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Friday 22 May 2015

कुंडली में ग्रहों की दशा और आपका स्वस्थ्य


आधुनिक युग में अधिकांश मनुष्य चिंता, उन्माद, अवसाद, भय आदि से प्रभावित है। मनोविज्ञान में इन्हें मनोरोगों के एक प्रकार मनस्ताप (न्यूरोटाॅसिज्म) के अंतर्गत रखा गया है। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकार है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएॅं उत्पन्न होती हैं। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकास है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबधी गंभीर समस्याएॅं उत्पनन होती हैं। मनस्ताप के कारण व्यक्ति का व्यक्तिगत एवं सामाजिक समायोजन कठिन हो जाता है। साथ ही इससे व्यक्ति में अंतर्द्धंद्ध एवं कुंठा उत्पन्न होती है। मतस्ताप के लक्षण बहुत तीव्र नहीं होते और इससे पीडि़त रोगियों का व्यवहार भी आक्रामक नहीं होता । अतएव इन्हें मानसिक चिकित्सालयों में भरती कराने की अपेक्षा एक मनोचिकित्सक की अधिक आवश्यकता होती है। चूॅकि इन व्यक्तियों का संबध वास्तविकता से बना रहता है, अतः इन्हें अपने दैनिक कार्यो के निष्पादन मे थोड़ी परेशानी होती है।
मानवीय जीवन मुख्यतः विचारों, भावों से संचालित होता है। इनकी दिशा जिस ओर होती है, उसी के अनुसार व्यक्ति का जीवन भी गति करता है। मानवीय जीवन पर बहुत सारे कारकों, जैसे पारिवारिक वातावरण, परिस्थितियाॅं, सामाजिक स्थिति, सदस्यों से संपर्क आदि का प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूपा उसके विचारों एवं भावों में उतार-चढ़ाव आता रहता है। इसके अलावा भी जीवन की जो सबसे अधिक प्रभावित करता है, वह है अंतग्रही दशाओं का प्रभाव। यद्यपि ये ग्रह पृथ्वी से दूर स्थित है, लेकिन व्यक्ति के जीवन को क्षण-क्षण में प्रभावित करते हैं। इनकी स्थिति-परिस्थितियाॅें का निर्धारण व्यक्ति के पूर्वजन्म के कर्मो के अनुसार होता है। पूर्व जन्म के पाप एवं पुण्य कर्मो के अनुसार इन ग्रहों की गति, स्थिति व प्रभाव का निर्धारण होता है। प्राचीन भारतीय विद्याओं में जयोतिष विज्ञान एक ऐसी विद्या है, जिसमें ग्रहों की दशा तथा अंतर्दशा के आधार पर शुभ व अशुभ घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है। चिकित्सा ज्योतिष भी भारतीय ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण भाग है। चिकित्सा ज्योतिष के द्वारा जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति व दशा-चाल से मनुष्य को भविष्य में कौन-कौन से रोग होने की संभावना है, यह जाना जा सकता है । इसी चिकित्सा ज्योतिष के अंतर्गत मानसिक रोगों को समय से पूर्व जाना जा सकता है।
रोगी की जन्मकुंडली में वर्तमान मंे चल रही महादशा (विभिन्न समूय अंतरालों में ग्रहों की स्थिति), अंतर्दशा (उस समय अंतरालों में आने वाले ग्रहों के छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव), प्रत्यंतदशा (अंतर्दशा में ग्रहों के सूक्ष्म उतार-चढ़ाव) ज्ञात कर एवं गोचर (वर्तमान समय में ग्रहों की स्थिति) की सही स्थिति जानकर चिकित्सक रोग का सही निदान करके सफल चिकित्सा कर सकता है।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की शोधार्थी पूजा कौशिक ने सन् 2009 में ‘ग्रहों के ज्योतिषीय योगों का मनस्तापीयता पर पड़ने वाले प्रभाव का
अध्ययन‘ विषय पर शोधकार्य किया। यह शोधकार्य कुलाधिपति डाॅ0 प्रणव पण्डया के संरक्षण, प्रो0 देवीप्रसाद त्रिपाठी के निर्देशन एवं डाॅ0 प्रेरणा पुरी के सहनिर्देशन में किया गया। इस शोध अध्ययन में देहरादून के दो मनोचिकित्सालयों मे से आकस्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा 200 मनस्तापी व्यक्तियों का चयन किया गया, जिसमें 108 पुरूष प्रयोज्य एवं 92 महिला प्रयोज्य शामिल थे। इस शोध अध्ययन में ग्रहों के ज्योतिषीय शेगों के मनस्तापीय स्तर को जाॅचने के लिए ज्योतिषीय उपकरण के रूपा में जन्मकुंडली (जिसके लिए मुख्य रूप से प्रयोज्यों की जन्म तारीख, जन्म समय एवं जन्म स्थान को नोट किया गया) एवं मनोवैज्ञानिक उपकरण के रूप में न्यूरेसिस मापनी स्केल का प्रयोग किया। प्राप्त आॅकड़ो के यंख्यिकीय विश्लेषण के लिए काई-टेस्ट को प्रयुक्त किया गया।
परिणामों में यह पाया गया कि 200 स्त्री-पुरूषोूं में से 150 स्त्री-पुरूषों की जन्मपत्रिका में ज्योतिष अध्ययन के अनुसार ग्रहयोग (चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरू, शनि और छाया ग्रह राहु) प्रभावित कर रहे थे। विशेषतः मनस्ताप एवं ग्रहयोगों से पीडि़त स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में लग्न भाव (जिससे संपूर्ण देह एवं मस्तिष्क का विचार किया जाता है), चतुर्थ भाव (जिसमे मन एवं विचार का) तथा पंचम भाव (जिससे बुद्धि का विचार किया जाता है) विशेष रूप से प्रभावित एव पीडि़त पाए गए, किंतु 200 स्त्री-पुरूषों में से 50 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में ग्रहयोग उपयुक्त स्थानों से अन्यत्र स्थान में होने पर भी अपनी महादशा, अंतर्दशा में व्यक्ति के मन को संतापित करते हुए पााए गए तथा साथ ही यह भी पाया गया कि 173 स्त्री-पुरूषों (86.5 प्रतिशत) की कुंडली में पापग्रह शनि, राहु, केतु तथा क्षीण चंद्रमा अपनी महादशा एवं अंतर्दशा से व्यक्ति को प्रभावित कर रहे थे।
इस अध्ययन में मनस्तापी व्यक्तियों की कुंडली की विवेचना करने पर यह भी ज्ञात हुआ है कि 200 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडलियों में से 118 जन्मकुंडलियाॅं ऐसे स्त्री-पुरूषों की पाई गई, जिनका जन्म कृष्णपक्ष मे हुआ, अर्थात 59 प्रतिशत मनस्तापी व्यक्तियों का जन्म शुक्ल-पक्ष की तुलना में कृष्णपक्ष में ज्यादा हुआ। मनस्तापी व्यक्तियों की जन्मकुंडलियों की विवेचना से यह भी ज्ञात हुआ कि 200 में से 123 मनस्तापी व्यक्तियों के चतुर्थ भाव तथा पंचम भाव पापग्रह-क्षीण चंद्रमा, अस्त बुध, शनि, राहु एवं केतु से प्रभावित पाए गए, अर्थात 61.5 प्रतिशत मनस्तापी स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली का चतुर्थ एवं पंचम भाव पापग्रहों के प्रभाव से प्रभावित पाया गया।
इस अध्ययन में 200 मनस्तापी व्यक्तियों मंे से 54 प्रतिशत पुरूष एवं 46 प्रतिशत स्त्रियाॅं मनस्ताव से प्रभावित पाई गई। साथ ही युवा वर्ग (21 से 32 आयु वर्ग) में मनस्ताप एवं ग्रहों का प्रभाव सर्वाधिक पाया गया एवं शिक्षा का स्तर भी ऐसे स्त्री-पुरूषों में सामान्य पाया गया। ऐसे स्त्री-पुरूष स्नातक स्तर तक शिक्षित पाए गए एवं ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक संख्या में शहरी क्षेत्र के मध्यम वर्ग से संबधित पाए गए । इस प्रकार 200 स्त्री-पुरूषों की कुंडलियों के अध्ययन से यह पता चला कि विभिन्न ग्रहयोगों का संबध व्यक्ति के मन की विभिन्न संतप् क्रियाओं से होता है। अतः निष्कर्ष रूप में यह कह सकते हैं कि मानचीय स्वास्थ्य, अंतग्रही गतिविधियों एवं परिवर्तनों से असाधारण रूप से प्रभावित होता है।
पं0 श्रीराम शर्मा आचार्या जी के अनुसार रोगों की उत्पत्ति में प्रत्यक्ष स्थूल कारणों को महत्व दिया जाता है और स्कूल उपचारों की बात सोची जाती है, यदि अदृश्य किंतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ग्रह-नक्षत्रों के ज्ञान का भी चिकित्सा अनुसंधान की कड़ी से जोड़ा जा सके, तो रोगों के कारण और निवारण में अनेक चमत्कारों, सूत्र हाथ लग सकते हैं, जिनसे अपरिचित बने रहने से रोगोपचार में चिकित्सक अपने को अक्षम पाते हैं। निदान और उपचार की प्रक्रिया में ऐसे अनेक रहस्य इस अनुसंधान-प्रक्रिया में खुलने की संभावना है। यद्यपि इस विषय पर वर्तमान में कई शोधकार्य किए जा रहे हैं और ऐसी संभावना है कि आने वाले समय में चिकित्सा विज्ञान में ज्योतिषीय चिकित्सा को स्वीकारा जाएगा और इसके लिए सर्वप्रथम वयक्ति को शुभकर्मो की ओर प्रेरित किया जाएगा। यह पूर्णतः व्यक्ति के हाथ में है।

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Impressive Dongargarh

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Still there is many history are hidden behind bamleshwari temple. In the mountain remains of sages auterity were found. Also on the second side there is inaccessible cliff. Down to the hills there is Ashram and lake of sages. Many People believed that bathing into the lake and by drinking it they get rid of all diseases. Today that ashram is called as ascetic temple.
There is a story that there is fort on that hill on which there is a house of kaamkandla who is the lover of an anecdote named Madhavnal-kaamkandla . In this fort both meet. This love story is very famous in Chhattisgarh.
In the history of dongargarh this love story penetrates. Nearly around two thousand five years ago this place was called kamakhya which was ruled by a king called kaamsen who was the contemporary of king of ujjain Vikramaditya. This city is famous for the art, dance and music in which there is a dancer named kamkandla . She is maste in dance and she is very beautiful. One day she was dancing in the darbar then at that time a singer named madhavnal came but the concierge didn't allow him to go inside. Then he sits down there and enjoying music inside. Then he felt that the dance left feet thumb is fake and there in pebble in the dancer gunghrun so there inaccuracy in the rhythm in the music. He thought that he came here for just vain. He told there is no one in the fort who understands the impurities in music. Gatekeeper heared all these thing and he goes infront of the king and he tell all about what he is saying. Then king allows him to came inside. To prove his words king allow him to sing. From here madhavnal and kamkandla's love story started. But the king himself is fascinated at her but they did not get together. For their life bot madhavnal and kamkandla moved to ujjain infront of king vikramaditya they begged infront of him for their survival. King Vikramaditya give justice to them and he reconcile them both. There is a legend that for giving justice to them Vikramaditya had to fight with the king of kaamwati to stop them goddess Bhawani and lord Shiva came. Dongargarh 'Kamkandla-Madhavanl lake is the witness for this.There is one more legend (story) behind dongargarh. According to that 147 dancers came here from nandgaonraj to perform. When queen heared this news then she was upset because she was in fear that his son could not be fascinate on anyone. So she made a paste with turmeric and water mixed and asked his son to spread on all dancers before going to dance. By doing this all dancers changed in boulder. There are so many boulders in the dongargarh hills which is known as these boulders are of dancers.In dongargarh a lake called Motibeer in that there is a stone pillar in which there is an article engraved on that in French. This pillar was kept now in the Ghasidas museum in Raipur. Similarly, there is another pillar there is an inscription which had no been read till now. Regardless of all that, in dongargarh the bamleshwari temple is so famous that today also people go there for worship


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कर्ज लेन देन और वारों : ज्योतिष वर्णन

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कर्ज के लेन-देन में वारों का विशेष महत्व है| यदि आपको किसी प्रकार का कर्ज लेना हो तो सर्वप्रथम वार अवस्य देख लें| जो वार कर्ज लेने हेतु निषिद्ध माने गयें हैं,उस दिन कदापि कर्ज ग्रहण करें,अन्यथा लिया गया कर्ज सुरसा के मुख की भांति बढता जायेगा अर्थात जब भी आप कर्जा चुकाने हेतु धन जमा करेंगे,तब कोई कोई परिस्थिथिबन कर सामने जायेगी की उस धन को अन्यत्र अचानक आई समस्या पर व्यय करना पढ़ सकता है और चाहते हुए भी कर्जे को नहीं चूका पाएंगे|

सोमवार:- इसके देवता पार्वती हैं| यह चर संज्ञक,शुभ वार है| अतः सोमवार के दिन कर्ज लिया या दिया जा सकता है|

उपाय:- यदि आप निर्यातक का व्यापर कर रहे है इस कार्य हेतु कर्जा ले रहे हैं तो सोमवार को चांदी में मोती जड़वाकर पंचोपचार से पूजा कर के धारण करें,कर्जा जल्दी उतर जायेगा|

मंगलवार:-इसके देवता कार्तिकेय है| उग्र-क्रूर संज्ञक,क्रूर वार है| मंगलवार को शास्त्रों में सर्वमान्य तौर पर कर्ज लेने हेतु निषेध किया है| मंगलवार को भूल कर भी कर्ज ग्रहण करें, बल्कि कर्ज चुकाएँ| इस दिन लिया हुआ कर्ज समाप्त होने का नाम ही नहीं लेता|व्यक्ति कहते हुए भी कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाता है| यदि गलती से कर्ज लिया है,तो वह झगड़े का जड़ बन जाता है| यदि कर्ज लिया हुआ है तो कर्ज की प्रथम क़िस्त शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से देना प्रारम्भ करें| यदि पूर्व से ले रखा है,चूक नहीं रहा तो यह उपाय अवस्य करें|

उपाय:- एक मीटर लाल कपडे में मसूर की दाल,गुलाब,अनार,ताम्बें का सिक्का,गेहू,लाल मिष्ठान रखकर हनुमानजी के मंदिर में रखें हनुमान जी के समक्ष कहें की मुझे कर्ज से मुक्त करायें|

बुधवार:- इसके देवता विष्णु हैं| मिश्र संज्ञक,शुभ वर है,परन्तु ज्योतिष की भाषा में इसे नपुंसक वर भी कहते हैं|यह गणेश जी का वार है|इस दिन किसी को कर्ज दें,यदि कर्ज देते है,तो धन देकर भूल जायें,क्योंकि इस दिन दिया गया धन वापिस प्राप्त करने में काफी कठिनाई आती है| यदि बैंक में फिक्स डिपाजिट या वितीय भुगतान करना है तो इस दिन करें| यदि आप कर्ज लेना चाहें तो ले सकतें है| यदि पूर्व में दे रखा है तो निम्न उपाय करें:-

उपाय:-बुधवार को स्नानादि से निर्वित होकर संख पर केसर से स्वस्तिक बनाएं स्फटिक माला से लक्ष्मी मंत्र का जाप करें प्रत्येक मंत्र की समाप्ति पर एक चावल संख में डालते जायें| 21 दिन के बाद उसे सफ़ेद वस्त्र में बांध कर व्यापर स्थल पर रखें,जल्द कर्ज उतर जायेगा|

गुरुवार:-इसके देवता ब्रह्मा है| लघु संज्ञक शुभ वार है|गुरुवार को आप किसी को कर्ज दें,बल्कि कर्ज यदि लेना है तो अवस्य ले सकतें है| यदि पूर्व में दे रखा है तो निम्न उपाय करें:-

उपाय:-सवा मीटर कपड़े में हल्दी की गांठ,केला,पीले पुष्प,पिली मिठाई चने की दल रखकर मंदिर में रखें कर्ज मुक्ति की प्रार्थना करें|

शुक्रवार:-इसके देवता इंद्र हैं| मृदु संज्ञक,सौम्य वार है| कर्ज का लेन देन कर सकते हैं| मन में शंका रहता है की कर्जा अभी चूका दूं,फिर सोचता है-इसको बाद में चूका दूंगा| अभी किसी और कार्य में लगा देता हूँ| लेखक का मानना है की कर्ज लेन-देन की क्रिया से इस दिन बचें तो अच्छा ही है| यदि पूर्व लेन-देन कर रखा है तो निम्न उपाय करें|

उपाय:- एक सवा मीटर सफ़ेद कपड़े में पांच प्रकार के ड्राई फ्रूट(सूखे मेवे)मखाने,चावल,इत्र,पुष्प श्वेत,बर्फी

शनिवार:-इसके देवता काल हैं| दारुण संज्ञक,क्रूर वार है| स्थिर कार्य करने हेतु ठीक है,परन्तु कर्ज विलंभ से चुकता है| यदि पूर्व में लेन-देन कर रखा है तो निम्न उपाय करें|

उपाय:-शनिवार को एक पीपल का पत्ता लेकर उस पर स्वस्तिक बनाकर सात शनिवार गद्दी के निच्चे रखें| फिर आठवें शनिवार को सुनसान जगह पर डाल दें| व्यवसाय में बरकत होनी शुरू हो जायेगी|
सवा मीटर काले कपडे में काले तिल,उड़द,आलू बखरा रखकर चढाएँ कर्ज मुक्ति हेतु प्रार्थना करें|

रविवार:-इसके देवता शिव है| यह स्थिर संज्ञक,क्रूर वार हैं| रविवार को कर्ज लेना चाहिए और देना चाहिए| ऐसा करने पर कर्ज की किश्त चुकाते रहतें हैं| मन में लगता है की जाने कब चुकेगा| कर्जा बढता हुआ बोझ सा प्रतीत होता है| यदि पूर्व में लेन-देन कर रखा है तो निम्न उपाय करें:-

उपाय:-रविवार को काली उड़द के दाने दायें हाथ में रखकर ईष्ट का जाप करते हुए कर्ज मुक्ति की प्रार्थना करें तो लाभदायक होता है|


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