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Wednesday 3 June 2015

आपके जीवन का अनुषासन और रोग जाने ज्योतिषीय गणना से-

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संसार में प्रत्येक कण नियमबद्ध होकर इस सृष्टि को चलायमान रख रहे हैं। यदि सूर्य इत्यादि ग्रह पूर्ण अनुशासन, व्यवस्था एवं नियमितता का पालन करते हैं तो ब्रम्हाण्ड में दैवयोग या आकस्मिक घटना नाम की कोई चीज नहीं है। महर्षियों का मानना है कि ब्रम्हाण्ड में घटने वाली प्रत्येक घटना एक निश्चित नियम द्वारा बंधी है वहीं मनुष्य कर्म के नियमों द्वारा निश्चित तथा सुनियोजित है। इसलिए कुंडली में ग्रहों का विवेचन कर आप निरोगी रह सकते हैं। वैदिक दर्शनों में ‘‘यथा पिण्डे तथा ब्रहाण्डे’’ का सिद्धांत प्रचलित है, जिसके अनुसार सौर जगत में सूर्य और चंद्रमा आदि ग्रहों की विभिन्न गतिविधियों एवं क्रिया कलापों में जोे नियम है वही नियम मानव शरीर पर है। जिस प्रकार परमाणुओं के समूह से ग्रह बनें हैं उसी प्रकार से अनन्त परमाणुओं जिन्हें शरीर विज्ञान की भाषा में कोशिकाएॅ कहते हैं हमारा शरीर निर्मित हुआ है। ज्योतिष में ग्रहों का दूषित प्रभाव दूर करने के अनेक उपाय हैं। जिस प्रकार सूर्य या चंद्रमा अपने मार्ग पर सीधे और समय पर चलते हैं या जिस प्रकार ऋतुयें अपना प्रभाव समय पर दिखाती हैं तो जीवन सुचारू होता है उसी प्रकार का अनुषासन यदि व्यक्ति अपने जीवन में रखें तो रोग या शारीरिक व्याधि किसी शरीर को कभी परेषान नहीं करेगी।



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Saturday 30 May 2015


युवा बच्चों का अनुषासनहीन होना - ज्योतिषीय कारण और उपाय:-
यदि गुरू या शुभ ग्रह लग्न में अनुकूल हो तो व्यक्ति को स्वयं ही ज्ञान व आध्यात्म के रास्ते पर जाने को प्रेरित करता है। यदि इसपर पाप प्रभाव न हो तो व्यक्ति स्व-परिश्रम तथा स्व-प्रेरणा से ज्ञानार्जन करता है। अपने बड़ों से सलाह लेना तथा दूसरों को भी मार्गदर्षन देने में सक्षम होता है। यदि गुरू का संबंध तीसरे स्थान या बुध के साथ बनें तो वाणी या बातों के आधार पर प्रेरित होकर सफल होता है वहीं यदि गुरू का संबंध मंगल के साथ बने तो कौषल द्वारा मार्गदर्षक प्राप्त करता है शुक्र के साथ अनुकूल संबंध बनने पर कला या आर्ट के माध्यम से मार्गदर्षन प्राप्त करता है चंद्रमा के साथ संबंध बनने पर लेखन द्वारा मार्गदर्षन पाता है। अतः गुरू का उत्तम स्थिति में होना अच्छे मार्गदर्षन की प्राप्ति या मार्गदर्षन में सफलता का द्योतक होता है। यदि गुरू चतुर्थ या दषम भाव में हो तो क्रमषः माता-पिता ही गुरू रूप में मार्गदर्षन व सहायता देते हैं। गुरू यदि 6, 8 या 12 भाव में हो तो गुरू कृपा से प्रायः वंचित ही रहना पड़ता है। वही यदि लग्न में राहु या शनि जैसे ग्रह हों तो बच्चा अपनी मर्जी का करने का आदि होता है जिससे आज्ञाकारी ना होने के कारण बढ़ती उम्र में गलत संगत या गलत निर्णय लेकर अपना भविष्य खराब कर बैठता है। ऐसी स्थिति में उसके ग्रहों का विष्लेषण कराया जाकर उचित उपाय लेने से उन्नति के रास्ते खुले रहते हैं।
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