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Saturday 22 August 2015

मुख्य द्वार की सही दिशा लाएं जीवन में खुशहाली

घर या ऑफिस में यदि हम खुशहाली लाना चाहते हैं तो सबसे पहले उसके मुख्य द्वार की दिशा और दशा ठीक की जाए। वास्तुशास्त्र में मुख्य द्वार की सही दिशा के कई लाभ बताए गए हैं। जरा-सी सावधानी व्यक्ति को ढेरों उपलब्धियों की सौगात दिला सकती है।
मानव शरीर की पांचों ज्ञानेन्द्रियों में से जो महत्ता हमारे मुख की है, वही महत्ता किसी भी भवन के मुख्य प्रवेश द्वार की होती है।
साधारणतया किसी भी भवन में मुख्य रूप से एक या दो द्वार मुख्य द्वारों की श्रेणी के होते हैं जिनमें से प्रथम मुख्य द्वार से हम भवन की चारदीवारों में प्रवेश करते हैं। द्वितीय से हम भवन में प्रवेश करते हैं। भवन के मुख्य द्वार का हमारे जीवन से एक घनिष्ठ संबंध है। वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार सकारात्मक दिशा के द्वार गृहस्वामी को लक्ष्मी (संपदा), ऐश्वयज़्, पारिवारिक सुख एवं वैभव प्रदान करते हैं जबकि नकारात्मक मुख्य द्वार जीवन में अनेक समस्याओं को उत्पन्न कर सकते हैं।
जहां तक संभव हो पूवज़् एवं उत्तर मुखी भवन का मुख्य द्वार पूवोज़्त्तर अथाज़्त ईशान कोण में बनाएं। पश्चिम मुखी भवन पश्चिम-उत्तर कोण में व दक्षिण मुखी भवन में द्वार दक्षिण-पूवज़् में होना चाहिए। यदि किसी कारणवश आप उपरोक्त दिशा में मुख्य द्वार का निमाज़्ण न कर सके तो भवन के मुख्य (आंतरिक) ढांचे में प्रवेश के लिए उपरोक्त में से किसी एक दिशा को चुन लेने से भवन के मुख्य द्वार का वास्तुदोष समाप्त हो जाता है। नए भवन के मुख्य द्वार में किसी पुराने भवन की चौखट, दरवाजे या पुरी कड़?ियों की लकड़ी प्रयोग न करें।
मुख्य द्वार का आकार आयताकार ही हो, इसकी आकृति किसी प्रकार के आड़े, तिरछे, न्यून या अधिक कोण न बनाकर सभी कोण समकोण हो। यह त्रिकोण, गोल, वगाकज़र या बहुभुज की आकृति का न हो।
विशेष ध्यान दें कि कोई भी द्वार, विशेष कर मुख्य द्वार खोलते या बंद करते समय किसी प्रकार की कोई ककज़्श ध्वनि पैदा न करें। आजकल बहुमंजिली इमारतों अथवा फ्लैट या अपाटज़्मेंट सिस्टम ने आवास की समस्या को काफी हद तक हल कर दिया है। जहां तक मुख्य द्वार का संबंध है तो इस विषय को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैल चुकी हैं, क्योंकि ऐसे भवनों में कोई एक या दो मुख्य द्वार न होकर अनेक द्वार होते हैं। पंरतु अपने फ्लैट में अंदर आने वाला आपका दरवाजा ही आपका मुख्य द्वार होगा।
भवन के मुख्य द्वार के सामने कई तरह की नकारात्मक ऊजाएज़्ं भी विद्यमान हो सकती हैं जिनमें हम द्वार बेध या मागज़् बेध कहते हैं। प्राय: सभी द्वार बेध भवन को नकारात्मक ऊजाज़् देते हैं, जैसे घर का 'टीÓ जंक्शन पर होना या गली, कोई बिजली का खंभा, प्रवेश द्वार के बीचोंबीच कोई पेड़, सामने के भवन में बने हुए नुकीले कोने जो आपके द्वार की ओर चुभने जैसी अनुभूति देते हो आदि। इन सबको वास्तु में शूल अथवा विषबाण की संज्ञा की जाती है। यदि किसी कारणवश आप उपरोक्त दिशा में मुख्य द्वार का निमाज़्ण न कर सके तो भवन के मुख्य (आंतरिक) ढांचे में प्रवेश के लिए उपरोक्त में से किसी एक दिशा को चुन लेने से भवन के मुख्य द्वार का वास्तुदोष समाप्त हो जाता है।
यदि किसी कारणवश आप उपरोक्त दिशा में मुख्य द्वार का निमाज़्ण न कर सके तो भवन के मुख्य (आंतरिक) ढांचे में प्रवेश के लिए उपरोक्त में से किसी एक दिशा को चुन लेने से भवन के मुख्य द्वार का वास्तुदोष समाप्त हो जाता है।
नए भवन के मुख्य द्वार में किसी पुराने भवन की चौखट, दरवाजे या पुरी कड़?ियों की लकड़ी प्रयोग न करें।
मुख्य द्वार का आकार आयताकार ही हो, इसकी आकृति किसी प्रकार के आड़े, तिरछे, न्यून या अधिक कोण न बनाकर सभी कोण समकोण हो। यह त्रिकोण, गोल, वगाकज़र या बहुभुज की आकृति का न हो।
विशेष ध्यान दें कि कोई भी द्वार, विशेष कर मुख्य द्वार खोलते या बंद करते समय किसी प्रकार की कोई ककज़्श ध्वनि पैदा न करें।
आजकल बहुमंजिली इमारतों अथवा फ्लैट या अपाटज़्मेंट सिस्टम ने आवास की समस्या को काफी हद तक हल कर दिया है।
जहां तक मुख्य द्वार का संबंध है तो इस विषय को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैल चुकी हैं, क्योंकि ऐसे भवनों में कोई एक या दो मुख्य द्वार न होकर अनेक द्वार होते हैं। पंरतु अपने फ्लैट में अंदर आने वाला आपका दरवाजा ही आपका मुख्य द्वार होगा।
जिस भवन को जिस दिशा से सवाज़्धिक प्राकृतिक ऊजाएज़्ं जैसे प्रकाश, वायु, सूयज़् की किरणें आदि प्राप्त होंगी, उस भवन का मुख भी उसी ओर माना जाएगा। ऐसे में मुख्य द्वार की भूमिका न्यून महत्व रखती है।
भवन के मुख्य द्वार के सामने कई तरह की नकारात्मक ऊजाएज़्ं भी विद्यमान हो सकती हैं जिनमें हम द्वार बेध या मागज़् बेध कहते हैं।
प्राय: सभी द्वार बेध भवन को नकारात्मक ऊजाज़् देते हैं, जैसे घर का 'टी' जंक्शन पर होना या गली, कोई बिजली का खंभा, प्रवेश द्वार के बीचोंबीच कोई पेड़, सामने के भवन में बने हुए नुकीले कोने जो आपके द्वार की ओर चुभने जैसी अनुभूति देते हो आदि। इन सबको वास्तु में शूल अथवा विषबाण की संज्ञा की जाती है।
Pt.P.S.Tripathi
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Monday 22 June 2015

अंक शास्त्र में विवाह

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अंकशास्त्र में मुख्य रूप से नामांक, मूलांक और भाग्यांक इन तीन विशेष अंकों को आधार मानकर फलादेश किया जाता है. विवाह के संदर्भ में भी इन्हीं तीन प्रकार के अंकों के बीच सम्बन्ध को देखा जाता है.
अंक ज्योतिष भविष्य जानने की एक विधा है. अंक ज्योतिष से ज्योतिष की अन्य विधाओं की तरह भविष्य और सभी प्रकार के ज्योंतिषीय प्रश्नों का उत्तर ज्ञात किया जा सकता है. विवाह जैसे महत्वपूर्ण विषय में भी अंक ज्योतिष और उसके उपाय काफी मददगार साबित होते हैं.
अंक ज्योंतिष अपने नाम के अनुसार अंक पर आधारित है. अंक शास्त्र के अनुसार सृष्टि के सभी गोचर और अगोचर तत्वों अपना एक निश्चत अंक होता है. अंकों के बीच जब ताल मेल नहीं होता है तब वे अशुभ या विपरीत परिणाम देते हैं. अंकशास्त्र में मुख्य रूप से नामांक, मूलांक और भाग्यांक इन तीन विशेष अंकों को आधार मानकर फलादेश किया जाता है. विवाह के संदर्भ में भी इन्हीं तीन प्रकार के अंकों के बीच सम्बन्ध को देखा जाता है. अगर वर और वधू के अंक आपस में मेल खाते हैं तो विवाह हो सकता है. अगर अंक मेल नहीं खाते हैं तो इसका उपाय करना होता है ताकि अंकों के मध्य मधुर सम्बन्ध स्थापित हो सके.
वैदिक ज्योतिष एवं उसके समानांतर चलने वाली ज्योतिष विधाओं में वर वधु के वैवाहिक जीवन का आंकलन करने के लिए जिस प्रकार से कुण्डली से गुण मिलाया जाता ठीक उसी प्रकार अंकशास्त्र में अंकों को मिलाकर वर वधू के वैवाहिक जीवन का आंकलन किया जाता है.
अंकशास्त्र से वर वधू का गुण मिलान अंकशास्त्र में वर एवं वधू के वैवाहिक गुण मिलान के लिए, अंकशास्त्र के प्रमुख तीन अंकों में से नामांक ज्ञात किया जाता है. नामांक ज्ञात करने के लिए दोनों के नामों को अंग्रेजी अलग अलग लिखा जाता है. नाम लिखने के बाद सभी अक्षरों के अंकों को जोड़ा जाता है जिससे नामांक ज्ञात होता है. ध्यान रखने योग्य तथ्य यह है कि अगर मूलक 9 से अधिक हो तो योग से प्राप्त संख्या को दो भागों में बांटकर पुन योग किया जाता है. इस प्रकार जो अंक आता है वह नामांक होता है. उदाहरण से योग 32 आने पर 3+2=5. वर का अंक 5 हो और कन्या का अंक 8तो दोनों के बीच सहयोगात्मक सम्बन्ध रहेगा, अंकशास्त्र का यह नियम है.
वर वधू के नामांक का फल अंकशास्त्र के नियम के अनुसार अगर वर का नामांक 1 है और वधू का नामांक भी एक है तो दोनों में समान भावना एवं प्रतिस्पर्धा रहेगी जिससे पारिवारिक जीवन में कलह की स्थिति होगी. कन्या का नामांक 2 होने पर किसी कारण से दोनों के बीच तनाव की स्थिति बनी रहती है. वर 1 नामांक का हो और कन्या तीन नामांक की तो उत्तम रहता है दोनों के बीच प्रेम और परस्पर सहयोगात्मक सम्बन्ध रहता है. कन्या 4 नामंक की होने पर पति पत्नी के बीच अकारण विवाद होता रहता है और जिससे गृहस्थी में अशांति रहती है. पंचम नामंक की कन्या के साथ गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है. सप्तम और नवम नामाक की कन्या भी 1 नामांक के वर के साथ सुखमय वैवाहिक जीवन का आनन्द लेती है जबकि षष्टम और अष्टम नामांक की कन्या और 1 नमांक का वर होने पर वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आती है.
वर का नामांक 2 हो और कन्या 1 व 7 नामांक की हो तब वैवाहिक जीवन के सुख में बाधा आती है. 2 नामांक का वर इन दो नामांक की कन्या के अलावा अन्य नामांक वाली कन्या के साथ विवाह करता है तो वैवाहिक जीवन आनन्दमय और सुखमय रहता है. तीन नामांक की कन्या हो और वर 2 नामांक का तो जीवन सुखी होता है परंतु सुख दुख धूप छांव की तरह होता है. वर 3 नामांक का हो और कन्या तीन, चार अथवा पांच नामांक की हो तब अंकशास्त्र के अनुसार वैवाहिक जीवन उत्तम नहीं रहता है. नामांक तीन का वर और 7 की कन्या होने पर वैवाहिक जीवन में सुख दुख लगा रहता है. अन्य नामांक की कन्या का विवाह 3 नामांक के पुरूष से होता है तो पति पत्नी सुखी और आनन्दित रहते हैं.
4 अंक का पुरूष हो और कन्या 2, 4, 5 अंक की हो तब गृहस्थ जीवन उत्तम रहता है. चतुर्थ वर और षष्टम या अष्टम कन्या होने पर वैवाहिक जीवन में अधिक परेशानी नहीं आती है. 4 अंक के वर की शादी इन अंकों के अलावा अन्य अंक की कन्या से होने पर गृहस्थ जीवन में परेशानी आती है. 5 नामांक के वर के लिए 1, 2, 5, 6, 8नामांक की कन्या उत्तम रहती है. चतुर्थ और सप्तम नामांक की कन्या से साथ गृहस्थ जीवन मिला जुला रहता है जबकि अन्य नामांक की कन्या होने पर गृहस्थ सुख में कमी आती है. षष्टम नामांक के वर के लिए 1 एवं 6अंक की कन्या से विवाह उत्तम होता है. 3, 5, 7, 8एवं 9 नामांक की कन्या के साथ गृहस्थ जीवन सामान्य रहता है और 2 एवं चार नामांक की कन्या के साथ उत्तम वैवाहिक जीवन नहीं रह पाता.
वर का नामांक 7 होने पर कन्या अगर 1, 3, 6, नामांक की होती है तो पति पत्नी के बीच प्रेम और सहयोगात्मक सम्बन्ध होता है. कन्या अगर 5, 8अथवा 9 नामंक की होती है तब वैवाहिक जीवन में थोड़ी बहुत परेशानियां आती है परंतु सब सामान्य रहता है. अन्य नामांक की कन्या होने पर पति पत्नी के बीच प्रेम और सहयोगात्मक सम्बन्ध नहीं रह पाता है. आठ नामांक का वर 5, 6अथवा 7 नामांक की कन्या के साथ विवाह करता है तो दोनों सुखी होते हैं. 2 अथवा 3 नामांक की कन्या से विवाह करता है तो वैवाहिक जीवन सामान्य बना रहता है जबकि अन्य नामांक की कन्या से विवाह करता है तो परेशानी आती है. 9 नामांक के वर के लिए 1, 2, 3, 6एवं 9 नामांक की कन्या उत्तम होती है जबकि 5 एवं 7 नामांक की कन्या सामान्य होती है. 9 नामांक के वर के लिए 4 और 8नामांक की कन्या से विवाह करना अंकशास्त्र की दृष्टि से शुभ नही होता है.
 Pt.P.S Tripathi
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South East bedroom can create tensions

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Igneous suite bedrooms for the men who use the fire-element-related high blood pressure, diabetes, stroke and more likely to cause disease and a tendency to turn into excited nature of the inter-ideological differences with the spouse are caused.
If the bedroom in the south-east rift between husband and wife can be. Can stay angry. Excessive stress or anger can ever come. If you can not make your bedroom beds elsewhere in the south-west and south lie the head.
Wasteful spending and increases in angle of igneous bedrooms unnecessarily discord between husband and wife is Halagney angle should not sleep together before marriage is bad blood between them and find the evil of each other only Everybody spent
Do not sleep in igneous Lliske angle is a lot of anger ... anger when the people are on his or water, becomes the cause of the rupture. If you like the relationship of husband and wife, father and son have become partners. Anger is piquant mixture of bitterness in relationships.


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Monday 15 June 2015

वास्तुशास्त्र के वैज्ञानिक सापेक्ष



मनुष्य को वास्तु शास्त्र के एक सौ पचास नियम बहुत ही बारीकी से अध्ययन कर के अपनाने चाहिएं, क्योंकि भूखंड की स्थिति एवं कोण की स्थिति जानने के बाद वास्तु शास्त्र के सभी पहलुओं का सूचारु रूप से अध्ययन कर के ही भवन निर्माण,औद्योगिक भवन, व्यापारिक संस्थान आदि की स्थापना करें। तभी लाभ मिलेगा।

आदि काल से हिंदू धर्म गं्रथों में चुंबकीय प्रवाहों, दिशाओं, वायु प्रभाव, गुरुत्वाकर्षण के नियमों को ध्यान में रखते हुए वास्तु शास्त्र की रचना की गयी तथा यह बताया गया कि इन नियमों के पालन से मनुष्य के जीवन में सुख-शांति आती है और धन-धान्य में भी वृद्धि होती है। वास्तु वस्तुत: पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि इन पांच तत्वों के समानुपातिक सम्मिश्रण का नाम है। इसके सही सम्मिश्रण से 'बायो-इलेक्ट्रिक मैग्नेटिक एनर्जी की उत्पत्ति होती है, जिससे मनुष्य को उत्तम स्वास्थ्य, धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। मानव शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है, क्योंकि मानव शरीर पंच तत्वों से निर्मित होता है और अंतत: पंच तत्वों में ही विलीन हो जाता है। जिन पांच तत्वों पर शरीर का समीकरण निर्मित और ध्वस्त होता है, वह निम्नानुसार है। आकाश+अग्नि+वायु+जल+पृथ्वी = देह निर्माण क्रिया या शरीर का निर्माण। और वायु-जल-अग्नि-पृथ्वी-आकाश = ध्वंस प्रक्रिया या नाश हो जाना। वास्तुशास्त्र का परिचय, आकाश, वायु, अग्नि तेज, जल, पृथ्वी से ही होता है। मस्तिष्क में आकाश, कंधों में अग्नि, नाभि में वायु, घुटनों में पृथ्वी, पादांत में जल आदि तत्वों का निवास है और आत्मा परमात्मा है, क्योंकि दोनों ही निराकार हैं। दोनों को ही महसूस किया जा सकता है। इसी लिए स्वर महाविज्ञान में प्राण वायु आत्मा मानी गयी है और यही प्राण वायु जब शरीर (देह) से निकल कर सूर्य में विलीन हो जाती है, तब शरीर निष्प्राण हो जाता है। इसी लिए सूर्य ही भूलोक में समस्त जीवों, पेड़-पौधों का जीवन आधार है अर्थात् सूर्य सभी प्राणियों के प्राणों का स्रोत है। यही सूर्य जब उदय होता है, तब संपूर्ण संसार में प्राणाग्नि का संचार आरंभ होता है, क्योंकि सूर्य की रश्मियों में सभी रोगों को नष्ट करने की शक्ति मौजूद है। सूर्य पूर्व दिशा में उगता हुआ पश्चिम में अस्त होता है। इसी लिए भवन निर्माण में का स्थान प्रमुख है। भवन निर्माण में सूर्य ऊर्जा, वायु ऊर्जा, चंद्र ऊर्जा आदि के पृथ्वी पर प्रभाव प्रमुख माने जाते हैं। यदि मनुष्य मकान को इस प्रकार से बनाए, जो प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप हो, तो प्राकृतिक प्रदूषण की समस्या काफी हद तक दूर हो सकती है, जिससे मनुष्य प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों को, भवन के माध्यम से, अपने कल्याण के लिए इस्तेमाल कर सके। पूर्व में उदित होने वाले सूर्य की किरणों का भवन के प्रत्येक भाग में प्रवेश हो सके और मनुष्य ऊर्जा को प्राप्त कर सके, क्योंकि सूर्य की प्रात:कालीन किरणों में विटामिन-डी का बहुमूल्य स्रोत होता है, जिसका प्रभाव हमारे शरीर पर रक्त के माध्यम से, सीधा पड़ता है। इसी तरह मध्याह्न के पश्चात् सूर्य की किरणें रेडियधार्मिता से ग्रस्त होने के कारण शरीर पर विपरीत (खराब) प्रभाव डालती हैं। इसीलिए भवन निर्माण करते समय भवन का 'दिशा इस प्रकार से रखा जाना चाहिए, जिससे मध्यांत सूर्य की किरणों का प्रभाव शरीर एवं मकान पर कम से कम पड़े। दक्षिण-पश्चिम भाग के अनुपात में भवन निर्माण करते समय पूर्व एवं उत्तर के अनुपात की सतह को इसलिए नीचा रखा जाता है, क्योंकि प्रात:काल के समय सूर्य की किरणों में विटामिन डी, एफ एवं विटामिन ए रहते हैं। रक्त कोशिकाओं के माध्यम से जिन्हें हमारा शरीर आवश्यकतानुसार विटामिन डी ग्रहण करता रहे। यदि पूर्व का क्षेत्र पश्चिम के क्षेत्र से नीचा होगा, अधिक दरवाजे, खिड़कियां आदि होने के कारण प्रात:कालीन सूर्य की किरणों का लाभ पूरे भवन को प्राप्त होता रहेगा। पूर्व एवं उत्तर क्षेत्र अधिक खुला होने से भवन में वायु बिना रुकावट के प्रवेश करती रहे और चुंबकीय किरणें, जो उत्तर से दक्षिण दिशा को चलती हैं, उनमें कोई रुकावट न हो और दक्षिण-पश्चिम की छोटी-छोटी खिड़कियों से धीरे-धीरे वायु निकलती रहे। इससे वायु मंडल का प्रदूषण दूर होता रहेगा। दक्षिण-पश्चिम भाग में भवन को अधिक ऊंचा का प्रमुख कारण तथा मोटी दीवार बनाने तथा सीढिय़ों आदि का भार भी दिशा में रखना, भारी मशीनरी, भारी सामान का स्टोर आदि भी बनाने का प्रमुख कारण यह है कि जब पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा दक्षिणी दिशा में करती है, तो वह एक विशेष कोणीय स्थिति में होती है। अत: इस क्षेत्र में अधिक भार रखने से संतुलन आ जाता है तथा सूर्य की गर्मी इस भाग में होने के कारण उससे इस प्रकार बचा भी जा सकता है। गर्मी में इस क्षेत्र में ठंडक तथा सर्दियों में गर्मी का अनुभव भी किया जा सकता है। दक्षिण-पश्चिम में कम और छोटी-छोटी खिड़कियां रखने का प्रमुख कारण है गर्मियों में ठंडक महसूस हो सके, क्योंकि भूखंड क्षेत्र के दक्षिण-पश्चिम में खुली हवा तापयुक्त हो कर सर्दियों में विशेष दबाव से कमरे में पहुंच कर कमरों को गर्म करती है। यह हवा रोशनदान एवं छोटी खिड़कियों से भवन में गर्मियों में कम ताप से युक्त अधिक मोलीक्यूबल दबाव के कारण भवन को ठंडा रखती है और साथ ही वातावरण को शुद्ध करने में सहायता पहुंचाती रहती है। आग्नेय (दक्षिण-पूर्वी) कोण में रसोई बनाने का प्रमुख कारण यह है कि सुबह पूर्व से सूर्य की किरणें विटामिन युक्त हो कर दक्षिण क्षेत्र की वायु के साथ प्रवेश करती हैं। क्योंकि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा दक्षिणायन की ओर करती है, अत: आग्नेयकों की स्थिति में इस भाग को अधिक विटामिन 'एफ एवं 'डी से युक्त सूर्य की किरणें अधिक समय तक मिलती रहे, तो रसोई घर में रखे खाद्य पदार्थ शुद्ध होते रहेंगे और इसके साथ-साथ सूर्य की गर्मी से पश्चिमी दीवार की नमी के कारण विद्यमान हानिकारक कीटाणु नष्ट होते रहते हैं। उत्तरी-पूर्वी भाग ईशान कोण में आराधना स्थल या पूजा स्थल रखने का प्रमुख कारण यह है कि पूजा करते समय मनुष्य के शरीर पर अधिक वस्त्र न रहने के कारण प्रात:कालीन सूर्य की किरणों के माध्यम से शरीर में विटामिन 'डी नैसर्गिक अवस्था में प्राप्त हो जाती है और उत्तरी क्षेत्र से पृथ्वी की चुंबकीय ऊर्जा का अनुकूल प्रभाव भी पवित्र माना जाता है। अंतरिक्ष से हमें कुछ अलौकिक शक्ति मिलती रहे, इसी लिए इस क्षेत्र को अधिक खुला रखा जाता है। उत्तर-पूर्व में आने वाले पानी के स्रोत का प्रमुख आधार यह है कि पानी में प्रदूषण जल्दी लगता है और पूर्व से ही सूर्य उदय होने के कारण सूर्य की किरणें जल पर पड़ती हैं, जिसके कारण इलेक्ट्रोमेग्नेटिक सिद्धांत के द्वारा जल को सूर्य से ताप प्राप्त होता है। उसी के कारण जल शुद्ध रहता है। दक्षिण दिशा में सिर रखने का प्रमुख कारण पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का मानव पर पडऩे वाला प्रभाव ही है। जिस प्रकार चुंबकीय किरणें उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की तरफ चलती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में जो चुंबकीय क्षेत्र हैं, वह भी सिर से पैर की तरफ होता है। इसी लिए मानव के सिर को उत्तरायण एवं पैर को दक्षिणायन माना जाता है। यदि सिर को उत्तर की ओर रखें तो चुंबकीय प्रभाव नहीं होगा, क्योंकि पृथ्वी के क्षेत्र का उत्तरी ध्रुव मानव के उत्तरी पोल ध्रुव से घृणा करेगा और चुंबकीय प्रभाव अस्वीकार करेगा, जिससे शरीर के रक्त संचार के लिए उचित और अनुकूल चुंबकीय क्षेत्र का लाभ नहीं मिल सकेगा, जिससे मस्तिष्क में तनाव होगा और शरीर को शांतिमय (पूर्वक) निद्रा का अनुकूल अवस्था प्राप्त नहीं होगी। सिर दक्षिण दिशा में रखने से चुंबकीय परिक्रमा पूरी होगी और पैर उत्तर की तरफ करने से दूसरी तरफ भी परिक्रमा पूरी होने के कारण चुंबकीय तरंगों के प्रभाव में रुकावट न होने से अच्छी नींद आएगी। चुंबकीय तरंगें उत्तर से दक्षिण दिशा को जाती हैं। अगर किसी भी मनुष्य से व्यापारिक चर्चा करनी हो, तो उत्तर की ओर मुंह कर के ही चर्चा करें। इसका प्रमुख कारण यह है कि उत्तरी क्षेत्र से चुंबकीय ऊर्जा प्राप्त होने के कारण मस्तिष्क की कोशिकाएं तुरंत सक्रिय होने से जो शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त होती है, उससे मस्तिष्क की कोशिकाओं के माध्यम से याददाश्त बढ़ जाती है, नैसर्गिक ऊर्जा शक्ति के साथ परामर्श करने वाली मस्तिष्क की ग्रंथियां अधिक सक्षम बन जाती हैं। इसी लिए इस दिशा में की जाने वाली व्यापारिक चर्चाएं अधिक महत्व रखती हैं। मनुष्य को चाहिए कि यदि उत्तर में मुंह कर के बैठे, तो अपने दाहिने तरफ चेक बुक आदि रखे। यदि मनुष्य मकान बनाए, तो मकान के चारों ओर खुला स्थान अवश्य रखे। खुला स्थान पूर्व एवं उत्तर दिशा में अधिक (यानी सबसे अधिक पूर्व) में, फिर उससे कम उत्तर में तथा उत्तर दिशा से भी कम दक्षिण दिशा में (और दक्षिण दिशा से भी कम) सबसे कम पश्चिम दिशा में रखे। इससे सभी दिशाओं से वायु का प्रवेश होता रहेगा। वायु का निष्कासन होने के कारण वायु मंडल शुद्ध रहता है। इससे गर्मी में भवन ठंडा एवं सर्दियों में भवन गर्म रहता है, क्योंकि वायु मंडल में अन्य गैसों के अनुपात में ऑक्सीजन की कम मात्रा होती है। यदि भवन के चारों ओर खुला स्थान है, तो मनुष्य को हमेशा आवश्यकतानुसार प्राण वायु (ऑक्सीजन) एवं चुंबकीय ऊर्जा का लाभ मिलता रहेगा। इसके अलावा वायु मंडल और ब्रह्मांड में काफी मात्रा में अदृश्य शक्तियां एवं ऐसी ऊर्जाएं हैं, जिनको हम न देख सकते हैं और न ही महसूस कर सकते हैं तथा जिनका प्रभाव दीर्घ काल में ही अनुभव होता है। इसी को प्राकृतिक ओज (औरा) कहते हैं। जीवित मनुष्य के अंदर और उसके चारों ओर हर समय एक विशेष चुंबकीय क्षेत्र होता है। इसी विशेष चुंबकीय क्षेत्र को हम 'बायोइलेक्ट्रिक चुंबकीय क्षेत्र भी कहते हैं। इसी लिए दक्षिण-पश्चिम का भाग ऊंचा तथा पूर्व-उत्तर का भाग नीचे रखने से 'बायोमैग्नेटिक फील्ड  के कारण मनुष्य के चुंबकीय क्षेत्र में कोई रुकावट नहीं आएगी। ये 'बायोइलेक्ट्रोमेग्नेटिक फील्ड वायु मंडल में वैसे तो बीस प्रकार के होते हैं, परंतु मानव शरीर के लिए चार प्रकार ही (बी. ई. एम. स.) अधिक उपयोगी माना गया है। इसीलिए वास्तु शास्त्र में इन पांच भूतों- पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश एवं वायु- का विशेष स्थान है। मनुष्य को वास्तु शास्त्र के एक सौ पचास नियम बहुत ही बारीकी से अध्ययन कर के अपनाने चाहिएं, क्योंकि भूखंड की स्थिति एवं कोण की स्थिति जानने के बाद वास्तु शास्त्र के सभी पहलुओं का सूचारु रूप से अध्ययन कर के ही भवन निर्माण,औद्योगिक भवन, व्यापारिक संस्थान आदि की स्थापना करें। तभी लाभ मिलेगा। आवासीय तथा व्यावसायिक भवन निर्माण करते समय यदि इन पांच तत्वों को समझ कर इनका यथोचित ध्यान रखा जाए, तो ब्रह्मांड की प्रबल शक्तियों का अद्भुत उपहार हमारे समस्त जीवन को सुखी एवं संपन्न बनाने में सहायक होंगे।


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Wednesday 3 June 2015

आपके जीवन का अनुषासन और रोग जाने ज्योतिषीय गणना से-

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संसार में प्रत्येक कण नियमबद्ध होकर इस सृष्टि को चलायमान रख रहे हैं। यदि सूर्य इत्यादि ग्रह पूर्ण अनुशासन, व्यवस्था एवं नियमितता का पालन करते हैं तो ब्रम्हाण्ड में दैवयोग या आकस्मिक घटना नाम की कोई चीज नहीं है। महर्षियों का मानना है कि ब्रम्हाण्ड में घटने वाली प्रत्येक घटना एक निश्चित नियम द्वारा बंधी है वहीं मनुष्य कर्म के नियमों द्वारा निश्चित तथा सुनियोजित है। इसलिए कुंडली में ग्रहों का विवेचन कर आप निरोगी रह सकते हैं। वैदिक दर्शनों में ‘‘यथा पिण्डे तथा ब्रहाण्डे’’ का सिद्धांत प्रचलित है, जिसके अनुसार सौर जगत में सूर्य और चंद्रमा आदि ग्रहों की विभिन्न गतिविधियों एवं क्रिया कलापों में जोे नियम है वही नियम मानव शरीर पर है। जिस प्रकार परमाणुओं के समूह से ग्रह बनें हैं उसी प्रकार से अनन्त परमाणुओं जिन्हें शरीर विज्ञान की भाषा में कोशिकाएॅ कहते हैं हमारा शरीर निर्मित हुआ है। ज्योतिष में ग्रहों का दूषित प्रभाव दूर करने के अनेक उपाय हैं। जिस प्रकार सूर्य या चंद्रमा अपने मार्ग पर सीधे और समय पर चलते हैं या जिस प्रकार ऋतुयें अपना प्रभाव समय पर दिखाती हैं तो जीवन सुचारू होता है उसी प्रकार का अनुषासन यदि व्यक्ति अपने जीवन में रखें तो रोग या शारीरिक व्याधि किसी शरीर को कभी परेषान नहीं करेगी।



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Sunday 31 May 2015

घर में बगीचे वास्तु की नज़र से



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वास्तु ऐसा माध्यम है जिससे आप जान सकते हैं कि किस प्रकार आप अपने घर को सुखी व समृद्धशाली बना सकते हैं। नीचे वास्तु सम्मत ऐसी ही जानकारी दी गई है जो आपके लिए उपयोगी होगी-
1- ऐसे मकान जिनके सामने एक बगीचा हो, भले ही वह छोटा हो, अच्छे माने जाते हैं, जिनके दरवाजे सीधे सड़क की ओर खुलते हों क्योंकि बगीचे का क्षेत्र प्राण के वेग के लिए अनुकूल माना जाता है। घर के सामने बगीचे में ऐसा पेड़ नहीं होना चाहिए, जो घर से ऊंचा हो।
2- वास्तु नियम के अनुसार हर दो घरों के बीच खाली जगह होना चाहिए। हालांकि भीड़भाड़ वाले शहर में कतारबद्ध मकान बनाना किफायती होता है लेकिन वास्तु के नियमों के अनुसार यह नुकसानदेय होता है क्योंकि यह प्रकाश, हवा और ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के आगमन को रोकता है।
3- आमतौर पर उत्तर दिशा की ओर मुंह वाले कतारबद्ध घरों में तमाम अच्छे प्रभाव प्राप्त होते हैं जबकि दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाले मकान बुरे प्रभावों को बुलावा देते हैं। हालांकि पूर्व और पश्चिम की ओर मुंह वाले कतारबद्ध मकान अनुकूल स्थिति में माने जाते हैं क्योंकि पश्चिम की ओर मुंह वाले मकान सामान्य ढंग के न्यूट्रल होते हैं।
4- पूर्व की ओर मुंह वाले घर लाभकारी होते हैं। कतार के आखिरी छोर वाले मकान लाभकारी हो सकते हैं यदि उनका दक्षिणी भाग किसी अन्य मकान से जुड़ा हो या पूरी तरह बंद हो। ऐसी स्थिति में जहां कतारबद्ध घर एक-दूसरे के सामने हों, वहां सीध में फाटक या दरवाजे लगाने से बचना चाहिए।
5- यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दक्षिण की ओर मुंह वाले घर यदि सही तरीके से बनाए जाएं तो लाभकारी परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। घर और वास्तु का गहरा नाता है। यही वजह है कि अपने सपनों का घर बनवाते हुए लोग आर्किटेक्ट से सुझाव लेना नहीं भूलते। कई बार वास्तु के हिसाब से चूक होने पर लोग घर में तोड़-फोड़ कराकर इसे दुरुस्त करने में हजारों-लाखों रुपये बर्बाद कर देते हैं। शायद आपको मालूम न हो, इस स्थिति में पेड़-पौधे ये नुकसान रोक सकते हैं। ज्योतिष और वास्तु में ये घर को सकारात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत करने वाले बताए गए हैं। बस जरूरत है थोड़ी जानकारी और प्रयास की। यदि आपके घर में वास्तु दोष है तो इसे मिटाने के लिए हरियाली का दामन थामना आपके लिए हर लिहाज से बेहतर विकल्प है।
ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार जीवनदायिनी प्रकृति के सहारे आशियाने को सेहत, सौंदर्य और समृद्धि से सराबोर किया जा सकता है। अगर मकान के खुले स्थान पर बगीचा लगा दें तो पूरा घर तरोताजा हवा एवं प्राकृतिक सौंदर्य से महक उठेगा। वास्तुशास्त्र के नजर से पेड़-पौधे उगाते हैं तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी होगा। चूंकि पेड़-पौधों जीवित होते हैं, इसलिए इनकी जीवंत ऊर्जा का सही उपयोग हमारे शरीर और चित्त को प्रसन्न रख सकता है। बस थोड़ा ध्यान रखना होगा कि पेड़-पौधे वास्तुशास्त्र के लिहाज से लगाए जाएं।
वास्तु और पौधे-
वास्तु में माना जाता है कि सकारात्मक ऊर्जा तरंगें हमेशा पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तथा पूर्वोत्तर से दक्षिण-पश्चिम में नैऋत्य कोण की ओर बहती है। ऐसे में ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व एवं उत्तर की ओर हल्के, छोटे व कम घने पेड़-पौधे उगाए जाएं। ताकि घर में आने वाली सकारात्मक ऊर्जा के रास्ते में कोई अवरोध न हो।
तुलसी बेहद उपयोगी-
इन दिशाओं से होकर घर में आने वाली हवा में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के खातिर तुलसी के पौधे बेहद उपयोगी माने जाते हैं। वास्तु के लिहाज से माना जाता है कि तुलसी के पौधों से होकर आने वाली वायु में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है साथ ही ये शुद्ध व स्वास्थ्यवर्धक भी हो जाती है।
इसके अतिरिक्त इन दिशाओं में अन्य औषधीय पौधों का रोपण भी वास्तु में लाभकारी बताया गया है। घर के पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में पुदीना, लेमनग्रास, खस, धनिया, सौंफ, हल्दी, अदरक आदि की उपस्थिति भी तन-मन को ताजगी देते हुए चुस्ती-फुर्ती और आरोग्य देने वाली मानी जाती है।
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री-
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री भी लोग घर में लगाते हैं। दोनों पौधे वास्तु की दृष्टि से समृद्धि कारक माने जाते हैं। शहर में कई परिवारों ने इन पौधों को अपने घरों में लगा रखा है। क्रिसमस ट्री इसाई परिवारों ने अपने घरों में तो मनी प्लांट का पौधा हर धर्म और जाति के लोगों के घरों में देखा जा सकता है।
खूबसूरत बालकनी-
अपने मकान के मुख्य द्वार के आसपास, पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में बालकनी पर गुलाब, बेला, चमेली, ग्लेडियोलाई, कॉसमोस, कोचिया, जीनिया, गेंदा और सदाबहार जैसे फूलों के पौधे लगाए जा सकते हैं। अगर जगह कम हो तो स्टैंड वाले गमले में इन्हें लगाया जा सकता है।
पश्चिम या दक्षिणमुखी घर होने पर-
घर पश्चिम और दक्षिणमुखी होने की दशा में उसके आगे या मुख्य द्वार की ओर बड़े-बड़े पेड़-पौधों समेत लताओं वाले पौध लगाए जा सकते हैं।
* पेड़ों को घर की दक्षिण या पश्चिम दिशा में लगाएं। पेड़ सिर्फ एक दिशा में ही न लग कर इन दोनों दिशाओं में लगे होने चाहिए।
* एक तुलसी का पौधा घर में जरूर लगाएं। इसे उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्वी दिशा या फिर घर के सामने भी लगा सकते हैं।
* मुख्य द्वार पर पेड़ कभी भी न लगाएं। श्वेतार्क मुख्य द्वार पर लगाना वास्तु की दृष्टि से शुभ फलदायक होता है।
* नीम, चंदन, नींबू, आम, आवला, अनार आदि के पेड़-पौधे घर में लगाए जा सकते हैं।
* काटों वाले पौधे नहीं लगाएं। गुलाब के अलावा अन्य काटों वाले पौधे घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करते हैं।
* ध्यान रखें कि आपके आगन में लगे पेड़ों की गिनती 2, 4, 6, 8.. जैसी सम संख्या में होनी चाहिए, विषम में नहीं।
लोग अपने घरों की फुलवारी में या लॉन में छोटे-छोटे पौधे लगाया करते हैं। भवन में छोटे पौधों का अपने आप में बहुत महत्व होता है। घर में लगाए जाने वाले छोटे पौधों में कई पौधे ऐसे होते हैं जिनका औषधीय महत्व है। साथ ही उनका रसोई या सौंंदर्यवद्र्धन संबंधी महत्व भी है।
आज के समय में स्थान के अभाव में प्राय: लोग गमलों में ही पौधे लगाते हैं या लॉन तथा ड्राइंगरूम में सजाकर रख देते हैं। इन पौधों एवं लताओं की वजह से छोटे फ्लैटों में निवास करने वाले खुद को प्रकृति के नजदीक महसूस करते हैं एवं स्वच्छ हवा तथा स्वच्छ वातावरण का आनंद उठाते हैं।
तुलसी का पौधा इसी प्रकार का एक छोटा पौधा है जिसके औषधीय एवं आध्यात्मिक दोनों ही महत्व हैं। प्राय: प्रत्येक हिन्दू परिवार के घर में एक तुलसी का पौधा अवश्य होता है। इसे दिव्य पौधा माना जाता है। माना जाता है कि जिस स्थान पर तुलसी का पौधा होता है वहां भगवान विष्णु का निवास होता है। साथ ही वातावरण में रोग फैलाने वाले कीटाणुओं एवं हवा में व्याप्त विभिन्न विषाणुओं के होने की संभावना भी कम होती है। तुलसी की पत्तियों के सेवन से सर्दी, खांसी, एलर्जी आदि की बीमारियां भी नष्ट होती हैं।
किस दिशा में लगाए जाएं कौन से पौधे:
वास्तुशास्त्र के अनुसार छोटे-छोटे पौधों को घर की किस दिशा में लगाया जाए ताकि उन पौधों के गुणों को हम पा सकें, इसकी विवेचना यहां की जा रही है।
1. तुलसी के पौधों को यदि घर की उत्तर-पूर्व दिशा में रखा जाए तो उस स्थान पर अचल लक्ष्मी का वास होता है अर्थात उस घर में आने वाली लक्ष्मी टिकती है।
2. घर की पूर्वी दिशा में फूलों के पौधे, हरी घास, मौसमी पौधे आदि लगाने से उस घर में भयंकर बीमारियों का प्रकोप नहीं होता।
3. पान का पौधा, चंदन, हल्दी, नींबू आदि के पौधों को भी घर में लगाया जा सकता है। इन पौधों को पश्चिम-उत्तर के कोण में रखने से घर के सदस्यों में आपसी प्रेम बढ़ता है।
4. घर के चारों कोनों को ऊर्जावान बनाने के लिए गमलों में भारी प्लांट को लगाकर भी रखा जा सकता है। दक्षिण -पश्चिम कोने में अगर कोई भारी प्लांट है तो उस घर के मुखिया को व्यर्थ की चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
5. कैक्टस जैसे रुप के पौधे जिनमें नुकीले कांटे होते हैं उन्हें घर के अंदर लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं।
6. पलाश, नागकेशकर, अरिष्ट, शमी आदि का पौधा घर के बगीचे में लगाना शुभ होता है। शमी का पौधा ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए जो घर से निकलते समय दाहिनी ओर पड़ता हो।
7. घर के बगीचे में पीपल, बबूल, कटहल आदि का पौधा लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार ठीक नहीं। इन पौधों से युक्त घर के अंदर हमेशा अशांति का अम्बार लगा ही रहता है ।
8. फूल के पौधों में सभी फूलों, गुलाब, रात की रानी, चम्पा, जास्मीन आदि को घर के अंदर लगाया जा सकता है किन्तु लाल गेंदा और काले गुलाब को लगाने से चिंता एवं शोक की वृद्धि होती है।
9. शयनकक्ष के अंदर पौधे लगाना अच्छा नहीं माना जाता। बेल (लता) वाले पौधों को अगर शयनकक्ष के अंदर दीवार के सहारे चढ़ाकर लगाया जाता है तो इससे दाम्पत्य संबंधों में मधुरता एवं आपसी विश्वास बढ़ता है।
10. अध्ययन कक्ष के अंदर सफेद फूलों के पौधे लगाने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। अध्ययन कक्ष के पूर्व एवं दक्षिण के कोने में गमले को रखा जाना चाहिए।
11. रसोई घर के अंदर गमलों में पुदीना, धनिया, पालक, हरी मिर्च आदि के छोटे-छोटे पौधों को लगाया जा सकता है। वास्तुशास्त्र एवं आहार विज्ञान के अनुसार जिन रसोईघरों में ऐसे पौधे होते हैं वहां मक्खियां एवं चींटियां अधिक तंग नहीं करतीं तथा वहां पकने वाली सामग्री सदस्यों को स्वस्थ रखती है।
12. घर के अंदर कंटीले एवं वैसे पौधे जिनसे दूध निकलता हो, नहीं लगाने चाहिएं। ऐसे पौधों के लगाने से घर के अंदर वैमनस्य का भाव बढ़ता है एवं वहां हमेशा अशांति का वातावरण बना रहता है।
13. बोनसाई पौधों को घर के अंदर लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं क्योंकि बोनसाई को प्रकृति के विरुद्ध छोटा कद प्रदान किया जाता है। जिस प्रकार बोनसाई का विस्तार संभव नहीं होता, उसी प्रकार उस घर की वृद्धि भी बौनी ही रह जाती है।
१४. छोटे पौधों को उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। इस बात का खयाल रखें कि उत्तर-पूर्व में खुला स्थान बना रहे। लम्बे वृक्षों को बगीचे/भवन के पश्चिम, दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगाएं। इन्हें लगाते हुए यह खयाल रखें कि ये भवन की इमारत से पर्याप्त दूरी पर हों व सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच इनकी छाया इमारत पर न पड़े।
१५. विशाल दरख्तों जैसे पीपल, नीम आदि को भवन से पर्याप्त दूरी पर लगाना चाहिए, क्योंकि इनकी जड़ें भवन की नींव को क्षति पहुंचा सकती हैं। इस बात का भी खयाल रखें कि इन दरख्तों की छाया सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच इमारत पर न पड़े।
१६. कांटेदार पौधों को घर में कभी नहीं लगाना चाहिए क्योंकि ऐसे पौधे नकारात्मक ऊर्जा के वाहक होते हैं। खासकर कैक्टस तो बिल्कुल भी नहीं। इनकी घर में उपस्थिति अशुभ मानी जाती है। अगर आपके घर में कोई कांटेदार पौधा है भी, तो उसे तुरंत उखाड़ फेंकें।
१७. लताओं यानी बेलनुमा पौधों को आंगन या घर की दीवार पर न फैलने दें। इन्हें बगीचे में ही लगाएं और इन्हें अपनी सहायता से आप फैलने दें, लेकिन इन्हें बढऩे के लिए घर या आंगन की दीवार का सहारा न दें। मनी प्लांट अवश्य घर के भीतर लगाया जा सकता है। जो वृक्ष सांप, मधुमक्खी, कीड़े, चीटिंयों, उल्लू आदि को आमंत्रित करते हैं, ऐसे वृक्षों को बगीचे में न लगाएं।


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Saturday 23 May 2015

एक ही कतार के दरवाजे उचित या अनुचित

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वास्तु शास्त्र मुख्यत: दो ऊर्जाओं पर केंद्रित है। पहला सूर्य किरणों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा और दूसरा पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति से प्राप्त ऊर्जा। सूर्य ऊर्जा पूर्व दिशा से सूर्य के उगते समय प्राप्त होती है और चुंबकीय ऊर्जा उत्तर दिशा से प्राप्त होती है। इन दोनों दिशाओं के विपरीत की ऊर्जा ऋणात्मक ऊर्जा होती है अत: सकारात्मक ऊर्जा की दिशा में मकान का दरवाजा या खिड़की खोली जाए और नकारात्मक दिशा बंद रखी जाए तो जीवन में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य, शांति प्राप्त की जा सकती है।




वास्तुशास्त्र मेंं, सकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश एवं नकारात्मक ऊर्जा के निर्गम के लिए दरवाजा और खिड़की किसी भी घर के लिए महत्वपूर्ण हैं। जीवन में सुख और संतुष्टि के साथ समृद्धि बढ़ाने के लिए वास्तु के अनुसार घर मेंं रखी हर चीज का अपना अलग प्रभाव होता है। साथ ही घर के कमरे, खिड़की और दरवाजे आदि भी अच्छा-बुरा प्रभाव छोड़ते हैं।
घर का मुख्य दरवाजा सही स्थिति मेंं हो तो परिवार के सभी सदस्यों को इसका फायदा मिलता है। सभी के कार्य समय पर पूर्ण होते हैं और पारिवारिक तालमेल बना रहता है। कुछ लोगों के घरों मेंं मुख्य दरवाजे के अतिरिक्त अन्य दरवाजे भी होते हैं जहां से घर मेंं प्रवेश किया जा सकता है। वास्तु के अनुसार ऐसे दरवाजों से किसी व्यक्ति के घर मेंं प्रवेश नहींं करना चाहिए। घर मेंं प्रवेश हमेशा मुख्य दरवाजे से ही किया जाना चाहिए। ऐसा होने पर सकारात्मक विचारों का संचार होता है और हमारे बुरे विचार दूर हो जाते हैं। साथ ही जो लोग मुख्य द्वार के अतिरिक्त किसी और द्वार से घर मेंं प्रवेश करते हैं उनकी आर्थिक उन्नति होने मेंं काफी परेशानियां रहती हैं। संतान की वृद्धि उस घर मेंं नहींं होती तथा सदा परेशानी बनी रहती है। यदि किसी परिवार मेंं आर्थिक, मानसिक, शारीरिक या अन्य किसी प्रकार की परेशानियां चल रही हो और उसके घर मेंं एक कतार मेंं तीन या तीन से अधिक दरवाजे लगे हों तो वास्तुविद् उन्हें बहुत अशुभ बताते हुए एक दरवाजा कतार से हटाने की सलाह देते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि, वास्तुशास्त्र के किसी भी प्राचीन ग्रन्थ मेंं एक कतार मेंं तीन या तीन से अधिक दरवाजे से होने वाले अशुभ प्रभाव के बारे मेंं किसी प्रकार का कोई उल्लेख नहींं है, बल्कि इसके विपरीत भारत के ही कई प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिरों और महलों मेंं तीन या तीन से अधिक दरवाजे एक कतार मेंं देखने को मिलते हैं, जैसे - तिरुपति बालाजी, वृहदेश्वर मंदिर तंजावूर, एकाम्बरनाथ मंदिर कांचीपुरम्, मीनाक्षी मंदिर मदुरै, ज्योतिर्लिंग रामेंश्वरम् मंदिर, और तो और दक्षिण भारत के श्रीरंगम् स्थित चार किलोमीटर क्षेत्र मेंं फैला श्रीरंगनाथ स्वामी मंदिर मेंं तो सात दरवाजे एक कतार मेंं है, जिसका दक्षिण दिशा स्थित मुख्यद्वार 236फीट ऊँचा है।
किसी घर मेंं जब तीन या तीन से अधिक दरवाजे एक कतार मेंं होते हैं तो सामान्यत: पहला दरवाजा मुख्यद्वार और आखिरी वाला दरवाजा घर का पिछला दरवाजा होता है। यदि कोई भवन भारतीय वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों के अनुकूल बना हो तो तीन या तीन से अधिक दरवाजे एक कतार मेंं रखे जा सकते हैं और यह पूर्णत: शुभ होकर परिवार मेंं सुख-शांति और समृद्धि लाते हैं, जैसे किसी भी भवन का मुख्यद्वार पूर्व मेंं हो तो अंतिम द्वार पश्चिम मेंं होगा।
यदि मुख्यद्वार पश्चिम मेंं हो तो अंतिम द्वार पूर्व मेंं होगा। इसी प्रकार उत्तर दिशा मेंं मुख्यद्वार हो तो दक्षिण दिशा मेंं अंतिम द्वार होगा और यदि दक्षिण दिशा मेंं मुख्य द्वार हो तो अंतिम द्वार उत्तर दिशा मेंं होगा। ऐसी स्थिति मेंं एक कतार मेंं होने के कारण पूर्व आग्नेय का अंतिम दरवाजा पश्चिम नैऋत्य मेंं होता है और उत्तर वायव्य का अंतिम दरवाजा दक्षिण नैऋत्य मेंं होता है। इसी प्रकार मुख्यद्वार दक्षिण दिशा मेंं दक्षिण नैऋत्य मेंं रखा जाता है ताकि पिछला द्वार उत्तर वायव्य मेंं खुले और पश्चिम दिशा मेंं पश्चिम नैऋत्य मेंं रखा जाता है ताकि पिछला द्वार पूर्व आग्नेय मेंं खुले। दोषपूर्ण स्थान पर लगा एक ही दरवाजा अशुभ होता है और यदि एक ही कतार मेंं तीन या तीन से अधिक दरवाजे लगे हो और मुख्यद्वार के साथ-साथ अंतिम दरवाजा भी घर के पिछले भाग मेंं दोषपूर्ण स्थान पर खुलता हो तो यह स्थिति अत्यन्त दुखदायी एवं घातक होती है, किन्तु भारत के कुछ विद्वान् वास्तुविदों ने बिना किसी शोध के यह भ्राँति फैला दी है कि, किसी भी स्थिति मेंं चाहे वह स्थिति शुभ हो या अशुभ एक कतार मेंं तीन या तीन से अधिक द्वार शुभ नहींं होते हैं और एक द्वार कतार से हटाने से यह दोष दूर हो जाता है। घर के पूर्व आग्नेय मेंं द्वार होने पर घर मेंं कलह और चोरी से नुकसान होता है। यदि इसी के साथ वहाँ रेम्प, गड्ढा या ढलान हो तो घर का मालिक या मालकिन पाप कर्म करते हुए मानसिक दु:ख से पीडि़त रहते हैं।
पश्चिम नैऋत्य मेंं चारदीवारी या घर का द्वार हो तो घर के पुरुष बदनामी जेल, एक्सीडेंट या खुदकुशी के शिकार होते हैं। हार्ट अटैक, आपरेशन, एक्सिडेन्ट, हत्या, लकवा या किसी प्रकार की जालिम मौत से मरते हैं। यह द्वार शत्रु स्थान का है। यदि इसी के साथ यहाँ किसी भी प्रकार की रेम्प, नीचाईयाँ, भूमिगत पानी का स्रोत हो तो उस घर मेंं किसी पुरुष सदस्य की आत्महत्या या दुर्घटना से मृत्यु हो सकती है। अर्थात् परिवार के पुरुष सदस्य के साथ अनहोनी होती है।
उत्तरी वायव्य का प्रवेशद्वार दु:खदायी, कलहकारी, बैर भाव, मुकदमेबाजी व बदनामी लाने वाला रहता है। इसी के साथ यदि यहां रैंम्प, गड्ढा हो तो शत्रु की संख्या मेंं वृद्धि, स्त्री को कष्ट, घर मेंं मानसिक अशांति रहती है। दक्षिण नैऋत्य मेंं घर या कम्पाउण्ड वाल का द्वार हो तो उस घर की महिलाएँ गम्भीर बीमारियों की शिकार होती है।
यहाँ किसी भी प्रकार का भूमिगत पानी का स्रोत होगा तो आत्महत्या या दुर्घटना से मृत्यु हो सकती है या किसी प्रकार की अनहोनी का शिकार होती है। अनुभव मेंं आया है कि, जिस घर मेंं डाका पड़ता है, उस घर के दरवाजे सब एक कतार मेंं होते हैं। मुख्यद्वार उत्तर वायव्य मेंं होकर सबसे पीछे का बाहर पडऩे वाला दरवाजा अगर दक्षिण नैऋत्य मेंं हो या पूर्व आग्नेय से पश्चिम नैऋत्य मेंं एक कतार के दरवाजे हों तो वहाँ डाका पड़ सकता है। यदि इन दरवाजों के दोष के साथ-साथ पूर्व आग्नेय और पश्चिम नैऋत्य दोनों तरफ नीचाई हो तो डाके के दौरान हिंसा होती है और किसी पुरुष सदस्यों की हत्या तक हो सकती है और यदि उत्तर वायव्य और दक्षिण नैऋत्य मेंं यह स्थिति बने तो डाके के दौरान स्त्रियों के साथ दुराचार होता है साथ ही उनकी हत्या होने की सम्भावना होती है। ऐसी स्थिति मेंं कोई एक दरवाजा हटाने से इस दोष का निवारण जरूर हो जाता है, चाहे वह बीच का ही दरवाजा क्यों ना हो।
रसोई मेंं एक खिड़की ऐसी बनवाएं जो पूर्व दिशा को ओर खुलती हो, ताकि सूर्य की प्रात:कालीन किरणें रसोई घर मेंं प्रवेश कर सके। ऐसा होने पर हानिकारक सूक्ष्म कीटाणु नष्ट हो सकते हैं। नमी, सीलन आदि भी समाप्त हो सकती है।
1. यदि आपके घर का दरवाजा दक्षिण दिशा की ओर है तो आप इसे गहरे महरून, पेल यलो या वर्मिलियन रेड के शेड से रंग सकते है। इन सभी कलर शेड के कलर बाजार मेंं आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
2. मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर दिशा की ओर है तो छह छड़ वाली धातु की बनी विंड चाइम लगानी चाहिए। विंड चाइम की खनखनाहट से मुख्य दरवाजे के आसपास के बुरे प्रभाव दूर हो सकते हैं। यहां बताए जा रहे वास्तु के सभी आइटम्स बाजार मेंं आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
3. पश्चिम की ओर मुख वाले दरवाजे के लिए प्लॉट या यहां तक कि बालकनी के उत्तर-पूर्व क्षेत्र मेंं तुलसी का पौधा नकारात्मक प्रभावों को भी सकारात्मकता प्रदान कर सकता है। इसी तरह चमेंली की बेल भी सुगंध से प्रतिकूल प्रभावों को दूर करने का काम करती है।
4. दरवाजों के दोनों ओर काफी सारे हरे और लम्बे स्वस्थ पौधे लगाए जा सकते हैं जो गलत दिशा मेंं बने दरवाजे के दुष्प्रभावों को दूर करने का काम करेंगे।
5. मुख्य दरवाजे कोई पवित्र चिह्न लगाएं, जैसे ऊँ, श्रीगणेश, स्वस्तिक, शुभ-लाभ आदि। ऐसा करने पर घर पर सभी देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है और बुरी नजर से घर की रक्षा होती है।
6. मुख्य द्वार का मुख पूर्व या दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर है तो दरवाजे के अंदर बाएं ओर जल पात्र को पानी और फूल की पंखुडय़िों से भरकर रखें। इससे दिशा को सकारात्मक रुख देने मेंं मदद मिलेगी। वैसे वास्तु के हिसाब से पूर्व दिशा पवित्र समझी जाती है।
7. उत्तर दिशा के दरवाजे के लिए सफेद, पेल ब्लू कलर बेहतर होते हैं।
8. मुख्य दरवाजा पश्चिम दिशा की ओर मुख वाला हो तो सूर्यास्त के वक्त दुष्प्रभावों को रोकने के लिए द्वार के समीप क्रिस्टल ग्लास रखें।




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प्राकृतिक शक्तियों का प्रवाह दिशा के अनुसार


प्राकृतिक शक्तियों का प्रवाह दिशा के अनुसार
किसी भी भवन में प्राकृतिक शक्तियों का प्रवाह दिशा के अनुसार होता है अतः यदि भवन सही दिशा में बना हो तो उस भवन में रहने वाला व्यक्ति प्राकृतिक शक्तियों का सही लाभ उठा सकेगा, किसकी भाग्य वृद्धि होगी। किसी भी भवन में कक्षों का दिशाओं के अनुसार स्थान इस प्रकार होता है।
वास्तुशास्त्र को लेकर हर प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है। भूखण्ड एवं भवन के दोषपूर्ण होने पर उसे उचित प्रकार से वास्तुनुसार साध्य बनाया जा सकता है। हमने अपने अनुभव से जाना है कि जिन घरों के दक्षिण में कुआं पाया गया उन घरों की गृहस्वामिनी का असामयिक निधन आकस्मिक रूप से हो गया तथा घर की बहुएं चिरकालीन बीमारी से पीड़ित मिली। जिन घरों या औद्योगिक संस्थानों ने नैऋत्य में बोरिंग या कुआं पाया गया वहां निरन्तर धन नाश होता रहा, वे राजा से रंक बन गये, सुख समृध्दि वहां से कोसों दूर रही, औद्योगिक संस्थानों पर ताले पड़ गये। जिन घरों या संस्थानों के ईशान कोण कटे अथवा भग्न मिले वहां तो संकट ही संकट पाया गया। यहां तक कि उस गृहस्वामी अथवा उद्योगपति की संतान तक विकलांग पायी गयी। जिन घरों के ईशान में रसोई पायी गयी उन दम्पत्तियों के यहां कन्याओं को जन्म अधिक मिला या फिर वे गृह कलह से त्रस्त मिले। जिन घरों में पश्चिम तल नीचा होता है तथा पश्चिमी नैऋत्य में मुख्य द्वार होती है, उनके पुत्र मेधावी होने पर भी निकम्मे तथा उल्टी-सीधी बातों में लिप्त मिले हैं।
...यदि आप भी अपना वास्तुचेक कराना चाहे तो संपर्क करे.

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जानें वास्तु द्वारा कैसे करें भूमि परीक्षण

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भूमि परीक्षण
भूमि परीक्षण के लिये भूखंड के मध्य में भूस्वामी के हाथ के बराबर एक हाथ गहरा, एक हाथ लंबा एवं एक हाथ चौड़ा गड्ढा खोदकर उसमें से मिट्टी निकालने के पश्चात् उसी मिट्टी को पुनः उस गड्ढे में भर देना चाहिए। ऐसा करने से यदि मिट्टी शेष रहे तो भूमि उत्तम, यदि पूरा भर जाये तो मध्यम और यदि कम पड़ जाये तो अधम अर्थात् हानिप्रद है। अधम भूमि पर भवन निर्माण नहीं करना चाहिये। इसी प्रकार पहले के अनुसार नाप से गड्ढा खोद कर उसमें जल भरते हैं, यदि जल उसमें तत्काल शोषित न हो तो उत्तम और यदि तत्काल शोषित हो जाए तो समझें कि भूमि अधम है। भूमि के खुदाई में यदि हड्डी, कोयला इत्यादि मिले तो ऐसे भूमि पर भवन नहीं बनाना चाहिए।
यदि खुदाई में ईंट पत्थर निकले तो ऐसा भूमि लाभ देने वाला होता है। भूमि का परीक्षण बीज बोकर भी किया जाता है। जिस भूमि पर वनस्पति समय पर उगता हो और बीज समय पर अंकुरित होता हो तो वैसा भूमि उत्तम है। जिस भूखंड पर थके होकर व्यक्ति को बैठने से शांति मिलती हो तो वह भूमि भवन निर्माण करने योग्य है। वास्तु शास्त्र में भूमि के आकार पर भी विशेष ध्यान रखने को कहा गया है। वर्गाकार भूमि सर्वोत्तम, आयताकार भी शुभ होता है। इसके अतिरिक्त सिंह मुखी एवं गोमुखि भूखंड भी ठीक होता है। सिंह मुखी व्यावसायिक एवं गोमुखी आवासीय दृष्टि उपयोग के लिए ठीक होता है।



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इन उपायों :से मिलेगी व्यवसाय में सफलता

इन उपायों :से मिलेगी व्यवसाय में सफलता
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सभी को अपने व्यवसाय में सफलता की चाहत होती है। अगर जीतोड़ मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिल पा रही है तो आपके लिए हम लाए हैं आसान उपाय। लाभ के लिए जरूरी है कि आप जहां कारोबार कर रहे हैं वहां धन आगमन की अनुकूल स्थिति हो। यह अनुकूल स्थिति तब बनती है जब दुकान या व्यापारिक प्रतिष्ठान का वास्तु सही हो नहीं तो मेहनत और समय खर्च करने के बाद भी लाभ को लेकर निराशा जनक स्थिति बनी रहती है।
वास्तु विज्ञान के अनुसार व्यापार में बेहतर लाभ पाने के लिए सबसे पहले तो यह करें कि व्यापारिक प्रतिष्ठान की दीवारों पर गहरे रंग नहीं लगवाएं। सफेद, क्रीम एवं दूसरे हल्के रंगों का प्रयोग सकारात्मक उर्जा का संचार करता है जो लाभ वृद्घि में सहायक होता है। दीपावली आने वाली है तो रंग-रोगन करवाते समय इन बातों का ध्यान रखिएगा।
दूसरी बात जो गौर करने की है वह यह है कि व्यापारिक प्रतिष्ठान का दरवाजा अंदर की ओर खुले। बाहर की ओर दरवाजे का खुलना लाभ को कम करता है क्योंकि आय के साथ व्यय भी बढ़ा रहता है।
दुकानों में उत्तर एवं पश्चिम दिशा की ओर शोकेस का निर्माण करवाना चाहिए। इससे खरीदारों की संख्या बढ़ती है। धन में वृद्घि के लिए तिजोरी का मुंह उत्तर की ओर रखें क्योंकि यह देवाताओं के कोषाध्याक्ष कुबेर की दिशा है।
अगर आपके व्यापारिक प्रतिष्ठा में सीढ़ियां बनी हुई है तो इस बात का ध्यान रखें कि सीढ़ियों की संख्या सम नहीं होनी चाहिए।

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