Thursday 4 June 2015

विश्व में शान्ति हेतु मनायें बुद्ध पूर्णिमा -

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भगवान बुद्ध ने बैसाख पूर्णिमा ४८३ ई. पू. में ८० वर्ष की आयु में, देवरिया जिले के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त किया। सृष्टि में गौतम बुद्ध एकमात्र ऐसे महापुरुष रहे जिनका जन्म भी इस दिन हुआ है और उनकी मृत्यु भी इसी दिन हुई थी। जिस पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ ने कठिन तपस्या कर बोधित्व प्राप्त किया उसका रोपण भी बैसाख पूर्णिमा को ही हुआ था। बैसाख पूर्णिमा के शुभ अवसर को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। मनुष्य जितना अधिक अधीर एवं असंयमी है मानसिक तनावों का शिकार हो कर लोभी, कामी, क्रोधी और हिंसक को उठा है। मानवीय मूल्यों का निरन्तर ह्रास होता जा रहा है। ऐसी हालत में गौतम बुद्ध के सिद्धांतों का प्रतिपादित आज ज्यादा प्रासंगिक है। यदि भगवान बुद्ध द्वारा दिखाए गए मार्ग पर हम चलने लगें तो विश्व को शान्ति के मार्ग पर आगे ले जा सकते हैं।
ज्योतिषीय विद्या अनुसार बुद्ध पूर्णिमा के दिन अलग-अलग पुण्य कर्म करने से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। धर्मराज के निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान दान करने से गोदान के समान फल प्राप्त होता है। ब्राह्मणों को मीठे तिल दान देने से सब पापों का क्षय हो जाता है। यदि तिलों के जल से स्नान करके घी, चीनी और तिलों से भरा पात्र भगवान विष्णु को निवेदन करें और उन्हीं से अग्नि में आहुति दें अथवा तिल और शहद का दान करें, तिल के तेल के दीपक जलाएं, जल और तिलों का तर्पण करें अथवा गंगा आदि में स्नान करें तो व्यक्ति सब पापों से निवृत्त हो जाता है। इस दिन शुद्ध भूमि पर तिल फैलाकर काले मृग का चर्म बिछाएं तथा उसे सभी प्रकार के वस्त्रों सहित दान करें तो अनंत फल प्राप्त होता है। यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा अथवा सत्यनारायण का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।

Pt.P.S Tripathi
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