Monday 20 April 2015

शीतलाष्टमी व्रत

चैत्र कृष्णपक्ष अष्टमी दिन शुक्रवार को प्रातःकाल 7:बजे तक माता शीतलादेवी का पूजन शुभ है !! प्रातः 7:14 बजे से मृत्युबाण प्रारम्भ होगा ! मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः !! नवाक्षरो मन्त्र : !!
अस्य मन्त्रस्य उपमन्युर्ऋषि: बृहती छन्दः शीतला देवता ममाभीष्ट सिद्धर्य्थे जपे विनयोगः !!
न्यास: ॐ उपमन्यु ऋषये नम: शिरसि, !! ॐबृहती छन्दसे नम: मुखे !! ॐशीतला देवतायै नम: हृदि !! इति ऋष्यादि न्यास: !! ह्रॉ श्रॉ अंगुष्ठाभ्यॉ नम: !! ह्रीं श्रीं तर्जनीभ्यॉ नम: !! ह्रूं श्रूं मध्यमाभ्यॉ नम: !! ह्रैं श्रैं अनामिकाभ्यॉ नम: !! ह्रौं श्रौं कनिष्ठिकाभ्यॉ नम: !! ह्र: श्र: करतल पृष्ठाभ्यॉ नमः !!
ध्यानम् :- दिग्वाससं मार्जनिकां च शूर्पं !
करद्वये सन्दधतीं घनाभाम् !!
श्री शीतलां सर्वरुजार्ति नष्टो, रक्ताग्ड़राग स्रज मर्चयामि !!
मानस पूजनोपचारै: सम्पूज्य स्तवेन स्तुत्वा जपं कुर्यात् !! ॐशीतले त्वं जगत्माता,
शीतले त्वं जगत्पिता !
शीतले त्वं जगत्धात्री ,
शीतलायै नमो नम: !!
इन मन्त्रों के द्वारा जप पूजन आदि करें !! शीतलाष्टमी व्रत
शीतलाष्टमी के पावन पर्व की सभी देशवासियो को हार्दिक शुभकामनाऐ...
शीतलाष्टमी चैत्र मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मनायी जाती है.
इसमें शीतला माता का व्रत और पूजन किया जाता है.
शीतला अष्टमी व्रत को करने से व्यक्ति के सारे परिवार में दाह ज्वर, पीत ज्वर, दुर्गन्ध से युक्त
फोड़े, माता की फुंसियों के निशान तथा शीतलाजनित सारे दोष ठीक हो जाते हैं.
व्रत की विशेषता :- इस व्रत की विशेषता है कि इसमें शीतलादेवी को भोग लगाने वाले सभी पदार्थ एक दिन पूर्व ही बना लिये जाते हैं अर्थात शीतलामाता को एक दिन का बासी (शीतल) भोग लगाया जाता है .
गरम खाद्य पदार्थ खाना वर्जित रहता है.
इसलिये लोक में यह व्रत बसौडा या बासेरा के नाम से भी प्रसिद्ध है.
शीतला माता का स्वरुप :- शीतला स्तोत्र में शीतला का जो स्वरूप बतलाया है, वह माता के रोगी के लिए बहुत मददगार है.
वन्देऽहं शीतलां देवीं रासमस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोवेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्॥
इसमें कहा गया है कि गर्दभ पर सवार रहती हैं.
सूप (छाज) झाड़ (माजर्नी) और नीम के पत्तों से अलंकृत हैं और हाथ में शीतल जलघट उठाए हुए हैं.
शीतलाष्टमी के दिन माता की मूर्ति में घी, चंदन का लेप लगाया जाता है.
माता शीतला को नीम की पत्ती प्रिय हैं.
महिलायें अपनी संतानों के स्वास्थ्य एवं दीर्घायु के लिये प्रार्थना करती हैं.
बच्चों में छोटी माता रोग होने पर माता पर शीतल जलाभिषेक करके नीम के पत्ते चढ़ाते हैं, और उसी जल व नीम को घर लाकर बच्चे पर छिड़काव करते हैं जिससे रोगी बच्चा शीघ्र स्वस्थ हो जाता हैं, ऐसी मान्यता हैं.
भात, दही, चीनी, जल का गिलास, रोली, चावल, हल्दी , धूपबत्ती तथा मोंठ, बाजरा आदि रखकर घर के सभी सदस्यों को स्पर्श कराकर शीतलामाता के मन्दिर में चढाना चाहिये.
इसका वैज्ञानिक कारण भी है चैत्र मास तक गर्मी बहुत बढ़ जाती है इसलिए इस व्रत से बासी खाना बंद कर देते है.
और जैसे शीतला माता है शीतलता प्रदान करने वाली इस तरह ठंडी और ताज़ी चीजे खाना आंरभ कर देना चाहिये.ताकि गर्मी से होने वाली बीमारियों से बचा जा सके.



Pt.P.S Tripathi
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