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Tuesday 23 June 2015

इंफ्लुएंजा वाइरस ज्योतिष्य विश्लेषण


विष्वव्यापी आतंक का नया नाम है ... इंफ्लुएंजा वाइरस जो एच1एन1 की वजह से फैलती है। प्रांरभ में इस रोग का वायरस सुअरों से इंसानों में फैला और फिर इंसानों के इंसानों से संपर्क में आने के कारण पूरी दुनिया को चपेट में लेता गया। अमरीका में 1976 का स्वाइन फ्लू- 5 फरवरी, 1976 को अमरीका के फोर्ट डिक्स में अमरीकी सेना के सैनिकों को थकान की समस्या होने लगी बाद में पता लगा कि यह बीमारी स्वाइन फ्लू ही है और एच1एन1 वायरस के नए स्ट्रेन की वजह से फैल रही है। सुअरों को एविएन और हूमेन एन्फ्लूएंजा स्ट्रेन दोनों का संक्रमण हो सकता है। किसी भी एन्फ्लूएंजा के वायरस का मानवों में संक्रमण श्वास प्रणाली के माध्यम से होता है। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति का खांसना और छींकना या ऐसे उपकरणों का स्पर्श करना जो दूसरों के संपर्क में भी आता है, उन्हें भी संक्रमित कर सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सुअर (स्वाइन), पक्षी और इंसान तीनों के जीन मिलने से बना एच1एन1 वायरस सामान्य स्वाइन फ्लू वायरस से अलग है। बर्ड फ्लू और मानवीय फ्लू के विषाणु से सुअरों में संक्रमण शुरू हुआ। फिर सुअर के राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) से मिलकर नए वायरस स्वाइन इन्फ्लुएंजा ए (एच1एन1) का जन्म हुआ। तब इन्फ्लुएंजा ए (एच1 एन1) का सुअर से मनुष्य में संक्रमण संभव हो सका। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वायरस किसी भी मौसम में फैल सकता है और हर आयुवर्ग के लोगों को आसानी से अपनी चपेट में ले सकता है। स्वाइन फ्लू के दौरान बुखार, तेज ठंड लगना, गला खराब हो जाना, मांसपेशियों में दर्द होना, तेज सिरदर्द होना, खांसी आना, कमजोरी महसूस करना आदि लक्षण तेजी से उभरने लगते हैं। एन्फ्लूएंजा वायरस लगातार अपना स्वरूप बदलने के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के वैक्सीन का भी इस वायरस पर असर नहीं होता। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के वैक्सीन का स्वाईन फलू पर भी इस वायरस पर असर नहीं होता। यह रोग होली के बाद समाप्त हो जाएगी क्योंकि होली दहन के बाद संक्रमण का स्तर कम हो जाएगा क्योंकि तापमान का अंतर मिट जाएगा तथा वायरस का प्रकोप भी वातावरण में समाप्त होने लगेगा। चिकित्सकीय हल निकालने का प्रयास तो लगातार जारी है किंतु हमें अपनी जिम्मेदारी को देखते हुए इसका ज्योतिषीय कारण और निदान भी देखना चाहिए। देखा जाए तो हमें कालपुरूष की वर्तमान कुंडली देखनी चाहिए। कालपुरूष की कुंडली में आज चतुर्थेष चंद्रमा रोगभाव में राहु से पापाक्रांत है और मारक तथा मारकेष शुक्र व्ययभाव में राहु से पापदृष्ट होकर अष्टमेष मंगल से आक्रांत है। अतः संक्रमण से फैलने वाले रोग का समय और दसमेष और एकादषेष शनि अष्टमस्थ होने से कान, नाक और गले से संबंधित एलर्जी के कारण रोग तथा जो रोग लिवर तथा फेफडे को प्रभावित करें साथ ही कालपुरूष की मारकेष की दषा के कारण यह रोग आसानी से समाप्त होती नहीं दिखती। अतः इस समय यज्ञ, हवन तथा मंत्रजाप करना चाहिए।

Friday 12 June 2015

स्वास्थ्य और ग्रहों की दशा

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ग्रहों की दशा और मनुष्य का स्वास्थ्य
आधुनिक युग में अधिकांश मनुष्य चिंता, उन्माद, अवसाद, भय आदि से प्रभावित है। मनोविज्ञान में इन्हें मनोरोगों के एक प्रकार मनस्ताप (न्यूरोटाॅसिज्म) के अंतर्गत रखा गया है। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकार है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएॅं उत्पन्न होती हैं। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकास है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबधी गंभीर समस्याएॅं उत्पनन होती हैं। मनस्ताप के कारण व्यक्ति का व्यक्तिगत एवं सामाजिक समायोजन कठिन हो जाता है। साथ ही इससे व्यक्ति में अंतर्द्धंद्ध एवं कुंठा उत्पन्न होती है। मतस्ताप के लक्षण बहुत तीव्र नहीं होते और इससे पीडि़त रोगियों का व्यवहार भी आक्रामक नहीं होता । अतएव इन्हें मानसिक चिकित्सालयों में भरती कराने की अपेक्षा एक मनोचिकित्सक की अधिक आवश्यकता होती है। चूॅकि इन व्यक्तियों का संबध वास्तविकता से बना रहता है, अतः इन्हें अपने दैनिक कार्यो के निष्पादन मे थोड़ी परेशानी होती है।
मानवीय जीवन मुख्यतः विचारों, भावों से संचालित होता है। इनकी दिशा जिस ओर होती है, उसी के अनुसार व्यक्ति का जीवन भी गति करता है। मानवीय जीवन पर बहुत सारे कारकों, जैसे पारिवारिक वातावरण, परिस्थितियाॅं, सामाजिक स्थिति, सदस्यों से संपर्क आदि का प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूपा उसके विचारों एवं भावों में उतार-चढ़ाव आता रहता है। इसके अलावा भी जीवन की जो सबसे अधिक प्रभावित करता है, वह है अंतग्रही दशाओं का प्रभाव। यद्यपि ये ग्रह पृथ्वी से दूर स्थित है, लेकिन व्यक्ति के जीवन को क्षण-क्षण में प्रभावित करते हैं। इनकी स्थिति-परिस्थितियाॅें का निर्धारण व्यक्ति के पूर्वजन्म के कर्मो के अनुसार होता है। पूर्व जन्म के पाप एवं पुण्य कर्मो के अनुसार इन ग्रहों की गति, स्थिति व प्रभाव का निर्धारण होता है। प्राचीन भारतीय विद्याओं में जयोतिष विज्ञान एक ऐसी विद्या है, जिसमें ग्रहों की दशा तथा अंतर्दशा के आधार पर शुभ व अशुभ घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है। चिकित्सा ज्योतिष भी भारतीय ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण भाग है। चिकित्सा ज्योतिष के द्वारा जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति व दशा-चाल से मनुष्य को भविष्य में कौन-कौन से रोग होने की संभावना है, यह जाना जा सकता है । इसी चिकित्सा ज्योतिष के अंतर्गत मानसिक रोगों को समय से पूर्व जाना जा सकता है।
रोगी की जन्मकुंडली में वर्तमान मंे चल रही महादशा (विभिन्न समूय अंतरालों में ग्रहों की स्थिति), अंतर्दशा (उस समय अंतरालों में आने वाले ग्रहों के छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव), प्रत्यंतदशा (अंतर्दशा में ग्रहों के सूक्ष्म उतार-चढ़ाव) ज्ञात कर एवं गोचर (वर्तमान समय में ग्रहों की स्थिति) की सही स्थिति जानकर चिकित्सक रोग का सही निदान करके सफल चिकित्सा कर सकता है।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की शोधार्थी पूजा कौशिक ने सन् 2009 में ‘ग्रहों के ज्योतिषीय योगों का मनस्तापीयता पर पड़ने वाले प्रभाव का
अध्ययन‘ विषय पर शोधकार्य किया। यह शोधकार्य कुलाधिपति डाॅ0 प्रणव पण्डया के संरक्षण, प्रो0 देवीप्रसाद त्रिपाठी के निर्देशन एवं डाॅ0 प्रेरणा पुरी के सहनिर्देशन में किया गया। इस शोध अध्ययन में देहरादून के दो मनोचिकित्सालयों मे से आकस्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा 200 मनस्तापी व्यक्तियों का चयन किया गया, जिसमें 108 पुरूष प्रयोज्य एवं 92 महिला प्रयोज्य शामिल थे। इस शोध अध्ययन में ग्रहों के ज्योतिषीय शेगों के मनस्तापीय स्तर को जाॅचने के लिए ज्योतिषीय उपकरण के रूपा में जन्मकुंडली (जिसके लिए मुख्य रूप से प्रयोज्यों की जन्म तारीख, जन्म समय एवं जन्म स्थान को नोट किया गया) एवं मनोवैज्ञानिक उपकरण के रूप में न्यूरेसिस मापनी स्केल का प्रयोग किया। प्राप्त आॅकड़ो के यंख्यिकीय विश्लेषण के लिए काई-टेस्ट को प्रयुक्त किया गया।
परिणामों में यह पाया गया कि 200 स्त्री-पुरूषोूं में से 150 स्त्री-पुरूषों की जन्मपत्रिका में ज्योतिष अध्ययन के अनुसार ग्रहयोग (चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरू, शनि और छाया ग्रह राहु) प्रभावित कर रहे थे। विशेषतः मनस्ताप एवं ग्रहयोगों से पीडि़त स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में लग्न भाव (जिससे संपूर्ण देह एवं मस्तिष्क का विचार किया जाता है), चतुर्थ भाव (जिसमे मन एवं विचार का) तथा पंचम भाव (जिससे बुद्धि का विचार किया जाता है) विशेष रूप से प्रभावित एव पीडि़त पाए गए, किंतु 200 स्त्री-पुरूषों में से 50 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में ग्रहयोग उपयुक्त स्थानों से अन्यत्र स्थान में होने पर भी अपनी महादशा, अंतर्दशा में व्यक्ति के मन को संतापित करते हुए पााए गए तथा साथ ही यह भी पाया गया कि 173 स्त्री-पुरूषों (86.5 प्रतिशत) की कुंडली में पापग्रह शनि, राहु, केतु तथा क्षीण चंद्रमा अपनी महादशा एवं अंतर्दशा से व्यक्ति को प्रभावित कर रहे थे।
इस अध्ययन में मनस्तापी व्यक्तियों की कुंडली की विवेचना करने पर यह भी ज्ञात हुआ है कि 200 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडलियों में से 118 जन्मकुंडलियाॅं ऐसे स्त्री-पुरूषों की पाई गई, जिनका जन्म कृष्णपक्ष मे हुआ, अर्थात 59 प्रतिशत मनस्तापी व्यक्तियों का जन्म शुक्ल-पक्ष की तुलना में कृष्णपक्ष में ज्यादा हुआ। मनस्तापी व्यक्तियों की जन्मकुंडलियों की विवेचना से यह भी ज्ञात हुआ कि 200 में से 123 मनस्तापी व्यक्तियों के चतुर्थ भाव तथा पंचम भाव पापग्रह-क्षीण चंद्रमा, अस्त बुध, शनि, राहु एवं केतु से प्रभावित पाए गए, अर्थात 61.5 प्रतिशत मनस्तापी स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली का चतुर्थ एवं पंचम भाव पापग्रहों के प्रभाव से प्रभावित पाया गया।
इस अध्ययन में 200 मनस्तापी व्यक्तियों मंे से 54 प्रतिशत पुरूष एवं 46 प्रतिशत स्त्रियाॅं मनस्ताव से प्रभावित पाई गई। साथ ही युवा वर्ग (21 से 32 आयु वर्ग) में मनस्ताप एवं ग्रहों का प्रभाव सर्वाधिक पाया गया एवं शिक्षा का स्तर भी ऐसे स्त्री-पुरूषों में सामान्य पाया गया। ऐसे स्त्री-पुरूष स्नातक स्तर तक शिक्षित पाए गए एवं ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक संख्या में शहरी क्षेत्र के मध्यम वर्ग से संबधित पाए गए । इस प्रकार 200 स्त्री-पुरूषों की कुंडलियों के अध्ययन से यह पता चला कि विभिन्न ग्रहयोगों का संबध व्यक्ति के मन की विभिन्न संतप् क्रियाओं से होता है। अतः निष्कर्ष रूप में यह कह सकते हैं कि मानचीय स्वास्थ्य, अंतग्रही गतिविधियों एवं परिवर्तनों से असाधारण रूप से प्रभावित होता है।
पं0 श्रीराम शर्मा आचार्या जी के अनुसार रोगों की उत्पत्ति में प्रत्यक्ष स्थूल कारणों को महत्व दिया जाता है और स्कूल उपचारों की बात सोची जाती है, यदि अदृश्य किंतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ग्रह-नक्षत्रों के ज्ञान का भी चिकित्सा अनुसंधान की कड़ी से जोड़ा जा सके, तो रोगों के कारण और निवारण में अनेक चमत्कारों, सूत्र हाथ लग सकते हैं, जिनसे अपरिचित बने रहने से रोगोपचार में चिकित्सक अपने को अक्षम पाते हैं। निदान और उपचार की प्रक्रिया में ऐसे अनेक रहस्य इस अनुसंधान-प्रक्रिया में खुलने की संभावना है। यद्यपि इस विषय पर वर्तमान में कई शोधकार्य किए जा रहे हैं और ऐसी संभावना है कि आने वाले समय में चिकित्सा विज्ञान में ज्योतिषीय चिकित्सा को स्वीकारा जाएगा और इसके लिए सर्वप्रथम वयक्ति को शुभकर्मो की ओर प्रेरित किया जाएगा। यह पूर्णतः व्यक्ति के हाथ में है।

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Friday 5 June 2015

क्या आपकी शादी लगकर टूट रही है???



विवाह की उम्र में अच्छा जीवनसाथी मिल जायें और विवाह तय हो जाएॅ। इससे ज्यादा खुशी का पल पूरे परिवार के कुछ नहीं होता किंतु कई बार सब कुछ अच्छा चलते चलते अचानक किसी मामूली बात पर भी रिश्ता टूट जाता है। सामाजिक तौर पर कारण चाहे जो भी बताया जाए, किंतु सच है कि ज्योतिषीय दृष्टि से देखा जाए तो किसी जातक की कुंडली में अगर लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम या दसम स्थान पर शनि हो अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा जैसे सौम्य ग्रह शनि से आक्रांत हो अथवा शनि की दशा चल रही हो तो रिश्ता तय होकर टूट सकता है। अतः कुंडली का विवेचन किसी विद्धान ज्योतिष से कराकर पहले ग्रह शांति कराना चाहिए, इसके लिए लड़के का अर्क विवाह के साथ कात्यायनी मंत्र का जाप और लड़की का कुंभ विवाह के साथ मंगल का व्रत करने से विवाह लगने में आने वाली परेशानी से बचा जा सकता है साथ ही योग्य जीवनसाथी का साथ मिलने के योग बनते हैं।


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सम्मान की प्राप्ति हेतु करें अन्न का दान-


जब किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि के क्षेत्र में चन्द्रमा स्थित हो और शनि से दृष्ट भी हो अथवा शनि व मंगल दृष्ट हो तो जातक विरक्ति का जीवन व्यतीत करता है परंतु इसके बाद भी संसार में ख्याति प्राप्त करता है। जब किसी व्यक्ति के लग्न, तीसरे, अष्टम या भाग्य स्थान में शनि तथा उस पर गुरू की किसी भी प्रकार से दृष्टि हो तो ऐसे लोग भोग विलास से दूर रहकर सादगीपूर्ण जीवन बिताते हैं। साथ ही यहीं ग्रह योग उन्हें जीवन में सफलता तथा मान भी प्रदान करता है। अतः किसी व्यक्ति को जीवन में सफलता के साथ मान भी प्राप्त करना हो तो अपने जीवन में सादगी तथा अनुषासन का पालन करना चाहिए और शनि तथा गुरू की शांति के साथ मंत्रजाप एवं दान करना चाहिए। विषेष रूप से अन्न का दान जीवन में सम्मान का कारक होता है। अतः जरूरतमंदों को अन्न का दान करना चाहिए।


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स्कीन एलर्जी और ज्योतिषीय कारण

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खुजली या एलर्जी दरअसल यह त्वचा की दर्द तंत्रिकाओं की उत्तेजना है। जब हमारी तंत्रिकाएं उत्तेजित होती हैं, तो हमें खुजलाहट का अनुभव होता है, इसमें दर्द का अहसास नहीं होता। त्वचा में एलर्जी अथवा खुजली की समस्या से कमोबेश सभी को कभी न कभी सामना करना पड़ता है, जो कि स्कैबीज, जुआ, दाद, पायोडरमा, तेज गर्मी, कीड़े के काटने, एलर्जी या त्वचा के सूख जाने इत्यादि से हो सकती है। किंतु कई लोगों की यह आम समस्या होती है जो उन्हें अकसर होती रहती है। जिसे मेडिकल सांईस द्वारा नहीं जाना जा सकता है कि किसी को क्यू लगातार एलर्जी होती है। किंतु ज्योतिषीय गणना द्वारा पता चलता है कि अगर लग्न, तीसरे, छठवे, एकादष अथवा द्वादष स्थान में शनि या इन स्थानों के ग्रह स्वामी शनि से आक्रांत हों अथवा लग्न तीसरे स्थान में राहु हो तो ऐसे जातक को स्कीन एलर्जी की संभावना होती है। अगर इनकी ग्रह दषाएॅ चले तो ये समस्या ज्यादा बढ़ जाती है। अतः किसी जातक को लगातार ऐसे परेषानी दिखाई दे तो अपनी कुंडली में इन स्थानों में उपस्थित शनि अथवा राहु की शांति कराना, आहार में एलर्जी उत्पन्न करने वाले खाद्य पदार्थो से परहेज करना चाहिए।


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Thursday 4 June 2015

विश्व में शान्ति हेतु मनायें बुद्ध पूर्णिमा -

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भगवान बुद्ध ने बैसाख पूर्णिमा ४८३ ई. पू. में ८० वर्ष की आयु में, देवरिया जिले के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त किया। सृष्टि में गौतम बुद्ध एकमात्र ऐसे महापुरुष रहे जिनका जन्म भी इस दिन हुआ है और उनकी मृत्यु भी इसी दिन हुई थी। जिस पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ ने कठिन तपस्या कर बोधित्व प्राप्त किया उसका रोपण भी बैसाख पूर्णिमा को ही हुआ था। बैसाख पूर्णिमा के शुभ अवसर को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। मनुष्य जितना अधिक अधीर एवं असंयमी है मानसिक तनावों का शिकार हो कर लोभी, कामी, क्रोधी और हिंसक को उठा है। मानवीय मूल्यों का निरन्तर ह्रास होता जा रहा है। ऐसी हालत में गौतम बुद्ध के सिद्धांतों का प्रतिपादित आज ज्यादा प्रासंगिक है। यदि भगवान बुद्ध द्वारा दिखाए गए मार्ग पर हम चलने लगें तो विश्व को शान्ति के मार्ग पर आगे ले जा सकते हैं।
ज्योतिषीय विद्या अनुसार बुद्ध पूर्णिमा के दिन अलग-अलग पुण्य कर्म करने से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। धर्मराज के निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान दान करने से गोदान के समान फल प्राप्त होता है। ब्राह्मणों को मीठे तिल दान देने से सब पापों का क्षय हो जाता है। यदि तिलों के जल से स्नान करके घी, चीनी और तिलों से भरा पात्र भगवान विष्णु को निवेदन करें और उन्हीं से अग्नि में आहुति दें अथवा तिल और शहद का दान करें, तिल के तेल के दीपक जलाएं, जल और तिलों का तर्पण करें अथवा गंगा आदि में स्नान करें तो व्यक्ति सब पापों से निवृत्त हो जाता है। इस दिन शुद्ध भूमि पर तिल फैलाकर काले मृग का चर्म बिछाएं तथा उसे सभी प्रकार के वस्त्रों सहित दान करें तो अनंत फल प्राप्त होता है। यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा अथवा सत्यनारायण का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।

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करें ज्योतिषीय उपाय से नेतृत्व क्षमता का विकास-

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किसी व्यक्ति की नेतृत्व क्षमता यानी व्यक्ति किसी टीम का नेतृत्व कर सकता है या नहीं और व्यक्ति की तर्क क्षमता तथा वाक्यपटुता उसके नेतृत्व के गुण को बढ़ाती है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली पर विचार करने पर उसके ये सारे गुण पता चलते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरू उच्च या मित्र स्थान पर हो तो ऐसे व्यक्ति में नेतृत्व के गुण जन्मजात मौजूद होते हैं वहीं यदि गुरू के साथ बुध का अच्छा संबंध बने तो ऐसे लोग नेतृत्व क्षमता के बल पर ही सफलता के सोपान प्राप्त करते हैं। अतः यदि किसी को नेतृत्व क्षमता का विकास करना और ऐसे क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना हो तो अपनी कुंडली में गुरू की स्थिति तथा गुरू से संबंधित उपाय अपनाकर अपने गुणों को बढ़ाया जा सकता हैं।




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कोई अपना जब दूर होने लगे तो दिखायें अपनी कुंडली-


कोई अपना जब दूर होने लगे तो दिखायें अपनी कुंडली-
अगर आपका कोई भी रिश्ता चाहे वैवाहिक हो या दोस्ती का, टूटने की कगार पर आ गया है और आप इस उलझन में हैं कि अपने साथी या दोस्त या हमदर्द से अलग हों या नहीं और यह भी जानते हैं कि ऐसा करना आपके लिए आसान नहीं होगा और ना ही आपके साथी के लिए क्योंकि आपको जिंदगी को फिर से नए सिरे से शुरू करना होगा। जिसका मतलब होता है, हर चीज में बदलाव। इसलिए अपने रिश्ते को तोड़ने से बेहतर है कि उसे कम से कम एक मौका दें। व्यवहारिक रूप से अपने आपसी मतभेदों को प्यार और समझदारी से सुलझाने की कोशिश करें। रिश्ते बड़े नाजुक होते हैं इन्हें प्यार, सामंजस्य और समझदारी से निभाने की जरुरत होती है। इसके निभाने हेतु जहाॅ आपसी समझदारी की आवश्यकता होती है वहीं कुंडली के ग्रहों की आपस में मेलापक ज्ञात कर जिन ग्रहों के कारण आपसी तनाव की स्थिति निर्मित हो रही हो, उन ग्रहों की शांति कराना चाहिए। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में अगर सप्तम भाव या भावेश अपने स्थान से षड़ाषटक या द्वि-द्वादश बनाये तो ऐसे में आपस में मतभेद उभरने के कारण बनते हैं। ऐसी ग्रह स्थिति में विशेषकर इस प्रकार की ग्रह दशाओ के समय आपसी मतभेद उभरकर आते हैं अतः अगर रिश्तों में कटुआ आ जाए तो ग्रह दशाओं का आकलन कराया जाकर शांति कराने से आपसी मतभेद मिटाकर समझ और साथ को बेहतर किया जा सकता है।


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ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म- संतप्त दाम्पत्य जीवन -



किसी षिषु के जन्म के उपरांत सर्वप्रथम विचारणीय तथ्य होता है कि उसका जन्म कहीं मूल के नक्षत्रों में तो नहीं हुआ है। आजकल आधुनिक मत रखने वाले लोग भी सबसे पहले यह ज्ञात करते हैं कि कोई मूल का नक्षत्र तो नहीं है, उसके उपरांत अपने बच्चे का जन्म समय तथा दिनांक तय करते हैं। मूल नक्षत्र का जन्म जहाॅ जीवन में कष्ट तथा बाधा देता है उसी प्रकार से यह व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में भी बाधा विलंब तथा वैवाहिक सुख में कमी का कारण बनता है। ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म का अषुभ असर स्त्री तथा पुरूषों दोनों पर अषुभ फलकारी होता है। इस नक्षत्र में जन्म होने पर जातक के विवाह होने में कठिनाई होती है या विवाह के बाद पार्थक्य दोष लगता है, इस पर यदि सप्तम भाव या सप्तमेष किसी प्रकार पीडि़त हो तो कष्ट दोगुना हो जाता है। किसी व्यक्ति का ज्येष्ठा नक्षत्र हो तो उसका विवाह कभी भी घर के बड़े संतान से नहीं करना चाहिए और ना ही ज्येष्ठ मास में करना चाहिए। इस नक्षत्र में जन्में जातक को विवाह से पूर्व कुंडली मिलान करते समय वर तथा वधु दोनों के नक्षत्रों की जानकारी करनी चाहिए तथा समाधान हेतु विवाह से पहले नक्षत्र के मंत्र का कम से कम 28000 जाप संपन्न कराना चाहिए तथा नक्षत्र के मंत्रों का दषांष हवन कराने के उपरांत विवाह संपन्न कराना चाहिए जिससे वैवाहिक जीवन के अनिष्टकारी प्रभाव दूर हो सके।

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Wednesday 3 June 2015

क्या करें कि डिग्री प्राप्ति के बाद जाॅब मिल जाये -

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सभी लोगों की कामना होती है कि उसकी पढ़ाई पूरी होते ही या उसके बच्चे की डिग्री आते ही उसे एक अच्छी जाॅब मिल जायें किंतु इसमें कोई सफल होता है तो कई बार लोगों को असफलता भी हाथ लगती है। पढ़ाई समाप्त करते ही किसी जातक के पास आय का साधन कितना तथा कैसा होगा इसकी पूरी जानकारी उस व्यक्ति की कुंडली तथा उस समय के ग्रह गोचर से जाना जा सकता है। कुंडली में दूसरे स्थान से धन की स्थिति, तीसरे स्थान से मन की स्थिति, दसम स्थान से कर्म की स्थिति तथा एकादष स्थान से आय की स्थिति एवं नवम स्थान से भाग्य के संबंध में जानकारी मिलती है अतः इस स्थान का स्वामी अगर अनुकूल स्थिति में है या इस भाव में शुभ ग्रह हो तो षिक्षा, धन जीवन में बनी रहती है तथा जीवनपर्यन्त धन तथा संपत्ति बनी रहती है। दूसरे भाव या भावेष के साथ कर्मभाव या लाभभाव तथा भावेष के साथ मैत्री संबंध होने से जीवन में धन की स्थिति तथा अवसर निरंतर अच्छी बनी रहती है। जन्म कुंडली के अलावा नवांष में भी इन्हीं भाव तथा भावेष की स्थिति अनुकूल होना भी आवष्यक होता है। अतः जीवन में इन भाव एवं भावेष के उत्तम स्थिति तथा मैत्री संबंध बनने से व्यक्ति के जीवन में अस्थिर या अस्थिर संपत्ति की निरंतरता तथा साधन बने रहते हैं। इन सभी स्थानों के स्वामियों में से जो भाव या भावेष प्रबल होता है, धन के निरंतर आवक का साधन भी उसी से निर्धारित होता है। अतः जीवन में धन तथा सुख समृद्धि निरंतर बनी रहे इसके लिए इन स्थानों के भाव या भावेष को प्रबल करने, उनके विपरीत असर को कम करने का उपाय कर जीवन में सुख तथा धन की स्थिति को बेहतर किया जा सकता है। जाॅब प्राप्ति हेतु किसी भी जातक की कुंडली में ग्रह दषाओं का आकलन करें, यदि शनि या बुध की शुक्र की दषाओं में जाॅब मिलने में बाधा आती है अतः अपने ग्रह दषाओं का आकलन करया जाकर ग्रह शांति कराना चाहिए। आर्थिक स्थिति को लगातार बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक जातक को निरंतर एवं तीव्र पुण्यों की आवष्यकता पड़ती है, जिसके लिए जीव सेवा करनी चाहिए। सूक्ष्म जीवों के लिए आहार निकालना चाहिए। अपने ईष्वर का नाम जप करना चाहिए। कैरियर को बेहतर बनाने के लिए शनिवार का व्रत करें।

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बच्चों को घर से दूर भेजने से पूर्व करें उसकी कुंडली का विष्लेषण और पाएं पूर्ण सफलता-



नामी संस्थानों में पढ़ने का सपना आमतौर पर हर स्टूडेंट का होता है। पैरेंट्स भी इसके लिए खासे परेशान रहते हैं। अच्छी पढ़ाई, बेहतरीन सुविधाएं और सबसे बड़ी बात बेस्ट प्लेसमेंट इसकी सबसे बड़ी वजह हो सकती है। पर क्या सभी के अरमान पूरे हो पाते हैं? जाने-माने संस्थान में एडमिशन न मिलने पर भी सिर्फ बाहर पढ़ने के नाम पर किसी भी इंस्टीट्यूट में दाखिला लेना कितना उचित है? बाहर पढ़ने की जिद आपकी जरूरत की बजाय कहीं महज दिखावा तो नहीं? अगर ऐसा है, तो सोचने की बात यह है कि आखिर बाहर पढ़ने के नाम पर दिखावा क्यों करें? लाखों खर्च करके बाहर के कथित संस्थानों में एडमिशन लेने की बजाय घर-शहर के करीब रहते हुए अपेक्षाकृत किसी बेहतर संस्थान में पढ़ाई करके भी करियर की राह चमकदार बनाई जा सकती है। किंतु बच्चें और कई बार अभिभावक भी इसके लिए सोचे बिना अपने बच्चें को घर से दूर भेजते हैं किंतु बाहर जाकर बच्चा पढ़ाई से दूर डिप्रेषन और गलत संगत का षिकार हो जाता है। अतः किसी भी बच्चे को घर से दूर रहने के लिए उसके ज्योतिषीय विष्लेषण कराया जाकर उसके लग्न, तीसरा और एकादष स्थान का विष्लेषण कराकर देखें कि अगर उसका तीसरा या एकादष स्थान छठवे, आठवें या बारहवें स्थान अथवा सातवें स्थान पर हो जाए तो ऐसे लोग दूसरों के उपर भरोसा कर अपना जीवन खराब कर बैठते है। अतः ऐसी स्थिति में दूर भेजने के अपने फैसले से पूर्व कुंडली दिखा लें।

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विवाह मिलापक की कमियां - करें पूरी कुंडली का विष्लेषण

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सभी अभिभावक की यह हार्दिक कामना होती है कि उसकी संतान का विवाह समय से हो किंतु उससे प्रमुख कामना होती है कि वह विवाह के उपरांत सुख तथा खुष रहे। इस हेतु भारतीय समाज में कुंडली मिलान का प्रमुख स्थान है। अत्यंत आधुनिक माता भी अपनी संतान के विवाह से पूर्व कुंडली मिलान तथा सभी परंपराओं का निर्वाह करना चाहते हैं। विवाह- निर्णय के लिए वर-वधू मेलापक ज्ञात करने की विधि अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय समाज में ऐसी मान्यता है कि जीवनसाथी का श्रेष्ठ मिलान नहीं होता है तो उनका वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है। अतः इस हेतु हिंदु संस्कार में विवाह हेतु कुंडली मिलान का विशेष महत्व है।
साधारणतया अष्टकूट अर्थात् तारा, गुण, वश्य, वर्ण, नाड़ी, योनी, ग्रह गुण आदि के आधार पर वर-वधु मेलापक सारिणी के आधार पर गुणों की संख्या के साथ दोषों के संकेत होते हैं। सर्वश्रेष्ठ मिलान में 36 गुणों का होना श्रेष्ठ मिलान का प्रतीक माना जाता है। उससे आधे अर्थात् 18 गुण से अधिक होना ही कुंडली-मिलान का धर्म कांटा मान लिया जाता है। इससे अधिक जितने भी गुण मिले, वह वैवाहिक जीवन में सफलता का प्रतीक मान लिया जाता है। जहाॅ दोषों का संकेत होता है, उनमें भी शुभ नव पंचम, अशुभ नवपंचम अथवा सामान्य नव पंचम या श्रेष्ठ द्विद्र्वादश, प्रीति षडाष्टक, केंद्र के शुभ-अशुभ का आकलन करके सभी ज्योतिविर्द कुंडली का मिलान कर लेते हैं। किसी प्रकार का दोष होने पर उसका परिहार भी मिल जाता है। कहा जाता है की ‘‘ नाड़ी दोषःअस्ति विप्राणां, वर्ण दोषःअस्ति भूभुजाम्। वैश्यानां गणदोषाः स्यात् शूद्राणां योनि दूषणम् ’’ ब्राम्हणों में नाड़ी दोष मानना आवश्यक है, क्षत्रियों में वर्ण दोष की उपेक्षा नहीं की जा सकती, वैश्यों में गण दोष को प्रधान माना जाता है तथा शूद्रों के लिए योनि दोष की उपेक्षा शास्त्र सम्मत नहीं माना जाता है। आज के युग में जब कि सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह से बदल चुकी है तब हम ब्राम्हण किसे माने किसे क्षत्रिय की संज्ञा दे, किसको वैष्य कहा जाए और किसे शूद्र का दर्जा दिया जाए। इसके अलावा कुंडली मिलापक पूरी तरह चंद्रमा पर आधारित है जिसमें शेष सभी ग्रहों को अनुपयोगी माना गया है। जबकि देखा गया है कि चंद्रमा की तुलना में बाकी के ग्रह भी जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं अतः कुंडली मेलापक की वर्तमान विद्या से इतर सभी ग्रहों के अनुसार उनके ग्रहों की मैत्री का निधारण कर विवाह हेतु निर्णय लेना चाहिए। गुण मेलापक के स्थान पर ग्रह मेलापक पर ज्यादा जोर देने से सही रिष्तों का चयन कर जीवन सुखमय बनाया जा सकता है।


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शनि जयंति के व्रत तथा पूजन से पायें जीवन में खुषहाली-

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शास्त्रों के अनुसार शनि देव जी का जन्म ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को रात के समय हुआ था। इस बार सोमवती अमावस्या होने के कारण इसका महत्व और भी बढ गया है। सोमवती अमावस्या पितर दोष दुर करने के लिये अति उत्तम है। आज के दिन किसी को शनि-राहु का दोष हो तो सोमवती अमावस्या को शनिदेव की पूजा से बहुत जल्दी यह दोष समाप्त हो जाता है। आज के दिन परिवार के साथ पीपल के पेड के पास जाइये, उस ही पीपल देवता को एक जनेऊ दीजिये साथ ही दुसरा जनेऊ भगवान विष्णु जी के नाम से उसी पीपल के पेड को दीजिये, पीपल के पेड और भगवान विष्णु को नमस्कार कर प्रार्थना कीजिये, अब एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की करें दुध की बनी मिठाई अथवा बताशा को हर परिक्रमा के साथ पीपल को अर्पित करते जाईए। फिर प्रार्थना करे कि जाने अन्जाने में हुये अपराधो के लिए उनसे क्षमा मांगिये। और अपने पितरो के कल्याण के लिए प्रार्थना करें। इस वर्ष शनि जयंती का पर्व दिनांक सोमवार 18.05.15 को अमावस्या तिथि को रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में उदय होने पर मनाया जाएगा। सोमवार के दिन आमवस्या तिथि व रोहिणी नक्षत्र के मेल से बना यह अत्यंत दुर्लभ योग है, राहु से पापाक्रांत शनि के दोषो को दूर कर आपके जीवन में व्यवसायिक समृद्धि दाता होगा।

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क्या आपका बच्चा गलत दोस्ती में पड़ गया है??? -



बढ़ते बच्चों की चिंता का एक कारण उनके गलत संगत में पड़कर कैरियर बर्बाद करने के साथ व्यसन या गलत आदतों का विकास होना भी है। दिखावें या शौक से शुरू हुई यह आदत व्यसन या लत की सीमा तक चला जाता है। इसका ज्योतिष कारण व्यक्ति के कुंडली से जाना जाता है। किसी व्यक्ति का तृतीयेष अगर छठवे, आठवें या द्वादष स्थान पर होने से व्यक्ति कमजोर मानसिकता का होता है, जिसके कारण उसका अकेलापन उसे दोस्ती की ओर अग्रेषित करता है। कई बार यह दोस्ती गलत संगत में पड़कर गलत आदतों का षिकार बनता है उसके अलावा लक्ष्य हेतु प्रयास में कमी या असफलता से डिप्रेषन आने की संभावना बनती है। अगर यह डिपे्रषन ज्यादा हो जाये तथा उसके अष्टम या द्वादष भाव में सौम्य ग्रह राहु से पापाक्रांत हो तो उस ग्रह दषाओं के अंतरदषा या प्रत्यंतरदषा में शुरू हुई व्यसन की आदत लत बन जाती है। लगातार व्यसन मनःस्थिति को और कमजोर करता है अतः यह व्यसन समाप्त होने की संभावना कम होती है। अतः व्यसन से बाहर आने के लिए मनोबल बढ़ाने के साथ राहु की शांति तथा मंगल का व्रत मंगल स्तोत्र का पाठ करना जीवन में व्यसन मुक्ति के साथ सफलता का कारक होता है।


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सूर्य का उच्च राषि मेष में प्रवेष देगा जीवन में स्वास्थ्य एवं समृद्धि-


      समस्त ग्रहों की अपनी उच्च एवं निम्न स्थिति होती हैं जब कोई ग्रह अपने उच्च स्थान पर होता है तो वह अपना अच्छा असर प्राणी पर डालता है। ग्रहों के राजा सूर्य 14 अप्रेल को दोपहर 3.25 बजे मीन राशि को छोड़कर उच्च राशि मेष में प्रवेश करेंगे। ये यहां 15 मई तक रहेंगे। प्रतिवर्ष 13 या 14 अप्रैल को सूर्य मेष राशि में प्रवेश होते ही श्रेष्ठ एवं उच्च का होता है। मेष राशि चक्र की प्रथम राशि है। इस समय सूर्य नक्षत्र समूह के प्रथम नक्षत्र अश्विनी में भी प्रवेश करता है। कई स्थानों पर इस दिन नववर्ष वैशाखी पर्व मनाते हैं। सूर्य एक राशि में एक माह रहता है। सूर्य का उच्च राशि में प्रवेश उन्नतिदायक व खुशहाली देने वाला रहेगा। मेष के सूर्य में तेजी रहती है इसलिए वह सबसे ज्यादा तपता है। यह सूर्य अर्यमा के नाम से भी जाना जाता है। अर्यमा सूर्य 10 हजार किरणों के साथ तपते हुए पीले वर्ण के होते हैं। यह सूर्य प्राणियों में स्वास्थ्य एवं जीवन देते हैं। मेष राशि में सूर्य के प्रवेश के बाद फिर से मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी। जिस भी जातक की कुंडली में सूर्य प्रतिकूलकारी हो अथवा सूर्य राहु से पापाक्रांत हो जाए अथवा सूर्य अपने स्थान से छठवे, आठवे या बारहवे बैठ जाए उन जातकों के लिए सूर्य की मेष संक्रांति विषेष रूप से फलदायी होती है अतः इस समय अपने सूर्य को मजबूत बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए, उसके लिए सूर्य को अध्र्य देना, मंत्रो का जाप करना तथा सूर्य से संबंधित वस्तुओं जैसे गेंहू, गुड तथा माणिक का दान करना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य से संबंधित कष्ट का निवारण होता हैं जिन भी जातक को आर्थराइटिस से संबंधित कष्ट हो उनके लिए मेष का सूर्य विषेष फलदायी होता है इस समय सूर्य स्नान से इस रोग से राहत प्राप्त होता है।




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क्या आपमें सेल्फ मोटिवेषन है:-


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