Wednesday 17 August 2016

खूनी दस्त का ज्योतिष्य दृष्टिकोण



रक्तयुक्त पेचिशः खूनी दस्त शरीर की वायु दूषित होने से रक्तयुक्त अतिसार रोग पैदा होता है। मानसिक रोग से शरीर की वायु दूषित होती है। यह वायु शरीर में बड़ी आंत में पैदा होती है। अतः दूषित वायु का असर सबसे पहले बड़ी आंतों पर होता है। इससे बड़ी आंत की कार्यप्रणाली बिगड़ जाती है, जिससे रक्तयुक्त अतिसार की स्थिति पैदा होती है। आज हर व्यक्ति अपने क्षेत्र में सारी ऊंचाइयों को छू लेना चाहता है, जिसकी तमन्ना ने उसके मस्तिष्क में घर कर लिया है। इस तमन्ना की प्रत्यक्षता पा लेने में उसे काफी दुःख झेलने पड़ते हैं, जिससे क्रोध, चिंता, तनाव आदि कई मानसिक विकार अपना सिर उठा लेते हैं। इन्हीं के कारण शरीर का हर अंग बुरी तरह से प्रभावित होता है और कमजोर अंग सबसे पहले रोगग्रस्त हो जाता है। उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह, उदर रोग आदि इसी तरह से उत्पन्न होने वाले रोग हैं। इसी श्रृंखला में एक रोग है, 'रक्तयुक्त अतिसार' या पेचिश। आयुर्वेद के ग्रंथों में अतिसार छः प्रकार के बताये गये हैं। उनमें से एक है शोकज अतिसार, जिसमें दस्त का कारण, किसी प्रकार का मानसिक आघात होता है। इसके रोगी में दस्त रक्तमिश्रित, दुर्गंधयुक्त, या बिल्कुल गंधहीन आते हैं। आयुर्वेद शास्त्रों के अनुसार दूषित पित्त से उत्पन्न दस्त लगने पर भी अगर व्यक्ति गर्म, तेज, मसालेदार चीजें सेवन करता रहे, तो परिणामस्वरूप मल रक्तयुक्त आने लगता है। आधुनिक विज्ञान अभी इसके कारणों को सही रूप से ढूंढ नहीं पाया है। लेकिन मानसिक तनाव के साथ यह जुड़ा हुआ है, ऐसा निश्चित रूप से कहा जा सकता है। लक्षण : इस रोग में पहले बड़ी आंत में सूजन आती है और भीतरी सतह पर किसी कारण से घाव हो जाते हैं, जिससे रोगी को 3-4 बार रक्तयुक्त मल होता है। अगर साथ में अन्य लक्षण भी हों, जैसे दस्त में पीव आना, आंव सहित मल आना, शरीर में जलन, अधिक प्यास लगना, शरीर का वजन घटते जाना, बुखार, फीकापन, नाड़ी की गति बढ़ जाना और बड़ी आंतें फूल जाना आदि तो स्थिति गंभीर मानी जाती है। लंबे समय तक यही स्थिति रहने से कभी-कभी बड़ी आंतों के फट जाने से मलाशय का कैंसर जैसी गंभीर अवस्था भी पैदा हो जाती है, जिसमें तत्काल उपचार की आवश्यकता होती है। यह रोग अधिकतर बूढ़े लोगों को होता है। इसकी शुरुआत अचानक होती है। शोक, चिंता, भावनात्मक कुंठायुक्त मानसिक स्थिति में चंद दिन, या महीने गुज़र जाने से रोग अधिक गंभीर हो जाता है। फिर पेट में दर्द, बेचैनी के साथ पतले दस्त शुरू हो जाते हैं। रोगी का वजन घट जाता है। इसमें खून की कमी स्पष्ट नजर आती है। आयुर्वेद के अनुसार पेट की अग्नि की मंदता इस रोग की जड़ होती है। इस बात को चिकित्सा के समय ध्यान में रखना चाहिए।
ज्योतिष्य दृष्टिकोण- काल पुरुष की कुंडली में पेट की आंतों का स्थान षष्ठ भाव है, जिसका कारक ग्रह मंगल है। मंगल रक्त का भी कारक है। मानसिक तनाव लग्नेश चंद्र के दुष्प्रभावों से होता है। इसलिए जिस कुंडली में लग्न, लग्नेश, चंद्र, मंगल, षष्ठेश और षष्ठ भाव दुष्प्रभावों में हों, तो जातक को रक्तयुक्त पेचिश होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। तुला लग्न में षष्ठेश लग्न में हो, मंगल षष्ठ भाव में केतु से युक्त, या दृष्ट हो और शनि सप्तम भाव में हो, चंद्र लग्न में ही हो और लग्नेश अष्टम भाव में राहु-केतु के प्रभाव में हो, तो गुरु, या केतु, या मंगल की दशा-अंतर्दशा में ऐसा रोग होता है। विभिन्न लग्नों में रक्तयुक्त पेचिश : मेष लग्न : लग्नेश मंगल षष्ठ भाव में चंद्र से युक्त, या दृष्ट हो, बुध लग्न में हो, षष्ठ भाव पर शनि की दृष्टि हो, केतु शनि से युक्त, या दृष्ट हो, तो खूनी पेचिश की संभावना मंगल, या चंद्र की दशा-अंतर्दशा में होती है। वृष लग्न : लग्नेश और षष्ठेश मंगल से युक्त हो कर सप्तम भाव में हों, षष्ठ भाव गुरु से युक्त, या दृष्ट हो, चंद्र-लग्न राहु-केतु के प्रभाव में हों, तो रक्तयुक्त पेचिश गुरु, या मंगल की दशांतर्दशा में होती है। मिथुन लग्न : लग्नेश द्वादश भाव में, या षष्ठ भाव में गुरु से युक्त, या दृष्ट हो, चंद्र अष्टम भाव में शनि से युक्त, या दृष्ट हो, सूर्य लग्न में राहु, या केतु से दृष्ट हो, तो गुरु व मंगल की दशा-अंतर्दशा में रोग होता है। कर्क लग्न : षष्ठेश मंगल से युक्त हो कर द्वादश भाव में शनि से दृष्ट हो, लग्नेश चंद्र षष्ठ भाव में हो, सूर्य पंचम भाव में राहु-केतु से युक्त, या दृष्ट हो, तो केतु, या शनि की दशा-अंतर्दशा में रक्तयुक्त पेचिश रोग होता है। गोचर में मंगल दुष्प्रभावों में होने से ऐसा होता है। सिंह लग्न : लग्न में सूर्य हो, लग्नेश सूर्य षष्ठ भाव में मंगल से युक्त, या दृष्ट हो कर राहु-केतु के प्रभाव में हो, बुध पंचम भाव में हो और शुक्र सप्तम भाव में हो, तो रक्तयुक्त पेचिश होने की संभावना शनि या मंगल की दशा-अंतर्दशा में होती है। कन्या लग्न : षष्ठेश अष्टम भाव में, मंगल षष्ठ भाव में केतु से युक्त हो, लग्नेश बुध द्वितीय भाव में, सूर्य लग्न में हो और चंद्र नीच का हो, तो रक्तयुक्त पेचिश मंगल की दशा-अंतर्दशा में होने की संभावना होती है। तुला लग्न : षष्ठेश लग्न में हो, मंगल षष्ठ भाव में केतु से युक्त, या दृष्ट हो और शनि सप्तम भाव में हो, चंद्र लग्न में ही हो और लग्नेश अष्टम भाव में राहु-केतु के प्रभाव में हो, तो गुरु, या केतु, या मंगल की दशा-अंतर्दशा में ऐसा रोग होता है। वृश्चिक लग्न : षष्ठ भाव में बुध सप्तम भाव में शनि, या राहु से युक्त, या दृष्ट हो, लग्नेश अष्टम भाव में शुक्र से युक्त हो, चंद्र लग्न में हो, तो जातक को रक्तयुक्त पेचिश मंगल, बुध, या शनि की दशांतर्दशा में होता है। मंगल गोचर में दुष्प्रभावों मे रहे, तब भी रोग होता है। धनु लग्न : षष्ठेश सप्तम भाव में हो, सप्तमेश बुध षष्ठ भाव में लग्नेश गुरु शनि से युक्त, या दृष्ट अष्टम, या द्वादश भाव में हो, षष्ठ भाव राहु से दृष्ट, या युक्त हो, चंद्र लग्न में मंगल से युक्त हो, तो रक्तयुक्त पेचिश मंगल, या शुक्र की दशा-अंतर्दशा में होती है। मकर लग्न : षष्ठेश बुध पंचम भाव में, गुरु षष्ठ भाव में, लग्नेश शनि अष्टम भाव में, चंद्र लग्न में राहु-केतु से युक्त, सप्तम भाव मंगल से दृष्ट, या युक्त हो, तो रक्तयुक्त पेचिश गुरु, या मंगल की दशा-अंतर्दशा में होने की संभावना होती है। कुंभ लग्न : चंद्र द्वितीय भाव में राहु-केतु से युक्त हो, गुरु सप्तम भाव में, मंगल षष्ठ भाव में बुध से युक्त हो, लग्नेश शनि अष्टम भाव में शुक्र से युक्त हो, तो जातक को मंगल, चंद्र, या शनि की दशा में रक्तयुक्त पेचिश होती है। मीन लग्न : लग्नेश गुरु षष्ठ भाव में शनि से दृष्ट हो, मंगल लग्न में राहु-केत से युक्त, या दृष्ट हो, चंद्र अष्टम भाव में बुध से युक्त हो, सूर्य सप्तम भाव में हो और शुक्र अस्त हो, तो जातक को रक्तयुक्त पेचिश सूर्य, मंगल, या शनि की दशा-अंतर्दशा में होने की संभावना होती है। उपर्युक्त सभी योग चलित कुंडली पर आधारित हैं। रोग संबंधित ग्रह की दशा-अंतर्दशा और गोचर के प्रतिकूल रहने से होता है। तदोपरांत रोग दूर हो जाता है।

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