Wednesday 31 August 2016

फलित ज्योतिष

ज्योतिष का महत्वपूर्ण भाग फलकथन है। इसी गुण के कारण उसे वेदों का नेत्र कहा जाता है। भविष्य को जानने की चाह प्रत्येक व्यक्ति को होती है, संकट तथा परेशानी में यह चाह और भी बढ़ जाती है। भविष्य को व्यक्त करने की दुनिया के अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग पद्धतियां हैं। सर्वाधिक प्रचलित तथा विश्वसनीय विधि जन्मपत्री का विश्लेषण है। जन्मपत्री विश्लेषण के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं जो जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का संकेत देते हैं। इनमें प्रमुख हैं: जातक का महादशा क्रम, अष्टकवर्ग एवं गोचर तथा नक्षत्रों के विभिन्न चरण तथा उनसे ग्रहों का गोचर। वैसे तो जन्मपत्री विश्लेषण के कई सूत्र हैं यथा - योग, वर्ग कुंडलियां, तिथ, वार, पक्ष, मास, नक्षत्र जन्म फल, ग्रहों के संबंध इत्यादि लेकिन भविष्य कथन में उपरोक्त तीन ही निर्णायक हैं। महर्षि पराशर ने मानव जीवन को 120 वर्ष की अवधि मानकर महादशा प्रणाली विकसित की। इस महादशा का निर्धारण जन्मकालीन चंद्रमा की नक्षत्रात्मक स्थिति में होता है। सभी 27 नक्षत्रों को नवग्रहों में विभक्त कर एक-एक ग्रह को तीन नक्षत्रों का स्वामी बना दिया गया तथा गहों के भी महादशा वर्ष निश्चित किए गए। यहां महादशा क्रम, अंतर व प्रत्यंतर दशा निकालने की विधि दी जा रही है, सिर्फ उन बिंदुओं की चर्चा की जा रही है जो महत्वपूर्ण घटनाक्रम का कारण बनते हैं। लग्न, पंचम व नवम भाव जन्म कुंडली के शक्तिशाली भाव हैं - इनसे स्वास्थ्य, बुद्धि व संतान तथा भाग्य का विचार किया जाता है। इन्हें त्रिकोण भाव कहा जाता है। इन भावों में स्थित राशियों के स्वामी ग्रहों की महादशा, अंतरदशा या प्रत्यंतरदशा सदैव सुखद परिणाम देती है। इसी तरह छठा, आठवां व व्यय भाव दुःख स्थान या त्रिक् स्थान कहलाते हैं। इनके स्वामी ग्रहों की महादशा, अंतरदशा या प्रत्यंतरदशा कष्टकारी होती है। लग्न व नवम भाव के स्वामी ग्रहों की ममहादशा में चतुर्थ या सप्तम भाव के स्वामी ग्रह की अंतरदशा घर में मंगल कार्य करवाती है। जन्म नक्षत्र से तीसरा नक्षत्र विपत, पांचवां प्रत्यरि तथा सातवां वध संज्ञक कहलाता है। इन नक्षत्रों के स्वामी ग्रहों की महादशा, अंतरदशा या प्रत्यंतरदशा दुखद परिणाम देती है लेकिन अगर ये ग्रह त्रिकोण भावों के स्वामी हों तो परिणाम मिश्रित होते हैं। द्वितीय व सप्तम भाव मारक भाव हंै। इनके स्वामी ग्रहों की दशा-अंतरदशा यह प्रत्यंतर दशा मारक होती है। शास्त्रों में आठ प्रकार की मृत्यु बताई गई है अतः मृत्यु का अर्थ केवल जीवन की समाप्ति नहीं होता। विंशोत्तरी महादशा के अतिरिक्त अन्य दशाओं का भी प्रयोग होता है। लेकिन अष्टोत्तरी, कालचक्र, योगिनी चर तथा माण्डु मुख्य हैं। लेकिन घटनाओं के निर्धारण में विंशोत्तरी की उपयोगिता निर्विवाद है। अष्टक वर्ग एक विशिष्ट प्रणाली है जो ग्रहों के शुभ-अशुभ प्रभावों को संख्या में व्यक्त करती है। इसका आधार है ग्रहों का ग्रहों पर प्रभाव। जिस राशि में जिस ग्रह के शुभ अंक ज्यादा हों, गोचर में उस राशि में वह ग्रह अपने भाव का भरपूर लाभ देता है। लेकिन इस प्रणाली को जानकार ज्योतिषियों के माध्यम से ही जाना जा सकता है। अष्टकवर्ग घटनाओं के निर्धारण तथा आयु निर्णय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गोचर अर्थात् ग्रहों का राशि पथ में भ्रमण और उसका जन्म कुंडली के विभिन्न भावों पर प्रभाव। गोचर सामान्यतः चंद्र राशि के आधार पर गोचर का निर्धारण कर फल कथन किया जाता है। जन्म नक्षत्र से तीसरा, पांचवां, सातवां 12वां,14वां,16वां,21वां,23वां या 25वां नक्षत्र गोचर के भाव से अशुभ है। इन नक्षत्रों से ग्रहों का भ्रमण अशुभ घटनाक्रम उत्पन्न कर सकता है। राशि पथ 27 नक्षत्रों तथा 108 चरणों में विभक्त है। यही 108 चरण नवांश भी कहलाते हैं। कुछ फलितकार जीवन भी 108 वर्ष का मानते हैं। जीवन के आयु तुल्य नवांश में जब भी कोई ग्रह भ्रमण करता है तो वह अपने भाव का शुभ या अशुभ फल अवश्य करता है। इधर कुछ फलितकारों की विशेष रूप से प्रश्न मार्ग की मान्यता है कि 108 चरणों को यदि जन्म कुंडली के 12 भावों में विभक्त किया जाए तो प्रत्येक भाव में 9 चरण आएंगे। यदि इन्हें क्रम से रखा जाए ता लग्न में 1,13,25,37,49,61,73,85 या 97वां चरण पड़ेगा। इन नवांशों में जब भी ग्रह गोचरस्थ होंगे वे स्वास्थ्य पर अपनी प्रकृति के अनुसार प्रभाव डालेंगे। इस प्रणाली में चतुर्थ भाव में पड़ने वाला 64वां एवं 88वां चरण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। राहु-केतु-शनि तथा मंगल का इन चरणों से गोचर अत्यंत कष्ट देता है। ज्योतिष में राशियों के मृत्यु भाग का उल्लेख आता है। मेष का 260, वृष 120, मिथुन 130, कर्क 250, सिंह 20, कन्या 010, तुला 260, वृश्चिक 140, धनु 130, मकर 250, कुंभ 50 एवं मीन का 12वां अंश मृत्यु भाग है। लग्न से 210 से 220 अंशों को महाकष्टकारी माना जाता है। इन अंशों से ग्रहों का गोचर कष्ट ही देता है। यहां उन विशिष्ट बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है जो अति संवेदनशील है। गोचर के फल तो राशि के अनुसार पत्र-पत्रिकाओं में दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, व वार्षिक फल के रूप में छपते हैं, किंतु ये अति सामान्य फल होते हैं। विशिष्ट व व्यक्ति विशेष के जीवन के घटनाक्रम जानने के लिए इन संवेदनशील बिंदुओं का निर्धारण व जानकारी आवश्यक है। पश्चिमी जगत में एक प्रसिद्ध ज्योतिषी हुए हैं रिनोल्ड इबर्टन। इन्होंने एक सिद्धांत प्रतिपादित किया था थ्योरी आॅफ मिड पाॅइंट। इसे दो ग्रहों के मध्य का अतिप्रावी बिंदु भी कहा जाता है। इस बिंदु पर गोचर तुरंत परिणाम देता है। जीवन के महत्वपूर्ण घटनाक्रम को जानने में सुदर्शन चक्र विधि भी अत्यंत उपयोगी है। यह चक्र लग्न, रवि व चंद्र कुंडली के आधार पर निर्मित किया जाता है। लग्न वर्ष, चंद्र कुंडली दिन तथा रवि लग्न घटना का महीना बताता है। भविष्य कथन एक अपसाध्य प्रक्रिया है। जन्मपत्री का गंभीर अध्ययन एक साधना है जिसमें एकाग्रता की आवश्यकता होती है। जीवन के भावी घटनाचक्र को जानने के लिये मन, वचन व कर्म से शुद्ध और सात्विक ज्योतिषी से ही परामर्श करना चाहिए। होटल, क्लब, रेल, पार्क में और रात्रिकाल, ग्रहण, अमावस्या तथा ज्योतिषी के मानसिक कष्ट के समय जन्मांग का विवेचन नहीं किया जाना चाहिए। जातक के जीवन के भावी घटनाक्रम को बताते समय ज्योतिषी का चंद्रमा बलवान होना चाहिए तथा जातक के चंद्रमा से त्रिकभाव में नहीं होना चाहिए। फलित ज्योतिष भविष्य का मार्गदर्शक है। यह जीवन में होनेवाली महत्वपूर्ण घटनाओं का शास्त्रोक्त विधि से संकेत दे सकता है।

जानें कैसे किसी भी परिस्थिति पर कोई ग्रह प्रभावित करता है

मानसागरी में लिखा है - ललाट पहे लिखिता विधाता, षष्ठी दिने याऽक्षर मालिका च। ताम् जन्मत्री प्रकटीं विधत्तो, दीपो यथा वस्तु धनान्धकारे। (मान सागरी) अर्थात् ईश्वर ने भाग्य में जो लिख दिया, उसे भोगना ही पड़ता है। जन्मपत्री के अध्ययन से इस बात का आसानी से पता चल जाता है कि उसने पूर्व जन्म में कैसे-कैसे कर्म किये है? और इस जन्म में उसे कैसा क्या सुख भोग मिलेगा। मातुलो यस्य गोविन्दः पिता यस्य धनंजयः। सोऽपित कालवशं प्राप्तः कालो हि बुरतिक्रमः।। अर्थात् अभिमन्यु युवा था, सुंदर था, स्वस्थ था, वीर था, नवविवाहित था। भला क्या उसकी मरने की आयु थी या स्थिति? भगवान श्री कृष्ण उसके मामा थे, उसके पिता अर्जुन महाभारत के अप्रतिम योद्धा थे। किंतु अभिमन्यु काल से न बच सका। तब साधारण जन कैसे बच सकता है। मृत्युर्जन्मवतां वीर देहेन सह जायते। अथ वाष्दशतान्ते वा मृत्युवै प्राणिनां धु्रवः।। देहे पंचत्वमापन्ने देहि कर्मानुगोऽवंशः। देहान्तरमनुप्राप्य प्राक्तनं त्यजते वपुः।। (श्रीमद् भागवत् 10/013/8-39) अर्थात कंस वासुदेव-देवकी को स्नेह से पहुंचाने जा रहा था। मार्ग में आकाशवाणी हुई ‘अस्यास्त्वाभस्तमा गर्भो हन्ता यां वहसेऽबुध।’ हे मूर्ख! जिसे तुम पहुंचाने जा रहे हो इसका आठवां गर्भ तुम्हें मार डालेगा।’ क्रुद्ध कंस देवकी के केशों को पकड़कर उसकी जीवन लीला ही समाप्त कर रहा था, तभी वासुदेव जी ने उसे समझाया - हे वीर! जन्मधारण करने वालों के साथ ही उनकी मृत्यु भी उत्पन्न हो जाती है। आत्म कर्मानुसार देहान्तर प्राप्त कर पूर्व देह छोड़ देता है। कहने का अर्थ यही है कि जीव को कर्मानुसार विविध देहें की विभिन्न प्रकार के सुखों की रोगों की, अभावों की प्राप्ति होती है। तब जन्म पत्री को देखकर कैसे समझा जाए कि ग्रह एक साथ जीवन के कितने क्षेत्रों को प्रभावित करता है। इस तथ्य की सत्यता हेतु कुछ कुण्डलियों का अध्ययन करते हैं। यह सोनीपत शहर में रहने वाली एक ऐसी स्त्री की कुंडली है, जिसके विवाह को सात वर्ष बीत गए लेकिन इसे संतान नहीं हुई। इस औरत की कुंडली जन्म लग्न, चंद्र लग्न, सूर्य लग्न, शुक्र लग्न से मंगली है। लग्न सिंह है और प्रथम भाव में ही मंगल है और चंद्रमा भी सिंह राशि में ही है। लग्नेश सूर्य लग्न से छठे भाव में है। परंतु मंगल सूर्य से अष्टम भाव में है। पंचमेश एवं पंचम कारक गुरु संतान भाव (पंचम भाव) से द्वादश है तथा बृहस्पति पर पाप ग्रह मंगल की चतुर्थ दृष्टि है। संतान भाव पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं है। कुंटुंब भाव (द्वितीय) पाप कर्तरी योग में है यानी इस भाव के एक ओर मंगल है व द ूसरी ओर केतु पाप ग्रह है, लग्न पर राहु का तथा कुंटुंब भाव पर शनि का दुष्प्रभाव है। इसी कारण संतान नहीं हो पायी। इस व्यक्ति को उठने बैठने चलने-फिरने आदि में अत्यंत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि यह पुट्ठे की क्षीणता से ग्रस्त हो गया है। देखते हैं ऐसा किन ग्रह स्थितियों के कारण हुआ। यदि कोई ग्रह षष्ठ, अष्टम या द्वादश स्थानों में स्थित हो और इस पर शुभ दृष्टि न हो तो वह अत्यंत निर्बल हो जाता है। ऐसा ग्रह जिस धातु का कारक होता है, वह उसमें रोग उत्पन्न कर देता है। उपरोक्त कुंडली में मंगल पुट्ठों का कारक है जो मृत्यु भाव अर्थात अष्टम स्थान में स्थित है। वह नीच (कर्कस्थ) भी है। मंगल पर राहु की पंचम की दृष्टि है। इसके अलावा मंगल पर शुभ ग्रह शुक्र की दृष्टि है, परंतु शुक्र भी षष्ठेश तथा एकादशेश होकर मारक भाव में स्थित है शुक्र षष्ठ से षष्ठ अर्थात् एकादश भाव का स्वामी होने से भी रोगदायक है। यही नहीं शुक्र दो पाप ग्रहों शनि तथा सूर्य के बीच भी है जो उसकी निर्बलता बढ़ा रहे हैं। इसी कारण पुट्ठों की क्षीणता अत्यंत कठिनाइयों को पैदा कर रही है। यह पुरुष जातक व्यभिचारी है। यह अपनी पत्नी को उत्पीड़ित करता रहता है। उसे कई बार मारने की कोशिश भी कर चुका है। दो बार पुलिस केस भी हो चुका है। इसके अन्य महिलाओं के साथ भी यौन संबंध हैं। इसकी जन्मकुंडली की ग्रह स्थितियों का अध्ययन कर इन कारणों को जानने का प्रयास करते हैं। यदि लग्नेश चतुर्थ भाव में हो, चतुर्थ एवं सप्तम भाव मंगल या राहु से पीड़ित हो, चतुर्थेश, सप्तमेश एक साथ हो तथा राहु से प्रभावित हो तो जातक व्यभिचारी, बहुस्त्री भोगी, कलंकित होता है। उपरोक्त कुंडली में लग्नेश-चतुर्थेश बुध चतुर्थ भाव में है तथा सप्तमेश गुरु शत्रु राशिस्थ होकर लग्नेश के साथ सुखेश बुध त्रिक भाव के स्वामी सूर्य के साथ है। इसके अतिरिक्त धनेश चंद्रमा केमुद्रम योग बना रहा है तथा शत्रु राशीस्थ होकर द्वादश भाव में है। भोग कारक शुक्र रोग, ऋण व शत्रु भाव में गृहस्थ भाव से द्विद्र्वादश योग बना रहा है। सप्तम भाव पापकर्तरी योग में है। पंचम भाव में शनि से दृष्ट है। लग्न एवं पंचम भाव पर राहु की दृष्टि है। चंद्रमा पर मंगल की दृष्टि भी है। इसी कारण यह व्यभिचारी है।


 

क्या उत्तम मुहूर्त से क्या उत्तम चरित्र का निर्माण हो सकता है.....





हमारे लिए यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण में हम अपनी मूल संस्कृति से इतने दूर जा रहे हैं कि हमारे समाज में पति-पत्नी जैसे पवित्र संबंधं का भी महत्व नहीं रह गया है। प्रिंट मीडिया के कई सर्वेक्षणों से यह बात उभरकर सामने आई है कि आज हमारे समाज में चाहे वह कोई स्त्री हो या पुरुष, शादी से पहले या शादी के बाद कई-कई संबंध बेहिचक बनाने लगे हुए हैं। बात सिर्फ गुप्त रूप से बने संबंधों की नहीं है बल्कि लोग तो आज आधुनिकता की दौड़ में खुलकर बहु विवाह भी कर रहें हैं। इसमें उन्हें कोई भी शर्म या हिचक महसूस नहीं होती है। इन बहु विवाहों और बहु संबंधों के बारे में ज्योतिषीगण किसी जातक या जातका की जन्म पत्रिका देखकर उसके इन संबंधों के बारे में सटीक भविष्यवाणी करके बता भी देते हैं। प्रश्न उठता है कि क्या एक सच्चे ज्योतिषी का कर्तव्य यहीं समाप्त हो जाता है? शायद नहीं, मुहूर्त की मदद से एक मां इस समस्या को शायद ज्योतिषीय विधि से कहीं न कहीं कम कर सकती है। जीवन का प्रारंभ मां से होता है और यदि मुहूर्त और मातृत्व में सामंजस्य बन जाए तो जातक चरित्रवान, भाग्यवान, स्वस्थ एवं दीर्घायु हो सकता है। मातृत्व एवं मुहूर्त के विषय में ज्योतिष के अनेक विद्वानों ने दिग्दर्शन कर यश कमाया है। इनमें ‘मुहत्तर्त-मार्तंड’ के रचयिता आचार्य नारायण प्रमुख हैं। जीवन के बहु आयामों के अनुरूप अनेकानेक मुहूर्त निर्धारित किए जाते हैं, किंतु सर्व प्रथम मुहूर्त कन्या के प्रथम रजो दर्शन से ही प्रारंभ होते हैं; किंतु भारतीय परिवेश में लज्जा, संकोच एवं मुहूर्त को अनुपयुक्त समझकर इस अति महत्वपूर्ण तथ्य को नगण्य कर दिया जाता है और जातक के जन्म के बाद माता-पिता जीवन भर एक से दूसरे ज्योतिषी एवं एक उपाय से दूसरे उपाय तक भटकता फिरते हैं। अस्तु, आवश्यक है कि एक श्रेष्ठतर राष्ट्र निर्माण हेतु श्रेष्ठ नागरिक तैयार किए जाएं। प्राचीन काल में मुहूर्त का उपयोग राजवंशों में ही प्रचलित था। परिणामतः राजाओं की संतति अधिक स्वस्थ होती थी एवं उनका भाग्य बलशाली होता था। किंतु आज बदले हुए परिवेश में सर्वसाधारण भी मुहूर्त का उपयोग करने लगे हैं, क्योंकि यह उनके लिए भी उतना ही जरूरी है। इस कार्य में माताओं को ही अग्रणी भूमिका अदा करनी होगी। तभी पुत्री के इस प्रथम मातृ सोपान पर शुभाशुभ निर्णयकर जीवन को सहज एवं सफल अस्तित्व प्रदान किया जा सकेगा। कन्या की 12 से 14 वर्षों की आयु के अंतराल में यदि रजोदर्शन शुभ मुहूर्त में हो, तो निश्चित रहें अन्यथा यदि मुहूर्त अशुभ हो, तो कुछ उपाय, दान आदि से अशुभता का निवारण करें। प्रथम रज दर्शन के शुभ मुहूर्त मास: माघ, अगहन, वैशाख, आश्विन, फाल्गुन, ज्येष्ठ, श्रावण। पक्ष: उपर्युक्त महीनों के शुल्क पक्ष तिथि: 1,2,3,5,7,10,11,13 और पूर्णिमा। वार: सोवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार। नक्षत्र: श्रवण, धनिष्ठा,शतभिषा, मृगशिरा, अश्विनी, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, तनों उत्तरा, रोहिणी, पुनर्वसु, मूल, पुष्य शुभ लग्न: वृष, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, धनु, मीन शुभवस्त्र: श्वेत प्रथम रज दर्शन के अशुभ काल एवं उपाय यदि रजोदर्शन में पूर्वोक्त शुभ समय नहीं रहा हो, तो अशुभता निवारण हेतु उपाय सहज एवं सुलभ है। निषिद्ध योग उपाय भद्रा- स्वस्ति-वाचन, गणेशपूजन निद्रा- शिव संकल्प सूक्त के 11 पाठ संक्राति अमावस्या-सूर्याघ्र्य एवं दान रिक्ता तिथि-अन्न से भरा कलश दान संध्या-बहते जल में दीप दान षष्ठी, द्वादशी, अष्टमी-गौरी पूजन वैधृति योग- शिव लिंग पर दुग्ध, दूर्बा एवं विल्वपत्र समर्पण रोगावस्था- पीली सरसों की अग्नि में आहुति चंद्र सूर्य ग्रहण- काले उड़द का दान पात योग-राहु-केतु का दान अशुभ नक्षत्र-पार्थिव पूजन अशुभ लग्न-नव ग्रह पूजन पूर्वोक्त उपाय, कन्या के शुद्ध होने पर कन्या द्वारा ही कराएं। इन उपायों द्वारा अमंगल निवारण हो जाता है और भावी जीवन कल्याणकारी होता है। उपाय की उपयुक्तता: अगर जीवन में कुछ छोटी-छोटी बातों जैसे छिपकली या गिरगिट का गिरना, बिल्ली का रास्ता काटना आदि को शुभाशुभ मान कर उपाय करते हैं तो इस शारीरिक परिवर्तनारंभ का भी ज्योतिषीय उपाय एवं विश्लेषण किया जाना चाहिए क्योंकि यह आवश्यक एवं तर्कसंगत है। आज के वैज्ञानिक युग में यौन-संबंध के बिना भी जीवन उत्पत्ति (परखनली शिशु) होती देखी जा रही है। वैज्ञानिक उस जैव उत्पत्ति स्थान-परिसर में वातानुकूलन को अनिवार्य मानते हैं। मातृत्व हेतु मुहूर्त भी ग्रह-नक्षत्रों के अनुकूलन की प्रक्रिया है। दूसरा मातृत्व सोपान गर्भाधान होता है। भारतीय विद्वानों ने अपनी अलौकिक ज्ञान साधना द्वारा इस विषय पर सर्व सम्मति से निर्णय दिया है। भद्रा पर्व के दिन षष्ठी, चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या पूर्णिमा, संक्रांति, रिक्ता, संध्याकाल, मंगलवार, रविवार, शनिवार और रजोदर्शन से 4 रात्रि छोड़कर शेष समय में तीनों उत्तरा, मृगशिरा, हस्त, अनुराधा, रोहिणी, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा एवं शतभिषा नक्षत्र में गर्भाधान शुभ होता है। गर्भाधान के पश्चात गर्भस्थ शिशु की सुरक्षा भी उतनी ही आवश्यक होती है, जितनी अंकुरित होते हुए बीज एवं विकसित होते हुए पौधों की। इस संबंध में मुहूर्त चिंतामणिकार ने गर्भकालीन दस मास तक के स्वामी ग्रहों की स्थिति का निर्धारण किया है। इन ग्रहों के दान-पूजन से उत्पन्न होने वाले जातक का जीवन एवं भाग्य सुदृढ़ होते है। मास ग्रह पूजन एवं उपाय प्रथम शुक्र गणेश स्मरण, मिष्टान्न एवं सुगंधि दान। द्वितीय मंगल गाय को मसूर की दाल खिलाएं। तृतीय गुरु परिवार के श्रेष्ठों को हल्दी का तिलक लगाकर आशीर्वाद लें। चतुर्थ सूर्य सूर्याघ्र्य दान पंचम चंद्र चंद्राघ्र्य दान षष्ठ शनि सायंकाल शनिवार को दीपदान सप्तम बुध हरी सब्जियों का उपयोग एवं दान अष्टम लग्नेश विष्णु पूजन करें, तुलसी को जल दें। नवम चंद्र चंद्राघ्र्य दान दशम सूर्य सूर्य को प्रणाम करें, गणेश का स्मरण करें। ज्योतिष मुहूर्त की अंक प्रक्रिया इसे पूर्ण वैज्ञानिक बनाती है।

पद उपपद और अर्गला के आधार पर ज्योतिष्य फलकथन

लग्नकुंडली के आधार पर की गई भविष्यवाणी मिथ्या हो जाती है, जिसके निराकरण हेतु महर्षि पराशर ने षड्वर्ग की व्यवस्था की। जब कोई फल लग्नकुंडली के साथ-साथ षड्वर्ग कुंडली से भी प्रकट होता है, तो उसके मिथ्या होने की संभावना कम होती है और वह समय की कसौटी पर खरा उतरता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु जैमिनि और पराशर दोनों महर्षियों ने अपने ग्रंथों में पद, उपपद, अर्गला और कारकांश जैसे विषयों का समावेश किया है। इन तथ्यों के आधार पर फल कथन का प्रचलन उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में अधिक है। जैमिनि सूत्रम में श्लोक 30,31 और 32 पद को परिभाषित करते हैं - यावदीशाश्रयं पद मृज्ञाणाम्।।30।। स्वस्थे दाराः ।।31।। सुतस्थे जन्म ।।32।। श्लोक 30 के अनुसार विचारणीय भाव से उसके स्वामी ग्रह तक गिनकर जो संख्या हो, उतनी ही संख्या उस स्वामी ग्रह से गिनकर जो राशि आती है, वही विचारणीय राशि का पद होती है। इसेे आरूढ़ भी कहते हैं। श्लोक 31 और 32 के अनुसार इस नियम के कुछ अपवाद हैं यदि जैसे यदि विचारणीय भाव से उसका स्वामी चतुर्थ स्थान पर हो, तो यही स्थान उस भाव का पद होगा। स्वस्थः = चतुर्थ स्थान, दाराः = चतुर्थ स्थान मेव पदं भवति। इसी प्रकार यदि विचारणीय भाव से उसका स्वामी सप्तम स्थान पर हो, तो विचारणीय भाव से दशम स्थान उस भाव का पद होगा। लग्न के पद को लग्नपद या लग्नारूढ और द्वादश भाव के पद को उपपद या उपारूढ कहते है। लग्नपद को मुख्य पद और अन्य भावों के पदों को क्रमशः धनपद, सहजपद, सुखपद, पुत्रपद आदि कहते है। महर्षि पराशर के अनुसारः स्वस्थानं सप्तम् नैव पदं भवितुमर्हति। तस्मिन पदत्वे सम्प्राप्ति मध्यंतुर्य क्रमात् पदम्।। बृहत् पराशर होराशास्त्र, अध्याय 27, श्लोक 4 यदि किसी भाव का स्वामी स्वस्थान में हो, तो उक्त नियम के विपरीत उस भाव से दशम स्थानगत राशि उस भाव की पद राशि होगी। इसी प्रकार यदि विचारणीय भाव से सप्तम स्थान पर भावेश है, तो वह भाव स्वयं ही पद होना चाहिए। किंतु, ऐसा नहीं है। इसके अपवाद स्वरूप इस स्थान से चतुर्थ स्थान पद होगा। अतः स्वस्थान और सप्तम स्थान पद नहीं होते, बल्कि उनके स्थान पर क्रमशः दशम और चतुर्थ स्थान पद होते हैं। अर्गला क्या है? विचारणीय भाव से दूसरे, चैथे, पांचवें या 11वें स्थान में ग्रह स्थित होने पर भाव अर्गला से युक्त होता है। यदि विचारणीय भाव से 12वें, 10वें, नौवें या तीसरे स्थान में ग्रह हो, तो भाव अर्गला से बाधित होता है। इस कथन का तात्पर्य यह है कि भाव दो का अर्गला बाधित स्थान 12वां, भाव चार का 10वां, भाव पांच का नौ और भाव 11 का बाधित स्थान तीसरा है। यदि भाव 12, 10, नौ और तीन ग्रह रहित हों तो शुभ अर्गला बनती है, जो अत्यधिक लाभ की सूचक है। राहु और केतु के लिए अर्गला स्थान नौ और बाधक स्थान पांच होता है। अर्गला से युक्त भाव के फल को स्थिरता प्राप्त होती है, इसलिए वह फल निश्चित रूप से फलित होता है। यदि बाधक स्थान तीन में तीन या अधिक पाप ग्रह हों, तो यह स्थान बाधक नहीं होता। इसे विपरीत अर्गला कहते हैं। यह एक प्रकार से विपरीत राजयोग के समान है। यस्माद्यावतिथे राशौ खेटात् तद्भवनं द्विज। ततस्तावतिथं राशिं खेटारूढं़ प्रचक्षते।। द्विनाथ द्विभयोरेवं व्यवस्था सबलावधि। विगणय्य पदं विप्र ततस्तस्य फलं वदेत्।। बृहत् पाराशर होरा शास्त्र, अध्याय 27, श्लोक 5,6 विचारणीय ग्रह से उसकी राशि तक की संख्या गिनों। तत्पश्चात उस राशि से उतनी ही संख्या आगे गिनकर पर जो स्थान आएगा उसमें स्थित राशि उस ग्रह का पद होता है। सूर्य और चंद्र को छोड़कर अन्य ग्रहों की दो-दो राशियां होती हैं। ऐसी अवस्था में बलवान राशि तक गणना करके पद का निर्धारण करना चाहिए। बलवान राशि कौन सी होगी,? जैमिनि के अनुसार ग्रह रहित राशि की तुलना में ग्रह युक्त राशि अधिक बली, कम ग्रह वाली राशि से अधिक ग्रहों वाली राशि अधिक बली और समान ग्रह होने पर स्व, उच्च या शुभ ग्रह वाली राशि अधिक बली होती है। जैसे किसी कर्क लग्न की कुंडली में सूर्य मेंष राशिस्थ है। मंगल का पद अर्थात आरूढ़ ज्ञात करना है। मंगल की दो राशियों मेष और वृश्चिक में सूर्य के अधिष्ठित होने के कारण मेष बलवान है। मंगल से मेष तक की गिनती संख्या चार है, इसलिए मेष से आगे चार संख्या गिनने पर लग्न भावगत कर्क राशि मंगल की पद राशि होगी। पद, उपपद और अर्गला से फल कथन भाव 2, 5, 9, 11 या किसी केंद्र भाव का पद लग्नपद से यदि केंद्र या त्रिकोण स्थान में हो, शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो और पाप ग्रहों से मुक्त हो, तो जातक का जीवन उन्नतिशील होता है। ऐसे लोगों को कोई अदृश्य शक्ति अतिरिक्त बल प्रदान करती है, जिससे वे उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु प्रापत करके अपने परिश्रम, दूरदर्शिता और तेजोबल से अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। निर्बल लग्नपद के मनुष्य अयोग्य, अक्षम, अशिक्षित, अज्ञानी, अस्थिर व मंद बुद्धि के, शिथिल, उत्साहहीन, अदूरदर्शी और उद्देश्यहीन होते हैं। यदि केंद्र-त्रिकोण भाव अर्गला से युक्त हों, तो व्यक्ति भाग्यवान, राजसम्मान और अनेक क्षेत्रों में लाभ अर्जित करने वाला होता है। इसके विपरीत भाव 6, 8, और 12 अर्गला से युक्त हों तो अशुभ फल प्राप्त होते हैं। जैसे षष्ठ भाव की अर्गला से शत्रु भय, अष्टम भाव की अर्गला से दैहिक कष्ट और द्वादश भाव की अर्गला से अपव्यय होता है। जैमिनि सूत्रम, अध्याय 1, श्लोक 22 और 23 के अनुसार यदि लग्नपद और उससे सप्तम स्थान की शुभ ग्रहों से युक्त अर्गला बाधित भी हो, तो धन-धान्य की वृद्धि होती है। चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य, पं. जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण अडवाणी, धीरूभाई अंबानी, अमत्र्य सेन, हरिवंश राय बच्चन जैसे महापुरुषों के लग्नपद केंद्र -त्रिकोण जैसे शुभ स्थानों में हैं और लग्नकुंडली के अनेक भाव अर्गला से युक्त हैं। ये सभी अपने-अपने क्षेत्रों में बहुमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व के स्वामी रहे हैं। लग्नपद से एकादश स्थान: लग्न कुंडली से सभी भावों के पद ज्ञात करके एक पद कुंडली बना लें। एकादश स्थान लाभ का होता है, इसलिए लग्नपद से एकादश स्थान में कोई भी ग्रह हो या उस पर किसी ग्रह की दृष्टि हो, तो मनुष्य का जीवन उन्नतिशील, कर्मशील, यश, धन और संपत्ति से युक्त होता है। यदि इस स्थान पर शुभ ग्रहों की दृष्टि या स्थिति हो, तो प्रशंसनीय कार्यों से उन्नति होती है और यदि अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, तो निंदनीय कार्यों से जीवन स्तर उच्च होता है। यदि एकादश भाव अर्गला से युक्त भी हो, तो और अधिक लाभ होता है। लग्नपद से द्वितीय और सप्तम स्थान: इन स्थानों में शुभ ग्रह चंद्रमा, बृहस्पति या शुक्र हो या कोई स्वोच्च पाप ग्रह हो, तो व्यक्ति यश, धन, पद और संपत्ति से सुखी होता है। बुध होने से प्रशासनिक पद की संभावना होती है और शुक्र होने से व्यक्ति, भोगी और साहित्य प्रेमी होता है। लग्नपद से द्वितीय स्थान में केतु होता हो तो बुढ़ापे के लक्षण शीघ्र उत्पन्न हो जाते हैं और सप्तम स्थान में राहु या केतु से उदर रोग होने की संभावना होती है। लग्नपद से सप्तम भाव का पद केंद्र या त्रिकोण स्थान में हो, तो जातक लक्ष्मीवान होता है और यदि छठे, आठवें, 12वें स्थान पर हो तो दरिद्र होता है। लग्नपद से द्वादश स्थान: यह व्यय का स्थान है जिस पर ग्रहों की दृष्टि या स्थिति होने पर व्यय अधिक होता है। यदि द्वादश की तुलना में एकादश भाव पर अधिक ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यय कम और लाभ अधिक होता है। द्वादश स्थान पर पाप ग्रहों के प्रभाव से अशुभ कार्यों में धन नष्ट होता है और शुभ ग्रहों के प्रभाव से शुभ कार्यों जैसे विवाह, मकान, शिक्षा, वाहन आदि पर व्यय होता है। जैमिनि सूत्रम् अध्याय 1, पाद 3, श्लोक 7 तथा बृहत् पराशर होराशास्त्र के अध्याय 27 श्लोक 16 के अनुसार लग्नपद से द्वादश स्थान में सूर्य, शुक्र और राहु एकत्र हों, तो सरकार के कारण धन हानि होती है और यदि इस स्थान को चंद्रमा देखे, तो निश्चित रूप से सरकार के कारण ही धन हानि होती है। धन और व्यापार योग: व्यापारियों की कुंडली में लग्न, धन, भाग्य और कर्म भाव तथा इनके स्वामी पुष्ट और बलवान होने चाहिए। व्यापार जगत में धन की भूमिका अहम् होती है, इसलिए धन से संबंधित भाव, भावेश और कारक ग्रहों का आपसी तालमेल और उनकी का अवस्था बलवान होना बहुत आवश्यक है। इनकी निर्बल अवस्था वालों को व्यापार नहीं बल्कि नौकरी करनी चाहिए, अन्यथा धन-व्यापार के साथ-साथ सामाजिक प्रतिष्ठा का नाश हो जाता है।

साप्ताहिक राशिफल 29 अगस्त से 04 सितंबर 2016

मेष राशि-
सप्ताह के पूर्वार्ध में अस्वस्थता रहेगी, विषेशकर एलर्जी व घुटने के दर्द से परेशान रह सकते हैं. शरीर में निर्बलता और मानसिक अशांति बनी रहेगी. सट्टे, शेयर मार्केट से यथा संभव दूरी बनाए रखें अन्यथा हानि का सामना करना पड सकता है. माता का स्वास्थ्य तनाव दे सकता है. जहां तक हो सके सप्ताह के पूर्वार्ध में व्यवहार में संयम बनाये रखें अन्यथा विवाद का सामना करना पड सकता है. सप्ताह के उतरार्ध में जो मनोबल कम था उसकी जगह मन में एक नई आशा का संचार होगा. प्रेम संबंधों मे आंशिक रूप से सफलता मिल सकती है. यदि विवाहित हैं तो जीवन साथी से अच्छा सामंजस्य बना रहेगा. विद्यार्थियों को माह के अंत में ऐच्छिक सफलता प्राप्ति के संयोग बनेंगे.
उपाय -
(1) बडे बुजुर्गों की सेवा करके उनसे आशीर्वाद लेते रहें
(2) गुरूवार के दिन मंदिर में बेसन, चने की दाल इत्यादि का दान करते रहें
वृष राशि-
सप्ताह की शुरूआत से ही आपके स्वभाव में उग्रता रहेगी, बात बात में झुंझलाहट होगी, इस वजह से लोग आपसे दूर रह सकते हैं। जीवन साथी का स्वास्थ्य कमजोर बना रह सकता है और दाम्पत्य जीवन में आपसी सामंजस्य में कमी की भी संभावनायें निर्मित हो रही हैं. तनाव और चिड़चिड़ाहट से कार्य में भी गलतियाॅ हो सकती हैं, आपको यथासंभव इससे बचना चाहिये. यात्रा-भ्रमण के लिए मन लालायित रहेगा और सप्ताह के उतरार्ध में आपको इसमें सफलता भी मिलेगी. धन का आगमन निरंतर बना रहेगा. सप्ताह के मध्य वाहन दुर्घटना या चोरी अथवा किसी भी प्रकार के लडाई-झगडे के प्रति पूर्णतः सचेत रहें.
उपाय -
(1) शनिवार के दिन गाय को चारा खिलायें
(2) किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के लिये घर से प्रस्थान करने के पूर्व बड़ों को प्रणाम कर निकलें..
मिथुन राशि -
इस सप्ताह का प्रारंभ तो आपके लिए सामान्य ही रहेगा किन्तु परिवार में किसी की अस्वस्थता से मन चिन्तित हो सकता है। सामाजिक, आर्थिक मोर्चे पर भी हल्के तौर पर थोडा समस्यायों का सामना करना पड सकता है. धन आगमन की गति पहले से धीमी ही रहेगी. जल्दबाजी में कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय न लें और न ही किसी अति विशेष कार्य को तुरत-फुरत अंजाम दें।
सप्ताह के शुरूआती दिनों की परेशानियों से सबक लेते हुये आपका आत्मिक बल बढेगा और उतरार्ध अवधि में आप मानसिक रूप से बेहद सकून अनुभव करेंगे. भाग्य का अच्छा सहयोग मिलने से आपके अधर में लटके कार्य अनायास ही बनने लगेंगें. परिवार में किसी के स्वास्थ्य को लेकर चली आ रही परेशानी से भी निजात मिलने लगेगी.
उपाय -
(1) पक्षियों को नियमित रूप से दाना डालते रहें
(2) श्री कनकधारा स्त्रोत्र का पाठ करें।
कर्क राशि -
विद्यार्थियों के लिये यह समय कुछ ठीक नही है. मन में चंचलता बढी रहेगी, स्वभाव में लापरवाही रहेगी. अतः व्यवहार को काबू में रखें अन्यथा परिवार में तनाव रहेगा, धन की कमी भी बनी रहेगी. कारोबार इत्यादि भी मंदी का शिकार रहेगा. संतान के भविष्य संबंधी विषय में निर्णय लेते समय भी विशेष सावधानी रखनी बेहद आवश्यक है. अन्य पारिवारिक सदस्यों का परामर्श ले लेना ही आपके हित में रहेगा. सप्ताहान्त में लाटरी सट्टे शेयर मार्किट इत्यादि के जरिए हानि के योग हैं, इनसे यथा संभव दूरी बनाये रखें. हालाँकि जीवन साथी से मधुर संबंध बने रहेंगे. सप्ताह के उतरार्ध में भ्रमण मनोरंजन के अवसर भी प्राप्त होंगें.
उपाय -
(1) रविवार को उपवास रखें..
(2) गेहूॅ का दान करें।
सिंह राशि -
सप्ताह के प्रारंभ में स्त्री पक्ष से मनमुटाव रहेगा, आप वाणी संयम भी खो सकते हैं अतः कोशिश करके अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें वर्ना परेशानी उठानी पड सकती है. दूसरों को अपनी सलाह देने की आदत को भी काबू में रखें. सप्ताह के प्रारंभ में वाहन और मित्रों के सुख में कमी रहेगी. आप जो बाते उनसे मनवाना चाह रहे हैं, उनके न मानने पर आप काफी व्यथित रहेंगे. खर्चे भी इस सप्ताह काफी बढे हुये रहेंगे. मन में उदासी एवं स्वभाव में थोडा चिडचिडेपन का अनुभव करेंगें। लेकिन ये स्थितियाँ बहुत अधिक दिनों तक आपको तंग नहीं कर पायेंगीं. सप्ताह का उतरार्ध आते आते आप इन सब चिन्ताओं से मुक्ति पा चुके होंगें. सप्ताहान्त में आपको यात्रा-भ्रमण के अवसर मिलेंगे, हालाँकि इसमें धन का व्यय तो अवश्य होगा परन्तु घर-परिवार व इष्ट मित्रों से मुलाकात कर जो मानसिक प्रसन्नता प्राप्त कर पायेंगें.
उपाय -
(1) शुक्रवार के दिन मिश्री का प्रसाद चढाया करें.
(2) दुर्गा कवच का नित्य जाप करें।
कन्या राशि -
इस सप्ताह आप आंतरिक स्तर पर अति क्रियाशील रहेंगे, आपके शत्रु इस सप्ताह आपका कुछ नहीं बिगाड पायेंगे. आपको पूर्वकालिक समय से अभी तक जिन भी व्यवहारिक कठिनाईयों का सामना करना पड रहा था, उनको आप साम-दाम दंड-भेद इत्यादि कैसी भी नीति अपनाते हुये निपटा सकने में कामयाब रहेंगें. कुल मिलाकर इस सप्ताह आप अपने व्यवहारिक उद्देश्य को प्राप्त करने में सक्षम रहेंगे.
हालाँकि सप्ताह के उतरार्ध में आपको थोडी परेशानियों का सामना अवश्य करना पड सकता है. पीठ,रीढ की हड्डी अथवा पाँव आदि में दर्द से संबंधित व्याधि पीडा का कारण बन सकती है. भाई-बन्धुओं की ओर से भी थोडा परेशानी रहेगी. कोर्ट कचहरी के मामलों में धन का अपव्यव होना संभावित है. अंक तीन से संबंधित प्रभाव हावी रहेगा.
उपाय -
(1) भगवान सूर्यदेव को रौली एवं कुशा मिश्रित जल से अर्घ्य दिया करें.
(2) चाँदी का चैकोर टुकडा सदैव अपने पास रखें.
तुला राशि -
सप्ताह के प्रारंभ में विद्योपार्जन में कठिनाई महसूस करेंगे, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे जातकों को प्रयासपूर्वक अध्ययन में मन लगाना चाहिये. आँख कान गला संबंधित विकार थोडा कष्ट-परेशानी उत्पन्न कर सकते हैं, विशेषकर दांतो से संबंधित रोग. आपकी मानसिकता किसी बडे प्रोजेक्ट को प्लानिंग करने की रहेगी और आप पूर्ण मेहनत से उसमें लगे भी रहेंगे. धनागमन रूक रूक कर होता रहेगा पर ईश्वर कृपा से आपके सारे कार्य समय पर बन जायेंगे. सप्ताह के उतरार्ध में धन का अचानक अपव्यय हो सकता है परंतु आप इसे बचाने में शायद ही सफल होंगे. इष्ट-मित्रों पर धन का भरपूर अपव्यय होगा. यात्राओं का अवसर मिलेगा जिनसे आप समुचित लाभ प्राप्त कर सकेंगे. दाम्पत्य जीवन में भी सम्बंधों में मधुरता बरकरार रहेगी.
उपाय -
(1) पौधों का दान या रोपण करें.
(2) शनिवार के काली वस्तु का दान करते रहें.
वृश्चिक राशि -
सप्ताह के प्रारंभ में आपकी बुद्धि धर्म कर्म में बनी रहेगी, संत समागम होगा इसके बावजूद भी आप मानसिक रूप से स्वयं को थोडा परेशान ही महसूस करेंगें, विद्या प्राप्ति में बाधाओं का कारण निर्मित हो रहा रहा है. प्रतियोगी परीक्षाएं दे रहे जातक विशेष मेहनत से ही सफलता अर्जित कर पायेंगे भाई बहनों की तरफ से भी चिंता लगी रहेगी. आर्थिक पक्ष बिना किसी भारी घटा-बढी के सामान्य ही रहने वाला है. जीवनसाथी की ओर से भी उचित साथ-सहयोग मिलता रहेगा. सप्ताह के उतरार्ध में पहले से हालात कहीं बेहतर होते जायेंगे.
उपाय -
(1) नियमित रूप से रूद्राभिषेक करें.
(2) ताजे फलों का दान करें.
धनु राशि -
सप्ताह की शुरुआत परेशानी भरी रहेगी. मन आंदोलित रहेगा. आप मन में जो कुछ भी विचार करेंगें, उन विचारों को दूसरों के सम्मुख प्रकट करने में दुविधा अनुभव करेंगें. चाहकर भी अपने भाव व्यक्त नहीं कर पायेंगें. आप की मनोदशा केवल योजनाएं बनाने की रहेगी, उन्हें व्यवहारिक रूप में अमली जामा नही पहना सकने की वजह से आप अपने उच्चाधिकारी अथवा व्यापारिक भागीदार का स्वयं पर से विश्वास कम कर रहे हैं. जो भी कार्य करें, भली भान्ति सोच समझकर करें. मन की अपेक्षा बुद्धि से निर्णय लेना ही हितकर रहेगा. यदि आप उपरोक्त गतिविधियों से बचे रहे तो सप्ताह का उतरार्ध काफी सुखमय रहेगा, घर परिवार की तरफ से कोई शुभ समाचार मिलेगा. विवाह योग्य युवक युवतियों को जीवन साथी मिलने की उम्मीद रहेगी.
उपाय -
(1) पीला धागा गले में धारण करें.
(2) बुधवार के दिन भगवती दुर्गा को नारियल अर्पित किया करें.
मकर राशि -
सप्ताह के प्रारंभ में पठन पाठन में मन कम लगेगा. हर काम में रूकावटे आने की संभावना रहेगी. परंतु भाईयों के सहयोग से बिगडे काम बन सकेंगे. जीवन साथी से तालमेल बनाये रखेंगे तो आपकी परेशानियां कम रहेंगी. सप्ताह का उतरार्ध काफी अहम साबित होगा. यदि पूर्व में की गई अपनी गलतियों और लापरवाही को आपने नहीं दोहराया तो आप आगे आने वाले अच्छे समय का फायदा उठाने में कामयाब रहेंगे. हालाँकि सामान्य तौर पर थोडा स्वास्थ्य से संबंधित कुछ परेशानी उत्पन्न हो सकती हैं. अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित रखने की कोशिश करें. डाक्टरी सलाह पर अमल करते रहें. धन का उचित लाभ मिलता रहेगा.
उपाय -
1. मंगलवार के दिन लाल फूलों की माला श्री हनुमान जी को अर्पित किया करें.
2. नित्य हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए.
कुंभ राशि -
यह सप्ताह आपके लिए मिश्रित फलदायी रहने वाला है. इस समयावधि में आप चाहे किसी का कितना भी सहयोग कर लें, किन्तु आपको उसका उचित प्रतिफल नही मिलने वाला. साथ जुडने वाला प्रत्येक व्यक्ति बिना आपके हानि-लाभ का विचार किए सिर्फ अपना काम निकालकर चलता बनेगा और आप बस ठगे से देखते रहेंगें. सो, किसी को नजदीक आने दें, तो बेहद सोच-विचारकर ही. आपके स्वभाव में पूर्ण रूप से भौतिकता छाई रहेगी. आध्यात्मिक पक्ष बेहद कमजोर रहेगा. सप्ताह का पूर्वार्ध भी थोडा कशमकश भरा रहने वाला है. त्वरित लाभ की अकांक्षा से सट्टे शेयर मार्किट से दूरी बनाकर चलना ही हितकर रहेगा, अन्यथा हानि का सामना करने हेतु तत्पर रहें. यदि आप किसी प्रकार की अचल सम्पत्ति खरीदने की योजना बना रहे हैं तो उसके लिए यह समय पूर्णतः उपयुक्त है. सप्ताह का उतरार्ध आपके लिए पूर्वार्ध से कहीं अधिक लाभकारी रहने वाला है. घर-परिवार में सुख एवं शान्ति का माहौल बना रहेगा. किए जा रहे प्रयासों में सफलता के दर्शन होने लगेंगें.
उपाय -
(1) सोमवार के दिन दूध, चावल का दान किया करें.
2. शिवजी पर जल चढ़ायें.
मीन राशि -
सप्ताह के पूर्वार्ध में आपकी विचारधारा थोडा नास्तिकता का पुट लिये होगी. हालाँकि इस संबंध में आपके अपने ही कुछ तर्क होंगे. मन पूरी तरह से भौतिकता के अधीन रहेगा. निज भाई-बन्धुओं का साथ स्नेह आप पर यथावत बना रहेगा और आपस में अच्छा तालमेल रहेगा, उनसे आपको उचित सहयोग भी मिलता रहेगा. सप्ताह पश्चात का समय आपको विशेष सावधानी से गुजारना होगा. जीवनसाथी के साथ तालमेल बना कर चलेंगें तो अच्छा रहेगा. किसी को धन बहुत सोच समझकर ही उधार दें अन्यथा धन भी जाएगा ओर संबंधों में भी बिगाड उत्पन होने का भय है. धन के आगमन का पक्ष तो सुदृड बना रहेगा किन्तु साथ-साथ संतान पक्ष के जरिये व्यय की मात्रा भी उसी रूप में बढी रहे. इस सप्ताह कार्य और पारिवारिक रिश्तों में संतुलन बनाकर चलें.
उपाय -
1. बच्चों में टाफी बांटे.
2. गुरू मंत्र का जाप करें.

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Saturday 20 August 2016

साप्ताहिक राशिफल 22-28 अगस्त 2016

मेष --
इस सप्ताह में मेष राशि वालो को स्वयं के कार्यो पर पुर्नविचार करते हुए कदम बढ़ाना होगा क्योकि किए गए कार्यो पर विवाद हो सकता है। कुछेक निर्णयों में देरी हो सकती है। खर्च की अधिकता होती रहेगी जिसके कारण क्रोध बढ़ेगा। परिवार के लिए प्रतिकूल वातावरण बनेगा। जमीन के कार्यों में हानि नहीं होगी। कुछ अनजान शत्रुओं से बचना होगा। पेट की बीमारी का प्रकोप बढ़ सकता है। यात्रा में लापरवाही नहीं करना चाहिए क्योकि वाहन से हानि हो सकती है। पैसा रूकने की पूर्ण संभावना है तो उधार नहीं देना चाहिए। नए व्यापार के लिए अभी विचार नहीं चाहिए। नौकरी में अभी अच्छा चलेगा। समय का ध्यान रखते हुए कदम बढ़ाना होगा। कार्यों में गोपनीयता का पूर्ण ध्यान रखना होगा। शिक्षा में ज्यादा ध्यान देना होगा क्योकि मन चंचल हो रहा है। राजनीती में सामान्य रहेगा ।
उपाय -
लाभ की स्थिति को बनाये रखने के लिए.....
1. ऊॅ गं गणेशाय नमः का एक माला जाप करें....
2. पौधे का दान करें.....
3. इलायची खायें एवं खिलायें.....
वृष --
इस सप्ताह में वृष राशि वालो को अपनी कमजोरी को जाहिर करने से बचना चाहिए अन्यथा अपने लोग ही धोखा देंगे। जमीन की समस्या का हल नहीं निकल पायेगा, रूकावट बनी रहेगी। क्रोध ज्यादा आएगा और शत्रुता ज्यादा होगी क्योकि प्रभाव घट रहा है। दोस्तो और सहयोगियों से तालमेल बनाना होगा। यात्राओं से लाभ होगा । विदेश यात्रा का भी योग बन रहा है। धार्मिक कार्यों में मन लगेगा। कूटनीति का उपयोग धीरे धीरे करके कार्यों को बढ़ाना चाहिए, परिश्रम ज्यादा करना होगा और इसके कारण भागदौड़ बहुत ज्यादा होगी। व्यापार में अच्छा चलेगा। धन की कमी नहीं आएगी। विस्तार विवेकपूर्वक विचार करके करना होगा। शिक्षा के क्षेत्र में प्रतियोगिताओं में पूर्ण सफलता मिलेगी परन्तु परिश्रम और बढ़ाना होगा। राजनीति में जो परिश्रम करना चाहते है उसमे कई समस्याओं का अम्बार लगा रहेगा ।
शनि के उपाय -
1. ‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें.....
2. भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें....
3. उड़द या तिल दान करें....
मिथुन --
इस सप्ताह में मिथुन राशि वालो का काफी उत्साह मन में बना रहेगा। धन की आवक अच्छी बनी रहेगी, खर्च भी होगा लेकिन कोई समस्या नहीं आएगी। परिवार का पूर्ण सहयोग बना रहेगा। कार्यों में गंभीरता को बनाये रखना होगा। संतान की तरक्की अच्छी होगी और शिक्षा में लाभ होगा। नए भवन का सुख मिलेगा। निर्णय भी सही समय में होंगे और लोग सम्मान भी करेंगे। धार्मिक यात्राओं का प्रबल योग चल रहा है। विदेश यात्राओं का योग चल रहा है। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। व्यापार में पैसों की आवक अच्छी रहेगी। विस्तार का भी प्रबल योग चल रहा है कोई रूकावट नहीं आएगी। नौकरी में पदोन्नति योग चल रहा है। नए नौकरी के अवसर भी मिलेंगे। शिक्षा में प्रतियोगिताओं में पूर्ण लाभ और सफलता के योग हैं। राजनीती में लाभ मिलने के योग।
शुक्र से उपाय -
1. ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2. माॅ महामाया के दर्शन करें...
3. चावल, दूध, दही का दान करें...
कर्क --
इस सप्ताह में कर्क राशि वालो को पहले अपने विचारों में परिवर्तन लाना होगा क्योकि भावुकता के कारण लोग धोखा देंगे जिससे हानि की आशंका। परिवार से सहयोग बिलकुल नहीं मिल पायेगा तो जमीन के कार्यों में फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा। मित्रो का सहयोग अच्छा बना रहेगा। नए भवन के कार्यों में विलम्ब होगा तो सावधानी पूर्वक निर्णय लेते हुए कदम बढ़ाना चाहिए। पति पत्नी का तालमेल सही रहेगा। खान पान का ध्यान रखना होगा। व्यापार में विस्तार का पूर्ण योग चल रहा है। पैसा भी समय से मिलेगा, कोई हानि नहीं होगी, विस्तार सफल रहेगा। सम्मान के साथ लाभ होगा अथवा नौकरी में पदोन्नति होगी। प्रतिष्ठा के साथ नए अच्छे अवसर मिलेंगे कोई रूकावट नहीं आएगी। शिक्षा के क्षेत्र में प्रतियोगिताओं में लाभ निश्चित रूप से मिलेगा। राजनीति में सम्मान के साथ में पद का लाभ मिलेगा। स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहेगा।
1. ऊॅ कें केतवें नमः का जाप कर दिन की शुरूआत करें...
2. सूक्ष्म जीवों की सेवा करें...
3. गाय या कुत्ते को आहार दें...
सिंह --
इस सप्ताह में सिंह राशि वालो को मानसिक दबाव तो रहेगा परन्तु कार्यों में सुधार होगा। लाभ ज्यादा नहीं दिखेगा। स्वास्थ्य में भी खराबी होगी और अनिर्णय की स्थिति बनी रहेगी। शत्रुओं का प्रभाव हर समय दिखेगा तो कूटनीति का उपयोग करना होगा। जमीन के कार्यों में तनाव बना रहेगा। पति पत्नी का पूर्ण सहयोग बना रहेगा। यात्राओं में स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना होगा। ब्लडप्रेशर अथवा अनिद्रा की स्थिति बन सकती है। कार्यों को योजना बद्ध तरीके से करना होगा। व्यापार में जो चल रहा है उसके लिए शांति से समय का इंतजार करना चाहिए ज्यादा फेरबदल से हानि होगी क्योकि पैसा ज्यादा रुकेगा तो लेन देन में परेशानी आएगी। नौकरी में सही समय की पहचान करना परम आवश्यक रहेगा क्योकि नए अवसर अभी नहीं मिल पाएंगे। शिक्षा के क्षेत्र में मेहनत अनिवार्य रहेगी। राजनीति में खींचतान कर गाडी चलाना होगा ।
मंगल जनित दोषों को दूर करने के लिए -
1. ऊॅ अं अंगारकाय नमः का एक माला जाप करें..
2. हनुमानजी की उपासना करें..
1. मसूर की दाल, गुड दान करें...
कन्या --
इस सप्ताह में कन्या राशि वालो को काफी अच्छा समय मिलेगा जिसका सही वक्त से लाभ लेना होगा। पैसो की कमी नहीं आएगी क्योंकि रुका हुआ पैसा समय से मिलेगा। पुराने लोगो का सहयोग मिलेगा। भागदौड़ अवश्य करना होगी किंतु कोई बाधा नहीं आएगी। पति पत्नी में वैचारिक मतभेद आ सकती है योजना पहले से बनाना होगा फिर कार्य करें तो कोई तनाव नहीं आएगा। धार्मिक कार्यों में मन लगेगा लाभ भी होगा। यात्राओं में कोई तनाव नहीं आएगा। माता पिता के लिए अच्छा समय रहेगा। भ्रमण का योग बन रहा है। सम्बन्ध निरंतर अच्छे होते रहेंगे जिससे पहचान आगे बनती रहेगी । विस्तार की कई समस्याएं रहेंगी। नौकरी में पूर्ण सफलता मिलेगी, पदोन्नति के सफल योग चल रहे है। शिक्षा में प्रतियोगिताओँ में पूर्ण सफलता मिलेगी पर मित्रो से ज्यादा समय नही देना चाहिए। राजनीती में पूर्ण लाभ होगा सफलता के साथ ।
राहु कृत दोषों की निवृत्ति के लिए -
1. ऊॅ रां राहवे नमः का जाप कर दिन की शुरूआत करें...
2. काली चीजों का दान करें....
तुला --
इस सप्ताह में तुला राशि वालो को मानसिक शांति मिलेगी। पुराने जो विवादों का निपटारा होने के रास्ते निकलेगें। मन में ज्यादा भ्रम नहीं पाले और सीधे तरीके से कार्यो को करने से लाभ होगा । मित्रो से अपनी कमजोरी नहीं बताना चाहिए और किसी की गारंटी नहीं लेना चाहिए। कई बार हानि पहुंची है और आगे भी संभावना है। संतानों का सहयोग मिलेगा। कार्यों में उत्साह बढ़ेगा कोई बाधा नही आएगी। कोर्ट कचहरी में हानि नहीं होगी परन्तु शत्रुओं की संख्या कम नहीं है।यात्राओं में सावधानी रखना होगा । धार्मिक कार्यों में मन अभी भी नहीं लग पायेगा तो ध्यान देना अनिवार्य रहेगा। मांगलिक कार्य होंगे। सम्मान की स्थिति आएगी परन्तु काफी गंभीरता लाना होगा। व्यापार में उत्साह आएगा किंतु लाभ धीरे धीरे मिलेगा। पुराने पैसो की उम्मीद बनेगी। अभी नया व्यापार चालू नहीं करना चाहिए। नए अवसर का लाभ भी मिलेगा। स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। शिक्षा के क्षेत्र में सफलता की पूर्ण संभावना रहेगी। राजनीती में विवाद की स्थिति बन सकती है।
सूर्य के निम्न उपाय आजमायें-
1. ऊ धृणि सूर्याय नमः का जाप कर, अध्र्य देकर दिन की शुरूआत करें,
2. लाल पुष्प, गुड, गेहू का दान करें,
3. आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें,
वृश्चिक --
इस सप्ताह में वृश्चिक राशि वालो को राहत महसूस होगी परन्तु आलस्य और लापरवाही दोनों हावी रहेंगे। पैसो की आवक भी कम होगी और खर्च की अधिकता रहेगी। परिवार के लोगो का सहयोग मिलेगा। मित्रो से गोपनीयता का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। कोर्ट कचहरी में हानि होगी तो सावधानी रखना होगी। पति पत्नी में भी तनाव बना रहेगा और भागदौड़ ज्यादा होती रहेगी। पेट की बीमारी और सर का काफी ध्यान रखना होगा । कमजोरी के कारण उत्साह कम रहेगा। धार्मिक कार्यो में मन नही लग पायेगा। व्यापार में पैसा जाम रहेगा, आवक नहीं होगी और उसी के चलते तनाव आएगा, मन को दृढ़ रखना होगा। नया कार्य नहीं करना होगा। नौकरी में लोगो का सहयोग बिलकुल नहीं मिल पायेगा। शिक्षा के क्षेत्र में सफलता नही मिल पायेगी इसलिए मेहनत ज्यादा करें। राजनीती में यथावत रहेगा ।
शनि से उत्पन्न कष्टों की निवृत्ति के लिए -
1. ‘‘ऊॅ शं शनिश्चराय नमः’’ का जाप कर दिन की शुरूआत करें,
2. भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
3. काले वस्त्र का दान करें,
धनु --
इस सप्ताह में धनु राशि वालो को काफी मानसिक परेशानियाँ रहेंगी। प्रसन्नता में काफी कमी बनी रहेगी। स्वास्थ्य में उतार चढाव बना रहेगा। पैसा अनावश्यक खर्च होगा। लोगो का सहयोग नहीं मिलेगा तो विश्वास प्रभावित होगा। परिवारवालो का सहयोग नहीं मिल पायेगा और संतान का व्यवहार कष्टकारी होगा। गुप्त विरोध बहुत ज्यादा रहेगा इसलिए काफी गंभीरता पूर्वक विचार विमर्श के बाद निर्णय लेना होगा । पति पत्नी का सहयोग बना रहेगा । रात्रि के समय वाहन का ध्यान रखना होगा । मांगलिक कार्य होंगे उसमे बाधा नहीं आएगी मगर भागदौड़ ज्यादा करना होगी । धामिक कार्यों में मन नही लगेगा । व्यापार में सावधानी रखना होगा क्योकि एकाएक पैसा जाम होगा । आने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ेगा। पैसो के लेन देन में विश्वास नहीं करना चाहिए। नौकरी में अच्छी स्थिति रहेगी । तनाव तो बना रहेगा किंतु हानि नहीं होगी। शिक्षा के क्षेत्र में परिश्रम से लाभ प्राप्ति हेतु मित्रता कम करनी होगी । राजनीती में सामान्य योग रहेगा ।
मंगल के दोषों की निवृत्ति के लिए -
1. ऊॅ अं अंगारकाय नमः का एक माला जाप करें..
2. हनुमानजी की उपासना करें..
3. मसूर की दाल, गुड दान करें...
मकर --
इस सप्ताह में मकर राशि वालो को कार्यों में उत्साह बना रहेगा । इच्छा शक्ति का भरपूर लाभ होगा । उसका प्रभाव लोगो के ऊपर पड़ेगा तो लोग हानि नहीं पहुचाएंगे मगर मित्रो से हानि निश्चित रूप से होगी तो पहले कार्यों की योजना बनाना होगा। जमीन के कार्यों में लाभ होगा। पुराने कार्यों में बाधा कम हो जाएगी। संतानो के लिए अच्छा समय रहेगा । पैसो की कमी नहीं आएगी । पति पत्नी का सहयोग आपस में रहेगा। पेट की समस्या आएगी तो खान पान का ध्यान रखना होगा। गरिष्ट वस्तुओं का पूर्ण परहेज करना पड़ेगा। व्यापार में विस्तार कर सकते है और पैसो की कमी नहीं आएगी मगर अकेले करना होगा। नौकरी में प्रतिष्ठा बढ़ेगी, धन की अच्छी स्थिति बनी रहेगी, परिवर्तन का योग अच्छा बन रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रतियोगिताओँ में अच्छा लाभ होगा और सहयोग भी मिलेगा। राजनीती में प्रतिष्ठा का ध्यान रखना होगा नहीं तो शत्रुता बढ़ती रहेगी।
चंद्रमा के निम्न उपाय करें -
1. ऊॅ श्रां श्रीं श्रीं एः चंद्रमसे नमः का जाप करें...
2. दूध, चावल, का दान करें...
कुम्भ --
इस सप्ताह में कुम्भ राशि वालो का काफी क्षेत्रों में महत्व बढ़ेगा और सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। धन की बढ़ोतरी होगी। मित्रो का सहयोग बना रहेगा। जमीन के कार्यों में लाभ होगा। संतानों की तरक्की होगी। नए भवन का सुख मिलेगा । कोर्ट कचहरी के विवादों में पूर्ण सफलता मिलेगी। पति पत्नी का पूर्ण सहयोग बना रहेगा । यात्राओ में रात्रि का ध्यान रखना होगा । भ्रमण का योग बनेगा उसी से सम्मान बढ़ेगा । धार्मिक कार्यों में मन लगेगा। नए वाहन का सुख मिलेगा । व्यापार में काफी अच्छी स्थिति बनी रहेगी और विस्तार भी होगा कोई बाधा नहीं आएगी । नौकरी में पदोन्नति का प्रबल योग चल रहा है या नए अवसर भी मिलेंगे। शिक्षा में प्रतियोगिताओँ पूर्ण सफलता मिलेगी चाहे जैसी स्थिति होगी लाभ होगा। राजनीती में लाभ होगा सभी लोगो का सहयोग मिलेगा ।
गुरू के लिए निम्न उपाय करें-
1. ऊॅ गुं गुरूवे नमः का जाप करें...
2. कुल पुरोहित, ब्राह्ण्य को यथासंभव दान दें,
मीन --
इस सप्ताह में मीन राशि वालो की स्थिति पहले से काफी अच्छी रहेगी । पैसो की भरपूर आमदनी होती रहेगी । बचत भी होगी । संतानों की उन्नति होगी । जमीन में काफी लाभ होगा। परिवार के लोगो का सहयोग अच्छा रहेगा। मित्रो का सहयोग मिलेगा। शत्रुओं पर विजय मिलेगी। स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहेगा। पति पत्नी में कार्यों में मतभेद होंगे तो तालमेल बनाना होगा। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा । धार्मिक यात्राओं का प्रबल योग रहेगा। पुराना पैसा समय से मिलेगा परन्तु लोगो का विश्वास नहीं करना चाहिए और गोपनीयता का पूर्ण पालन करना चाहिए। व्यापार में अच्छी प्रगति होगी और विस्तार भी होगा कोई रूकावट और समस्या नहीं आएगी। नौकरी में पदोन्नति होगी और नए अच्छे अवसर भी मिलेंगे। शिक्षा में पूर्ण सफलता मिलेगी । राजनीती में आगे बढते रहेंगे कोई बाधा नहीं आएगी ।
उपाय -
पौधों का दान करें
जरूरत मंदों को इलाज का खर्च वहन करें...

क्रोध को काबू कैसे करें.......

अगर आप कार चला रहे हैं और कोई गाड़ी आपको गलत साइड से ओवरटेक कर दे तो क्या आप गुस्से से तिलमिला जाते हैं? यदि घर पर आपके बच्चे या फिर आपका जीवन साथी सहयोग न करें तो क्या आपका पारा बढ़ जाता है। यदि दफ्तर में कोई अधीनस्थ कर्मचारी बिना बताए छुट्टी पर चला जाए तो क्या आपका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है। क्रोध एक सामान्य और स्वस्थ भावना है, लेकिन इससे एक सकारात्मक तरीके से निपटना बहुत महत्वपूर्ण है। अनियंत्रित क्रोध आपके स्वास्थ्य और रिश्तों दोनों पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। क्रोध शब्द आते ही माथे पर तनाव से उभर आने वाली लकीरें एकाएक दिमाग के पर्दे पर पदर्शित होने लगती हैं। ना तो क्रोध करने वाला और ना ही उसके सामने वाला इस अवस्था से प्रसन्न होता हैं। ये एक ऐसी अभिव्यक्ति है, जो कोई पसन्द नहीं करता लेकिन ऐसा हो जाता है। इसके नुक्सान से हम सब वाकिफ हैं और इसके प्रभाव से हम सब बचना चाहते हैं। क्रोध समस्या तब बनता है, जब अकारण हो और किसी पर अकारण ही निकले। ये एक चैन रिएक्शन की तरह पहले आप से फिर आपके पास के लोगों में परिवर्तित होता है। जैसे कि पहले ही बताया गया है कि ये एक सामान्य प्रक्रिया है। मनोवैज्ञानिकों के विचार से क्रोध एक तरह से क्षुब्ध भावनायों का क्षय है। इस प्रकार से जो विचार अन्तः मन में दबे हुए हैं – वो क्रोध के जरिए बाहर निकल आते हैं। यदि क्रोध को लिया जाए तो क्रोध बौद्धिक विकास के लिए आवश्यक है। क्रोध एक उर्जा है और यदि यही उर्जा सही तरीके से उपयोग मे लाई जाए तो कठिन से कठिन कार्य भी सुगम हो जाता है। क्रोध की ऊर्जा को सही तरीके से सही जगह पर उपयोग करना ही इसका सदुपयोग है। कहना बहुत आसान है परंतु इस ऊर्जा का सही उपयोग करना भी आना चाहिए, जैसे हमारे मनोविज्ञान एवं धर्म ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है। किसी भी क्रिया का ब्रह्माण्ड में सामंजस्य लाने के लिए ऊर्जा से संयोग ही योग है। इसी को योगी परमशक्ति से मिलन कहते हैं। भगवद्गीता संसार में जीने के लिए सुगम पथ से मार्गदर्शन करने हेतु उत्तम ग्रंथ है। भगवद्गीता के अनुसार आसन, प्राणायाम जैसी क्रियाएं करने वाले को योगी नहीं कहा जा सकता। गीता के अनुसार, जब नियंत्रित किया हुआ शरीर, अपने आप में स्थित हो जाता है और सभी कामनाओं से दूर हो जाता है, तब ऐसे चित्त वाले व्यक्ति को युक्त कहा जाता है। योगी वही है, जिसका चित्त किसी भी कामना में नहीं लगता। ऐसा तो है नहीं कि दुख ना आए- दुख शरीर के कष्ट से होता है और व्यथा मन के कष्ट से और क्रोध के ये ही दो कारण होते हैं। क्रोध की उत्पत्ति दुख अथवा व्यथा से होती है। जब किसी के मानस पटल पर कोई दुख हो या फिर कोई परेशानी हो तो क्रोध आना स्वाभाविक है। क्रोध का निर्माण आस पास की परिस्थितयों के कारण होता है। अब उन परिस्थितयों को बदला नहीं जा सकता और यदि बदला जा सके तो इसके लिए प्रयत्न करना होगा। इसलिए अध्यात्मिक साधनों का लक्ष्य शोक या रोग मिटाना नहीं है, अपितु ऐसी स्थिति प्राप्त कर लेना, जिसको बड़े से बड़े दुख भी विचलित ना कर पाए। इसलिए हमें अपने मन को ऐसा बनाना पड़ेगा, जिससे परेशानियों का प्रभाव मन पर ना पड़े। हम हमेशा प्रसन्न और निश्चिंत रह सकें। इस स्थिति को प्राप्त कर लेना ही योग है। चित्तवृत्ति के निरोध का यही परम परिणाम है कि वहां स्थित होने के बाद ज्ञानी दुख से विचलित नहीं होते और इस स्थिति से बड़ा लाभ दूसरा कुछ नहीं होता है। इस अवस्था में स्थित होकर उस आत्यंतिक सुख का अनुभव करते हैं जो इंद्रगम्य नहीं है। केवल बुद्धि से उसे जाना जा सकता है, उसका अनुभव किया जा सकता है। इस प्रकार यह स्थिति केवल दुख की निवृत्ति रूप नहीं है। यदि आप क्रोध को काबू करना चाहते हैं तो अपने मन को सुदृढ़ बनाना पड़ेगा।
सर्वप्रथम एक आदत अपना लें- बोलने से पहले सोचें, गुस्से में व्यक्ति हमेशा उन शब्दों को चुनेगा और बोलेगा, जो दूसरे को चुभे, परंतु ऐसा करते समय भूल जाता है कि जब क्रोध की अवस्था समाप्त हो जाती है तो ये चुभे हुए शब्द तीर की भांति सीने में गढ़ जाते हैं जो आगे दूसरे व्यक्ति में क्रोध का रोपण करते हैं। वो ही क्रोध फिर कभी ना कभी मौका पाकर अवश्य निकलता है। इसलिए इस चेन को रोकने के लिए आवश्यक है कि क्रोध में भी संयम बनाए रखें। कभी भी क्रोधित अवस्था में कोई भी बात ना करें। अपने विचार या क्रोध तब दर्शाएं, जब आप संयमित अवस्था में हों। जब भी क्रोधित हों तो अपने क्रोध कि उर्जा को किसी शारीरिक व्यायाम या फिर शारीरिक कार्य द्वारा जैसे कि बागवानी कर के या फिर घर की सफाई कर के अथवा उस स्थान से हट कर किसी बाज़ार मे चहलकदमी कर ले जिस से ध्यान भी बटेगा और मन शांत भी हो जायेगा। कोई कोई तो कुछ देर बगीचे मे बैठ कर बच्चो को देख कर संयमित हो जाते हैं। यदि कुछ ना हो सके तो किसी ग्रंथ का पाठ करना आरंभ कर लेना चाहिए इससे उचित मार्गदर्शन का लाभ भी मिलेगा। इस बीच में आप अपनी समस्या को पहचानें- इससे आपका क्रोध काफी हद तक संभल जाएगा। याद रखिये कि किसी भी समस्या को पहचान लेना आधी लड़ाई जीतने के बराबर होता है। जब आप समस्या को पहचान लेंगे तो स्वतः ही समाधान का कोई ना कोई रास्ता निकल आएगा। हमेशा इस बात को याद रखिये कि क्रोध किसी समस्या का समाधान नहीं अपितु क्रोध तो आग में घी का काम करता है।
माफी एक शक्तिशाली उपकरण है। यदि आप क्रोध और अन्य नकारात्मक भावनाओं को अपने विचारों में आने की अनुमति देते हैं, तो आप अपने आपको अपनी खुद की कड़वाहट या अन्याय की भावना द्वारा निगल सकते हैं। यदि आप किसी को माफ कर सकते हैं तो आप अपने लिए तो अच्छा करते ही हैं अपितु दूसरे व्यक्ति के लिए भी उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। हर कोई आप के अनुरूप ही व्यवहार करें – ऐसा तो हो नहीं सकता। हम अपने विचार के फ्रेम में दूसरे व्यक्तियों के स्वभाव को रखते हैं और जब वो फिट नहीं बैठता तो क्षुब्ध हो जाते हैं। इसके अलावा किसी भी धार्मिक ग्रंथ से यदि अपनी समस्या का समाधान ढूँढे तो अवश्य मिलेगा। यदि आप ऊपर बताए गए मार्ग पर चलें तो अवश्य लाभ होगा। इसके साथ यदि आप सुबह उठकर शुद्ध मन से पद्मासाना या फिर सिद्धासन में बैठकर शांत मुद्रा में ध्यान लगाएं तो पाएंगे कि आपका जीवन के प्रति बड़ा ही सरल नज़रिया होता जा रहा है। मंत्रों में बड़ी शक्ति होती है। क्रोध शांति का ये मंत्र आपको अवश्य लाभ प्रदान करेगा।
ओम शांते प्रशान्ते मॅम क्रोध पश् नीन स्वाहा

जाने पुखराज के ज्योतिष्य फायदे......

नाम – ‘सैफायर’ शब्द ग्रीक भाषा के ‘सैफायरस‘ से आया है, जिसका अर्थ नीला पत्थर होता है। जानकारी के अनुसार सैफायर लाल रंग को छोड़कर अन्य बहुत से रंगों में उपलब्ध है। इस रत्न की पीले रंग में उपलब्धता को पुखराज रत्न के नाम से जाना जाता है। इसका ज्योतिष में बहुत अधिक महत्व है। इसकी कीमत आकार, रंग एवं स्पष्टता के आधार पर निर्धारित की जाती है।
येल्लो सैफायर का भारतीय नाम – पुखराज
गठन – इन रत्नों का गठन मोटे तौर पर कोरंडम खनिज से होता है, जो एल्यूमिनियम ऑक्साइड है। इसके अलावा कोरंडम में लोहे, टाइटेनियम, क्रोमियम, तांबा या मैग्नीशियम तत्वों की मौजूदगी क्रमशः नीला, पीला, बैंगनी, नारंगी या हरा रंग प्रदान करती है।
स्रोत – हरित पीला सैफायर क्वींसलैंड एवं न्यू साउथ वेल्स में पाया जाता है। इसी तरह के रत्न थाइलैंड में भी पाए जाते हैं। शुद्घ पुखराज रत्न श्रीलंका, मोंटाना यूएसए एवं पूर्व अफ्रीका में पाया जाता है।
रंग उपलब्धता – इस रत्न का सबसे उत्तम रंग नींबू सा पीला रंग माना जाता है। हालांकि, यह रत्न सुनहरे पीले से लेकर गहरे पीले, नारंगी, हलके हरे, रंगरहित एवं सफेद रंग में उपलब्ध है।
गुण -जानकारी मुताबिक अच्छी गुणवत्ता वाला सैफायर कांच की तरह चमकता है।
ज्योतिषीय संबंध – वैदिक ज्योतिष में पुखराज रत्न अपना अहम स्थान रखता है। माना जाता है कि यह रत्न गुरू ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। सकारात्मक ग्रहों में शामिल गुरू महाराजा वित्तीय मुश्किलों, संघर्षों एवं अन्य मामलों को खत्म करने में अहम भूमिका निभाता है।
राशि – धनु, मकर । ग्रह – गुरू । दिन – गुरूवार ।
फायदे – पुखराज रत्न पहनने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं।
अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी संपत्ति, मान सम्मान तथा प्रसद्घि मिलती है।
शिक्षा के मामले में सरलता रहेगी एवं उच्च शिक्षा के लिए राह खुलेगी।
समाज कल्याण में रुचि बढ़ेगी एवं आध्यात्मिक ज्ञान में वृद्घि होगी।
दस्त, जठरशोथ, अल्सर, गठिया, पीलिया, अनिद्रा, हृदय की समस्याओं, नपुंसकता, वात रोग, गठिया, घुटनों व जोड़ों के दर्द आदि को दूर कर राहत प्रदान करेगा।
संतोष की भावना को प्रबलता प्रदान करता है।
काल्पनिक तथ्य – १९वीं शताब्दी तक सैफायर को ओरिएंटल टोपाज के नाम से जाना जाता था। आज भी पुखराज के वैकल्पिक रूप में थोड़े कम कीमती एवं सुनहरे टोपाज पहनने की सलाह दी जाती है क्योंकि पुखराज काफी महंगा होता है। टोपाज भी सैफायर की तरफ अलग अलग रंगों में उपलब्ध है।
बहरहाल, किसी भी रत्न को धारण करने से पूर्व अपनी कुंडली किसी ज्योतिषी को दिखाएं तथा अपने एवं कुंडली के अनुकूल रत्न को धारण करें। यहां तक कि पुखराज को एक अपेक्षाकृत सुरक्षित रत्न माना जाता है। लेकिन फिर भी इस रत्न को धारण करने से पूर्व अपनी जन्म कुंडली का ज्योतिषीय अध्ययन जरूर करवाएं अन्यथा इस रत्न का नकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है। अगर गुरू मकर राशि में है तो जातक पुखराज पहनना चाहिए|
अधिक जानकारी हेतु आप पं.प्रिया शरण त्रिपाठी जी से संपर्क कर सकते है......

मंगल ग्रह को मंगलवार का ग्रह क्यूँ माना गया है- ज्योतिष्य तथ्य

सप्ताह का दूसरा दिन मंगलवार है, जो अग्नि तत्व के ग्रह मंगल के साथ जुड़ा हुआ है। इस ग्रह का नाम भी मंगलवार के प्रथम तीन अक्षरों यानी मंगल नाम से आता है। मंगलवार के दिन लोग लाल रंग के कपड़े पहनते हैं एवं लाल रंग की वस्तुआें का दान करते हैं, क्योंकि मंगल ग्रह का लाल रंग से जुड़ाव है। इसके अलावा मंगल को लाल ग्रह भी कहा जाता है।
इस ग्रह एवं दिन के साथ ज्योतिषीय संबंध –
दिन का रंग – लाल, मारून, भूरा,
प्रतिनिधित्व अंक – 9
दिशा – उत्तर पूर्व
रत्न – मूंगा (रेड काॅरल)
धातु – तांबा (काॅपर)
प्रतिनिधित्व देवता – भगवान श्री हनुमान एवं भगवान कर्तिकेय
मंगल ग्रह को आम तौर पर कुज, अंगारक एवं भूमिपुत्र के नाम से भी पुकारा जाता है। भूमि की कोख के जन्म लेने के कारण मंगल को भूमि पुत्र पुकारा जाता है। इतना ही नहीं, पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, जिस वजह से इसे लाल ग्रह के नाम से भी जाना जाता है। गणितज्‍योतिष के अनुसार, मंगल ग्रह आयरन ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण अधिक लाल नजर आता है। ज्योतिष के अनुसार, यह लाल रंग का ग्रह राशिचक्र की पहली एवं आठवीं राशि पर शासन करता है। पुराण के अनुसार मंगल एक युद्ध का देवता है एवं आकाशीय सेना का नेतृत्व करता है। इसलिए, मंगल हृदय से सूरवीर है।
इस ग्रह के साथ जुड़ी कुछ विशेषताएं –
शारीरिक गतिविधि एवं खेल, हृष्ट-पुष्ट समर्थ्य, सहनशक्ति
साफदिल, स्पष्टवादी एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण
निर्भयता, बहादुरी और साहस
क्रोध, प्रबलता और आक्रामकता
तानाशाही, प्रभाव सत्ता
लड़ाकूपन,चिड़चिड़ापन और बेतकल्लुफ़ी
लालसा, चिड़चिड़ापन और आतुरता
पुरुषत्व, युवा, ऊर्जा और शक्ति
उत्साह, सहजता और गति
जुनून, चपलता, ड्राइव और आग
मंगल ग्रह, ब्रह्माण्ड के आंतरिक बल एवं कच्ची ऊर्जा का केंद्र है। मंगल उच्च पारदर्शक कार्रवाई के साथ साथ सभी प्रकार की कार्रवाईयों के लिए समर्थन देता है। मंगल प्रतिक्रिया करने की तुलना में क्रिया अधिक करता है। मंगल एक एेसा ग्रह है, जो आपको लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है, जैसे कि सुबह जल्दी उठने, समय पर काम पर पहुंचने, खेल गतिविधियों में विजेता बनने हेतु कड़ी मेहनत करने, सभी तरह की गतिविधियों में सक्रिय होने, जहां आक्रामकता, चपलता और शारीरिक प्रयासों की जरूरत होती है।
ज्योतिष के अनुसार, मंगल जातकों को उनकी इच्छाएं पूर्ण करने के लिए अनिवार्य उत्साह, जोश एवं पूर्ण पुरुषत्व प्रदान करता है। साथ ही साथ, परिकल्पनाअों को जमीन स्तर पर लागू करने हेतु मदद करता है। यदि आपकी जन्म कुंडली में मंगल अच्छी स्थिति में है, तो यह आपको इस गला काट दौड़ वाले युग में अपनी क्षमताएं साबित करने के लिए प्रोत्साहन देगा।
सामान्य तौर पर, मंगल खेल गतिविधियों, सशस्त्र बलों, रक्षा और सुरक्षा कर्मियों, पुलिस बल, कमांडरों, लड़ाकों, सर्जनों, इंजीनियरों, अचल संपत्ति एजेंटों, भूमि दलालों, अंगरक्षक, रसोइयों, भाई, छोटे भाई बहन, किलों, गोला बारूद/हथियार भंडारणों, कक्षों, युद्ध टैंक, खेल वाहन, रक्त और रक्त वाहिकाओं, ज्वालामुखी, विस्फोटक पदार्थों, विवाद, झगड़े, विनाश, हिंसा, कोलाहल, अशांति, संघर्ष, मसाले, प्रोटीन, मिट्टी, लाल संगमरमर, प्रोटीन, कृषि, फार्म हाउस के साथ साथ विविध चीजों का प्रतिनिधित्व करता है। यदि मंगल जातक की जन्म कुंडली में अच्छी जगह स्थित है तो जातक काफी उत्साहित, पहल करने हेतु साहसी, हिम्मती, जुनूनी, स्वतंत्र, गुस्सैल, प्रभुत्ववादी, खेल कूद प्रिय, प्रतियोगी, नैसर्गिक, अन्य गुणों का स्वामी होगा, जो जीवन की महत्वाकांक्षाआें और लक्ष्यों को हासिल करने में साहयता करेंगे।
मंगल जातकों के विवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि मंगल जातक की कुंडली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें स्थान में है, तो जातक मंगल दोष के प्रभावाधीन है, जो उसको मांगलिक बनाता है।
एक अपेक्षाकृत तेजी के साथ आगे बढ़ने वाला ग्रह मंगल एक राशि में लगभग 45 दिन तक पारगमन करता है एवं मकर मंगल की उच्च राशि जबकि मेष मूलत्रिकोण स्थान है। हालांकि, वृश्चिक में मंगल स्वगृही होता है। मंगल अग्नि तत्व ग्रह है। यदि जातकों की जन्म कुंडली में मंगल अच्छी स्थिति में नहीं है, तो जातकों को निरंतर हादसों, चोटों, झगड़ों, अपने परिचितों से गलतफहमियों के कारण मतभेदों, अत्यधिक उत्साह व थकावट, आग से हानि आदि का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, इस बात को लेकर अधिक घबराने की जरूरत नहीं, क्योंकि ज्योतिष ने मानव जगत की हर समस्या के लिए समाधान खोज रखे हैं।
मंगल की उग्रता को कम करने के लिए सुझाव
मंगलवार को भगवान हनुमान के मंदिर जाएं। मंगलवार को पूजा के दौरान लाल रंग के कपड़े पहनें।
श्री हनुमान चालीसा या बजरंग बाण स्तोत्रा का पाठ कर सकते हैं।
रेड हिबिस्कुस के फूल एवं खारेक भगवान हनुमान जी को अर्पित करें।
मंगलवार को पीपल के पेड़ को जल अर्पित करें।
त्योहारों के दिनों में गरीब बच्चों को भूरे रंग की मिठार्इ एवं पटाखे इत्यादि भेंट करें।
निर्धन युवाआें को कपड़े दान करें।
जरूरतमंद लोगों को तांबे की वस्तुएं दान करें।

जन्मकुंडली में बारह भाव मानव जीवन के विभिन्न अवयवों को दर्शाते हैं

किसी भाव के फल का विचार करते समय सर्वप्रथम उस भाव और भावेश के बल का आकलन किया जाता है। जिस भाव में उसके स्वामी या शुभ ग्रह की स्थिति हो, या उनकी दृष्टि पड़ती हो, तब वह भाव बलवान होकर शुभ फलदायक होता है। इसके विपरीत स्थिति में वह भाव निर्बल होकर शुभ फल नहीं देता है। जब भाव का स्वामी स्वोच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित होकर शुभ भावाधिपतियों से संबंध बनाता है तब वह बलवान होता है और अपने स्वामित्व भाव का उत्तम फल देता है। भावेश का बली होना भाव की शुभता बढ़ाता है। भाव व भावेश के साथ ही उस भाव के ‘नित्य कारक’ ग्रह का भी आंकलन आवश्यक होता है। ‘भाव कारक’, ‘वस्तु कारक’, ‘योग कारक’ व ‘जैमिनी कारक’ सर्वथा भिन्न हैं। महर्षि पाराशर ने प्रत्येक भाव का एक ‘नित्य कारक’ निर्धारित किया था - सूर्यो गुरुः कुजः सोमो गुरुभौमः सितः शनिः। गुरुंचन्द्रसुतो जीवो मन्द´च भावकारकाः।। परंतु कालांतर में रचित ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित ‘नित्य भावकारक’ इस प्रकार हैं- प्रथम भाव -सूर्य, द्वितीय भाव-बृहस्पति, तृतीय भाव-मंगल, चतुर्थ भाव - चंद्र व बुध, पंचम भाव -बृहस्पति, षष्ठ भाव -शनि व मंगल, सप्तम भाव - शुक्र, अष्टम भाव - शनि, नवम भाव - सूर्य व बृहस्पति, दशम भाव - सूर्य, बुध, बृहस्पति व शनि, एकादश भाव - बृहस्पति, द्वादश भाव - शनि। फलदीपिका ग्रंथ के अनुसार- तस्मिन भावे कारके भावनाथे वीर्योपेते तस्य भावस्य सौरव्यम्। अर्थात्, ”जब भाव, भावेश और कारक तीनों बलवान हों तब उस भाव का अच्छा फल व्यक्ति को प्राप्त होता है।“ ‘भाव प्रकाश’ ग्रंथ के अनुसार- भवन्ति भावभावेशकारका बलसंयुताः। तदा पूर्ण फलं द्वाभ्याम एकेनाल्प फलं वदेत्।। अर्थात् ” यदि भाव, भाव का स्वामी तथा भाव का कारक तीनों बलवान हों तब उस भाव का पूर्ण फल कहना चाहिए, और यदि तीन में से दो बलवान हों तो आधा फल कहना चाहिए, तथा केवल एक ही बलवान होने पर बहुत थोड़ा फल होता है। ‘जातक पारिजात’ ग्रंथ ने प्रचलित भाव कारकों का विवरण देने के बाद अगले श्लोक में कहा है कि यदि शुक्र, बुध और बृहस्पति लग्न से क्रमशः सप्तम, चतुर्थ और पंचम भाव में हानिप्रद होते हैं तथा शनि अष्टम भाव में शुभ फल करता है। ज्ञातव्य है कि उपरोक्त ग्रह इन भावों के कारक माने गये हैं। उपरोक्त शलोक कालांतर में ”कारको भाव नाशाय“ नामक लोकोक्ति के रूप में प्रचलित हो गया। इसी आधार पर बृहस्पति का पंचम भाव में होना पुत्र अभाव का सूचक, शुक्र की सप्तम भाव में स्थिति वैवाहिक सुख का अभाव सूचक, तथा छोटे भाई के कारक मंगल ग्रह का तृतीय भाव में सिथति छोटे भाई के अभाव का सूचक कहा जाता है। अपवाह स्वरूप केवल शनि ग्रह का अष्टम (आयु) में होना दीर्घायु देता है। ‘कारको भाव नाशाय’ के पीछे जो हेतु है उस पर विचार करने से ज्ञात होता है कि जब किसी भाव का कारक उसी भाव में स्थित होता है तब साझे विषय के दो द्योतक (भाव व कारक) इकट्ठे होंगे और उन पर किसी पापी ग्रह का प्रभाव होने पर उनके साझे तथ्य की हानि होगी। वहीं शनि ग्रह की अष्टम आयु) भाव में स्थिति अपनी धीमी चाल से आयु को बढ़ायेगा। अनुभव में भी आता है कि जब भाव में उसका कारक शत्रु राशि में या अशुभ प्रभावी होने पर ही उस भाव के फल में कमी आती है। परंतु जब कोई ग्रह उस भाव में स्थित हो जिसका वह कारक है और वह स्वराशि अथवा मित्र राशि में स्थित हो वा शुभ दृष्ट हो तब अवश्य ही भाव फल की वृद्धि होती है। जैसे तृतीय भाव में मंगल यदि स्वराशि या मित्र राशि में हो और शुभ दृष्ट हो तो जातक का भाई अवश्य होता है। इसी प्रकार चतुर्थ भाव में चंद्रमा शुभ राशि में शुभ दृष्ट होने पर माता दीर्घजीवी होती है तथा सप्तम भाव में शुभ राशि स्थित व दृष्ट शुक्र वैवाहिक सुख देता है।

सावन मास भगवान शिव को क्यूँ प्रिय है

पूरे देश में सावन के महीने को एक त्योहार की तरह मनाया गया है और इस परंपरा को लोग सदियों से निभाते चले आ रहे हैं. भगवान शिव की पूजा करने का सबसे उत्तम महीना होता है सावन लेकिन क्या आप जानते हैं कि सावन के महीने का इतना महत्व क्यों है और भगवान शिव को यह महीना क्यों प्रिय है?
सावन मास का महत्व...
श्रावण मास हिंदी कैलेंडर में पांचवें स्थान पर आता हैं और इस ऋतु में वर्षा का प्रारंभ होता हैं. शिव जो को श्रावण का देवता कहा जाता हैं उन्हें इस माह में भिन्न-भिन्न तरीकों से पूजा जाता हैं. पूरे माह धार्मिक उत्सव होते हैं और विशेष तौर पर सावन सोमवार को पूजा जाता हैं. भारत देश में पूरे उत्साह के साथ सावन महोत्सव मनाया जाता हैं.
भगवान शिव को क्यों प्रिय है सावन का महीना?
कहा जाता हैं सावन भगवान शिव का अति प्रिय महीना होता हैं. इसके पीछे की मान्यता यह हैं कि दक्ष पुत्री माता सती ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक श्रापित जीवन जीया. उसके बाद उन्होंने हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया. पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पूरे सावन महीने में कठोरतप किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की. अपनी भार्या से पुन: मिलाप के कारण भगवान शिव को श्रावण का यह महीना अत्यंत प्रिय हैं. यही कारण है कि इस महीने कुमारी कन्या अच्छे वर के लिए शिव जी से प्रार्थना करती हैं.
मान्यता हैं कि सावन के महीने में भगवान शिव ने धरती पर आकार अपने ससुराल में विचरण किया था जहां अभिषेक कर उनका स्वागत हुआ था इसलिए इस माह में अभिषेक का महत्व बताया गया हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार
धार्मिक मान्यतानुसार सावन मास में ही समुद्र मंथन हुआ था जिसमे निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया जिस कारण उन्हें नीलकंठ का नाम मिला और इस प्रकार उन्होंने से सृष्टि को इस विष से बचाया. इसके बाद सभी देवताओं ने उन पर जल डाला था इसी कारण शिव अभिषेक में जल का विशेष स्थान हैं.
वर्षा ऋतु के चौमासा में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और इस वक्त पूरी सृष्टि भगवान शिव के अधीन हो जाती हैं. अत: चौमासा में भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु मनुष्य जाति कई प्रकार के धार्मिक कार्य, दान, उपवास करती हैं.

श्रीदुर्गासप्तशती महायज्ञ

भगवती मां दुर्गाजी की प्रसन्नता के लिए जो अनुष्ठान किये जाते हैं उनमें दुर्गा सप्तशती का अनुष्ठान विशेष कल्याणकारी माना गया है। इस अनुष्ठान को ही शक्ति साधना भी कहा जाता है। शक्ति मानव के दैनन्दिन व्यावहारिक जीवन की आपदाओं का निवारण कर ज्ञान, बल, क्रिया शक्ति आदि प्रदान कर उसकी धर्म-अर्थ काममूलक इच्छाओं को पूर्ण करती है एवं अंत में आलौकिक परमानंद का अधिकारी बनाकर उसे मोक्ष प्रदान करती है। दुर्गा सप्तशती एक तांत्रिक पुस्तक होने का गौरव भी प्राप्त करती है। भगवती शक्ति एक होकर भी लोक कल्याण के लिए अनेक रूपों को धारण करती है। श्ेवतांबर उपनिषद के अनुसार यही आद्या शक्ति त्रिशक्ति अर्थात महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती के रूप में प्रकट होती है। इस प्रकार पराशक्ति त्रिशक्ति, नवदुर्गा, दश महाविद्या और ऐसे ही अनंत नामों से परम पूज्य है। श्री दुर्गा सप्तशती नारायणावतार श्री व्यासजी द्वारा रचित महा पुराणों में मार्कण्डेयपुराण से ली गयी है। इसम सात सौ पद्यों का समावेश होने के कारण इसे सप्तशती का नाम दिया गया है। तंत्र शास्त्रों में इसका सर्वाधिक महत्व प्रतिपादित है और तांत्रिक प्रक्रियाओं का इसके पाठ में बहुधा उपयोग होता आया है। पूरे दुर्गा सप्तशती में 360 शक्तियों का वर्णन है। इस पुस्तक में तेरह अध्याय हैं। शास्त्रों के अनुसार शक्ति पूजन के साथ भैरव पूजन भी अनिवार्य माना गया है। अतः अष्टोत्तरशतनाम रूप बटुक भैरव की नामावली का पाठ भी दुर्गासप्तशती के अंगों में जोड़ दिया जाता है। इसका प्रयोग तीन प्रकार से होता है। 1. नवार्ण मंत्र के जप से पहले भैरवो भूतनाथश्च से प्रभविष्णुरितीवरितक या नमोऽत्त नामबली या भैरवजी के मूल मंत्र का 108 बार जप। 2. प्रत्येक चरित्र के आद्यान्त में 1-1 पाठ। 3. प्रत्येक उवाचमंत्र के आस-पास संपुट देकर पाठ। नैवेद्य का प्रयोग अपनी कामनापूर्ति हेतु दैनिक पूजा में नित्य किया जा सकता है। यदि मां दुर्गाजी की प्रतिमा कांसे की हो तो विशेष फलदायिनी होती है। श्री दुर्गासप्तशती का अनुष्ठान कैसे करें। 1. कलश स्थापना 2. गौरी गणेश पूजन 3. नवग्रह पूजन 4. षोडश मातृकाओं का पूजन 5. कुल देवी का पूजन 6. मां दुर्गा जी का पूजन निम्न प्रकार से करें। आवाहन : आवाहनार्थे पुष्पांजली सर्मपयामि। आसन : आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। पाद : पाद्यर्यो : पाद्य समर्पयामि। अर्घ्य : हस्तयो : अर्घ्य स्नानः । आचमन : आचमन समर्पयामि। स्नान : स्नानादि जलं समर्पयामि। स्नानांग : आचमन : स्नानन्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि। दुधि स्नान : दुग्ध स्नान समर्पयामि। दहि स्नान : दधि स्नानं समर्पयामि। घृत स्नान : घृतस्नानं समर्पयामि। शहद स्नान : मधु स्नानं सर्मपयामि। शर्करा स्नान : शर्करा स्नानं समर्पयामि। पंचामृत स्नान : पंचामृत स्नानं समर्पयामि। गन्धोदक स्नान : गन्धोदक स्नानं समर्पयामि शुद्धोदक स्नान : शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि वस्त्र : वस्त्रं समर्पयामि सौभाग्य सूत्र : सौभाग्य सूत्रं समर्पयामि चदं न : चदं न ं समपर्य ामि हरिद्रा : हरिद्रा समर्पयामि कुंकुम : कुंकुम समर्पयामि आभूषण : आभूषणम् समर्पयामि पुष्प एवं पुष्प माला : पुष्प एवं पुष्पमाला समर्पयामि फल : फलं समर्पयामि भोग (मेवा) : भोगं समर्पयामि मिष्ठान : मिष्ठानं समर्पयामि धूप : धूपं समर्पयामि। दीप : दीपं दर्शयामि। नैवेद्य : नैवेद्यं निवेदयामि। ताम्बूल : ताम्बूलं समर्पयामि। भैरवजी का पूजन करें इसके बाद कवच, अर्गला, कीलक का पाठ करें। यदि हो सके तो देव्यऽथर्वशीर्ष, दुर्गा की बत्तीस नामवली एवं कुंजिकस्तोत्र का पाठ करें। नवार्ण मंत्र : ''ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै'' का जप एक माला करें एवं रात्रि सूक्त का पाठ करने के बाद श्री दुर्गा सप्तशती का प्रथम अध्याय से पाठ शुरू कर तेरह अध्याय का पाठ करें। पाठ करने के बाद देवी सूक्त एवं नर्वाण जप एवं देवी रहस्य का पाठ करें। इसके बाद क्षमा प्रार्थना फिर आरती करें। पाठ प्रारंभ करने से पहले संकल्प अवश्य हो। पाठ किस प्रयोजन के लिए कर रहे हैं यह विनियोग में स्पष्ट करें। दुर्गासप्तशती के पाठ में ध्यान देने योग्य कुछ बातें 1. दुर्गा सप्तशती के किसी भी चरित्र का आधा पाठ ना करें एवं न कोई वाक्य छोड़े। 2. पाठ को मन ही मन में करना निषेध माना गया है। अतः मंद स्वर में समान रूप से पाठ करें। 3. पाठ केवल पुस्तक से करें यदि कंठस्थ हो तो बिना पुस्तक के भी कर सकते हैं। 4. पुस्तक को चौकी पर रख कर पाठ करें। हाथ में ले कर पाठ करने से आधा फल प्राप्त होता है। 5. पाठ के समाप्त होने पर बालाओं व ब्राह्मण को भोजन करवाएं। अभिचार कर्म में नर्वाण मंत्र का प्रयोग 1. मारण : ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै देवदत्त रं रं खे खे मारय मारय रं रं शीघ्र भस्मी कुरू कुरू स्वाहा। 2. मोहन : क्लीं क्लीं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्तं क्लीं क्लीं मोहन कुरू कुरू क्लीं क्लीं स्वाहा॥ 3. स्तम्भन : ऊँ ठं ठं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्तं ह्रीं वाचं मुखं पदं स्तम्भय ह्रीं जिहवां कीलय कीलय ह्रीं बुद्धि विनाशय -विनाशय ह्रीं। ठं ठं स्वाहा॥ 4. आकर्षण : ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदतं यं यं शीघ्रमार्कषय आकर्षय स्वाहा॥ 5. उच्चाटन : ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्त फट् उच्चाटन कुरू स्वाहा। 6. वशीकरण : ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्तं वषट् में वश्य कुरू स्वाहा। नोट : मंत्र में जहां देवदत्तं शब्द आया है वहां संबंधित व्यक्ति का नाम लेना चाहिए।

Friday 19 August 2016

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Thursday 18 August 2016

Knowledge,Education and Astrological impacts

All education should primarily lead to upliftment of human beings. Education stems from two basic roots namely (a) Attainment of knowledge and (b) Proper utilization of that knowledge. The former again depends on (i) The ability of the individual- which in turn rests upon the mental faculty he/she possesses at birth and (ii) The interest one develops during the course of his journey in life. The latter could again be either transient or progressive and lasting. Somewhere hidden in ones interest being constructive and long lasting is an inert force known as Talent. It would immediately be apparent that this force is so strong and benign that when it is exhibited and harmonized in a practical mode, optimal contentment and satisfaction is reached. This is known as ‘Manushya Nama Anandam’ and forms the first of the eleven Anandams that lead to Bramhanandam. Knowledge by itself may be good or bad. This very function of relativity in its applicability to living and non- living beings makes it so vast that one rightly feels its complete attainment is a stupendous task. This inherent quality in acquiring knowledge makes the fulfillment of (b) i.e. the proper utilization of knowledge a difficult task indeed. Surely, the human brain is roaming in an ocean of knowledge without knowing where the destination is. This process eats up a high percentage of the human resources that one possesses, and leaves him/her null and void at the end of the day. Should then we not acquire any knowledge? This unfortunately is out of people's scope, as the human mind even in its most deformed state at birth, as per medical terms, thirsts for the attainment of that complete knowledge which is so difficult to attain. The MIND is known as MANN in Sanskrit, which means Ego. The reverse of Mann is Namm which term is a yoga used in Hindu rituals to automatically remove that stressful ego and enable us to tread a more constructive journey in life. This realization of inability to attainment of total knowledge has dawned on the Human race, though belatedly and given rise to what is today so explosively termed as Expertise. This term is just like the Wolf that termed the Grapes as Sour, as it was not able to attain them—in this case the attainment of total knowledge. When viewed from Man made functionaries, Expertise may seem to a certain extent appropriate; but not so if applied to Human Beings, which works holistically and must be so analysed. No wonder Expertise in a particular medical field has left the Medical doctors roaming wild and leaving the poor patient stranded not knowing where he has to go to find the real cause of his distress within his system. Acquirement of knowledge falls into two categories, namely Sruthi and Smrithi. While Sruthi literally means, “what is heard”, Smrithi denotes “what is remembered”. The laws and byelaws for social upliftment are Smrithis. The principals enumerated by Parasara, Manu, Bhaskara and Jaimini are some Smrithis which form the basis to formulate fruitful and constructive modes to better living. It may be mentioned that every thing that is heard need not necessarily be remembered. In fact only those items that have a deep internal effect upon the individual is carried to the Human memory plane. All students hear from the same teacher; but some remember more than the others! Obviously, the inert field of talent one possesses has a large part to play in this vital function. On the other hand the sound vibrations that one hears, affect the system directly and cause divertive motions within the human body. These may be negative, transient or positive. Their reaction on the human breathing system is extensive and is many times a cause for improper and unstable functioning of an individual. The harmonization of Sruthi and Smrithi leads to inner satisfaction and contentment and optimal utilization of human energy. The daily cycle of life is an apt exposition of the working of the human system, which had been so well propagated by our erstwhile SAGES. These are ‘Dwaitha’ by Madhwacharya, ‘Vishishta Adwaitha’ by Ramunaja and ‘Adwaitha’ by Shankara. When the Sun rises Dwaitha or duality comes into play. Each individual feels that the other is different to what he is and therefore the world is immersed into an ocean of competitiveness, selfishness and hatred. As the evening sets, the tired body seeks refuge but the Mind has yet not relented. The body is traveling through semi sleep or dream state. This may be termed as ‘Krishna Vishista Adwaitha’. In this period, the Mind wanders into the happenings of the day, tries to analyze it, relative to past conducts and in the process draws conclusions which may elate or depress one's feelings. In both cases it leads to large-scale loss of ones energy resources. The Mind thereby also tires and seeks revitalization in deep sleep. The human being is running through a state known as ‘Adwaitha’- the feeling of oneness within oneself and with the world. In this state the human body revives its lost energy, conserves and optimizes utilization of its energy resources. Clearly good sleep is an indication of vitality in health. From this state, one again reaches a semi wake or dream position. In this state the body with its high available energy resources feels confident to take up any task whatsoever. This can be termed as ‘Shukla Vishishta Adwaitha’. The dreams during this state are said to come true and verily so, as the body has emerged from the most optimal stage of available energy resources. Ones it wakes up it again falls into the Dwaitha or Duality state and the cycle continues. This cycle clearly indicates the need for proper remodulation of energy resources for integration of the Jivathma and Parmathma or in other words attaining lasting Bliss. The above elaborate exposition of acquirement of knowledge, its proper utilization keeping in view the ultimate constructive target of attainment of steadfast happiness - known as Education and the process of remodulation of available Human resources indicated by ones horoscope, to attain the same, is to enable stringent astrologers, the path they should adopt to guide the public in this most important sphere to harmonious living.

राशिफल 19 अगस्त 2016



दैनिक राशिफल 19 अगस्त 2016
मेष -
सुबह से ही मन खराब हो सकता है...
दिनभर कार्य का बोझ तनाव देगा...
तनाव से बचने हेतु...
अष्टम शनि की शांति हेतु मंत्रजाप....
दान तथा व्रत करें....
वृषभ -
आज आप कार्य में व्यस्त रहेंगे ...
व्यवसाय के क्षेत्र में सुरक्षा का ध्यान रखें...
चंद्रमा के मंत्रों का जाप...
सफेद चीजों का दान...
ध्यान आदि लगायें...
मिथुन -
आज स्वास्थ्य के नजरीये से दिन ठीक नहीं बितेगा...
ब्लडप्रेशर के कारण कार्य समय पर नहीं होगा....
उपाय -
राहु के मंत्रों का जाप कर दिन की शुरूआत करें...
सूक्ष्म जीवों की सेवा करें...
कर्क -
ऋण मुक्ति के प्रयासों में सफलता...
प्रतियोगिता परीक्षा या साक्षात्कार में मनचाही सफलता...
बौद्धिक कुषलता से सम्मान की प्राप्ति...
विवाद से धन हानि....
शनि के उपाय -
1.‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें..
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
3.उड़द या तिल दान करें,
सिंह -
आज रिश्ता तय होने जैसे कोई शुभ समाचार प्राप्त होंगे...
परिवार में प्रसन्नता का माहौल...
आॅख में इंफेक्षन...
मंगल के दोषों की निवृत्ति के लिए -
1.ऊॅ अं अंगारकाय नमः का एक माला जाप करें..
2.हनुमानजी की उपासना करें..
3.मसूर की दाल, गुड दान करें...
कन्या -
नये प्रोजेक्ट में लीडरषीप की प्राप्ति....
कार्य व्यवस्थित तौर पर पूरा होगा...
संतान के अध्ययन की चिंता...
गुरू के उपाय-
1.ऊॅ गुं गुरूवे नमः का जाप करें...
2.मीठे पीले खाद्य पदार्थ का सेवन करें तथा दान करें...
3.साईजी के दर्षन करें...
तुला -
स्थान परिवर्तन के योग...
नवीन वाहन या वस्त्र की प्राप्ति...
घरेलू सुखों में वृद्धि....
लीवर में कष्ट...
चंद्रमा कृत दोषों की निवृत्ति के लिए -
1.ऊॅ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः का जाप करें...
2.दूध, चावल का दान करें...
3.श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
वृश्चिक -
कार्यक्षेत्र में अधिकार में वृद्धि....
सामाजिक दायरा में बढ़ोतरी...
ब्लडप्रेशर बढ़ सकता है...
सूर्य के उपाय -
1.प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प... शक्कर मिलाकर अध्र्य देते हुए ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें... सूर्य नमस्कार करें..
2.गुड़.. गेहू... दान करें..
धनु -
शिक्षा से संबंधित यात्रा में लाभ....
यात्रा के दौरान हाथ या कंधे में चोट...
मंगल के उपाय -
1.ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2.हनुमानजी की उपासना करें..
3.मसूर की दाल, गुड दान करें..
मकर -
लगन की थोड़ी सी कमी से सफलता प्राप्ति में चूक...
परिवार में तनाव का माहौल....
धन हानि से तनाव....
बृहस्पति के निम्न उपाय आजमायें -
1.ऊॅ गुरूवे नमः का जाप करें...
2.पीली वस्तुओं का दान करें...
3.गुरूजनों का आर्शीवाद लें..
कुंभ -
पारिवारिक उत्सव से शामिल होने हेतु छोटी यात्रा...
आज का दिन पारिवारिक सदस्यों के साथ होगा..
शुक्र जनित तनाव से निवारण के लिए -
1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2.माॅ महामाया के दर्शन करें...
3.चावल, दूध, दही का दान करें...
मीन -
संतान के स्वास्थ्य से कष्ट...
अध्ययन में बाधा से तनाव...
पड़ोसियों से विवाद....
चंद्रमा के उपाय करें-
1.ऊॅ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः का जाप करें...
2.दूध, चावल, का दान करें...
3.श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
4.रूद्राभिषेक करें...
ज्योतिषाचार्य पं.पी.एस.त्रिपाठी

Astro and Vastu combination for career growth

If Sun is placed appropriately in birth chart it indicates a person will be self – confi dent, kind hearted, sincere, fatherly, inspiring and motivating, encouraging people to meet their goals and will have leadership skills. Professions governed by Sun are– Administrator, Manager, Director, leader, celebrity, sports person, Government offi cer, interior decorator. Sun can be enhanced by performing following vastu remedies : Place a bamboo plant in East direction of drawing room. Display a rising Sun picture in the East direction of living room. Interior of east direction should be light weight. Good Sun leads to celebrity status and of orange hue. Moon : Moon acts as a “Mother” taking responsibility for a social environment of a place. A person who has favourable Moon in birth chart is open to others, tolerant, hospitable, nurturing, intuitive and empathetic and sensitive about the anxieties and problems of others. Professions indicated by Moon – Humanitarian workers, healers, nurses, counsellors, psychologists, social workers, child care, women – care activities, food and beverage business, water workers, irrigation, Sailor, fi sherman, importer – exporter of sea products and raising animals ( dairy). Moon can be enriched by performing following vastu remedies. • Place a Conch fi lled with water in the Northwest direction. • Display a Crystal Globe in the Northwest direction of Study or working table. • Place a bunch of pea-cock feathers in the Northwest direction. Mars : Mars is a warrior who feels proud to show courage and determination. Person whose Mars is good in birth chart is action oriented, enthusiastic, energetic, and ambitious and always ready to accept challenges. Professions indicated by Mars – Military offi cer, police, surgeons, estate agents, persons employed in mining, athletics and sports man. Mars can be balanced by performing following vastu remedies. • Display a red Phoenix in the South direction of Drawing room. • Decorate the South direction with your certifi cates and medals. • Avoid placing water feature in South direction. Mercury : Favourable Mercury in birth chart indicates person will have systematic approach, good in numerical skills like accounting, fi nance, measuring and surveying, writing. Occupations ralated to Mercury The use of advanced speech, speech therapist, publishing, editor, writer, entertainer, consultant, analyst, accountant, mathematician, good in communication or related fi elds like Call Center, Journalism, fi ction and non-fi ction writing, telecom, internet, digital networks, fi nancial controller, librarian, advertiser, skin care, youth –oriented program organizers and gardener. Remedies to enhance Mercury • Place a jade or basil plant in the Northeast direction of drawing room. • Keep the Northeast direction open or with very light furniture. • Avoid toilet in this direction. Jupiter : Jupiter or the Dev guru if favourable in birth chart makes you optimistic, accepting, truthful, and spiritual, giving you ability to handle stress in a balanced way, honouring the trust that people put in them, adheres to values in spite of diffi cult circumstances. Occupations related to Jupiter Judge, advisor, counsellor, psychologist, fi nancial advisor, social or charity worker, professor, educationalist, priest, human resources and employee development, consultant, studies in ancient traditions and spiritual nature. Jupiter can be enriched by following remedies : • Place a bowl fi lled with water and fresh yellow fl owers in North direction of drawing room. • Do not keep any iron or black shade item in the North direction of any of the room in house or offi ce. • Place your cash box in North direction. Venus : Venus is a planet of beauty, art and joy of life. A favourable Venus makes a person’s persona charismatic, a good host, good sense of art and culture, building relationship and networking, focus on harmony, highly diplomatic, skilled reader of people and situations, knows to enjoy pleasure and comfort. Occupations related to Venus Art, design, fashion, photography, textiles and fabrics, boutiques, spa, cosmetician, beauty products and services, gems, precious metals, fl orist, interior decorator, music, drama, all forms of entertainment, working with women and their associated affairs, sexual issues, fancy restaurants, sweets and desserts. Venus can be strengthened by following remedies : • Place an Amethyst crystal lotus in the Southeast direction of drawing room. • Place a crystal Sri yantra in a silver bowl in the Southeast direction of worship area (pooja). • Wear a rose quartz bracelet. • Place an artifi cial pomegranate in the dining area. Saturn : The positive Saturn in the birth chart indicates good stamina and endurance making the person hard working, who puts in the extra effort to make things right, follows traditions, knows the rule and abides by them. When Saturn is weak in the chart the person becomes unenthusiastic, depressed, low on intelligence, gloomy, poorly groomed, sluggish, follows orders to one’s detriment, displays lack of vitality, has a life fi lled with delays and losses, uses drugs or alcohol. Occupations related to Saturn Jobs entailing hard work or labour like places where one gets dirty or soiled, work in land development and agriculture, oil, gas, mining, minerals, geology, excavation, antiques, archaeology, museums, Saturn also governs professions related to monasteries, sanitariums, civil engineering, disaster relief, insurance sales, drug rehabilitation, animal care and prison work. Saturn can be made favourable by : • Place Metal furniture or metal decor in the West direction of your room. • Always help labourers, needy and handicapped and give them food on Saturday. • Feed wheat fl our to ants. • Keep mustard oil in an iron bowl and place it in the West direction of your store room. Rahu and Ketu or Dragon’s head and Dragon’s tail Rahu and Ketu are shadow planets they do not have their own identity. They indicate according to the associations of other planet or signifi cance of house where they are placed. Rahu : In general Rahu acts like Saturn. Rahu gives a person a vision to come up with innovative solutions to the problems in diffi cult times. If Rahu is positive in birth chart the person will be clever and will have technical brain. Occupations related to Rahu Technicians, technologists, pharmacist, bioenergy worker, secret service, magician and profession in foreign or exotic travel. Ketu : In general Ketu acts like Mars. Ketu indicates intuition, enlightenment (moksha), feel of inner silence, ignoring the material in favor of the spiritual. When Ketu is weak in a chart a person has low self image, full of doubts and fear, lets others take advantage of them, do not have any aim in life, hypersensitive, nervous and unreliable. Occupations related to Ketu Monk or nun, meditation or self – improvement guru, connection with mystical objects, alternative medicine practitioner, unique healing methods and deals in occult science. Rahu and Ketu can be made positive by • Display a painting or picture of fl ying birds in the Northwest direction of offi ce or drawing room. • Place green plants in the Northeast direction. • Place some magnets in a crystal bowl in the South west direction.