्कर का भोग लगाएं द्य आठ दिशाओं में दीपक रख कर आठ .आठ बार प्रणाम करें द्य नंदी को जल व दूर्वा अर्पित करें तथा उसके सींग व पूंछ का स्पर्श करें द्य अंत में शिव पार्वती की आरती पूजन करें द्य
9ण् पुत्र व्रत ;वराह पुराण द्ध
भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को उपवास करके विष्णु का पूजन करें द्य अगले दिन ओम् क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी जन वल्लभाय स्वाहा मन्त्र से तिलों की १०८ आहुति दे कर ब्राह्मण भोजन कराएं द्य बिल्व फल खा कर षडरस भोजन करें द्य वर्ष भर प्रत्येक मास की सप्तमी को इसी प्रकार व्रत रखने से पुत्र प्राप्ति होगी
स्त्री की कुंडली में जो ग्रह निर्बल व पीड़ित होता है उसके महीने में गर्भ को भय रहता है अतः उस महीने के अधिपति ग्रह से सम्बंधित पदार्थों का निम्न लिखित सारणी के अनुसार दान करें जिस से गर्भ को भय नहीं रहेगा
गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनका दान
गर्भाधान से नवें महीने तक प्रत्येक मास के अधिपति ग्रह के पदार्थों का उनके वार में दान करने से गर्भ क्षय का भय नहीं रहता द्य गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनके दान निम्नलिखित हैं कृकृ
प्रथम मास कृ दृ शुक्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा शुक्रवार को द्ध
द्वितीय मास कृमंगल ; गुड एताम्बा एसिन्दूर एलाल वस्त्र ए लाल फल व दक्षिणा मंगलवार को द्ध
तृतीय मास कृ गुरु ; पीला वस्त्र एहल्दी एस्वर्ण ए पपीता एचने कि दाल ए बेसन व दक्षिणा गुरूवार को द्ध
चतुर्थ मास कृ सूर्य ; गुड ए गेहूं एताम्बा एसिन्दूर एलाल वस्त्र ए लाल फल व दक्षिणा रविवार को द्ध
पंचम मास कृ. चन्द्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को द्ध
षष्ट मास कृ दृ.शनि ; काले तिल एकाले उडद एतेल एलोहा एकाला वस्त्र व दक्षिणा शनिवार को द्ध
सप्तम मास कृदृ बुध ; हरा वस्त्र एमूंग एकांसे का पात्र एहरी सब्जियां व दक्षिणा बुधवार को द्ध
अष्टम मास कृ. गर्भाधान कालिक लग्नेश ग्रह से सम्बंधित दान उसके वार में द्ययदि पता न हो तो अन्न एवस्त्र व फल का दान अष्टम मास लगते ही कर दें द्य
नवं मास कृ. चन्द्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को द्ध
संतान सुख की प्राप्ति के समय का निर्धारण
पति और पत्नी दोनों की कुंडली का अवलोकन करके ही संतानप्राप्ति के समय का निर्धारण करना चाहिए द्यपंचम भाव में स्थित बलवान और शुभ फलदायक ग्रह एपंचमेश और उसका नवांशेश एपंचम भाव तथा पंचमेश को देखने वाले शुभ फलदायक ग्रहएपंचमेश से युक्त ग्रह एसप्तमान्शेष एबृहस्पति एलग्नेश तथा सप्तमेश अपनी दशा अंतर्दशा प्रत्यंतर दशा में संतान सुख की प्राप्ति करा सकते हैं द्य
दशा के अतिरिक्त गोचर विचार भी करना चाहिए द्य गुरु गोचर वश लग्न एपंचम भाव एपंचमेश से युति या दृष्टि सम्बन्ध करे तो संतान का सुख मिलता है द्य लग्नेश तथा पंचमेश के राशि अंशों का योग करें द्य प्राप्त राशि अंक से सप्तम या त्रिकोण स्थान पर गुरु का गोचर संतान प्राप्ति कराता है द्य गोचर में लग्नेश और पंचमेश का युति ए दृष्टि या राशि सम्बन्ध हो तो संतानोत्पत्ति होती है द्य पंचमेश लग्न में जाए या लग्नेश पंचम भाव में जाए तो संतान सम्बन्धी सुख प्राप्त होता है द्य बृहस्पति से पंचम भाव का स्वामी जिस राशि नवांश में है उस से त्रिकोण ;पंचम एनवम स्थान द्ध में गुरु का गोचर संतान प्रद होता है द्यलग्नेश या पंचमेश अपनी राशि या उच्च राशि में भ्रमण शील हों तो संतान प्राप्ति हो सकती है द्य लग्नेश एसप्तमेश तथा पंचमेश तीनों का का गोचरवश युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध बन रहा हो तो संतान लाभ होता है द्य
स्त्री की जन्म राशि से चन्द्र 1 ए2 ए4 ए5 ए7 ए9 ए1 2 वें स्थान पर हो तथा मंगल से दृष्ट हो और पुरुष जन्म राशि से चन्द्र 3 ए6 10 ए11 वें स्थान पर गुरु से दृष्ट हो तो स्त्री .पुरुष का संयोग गर्भ धारण कराने वाला होता है द्य आधान काल में गुरु लग्न एपंचम या नवम में हो और पूर्ण चन्द्र व् शुक्र अपनी राशि के हो तो अवश्य संतान लाभ होता है द्य
विशेष
प्रमुख ज्योतिष एवम आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार रजस्वला स्त्री चौथे दिन शुद्ध होती है द्य रजस्वला होने की तिथि से सोलह रात्रि के मध्य प्रथम तीन दिन का त्याग करके ऋतुकाल जानना चाहिए जिसमें पुरुष स्त्री के संयोग से गर्भ ठहरने की प्रबल संभावना रहती है द्यरजस्वला होने की तिथि से 4ए6ए8ए10ए12ए14ए16 वीं रात्रि अर्थात युग्म रात्रि को सहवास करने पर पुत्र तथा 5ए7ए9 वीं आदि विषम रात्रियों में सहवास करने पर कन्या संतिति के गर्भ में आने की संभावना रहती हैद्य याज्ञवल्क्य के अनुसार स्त्रियों का ऋतुकाल 16 रात्रियों का होता है जिसके मध्य युग्म रात्रियों में निषेक करने से पुत्र प्राप्ति होती है द्य
वशिष्ठ के अनुसार उपरोक्त युग्म रात्रियों में पुरुष नक्षत्रों पुष्य एहस्तएपुनर्वसु एअभिजितएअनुराधा एपूर्वा फाल्गुनी ए पूर्वाषाढ़एपूर्वाभाद्रपद और अश्वनी में गर्भाधान पुत्र कारक होता है द्य कन्या के लिए विषम रात्रियों में स्त्री कारक नक्षत्रों में गर्भाधान करना चाहिए द्य ज्योतिस्तत्व के अनुसार नंदा और भद्रा तिथियाँ पुत्र प्राप्ति के लिए और पूर्णा व जया तिथियाँ कन्या प्राप्ति के लिए प्रशस्त होती हैं अतः इस तथ्य को भी ध्यान में रखने पर मनोनुकूल संतान प्राप्ति हो सकती है
मर्त्यः पितृणा मृणपाशबंधनाद्विमुच्यते पुत्र मुखावलोकनात द्य
श्रद्धादिभिहर्येव मतोऽन्यभावतः प्राधान्यमस्येंत्य यमी रितोऽजंसा

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