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Wednesday 3 June 2015

क्या करें कि डिग्री प्राप्ति के बाद जाॅब मिल जाये -

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सभी लोगों की कामना होती है कि उसकी पढ़ाई पूरी होते ही या उसके बच्चे की डिग्री आते ही उसे एक अच्छी जाॅब मिल जायें किंतु इसमें कोई सफल होता है तो कई बार लोगों को असफलता भी हाथ लगती है। पढ़ाई समाप्त करते ही किसी जातक के पास आय का साधन कितना तथा कैसा होगा इसकी पूरी जानकारी उस व्यक्ति की कुंडली तथा उस समय के ग्रह गोचर से जाना जा सकता है। कुंडली में दूसरे स्थान से धन की स्थिति, तीसरे स्थान से मन की स्थिति, दसम स्थान से कर्म की स्थिति तथा एकादष स्थान से आय की स्थिति एवं नवम स्थान से भाग्य के संबंध में जानकारी मिलती है अतः इस स्थान का स्वामी अगर अनुकूल स्थिति में है या इस भाव में शुभ ग्रह हो तो षिक्षा, धन जीवन में बनी रहती है तथा जीवनपर्यन्त धन तथा संपत्ति बनी रहती है। दूसरे भाव या भावेष के साथ कर्मभाव या लाभभाव तथा भावेष के साथ मैत्री संबंध होने से जीवन में धन की स्थिति तथा अवसर निरंतर अच्छी बनी रहती है। जन्म कुंडली के अलावा नवांष में भी इन्हीं भाव तथा भावेष की स्थिति अनुकूल होना भी आवष्यक होता है। अतः जीवन में इन भाव एवं भावेष के उत्तम स्थिति तथा मैत्री संबंध बनने से व्यक्ति के जीवन में अस्थिर या अस्थिर संपत्ति की निरंतरता तथा साधन बने रहते हैं। इन सभी स्थानों के स्वामियों में से जो भाव या भावेष प्रबल होता है, धन के निरंतर आवक का साधन भी उसी से निर्धारित होता है। अतः जीवन में धन तथा सुख समृद्धि निरंतर बनी रहे इसके लिए इन स्थानों के भाव या भावेष को प्रबल करने, उनके विपरीत असर को कम करने का उपाय कर जीवन में सुख तथा धन की स्थिति को बेहतर किया जा सकता है। जाॅब प्राप्ति हेतु किसी भी जातक की कुंडली में ग्रह दषाओं का आकलन करें, यदि शनि या बुध की शुक्र की दषाओं में जाॅब मिलने में बाधा आती है अतः अपने ग्रह दषाओं का आकलन करया जाकर ग्रह शांति कराना चाहिए। आर्थिक स्थिति को लगातार बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक जातक को निरंतर एवं तीव्र पुण्यों की आवष्यकता पड़ती है, जिसके लिए जीव सेवा करनी चाहिए। सूक्ष्म जीवों के लिए आहार निकालना चाहिए। अपने ईष्वर का नाम जप करना चाहिए। कैरियर को बेहतर बनाने के लिए शनिवार का व्रत करें।

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शनि जयंति के व्रत तथा पूजन से पायें जीवन में खुषहाली-

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शास्त्रों के अनुसार शनि देव जी का जन्म ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को रात के समय हुआ था। इस बार सोमवती अमावस्या होने के कारण इसका महत्व और भी बढ गया है। सोमवती अमावस्या पितर दोष दुर करने के लिये अति उत्तम है। आज के दिन किसी को शनि-राहु का दोष हो तो सोमवती अमावस्या को शनिदेव की पूजा से बहुत जल्दी यह दोष समाप्त हो जाता है। आज के दिन परिवार के साथ पीपल के पेड के पास जाइये, उस ही पीपल देवता को एक जनेऊ दीजिये साथ ही दुसरा जनेऊ भगवान विष्णु जी के नाम से उसी पीपल के पेड को दीजिये, पीपल के पेड और भगवान विष्णु को नमस्कार कर प्रार्थना कीजिये, अब एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की करें दुध की बनी मिठाई अथवा बताशा को हर परिक्रमा के साथ पीपल को अर्पित करते जाईए। फिर प्रार्थना करे कि जाने अन्जाने में हुये अपराधो के लिए उनसे क्षमा मांगिये। और अपने पितरो के कल्याण के लिए प्रार्थना करें। इस वर्ष शनि जयंती का पर्व दिनांक सोमवार 18.05.15 को अमावस्या तिथि को रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में उदय होने पर मनाया जाएगा। सोमवार के दिन आमवस्या तिथि व रोहिणी नक्षत्र के मेल से बना यह अत्यंत दुर्लभ योग है, राहु से पापाक्रांत शनि के दोषो को दूर कर आपके जीवन में व्यवसायिक समृद्धि दाता होगा।

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सूर्य का उच्च राषि मेष में प्रवेष देगा जीवन में स्वास्थ्य एवं समृद्धि-


      समस्त ग्रहों की अपनी उच्च एवं निम्न स्थिति होती हैं जब कोई ग्रह अपने उच्च स्थान पर होता है तो वह अपना अच्छा असर प्राणी पर डालता है। ग्रहों के राजा सूर्य 14 अप्रेल को दोपहर 3.25 बजे मीन राशि को छोड़कर उच्च राशि मेष में प्रवेश करेंगे। ये यहां 15 मई तक रहेंगे। प्रतिवर्ष 13 या 14 अप्रैल को सूर्य मेष राशि में प्रवेश होते ही श्रेष्ठ एवं उच्च का होता है। मेष राशि चक्र की प्रथम राशि है। इस समय सूर्य नक्षत्र समूह के प्रथम नक्षत्र अश्विनी में भी प्रवेश करता है। कई स्थानों पर इस दिन नववर्ष वैशाखी पर्व मनाते हैं। सूर्य एक राशि में एक माह रहता है। सूर्य का उच्च राशि में प्रवेश उन्नतिदायक व खुशहाली देने वाला रहेगा। मेष के सूर्य में तेजी रहती है इसलिए वह सबसे ज्यादा तपता है। यह सूर्य अर्यमा के नाम से भी जाना जाता है। अर्यमा सूर्य 10 हजार किरणों के साथ तपते हुए पीले वर्ण के होते हैं। यह सूर्य प्राणियों में स्वास्थ्य एवं जीवन देते हैं। मेष राशि में सूर्य के प्रवेश के बाद फिर से मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी। जिस भी जातक की कुंडली में सूर्य प्रतिकूलकारी हो अथवा सूर्य राहु से पापाक्रांत हो जाए अथवा सूर्य अपने स्थान से छठवे, आठवे या बारहवे बैठ जाए उन जातकों के लिए सूर्य की मेष संक्रांति विषेष रूप से फलदायी होती है अतः इस समय अपने सूर्य को मजबूत बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए, उसके लिए सूर्य को अध्र्य देना, मंत्रो का जाप करना तथा सूर्य से संबंधित वस्तुओं जैसे गेंहू, गुड तथा माणिक का दान करना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य से संबंधित कष्ट का निवारण होता हैं जिन भी जातक को आर्थराइटिस से संबंधित कष्ट हो उनके लिए मेष का सूर्य विषेष फलदायी होता है इस समय सूर्य स्नान से इस रोग से राहत प्राप्त होता है।




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क्या है अष्टकूट की धारणा-क्यू महत्वपूर्ण हैं नाड़ी और भकुट दोष-


भारतीय ज्योतिष में कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की विधि में मिलाएॅ जाने वाले अष्टकूटों में नाड़ी और भकूट को सबसे अधिक गुण प्रदान किये जाते हैं। नाड़ी को 8 और भकूट को 7 गुण प्रदान किय जाते हैं। मिलान की विधि में यदि नाड़ी और भकूट के गुण मिलते हैं तो गुणों को पूरे अंक और ना मिलने की स्थिति में शून्य अंक दिया जाता है। इस प्रकार से अष्टकूटों के मिलान में प्रदान किये जाने वाले 36 गुणों में 15 गुण केवल इन दो कूटों के मिलान से ही आ जाते हैं। भारतीय ज्योतिष में प्रचलित धारणा के अनुसार इन दोनों दोषों को अत्यंत हानिकारक माना जाता है। इन गुणों के ना मिलने की स्थिति में माना जाता है कि वैवाहिक जीवन में कठिनाई, संतान सुख में कमी तथा वर या वधु की मृत्यु का कारण बनता है। इन दोनों कूटों के मान का इतना महत्व माना जाता है जिसके लिए किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा की किसी नक्षत्र विषेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र संख्या में कुल 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विषेष नक्षत्रों में चंद्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है। इसी प्रकार यदि वर-वधु की कुंडलियों में चंद्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 12-2 राषियों में स्थित हो तो भकूट मिलान के 0 अंक और इन स्थानों पर ना होने पर पूरे 7 अंक प्राप्त होती है। किंतु व्यवहारिक स्वरूप में देखा जाए तो कुंडली मिलान की यह विधि अपूर्ण होने के साथ अनुचित भी है। सिर्फ चंद्रमा का महत्व यदि व्यक्ति के जीवन में आधा मान लिया जाए जैसा कि 36 में से 15 गुण प्रदान करना है तो बाकि के आठ ग्रहों का व्यक्ति की कुंडली में महत्व ही नहीं माना जायेगा। हालांकि भारतीय मत के अनुसार विवाह दो मनों का पारस्पिरिक मिलन होता है तथा चंद्रमा व्यक्ति के मन पर सीधे प्रभाव डालता है इस दृष्टि से चंद्रमा की स्थिति का महत्व माना जा सकता है किंतु किसी व्यक्ति की कुंडली में सुखमय वैवाहिक जीवन के लक्षण, सुख, संतान पक्ष, आर्थिक सुदृढ़ता, अच्छे स्वास्थ्य एवं आपस में मित्रवत् व्यवहार तथा सामंजस्य को देखा जाना ज्यादा आवष्यक है ना कि सिर्फ नाड़ी और भकूट दोष के आधार पर कुंडली के मिलान ना स्वीकारना या नाकारना। इस प्रकार कुंडली मिलान की प्रचलित रीति सुखी वैवाहिक जीवन बताने में न तो पूर्ण है और ना ही सक्षम। इस प्रकार से कुंडली मिलान को मिलान की एक विधि का एक हिस्सा मानना चाहिए न कि अपने आप में एक संपूर्ण विधि। सिर्फ चंद्रमा के अनुसार मिलान की प्रक्रिया के अतिरिक्त अन्य ग्रहों की स्थिति तथा मिलान के अनुसार ग्रह दोषों के अनुसार मिलान ज्यादा सुखी तथा वैवाहिक रिष्तों की नींव होगी जिससे आज के युग में चल रही अलगाव या तलाक की स्थिति को कम कर आपसी सद्भावना तथा तनाव को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।


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Monday 1 June 2015

केतु का प्रभाव: जीवन में निरंतर उन्नति का प्रेरणाश्रोत


निरंतर चलायमान रहने अर्थात् किसी जातक को अपने जीवन में निरंतर उन्नति करने हेतु प्रेरित करने तथा बदलाव हेतु तैयार तथा प्रयासरत रहने हेतु जो ग्रह सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है, उसमें एक महत्वपूर्ण ग्रह है केतु। ज्योतिष शास्त्र में राहु की ही भांति केतु भी एक छायाग्रह है तथा यह अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसका स्वभाग मंगल ग्रह की तरह प्रबल और क्रूर माना जाता है। केतु ग्रह विषेषकर आध्यात्म, पराषक्ति, अनुसंधान, मानवीय इतिहास तथा इससे जुड़े सामाजिक संस्थाएॅ, अनाथाश्रम, धार्मिक शास्त्र आदि से संबंधित क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। केतु ग्रह की उत्तम स्थिति या ग्रह दषाएॅ या अंतरदषाओं में जातक को उन्नति या बदलाव हेतु प्रेरित करता है। केतु की दषा में परिवर्तन हेतु प्रयास होता है। पराक्रम तथा साहस दिखाई देता है। राहु जहाॅ आलस्य तथा कल्पनाओं का संसार बनाता है वहीं पर केतु के प्रभाव से लगातार प्रयास तथा साहस से परिवर्तन या बेहतर स्थिति का प्रयास करने की मन-स्थिति बनती है। केतु की अनुकूल स्थिति जहाॅ जातक के जीवन में उन्नति तथा साकारात्मक प्रयास हेतु प्रेरित करता है वहीं पर यदि केतु प्रतिकूल स्थिति या नीच अथवा विपरीत प्रभाव में हो तो जातक के जीवन में गंभीर रोग, दुर्घटना के कारण हानि,सर्जरी, आक्रमण से नुकसान, मानसिक रोग, आध्यात्मिक हानि का कारण बनता है। केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि तथा अषुभ प्रभाव को कम करने हेतु केतु की शांति करानी चाहिए जिसमें विषेषकर गणपति भगवान की उपासना, पूजा, केतु के मंत्रों का जाप, दान तथा बटुक भैरव मंत्रों का जाप करना चाहिए जिससे केतु का शुभ प्रभाव दिखाई देगा तथा जीवन में निरंतर उन्नति बनेगी।

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