Saturday 20 June 2015

अक्षय तृतीया की खास विशेषताएं और मान्यताएं

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अक्षय तृतीया के रूप में प्रख्यात वैशाख शुक्ल तीज को स्वयं सिद्ध मुहुर्तों में से एक माना जाता है। पौराणिक मान्यताएं इस तिथि में आरंभ किए गए कार्यों को कम से कम प्रयास में ज्यादा से ज्यादा सफलता प्राप्ति का संकेत देती है। समान्यत: अक्षय तृतीया में 42 घड़ी और 21 पल होते हैं। पद्म पुराण, अपरान्ह काल को व्यापक फल देने वाला मानता है। भौतिकता के अनुयायी इस काल को स्वर्ण खरीदने का श्रेष्ठ काल मानते हैं। इसके पीछे शायद इस तिथि की अक्षय प्रकृति ही मुख्य कारण है। सोच यह है कि इस काल में हम यदि घर में स्वर्ण लाएंगे तो अक्षय रूप से स्वर्ण आता रहेगा। अध्ययन या अध्ययन का आरंभ करने के लिए यह काल सर्वश्रेष्ठ है।
यह समय अपनी योग्यता को निखारने और अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए उत्तम है। यह मुहूर्त अपने कर्मों को सही दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। शायद यही मुख्य कारण है कि इस काल को दान इत्यादि के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।
दान को वैज्ञानिक तर्कों में उर्जा के रूपांतरण से जोड़ कर देखा जा सकता है। दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने के लिए यह दिवस सर्वश्रेष्ठ है। यदि अक्षय तृतीया सोमवार या रोहिणी नक्षत्र को आए तो इस दिवस की महत्ता हजारों गुणा बढ़ जाती है, ऐसी मान्यता है। इस दिन प्राप्त आशीर्वाद बेहद तीव्र फलदायक माने जाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है। सतयुग, त्रेता और कलयुग का आरंभ इसी तिथि को हुआ और इसी तिथि को द्वापर युग समाप्त हुआ था।
रेणुका के पुत्र परशुराम और ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का प्राकट्य इसी दिन हुआ था। इस दिन श्वेत पुष्पों से पूजन कल्याणकारी माना जाता है। धन और भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति तथा भौतिक उन्नति के लिए इस दिन का विशेष महत्व है। धन प्राप्ति के मंत्र, अनुष्ठान व उपासना बेहद प्रभावी होते हैं। स्वर्ण, रजत, आभूषण, वस्त्र, वाहन और संपत्ति के क्रय के लिए मान्यताओं ने इस दिन को विशेष बताया और बनाया है। बिना पंचांग देखे इस दिन को श्रेष्ठ मुहुर्तों में शुमार किया जाता है। लोक भाषाओं में इसे 'आखातीज, 'अखाती और 'अकतीÓ कहा जाता है। पौराणिक कथाओं में आख्यान आता है कि देवताओं को यह तिथि बहुत प्रिय है। इसलिए इसे उत्तम और पवित्र तिथि माना गया है। ये ऐसी तिथि है जिसमें हर घड़ी, हर पल को शुभ माना जाता है। बड़े से बड़े काम की सफलता तय मानी जाती है।
क्यों खास होती है आखा-तीज :
भविष्य पुराण के अनुसार 'अक्षय तृतीया के दिन सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में भगवान परशुराम, नर-नारायण एवं हयग्रीव आदि तीन अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही धरा पर आए। तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के पट भी अक्षय तृतीया को खुलते हैं।
वृंदावन के बांके बिहारी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया को होते हैं। वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है, उसमें प्रमुख स्थान 'अक्षय तृतीया का है। ये हैं- चैत्र शुक्ल गुड़ी पड़वा, वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया सम्पूर्ण दिन, आश्विन शुक्ल विजयादशमी तथा दीपावली की पड़वा का आधा दिन।
ऐसे करें अक्षय तृतीया पर व्रत पूजा :
वैसाख शुक्ल 'तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। चूंकि इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अत: इसे 'अक्षय तृतीया कहते हैं।
- व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें।
- घर की सफाई व नित्य कर्म से निवृत्त होकर पवित्र या शुद्ध जल से स्नान करें।
- घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
मंत्र से संकल्प करें -
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सकल शुभ फल प्राप्तये
भगवत्प्रीतिकामनया देवत्रयपूजनमहं करिष्ये।
संकल्प करके भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। षोडशोपचार विधि से भगवान विष्णु का पूजन करें। नैवेद्य में जौ या गेहूं का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पण करें। अगर हो सके तो विष्णु सहस्रनाम का जप करें। अंत में तुलसी जल चढ़ाकर भक्तिपूर्वक आरती करनी चाहिए। इसके पश्चात उपवास रहें।
लोक अंचलों में ऐसे मनायी जाती है 'आखा तीज:
अक्षय तृतीया का शास्त्रों में तो बड़ा महत्व है ही और लोग शास्त्रों में उल्लेखित पद्धति के अनुसार पूजन करते हैं वहीं इसे मनाने के लिए कई तरह की लोक परंपराएं भी हैं। माना जाता है कि इस दिन पवित्र सरोवरों और नदियों में डुबकी लगाने से मन को शांति मिलती है साथ ही बुरे कर्मों का प्रभाव कम होता है। इस दिन नदियों के घाटों पर जन सैलाब उमड़ पड़ता है। साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस दिन दिया गया दान स्वर्ग में दस हजार गुना होकर मिलता है और भगवान विष्णु के धाम की प्राप्ति होती है। आंचलिक रीति-रिवाजों के अनुसार घरों में सुबह से ही इस पर्व का आनंद दिखाई देता है। बाजार में मिट्टी के घड़ों, इमली और खरबूजों की दुकाने सज जाती है। आज के दिन जल और इमली के शर्बत से भरे कुंभ का दान दिया जाता है। भगवान के सामने नए मिट्टी के नए कुंभ को स्थापित किया जाता है। इसे लीप-पोतकर मंगल स्वस्तिक बनाकर हरे आम्र पत्र और पान के पत्तों से सजाया जाता है। जल से भरे इस कलश के भीतर पैसे और अखंड सुपारी डाली जाती है। पलाश के पत्तों के दोने से इसे ढका जाता है। दोने में इमली व गुड़ से बना शर्बत भरा जाता है। इसका भोग भगवान को लगा कर सबको बांटा जाता है।
खास बात ये है इस कलश को मिट्टी के चार ढेलों पर रखा जाता है। ये चार ढेले आषाढ़, श्रावण, भादों और क्वार मास के प्रतीक हैं। माना जाता है कि जिस मास का ढेला अधिक गीला होता है उस मास में अधिक वर्षा होगी है। देश के किसी हिस्से में मिट्टी के जल से भरे नए घड़े पर खरबूज रखकर दान किया जाता है तो कहीं घड़े के साथ सत्तू या इमली-गुड़ का शर्बत दान देते हैं। इस त्यौहार पर दान की सामग्री का वैज्ञानिक विश्लेषण करें तो तेज धूप, ऊंचे तापमान और लू के थपेड़ों के बीच खरबूज, सत्तू और इमली का शर्बत और घड़े का शीतल जल राहत दिलाता है। लोक भाषाओं के 'आखातीज, 'अखाती और 'अकाती की हर घड़ी, हर पल को शुभ माना जाता है।
तीज पर सोने की शुभ खरीदारी:
अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना अत्यंत शुभदायी माना जाता है और इसलिए सोना खरीदने की परंपरा भी इस त्यौहार से जुड़ी हुई हैं। लोग ठोस सोने के साथ ही सोने के आभूषण भी इस तिथि को खरीदते हैं। बदलते जमाने के साथ ही यह त्यौहार पर भी आधुनिकता की छाप दिखने लगी है। पुराण, पंडित और ज्योतिषी तो सैकड़ो सालों से इस दिन सोना खरीदने की सलाह देते आ रहे हैं और अब इंवेस्टमेंट अडवाईजर्स भी सोना खरीदने की राय दे रहे हैं। इसी कारण सोना खरीदने के साथ ही इस दिन लोग गोल्ड एक्सचेंज ट्रैडेड फंड के जरिए डीमैट फार्मेंट में सोने की खरीदारी करने लगे हैं और सोने को बतौर निवेश देखने लगे हैं। अक्षय तृतीया को स्वर्ण युग की आरंभ तिथि भी मानी गई है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन खरीदा और धारण किए गए सोने और चांदी के गहने अखंड सौभाग्य का प्रतीक माने गए हैं। मान्यताओं के मुताबिक सोने और चांदी के आभूषण खरीदने से घर में बरकत ही बरकत आती है। अक्षय तृतीया के मौके पर सोना खरीदना बड़ा ही शुभ माना जाता है। दरअसल सोने में मां लक्ष्मी का वास माना जाता है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि इस दिन सोना खरीदने के शुभ फल का भी क्षय नहीं होता अर्थात मां लक्ष्मी उस सोने के रूप में उस घर में स्थिरा हो जाती है। जिससे घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने और पहनने की भी परंपरा है।
अक्षय तृतीया पर शादी का मुहूर्त:
ऐसा माना जाता है कि इस दिन जिनका परिणय होता है, उनका सौभाग्य अखंड रहता है। इस दिन महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए किए गए अनुष्ठान का अखंड पुण्य मिलता है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। अक्षय तृतीया पर सूर्यदेवता अपनी उच्च राशि मेष में रहेंगे और वे इस दिन के स्वामी होंगे। रात्रि के स्वामी चंद्रमा भी अपनी उच्च राशि वृषभ में रहेंगे। शुक्र का वृषभ राशि में रहने से 27 तरह के योगों में अक्षय तृतीया का सौभाग्य योग रहेगा। यह अपने नाम के अनुसार ही फलदायी होगा। सूर्य के साथ मंगल कार्यों के स्वामी बृहस्पति अपनी मित्र राशि मेष में होंगे। ऐसी स्थिति प्रत्येक 12 वर्ष बाद बनती है।
दान का खास महत्व है:
पुराणों के अनुसार अक्षय तृतीया पर दान-धर्म करने वाले व्यक्ति को वैकुंठ धाम में जगह मिलती है। इसीलिए इस दिन को दान का महापर्व भी माना जाता है। इस दिन नए कार्य शुरू करने के लिए इस तिथि को शुभ माना गया है। भगवान विष्णु को सत्तू का भोग लगाया जाता है और प्रसाद में इसे ही बांटा जाता है। अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान करके जौ का हवन, जौ का दान, सत्तू को खाने से मनुष्य के सब पापों का नाश होता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति पर चंदन या इत्र का लेपन भी किया जाता है।


 Pt.P.S Tripathi
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